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सिय्योन में धार्मिकता फलती-फूलती है

सिय्योन में धार्मिकता फलती-फूलती है

बाइसवाँ अध्याय

सिय्योन में धार्मिकता फलती-फूलती है

यशायाह 61:1-11

1, 2. इस्राएल में अब कैसा बदलाव होनेवाला है, और यह बदलाव कौन लाएगा?

आज़ादी का ऐलान किया जाए! यहोवा ने अपने लोगों को आज़ाद करने और उन्हें उनके पुरखाओं के देश में दोबारा बसाने का संकल्प किया है। जैसे बरसात की हल्की-सी फुहार के बाद एक बीज से अंकुर फूटने लगता है, उसी तरह सच्ची उपासना का फूल खिलने लगेगा। उस दिन के आने पर मायूसी की जगह जयजयकार के शब्द सुनायी पड़ेंगे और जिनके सिरों पर शोक की राख पड़ी हुई थी, उन्हें परमेश्‍वर के अनुग्रह का ताज पहनाया जाएगा।

2 ऐसी अद्‌भुत कायापलट कौन करेगा? सिर्फ यहोवा ऐसा कर सकता है। (भजन 9:19,20; यशायाह 40:25) भविष्यवक्‍ता सपन्याह ने भविष्यवाणी में यह आज्ञा दी थी: “हे सिय्योन, ऊंचे स्वर से गा; हे इस्राएल, जयजयकार कर! हे यरूशलेम अपने सम्पूर्ण मन से आनन्द कर, और प्रसन्‍न हो! यहोवा ने तेरा दण्ड दूर कर दिया।” (सपन्याह 3:14,15) वह क्या ही खुशियों का समय होगा! सा.यु.पू. 537 में जब यहोवा, शेष जनों को बाबुल से ले आएगा, तो यह ऐसा होगा मानो कोई सपना साकार हो रहा हो।—भजन 126:1.

3. यशायाह के अध्याय 61 में दिए गए भविष्यवाणी के वचन कब-कब पूरे होते हैं?

3 इस बहाली के बारे में यशायाह के 61वें अध्याय में भविष्यवाणी की गयी है। यह भविष्यवाणी सा.यु.पू. 537 में तो पूरी हुई, मगर इसके अलावा आगे चलकर यह और भी बड़े पैमाने पर पूरी होनी थी। इसकी बड़ी पूर्ति, पहली सदी में यीशु और उसके चेलों पर और हमारे ज़माने में यहोवा के लोगों पर हुई है। इसलिए ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखे ये वचन हमारे लिए कितने मायने रखते हैं!

‘प्रसन्‍न रहने का वर्ष’

4. यशायाह 61:1 की पहली पूर्ति में सुसमाचार सुनाने का काम किसे सौंपा जाता है, और दूसरी पूर्ति में किसे सौंपा गया था?

4 यशायाह लिखता है: “प्रभु यहोवा का आत्मा मुझ पर है, क्योंकि यहोवा ने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिए मेरा अभिषेक किया है, और मुझे इसलिए भेजा है कि खेदित मन के लोगों को शान्ति दूं, कि बन्दियों के लिये स्वतन्त्रता का और क़ैदियों के लिये छुटकारे का प्रचार करूं।” (यशायाह 61:1, NHT) वह कौन है जिसे इस भविष्यवाणी में सुसमाचार सुनाने का काम सौंपा जाता है? पहले तो यह वचन खुद यशायाह पर पूरे होते हैं, क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे बाबुल की बंधुआई में पड़े लोगों के लिए एक खुशखबरी लिखने को प्रेरित किया है। लेकिन बाद में चलकर यीशु ने इस भविष्यवाणी को खुद पर लागू करते हुए दिखाया कि इसकी खास पूर्ति उस पर होती है। (लूका 4:16-21) जी हाँ, यीशु को इसलिए भेजा गया था कि वह दीनों को सुसमाचार सुनाए, और इसके लिए बपतिस्मे के वक्‍त पवित्र आत्मा से उसका अभिषेक किया गया था।—मत्ती 3:16,17.

5. कौन हैं जो पिछले करीब 2,000 सालों से सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं?

5 इतना ही नहीं, यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि प्रचारक या सुसमाचार सुनानेवाला कैसे बना जा सकता है। फिर सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन इनमें से करीब 120 चेलों का पवित्र आत्मा से अभिषेक किया गया और वे परमेश्‍वर के आत्मिक पुत्र बने। (प्रेरितों 2:1-4,14-42; रोमियों 8:14-16) उन्हें भी कंगालों या दीन और खेदित मन के या कुचले हुए लोगों को सुसमाचार सुनाने का काम सौंपा गया था। पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त ये 120 चेले, 144,000 जनों में से पहले थे। इस समूह के आखिरी सदस्य आज भी धरती पर ज़ोर-शोर से काम कर रहे हैं। इस तरह करीब 2,000 सालों से यीशु के अभिषिक्‍त चेले ‘परमेश्‍वर की ओर मन फिराने और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर विश्‍वास करने’ की गवाही दे रहे हैं।—प्रेरितों 20:21.

6. प्राचीन समय में सुसमाचार सुनने से किन लोगों को राहत मिली, और आज के बारे में क्या कहा जा सकता है?

6 यशायाह ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से जो संदेश दिया उससे बाबुल में रहनेवाले पश्‍चातापी यहूदियों को राहत मिली थी। यीशु और उसके शिष्यों के ज़माने में उनके संदेश से ऐसे यहूदियों को राहत मिली जो इस्राएल देश की दुष्टता देखकर मन-ही-मन खेदित थे और पहली सदी के यहूदी धर्म की झूठी परंपराओं की कैद में आहें भर रहे थे। (मत्ती 15:3-6) आज भी ईसाईजगत के विधर्मी रीति-रिवाज़ों और परमेश्‍वर का अपमान करनेवाली परंपराओं की गुलामी में फँसे लाखों लोग, इसलिए “सांसें भरते और दु:ख के मारे चिल्लाते” हैं क्योंकि उनके धर्म में घृणित काम हो रहे हैं। (यहेजकेल 9:4) जो सुसमाचार को स्वीकार करते हैं, वे इस बेबसी की हालत से छुटकारा पाते हैं। (मत्ती 9:35-38) जब वे “आत्मा और सच्चाई” से यहोवा की उपासना करना सीख लेते हैं तो उनकी आँखें खुल जाती हैं।—यूहन्‍ना 4:24.

7, 8. (क) “प्रसन्‍न रहने के वर्ष” की दो पूर्तियाँ कौन-सी हैं? (ख) यहोवा के “पलटा लेने के दिन” की पूर्तियाँ कौन-सी हैं?

7 लेकिन यह सुसमाचार सुनाने के लिए एक वक्‍त ठहराया गया है। यीशु और उसके शिष्यों को यह आज्ञा दी गयी थी: ‘यहोवा के प्रसन्‍न रहने के वर्ष का और हमारे परमेश्‍वर के पलटा लेने के दिन का प्रचार करो; सब विलाप करनेवालों को शान्ति दो।’ (यशायाह 61:2) एक वर्ष, काफी लंबा अरसा होता है, मगर इसकी एक शुरूआत और निश्‍चित अंत भी होता है। ‘यहोवा के प्रसन्‍न रहने का वर्ष’ वह समय है, जिस दौरान वह नम्र लोगों को मौका देता है कि वे उसके छुटकारे का ऐलान सुनकर कदम उठाएँ।

8 पहली सदी में, यहूदियों के लिए यह प्रसन्‍न रहने का वर्ष सा.यु. 29 में तब शुरू हुआ जब यीशु ने धरती पर अपनी सेवा शुरू की। उसने यहूदियों से कहा: “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” (मत्ती 4:17) लेकिन यह प्रसन्‍न रहने का वर्ष सा.यु. 70 में तब खत्म हो गया जब यहूदियों पर ‘परमेश्‍वर के पलटा लेने का दिन’ आया। उस समय यहोवा ने यरूशलेम और उसके मंदिर को रोमी सेना के हाथों नाश होने दिया। (मत्ती 24:3-22) आज हम भी प्रसन्‍न रहने के एक और वर्ष में जी रहे हैं जिसकी शुरूआत 1914 में हुई जब स्वर्ग में परमेश्‍वर का राज्य स्थापित हुआ। और इस बार भी प्रसन्‍न रहने का यह वर्ष दुनिया पर पलटा लेने का दिन आने पर खत्म हो जाएगा। अपने उस दिन में यहोवा “भारी क्लेश” के दौरान दुनिया की व्यवस्था को पूरी तरह मिटा देगा।—मत्ती 24:21.

9. आज कौन यहोवा के प्रसन्‍न रहने के वर्ष का फायदा उठा रहे हैं?

9 परमेश्‍वर के प्रसन्‍न रहने के वर्ष से आज कौन फायदा उठा रहे हैं? वही जो उसके संदेश को स्वीकार करते हैं, नम्रता दिखाते और “सब जातियों” के पास जाकर पूरे ज़ोर-शोर से परमेश्‍वर के राज्य का ऐलान करते हैं। (मरकुस 13:10) ऐसे लोग पाते हैं कि सुसमाचार वाकई सांत्वना देता है। लेकिन जो लोग इस संदेश को ठुकरा देते हैं, यहोवा के प्रसन्‍न रहने के वर्ष से फायदा उठाने से इनकार कर देते हैं, उन्हें बहुत जल्द उसके पलटा लेने के दिन का सामना करना पड़ेगा।—2 थिस्सलुनीकियों 1:6-9.

आध्यात्मिक फल जिनसे परमेश्‍वर की महिमा होती है

10. बाबुल से लौटनेवाले यहूदियों की खातिर यहोवा ने जो महान काम किया है, उसका उन पर क्या असर पड़ा?

10 बाबुल से लौटनेवाले यहूदी जानते हैं कि यहोवा ने उनकी खातिर एक महान काम किया है। बंधुआई में रहते वक्‍त वे मातम मना रहे थे, लेकिन अब वे मग्न होकर स्तुति करते हैं, क्योंकि वे आज़ाद हो गए हैं। इस तरह भविष्यवाणी में यशायाह को जो काम सौंपा गया था उसने वह पूरा किया है, यानी “सिय्योन के विलाप करनेवालों के सिर पर की राख दूर करके सुन्दर पगड़ी बान्ध दूं, कि उनका विलाप दूर करके हर्ष का तेल लगाऊं और उनकी उदासी हटाकर यश का ओढ़ना ओढ़ाऊं; जिस से वे धर्म के बांजवृक्ष और यहोवा के लगाए हुए कहलाएं और जिस से उसकी महिमा प्रगट हो।”—यशायाह 61:3.

11. पहली सदी में किन लोगों के पास यहोवा के महान कामों के लिए उसकी स्तुति करने की बढ़िया वजह थी?

11 पहली सदी में जिन यहूदियों ने झूठे धर्म से परमेश्‍वर के छुटकारे को स्वीकार किया उन्होंने भी उसके महान कामों के लिए उसकी स्तुति की। जब उन्हें आध्यात्मिक तौर पर मरे हुए एक देश से आज़ाद किया गया, तो उन्हें टूटे हुए मन की जगह “यश का ओढ़ना” मिला। सबसे पहले यीशु के शिष्यों ने इस बदलाव का अनुभव किया। वे उसकी मौत का मातम मना रहे थे, लेकिन जब पुनरुत्थान पाए उनके प्रभु यीशु ने पवित्र आत्मा से उनका अभिषेक किया तो उनका यह दुःख बड़े आनंद में बदल गया। इसके कुछ ही समय बाद, सा.यु. 33 में इन नए अभिषिक्‍त मसीहियों का सुसमाचार सुनकर जिन 3,000 नम्र लोगों ने बपतिस्मा लिया उन्हें भी यही अनुभव हुआ। (प्रेरितों 2:41) अपने ऊपर यहोवा की आशीष होने का पक्का सबूत पाना उनके लिए कितनी खुशी की बात थी! ‘सिय्योन पर विलाप’ करने के बजाय उन्होंने पवित्र आत्मा पायी और ‘हर्ष के तेल’ से तरोताज़ा हो गए। “हर्ष का तेल” उन लोगों की खुशी को दर्शाता है जिन्हें यहोवा ने भरपूर आशीषें दी हों।—इब्रानियों 1:9.

12, 13. (क) सामान्य युग पूर्व 537 में लौटनेवाले यहूदियों में “धर्म के बांजवृक्ष” कौन थे? (ख) सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त के बाद से कौन “धर्म के बांजवृक्ष” रहे हैं?

12 यहोवा अपने लोगों को आशीष के तौर पर “धर्म के बांजवृक्ष” देता है। ये बांजवृक्ष कौन हैं? सा.यु.पू. 537 के बाद के सालों में ये वे लोग थे जिन्होंने परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन किया और उस पर ध्यान लगाया था, साथ ही यहोवा के धर्मी स्तरों को भी मानते थे। (भजन 1:1-3; यशायाह 44:2-4; यिर्मयाह 17:7,8) एज्रा, हाग्गै, जकर्याह और महायाजक यहोशू जैसे पुरुष बड़े-बड़े “बांजवृक्ष” साबित हुए। उन्होंने बड़ी हिम्मत के साथ देश में सच्चाई का समर्थन किया और आध्यात्मिक भ्रष्टता या अशुद्धता का कड़ा विरोध किया।

13 सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त से परमेश्‍वर ने अपनी नयी जाति, “परमेश्‍वर के इस्राएल” के आध्यात्मिक प्रदेश में ऐसे ही बड़े-बड़े “बांजवृक्ष” लगाए। ये साहसी अभिषिक्‍त मसीही थे। (गलतियों 6:16) बीती सदियों के दौरान, इन ‘वृक्षों’ की गिनती 1,44,000 हो गयी है। उन्होंने धर्मी फल पैदा किए हैं जिनसे यहोवा परमेश्‍वर की महिमा हुई है और वह शोभायमान हुआ है। (प्रकाशितवाक्य 14:3) सन्‌ 1919 से पहले कुछ समय के लिए परमेश्‍वर के इस्राएल के बचे हुओं का जोश ठंडा पड़ गया था, मगर जब 1919 में यहोवा ने उनमें दोबारा नया जोश भरा, तब से इन विशाल ‘वृक्षों’ में से आखिरी जन बहुत फले-फूले हैं। भरपूर मात्रा में आध्यात्मिक जल देकर यहोवा ने आज धर्म के इन फलदायी वृक्षों का मानो एक वन तैयार कर दिया है।—यशायाह 27:6.

14, 15. यहोवा के छुड़ाए हुए उपासकों ने (क) सा.यु.पू. 537 में, (ख) सा.यु. 33 में, (ग) और 1919 में कौन-से काम हाथ में लिए?

14 यशायाह आगे बताता है कि ये ‘वृक्ष’ क्या काम करेंगे। वह कहता है: “तब वे बहुत काल के उजड़े हुए स्थानों को फिर बसाएंगे, पूर्वकाल से पड़े हुए खण्डहरों में वे फिर घर बनाएंगे; उजड़े हुए नगरों को जो पीढ़ी पीढ़ी में उजड़े हुए हों वे फिर नये सिरे से बसाएंगे।” (यशायाह 61:4) फारस के राजा कुस्रू के आदेश पर बाबुल से लौटनेवाले वफादार यहूदी, यरूशलेम और उसके मंदिर का दोबारा निर्माण करते हैं जो एक अरसे से उजाड़ पड़े थे। ऐसा ही निर्माण का काम सा.यु. 33 और 1919 के बाद भी किया जानेवाला था।

15 सामान्य युग 33 में जब यीशु को गिरफ्तार किया गया, उस पर मुकद्दमा चलाया गया और उसे मार डाला गया तो उसके शिष्य शोक में डूब गए थे। (मत्ती 26:31) लेकिन जब यीशु पुनरुत्थान के बाद उनके सामने प्रकट हुआ तो उनका शोक एकदम खुशी में बदल गया। और जब उन पर पवित्र आत्मा उँडेली गयी, तो वे “यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक” सुसमाचार प्रचार करने में पूरी तरह जुट गए। (प्रेरितों 1:8) इस तरह उन्होंने शुद्ध उपासना दोबारा स्थापित की। उसी तरह, सन्‌ 1919 से यीशु मसीह ने अपने अभिषिक्‍त मसीहियों के शेष जनों की मदद की ताकि वे ‘पीढ़ी पीढ़ी से उजड़े पड़े नगरों’ को दोबारा बसाएँ। सदियों से ईसाईजगत के पादरी, लोगों को यहोवा का ज्ञान देने में नाकाम रहे हैं, इसके बजाय वे इंसानों की बनायी परंपराएँ और ऐसी शिक्षाएँ सिखाते रहे जो बाइबल के मुताबिक सही नहीं हैं। लेकिन अभिषिक्‍त मसीहियों ने अपनी कलीसियाओं से ऐसे रिवाज़ों और कामों को अपने बीच से दूर किया, जिन पर झूठे धर्म का दाग लगा हुआ था ताकि कलीसियाएँ शुद्ध रहें और शुद्ध उपासना को बहाल करने का काम तेज़ी से आगे बढ़ता जाए। इस तरह उन्होंने प्रचार का इतना ज़बरदस्त अभियान शुरू किया जैसा दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा था।—मरकुस 13:10.

16. सच्ची उपासना को बहाल करने में कौन अभिषिक्‍त मसीहियों की मदद कर रहे हैं, और उन्हें क्या-क्या काम सौंपे गए हैं?

16 यह काम इतने बड़े पैमाने पर करना वाकई एक भारी ज़िम्मेदारी थी। परमेश्‍वर के इस्राएल के बचे हुए ये मुट्ठी-भर सदस्य भला इतने बड़े काम को कैसे पूरा कर पाते? इसका जवाब देने के लिए यहोवा ने यशायाह को यह ऐलान करने के लिए प्रेरित किया: “परदेशी आ खड़े होंगे और तुम्हारी भेड़-बकरियों को चराएंगे और विदेशी लोग तुम्हारे हरवाहे [किसान] और दाख की बारी के माली होंगे।” (यशायाह 61:5) भविष्यवाणी में बताए गए ये परदेशी या विदेशी, यीशु की ‘अन्य भेड़ों’ (NW) की “बड़ी भीड़” के लोग हैं। * (यूहन्‍ना 10:11,16; प्रकाशितवाक्य 7:9) उन्हें स्वर्गीय विरासत के लिए पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त तो नहीं किया जाता है, लेकिन वे धरती पर एक फिरदौस में जीवन पाने की आशा रखते हैं। (प्रकाशितवाक्य 21:3,4) मगर फिर भी वे यहोवा से प्यार करते हैं और उन्हें आध्यात्मिक मायने में चरवाही और खेती-बाड़ी करने और दाख की बारी की देखभाल करने का काम सौंपा गया है। ऐसे काम छोटे दर्जे के नहीं हैं। परमेश्‍वर के इस्राएल के बचे हुए सदस्यों से मार्गदर्शन पाकर वे इंसानों की चरवाही करते हैं, उनका पालन-पोषण करते हैं और लोगों को इकट्ठा किए जाने के काम में हाथ बँटाते हैं।—लूका 10:2; प्रेरितों 20:28; 1 पतरस 5:2; प्रकाशितवाक्य 14:15,16.

17. (क) परमेश्‍वर के इस्राएल के सदस्य क्या कहलाएँगे? (ख) पापों की माफी सिर्फ किस बलिदान से पायी जा सकती है?

17 लेकिन परमेश्‍वर के इस्राएल के बारे में क्या? यशायाह के ज़रिए यहोवा उनसे कहता है: “पर तुम यहोवा के याजक कहलाओगे, वे तुम को हमारे परमेश्‍वर के सेवक कहेंगे; और तुम अन्यजातियों की धन-सम्पत्ति को खाओगे, उनके विभव की वस्तुएं पाकर तुम बड़ाई करोगे।” (यशायाह 61:6) प्राचीन इस्राएल में यहोवा ने लेवी वंश के याजकों को यह काम सौंपा था कि वे खुद याजकों और बाकी इस्राएलियों की खातिर बलिदान चढ़ाएँ। लेकिन सा.यु. 33 में यहोवा ने लेवी वंश के याजकों का इस्तेमाल करना बंद कर दिया और उससे भी एक बेहतर इंतज़ाम की शुरूआत की। उसने इंसानों के पापों की खातिर यीशु के सिद्ध जीवन के बलिदान को स्वीकार किया। तब से किसी और बलिदान की ज़रूरत नहीं रही। यीशु का बलिदान सनातन काल तक मान्यता रखता है।—यूहन्‍ना 14:6; कुलुस्सियों 2:13,14; इब्रानियों 9:11-14,24.

18. परमेश्‍वर के इस्राएल के सदस्य किस तरह के याजकों का समाज बनते हैं, और उन्हें क्या ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है?

18 लेकिन परमेश्‍वर के इस्राएल के सदस्य किस मायने में “यहोवा के याजक” हैं? प्रेरित पतरस ने अपने साथी अभिषिक्‍त मसीहियों को लिखा था: “तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्‍वर की) निज प्रजा हो, इसलिये कि जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्‌भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो।” (1 पतरस 2:9) इसलिए सारे अभिषिक्‍त मसीही मिलकर याजकों का एक समाज बनते हैं और उन्हें एक खास ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है: यहोवा की महिमा के बारे में देशों को बताना। उन्हें यहोवा की साक्षी देनी है। (यशायाह 43:10-12) अंतिम दिनों के शुरू होने से लेकर अब तक, अभिषिक्‍त मसीहियों ने इस खास ज़िम्मेदारी को पूरी वफादारी से निभाया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि आज यहोवा के राज्य के बारे में साक्षी देने में उनके साथ लाखों लोग शामिल हो गए हैं।

19. अभिषिक्‍त मसीहियों को कौन-सी खास ज़िम्मेदारी सौंपी जाएगी?

19 इसके अलावा, परमेश्‍वर के इस्राएल के सदस्यों को एक और तरीके से भी याजकों की हैसियत से सेवा करने का मौका मिलेगा। उनके मरने पर उनका पुनरुत्थान किया जाता है, ताकि वे स्वर्ग में अमर आत्मिक जीवन पाएँ। वहाँ वे यीशु के साथ उसके राज्य में न सिर्फ शासक होंगे बल्कि परमेश्‍वर के याजकों के तौर पर भी सेवा करेंगे। (प्रकाशितवाक्य 5:10; 20:6) इसलिए, उन्हें धरती पर रहनेवाले वफादार इंसानों तक यीशु के छुड़ौती बलिदान के फायदे पहुँचाने की खास ज़िम्मेदारी दी जाएगी। प्रकाशितवाक्य के अध्याय 22 में दर्ज़ यूहन्‍ना के दर्शन में भी इनकी तुलना ‘वृक्षों’ से की गयी है। दर्शन में देखा गया कि सभी 1,44,000 “वृक्ष” स्वर्ग में हैं और उनमें ‘हर साल बारह फसल लगा करती हैं। उसके प्रत्येक वृक्ष पर प्रतिमास एक फसल लगती है तथा इन वृक्षों की पत्तियाँ अनेक जातियों को निरोग करने के लिये हैं।’ (प्रकाशितवाक्य 22:1,2, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यह याजकों की हैसियत से क्या ही शानदार सेवा है!

पहले नामधराई और अनादर, बाद में आनंद

20. विरोध के बावजूद, राजपदधारी याजकों का समाज कौन-सी आशीष पाने का इंतज़ार करता है?

20 सन्‌ 1914 में जब यहोवा के प्रसन्‍न रहने का वर्ष शुरू हुआ तब से ही राजपदधारी याजकों के इस समाज को ईसाईजगत के पादरियों की तरफ से लगातार विरोध के सिवा और कुछ नहीं मिला। (प्रकाशितवाक्य 12:17) मगर फिर भी, सुसमाचार के प्रचार को रोकने की हर कोशिश आखिर में नाकाम साबित हुई। यशायाह ने पहले ही इसके बारे में भविष्यवाणी की थी: “तुम्हारी नामधराई की सन्ती दूना भाग मिलेगा, अनादर की सन्ती तुम अपने भाग के कारण जयजयकार करोगे; तुम अपने देश में दूने भाग के अधिकारी होगे; और सदा आनन्दित बने रहोगे।”—यशायाह 61:7.

21. किस तरह अभिषिक्‍त मसीहियों को दो गुना आशीषें मिलीं?

21 पहले विश्‍वयुद्ध के दौरान, अभिषिक्‍त शेष जनों ने देशभक्‍ति को बढ़ावा देनेवाले ईसाईजगत के हाथों नामधराई और अनादर सहा। ईसाईजगत के पादरी भी उन लोगों में से थे जिन्होंने ब्रुकलिन के मुख्यालय के आठ वफादार भाइयों पर देशद्रोही होने का झूठा आरोप लगाया था। इन भाइयों के साथ नाइंसाफी हुई और उन्हें नौ महीने तक कैद में रखा गया। आखिरकार 1919 के वसंत में उन्हें रिहा कर दिया गया और बाद में उन पर लगाए गए सारे इलज़ाम हटा लिए गए। इस तरह दुश्‍मनों की चाल उलटी पड़ी और प्रचार को रोकने की साज़िश नाकाम हो गयी। यहोवा ने अपने उपासकों को हमेशा-हमेशा तक नामधराई सहने के लिए यूँ ही छोड़ नहीं दिया था। इसके बजाय, उसने उन्हें छुटकारा दिलाया और उनके “अपने देश” यानी आध्यात्मिक प्रदेश में वापस लौटाया। उनके नुकसान से भी बढ़कर उन्होंने प्रतिफल पाया, और वह था यहोवा की आशीष पाना। वाकई उनके पास खुशी से जयजयकार करने की वजह थी!

22, 23. किस तरह अभिषिक्‍त मसीही यहोवा की मिसाल पर चले हैं, और यहोवा ने उनको क्या प्रतिफल दिया है?

22 इसके आगे यहोवा जो कहता है, उससे आज के मसीहियों को मग्न होने की एक और वजह मिलती है: “मैं यहोवा न्याय से प्रीति रखता हूं, मैं अन्याय और डकैती से घृणा करता हूं; इसलिये मैं उनको उनका प्रतिफल सच्चाई से दूंगा, और, उनके साथ सदा की वाचा बान्धूंगा।” (यशायाह 61:8) बाइबल का अध्ययन करने से, अभिषिक्‍त शेष जनों ने न्याय से प्रेम करना और दुष्टता से घृणा करना सीखा है। (नीतिवचन 6:12-19; 11:20) उन्होंने “अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल” बनाना सीखा है यानी वे युद्धों और राजनीतिक उपद्रवों में किसी भी तरह से हिस्सा नहीं लेते। (यशायाह 2:4) साथ ही वे निंदा, व्यभिचार, चोरी और पियक्कड़पन जैसे बुरे काम पीछे छोड़ आए हैं जिनसे परमेश्‍वर का अपमान होता है।—गलतियों 5:19-21.

23 अभिषिक्‍त मसीही भी अपने सिरजनहार की मिसाल पर चलते हुए न्याय से प्रेम करते हैं, इसलिए यहोवा ने उनको “उनका प्रतिफल सच्चाई से” दिया है। उनमें से एक “प्रतिफल” यह है कि उनके साथ सदा की वाचा यानी नयी वाचा बाँधी गयी है। इस वाचा के बारे में यीशु ने अपनी मौत से पहले की रात अपने चेलों को बताया था। इसी वाचा के आधार पर वे एक आत्मिक जाति या परमेश्‍वर के खास लोग बनते हैं। (यिर्मयाह 31:31-34; लूका 22:20) इस वाचा के तहत यहोवा, यीशु के छुड़ौती बलिदान का पूरा-पूरा फायदा इंसानों को देगा, वह अभिषिक्‍तों के साथ-साथ बाकी सभी वफादार इंसानों के पापों को क्षमा करेगा।

यहोवा की आशीषों के कारण आनन्दित होना

24. अन्यजातियों में से कौन “वह वंश” हैं जिन्हें आशीष दी गयी है, और वे यह “वंश” कैसे बने हैं?

24 अन्यजातियों में से कुछ लोगों ने जान लिया है कि यहोवा ने कैसे अपने लोगों पर आशीष दी है। इसकी भविष्यवाणी यहोवा के इस वादे में की गयी है: “उनका वंश अन्यजातियों में और उनकी सन्तान देश देश के लोगों के बीच प्रसिद्ध होगी; जितने उनको देखेंगे, पहिचान लेंगे कि यह वह वंश है जिसको परमेश्‍वर ने आशीष दी है।” (यशायाह 61:9) परमेश्‍वर के इस्राएल के सदस्य या अभिषिक्‍त मसीही, यहोवा के प्रसन्‍न रहने के वर्ष में जातियों के बीच खूब ज़ोर-शोर से प्रचार काम करते नज़र आए हैं। आज उनकी सेवा से फायदा उठानेवालों की गिनती लाखों में पहुँच गयी है। परमेश्‍वर के इस्राएल के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम करने की वजह से, अन्यजाति के ये लोग “वह वंश” बने हैं, “जिसको परमेश्‍वर ने आशीष दी है।” उनकी खुशहाली आज सारी दुनिया देख सकती है।

25, 26. किस तरह सभी मसीहियों की भावनाएँ यशायाह 61:10 में दी गयी भावनाओं जैसी हैं?

25 आज सभी मसीही, चाहे वे अभिषिक्‍त हों या अन्य भेड़, उस दिन की बाट जोह रहे हैं जब वे अनंतकाल तक यहोवा की स्तुति कर पाएंगे। वे भविष्यवक्‍ता यशायाह के साथ तहेदिल से हामी भरते हैं जो आत्मा की प्रेरणा से यह कहता है: “यहोवा मुझको अति प्रसन्‍न करता है। मेरा सम्पूर्ण व्यक्‍तित्व परमेश्‍वर में स्थिर है और प्रसन्‍नता में मगन है। यहोवा ने उद्धार के वस्त्र से मुझको ढक लिया। वे वस्त्र ऐसे ही भव्य हैं जैसे भव्य वस्त्र कोई पुरूष अपने विवाह के अवसर पर पहनता है। यहोवा ने मुझे नेकी के चोगे [“धार्मिकता के वस्त्र,” NHT] से ढक लिया है। यह चोगा वैसा ही सुन्दर है जैसा सुन्दर किसी नारी का विवाह वस्त्र होता है।”—यशायाह 61:10, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

26 अभिषिक्‍त मसीही “धार्मिकता के वस्त्र” पहनते हैं यानी उनका यह दृढ़ संकल्प है कि वे यहोवा की नज़रों में शुद्ध और स्वच्छ रहेंगे। (2 कुरिन्थियों 11:1,2) यहोवा ने उनको स्वर्ग में जीवन देने के लिए धर्मी घोषित किया है, इसलिए वे बड़े बाबुल के उजड़े हुए देश में वापस कभी नहीं लौटेंगे, जहाँ से उन्हें छुड़ाया गया है। (रोमियों 5:9; 8:30) उद्धार का वस्त्र उनके लिए अनमोल है। उनके साथी, अन्य भेड़ों ने भी उन्हीं की तरह शुद्ध उपासना के यहोवा के ऊँचे स्तरों का पालन करने की ठान ली है। उन्होंने “अपने अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्‍वेत किए हैं” इसलिए उन्हें धर्मी घोषित किया जाता है और वे “बड़े क्लेश” से सही सलामत पार हो जाएँगे। (प्रकाशितवाक्य 7:14; याकूब 2:23,25) लेकिन तब तक अपने अभिषिक्‍त साथियों की मिसाल पर चलते हुए वे बड़े बाबुल से किसी भी तरह भ्रष्ट होने से बचे रहते हैं।

27. (क) हज़ार साल के राज में, कौन-सी खास तरह की “उपज” होगी? (ख) किस तरह इंसानों के बीच अभी से धार्मिकता उपज रही है?

27 आज यहोवा के उपासक मग्न हो रहे हैं क्योंकि वे एक आध्यात्मिक फिरदौस में हैं। और बहुत जल्द जब यह सारी धरती असल में एक फिरदौस बन जाएगी तब वे उसका भी आनंद लेंगे। हम सब उस समय के आने का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं, जिसकी जीती-जागती तसवीर यशायाह के अध्याय 61 के इन आखिरी शब्दों में दी गयी है: “जैसे भूमि [पृथ्वी] उपज को उपजाती और बाग में जो कुछ बोया जाता है उसे वह अंकुरित करती है, वैसे ही प्रभु यहोवा सब जातियों के सामने धार्मिकता और स्तुति उपजाएगा।” (यशायाह 61:11, NHT) मसीह के हज़ार साल के राज में, सारी धरती पर ‘धार्मिकता उपजेगी।’ तब सभी इंसान खुशी के मारे जयजयकार करेंगे और पृथ्वी की छोर तक धार्मिकता फैल जाएगी। (यशायाह 26:9) लेकिन सभी देशों के सामने स्तुति करने के लिए हमें उस शानदार दिन तक इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं है। अभी से उन लाखों लोगों के बीच धार्मिकता बढ़ रही है जो स्वर्ग के परमेश्‍वर की महिमा करते और उसके राज्य की खुशखबरी का ऐलान करते हैं। आज भी अपने विश्‍वास और अपनी आशा के कारण हम अपने परमेश्‍वर की आशीषों में मग्न होते हैं।

[फुटनोट]

^ पैरा. 16 यशायाह 61:5 की एक पूर्ति शायद प्राचीन समय में भी हुई थी क्योंकि जब पैदाइशी यहूदी यरूशलेम लौटे, तो कुछ गैर-यहूदी भी उनके साथ हो लिए थे और उन्होंने शायद देश को दोबारा बसाने में यहूदियों की मदद भी की थी। (एज्रा 2:43-58) लेकिन ऐसा लगता है कि आयत 6 से यह भविष्यवाणी सिर्फ परमेश्‍वर के इस्राएल पर ही लागू होती है।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 323 पर तसवीर]

यशायाह के पास यहूदी बंधुओं को सुनाने के लिए एक खुशखबरी है

[पेज 331 पर तसवीर]

सामान्य युग 33 से यहोवा ने 1,44,000 “धर्म के बांजवृक्ष” लगाए हैं

[पेज 334 पर तसवीर]

पृथ्वी धार्मिकता उपजाएगी