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अध्याय 107

शादी की दावत के लिए राजा का न्यौता

शादी की दावत के लिए राजा का न्यौता

मत्ती 22:1-14

  • शादी की दावत की मिसाल

यीशु धरती पर अब कुछ ही दिन सेवा करेगा। वह शास्त्रियों और फरीसियों की दुष्टता का परदाफाश करने के लिए एक-के-बाद-एक कई मिसालें बताता है। इसलिए वे उसे मार डालना चाहते हैं। (लूका 20:19) मगर यीशु चुप नहीं रहता। वह एक और मिसाल बताता है:

“स्वर्ग का राज एक ऐसे राजा की तरह है, जिसने अपने बेटे की शादी पर दावत रखी। उसने अपने दासों को भेजकर उन लोगों को बुलाया जिन्हें दावत का न्यौता दिया गया था। मगर वे नहीं आना चाहते थे।” (मत्ती 22:2, 3) यीशु ने मिसाल के शुरू में “स्वर्ग का राज” कहा। तो इसका मतलब, वह “राजा” यहोवा परमेश्‍वर होगा। राजा का बेटा बेशक यीशु मसीह है और दावत में बुलाए गए लोग वे हैं जो उसके साथ स्वर्ग से राज करेंगे।

किन लोगों को सबसे पहले न्यौता दिया गया? जवाब के लिए याद कीजिए कि यीशु और उसके प्रेषित काफी समय से किन लोगों को राज के बारे में प्रचार कर रहे हैं? यहूदियों को। (मत्ती 10:6, 7; 15:24) ईसा पूर्व 1513 में इसराएल राष्ट्र ने वादा किया था कि वह कानून के करार को मानेगा। सबसे पहले यहूदियों को मौका दिया गया कि उनसे याजकों का राज बने। (निर्गमन 19:5-8) और शादी की दावत में आने का न्यौता उन्हें ईसवी सन्‌ 29 से दिया गया, क्योंकि तभी से यीशु ने राज का प्रचार करना शुरू किया।

लेकिन ज़्यादातर इसराएलियों ने न्यौता ठुकरा दिया। ज़्यादातर धर्म गुरुओं और आम लोगों ने नहीं माना कि यीशु ही मसीहा और परमेश्‍वर का चुना हुआ राजा है।

यीशु बताता है कि यहूदियों को एक और मौका दिया जाएगा: “राजा ने फिर से कुछ दासों को यह कहकर भेजा, ‘जिन्हें न्यौता दिया गया है उनसे जाकर कहो, “देखो! मैं खाना तैयार कर चुका हूँ, मेरे बैल और मोटे-ताज़े जानवर हलाल किए जा चुके हैं और सबकुछ तैयार है। शादी की दावत में आ जाओ।”’ मगर उन्होंने ज़रा भी परवाह नहीं की और अपने-अपने रास्ते चल दिए, कोई अपने खेत की तरफ, तो कोई अपना कारोबार करने। और बाकियों ने उसके दासों को पकड़ लिया, उनके साथ बुरा सलूक किया और उन्हें मार डाला।” (मत्ती 22:4-6) जब मसीही मंडली शुरू हुई, तो उस वक्‍त तक यहूदियों के पास स्वर्ग के राज में जाने का मौका था। मगर ज़्यादातर ने मौका ठुकरा दिया और राजा के दासों के साथ बुरा व्यवहार किया।​—प्रेषितों 4:13-18; 7:54, 58.

यीशु बताता है कि अब इस राष्ट्र का क्या होगा: “तब राजा का गुस्सा भड़क उठा और उसने अपनी सेनाएँ भेजकर उन हत्यारों को मार डाला और उनके शहर को जलाकर राख कर दिया।” (मत्ती 22:7) यीशु ने जैसा कहा था वैसा ही हुआ। ईसवी सन्‌ 70 में रोमी लोगों ने आकर यहूदियों के शहर यरूशलेम का नाश कर दिया।

क्या इसके बाद और किसी को न्यौता नहीं दिया गया? ऐसी बात नहीं है। यीशु बताता है, “इसके बाद, उसने अपने दासों से कहा, ‘शादी की दावत तो तैयार है, मगर जिन्हें बुलाया गया था वे इसके लायक नहीं थे। इसलिए शहर की बड़ी-बड़ी सड़कों पर जाओ और वहाँ तुम्हें जो भी मिले, उसे शादी की दावत के लिए बुला लाओ।’ तब वे दास सड़कों पर गए और उन्हें जितने भी लोग मिले, चाहे अच्छे या बुरे, वे सबको ले आए। और वह भवन जहाँ शादी की रस्में होनी थीं, दावत में आए लोगों से भर गया।”​—मत्ती 22:8-10.

आगे चलकर पतरस ने गैर-यहूदियों को भी प्रचार किया जो जन्म से यहूदी नहीं थे और जिन्होंने यहूदी धर्म नहीं अपनाया था। ईसवी सन्‌ 36 में रोमी सेना-अफसर कुरनेलियुस और उसके परिवार के लोगों ने पवित्र शक्‍ति पायी। तब उनके लिए स्वर्ग के राज में जाने का रास्ता खुल गया।​—प्रेषितों 10:1, 34-48.

यीशु यह भी बताता है कि जो लोग शादी में आते हैं, उनमें से कुछ लोगों से राजा खुश नहीं होगा: “जब राजा मेहमानों का मुआयना करने अंदर आया, तो उसकी नज़र एक ऐसे आदमी पर पड़ी जिसने शादी की पोशाक नहीं पहनी थी। तब उसने उससे कहा, ‘अरे भई, तू शादी की पोशाक पहने बिना यहाँ अंदर कैसे आ गया?’ वह कोई जवाब न दे सका। तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पैर बाँधकर इसे बाहर अँधेरे में फेंक दो, जहाँ यह रोएगा और दाँत पीसेगा।’ इसलिए कि न्यौता तो बहुत लोगों को मिला है, मगर चुने गए थोड़े हैं।”​—मत्ती 22:11-14.

धर्म गुरु शायद इस मिसाल की कुछ बातों का मतलब नहीं समझ पाए होंगे। फिर भी उन्हें बहुत गुस्सा आता है और वे ठान लेते हैं कि वे यीशु को मार डालेंगे, क्योंकि वह उन्हें इतना शर्मिंदा कर रहा है।