सच्चा परमेश्वर छुटकारे की भविष्यवाणी करता है
पाँचवाँ अध्याय
सच्चा परमेश्वर छुटकारे की भविष्यवाणी करता है
1, 2. (क) यहोवा कौन-से सवाल पूछता है? (ख) यहोवा यह कैसे साबित कर दिखाएगा कि सिर्फ वही सच्चा परमेश्वर है?
‘सच्चा परमेश्वर कौन है?’ यह सवाल सदियों से उठता आया है। और कितने ताज्जुब की बात है कि यशायाह की किताब में खुद यहोवा भी यह सवाल पूछता है! वह इंसानों को इन सवालों पर गौर करने का बुलावा देता है: ‘क्या सिर्फ यहोवा ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है? या कोई और देवता भी है जो उसकी बराबरी करने की जुर्रत कर सके?’ इसके बाद, यहोवा एक कसौटी देता है जिससे यह परखा जा सके कि सच्चा परमेश्वर कौन है। यहोवा की दलीलों पर गौर करने से कोई भी नेकदिल इंसान एक ही नतीजे पर पहुँचेगा।
2 यशायाह के ज़माने में मूर्तिपूजा चारों तरफ फैली हुई थी। लेकिन, यशायाह की किताब के 44वें अध्याय में दिया गया सीधा और स्पष्ट वाद-विवाद दिखाता है कि मूर्तिपूजा करना कितना व्यर्थ है! फिर भी, परमेश्वर के अपने ही लोग मूर्तिपूजा के फंदे में फँस गए हैं। इसलिए जैसा कि यशायाह के पिछले अध्यायों में हमने देखा, परमेश्वर अब इस्राएलियों को कड़ा अनुशासन देनेवाला है। वह उन्हें बाबुलियों के हाथ में कर देगा कि वे उन्हें बंदी बनाकर ले जाएँ। मगर, यहोवा इस जाति से प्यार करता है, इसलिए उन्हें तसल्ली देता है कि अपने ठहराए हुए समय पर वह उन्हें वहाँ से छुड़ाएगा। बाबुल की बंधुआई से उनके छुड़ाए जाने और सच्ची उपासना के फिर से शुरू किए जाने के बारे में जब यहोवा की भविष्यवाणियाँ पूरी होंगी, तब शक की कोई गुंजाइश नहीं रह जाएगी कि केवल यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है। उस वक्त उन सभी लोगों को मुँह की खानी पड़ेगी जो अन्यजातियों के बेजान देवताओं की पूजा कर रहे थे।
3. यशायाह की भविष्यवाणी के शब्दों से आज मसीहियों को क्या फायदा होता है?
3 यशायाह की किताब के इस भाग में दी गयी भविष्यवाणियाँ प्राचीनकाल में जिस तरह पूरी हुईं, उनसे आज मसीहियों का विश्वास मज़बूत होता है। इतना ही नहीं, यशायाह के ये शब्द आज भी पूरे हो रहे हैं और भविष्य में भी होंगे। प्राचीनकाल की तरह हमारे समय में भी परमेश्वर अपने लोगों को छुटकारा देगा और पहले की तरह वह एक छुड़ानेवाले को इस्तेमाल करेगा, मगर यह छुटकारा प्राचीनकाल से कहीं बड़े पैमाने पर होगा।
जो यहोवा के हैं, उनके लिए आशा
4. यहोवा किस तरह इस्राएल का हौसला मज़बूत करता है?
4 अध्याय 44 में सबसे पहले यहोवा, इस्राएल का हौसला मज़बूत करते हुए उसे याद दिलाता है कि वह उसकी चुनी हुई जाति है। यहोवा ने उसे अपना दास होने के लिए आस-पड़ोस के देशों से अलग रखा है। भविष्यवाणी कहती है: “अब हे मेरे दास याकूब, हे मेरे चुने हुए इस्राएल, सुन ले! तेरा कर्त्ता यहोवा, जो तुझे गर्भ ही से बनाता आया और तेरी सहायता करेगा, यों कहता है, हे मेरे दास याकूब, हे मेरे चुने हुए यशूरून, मत डर!” (यशायाह 44:1,2) यहोवा, इस्राएल की देखभाल उस वक्त से करता आया है, जब वह मानो अपनी माँ के गर्भ में ही था, यानी जब इस्राएली, मिस्र से बाहर निकलने के बाद एक जाति बने ही थे। वह इस पूरी जाति को “यशूरून” कहकर बुलाता है जिसका मतलब है “सीधा” व्यक्ति। इस नाम से यहोवा का प्यार और उसकी कोमलता झलकती है। यह नाम इस्राएलियों को याद दिलाता है कि उन्हें सीधे मार्ग पर चलते रहना है, जिससे वे कई बार भटक चुके थे।
5, 6. यहोवा, इस्राएल को तरो-ताज़ा करने के लिए कौन-से इंतज़ाम करता है, और इसका नतीजा क्या होता है?
यशायाह 44:3,4) गर्म, सूखे प्रदेश में भी अगर पेड़ों को जल की धारा से बराबर पानी मिलता रहे, तो उनके झुंड-के-झुंड फल-फूल सकते हैं। जब यहोवा, इस्राएल को सच्चाई का जीवनदायी जल देगा और उन पर अपनी पवित्र आत्मा उंडेलेगा, तो इस्राएल नहरों के किनारे लगे पेड़ों की तरह मज़बूत होगा और खूब फलेगा-फूलेगा। (भजन 1:3; यिर्मयाह 17:7,8) यहोवा अपने लोगों को शक्ति देगा ताकि वे साक्षी देते रहें कि वही सच्चा परमेश्वर है।
5 इसके बाद यहोवा के शब्द, कितने मनभावने और ताज़गी देनेवाले हैं! वह कहता है: “मैं प्यासी भूमि पर जल और सूखी भूमि पर धाराएं बहाऊंगा; मैं तेरे वंश पर अपनी आत्मा और तेरी सन्तान पर अपनी आशीष उण्डेलूंगा। वे उन मजनुओं की नाईं बढ़ेंगे जो धाराओं के पास घास के बीच में होते हैं।” (6 यहोवा की पवित्र आत्मा दिए जाने का एक नतीजा यह होगा कि कुछ लोग, यहोवा और इस्राएल के बीच के खास रिश्ते की दोबारा कदर करने लगेंगे। इसलिए, लिखा है: “कोई कहेगा, मैं यहोवा का हूं, कोई अपना नाम याकूब रखेगा, कोई अपने हाथ पर लिखेगा, मैं यहोवा का हूं, और अपना कुलनाम इस्राएली बताएगा।” (यशायाह 44:5) जी हाँ, उस वक्त यहोवा का नाम धारण करना बड़े सम्मान की बात मानी जाएगी क्योंकि तब तक यह साबित हो चुका होगा कि वही सच्चा परमेश्वर है।
देवताओं को चुनौती
7, 8. यहोवा, जातियों के देवताओं को क्या चुनौती देता है?
7 मूसा की व्यवस्था में नियम था कि अगर एक इस्राएली किसी का गुलाम बन जाए, तो उसका सगा भाई-बंधु या नज़दीकी रिश्तेदार उसे छुड़ा सकता था। (लैव्यव्यवस्था 25:47-54; रूत 2:20) अब यहोवा खुद को इस्राएल का छुड़ानेवाला कहता है। वही इस जाति को छुटकारा दिलाएगा जिससे बाबुल और उसके सभी देवताओं का सिर शर्म से नीचा हो जाएगा। (यिर्मयाह 50:34) वह झूठे देवताओं और उनके भक्तों को चुनौती देते हुए कहता है: “यहोवा जो इस्राएल का राजा तथा उसका छुड़ानेवाला है, हां, सेनाओं का यहोवा यों कहता है: ‘मैं ही प्रथम और मैं ही अन्तिम हूं, मुझे छोड़ अन्य कोई परमेश्वर नहीं। मेरे समान कौन है? वह इसे बताए और प्रकट करे, हां, मैंने प्राचीनकाल की जाति को जब से ठहराया तब से लेकर आज तक उसका क्रमानुसार वर्णन वह मुझ से करे। आनेवाली बातें प्रकट की जाएं और उन घटनाओं का वर्णन किया जाए जो होनेवाली हैं। थरथराओ मत, न ही भयभीत होओ। क्या मैंने प्राचीनकाल से ही ये बातें तुम्हें नहीं सुनाईं और तुम पर प्रकट नहीं कीं? तुम मेरे साक्षी हो। क्या मुझे छोड़ कोई और परमेश्वर या कोई और चट्टान है? मैं तो किसी और को नहीं जानता।”—यशायाह 44:6-8, NHT.
8 यहोवा, देवताओं को चुनौती देता है कि अपना पक्ष पेश करें। क्या वे आनेवाली बातों को जो अस्तित्त्व में भी नहीं हैं, इतनी बारीकी से बता सकते हैं मानो वे अभी घट रही हों? हरगिज़ नहीं। सिर्फ यहोवा ही ऐसा कर सकता है, जो ‘प्रथम और अन्तिम’ है, जो सभी झूठे देवताओं के रचे जाने से पहले था और उनके मिट जाने के बाद भी सदा तक रहेगा। इस सच्चाई की साक्षी देने से यहोवा के लोगों को डरने की कोई ज़रूरत नहीं क्योंकि यहोवा उनके साथ है। वह एक विशाल चट्टान की तरह दृढ़ और अटल है!—व्यवस्थाविवरण 32:4; 2 शमूएल 22:31,32.
मूर्तिपूजा करना कितना व्यर्थ है
9. क्या इस्राएलियों के लिए जीवित प्राणियों की कोई भी आकृति बनाना गलत था? समझाइए।
9 झूठे देवताओं को दी गयी यहोवा की चुनौती, हमें दस आज्ञाओं में से दूसरी आज्ञा की याद दिलाती है। उस आज्ञा में यह साफ बताया गया था: “तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, वा पृथ्वी पर, वा पृथ्वी के जल में है। तू उनको दण्डवत् न करना, और न उनकी उपासना करना।” (निर्गमन 20:4,5) मगर हाँ, इस नियम का मतलब यह नहीं था कि इस्राएली, सजावट के लिए किसी भी वस्तु की आकृति नहीं बना सकते थे। यहोवा ने खुद हिदायत दी थी कि उसके निवासस्थान में पौधों और करूबों की आकृतियाँ बनायी जाएँ। (निर्गमन 25:18, 33; 26:31) लेकिन, इन आकृतियों की पूजा या उपासना नहीं करनी थी। किसी भी व्यक्ति को उनसे प्रार्थना नहीं करनी थी और उनको बलिदान नहीं चढ़ाना था। परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी इस आज्ञा में, उपासना के लिए किसी भी तरह की मूर्ति बनाने की मनाही थी। मूर्तियों को भक्ति दिखाना या श्रद्धा की भावना से उनके आगे दंडवत् करना मूर्तिपूजा के बराबर है।—1 यूहन्ना 5:21.
10, 11. यहोवा क्यों कहता है कि मूर्तियाँ लज्जा का कारण होंगी?
10 इसके बाद यशायाह बताता है कि बेजान मूर्तियाँ कितनी व्यर्थ हैं और उनके बनानेवालों को कैसे लज्जित होना पड़ेगा: “जो मूरत खोदकर बनाते हैं, वे सब के सब व्यर्थ हैं और जिन वस्तुओं में वे आनन्द ढूंढ़ते उन से कुछ लाभ न होगा; उनके साक्षी, न तो आप कुछ देखते और न कुछ जानते हैं, इसलिये उनको लज्जित होना पड़ेगा। किस ने देवता वा निष्फल मूरत ढाली है? देख, उसके सब संगियों को तो लज्जित होना पड़ेगा, कारीगर तो मनुष्य ही हैं; वे सब के सब इकट्ठे होकर खड़े हों; वे डर जाएंगे; वे सब के सब लज्जित होंगे।”—यशायाह 44:9-11.
11 परमेश्वर ऐसा क्यों कहता है कि मूर्तियाँ लज्जा का कारण होंगी? सबसे पहला कारण तो यह है कि किसी वस्तु से सर्वशक्तिमान का सच्चा स्वरूप दिखाना नामुमकिन है। (प्रेरितों 17:29) इसके अलावा, सिरजनहार को छोड़, उसकी सृजी गयी किसी वस्तु की उपासना करना, दरअसल उसके ईश्वरत्व की बेइज़्ज़ती करना है। और फिर क्या इससे ‘परमेश्वर के स्वरूप’ में बनाए गए इंसान का भी अपमान नहीं होता कि वह अपने से कम दर्जे के प्राणियों की उपासना करे?—उत्पत्ति 1:27; रोमियों 1:23,25.
12, 13. इंसान ऐसी कोई मूर्ति क्यों नहीं बना सकता जो उपासना किए जाने के लायक हो?
12 अगर एक वस्तु को पूजा करने के उद्देश्य से गढ़ा जाए, तो क्या वह अपने आप पवित्र हो जाएगी? यशायाह हमें यह बात याद दिलाता है कि मूर्ति बस एक इंसान के हाथ की कारीगरी है। मूर्तियाँ बनानेवाला भी उन्हीं यशायाह 44:12,13.
औज़ारों का और वैसे ही तरीकों का इस्तेमाल करता है जिनका एक आम शिल्पकार इस्तेमाल करता है। “लोहार एक बसूला अंगारों में बनाता और हथौड़ों से गढ़कर तैयार करता है, अपने भुजबल से वह उसको बनाता है; फिर वह भूखा हो जाता है और उसका बल घटता है, वह पानी नहीं पीता और थक जाता है। बढ़ई सूत लगाकर टांकी से रेखा करता है और रन्दनी से काम करता और परकार से रेखा खींचता है, वह उसका आकार और मनुष्य की सी सुन्दरता बनाता है ताकि लोग उसे घर में रखें।”—13 सच्चे परमेश्वर ने इस पृथ्वी के सभी जीवित प्राणियों को बनाया है, जिनमें इंसान भी एक है। हर जीवित प्राणी यहोवा के ईश्वरत्व का सबूत है, मगर यहोवा ने जो कुछ सृजा उनमें से कोई भी चीज़ उसकी बराबरी नहीं कर सकती। तो क्या इंसान यहोवा से भी बढ़कर कमाल कर सकता है कि वह ऐसी कोई चीज़ बनाए जो खुद उससे भी ऊँची या श्रेष्ठ हो? इतनी श्रेष्ठ कि वह उसकी भक्ति और पूजा के लायक हो? एक मूर्ति बनानेवाला थकान महसूस करता है, उसे भूख-प्यास भी लगती है। यह इंसान के शरीर की कमज़ोरी ज़रूर है, फिर भी इससे कम-से-कम इतना तो पता लगता है कि एक इंसान में जान है। लेकिन जो मूर्तियाँ वह बनाता है, उनके बारे में क्या? हो सकता है, वे दिखने में इंसान जैसी हों और शायद खूबसूरत भी हों। मगर हैं तो बेजान ही। वे हरगिज़ ईश्वर नहीं हो सकतीं। और फिर, आज तक कोई भी गढ़ी हुई मूरत, ऐसी नहीं जो “आकाश से गिरी” हो मानो नश्वर इंसान की कारीगरी न होकर स्वर्ग से उतरी हो।—प्रेरितों 19:35, NHT.
14. मूर्तियाँ बनानेवाले कैसे यहोवा पर ही पूरी तरह निर्भर हैं?
14 अब यशायाह दिखाता है कि मूर्तियाँ बनानेवाले भी पूरी तरह उन्हीं प्राकृतिक नियमों और वस्तुओं पर निर्भर करते हैं जिन्हें यहोवा ने सृजा है: “वह देवदार को काटता वा वन के वृक्षों में से जाति जाति के बांजवृक्ष चुनकर सेवता है, वह एक तूस का वृक्ष लगाता है जो वर्षा का जल पाकर बढ़ता है। तब वह मनुष्य के ईंधन के काम में आता है; वह उस में से कुछ सुलगाकर यशायाह 44:14-17.
तापता है, वह उसको जलाकर रोटी बनाता है; उसी से वह देवता भी बनाकर उसको दण्डवत् करता है; वह मूरत खुदवाकर उसके साम्हने प्रणाम करता है। उसका एक भाग तो वह आग में जलाता और दूसरे भाग से मांस पकाकर खाता है, वह मांस भूनकर तृप्त होता; फिर तापकर कहता है, अहा, मैं गर्म हो गया, मैं ने आग देखी है! और उसके बचे हुए भाग को लेकर वह एक देवता अर्थात् एक मूरत खोदकर बनाता है; तब वह उसके साम्हने प्रणाम और दण्डवत् करता और उस से प्रार्थना करके कहता है, मुझे बचा ले, क्योंकि तू मेरा देवता है!”—15. मूर्तियाँ बनानेवाला किस तरह दिखाता है कि उसमें बिलकुल भी समझ नहीं है?
15 क्या ईंधन की लकड़ी का बचा-खुचा भाग, किसी को छुटकारा दिला सकता है? हरगिज़ नहीं। सिर्फ सच्चा परमेश्वर ही छुटकारा दिला सकता है। मगर लोग बेजान चीज़ों को देवता मानकर उनकी पूजा क्यों करते हैं? यशायाह बताता है कि इस समस्या की असली जड़ दरअसल एक इंसान का हृदय है। “वे न तो जानते हैं और न ही कुछ समझते हैं, क्योंकि परमेश्वर ने उनकी आंखें बन्द कर दी हैं जिससे कि वे देख न सकें, और उनके मन भी ऐसे कर दिए हैं कि वे समझ न सकें। कोई इस पर ध्यान नहीं देता, न ही उनका ज्ञान और समझ इतनी है कि वे कह सकें, ‘उसका एक भाग तो मैंने जला दिया और उसके अंगारों पर रोटी पकाई है। मैंने मांस भूनकर खाया है। तब क्या मैं उसके आधे बचे भाग से घिनौनी वस्तु बनाऊं? क्या मैं लकड़ी के टुकड़े को दण्डवत् करूं?’ वह राख से पेट भरता है। छली हृदय ने उसे भटका दिया है। वह न तो अपने आप को बचा सकता है और न ही यह कह सकता है, ‘मेरे दाहिने हाथ में जो है क्या वह मिथ्या नहीं?’” (यशायाह 44:18-20, NHT) जी हाँ, यह मानना कि मूर्तिपूजा करने से आध्यात्मिक तौर पर कुछ फायदा होगा, पौष्टिक आहार के बदले राख खाने जैसा है।
16. मूर्तिपूजा की शुरूआत कैसे हुई, और एक इंसान किस वजह से मूर्तिपूजा करता है?
16 असल में, मूर्तिपूजा की शुरूआत स्वर्ग में उस वक्त हुई जब एक शक्तिशाली यशायाह 14:12-14; यहेजकेल 28:13-15,17; कुलुस्सियों 3:5) शैतान ने पहले इंसानी जोड़े के मन में भी स्वार्थी इच्छाएँ पैदा कीं। उसने हव्वा से कहा: “तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।” इससे हव्वा, परमेश्वर के बराबर होने का लालच करने लगी। लालच या लोभ की शुरूआत हृदय में ही होती है और यही बात यीशु ने कही थी। (उत्पत्ति 3:5; मरकुस 7:20-23) तो इंसान मूर्तिपूजा तभी करता है जब उसका हृदय भ्रष्ट हो जाता है। इसलिए यह कितना ज़रूरी है कि हम सभी “अपने हृदय की रक्षा” करें ताकि इसमें यहोवा को जो जगह मिलनी चाहिए, वह कोई और व्यक्ति या चीज़ न ले ले!—नीतिवचन 4:23, नयी हिन्दी बाइबिल; याकूब 1:14.
आत्मिक प्राणी, शैतान बन गया और उसने वह उपासना पाने का लोभ किया जिसका हकदार सिर्फ यहोवा है। शैतान के अंदर यह इच्छा इतनी प्रबल थी कि यह उसे परमेश्वर से दूर ले गयी। यही मूर्तिपूजा की शुरूआत थी, क्योंकि जैसा प्रेरित पौलुस ने बताया, लोभ मूर्तिपूजा के बराबर है। (यहोवा लोगों से गुज़ारिश करता है
17. इस्राएल को कौन-सी बातें अपने दिल में बिठा लेनी चाहिए?
17 इसके बाद यहोवा, इस्राएलियों से यह याद करने की गुज़ारिश करता है कि उन्हें कितना बड़ा सम्मान और कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है। आखिर वे उसके साक्षी जो ठहरे! वह कहता है: “हे याकूब, हे इस्राएल, इन बातों को स्मरण कर, तू मेरा दास है, मैं ने तुझे रचा है; हे इस्राएल, तू मेरा दास है, मैं तुझ को न बिसराऊंगा। मैं ने तेरे अपराधों को काली घटा [से] और तेरे पापों को बादल [से] मिटा दिया है; मेरी ओर फिर लौट आ, क्योंकि मैं ने तुझे छुड़ा लिया है। हे आकाश, ऊंचे स्वर से गा, क्योंकि यहोवा ने यह काम किया है; हे पृथ्वी के गहिरे स्थानो, जयजयकार करो; हे पहाड़ो, हे वन, हे वन के सब वृक्षो, गला खोलकर ऊंचे स्वर से गाओ! क्योंकि यहोवा ने याकूब को छुड़ा लिया है और इस्राएल में महिमावान होगा।”—यशायाह 44:21-23.
18. (क) इस्राएल के लिए मगन होने का क्या कारण है? (ख) आज यहोवा के सेवक, दया दिखाने में उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
18 इस्राएल ने यहोवा को नहीं रचा। यहोवा दूसरे देवताओं की तरह इंसान के हाथ का बनाया हुआ नहीं है। इसके बजाय, उसने खुद इस्राएल जाति को रचा था ताकि यह उसका चुना हुआ दास हो। और अब वह अपनी जाति को छुड़ाकर एक बार फिर साबित करनेवाला है कि वही सच्चा परमेश्वर है। वह अपने लोगों के साथ प्यार से बात करता है, उन्हें यकीन दिलाता है कि अगर वे पश्चाताप करेंगे, तो वह उनके पापों को पूरी तरह से ढांप देगा, उनकी गलतियों को मानो काले घने बादलों में छिपा देगा। इस्राएल के लिए खुशियाँ मनाने का यह क्या ही बढ़िया कारण है! यहोवा की यह मिसाल, आज उसके सेवकों को दूसरों पर दया दिखाने के लिए उकसाती है। वे गलती करनेवालों की मदद करने में पहल करते हैं और हो सके तो उन्हें आध्यात्मिक तरीके से दोबारा मज़बूत करते हैं।—सच्चा परमेश्वर होने का आखिरी और ज़बरदस्त सबूत
19, 20. (क) यहोवा अब कौन-सी आखिरी दलील पेश करता है? (ख) यहोवा अपने लोगों की खातिर कौन-कौन-से बढ़िया काम करने की भविष्यवाणी करता है, और ये सब काम वह किसके ज़रिए करेगा?
19 यहोवा अब आखिर में एक ज़बरदस्त दलील पेश करता है। सच्चा परमेश्वर कौन है, यह साबित करने की सबसे कड़ी परीक्षा होनेवाली है। यह परीक्षा है, भविष्य के बारे में सही-सही बताने की काबिलीयत। इसका जवाब खुद यहोवा ही देने जा रहा है जो यशायाह के 44वें अध्याय की अगली पाँच आयतों में दिया है। बाइबल के एक विद्वान ने कहा कि ये आयतें “इस्राएल के परमेश्वर की श्रेष्ठता की कविता” है। सिर्फ वही अकेला सिरजनहार है, वही भविष्य का भेद प्रकट करनेवाला और इस्राएल का छुड़ानेवाला है। इस भाग में एक हैरतअंगेज़ घटनाक्रम के आखिर में उस आदमी के नाम का ऐलान है जो इस्राएल जाति को बाबुल से रिहा कराएगा।
20 “यहोवा, तेरा उद्धारकर्त्ता, जो तुझे गर्भ ही से बनाता आया है, यों कहता है, मैं यहोवा ही सब का बनानेवाला हूं जिस ने अकेले ही आकाश को ताना यशायाह 44:24-28.
और पृथ्वी को अपनी ही शक्ति से फैलाया है। मैं झूठे लोगों के कहे हुए चिन्हों को व्यर्थ कर देता और भावी कहनेवालों को बावला कर देता हूं; जो बुद्धिमानों को पीछे हटा देता और उनकी पण्डिताई को मूर्खता बनाता हूं; और अपने दास के वचन को पूरा करता और अपने दूतों की युक्ति को सुफल करता हूं; जो यरूशलेम के विषय कहता है, वह फिर बसाई जाएगी और यहूदा के नगरों के विषय, वे फिर बनाए जाएंगे और मैं उनके खण्डहरों को सुधारूंगा; जो गहिरे जल से कहता है, तू सूख जा, मैं तेरी नदियों को सुखाऊंगा; जो कुस्रू के विषय में कहता है, वह मेरा ठहराया हुआ चरवाहा है और मेरी इच्छा पूरी करेगा; यरूशलेम के विषय कहता है, वह बसाई जाएगी और मन्दिर के विषय कि तेरी नेव डाली जाएगी।”—21. यहोवा के शब्द किस बात की गारंटी हैं?
21 जी हाँ, यहोवा न सिर्फ आगे होनेवाली घटनाओं की भविष्यवाणी कर सकता है बल्कि अपने मकसद को अंजाम देने की ताकत भी रखता है। यहोवा के इस ऐलान से इस्राएल को आशा मिलेगी। यह ऐलान इस बात की गारंटी है कि हालाँकि बाबुल की सेना आकर उनके देश को तबाह कर देगी, मगर फिर भी यरूशलेम और उसके आस-पास के नगर दोबारा बसाए जाएँगे और वहाँ सच्ची उपासना फिर से शुरू की जाएगी। मगर कैसे?
22. समझाइए कि फरात नदी कैसे सूख गयी।
22 जो भविष्यवक्ता परमेश्वर की ओर से नहीं हैं, वे अकसर साफ-साफ शब्दों में भविष्यवाणी नहीं करते क्योंकि उन्हें डर रहता है कि कहीं उनकी बात झूठी साबित न हो। मगर यहोवा उनसे बिलकुल अलग है। वह यशायाह की मारफत उस पुरुष का नाम तक बता देता है जिसके ज़रिए वह अपने लोगों को बंधुआई से छुड़ाएगा ताकि वे अपने देश लौटकर यरूशलेम और उसके मंदिर को दोबारा बना सकें। उस पुरुष का नाम है, कुस्रू जो फारस के कुस्रू महान के नाम से जाना जाता है। यहोवा यह भी बताता है कि कुस्रू कैसी रणनीति अपनाकर बाबुल की विशाल, फौलाद जैसी मज़बूत साथ ही जटिल मोर्चाबंदी को तोड़ देगा। बाबुल की हिफाज़त
के लिए ऊँची-ऊँची शहरपनाहें हैं और शहर के अंदर और इसके चारों ओर बहुत-सी नहरें भी बहती हैं। बाबुल की मोर्चाबंदी का एक खास हिस्सा है, फरात नदी। इसी नदी को कुस्रू अपने काबू में कर लेगा। हिरॉडटस और ज़ेनफन नाम के प्राचीन इतिहासकारों के मुताबिक, कुस्रू ने फरात नदी के पानी का रुख बाबुल शहर से पहले मोड़ दिया था, जिससे नदी का पानी इतना कम हो गया कि सैनिक पैदल चलकर आसानी से नदी पार कर गए और बाबुल में घुस गए। इस तरह, महान नदी फरात मानो सूख गयी और बाबुल की हिफाज़त न कर सकी।23. कुस्रू, इस्राएल को आज़ाद करेगा, इस भविष्यवाणी के पूरा होने का क्या सबूत मौजूद है?
23 यहोवा के इस वादे के बारे में क्या कि कुस्रू, परमेश्वर के लोगों को आज़ाद करेगा और यरूशलेम नगर के साथ उसके मंदिर को दोबारा बनवाएगा? कुस्रू ने एक सरकारी आदेश जारी किया, जो आज भी बाइबल में मौजूद है और जिसमें उसका यह ऐलान पाया जाता है: “फारस का राजा कुस्रू यों कहता है: कि स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा ने पृथ्वी भर का राज्य मुझे दिया है, और उस ने मुझे आज्ञा दी, कि यहूदा के यरूशलेम में मेरा एक भवन बनवा। उसकी समस्त प्रजा के लोगों में से तुम्हारे मध्य जो कोई हो, उसका परमेश्वर उसके साथ रहे, और वह यहूदा के यरूशलेम को जाकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का भवन बनाए—जो यरूशलेम में है वही परमेश्वर है।” (एज्रा 1:2,3) यहोवा ने यशायाह के ज़रिए जो भविष्यवाणी की थी, उसका एक-एक शब्द पूरा हुआ!
यशायाह, कुस्रू और आज के मसीही
24. “यरूशलेम के फिर बसाने” की अर्तक्षत्र की आज्ञा के निकलने और मसीहा के आने के बीच क्या संबंध है?
24 यशायाह का 44वाँ अध्याय यहोवा की महिमा करते हुए दिखाता है कि वही सच्चा परमेश्वर है जिसने प्राचीन समय में अपने लोगों को छुड़ाया था। इतना ही नहीं, इस भविष्यवाणी में आज हम सभी के लिए गहरा अर्थ छिपा हुआ है। सा.यु.पू. 538/537 में कुस्रू ने यरूशलेम के मंदिर को दोबारा बनाने का जो आदेश जारी किया था, उससे घटनाओं का एक ऐसा सिलसिला शुरू हुआ जिसका अंत एक और शानदार भविष्यवाणी से होता। कुस्रू के आदेश जारी करने के बाद, एक और राजा, अर्तक्षत्र ने आदेश जारी किया कि यरूशलेम शहर का दोबारा निर्माण किया जाए। दानिय्येल की किताब में बताया गया था कि “[सा.यु.पू. 455 में] यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा के निकलने से लेकर अभिषिक्त प्रधान के समय तक” 69 “सप्ताह” बीतेंगे, जिनमें एक सप्ताह 7 साल के बराबर होगा। (दानिय्येल 9:24,25) यह भविष्यवाणी भी सच साबित हुई। वादा किए गए देश में, अर्तक्षत्र की आज्ञा का पालन किए जाने के ठीक 483 साल बाद यानी सा.यु. 29 में यीशु का बपतिस्मा हुआ और उसने पृथ्वी पर अपनी सेवकाई शुरू की। *
25. कुस्रू के हाथों बाबुल का पतन, आज होनेवाली किस घटना को सूचित करता है?
25 बाबुल के गिरने से वफादार यहूदी उसकी कैद से रिहा हुए। इस घटना ने दिखाया कि भविष्य में कैसे अभिषिक्त मसीहियों को आध्यात्मिक बंधुआई से रिहा करवाया जाएगा। यह रिहाई सन् 1919 में हुई। उनके रिहा होने पर साबित हुआ कि एक और बाबुल गिर पड़ा है जिसे बड़ा बाबुल या वेश्या कहा गया है और जो संसार-भर के सभी झूठे धर्मों का प्रतीक है। जैसा कि प्रकाशितवाक्य की किताब में दर्ज़ है, प्रेरित यूहन्ना ने दर्शन में इसका पतन होते देखा था। (प्रकाशितवाक्य 14:8) यूहन्ना ने दर्शन में यह भी देखा कि बड़े बाबुल यानी मूर्तियों से भरे इस विश्व साम्राज्य का कैसे अचानक नाश होगा। यूहन्ना का यह वर्णन कुछ हद तक प्राचीन बाबुल पर कुस्रू की जीत के वर्णन से मिलता-जुलता है। जैसे प्राचीन बाबुल की नहरें, कुस्रू से उसकी हिफाज़त नहीं कर पायी थीं, वैसे ही जब न्याय की माँग के मुताबिक बड़े बाबुल का नाश होगा तो उसे समर्थन देनेवाले और उसकी हिफाज़त करनेवाले लोग एकदम घट जाएँगे, यानी बड़े बाबुल का “पानी सूख” जाएगा।—प्रकाशितवाक्य 16:12. *
26. यशायाह की भविष्यवाणी और उसकी पूर्ति से किस तरह हमारा विश्वास मज़बूत होता है?
26 यशायाह ने जब अपनी भविष्यवाणी सुनायी तब से आज तक ढाई हज़ार से भी ज़्यादा साल बीत चुके हैं। आज हम देख सकते हैं कि यहोवा सचमुच “अपने दूतों की युक्ति को सुफल करता” है। (यशायाह 44:26) यशायाह की भविष्यवाणी का पूरा होना एक बेजोड़ सबूत है कि पवित्र शास्त्र में दर्ज़ की गयी सारी भविष्यवाणियाँ भरोसेमंद हैं।
[फुटनोट]
^ पैरा. 24 वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान दें! किताब का अध्याय 11 देखिए।
^ पैरा. 25 वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित रॆवलेशन—इट्स ग्रैंड क्लाइमैक्स एट हैंड! किताब के अध्याय 35 और 36 देखिए।
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 63 पर तसवीर]
क्या ईंधन की लकड़ी का बचा-खुचा भाग, किसी को छुटकारा दिला सकता है?
[पेज 73 पर तसवीर]
संगमरमर से बना एक ईरानी राजा, शायद कुस्रू का सिर
[पेज 75 पर तसवीर]
फरात नदी के पानी का रुख मोड़कर कुस्रू ने भविष्यवाणी पूरी की