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यहोवा हमारे भले के लिए हमें सिखाता है

यहोवा हमारे भले के लिए हमें सिखाता है

नौवाँ अध्याय

यहोवा हमारे भले के लिए हमें सिखाता है

यशायाह 48:1-22

1. बुद्धिमान जन, यहोवा के वचन सुनकर क्या करते हैं?

जब यहोवा के मुख से वचन निकलते हैं, तो बुद्धिमान जन उसके हर शब्द को बड़ी श्रद्धा से सुनते हैं और उनका पालन भी करते हैं। यहोवा का हर वचन हमारे लाभ के लिए होता है और वह यही चाहता है कि हमारा भला हो। उदाहरण के लिए, प्राचीनकाल में यहोवा ने जिस तरीके से अपने चुने हुए लोगों से बात की उससे हमारे दिल में उसके लिए प्यार उमड़ आता है: “भला होता कि तू ने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता!” (यशायाह 48:18) यह साबित हो चुका है कि परमेश्‍वर की शिक्षाओं पर चलने से हमेशा फायदा ही होता है इसलिए हमें उसकी बात सुननी चाहिए और उसके मार्गदर्शन पर चलना चाहिए। बीते समय में पूरी हुई भविष्यवाणियों का लिखित रिकॉर्ड, हमारे मन में शक की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता कि यहोवा अपने वादे ज़रूर पूरे करेगा।

2. यशायाह के 48वें अध्याय के शब्द किनके लिए लिखे गए थे, और इनसे और किसे लाभ हो सकता है?

2 ज़ाहिर है कि बाइबल में यशायाह के 48वें अध्याय के शब्द उन यहूदियों के लिए लिखे गए थे जिन्हें बंदी बनाकर बाबुल ले जाया जाता। और इसके संदेश पर आज मसीहियों को भी ध्यान देना चाहिए। यशायाह के 47वें अध्याय में बाबुल के गिरने की भविष्यवाणी की गयी थी। अब इस अध्याय में यहोवा बताता है कि वह इस नगर में कैद यहूदियों की खातिर क्या करेगा। यहोवा को यह देखकर दुःख होता है कि उसके चुने हुए लोग कैसे ढोंगी हैं और उसके वादों पर यकीन नहीं करते। फिर भी, वह उनको ऐसी शिक्षा देना चाहता है जिससे उनका भला हो। वह जानता है कि भविष्य में जब यहूदियों को शुद्ध किया जाएगा, तब उनमें से कुछ लोग वफादार निकलेंगे और फिर से अपने देश में बसाए जाएँगे।

3. यहूदा की उपासना में क्या खोट है?

3 यहोवा के लोग शुद्ध उपासना से कितनी दूर जा चुके हैं! यशायाह के शुरू के शब्द सचमुच गंभीर हैं: “हे याकूब के घराने, यह बात सुन, तुम जो इस्राएली कहलाते और यहूदा के सोतों के जल से उत्पन्‍न हुए हो; जो यहोवा के नाम की शपथ खाते हो और इस्राएल के परमेश्‍वर की चर्चा तो करते हो, परन्तु सच्चाई और धर्म से नहीं करते। क्योंकि वे अपने को पवित्र नगर के बताते हैं, और इस्राएल के परमेश्‍वर पर जिसका नाम सेनाओं का यहोवा है भरोसा करते हैं।” (यशायाह 48:1,2) कितना बड़ा ढोंग! “यहोवा के नाम की शपथ” खाना एक रस्म बन चुका है। (सपन्याह 1:5) बाबुल की बंधुआई में जाने से पहले, यहूदी कहने को तो “पवित्र नगर” यरूशलेम में यहोवा की उपासना करते थे। लेकिन उनकी उपासना दिल से नहीं थी। उनके दिल परमेश्‍वर से बहुत दूर हैं और वे “सच्चाई और धर्म” से उसकी भक्‍ति नहीं करते। उनमें अपने पुरखों जैसा विश्‍वास नहीं था।—मलाकी 3:7.

4. यहोवा कैसी उपासना चाहता है?

4 यहोवा के वचन हमें ध्यान दिलाते हैं कि हमें उसकी उपासना को एक ढर्रा नहीं बनाना चाहिए बल्कि दिल लगाकर उसकी उपासना करनी चाहिए। नाममात्र के लिए की जानेवाली सेवा, जो शायद दूसरों को खुश करने या उनकी वाह-वाही पाने के इरादे से की गयी हो, उसे ईश्‍वरीय “भक्‍ति” के काम नहीं कहा जा सकता। (2 पतरस 3:11) एक इंसान के खुद को मसीही कह देने भर से परमेश्‍वर उसकी उपासना स्वीकार नहीं करने लगता। (2 तीमुथियुस 3:5) हालाँकि यह मानना बेहद ज़रूरी है कि यहोवा सचमुच अस्तित्त्व में है, मगर इतना ही काफी नहीं। यहोवा चाहता है कि हम उसकी उपासना तन-मन से और ऐसे दिल से करें, जो उसके लिए अथाह प्रेम और एहसानमंदी से भरा हो।—कुलुस्सियों 3:23.

नयी नयी बातों की भविष्यवाणी करना

5. ऐसी कुछ ‘पिछली बातें’ क्या हैं जिनकी यहोवा ने भविष्यवाणी की थी?

5 बाबुल की बंधुआई में रहनेवाले यहूदियों को अपनी यादें ताज़ा करने की ज़रूरत है। इसलिए यहोवा एक बार फिर उन्हें याद दिलाता है कि वह सच्ची भविष्यवाणियों का परमेश्‍वर है: “पिछली बातों को तो मैंने बहुत पहले से ही बता दिया था, वे मेरे मुख से निकलीं, मैंने उनकी घोषणा की, फिर उनको तुरन्त कर भी डाला, और वे पूरी हुईं।” (यशायाह 48:3, NHT) “पिछली बातों” का मतलब ऐसी भविष्यवाणियाँ हैं जिन्हें बीते समय में परमेश्‍वर ने पूरा किया था, जैसे इस्राएलियों को मिस्र से आज़ाद करना और उन्हें वादा किया हुआ देश विरासत में देना। (उत्पत्ति 13:14,15; 15:13,14) ऐसी भविष्यवाणियाँ परमेश्‍वर के मुख से निकलती हैं यानी ये परमेश्‍वर की ओर से हैं। यहोवा, अपने आदेश इंसानों को सुनवाता है ताकि वे सुनें और आज्ञाकारी बनें। (व्यवस्थाविवरण 28:15) यहोवा अपनी भविष्यवाणियों को पूरा करने में देर नहीं करता बल्कि तुरंत कदम उठाता है। वह सर्वशक्‍तिमान है इसलिए हमारा भरोसा बढ़ता है कि उसका मकसद ज़रूर पूरा होगा।—यहोशू 21:45; 23:14.

6. यहूदी किस कदर ‘हठीले और विद्रोही’ हो गए हैं?

6 यहोवा के लोग ‘हठीले और विद्रोही’ हो गए हैं। (भजन 78:8, नयी हिन्दी बाइबिल) इसलिए, वह उनसे मुँह पर कह देता है: “तू हठीला है और तेरी गर्दन लोहे की नस और तेरा माथा पीतल का है।” (यशायाह 48:4) यहूदी लोग, धातु की तरह सख्त हो गए हैं जिसे ढालना मुश्‍किल होता है। वे इतने ढीठ हो गए हैं कि अगर यहोवा होनेवाली घटनाओं की भविष्यवाणी न करे, तो वे उसके किए हुए कामों के बारे में कहेंगे: “यह मेरे देवता का काम है, मेरी खोदी और ढली हुई मूर्त्तियों की आज्ञा से यह हुआ।” (यशायाह 48:5) यहोवा अब जो कह रहा है, क्या इससे उन विश्‍वासघाती यहूदियों पर कुछ असर पड़ेगा? परमेश्‍वर उनसे कहता है: “तू ने सुना है, सो अब इन सब बातों पर ध्यान कर; और देखो, क्या तुम उसका प्रचार न करोगे? अब से मैं तुझे नई नई बातें और ऐसी गुप्त बातें सुनाऊंगा जिन्हें तू नहीं जानता। वे अभी अभी सृजी गई हैं, प्राचीनकाल से नहीं; परन्तु आज से पहिले तू ने उन्हें सुना भी न था, ऐसा न हो कि तू कहे कि देख मैं तो इन्हें जानता था।”—यशायाह 48:6,7.

7. बंधुआई में रहनेवाले यहूदी किस बात से इनकार नहीं कर सकते, और वे किन घटनाओं के होने की उम्मीद कर सकते हैं?

7 बाबुल के गिरने की भविष्यवाणी, यशायाह ने बहुत पहले ही लिख दी थी। अब इस भविष्यवाणी में, बाबुल में कैद यहूदियों को आज्ञा दी जाती है कि वे इस भविष्यवाणी की पूर्ति पर ध्यान दें। क्या वे इस बात से इनकार कर सकते हैं कि यहोवा, ऐसा परमेश्‍वर है जिसकी हर भविष्यवाणी पूरी होती है? और यहूदा के निवासियों ने खुद देखा और सुना था कि यहोवा सच्चाई बतानेवाला परमेश्‍वर है, तो क्या उन्हें यह सच्चाई दूसरों को भी नहीं बतानी चाहिए? यहोवा ऐसी नयी-नयी बातें प्रकट करता है जो अब तक नहीं हुईं, जैसे बाबुल पर कुस्रू की जीत और यहूदियों की रिहाई। (यशायाह 48:14-16) ऐसी हैरतअंगेज़ घटनाएँ मानो बिना किसी वजह के घटने लगती हैं। कोई भी इंसान सिर्फ दुनिया के बदलते हालात को देखकर इन घटनाओं की भविष्यवाणी नहीं कर सकता था। ये मानो शून्य से पैदा हो जाती हैं। तो इन घटनाओं के पीछे किसका हाथ है? बेशक यहोवा का, क्योंकि उसी ने लगभग 200 साल पहले इनके होने की भविष्यवाणी की थी।

8. आज मसीही किन नयी-नयी बातों के पूरा होने की उम्मीद करते हैं, और उन्हें यहोवा की भविष्यवाणी के वचन पर पूरा यकीन क्यों है?

8 इतना ही नहीं यहोवा अपने ठहराए हुए वक्‍त पर अपना वचन पूरा करता है। भविष्यवाणियों के पूरा होने से न सिर्फ प्राचीन समय के यहूदियों को बल्कि आज मसीहियों को भी विश्‍वास होता है कि सिर्फ वही सच्चा परमेश्‍वर है। ‘पिछली बातें’ यानी बीते समय में पूरी हुई ढेरों भविष्यवाणियाँ यकीन दिलाती हैं कि यहोवा ने भविष्य के लिए जिन नयी-नयी बातों का वादा किया है वे भी ज़रूर पूरी होंगी, जैसे “बड़े क्लेश” का आना, उस क्लेश से “बड़ी भीड़” का बचना, “नई पृथ्वी” का आना आदि। (प्रकाशितवाक्य 7:9,14,15; 21:4,5; 2 पतरस 3:13) यहोवा पर ऐसा यकीन होने की वजह से खरे मन के लोग उसके बारे में पूरे जोश के साथ दूसरों को भी बताते हैं। वे भजनहार की तरह महसूस करते हैं, जिसने कहा था: “मैं ने बड़ी सभा में धर्म के शुभ समाचार का प्रचार किया है; देख, मैं ने अपना मुंह बन्द नहीं किया।”—भजन 40:9.

यहोवा संयम बरतता है

9. इस्राएल जाति कैसे ‘गर्भ ही से अपराधी’ रही है?

9 यहूदी, यहोवा की भविष्यवाणियों पर यकीन नहीं करते और उसकी चेतावनियों को अनसुना कर देते हैं। इसलिए यहोवा अब उनसे कहता है: “हां निश्‍चय तू ने उन्हें न तो सुना, न जाना, न इस से पहिले तेरे कान ही खुले थे। क्योंकि मैं जानता था कि तू निश्‍चय विश्‍वासघात करेगा, और गर्भ ही से तेरा नाम अपराधी पड़ा है।” (यशायाह 48:8) यहोवा जो खुशखबरी सुनाता है, उसे यहूदा ने सुनने से इनकार कर दिया है। (यशायाह 29:10) परमेश्‍वर की चुनी हुई जाति के काम ज़ाहिर करते हैं कि वह ‘गर्भ ही से अपराधी’ रही है। इसके इतिहास से पता चलता है कि जब से यह जाति बनी है तब से वह यहोवा के खिलाफ बगावत करती आयी है। ऐसा नहीं कि उसने कभी-कभार गलती की हो, बल्कि पाप और विश्‍वासघात इस जाति की आदत बन चुके हैं।—भजन 95:10; मलाकी 2:11.

10. यहोवा क्यों अपने आपको रोक लेगा?

10 क्या अब कोई उम्मीद नहीं बची? ऐसा बिलकुल नहीं है। हालाँकि यहूदा, यहोवा के खिलाफ बगावत और विश्‍वासघात करता आया है, मगर यहोवा हमेशा से सच्चा और वफादार रहा है। वह अपने महान नाम की खातिर, सिर्फ एक हद तक अपनी जलजलाहट प्रकट करेगा। वह कहता है: “अपने ही नाम के निमित्त मैं क्रोध करने में विलम्ब करता हूं, और अपनी महिमा के निमित्त अपने तईं रोक रखता हूं, ऐसा न हो कि मैं तुझे काट डालूं।” (यशायाह 48:9) यहोवा, इस्राएलियों से कितना अलग है! इस्राएल और यहूदा, दोनों राज्यों ने उससे दगा किया है। लेकिन यहोवा अपने नाम को पवित्र करने के लिए ऐसी कार्यवाही करेगा जिससे उसकी स्तुति और महिमा होगी। इसीलिए वह अपने आपको रोक लेगा और अपने चुने हुए लोगों को नहीं मिटाएगा।—योएल 2:13,14.

11. परमेश्‍वर अपने लोगों को पूरी तरह मिटने क्यों नहीं देगा?

11 बंधुआई में पड़े यहूदियों में जो सीधे मनवाले हैं, वे परमेश्‍वर की फटकार सुनकर होश में आते हैं और उसकी शिक्षाओं पर चलने का संकल्प करते हैं। उन्हें परमेश्‍वर का यह ऐलान सुनकर बड़ी हिम्मत मिलती है: “देख, मैं ने तुझे निर्मल तो किया, परन्तु, चान्दी की नाईं नहीं; मैं ने दु:ख की भट्ठी में परखकर तुझे चुन लिया है। अपने निमित्त, हां अपने ही निमित्त मैं ने यह किया है, मेरा नाम क्यों अपवित्र ठहरे? अपनी महिमा मैं दूसरे को नहीं दूंगा।” (यशायाह 48:10,11) यहोवा ने जब अपने लोगों को “दु:ख की भट्ठी” या कठिन परीक्षाओं से गुज़रने दिया, तब वे परखे और शुद्ध किए गए और उनके दिल में क्या है यह खुलकर सामने आया। सदियों पहले उनके पुरखों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जब मूसा ने उनसे कहा था: “तेरा परमेश्‍वर यहोवा उन चालीस वर्षों में तुझे सारे जंगल के मार्ग में से इसलिये ले आया है, कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी परीक्षा करके यह जान ले कि तेरे मन में क्या क्या है।” (व्यवस्थाविवरण 8:2) उस वक्‍त भी यह जाति बार-बार बगावत करती रही, मगर यहोवा ने उसे मिटा नहीं दिया और इस बार भी वह उसे पूरी तरह नहीं मिटाएगा। इस तरह, उसका नाम ऊँचा उठाया जाएगा और उसकी महिमा की जाएगी। अगर वह बाबुलियों के हाथों अपने लोगों का सर्वनाश होने देगा, तो इसका मतलब होगा कि परमेश्‍वर अपनी वाचा पूरी नहीं कर पाया और उसके नाम पर कलंक लग जाएगा। और ऐसा लगेगा मानो इस्राएल के परमेश्‍वर के पास अपने लोगों का उद्धार करने की ताकत नहीं है।—यहेजकेल 20:9.

12. पहले विश्‍वयुद्ध के दौरान सच्चे मसीहियों को कैसे शुद्ध किया गया?

12 हमारे समय में भी, यहोवा के लोगों को शुद्ध करने की ज़रूरत पड़ी थी। बीसवीं सदी की शुरूआत में, बाइबल विद्यार्थियों का एक छोटा-सा समूह था। हालाँकि उनमें से ज़्यादातर जन परमेश्‍वर को खुश करने के लिए सच्चे दिल से उसकी सेवा करते थे, मगर कुछ की नीयत ठीक नहीं थी। वे ऊँचा पद और शोहरत हासिल करना चाहते थे। इसलिए इस समूह को शुद्ध किए जाने की ज़रूरत थी। तभी जाकर वे भविष्यवाणी के मुताबिक अंत के समय में पूरी दुनिया में सुसमाचार सुनाने में अगुवाई कर पाते। (मत्ती 24:14) भविष्यवक्‍ता मलाकी ने भी बताया कि ऐसा ही शुद्धिकरण तब किया जाएगा जब यहोवा अपने मंदिर में आएगा। (मलाकी 3:1-4) उसके शब्द 1918 में पूरे हुए। उस वक्‍त पहला विश्‍वयुद्ध ज़ोरों पर था और सच्चे मसीहियों को उस दौरान परीक्षाओं की आग से गुज़रना पड़ा। परीक्षाओं के इस दौर के आखिर में वॉच टावर संस्था के अध्यक्ष, जोसेफ एफ. रदरफर्ड और कुछ ज़िम्मेदार अफसरों को जेल की सज़ा हो गयी। उन सच्चे मसीहियों को इस तरह शुद्ध किए जाने से लाभ हुआ। पहले विश्‍वयुद्ध के बाद, उनका यह इरादा और भी मज़बूत हो गया था कि उनका महान परमेश्‍वर जिस तरह चाहेगा वे उसी तरह उसकी सेवा करेंगे।

13. पहले विश्‍वयुद्ध के बाद के सालों में जब यहोवा के लोगों को सताया गया तो उन्होंने क्या रवैया अपनाया?

13 विश्‍वयुद्ध के बाद से, यहोवा के साक्षी अकसर भयानक-से-भयानक ज़ुल्मों के शिकार हुए हैं। मगर फिर भी उन्होंने अपने सिरजनहार के वादों पर कभी संदेह नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने प्रेरित पतरस के ये शब्द हमेशा याद रखे जो उसने अपने दिनों में सताए जा रहे मसीहियों से कहे थे: “[तुम] नाना प्रकार की परीक्षाओं के कारण उदास हो। और यह इसलिये है कि तुम्हारा परखा हुआ विश्‍वास, . . . यीशु मसीह के प्रगट होने पर प्रशंसा, और महिमा, और आदर का कारण ठहरे।” (1 पतरस 1:6,7) सच्चे मसीहियों पर चाहे जितने भी अत्याचार क्यों न किए जाएँ, मगर फिर भी उनकी खराई तोड़ी नहीं जा सकती। इसके बजाय, परीक्षाओं की आग यही दिखाती है कि वे शुद्ध मन से परमेश्‍वर की सेवा करते हैं। यह उनके विश्‍वास को परखकर मज़बूत करती है और ज़ाहिर करती है कि परमेश्‍वर के लिए उनकी भक्‍ति और उनका प्रेम कितना गहरा है।—नीतिवचन 17:3.

“मैं ही आदि और मैं ही अन्त हूं”

14. (क) किस अर्थ में यहोवा “आदि” और “अन्त” है? (ख) यहोवा ने अपने “हाथ” से कौन-से शक्‍तिशाली काम किए?

14 अब यहोवा अपने चुने हुए लोगों से प्यार-भरी गुज़ारिश करता है: “हे याकूब, हे मेरे बुलाए हुए इस्राएल, मेरी ओर कान लगाकर सुन! मैं वही हूं, मैं ही आदि और मैं ही अन्त हूं। निश्‍चय मेरे ही हाथ ने पृथ्वी की नेव डाली, और मेरे ही दहिने हाथ ने आकाश फैलाया; जब मैं उनको बुलाता हूं, वे एक साथ उपस्थित हो जाते हैं।” (यशायाह 48:12,13) परमेश्‍वर, इंसान की तरह नहीं है। वह अनंतकाल तक रहता है और कभी नहीं बदलता। (मलाकी 3:6) प्रकाशितवाक्य की किताब में यहोवा ऐलान करता है: “मैं अलफा और ओमिगा, पहिला और पिछला, आदि और अन्त हूं।” (प्रकाशितवाक्य 22:13) यहोवा से पहले ना तो कोई सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर था और ना ही भविष्य में कोई होगा। वही परमप्रधान और अनंतकाल तक रहनेवाला परमेश्‍वर और सिरजनहार है। उसने अपना “हाथ,” यानी अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करके पृथ्वी की नींव डाली और सितारों से भरे आकाश को फैलाया। (अय्यूब 38:4; भजन 102:25) जब वह अपने हाथ की बनायी चीज़ों को बुलाता है, तो वे फौरन उसकी सेवा में हाज़िर हो जाती हैं।—भजन 147:4.

15. यहोवा ने कुस्रू से कैसे और क्यों ‘प्रेम रखा’?

15 अब यहूदियों और गैर-यहूदियों, सभी को एक ऐसा न्यौता दिया जाता है, जिस पर उन्हें गंभीरता से ध्यान देना चाहिए और जो बहुत अहमियत रखता है: “तुम सब के सब इकट्ठे होकर सुनो! उन में से किस ने कभी इन बातों का समाचार दिया? यहोवा उस से प्रेम रखता है: वह बाबुल पर अपनी इच्छा पूरी करेगा, और कसदियों पर उसका हाथ पड़ेगा। मैं ने, हां मैं ही ने कहा और उसको बुलाया है, मैं उसको ले आया हूं, और, उसका काम सुफल होगा।” (यशायाह 48:14,15) यहोवा अकेला ही सर्वशक्‍तिमान है और आगे क्या होगा, वही इसकी ठीक-ठीक भविष्यवाणी कर सकता है। “उन में” यानी बेजान मूर्तियों में से कोई भी ऐसी भविष्यवाणी नहीं कर सकती। इन मूर्तियों ने नहीं, बल्कि यहोवा ने “उस से” यानी कुस्रू से ‘प्रेम रखा है।’ प्रेम रखने का मतलब है कि यहोवा ने उसे एक खास मकसद के लिए चुना है। (यशायाह 41:2; 44:28; 45:1,13; 46:11) यहोवा, पहले से जानता है कि कुस्रू दुनिया के परदे पर कैसे उभर आएगा और उसी ने कुस्रू को इसलिए चुना कि वह बाबुल पर जीत हासिल करे।

16, 17. (क) यह क्यों कहा जा सकता है कि परमेश्‍वर ने गुप्त में भविष्यवाणियाँ नहीं कीं? (ख) आज यहोवा अपने उद्देश्‍यों का कैसे खुलेआम ऐलान कराता है?

16 यहोवा अपने न्यौते में आगे कहता है: “मेरे निकट आकर इस बात को सुनो: आदि से लेकर अब तक मैं ने कोई भी बात गुप्त में नहीं कही; जब से वह हुआ तब से मैं वहां हूं।” (यशायाह 48:16क) यहोवा ने अपनी भविष्यवाणियाँ गुप्त में नहीं कीं, ना ही इनके बारे में सिर्फ गिने-चुने खास लोगों को बताया। यहोवा के भविष्यवक्‍ता, लोगों को उसका संदेश साफ-साफ सुनाते थे। (यशायाह 61:1) वे परमेश्‍वर के मकसद का खुलेआम ऐलान करते थे। मिसाल के लिए, कुस्रू से जुड़ी घटनाओं के बारे में परमेश्‍वर पहले से जानता था, वे उसके लिए नयी बातें नहीं थीं। इन घटनाओं के बारे में यहोवा ने करीब 200 साल पहले यशायाह के ज़रिए खुलेआम बता दिया था।

17 आज भी, यहोवा अपने उद्देश्‍यों को गुप्त नहीं रखता। उसके लाखों लोग, दुनिया के सैकड़ों देशों और द्वीपों में जाकर आनेवाले अंत की चेतावनी देते हैं और परमेश्‍वर के राज्य में मिलनेवाली आशीषों की खुशखबरी सुनाते हैं। वे इस संदेश का ऐलान करने के लिए घर-घर, सड़कों पर और जहाँ कहीं मुमकिन हो वहाँ जाते हैं। इससे पता चलता है कि वाकई, यहोवा ऐसा परमेश्‍वर है जो लोगों को अपने उद्देश्‍य बताता है।

‘मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुन!’

18. अपने लोगों के लिए यहोवा का क्या अरमान है?

18 यहोवा की आत्मा से हिम्मत पाकर, यशायाह ऐलान करता है: “अब प्रभु यहोवा ने और उसकी आत्मा ने मुझे भेज दिया है [“अपने आत्मा के साथ भेजा है,” नयी हिन्दी बाइबिल]। यहोवा जो तेरा छुड़ानेवाला और इस्राएल का पवित्र है, वह यों कहता है, मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं।” (यशायाह 48:16ख,17) इन शब्दों में यहोवा का जो प्यार झलकता है उससे इस्राएल जाति को तसल्ली मिलनी चाहिए कि परमेश्‍वर उन्हें ज़रूर बाबुल से छुटकारा दिलाएगा। वही उनका छुड़ानेवाला है। (यशायाह 54:5) यहोवा का बस यही अरमान है कि इस्राएली, उसके साथ अपना टूटा हुआ रिश्‍ता दोबारा जोड़ लें और उसकी आज्ञाओं पर ध्यान दें। सच्ची उपासना का आधार है, परमेश्‍वर की आज्ञाओं का पालन करना। इस्राएलियों को जब तक सिखाया न जाए कि उन्हें ‘किस मार्ग से जाना है,’ तब तक वे सही मार्ग पर नहीं चल सकते।

19. यहोवा प्यार से क्या गुज़ारिश करता है?

19 यहोवा चाहता है कि उसके लोग, मुसीबतें झेलने के बजाय खुशी से ज़िंदगी जीएँ। और अपनी इस ख्वाहिश को वह इन खूबसूरत शब्दों में बयान करता है: “भला होता कि तू ने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता! तब तेरी शान्ति नदी के समान और तेरा धर्म [“तेरी धार्मिकता,” NHT] समुद्र की लहरों के नाईं होता।” (यशायाह 48:18) ज़रा सोचिए, सर्वशक्‍तिमान सिरजनहार खुद कितने प्यार से गुज़ारिश कर रहा है! (व्यवस्थाविवरण 5:29; भजन 81:13) अगर इस्राएली चाहें तो बंधुआई में जाने के बजाय इतनी शांति का आनंद उठा सकते हैं जो नदी के बहते पानी की तरह कभी खत्म नहीं होगी। (भजन 119:165) तब उनके धार्मिकता के काम भी समुद्र की लहरों के समान अनगिनत होंगे। (आमोस 5:24) यहोवा सचमुच इस्राएलियों की भलाई चाहता है, इसलिए वह उन्हें बड़े प्यार से सही राह दिखाता है और उस पर चलने की उनसे गुज़ारिश करता है। काश, वे उसकी बात सुनते!

20. (क) इस्राएलियों के विद्रोह के बावजूद परमेश्‍वर उनके लिए क्या चाहता है? (ख) यहोवा अपने लोगों के साथ जैसे पेश आया, उससे हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं? (पेज 133 पर दिया गया बक्स देखिए।)

20 अगर इस्राएली, पश्‍चाताप दिखाएँ तो उन्हें क्या आशीषें मिलेंगी? यहोवा कहता है: “तेरा वंश बालू के किनकों के तुल्य होता, और तेरी निज सन्तान उसके कणों के समान होती; उनका नाम मेरे सम्मुख से न कभी काटा और न मिटाया जाता।” (यशायाह 48:19) यहोवा, इस्राएलियों को अपना यह वादा याद दिलाता है कि इब्राहीम का वंश बहुत बढ़ेगा और “आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान अनगिनित” होगा। (उत्पत्ति 22:17; 32:12) लेकिन, इब्राहीम के ये वंशज विद्रोही बन गए हैं, इसलिए उन्हें इब्राहीम से वादा की गयी आशीष पाने का हक नहीं है। उन्होंने इतने बुरे-बुरे काम किए हैं कि यहोवा की दी हुई व्यवस्था के मुताबिक देखा जाए तो यह जाति इसी लायक है कि पूरी तरह मिटा दी जाए। (व्यवस्थाविवरण 28:45) मगर फिर भी, यहोवा अपने लोगों का सर्वनाश नहीं करना चाहता, ना ही वह उन्हें पूरी तरह त्याग देना चाहता है।

21. अगर हम यहोवा से सिखलाए जाने को तैयार होंगे तो आज हमें क्या आशीषें मिल सकती हैं?

21 यशायाह की इन ज़बरदस्त आयतों में दिए गए उसूल आज यहोवा के उपासकों पर भी लागू होते हैं। जीवन यहोवा ही से मिलता है, इसलिए वही हमें बता सकता है कि जीने का सबसे बेहतरीन तरीका क्या है। (भजन 36:9) उसने जो नियम दिए हैं, वे हमारे लाभ के लिए हैं ना कि हम पर पाबंदियाँ डालकर हमारी खुशियाँ छीनने के लिए। सच्चे मसीही, यहोवा से सीखने के लिए तैयार रहते हैं। (मीका 4:2) उसकी आज्ञाएँ मानने से हम अपनी आध्यात्मिकता और उसके साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत रख सकते हैं और शैतान के प्रभाव में आकर भ्रष्ट होने से बच सकते हैं। जब हम परमेश्‍वर के नियमों में छिपे सिद्धांतों की अहमियत समझते हैं तब हमें एहसास होता है कि यहोवा सचमुच हमारे भले के लिए हमें सिखाता है। हम महसूस करते हैं कि “उस की आज्ञाएं कठिन नहीं” हैं। और जब हम उसकी आज्ञाओं पर चलेंगे तो हम काटे या मिटाए नहीं जाएँगे।—1 यूहन्‍ना 2:17; 5:3.

“बाबुल में से निकल जाओ”!

22. वफादार यहूदियों को क्या करने के लिए उकसाया जाता है, और उन्हें किस बात का यकीन दिलाया जाता है?

22 जब बाबुल गिरेगा तब क्या यहूदियों में खरे मनवाले लोग होंगे? क्या वे परमेश्‍वर के छुटकारे का लाभ उठाकर अपने देश लौटेंगे और फिर से शुद्ध उपासना शुरू करेंगे? बेशक। यहोवा को भरोसा है कि ऐसा ज़रूर होगा। यह उसके अगले शब्दों से पता चलता है। “बाबुल में से निकल जाओ, कसदियों के बीच में से भाग जाओ; जयजयकार करते हुए इस बात को प्रचार करके सुनाओ, पृथ्वी की छोर तक इसकी चर्चा फैलाओ; कहते जाओ कि यहोवा ने अपने दास याकूब को छुड़ा लिया है! जब वह उन्हें निर्जल देशों में ले गया, तब वे प्यासे न हुए; उस ने उनके लिये चट्टान में से पानी निकाला; उस ने चट्टान को चीरा और जल बह निकला।” (यशायाह 48:20,21) इस भविष्यवाणी में यहोवा के लोगों को बाबुल से फौरन निकल जाने के लिए उकसाया जाता है। (यिर्मयाह 50:8) उनके इस छुटकारे की खबर पृथ्वी के कोने-कोने तक पहुँचनी चाहिए। (यिर्मयाह 31:10) यहोवा के लोग मिस्र से निकलने के बाद, जब वीराने से होकर चल रहे थे तब उसने उनकी ज़रूरतों का खयाल रखा था। उसी तरह, जब उसके लोग बाबुल से निकलकर अपने देश के लिए रवाना होंगे, तब भी सफर के दौरान वह उनकी देखभाल करेगा।—व्यवस्थाविवरण 8:15,16.

23. परमेश्‍वर से मिलनेवाली शांति कौन नहीं पा सकते?

23 यहोवा के उद्धार के कामों से जुड़ा एक और ज़रूरी उसूल है जिसे यहूदियों को याद रखना चाहिए। वह यह है कि जिनका झुकाव धार्मिकता की ओर है वे चाहे अपने पापों के कारण दुःख उठाएँ, तो भी नाश नहीं किए जाएँगे। मगर अधर्मियों के साथ ऐसा नहीं होता। “दुष्टों के लिये कुछ शान्ति नहीं, यहोवा का यही वचन है।” (यशायाह 48:22) जो लोग पाप करते रहते हैं और पश्‍चाताप नहीं दिखाते, उन्हें वह शांति नहीं मिलेगी, जो परमेश्‍वर सिर्फ उससे प्रेम करनेवालों को देता है। उद्धार के कामों से ऐसे लोगों को लाभ नहीं होगा, जो ढिठाई से पाप करते जाते हैं या जिनमें विश्‍वास नहीं है। इन कामों से सिर्फ विश्‍वास रखनेवालों को लाभ होगा। (तीतुस 1:15,16; प्रकाशितवाक्य 22:14,15) परमेश्‍वर से मिलनेवाली शांति, दुष्ट लोग नहीं पा सकते।

24. हमारे दिनों में परमेश्‍वर के लोग क्यों मग्न हुए?

24 सामान्य युग पूर्व 537 में, जब वफादार इस्राएलियों को बाबुल से निकलने का मौका मिला तो वे बहुत खुश हुए। उसी तरह, जब 1919 में परमेश्‍वर के लोग आध्यात्मिक अर्थ में बाबुल की बंधुआई से आज़ाद हुए तो वे भी बहुत मग्न हुए। (प्रकाशितवाक्य 11:11,12) अब उनके दिल में आशा का सवेरा जाग उठा और उन्होंने मौके का फायदा उठाकर परमेश्‍वर की सेवा में अपने काम को और बढ़ाया। बेशक, मसीहियों के उस छोटे-से दल को नए-नए तरीकों से प्रचार करने के लिए हिम्मत की ज़रूरत थी, क्योंकि सारी दुनिया उनके खिलाफ थी। मगर यहोवा की मदद से, वे सुसमाचार सुनाने के काम में लग गए। और इतिहास गवाह है कि यहोवा ने उन्हें आशीष दी।

25. परमेश्‍वर के धर्मी आदेशों पर अच्छी तरह ध्यान देना क्यों ज़रूरी है?

25 यशायाह की भविष्यवाणी का यह भाग इस बात पर ज़ोर देता है कि यहोवा हमारे भले के लिए ही हमें सिखाता है। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम यहोवा के धर्मी आदेशों पर अच्छी तरह ध्यान दें। (प्रकाशितवाक्य 15:2-4) अगर हम खुद को हमेशा याद दिलाते रहें कि परमेश्‍वर की बुद्धि अगम है और वह हमसे बेहद प्यार करता है, तो यहोवा की नज़रों में जो सही है वह करना हमारे लिए आसान हो जाएगा। उसकी सारी आज्ञाएँ हमारे लाभ के लिए हैं।—यशायाह 48:17,18.

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 133 पर बक्स/तसवीरें]

सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर खुद को रोकता है

धर्मत्यागी इस्राएलियों से यहोवा ने कहा: “मैं कोप करने में विलम्ब करता हूं . . . अपने आपको रोक रखता हूं।” (यशायाह 48:9, NHT) ऐसी आयतों से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि परमेश्‍वर अपनी शक्‍ति का कभी-भी गलत इस्तेमाल नहीं करता। इस मामले में उसने सर्वश्रेष्ठ मिसाल कायम की है। यह सच है कि परमेश्‍वर से बढ़कर शक्‍ति किसी और के पास नहीं है। इसीलिए हम उसे अपार शक्‍ति का मालिक और सर्वशक्‍तिशाली कहते हैं। वह सही मायनों में “सर्वशक्‍तिमान्‌” कहलाने का हक रखता है। (उत्पत्ति 17:1) उसके पास न सिर्फ असीम सामर्थ है बल्कि पूरा अधिकार भी है। वही इस विश्‍व का महाराजाधिराज और प्रभु है, जिस विश्‍व को उसने अपने हाथों से रचा है। इसलिए कोई उसका हाथ रोकने या उससे यह पूछने की जुर्रत नहीं कर सकता: “तू ने यह क्या किया है?”—दानिय्येल 4:35.

जब परमेश्‍वर का अपने दुश्‍मनों के खिलाफ शक्‍ति दिखाना ज़रूरी हो जाता है, तब भी वह क्रोध करने में विलम्ब करता है। (नहूम 1:3) यहोवा अपने ‘क्रोध को रोक’ सकता है और यह बिलकुल सही कहा गया है कि वह “जल्दी क्रोधित नहीं होता” क्योंकि उसका सबसे खास गुण प्रेम है, क्रोध नहीं। और जब कभी वह क्रोध करता है, तो धर्मी और खरा ठहरता है। वह हमेशा अपने क्रोध को पूरे नियंत्रण में रखता है।—निर्गमन 34:6, ईज़ी-टू-रीड वर्शन; 1 यूहन्‍ना 4:8.

यहोवा, इंसानों के साथ ऐसे क्यों पेश आता है? क्योंकि वह अपनी अपार शक्‍ति दिखाते वक्‍त अपने बाकी तीन खास गुणों यानी बुद्धि, न्याय और प्रेम के साथ इसका अचूक संतुलन बनाए रखता है। वह अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करते वक्‍त हमेशा अपने बाकी तीन गुण भी पूरी तरह ज़ाहिर करता है।

[पेज 122 पर तसवीर]

बहाली के बारे में यशायाह का संदेश सुनकर वफादार यहूदी बंधुओं को उम्मीद की किरण नज़र आयी

[पेज 124 पर तसवीरें]

यहोवा के कामों का श्रेय मूर्तियों को देना, यहूदियों की आदत थी

1. इशतर 2. बाबुल के शोभायात्रा मार्ग पर चमकदार ईंटों से बनाया गया चित्र 3. मरदुक का प्रतीक, दैत्यनाग

[पेज 127 पर तसवीर]

“दु:ख की भट्ठी” में डाले जाने पर ज़ाहिर हो सकता है कि हम यहोवा की सेवा शुद्ध मन से करते हैं या नहीं

[पेज 128 पर तसवीरें]

सच्चे मसीहियों ने भयानक-से-भयानक ज़ुल्मों का सामना किया है