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मैं परमेश्‍वर के निकट कैसे आऊँ?

मैं परमेश्‍वर के निकट कैसे आऊँ?

अध्याय ३९

मैं परमेश्‍वर के निकट कैसे आऊँ?

निकट—परमेश्‍वर के? बहुतों को परमेश्‍वर एक अनजान, दूर की हस्ती, एक व्यक्‍तित्वहीन ‘परम शक्‍ति’ जान पड़ता है। अतः उसके निकट होने का विचार आपको व्याकुल, यहाँ तक कि भयभीत कर सकता है।

और फिर, आपका अनुभव शायद लिन्डा नाम की एक युवती के समान हो। लिन्डा का पालन-पोषण मसीही माता-पिता ने किया और वह याद करती है: “मैंने [अपनी किशोर] आयु-भर शायद ही कभी एक मसीही सभा से नाग़ा किया, और मैं कभी एक महीना भी प्रचार गतिविधि से नहीं चूकी, फिर भी मैंने असल में कभी यहोवा के साथ एक घनिष्ठ व्यक्‍तिगत सम्बन्ध नहीं बनाया।”

लेकिन, आपका भविष्य आपके परमेश्‍वर के निकट आने पर निर्भर करता है। यीशु मसीह ने कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को . . . जानें [“का ज्ञान लें,” NW]।” (यूहन्‍ना १७:३) यह “ज्ञान” तथ्यों को सीखने या दोहराने की क्षमता से अधिक है—वह तो एक नास्तिक भी कर सकता है। इसमें परमेश्‍वर के साथ एक सम्बन्ध बनाना, उसका मित्र बनना सम्मिलित है। (याकूब २:२३ से तुलना कीजिए।) अगम्य होने के विपरीत, परमेश्‍वर हमें न्योता देता है कि ‘उसे ढूंढ़ें और पा जाएं,’ क्योंकि “वह हम में से किसी से दूर नहीं।”—प्रेरितों १७:२७.

आप परमेश्‍वर को कैसे जान सकते हैं

क्या आपने कभी दूर तारों को देखा है, गरजते समुद्र को अचरज से सुना है, प्यारी तितली से मोहित हुए हैं, या छोटी-सी पत्ती की कोमल सुन्दरता पर आश्‍चर्य किया है? परमेश्‍वर के ये सभी कार्य उसकी असीम सामर्थ, बुद्धि और प्रेम की बस एक झलक देते हैं। परमेश्‍वर के “अनदेखे गुण, अर्थात्‌ उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्‍वरत्व . . . उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं।”—रोमियों १:१९, २०.

लेकिन, परमेश्‍वर के बारे में जितना अकेले सृष्टि प्रकट कर सकती है उतना ही नहीं, आपको उससे अधिक जानने की ज़रूरत है। इसलिए परमेश्‍वर ने अपना लिखित वचन प्रदान किया है। वह पुस्तक परमेश्‍वर को किसी बेनाम हस्ती या व्यक्‍तित्वहीन शक्‍ति के रूप में नहीं, बल्कि एक वास्तविक व्यक्‍ति के रूप में प्रकट करती है, जिसका एक नाम है। “निश्‍चय जानो, कि यहोवा ही परमेश्‍वर है,” भजनहार कहता है। (भजन १००:३) बाइबल उस नाम के पीछे जो व्यक्‍ति है उसे भी प्रकट करती है: “ईश्‍वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य।” (निर्गमन ३४:६) मानवजाति के साथ परमेश्‍वर के व्यवहार के बारे में इसमें दिए गए विस्तृत वृत्तान्त से, असल में हम परमेश्‍वर को हरकत में देख पाते हैं! अतः बाइबल पढ़ना परमेश्‍वर के निकट आने का एक अनिवार्य भाग है।

बाइबल पठन को सुखद बनाना

मानते हैं कि बाइबल पढ़ने के लिए एक बड़ी पुस्तक है। अकसर इसकी मोटाई ही युवाओं को डरा देती है और वे इसे पढ़ने से पीछे हटते हैं। कुछ यह शिक़ायत भी करते हैं कि बाइबल उबाऊ है। लेकिन, बाइबल मनुष्य को परमेश्‍वर का प्रकटीकरण है। यह हमें बताती है कि हम यहाँ कैसे आए और हम कहाँ जा रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से बताती है कि हमें पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रहने के लिए क्या करना चाहिए। यह कैसे उबाऊ हो सकता है? माना, बाइबल हलका पठन नहीं है, और इसमें “कितनी बातें ऐसी हैं, जिनका समझना कठिन है।” (२ पतरस ३:१६) लेकिन बाइबल पठन को थकाऊ होने की ज़रूरत नहीं।

युवा मार्विन बाइबल पठन को ज़्यादा दिलचस्प बनाने का एक व्यावहारिक तरीक़ा बताता है, वह कहता है: “मैं घटना की कल्पना करने की कोशिश करता हूँ और अपने आपको उसमें रखता हूँ।” उदाहरण के लिए, दानिय्येल अध्याय ६ के वृत्तान्त पर विचार कीजिए। उसे निष्क्रियता से पढ़ने के बजाय, यह कल्पना करने की कोशिश कीजिए कि आप दानिय्येल हैं। आपको अपने परमेश्‍वर से प्रार्थना करने के अत्याचारपूर्ण आरोप पर गिरफ़्तार किया गया है। दण्ड? मृत्यु! फ़ारसी सैनिक बुरी तरह से आपको आपकी क़ब्र तक घसीटते हुए ले जाते हैं—भूखे शेरों से भरी एक माँद।

धीमी घरघराहट के साथ, माँद पर ढका बड़ा पत्थर लुढ़काया जाता है। वहाँ नीचे शेर ऐसे गरज उठते हैं कि रोम-रोम काँप उठे। आप दहशत से सिमट रहे हैं और राजा के सैनिक आपके ऊपर हावी होकर आपको उस मौत की खाई में ढकेल देते हैं और माँद पर फिर से पत्थर लुढ़का देते हैं। और फैले हुए अन्धियारे में, किसी के रोएँ आपसे रगड़ खाते हैं . . .

उबाऊ? बिलकुल नहीं! लेकिन याद रखिए: आप रस लेने के लिए नहीं पढ़ रहे हैं। यह समझने की कोशिश कीजिए कि यह वृत्तान्त यहोवा के बारे में क्या सिखाता है। उदाहरण के लिए, क्या दानिय्येल के अनुभव यह नहीं दर्शाते कि यहोवा अपने सेवकों को कठिन परीक्षाओं से गुज़रने देता है?

एक नियमित पठन सारणी रखने की भी कोशिश कीजिए। यदि आप दिन में बस १५ मिनट बाइबल पढ़ने में बिताएँ, तो आप शायद इसे लगभग एक साल में पूरा कर पाएँ! किसी कम महत्त्वपूर्ण कार्य से ‘समय को मोल लीजिए’—जैसे टीवी देखना। (इफिसियों ५:१६, NW) जैसे-जैसे आप बाइबल पठन में मन लगाते हैं, आप अवश्‍य ही अपने आपको पहले से कहीं अधिक परमेश्‍वर के निकट महसूस करेंगे।—नीतिवचन २:१, ५.

प्रार्थना आपको उसके निकट लाती है

लतिका नाम की एक किशोरी ने कहा: “यह कहना कठिन है कि आपका किसी के साथ सचमुच एक व्यक्‍तिगत सम्बन्ध है यदि आप उससे बात नहीं करते।” ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ होने के नाते, यहोवा हमें आमंत्रित करता है कि उससे बात करें। (भजन ६५:२) यदि हम विश्‍वास के साथ उससे प्रार्थना करते हैं, तो “यदि हम उस की इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं, तो वह हमारी सुनता है।”—१ यूहन्‍ना ५:१४.

लिन्डा (पहले उल्लिखित) ने व्यक्‍तिगत अनुभव से यह जाना। वह याद करती है कि अपने जीवन के एक मोड़ पर, जब समस्याएँ और तनाव बढ़ रहे थे, उसने ‘अपनी समस्याओं के उत्तर के लिए कई दिनों तक निरन्तर प्रार्थना की।’ परमेश्‍वर, जो पहले इतना दूर लगता था, अब उसे क़रीब लगने लगा जब उसे अपनी कठिनाइयों का सामना करने की शक्‍ति मिली। के नाम की एक और युवा ने भी इसी तरह प्रार्थना का महत्त्व जाना: “कभी-कभी आपका मन करता है कि किसी को अपने अन्दर की भावनाएँ बताएँ, और उन्हें बताने के लिए यहोवा से बेहतर कोई नहीं क्योंकि यहोवा समझता है, और आप जानते हैं कि एकमात्र वही है जो असल में आपकी मदद कर सकता है।”

लेकिन क्या प्रार्थना बस भावात्मक राहत देती है? जी नहीं, याकूब १:२-५ हमें आश्‍वासन देता है कि तरह-तरह की परीक्षाओं का सामना करते समय, हमें चाहिए कि “परमेश्‍वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी।” परमेश्‍वर शायद परीक्षा से बचाव न दे, लेकिन वह हमें उस परीक्षा से निपटने की बुद्धि की गारंटी देता है! वह शायद आपको वे बाइबल सिद्धान्त याद दिलाए जो उस विषय से सम्बन्धित हैं। (यूहन्‍ना १४:२६ से तुलना कीजिए।) या वह शायद यह निश्‍चित करे कि बाइबल का अपना व्यक्‍तिगत अध्ययन करते समय या मसीही सभाओं में, आपका ध्यान अमुक विषयों पर जाए। और मत भूलिए कि “वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, बरन . . . निकास भी करेगा।” जी हाँ, वह आपको ‘त्यागेगा’ नहीं। (१ कुरिन्थियों १०:१३; २ कुरिन्थियों ४:९) एक परीक्षा से निपटने में उसकी मदद पाने के बाद, क्या आप परमेश्‍वर के और निकट नहीं महसूस करेंगे?

लेकिन केवल व्यक्‍तिगत समस्याओं के बारे में प्रार्थना मत कीजिए। अपनी आदर्श प्रार्थना में, यीशु ने मुख्य महत्त्व यहोवा के नाम के पवित्रीकरण, उसके राज्य के आगमन, और परमेश्‍वर की इच्छा की पूर्ति को दिया। (मत्ती ६:९-१३) ‘बिनती के साथ-साथ धन्यवाद’ भी प्रार्थना का एक अत्यावश्‍यक तत्व है।—फिलिप्पियों ४:६.

तब क्या यदि आपको प्रार्थना अजीब लगती है? उसके बारे में प्रार्थना कीजिए! परमेश्‍वर से कहिए कि आपको उसके सामने अपना हृदय खोलने में मदद दे। “प्रार्थना में नित्य लगे रहो,” और कुछ समय बाद आप पाएँगे कि आप यहोवा के साथ उतना ही खुलकर बात कर सकते हैं जितना कि आप एक घनिष्ठ मित्र के साथ करते हैं। (रोमियों १२:१२) “मैं जानती हूँ कि जब भी मुझे कोई समस्या होती है,” युवा मारिया कहती है, “मैं मार्गदर्शन के लिए यहोवा की ओर मुड़ सकती हूँ और वह मेरी मदद करेगा।”

परमेश्‍वर से अलंकृत या आडंबरी भाषा में बोलने की आवश्‍यकता नहीं। “उस से अपने अपने मन की बातें खोलकर कहो,” भजनहार ने कहा। (भजन ६२:८) उसे अपनी भावनाएँ, अपनी चिन्ताएँ बताइए। अपनी कमज़ोरियों से निपटने में उसकी मदद माँगिए। अपने परिवार और संगी मसीहियों पर उसकी आशिष के लिए प्रार्थना कीजिए। जब आप भूल करते हैं तो उसकी क्षमा की भीख माँगिए। जीवन की देन के लिए हर दिन उसका धन्यवाद कीजिए। जब प्रार्थना आपके जीवन का एक सामान्य भाग बन जाती है तब यह आपको यहोवा परमेश्‍वर के साथ एक निकट और सुखद सम्बन्ध में ला सकती है।

परमेश्‍वर के साथ अपनी मित्रता की जन घोषणा करना

क्योंकि आप परमेश्‍वर के साथ मित्रता का आनन्द लेने लगे हैं, तो क्या अब आपको दूसरों की मदद करने के लिए उत्सुक नहीं होना चाहिए कि वे भी वह अनमोल सम्बन्ध बना सकें? असल में, जो परमेश्‍वर के मित्र होना चाहते हैं उनके लिए यह एक माँग है कि वे “उद्धार के लिए जन घोषणा” करें।—रोमियों १०:१०, NW.

अनेक लोग अनौपचारिक रूप से अपना विश्‍वास बाँटने के द्वारा शुरूआत करते हैं। वे इस विषय पर स्कूल-साथियों, पड़ोसियों, और रिश्‍तेदारों से बात करते हैं। बाद में, वे “घर घर” प्रचार करने के यहोवा के साक्षियों के कार्य में उनके साथ हो लेते हैं। (प्रेरितों ५:४२) लेकिन, कुछ युवाओं के लिए यह जन कार्य एक रोड़ा होता है। “मेरे विचार से बहुत से युवाओं को घर-घर जाने में शर्म आती है,” एक युवा मसीही कहता है। “उन्हें डर होता है कि उनके मित्र क्या सोचेंगे।”

लेकिन आप असल में किसकी स्वीकृति को महत्त्व देते हैं—अपने समकक्षों की या अपने स्वर्गीय मित्र, यहोवा की? क्या आपको डर या शर्म को आपके उद्धार पाने में रुकावट बनने देना चाहिए? “अपनी आशा के अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहें,” प्रेरित पौलुस आग्रह करता है। (इब्रानियों १०:२३) और आप पाएँगे कि पर्याप्त प्रशिक्षण और तैयारी के साथ, आपको प्रचार कार्य में असली आनन्द आने लग सकता है!—१ पतरस ३:१५.

कुछ समय बाद अपने स्वर्गीय मित्र के लिए अपने मूल्यांकन द्वारा आपको प्रेरित होना चाहिए कि परमेश्‍वर को बिना शर्त समर्पण करें और उसे पानी में बपतिस्मा लेने के द्वारा चिन्हित करें। (रोमियों १२:१; मत्ती २८:१९, २०) मसीह का एक बपतिस्मा-प्राप्त शिष्य बनने के लिए जन घोषणा करना कोई ऐसी बात नहीं जिसे हलका समझा जाना चाहिए। इसमें ‘अपने आप से इन्कार करना’ सम्मिलित है—व्यक्‍तिगत महत्त्वकांक्षाओं को एक किनारे कर यहोवा परमेश्‍वर के हितों को पहले खोजना। (मरकुस ८:३४) इसमें यह भी सम्मिलित है कि अपनी पहचान यहोवा के साक्षियों के विश्‍वव्यापी संगठन के साथ कराएँ।

“मेरे विचार से बहुत से युवा बपतिस्मा लेने से हिचकिचाते हैं,” रॉबर्ट नाम के एक युवा ने कहा। “उन्हें डर होता है कि यह आख़िरी क़दम है जिसके बाद वे पीछे नहीं हट सकते।” सच है, एक व्यक्‍ति परमेश्‍वर को समर्पण करके पीछे नहीं हट सकता। (सभोपदेशक ५:४ से तुलना कीजिए।) लेकिन “जो कोई भलाई करना जानता है और नहीं करता, उसके लिये यह पाप है”—चाहे वह बपतिस्मा-प्राप्त हो या बपतिस्मा-रहित! (याकूब ४:१७) मूल-विषय है, क्या आप परमेश्‍वर की मित्रता का मूल्यांकन करते हैं? क्या आपके अन्दर यह चाह है कि सर्वदा उसकी सेवा करें? तो आप अपने आपको परमेश्‍वर का मित्र कहकर बताने में डर को आड़े मत आने दीजिए!

परमेश्‍वर के मित्रों के लिए सनातन लाभ!

परमेश्‍वर की मित्रता चुनना आपको पूरे संसार के विरोध में कर देगा। (यूहन्‍ना १५:१९) आप उपहास का पात्र बन सकते हैं। कठिनाइयाँ, समस्याएँ, और परीक्षाएँ आपके ऊपर हमला बोल सकती हैं। लेकिन किसी व्यक्‍ति या वस्तु को परमेश्‍वर के साथ अपने सम्बन्ध से आपको वंचित मत करने दीजिए। वह यह कहते हुए अपने अचूक सहारे की प्रतिज्ञा करता है: “मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, और न कभी त्यागूंगा।”—इब्रानियों १३:५.

आपके सनातन हित में यहोवा और उसके संगठन को जो दिलचस्पी है यह पुस्तक उसका एक प्रमाण ही तो है। और जबकि इन पृष्ठों में आपके सभी प्रश्‍नों और समस्याओं को सम्बोधित करना संभव नहीं हुआ है, निश्‍चित ही आप इस बात को पहले से कहीं अधिक समझ पाए हैं कि बाइबल बुद्धि का क्या ही असीम स्रोत है! (२ तीमुथियुस ३:१६, १७) जब समस्याएँ आपको उलझन में डालती हैं, तब इस पवित्र पुस्तक में छानबीन कीजिए। (नीतिवचन २:४, ५) यदि आपके माता-पिता परमेश्‍वर का भय माननेवाले लोग हैं, तो आपके पास आध्यात्मिक बुद्धि और सहारे का एक और स्रोत है—यदि आप उनके सामने अपना हृदय खोलेंगे।

सबसे बढ़कर, याद रखिए कि यहोवा परमेश्‍वर के पास सारे उत्तर हैं। वह “संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक” है, और वह किसी भी कठिनाई में आपको मार्गदर्शन देकर पार लगवा सकता है। (भजन ४६:१) सो, ‘अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रखिए।’ (सभोपदेशक १२:१) यही मार्ग यहोवा के हृदय को आनन्दित करेगा। (नीतिवचन २७:११) और यही रास्ता है सदा-बहार परादीस में सनातन जीवन पाने का—वह प्रतिफल जो परमेश्‍वर ने अपने मित्रों के लिए रखा है।

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ यह क्यों महत्त्वपूर्ण है कि आप परमेश्‍वर के साथ एक निकट सम्बन्ध रखें?

◻ परमेश्‍वर के बारे में बाइबल क्या प्रकट करती है?

◻ आप बाइबल पठन को सुखद और फलदायी कैसे बना सकते हैं?

◻ अपने विश्‍वास की “जन घोषणा” करने में क्या सम्मिलित है? क्या आप ऐसा करने के लिए प्रेरित हुए हैं? क्यों?

◻ परमेश्‍वर के निकट आने में सभाएँ क्या भूमिका निभाती हैं, और आप उनका भरसक लाभ कैसे उठा सकते हैं?

◻ परमेश्‍वर के मित्र होने के क्या लाभ हैं?

[पेज 311 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

क्या मेरे लिए परमेश्‍वर के निकट आना सचमुच संभव है?

[पेज 312 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

बाइबल मनुष्य को परमेश्‍वर का प्रकटीकरण है। यह हमें बताती है कि हम यहाँ कैसे आए और हम कहाँ जा रहे हैं

[पेज 316 पर बक्स/तसवीर]

सभाएँ—परमेश्‍वर के निकट आने का एक साधन

“मैंने पाया है कि यहोवा से प्रेम करनेवालों के साथ निकट संगति मुझे उसके निकट रहने में मदद देती है।” ऐसा नाइजीरिया की एक युवा ने कहा। यहोवा के साक्षी अपने राज्यगृहों में संगति के ऐसे अवसरों का प्रबन्ध करते हैं। (इब्रानियों १०:२३-२५) १६-वर्षीय अनीता ने कहा: “राज्यगृह में, मैंने सच्चे मित्र पाए।”

लेकिन, ऐसे समूहन मात्र सामाजिक कार्यक्रम नहीं होते। राज्यगृहों में बाइबल शिक्षा का एक कोर्स प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें पाँच साप्ताहिक सभाएँ होती हैं। इसमें अलग-अलग तरह के विषय होते हैं: पारिवारिक जीवन, बाइबल भविष्यवाणी, चालचलन, धर्म-सिद्धान्त, और मसीही सेवकाई इनमें से कुछ हैं। जबकि ऐसी सभाएँ भव्य मंच प्रस्तुति नहीं होतीं, फिर भी ये रुचिकर ढंग से प्रस्तुत की जाती हैं। भाषणों और सामूहिक चर्चाओं के बीच अकसर इंटरव्यू और रोचक प्रदर्शन आते हैं। ईश्‍वरशासित सेवकाई स्कूल ख़ासकर उल्लेखनीय है क्योंकि इसने हज़ारों को प्रभावकारी जन वक्‍ता बनने के लिए प्रशिक्षित किया है।

तब क्या यदि आप पहले ही सभाओं में उपस्थित हो रहे हैं? उनसे और लाभ उठाने की कोशिश कीजिए। (१) तैयारी करें: “जो पुस्तकें हम सभाओं में प्रयोग करते हैं उनका अध्ययन करने के लिए मैंने नियत समय अलग रखा है,” अनीता कहती है। यह आपके लिए आसान बनाएगा कि (२) भाग लें: युवावस्था में यीशु ने ध्यान से सुना, प्रश्‍न पूछे, और जब मंदिर में आध्यात्मिक बातों पर चर्चा हुई तब उत्तर दिए। (लूका २:४६, ४७) आपको भी चाहिए कि “जो कुछ [आपने] सुना है, उस पर और अधिक गहराई से ध्यान दें,” अपने मन को लीक पर रखने के लिए नोट्‌स ले सकते हैं। (इब्रानियों २:१, NHT) जब श्रोताओं से भाग लेने को कहा जाता है तब आप भी टिप्पणी कीजिए।

एक और सहायक सुझाव है (३) सीखी हुई बातों का प्रयोग करें: जो बातें आप सीखते हैं उन्हें दूसरों को बताइए। उससे भी महत्त्वपूर्ण, जो आप सीखते हैं उसे अपने जीवन में लागू कीजिए, जहाँ ज़रूरी हो बदलाव कीजिए। दिखाइए कि सत्य ‘आप में प्रभावशाली है।’—१ थिस्सलुनीकियों २:१३.

सभाओं को प्रमुखता दें। यदि आपको बहुत ही ज़्यादा गृह-कार्य मिला है, तो उसे सभा से पहले करने की कोशिश कीजिए। “मुझे सभाओं के बाद बातचीत करना और आख़िर तक रुकना बहुत पसन्द है,” सिमियन नाम का एक युवा कहता है। “लेकिन जब मेरे पास स्कूल का काम होता है, तब मैं उसे करने के लिए सभा छूटते ही चला जाता हूँ।” फिर भी आप कोई हल निकालिए, नियमित रूप से सभाओं में आने के लिए आप जो कर सकते हैं कीजिए। वे आपकी आध्यात्मिक वृद्धि के लिए अत्यावश्‍यक हैं।

[पेज 315 पर तसवीर]

परमेश्‍वर के साथ मित्रता करने के लिए बाइबल पढ़ना अनिवार्य है

[पेज 318 पर तसवीर]

“मैं जानती हूँ कि जब भी मुझे कोई समस्या होती है तब मैं मार्गदर्शन के लिए यहोवा की ओर मुड़ सकती हूँ और वह मेरी मदद करेगा”