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धार्मिक अनेकता की चुनौती

धार्मिक अनेकता की चुनौती

अध्यापक होने के नाते, आपके सामने वह चुनौती है जिसका सामना पिछली सदियों के अध्यापकों ने विरले ही किया था—धार्मिक अनेकता।

मध्ययुग के दौरान एक देश के नागरिक आम तौर पर एक ही धर्म का पालन करते थे। १९वीं शताब्दी के अंत तक, यूरोप कुछ ही प्रमुख धर्मों से परिचित था: पश्‍चिम में कैथोलिकवाद और प्रोटॆस्टॆंटवाद, पूरब में ऑर्थोडॉक्स, इस्लाम और यहूदीवाद। निःसंदेह, यूरोप और संसार भर में अनेकता आज अधिक सामान्य हो गयी है। अपरिचित धर्मों ने जड़ें पकड़ ली हैं। कुछ मूल निवासियों ने उन्हें अपना लिया है या आप्रवासियों और शरणार्थियों ने उनसे परिचय करवाया है।

इस प्रकार अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटॆन जैसे देशों में हमें अनेक मुसलमान, बौद्ध और हिंदू मिलते हैं। साथ ही, मसीहियों के रूप में यहोवा के साक्षी २३० से अधिक देशों में सक्रिय रूप से सेवा कर रहे हैं; इटली और स्पेन में उनका धर्म देश का दूसरा सबसे-बड़ा धर्म बन गया है। १३ देशों में उनके सक्रिय सदस्यों की संख्या १,००,००० से अधिक है।—“ यहोवा के साक्षी एक विश्‍वव्यापी धर्म” नाम का बक्स देखिए।

स्थानीय धार्मिक प्रथाओं की अनेकता अध्यापक के लिए चुनौतियाँ खड़ी कर सकती है। उदाहरण के लिए, लोकप्रिय उत्सवों के संबंध में महत्त्वपूर्ण प्रश्‍न उठाये जा सकते हैं: क्या सभी प्रथाओं को हर विद्यार्थी पर थोपा जाना चाहिए—उसका धर्म जो भी हो? बहुसंख्यक लोगों को ऐसे उत्सवों से शायद कोई आपत्ति न हो। लेकिन क्या अल्पसंख्यक समूह के परिवारों के दृष्टिकोण का भी आदर नहीं किया जाना चाहिए? एक और बात पर भी विचार किया जाना चाहिए: जिन देशों में कानून धर्म को राष्ट्र से अलग रखता है और जहाँ धार्मिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में नहीं जोड़ा जाना है वहाँ ऐसे उत्सवों को स्कूल में ज़रूरी बनाना क्या कुछ लोगों को असंगत नहीं लगेगा?

जन्मदिन

उन उत्सवों के बारे में भी गलतफहमियाँ हो सकती हैं जिनका बहुत कम या बिलकुल भी धार्मिक संबंध नहीं दिखता। यह बात जन्मदिन के बारे में सही है, जो अनेक स्कूलों में मनाया जाता है। हालाँकि यहोवा के साक्षी जन्मदिन मनाने के दूसरों के अधिकार का आदर करते हैं, फिर भी आप अच्छी तरह जानते ही होंगे कि वे ऐसे उत्सवों में हिस्सा नहीं लेते। लेकिन शायद आप इसका कारण नहीं जानते कि क्यों उन्होंने और उनके बच्चों ने इन उत्सवों में हिस्सा न लेने का फैसला किया है।

फ्रांस में दूर-दूर तक वितरित विश्‍वकोश, ल लीवरा डा रलीज़्हॉन  (धर्मों की पुस्तक) इस प्रथा को एक रिवाज़ कहती है और इसे “दुनियावी दस्तूरों” में गिनती है। हालाँकि इसे आज एक हानिरहित लौकिक प्रथा माना जाता है, जन्मदिन उत्सव असल में विधर्म से आया है।

दी एनसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना  (१९९१ संस्करण) कहती है: “प्राचीन समय में मिस्र, यूनान, रोम और फारस में देवताओं, राजाओं और सामंतों के जन्मदिन मनाये जाते थे।” लेखक रॉल्फ और ऎडलिन लिन्टन इसका मूल कारण बताते हैं। वे अपनी पुस्तक द लोर ऑफ बर्थडेज़  में लिखते हैं: “सभ्यता के जनक, मेसोपोटामिया और मिस्र ही वे पहले देश भी थे जिनमें लोग अपने जन्मदिन को मान देते और मनाते थे। प्राचीन समय में जन्मदिन का रिकॉर्ड रखना महत्त्वपूर्ण था खासकर इसलिए कि जन्म तिथि जन्मपत्री बनाने के लिए अत्यावश्‍यक थी।” ज्योतिष-विद्या के साथ इसका यह सीधा संबंध उनके लिए बड़ी चिंता का कारण है जो ज्योतिष-विद्या के बारे में बाइबल की बातों को मानते हुए इससे दूर रहते हैं।—यशायाह ४७:१३-१५.

तो फिर यह आश्‍चर्य की बात नहीं कि हम द वर्ल्ड बुक एनसाइक्लोपीडिया  में पढ़ते हैं: “आरंभिक मसीही उसका [मसीह का] जन्मदिन नहीं मनाते थे क्योंकि वे किसी का भी जन्मदिन मनाना एक विधर्मी प्रथा मानते थे।”—खंड ३, पृष्ठ ४१६.

साक्षी एकसाथ मिलकर मौज-मस्ती का आनंद लेते हैं

उपरोक्‍त जानकारी को ध्यान में रखते हुए यहोवा के साक्षी जन्मदिन उत्सवों में हिस्सा नहीं लेते। बच्चे का जन्म निश्‍चित ही खुशी का और बहुत बढ़िया मौका होता है। स्वाभाविक है कि सभी माता-पिता आनंदित होते हैं जब उनके बच्चे साल-के-साल बढ़ते और प्रौढ़ होते जाते हैं। यहोवा के साक्षी उपहार देने और एकसाथ मौज-मस्ती करने के द्वारा अपने परिवार और मित्रों के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करने में बहुत आनंद पाते हैं। लेकिन जन्मदिन उत्सवों के उद्‌गम को ध्यान में रखते हुए वे यह सब साल के दूसरे समय पर करना पसंद करते हैं।—लूका १५:२२-२५; प्रेरितों २०:३५.

क्रिसमस

क्रिसमस संसार भर में, अनेक गैर-ईसाई देशों में भी मनाया जाता है। क्योंकि यह त्योहार मसीहीजगत के अधिकतर धर्मों को स्वीकार्य है, यह अजीब लग सकता है कि यहोवा के साक्षी इसे नहीं मनाते। ऐसा क्यों है?

अनेक विश्‍वकोश साफ-साफ कहते हैं कि यीशु का जन्मदिन मनमाने ढंग से दिसंबर २५ को तय कर दिया गया ताकि रोमी विधर्मी त्योहार के साथ मेल खाये। अलग-अलग संदर्भ रचनाओं से लिये गये निम्नलिखित कथनों पर ध्यान दीजिए:

“मसीह की जन्म तिथि ज्ञात नहीं है। सुसमाचार-पुस्तकें न दिन और न ही महीने का संकेत देती हैं।”—न्यू कैथोलिक एनसाइक्लोपीडिया,  खंड २, पृष्ठ ६५६.

“क्रिसमस की अधिकतर मौज-मस्ती प्रथाएँ रोम के सैटरनेलिया से आयी हैं।”—एनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलिजन एण्ड एथिक्स

“आज यूरोप में प्रचलित अधिकतर क्रिसमस प्रथाएँ या पुराने समय की लेखबद्ध [क्रिसमस] प्रथाएँ असली मसीही प्रथाएँ नहीं हैं, बल्कि विधर्मी प्रथाएँ हैं जो चर्च में अपना ली गयी हैं या अनदेखी की गयी हैं। . . . क्रिसमस की अधिकतर मौज-मस्ती  प्रथाएँ रोम के सैटरनेलिया से आयी हैं।”—एनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलिजन एण्ड एथिक्स  (एडिनबरा, १९१०), जेम्स हेस्टिंग्स द्वारा संपादित, खंड ३, पृष्ठ ६०८-९.

“चौथी शताब्दी से सभी ईसाई गिरजों में क्रिसमस को दिसंबर २५ के दिन मनाया जाता है। उस समय यह ‘सूर्य के जन्म’ (लैटिन, नाताला ) नामक विधर्मी मकर-संक्रांति त्योहार की तिथि थी, क्योंकि दिन फिर से लंबे होने लगते थे तो ऐसा लगता था मानो सूर्य का फिर से जन्म हुआ है। रोम में, चर्च ने इस बहुत ही लोकप्रिय प्रथा को . . . एक नया अर्थ देकर अपना लिया।”—एनसाइक्लोपीडिया यूनिवर्सालीस,  १९६८, (फ्रांसीसी) खंड १९, पृष्ठ १३७५.

“क्रिसमस त्योहार के विकास में सोल इंविकटुस  (मिथरा) के विधर्मी उत्सवों का विषम प्रभाव हुआ। दूसरी ओर, क्योंकि दिसंबर २५ मकर-संक्रांति की तिथि थी, इसकी पहचान उस प्रकाश के साथ करायी गयी जो मसीह के द्वारा संसार में चमका और इस प्रकार सोल इंविकटुस  का प्रतीकार्थ अब मसीह पर आ गया।”—ब्रोकहाउस ऎन्टस्यूक्लोपेडी (जर्मन) खंड २०, पृष्ठ १२५.

क्रिसमस के बारे में सच्चाई जानने पर कुछ लोगों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी है? दी एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका  कहती है: “इस आधार पर कि यह [क्रिसमस] विधर्मी त्योहार है, १६४४ में अंग्रेज़ प्यूरिटनवादियों ने संसद में कानून पारित करके सभी मौज-मस्ती अथवा धार्मिक सभाएँ वर्जित करवा दीं और यह आदेश दिया कि इस दिन उपवास किया जाए। चार्ल्स द्वितीय ने उत्सव को फिर से आरंभ करवा दिया, लेकिन स्कॉट लोगों ने प्यूरिटन विचार का पालन किया।” आरंभिक मसीही क्रिसमस नहीं मनाते थे। आज यहोवा के साक्षी भी क्रिसमस नहीं मनाते और वे इससे संबंधित कामों में भी हिस्सा नहीं लेते।

लेकिन बाइबल उपहार देने या रिश्‍तेदारों और दोस्तों को अन्य अवसरों पर आनंदमय भोजन के लिए बुलाने का पक्ष लेती है। बाइबल माता-पिताओं को प्रोत्साहन देती है कि अपने बच्चों को निष्कपट रूप से उदार बनना सिखाएँ, न कि सिर्फ तब उपहार दें जब सामाजिक रूप से उसकी अपेक्षा की जाती है। (मत्ती ६:२, ३) यहोवा के साक्षियों के बच्चों को सिखाया जाता है कि सहनशील और आदरपूर्ण बनें और इसमें क्रिसमस मनाने के दूसरों के अधिकार को पहचानना शामिल है। बदले में, वे आभार मानते हैं जब क्रिसमस उत्सव में हिस्सा न लेने के उनके फैसले का आदर किया जाता है।

दूसरे उत्सव

यहोवा के साक्षी दूसरे धार्मिक या अर्ध-धार्मिक त्योहारों के बारे में भी यही रुख अपनाते हैं जो स्कूल-वर्ष के दौरान विभिन्‍न देशों में मनाये जाते हैं, जैसे ब्राज़ील में जून त्योहार, फ्रांस में इपिफनी, जर्मनी में कार्निवल, जापान में सॆट्‌सुबन और अमरीका में हैलोवीन। इनके या किसी दूसरे खास उत्सव के बारे में जिसका नाम यहाँ नहीं दिया गया है, साक्षी माता-पिता या उनके बच्चे निश्‍चित ही बड़ी प्रसन्‍नता से आपके किसी भी प्रश्‍न का उत्तर देंगे।