यहोवा शुद्ध उपासना पर आशीष देता है
सत्ताइसवाँ अध्याय
यहोवा शुद्ध उपासना पर आशीष देता है
1. यशायाह के आखिरी अध्याय में किन विषयों पर रोशनी डाली गयी है, और किन सवालों का जवाब दिया गया है?
यशायाह के आखिरी अध्याय में, इस पूरी किताब के कुछ खास विषयों या मुद्दों की शानदार समाप्ति दी गयी है। इसके अलावा, इस अध्याय में कई अहम सवालों के जवाब भी दिए गए हैं। इस अध्याय में, जिन विषयों पर रोशनी डाली गयी है, उनमें से कुछ हैं: यहोवा की महानता, कपट के लिए उसकी घृणा, दुष्टों को सज़ा देने का उसका संकल्प और वफादार लोगों के लिए उसका प्यार और उसकी परवाह। इसके अलावा इन सवालों के जवाब भी दिए गए हैं: सच्ची और झूठी उपासना के बीच क्या फर्क है? हम कैसे कह सकते हैं कि यहोवा उन कपटियों से ज़रूर पलटा लेगा जो एक तरफ पवित्र होने का ढोंग तो करते हैं वहीं दूसरी तरफ उसके लोगों को सताते भी हैं? और जो लोग यहोवा के वफादार बने रहते हैं, उन्हें वह कैसे आशीष देगा?
शुद्ध उपासना के लिए सबसे ज़रूरी गुण
2. यहोवा अपनी श्रेष्ठता और वैभव के बारे में क्या ऐलान करता है, लेकिन इसका क्या मतलब नहीं हो सकता?
2 भविष्यवाणी के शुरू में, यहोवा की श्रेष्ठता और उसके वैभव पर ज़ोर दिया गया है: “यहोवा यों कहता है, आकाश मेरा सिंहासन और पृथ्वी मेरे चरणों की चौकी है; तुम मेरे लिये कैसा भवन बनाओगे, और मेरे विश्राम का कौन सा स्थान होगा?” (यशायाह 66:1) कुछ लोगों का मानना है कि इन वचनों से यशायाह, यहूदियों से कह रहा था कि अपने देश में फिर से बस जाने पर वे यहोवा के लिए दोबारा मंदिर ना बनाएँ। लेकिन यह बात सच नहीं है। यहोवा खुद हुक्म देगा कि मंदिर दोबारा बनाया जाए। (एज्रा 1:1-6; यशायाह 60:13; हाग्गै 1:7,8) तो फिर यशायाह के इन शब्दों का क्या मतलब है?
3. पृथ्वी को यहोवा के “चरणों की चौकी” कहना क्यों बिलकुल सही है?
3 सबसे पहले, आइए इस बात पर गौर करें कि पृथ्वी को यहोवा के “चरणों की चौकी” किस लिए कहा गया है। यह कहकर पृथ्वी का अपमान नहीं किया गया। इस विश्वमंडल में अरबों तारे और ग्रह हैं, मगर उन सभी में से सिर्फ पृथ्वी को यह खास नाम दिया गया है। हमारी पृथ्वी हमेशा के लिए अनोखी और बेजोड़ साबित होगी। इसकी वजह यह है कि इसी पृथ्वी पर यहोवा के एकलौते पुत्र ने छुड़ौती की कीमत चुकायी थी और यहीं पर यहोवा अपने मसीहाई राज्य के ज़रिए अपनी हुकूमत को बुलंद करेगा। इसलिए पृथ्वी को यहोवा के चरणों की चौकी कहना कितना सही है! एक राजा ऐसी चौकी पर पैर रखकर अपने ऊँचे सिंहासन पर विराजमान होता है और वह उसके पैर रखने के काम आती है।
4. (क) यहोवा परमेश्वर के लिए पृथ्वी पर कोई भी निवासस्थान बनाना असंभव क्यों है? (ख) “ये सब वस्तुएं,” इन शब्दों का क्या अर्थ है, और यहोवा की उपासना के बारे में हम किस नतीजे पर पहुँचते हैं?
4 बेशक, एक राजा कभी अपने चरणों की चौकी पर बैठता नहीं, और ना ही यहोवा इस पृथ्वी पर विराजता है। और-तो-और, विशाल आकाश में भी यहोवा समा नहीं पाता! तो फिर इस पृथ्वी पर किसी भवन में वह कैसे समा सकता है, वह उसका घर कैसे हो सकता है? (1 राजा 8:27) यहोवा का सिंहासन और उसका निवासस्थान आत्मिक लोक में है और इसी को यशायाह 66:1 में “आकाश” कहा गया है। यह बात हमें अगली आयत से एकदम साफ समझ में आती है: “यहोवा की यह वाणी है, ये सब वस्तुएं मेरे ही हाथ की बनाई हुई हैं, सो ये सब मेरी ही हैं।” (यशायाह 66:2क) कल्पना कीजिए कि यहोवा अपना हाथ बढ़ाकर, ‘इन सब वस्तुओं’ यानी आकाश और पृथ्वी की सब वस्तुओं की ओर इशारा करता है। (यशायाह 40:26; प्रकाशितवाक्य 10:6) सारे विश्व का महान सिरजनहार होने के नाते वह अपने नाम का बस एक भवन पाने से कहीं ज़्यादा हक रखता है। वह मात्र ऊपरी उपासना से कहीं बढ़कर पाने का हकदार है।
5. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम “दीन और खेदित मन” के हैं?
यशायाह 66:2ख) जी हाँ, जो शुद्ध उपासना करना चाहते हैं, उनके दिल की हालत का सही होना बहुत ज़रूरी है। (प्रकाशितवाक्य 4:11) यहोवा के उपासक को “दीन और खेदित मन” का होना चाहिए। तो क्या यहोवा चाहता है कि हम दुःखी रहें? बिलकुल नहीं, वह खुद “आनंदित परमेश्वर” है और चाहता है कि उसके उपासक भी खुश रहें। (1 तीमुथियुस 1:11, NW; फिलिप्पियों 4:4) तो फिर इस आयत का क्या मतलब है? हम सभी बार-बार पाप करते हैं और हमें अपने पापों को मामूली नहीं समझना चाहिए। हमें उनकी वजह से “दीन” महसूस करना चाहिए और इस बात से दुःखी होना चाहिए कि हम यहोवा के धर्मी स्तरों की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते। (भजन 51:17) हमें दिखाना होगा कि हम “खेदित मन” के हैं और इसके लिए हमें अपने पापों का पश्चाताप करना होगा, अपनी पापी अभिलाषाओं से लड़ना होगा और यहोवा से माफी माँगनी होगी।—लूका 11:4; 1 यूहन्ना 1:8-10.
5 इस विश्व के महाराजाधिराज की उपासना किस तरह की जानी चाहिए? वह खुद हमें बताता है: “मैं उसी की ओर दृष्टि करूंगा जो दीन और खेदित मन का हो, और मेरा वचन सुनकर थरथराता हो।” (6. किस अर्थ में सच्चे उपासकों को ‘परमेश्वर का वचन सुनकर थरथराना’ चाहिए?
6 इसके अलावा, यहोवा ऐसे लोगों की ओर दृष्टि करता है जो उसका ‘वचन सुनकर थरथराते’ हैं। तो क्या वह यह चाहता है कि हम जब कभी उसका वचन पढ़ें तब डर के मारे थरथराने लगें? जी नहीं, वह चाहता है कि हमारे दिल में उसकी हर बात के लिए गहरी श्रद्धा और भय हो। वह चाहता है कि हम सच्चे दिल से उसकी सलाह की खोज करें ताकि ज़िंदगी के हर पहलू में उसके मार्गदर्शन के मुताबिक चल सकें। (भजन 119:105) हमें इस मायने में ‘थरथराना’ भी चाहिए कि हम परमेश्वर की आज्ञाएँ तोड़ने, उसकी सच्चाई को इंसानी रस्मों-रिवाज़ों से भ्रष्ट करने या उन्हें तुच्छ समझने का विचार भी अपने मन में लाने से डरें। शुद्ध उपासना करने के लिए नम्रता का यह गुण बेहद ज़रूरी है, मगर दुःख की बात है कि आज दुनिया में ऐसा गुण दुर्लभ है।
यहोवा कपटियों की उपासना से घृणा करता है
7, 8. कपटियों की उपासना को यहोवा किस नज़र से देखता है?
7 यशायाह जब अपने ज़माने के यहूदियों को देखता है, तो उसे अच्छी तरह पता है कि इनमें बहुत कम लोगों का स्वभाव ऐसा है जैसा यहोवा अपने उपासकों में चाहता है। इसी वजह से, धर्मत्यागी यरूशलेम उस न्यायदंड के लायक है जो उस पर जल्द ही आनेवाला है। ध्यान दीजिए कि यहोवा यरूशलेम में की जा रही उपासना को किस नज़र से देखता है: “बैल का बलि करनेवाला मनुष्य के मार डालनेवाले के समान है; जो भेड़ का चढ़ानेवाला है वह उसके समान है जो कुत्ते का गला काटता है; जो अन्नबलि चढ़ाता है वह मानो सूअर का लोहू चढ़ानेवाले के समान है; और, जो लोबान जलाता है, वह उसके समान है जो मूरत को धन्य कहता है। इन सभों ने अपना अपना मार्ग चुन लिया है, और घिनौनी वस्तुओं से उनके मन प्रसन्न होते हैं।”—यशायाह 66:3.
8 ये शब्द हमें यशायाह के पहले अध्याय में लिखे यहोवा के शब्दों की याद दिलाते हैं। यहोवा ने कहा कि उनकी दिखावटी उपासना से वह हरगिज़ खुश नहीं, उलटा वे उपासना का ढोंग करके उसके धर्मी क्रोध को और भी भड़काते जा रहे हैं। (यशायाह 1:11-17) उसी तरह इन आयतों में भी यहोवा उनकी बलियों की तुलना जघन्य अपराधों से करता है। वह कहता है कि उनके कीमती बैलों की बलि उसकी नज़र में किसी इंसान को घात करने से कम नहीं! उनके दूसरे बलिदान मानो कुत्ते या सूअर का बलिदान चढ़ाने के बराबर हैं, जो मूसा की व्यवस्था के मुताबिक अशुद्ध जानवर थे और किसी भी हाल में बलि नहीं चढ़ाए जा सकते थे। (लैव्यव्यवस्था 11:7,27) क्या यहोवा, उपासना के नाम पर ऐसा ढोंग करनेवालों को सज़ा दिए बगैर छोड़ देगा?
9. ज़्यादातर यहूदियों ने, यशायाह के ज़रिए यहोवा के बार-बार बुलाए जाने पर क्या रुख अपनाया, और उनका क्या होना तय है?
9 यहोवा अब कहता है: “उसी प्रकार मैं उनके लिए दण्ड चुन लूंगा, और जिन बातों से वे डरते हैं, उन्हीं को उन पर ले आऊंगा। क्योंकि मैंने बुलाया, परन्तु किसी ने उत्तर न दिया, मैं बोला परन्तु उन्होंने नहीं सुना। और उन्होंने यशायाह 66:4, NHT) यशायाह पूरे यकीन से यह बात कह सकता है। यहोवा अपने लोगों को ‘बुलाने’ और उनसे ‘बोलने’ के लिए बरसों से उसे इस्तेमाल करता आ रहा है। इसलिए यशायाह अच्छी तरह जानता है कि कुल मिलाकर किसी ने भी उसकी बात पर कान नहीं दिए हैं। वे अपने बुराई के मार्ग पर चलते रहे, इसलिए उनसे पलटा लिया जाना तय है। यहोवा चुनकर उन्हें सज़ा देगा और इन धर्मत्यागियों पर खौफनाक विपत्तियाँ डालेगा।
वही किया जो मेरी दृष्टि में बुरा है, और जिस से मैं अप्रसन्न था उसी को उन्होंने अपना लिया।” (10. यहोवा ने यहूदा से जैसा व्यवहार किया था, उससे हमें ईसाईजगत की तरफ उसके नज़रिए के बारे में क्या पता चलता है?
10 आज ईसाईजगत भी ऐसे-ऐसे काम करता है जिनसे यहोवा ज़रा भी खुश नहीं है। उसके गिरजों में बढ़-चढ़कर मूर्तिपूजा की जाती है, उसके मंचों से दुनियावी तत्त्वज्ञान और ऐसी परंपराएँ सिखायी जाती हैं जो बाइबल की शिक्षाओं के खिलाफ हैं। और अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाने की होड़ में वह इस दुनिया के राष्ट्रों के साथ आध्यात्मिक व्यभिचार की दलदल में और भी धँसता जा रहा है। (मरकुस 7:13; प्रकाशितवाक्य 18:4,5,9) इसलिए जैसा प्राचीन यरूशलेम के साथ हुआ, वैसे ही ईसाईजगत के साथ होगा। जिस दंड के वह लायक है, जी हाँ, जिससे ‘वह डरता है,’ वही दंड उसकी तरफ तेज़ी से बढ़ता चला आ रहा है। ईसाईजगत ने परमेश्वर के लोगों के साथ जैसा व्यवहार किया है, उस वजह से भी उसे सज़ा मिलना तय है।
11. (क) यशायाह के दिनों में धर्मत्यागियों का पाप किस वजह से और भी भारी हो गया है? (ख) किस मायने में यशायाह के ज़माने के लोग, वफादार लोगों को ‘परमेश्वर के नाम के निमित्त’ अलग कर देते हैं?
11 यशायाह आगे कहता है: “तुम जो यहोवा का वचन सुनकर थरथराते हो यहोवा का वचन सुनो: तुम्हारे भाई जो तुम से बैर रखते और मेरे नाम के निमित्त तुम को अलग कर देते हैं उन्हों ने कहा है, यहोवा की महिमा तो बढ़े, जिस से हम तुम्हारा आनन्द देखने पाएं; परन्तु उन्हीं को लज्जित होना पड़ेगा।” (यशायाह 66:4ख,5) यशायाह के “भाई,” यानी उसके अपने देश के लोगों को यहोवा परमेश्वर ने यह ज़िम्मेदारी सौंपी है कि वे उसके प्रतिनिधि बनें और उसकी हुकूमत के अधीन रहें। मगर वे ऐसा ना करके बहुत गंभीर पाप कर रहे हैं। और-तो-और, वे यशायाह जैसे वफादार और नम्र लोगों से नफरत कर रहे हैं जिससे उनका पाप और भी भारी हो जाता है। ये धर्मत्यागी, परमेश्वर के वफादार लोगों से इसलिए बैर रखते हैं और उन्हें अपने बीच से निकाल देते हैं, क्योंकि ये लोग यहोवा परमेश्वर के सच्चे प्रतिनिधि हैं। इस तरह वे ‘परमेश्वर के नाम के निमित्त’ उन्हें अलग कर देते हैं। लेकिन, साथ ही यहोवा के सेवक होने का ढोंग करनेवाले ये लोग दावा करते हैं कि वे उसके प्रतिनिधि हैं और धर्मी होने का पाखंड करते हुए बड़ी-बड़ी बातें बोलते हैं, जैसे ‘यहोवा की महिमा बढ़े’! *
12. धर्मी होने का ढोंग करनेवालों के हाथों यहोवा के वफादार सेवकों के सताए जाने की कुछ मिसालें क्या हैं?
12 शुद्ध उपासना करनेवालों से झूठे धर्म का बैर कोई नयी बात नहीं है। यह उत्पत्ति 3:15 में की गयी भविष्यवाणी की एक पूर्ति है, जिसमें बताया गया था कि शैतान के वंश और परमेश्वर की स्त्री के वंश के बीच लंबे समय तक बैर चलेगा। यीशु ने पहली सदी के अपने अभिषिक्त चेलों से कहा कि उन्हें भी उनके अपने ही लोग सताएँगे। उन्हें आराधनालय से निकाल दिया जाएगा और इस हद तक सताया जाएगा कि उन्हें अपनी जान भी गँवानी पड़ सकती है। (यूहन्ना 16:2) और हमारे ज़माने के बारे में क्या? जब ‘अन्तिम दिन’ शुरू हुए, तो परमेश्वर के लोग जानते थे कि उन्हें भी सताया जाएगा। (2 तीमुथियुस 3:1) सन् 1914 में, द वॉचटावर में यशायाह 66:5 के शब्दों का हवाला देकर कहा गया: “परमेश्वर के लोगों पर किए गए लगभग सभी ज़ुल्मों के लिए ज़िम्मेदार वही हैं जो खुद को ईसाई कहते हैं।” उस लेख ने यह भी कहा: “हमें नहीं पता लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि वे हमारे दिनों में सारी हदें पार कर जाएँ—समाज से बहिष्कार करने के ज़रिए हमारा खून कर दें, संगठन के तौर पर हमारा खून कर दें या शायद सचमुच में हमारा खून दें।” ये शब्द कितने सच साबित हुए! इनके छपने के कुछ ही समय बाद, पहले विश्वयुद्ध के दौरान, पादरियों का भड़काया हुआ अत्याचार सारी हदें पार कर गया। मगर जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, ईसाईजगत को जल्द ही लज्जित होना पड़ा। कैसे?
तेज़ी से और अचानक होनेवाली बहाली
13. भविष्यवाणी की पहली पूर्ति में, “नगर से कोलाहल की धूम” का क्या मतलब था?
13 यशायाह भविष्यवाणी करता है: “सुनो, नगर से कोलाहल की धूम, मन्दिर से एक शब्द, सुनाई देता है! वह यहोवा का शब्द है, वह अपने शत्रुओं को उनकी करनी का फल दे रहा है!” (यशायाह 66:6) पहली बार जब यह भविष्यवाणी पूरी हुई तो उस वक्त भविष्यवाणी में बताया गया “नगर” यरूशलेम था, जहाँ यहोवा का मंदिर था। “कोलाहल की धूम” का मतलब है, युद्ध के दौरान होनेवाला शोर-शराबा जो नगर में उस वक्त सुनायी दिया जब सा.यु.पू. 607 में, बाबुल की सेना ने यरूशलेम पर चढ़ाई की। लेकिन, आज के ज़माने में यह भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?
14. (क) यहोवा के अपने मंदिर में आने के बारे में मलाकी ने क्या भविष्यवाणी की? (ख) यहेजकेल की भविष्यवाणी के मुताबिक, जब यहोवा अपने मंदिर में आया तो क्या हुआ? (ग) यहोवा और यीशु ने आत्मिक मंदिर की कब जाँच की और शुद्ध उपासना करने का दावा करनेवालों पर इसका कैसा असर हुआ?
14 यशायाह के ये शब्द, दो और भविष्यवाणियों से मेल खाते हैं। इनमें से यहेजकेल 43:4,6-9 और दूसरी मलाकी 3:1-5 है। यहेजकेल और मलाकी दोनों ने ऐसे समय की भविष्यवाणी की जब यहोवा परमेश्वर अपने मंदिर में आता है। मलाकी की भविष्यवाणी दिखाती है कि यहोवा, सुनार बनकर शुद्ध उपासना के अपने भवन की जाँच करने आता है और जो उसके नाम को बदनाम कर रहे थे, उन्हें वहाँ से निकाल देता है। यहेजकेल का दर्शन दिखाता है कि यहोवा अपने मंदिर में प्रवेश करता है और यह माँग करता है कि उसके भवन से अनैतिकता और मूर्तिपूजा पूरी तरह से मिटायी जाए। * आज के ज़माने में इन भविष्यवाणियों की पूर्ति सन् 1918 में हुई, जब आत्मिक स्वर्गलोक में यहोवा की उपासना के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण घटना घटी। सबूत दिखाते हैं कि खुद यहोवा और यीशु ने उस वक्त अपने आत्मिक मंदिर में आकर ऐसे सभी लोगों की जाँच की जो शुद्ध उपासना करने का दावा कर रहे थे। उस जाँच का नतीजा यह निकला कि भ्रष्ट ईसाईजगत को सदा के लिए त्याग दिया गया। मसीह के अभिषिक्त चेलों को भी इसी जाँच के दौरान कुछ समय के लिए शुद्ध किया गया, लेकिन उसके बाद सन् 1919 में उनकी आध्यात्मिक हालत बड़ी तेज़ी से सुधरी और वे बहाल होते चले गए।—1 पतरस 4:17.
एक15. किस जन्म की भविष्यवाणी की गयी, और यह भविष्यवाणी सा.यु.पू. 537 में कैसे पूरी हुई?
15 यशायाह की अगली आयतों में इस बहाली की बेहतरीन तसवीर पेश की गयी है: “उसकी पीड़ाएं उठने से पहले ही उस ने जन्मा दिया; उसको पीड़ाएं होने से पहिले ही उस से बेटा जन्मा। ऐसी बात किस ने कभी सुनी? किस ने कभी ऐसी बातें देखीं? क्या देश एक ही दिन में उत्पन्न हो सकता है? क्या एक जाति क्षणमात्र में ही उत्पन्न हो सकती है? क्योंकि सिय्योन की पीड़ाएं उठी ही थीं कि उस से सन्तान उत्पन्न हो गए।” (यशायाह 66:7,8) ये शब्द पहली बार उन यहूदियों पर बड़े ही अद्भुत तरीके से पूरे हुए जो बाबुल की बंधुआई में थे। सिय्योन या यरूशलेम को फिर से एक ऐसी जच्चा बताया गया है जो जन्म देनेवाली है, लेकिन यह कैसा अनोखा जन्म है! यह इतनी जल्दी और अचानक होता है कि प्रसव पीड़ाएँ उठने से पहले ही जन्म हो जाता है! यहाँ बिलकुल सही तसवीर पेश की गयी है। सा.यु.पू. 537 में, एक बार फिर परमेश्वर के लोगों का दोबारा एक जाति के रूप में जन्म हुआ और यह इतनी तेज़ी से और अचानक हुआ कि लगा मानो कोई चमत्कार हो। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि कुस्रू ने जब यहूदियों को आज़ाद किया, तो उसके कुछ ही महीनों के अंदर वफादार शेष जन अपने वतन में आ बसे थे! इस्राएल जाति का जब पहली बार जन्म हुआ तब जो घटनाएँ घटी थीं, उनमें और अब की घटनाओं में कितना बड़ा फर्क था! सा.यु.पू. 537 में, न तो किसी हठीले सम्राट से विनती करने की ज़रूरत पड़ी, न ही दुश्मनों की पीछा कर रही फौज से भागने की ज़रूरत पड़ी, न ही 40 साल तक वीराने में भटकने की नौबत आयी।
16. आज यशायाह 66:7,8 की पूर्ति में, सिय्योन कौन है, और कैसे उसकी संतान का दोबारा जन्म हुआ है?
16 हमारे ज़माने में इस भविष्यवाणी की पूर्ति में सिय्योन, यहोवा की स्वर्गीय ‘स्त्री,’ यानी आत्मिक प्राणियों से बना उसका स्वर्गीय संगठन है। सन् 1919 में, इस ‘स्त्री’ ने पृथ्वी पर अपने अभिषिक्त बेटों का जन्म होते देख खुशियाँ मनायीं। उसके बेटे अब एक “जाति” की तरह संगठित हो गए। उनका बड़ी तेज़ी से और अचानक दोबारा जन्म हुआ। * सिर्फ कुछ महीनों में, अभिषिक्त जन जो बेजान और मुर्दा हालत में थे, उनमें फिर से जान आ गयी और वे पूरे जोश से अपने “देश” में काम करने लगे। यह “देश,” परमेश्वर से मिला वह प्रदेश था जिसमें वे आध्यात्मिक सेवा करते हैं। (प्रकाशितवाक्य 11:8-12) सन् 1919 के पतझड़ के आते-आते, उन्होंने द वॉचटावर के साथ एक और पत्रिका निकालने की घोषणा कर दी। वह पत्रिका थी, द गोल्डन एज (अब, अवेक!), जो इस बात का सबूत थी कि परमेश्वर के लोगों में नयी शक्ति और स्फूर्ति आ गयी है और अब वे परमेश्वर की सेवा के लिए फिर से संगठित हैं।
17. यहोवा अपने लोगों को कैसे यकीन दिलाता है कि आत्मिक इस्राएल के लिए उसके उद्देश्य को पूरा करने से उसे कोई नहीं रोक सकता?
17 पूरे जहान की कोई भी ताकत इस आत्मिक पुनर्जन्म को रोक नहीं सकती। अगली आयत में, यही बात साफ और ज़ोरदार शब्दों में कही गयी है: “यहोवा कहता है, क्या मैं उसे जन्माने के समय तक पहुंचाकर न जन्माऊं? तेरा परमेश्वर कहता है, मैं जो गर्भ देता हूं क्या मैं कोख बन्द करूं?” (यशायाह 66:9) जैसे यह तय है कि गर्भ में बच्चा पड़ने के बाद, वह बढ़ता जाता है और आखिरकार जन्म लेता है, उसी तरह जब आत्मिक इस्राएल के जन्म लेने की क्रिया शुरू हो गयी तो उसे कोई नहीं रोक सकता। यह सच है कि इसका विरोध किया गया और आगे चलकर शायद इसे और ज़्यादा विरोध का सामना करना पड़े। लेकिन जो काम यहोवा शुरू करता है, उसे सिर्फ वही रोक सकता है, और वह अपना काम कभी नहीं रोकता! लेकिन, यहोवा अपने इन लोगों के साथ कैसे पेश आता है जिनमें दोबारा जान आ गयी है?
यहोवा प्यार से देखभाल करता है
18, 19. (क) यहोवा ने कौन-सी बेहद खूबसूरत मिसाल दी, और यह बंधुआई में पड़े उसके लोगों पर कैसे लागू होती है? (ख) आज अभिषिक्त शेष जनों को प्यार-भरी परवाह और आध्यात्मिक भोजन से कैसे फायदा हुआ है?
18 अगली चार आयतें बेहद खूबसूरती से बयान करती हैं कि यहोवा कैसे प्यार से देखभाल करता है। पहले यशायाह कहता है: “हे यरूशलेम से सब प्रेम रखनेवालो, उसके साथ आनन्द करो और उसके कारण मगन हो; हे उसके विषय सब विलाप करनेवालो उसके साथ हर्षित हो! जिस से तुम उसके शान्तिरूपी स्तन से दूध पी पीकर तृप्त हो; और दूध पीकर उसकी महिमा की बहुतायत से अत्यन्त सुखी हो।” (यशायाह 66:10,11) यहोवा यहाँ एक स्त्री की मिसाल देता है जो अपने बच्चे को दूध पिला रही है। जब बच्चे को भूख सताती है तो उसकी रुलाई रोके नहीं रुकती। मगर जब माँ उसे छाती से लगाकर दूध पिलाती है तब वह रोना भूल जाता है, और तृप्त होकर मुस्कुराने लगता है। उसी तरह, बहुत जल्द जब उन्हें बाबुल से छुटकारा मिलेगा और वे फिर से बहाल हो जाएँगे तो बचे हुए वफादार यहूदी विलाप करने के बजाय मग्न होंगे और तृप्त हो जाएँगे। वे खुशी के मारे आनंद मनाएँगे। जब यरूशलेम को दोबारा बनाया जाएगा और लोग उसमें फिर से रहने लगेंगे तो उसकी महिमा लौट आएगी। और इस नगर के वफादार निवासियों पर उसकी महिमा छा जाएगी। एक बार फिर, याजकों की सेवाओं के ज़रिए उन्हें आध्यात्मिक आहार से तृप्त किया जाएगा।—यहेजकेल 44:15,23.
19 सन् 1919 में बहाल होने के बाद, आत्मिक इस्राएल को भी आशीष दी गयी और उसके लिए आध्यात्मिक भोजन का भंडार खोल दिया गया। तब से लेकर आज तक, “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” लगातार आध्यात्मिक भोजन देता आ रहा है। (मत्ती 24:45-47) यह अभिषिक्त शेष जनों के लिए वाकई शांति पाने और सुखी होने का वक्त है। मगर उन्हें इसके अलावा और भी कई आशीषें मिली हैं।
20. यरूशलेम को कैसे प्राचीनकाल में, और आज भी “उमड़ती धारा” की आशीष मिली?
20 भविष्यवाणी आगे कहती है: “यहोवा यों कहता है, ‘देखो, मैं उसकी ओर शान्ति को नदी के समान, और जाति जाति का वैभव उमड़ती धारा के समान बहाऊंगा। तुम्हारा पालन-पोषण होगा, तुम गोद में लिए जाओगे और घुटनों पर दुलारे जाओगे।’” (यशायाह 66:12, NHT) यहाँ छाती से लगाकर दूध पिलाए जाने के साथ-साथ, आशीषों की धारा बहने की भी तसवीर दी गयी है, जिन्हें “नदी” और “उमड़ती धारा” कहा गया है। यरूशलेम को न सिर्फ यहोवा से असीम शांति की, बल्कि “जाति जाति का वैभव” पाने की भी आशीष मिलेगी। यह वैभव उसकी ओर मानो बहकर आता है और इससे परमेश्वर के लोगों को आशीषें मिलती हैं। इसका मतलब यह है कि जाति-जाति के लोग उमड़ती धारा की तरह वेग से यहोवा के लोगों में मिलते जाएँगे। (हाग्गै 2:7) प्राचीनकाल में जब यह भविष्यवाणी पूरी हुई, तो दूसरी जातियों में से बहुत-से लोग वाकई इस्राएल के साथ आ मिले और वे यहूदी मतधारक बने। लेकिन, यह भविष्यवाणी आज हमारे ज़माने में बहुत बड़े पैमाने पर पूरी हुई है, क्योंकि आज “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक . . . बड़ी भीड़,” जी हाँ, लोगों की एक उमड़ती धारा बड़े वेग से आकर आत्मिक यहूदियों के शेष जनों के साथ मिल रही है।—प्रकाशितवाक्य 7:9; जकर्याह 8:23.
21. मनमोहक शब्दों की तसवीर से, किस तरह की शांति देने की भविष्यवाणी की गयी है?
21 यशायाह 66:12 में यह भी बताया है कि माँ अपने बच्चे को कैसे प्यार करती है, वह उसे अपने घुटनों पर बिठाकर दुलारती है और गोद में लेकर चलती है। अगली आयत में, इससे मिलती-जुलती बात बतायी गयी है, मगर यहाँ हालात में एक दिलचस्प बदलाव नज़र आता है। “जिस प्रकार माता अपने पुत्र [पुरुष, फुटनोट] को शान्ति देती है, वैसे ही मैं भी तुम्हें शान्ति दूंगा; तुम को यरूशलेम ही में शान्ति मिलेगी।” (यशायाह 66:13) अब बच्चा बड़ा होकर एक “पुरुष” बन चुका है। मगर माँ की ममता अब भी उसके लिए कम नहीं हुई है, वह मुसीबत में उसे शांति देना जारी रखती है।
22. यहोवा कैसे दिखाता है कि उसका प्यार कोमल और अटल है?
22 इस मनभावनी मिसाल से, यहोवा दिखाता है कि उसके दिल में अपने लोगों के लिए जो प्यार है वह कितना अटूट और कोमल है। माँ की ममता भी, यहोवा के उस गहरे प्यार का लेश मात्र भी नहीं, जो उसे अपने वफादार लोगों से है। (यशायाह 49:15) तो फिर यह कितना ज़रूरी है कि सभी मसीही अपने स्वर्गीय पिता का यह गुण अपने व्यवहार में ज़ाहिर करें! प्रेरित पौलुस ने ऐसा ही प्यार दिखाया, और इस तरह मसीही कलीसिया में प्राचीनों के लिए एक बढ़िया मिसाल कायम की। (1 थिस्सलुनीकियों 2:7) यीशु ने कहा था कि भाइयों के लिए प्यार ही उसके चेलों की सबसे बड़ी पहचान होगी।—यूहन्ना 13:34,35.
23. यहोवा के बहाल किए गए लोगों की खुशी बयान कीजिए।
23 यहोवा कामों से अपना प्रेम ज़ाहिर करता है। वह बताता है: “तुम यह देखोगे और प्रफुल्लित होगे; तुम्हारी हड्डियां घास की नाईं हरी भरी होंगी; और यहोवा का हाथ उसके दासों के लिये प्रगट होगा, और, उसके शत्रुओं के ऊपर उसका क्रोध भड़केगा।” (यशायाह 66:14) इब्रानी व्याकरण के एक विद्वान का कहना है कि “तुम यह देखोगे” इन शब्दों का यह मतलब है कि बंधुआई से लौटनेवाले यहूदी, अपने बहाल किए गए देश में जहाँ कहीं नज़र दौड़ाएँगे वहाँ “उन्हें अब खुशहाली नज़र आएगी।” यह देखकर कि वे सचमुच अपने प्यारे वतन में आकर फिर से बस गए हैं, वे इतने प्रफुल्लित होंगे कि अपनी खुशी बयान करने के लिए उनके पास शब्द ही नहीं होंगे। वे अपने अंदर नयी जान महसूस करेंगे, मानो उनकी हड्डियाँ फिर से मज़बूत हो रही हों, वैसे ही जैसे बहार के आने पर घास हरी-भरी हो जाती है। सभी यह जान लेंगे कि इन आशीषों में किसी इंसान का नहीं बल्कि “यहोवा का हाथ” है।
24. (क) आज जब आप यहोवा के लोगों के बीच हो रही घटनाओं पर ध्यान देते हैं तो आप किस नतीजे पर पहुँचते हैं? (ख) हमारा क्या संकल्प होना चाहिए?
24 क्या आप इस बात को मानते हैं कि आज यहोवा का हाथ उसके लोगों के बीच काम कर रहा है? आज शुद्ध उपासना की फिर से शुरूआत करना किसी इंसान के बस की बात नहीं थी। किसी इंसान के लिए यह मुमकिन नहीं था कि वह सारी जातियों से लाखों अनमोल लोगों को धारा की तरह ले आए ताकि वे वफादार अभिषिक्त जनों के शेषवर्ग के साथ उनके आध्यात्मिक प्रदेश में बस जाएँ। सिर्फ यहोवा ऐसे काम कर सकता है। यहोवा के प्यार के इतने सारे सबूत देखकर हमारा मन फूला नहीं समाता। हमारी दुआ है कि हम कभी उसके प्यार को तुच्छ जानकर उससे एहसानफरामोशी न करें। हम ‘उसका वचन सुनकर थरथराते’ रहें। आइए हम यह संकल्प कर लें कि हम बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक जीएँगे और खुशी से यहोवा की सेवा करते रहेंगे।
[फुटनोट]
^ पैरा. 11 आज ईसाईजगत में बहुत-से लोग यहोवा नाम का इस्तेमाल नहीं करना चाहते। यहाँ तक कि उन्होंने बहुत सारे बाइबल अनुवादों में से यह नाम निकाल दिया है। इनमें से कुछ, परमेश्वर का निजी नाम इस्तेमाल करनेवालों का ठट्ठा उड़ाते हैं। फिर भी, इनमें से कई लोग “हल्लिलूयाह” को एक पवित्र श्लोक की तरह दोहराते हैं जिसका मतलब है “याह की स्तुति करो।”
^ पैरा. 14 यहेजकेल 43:7,9 में ‘राजाओं की लोथों,’ का मतलब मूरतें हैं। यरूशलेम के विद्रोही शासकों और लोगों ने परमेश्वर के मंदिर को मूरतों से भरकर अशुद्ध कर दिया था और उन्हें दरअसल, राजाओं का दर्जा दे दिया था।
^ पैरा. 16 इस भविष्यवाणी में जिस जन्म की बात की गयी है, वह प्रकाशितवाक्य 12:1,2,5 में बताए गए जन्म से फर्क है। प्रकाशितवाक्य में जिस ‘बेटे’ के जन्म की बात की गयी है, वह मसीहाई राज्य है जो सन् 1914 में शुरू हुआ। लेकिन हाँ, दोनों भविष्यवाणियों की ‘स्त्री’ एक ही है।
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 395 पर तसवीर]
“ये सब वस्तुएं मेरे ही हाथ की बनाई हुई हैं”
[पेज 402 पर तसवीर]
यहोवा “जाति जाति का वैभव” सिय्योन की ओर बहा लाएगा