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क्या मेरे कपड़े मेरा असली रूप प्रकट करते हैं?

क्या मेरे कपड़े मेरा असली रूप प्रकट करते हैं?

अध्याय ११

क्या मेरे कपड़े मेरा असली रूप प्रकट करते हैं?

“यह बहुत छोटा नहीं है,” पॆगी ने अपने माता-पिता से खिसियाकर कहा। “आप तो बस पुराने रिवाज़वाले बन रहे हैं!” वह भागकर अपने कमरे में चली गयी—जो स्कर्ट वह पहनना चाहती थी उसे लेकर हुए झगड़े का महा समापन। और संभवतः आप इससे मिलते-जुलते विवाद का केंद्र रहे हों जब एक जनक, शिक्षक, या मालिक ने आपकी पसन्द के किसी कपड़े में नुक़्स निकाला हो। आपने उसे साधारण कहा; उन्होंने उसे बेढंगा कहा। आपने उसे मस्त कहा; उन्होंने उसे भड़कीला या उत्तेजक कहा।

माना, पसन्द अलग-अलग होती है, और आपके पास अपनी राय रखने का अधिकार है। लेकिन क्या इसका यह अर्थ होना चाहिए कि जब आपके पहनावे की बात आती है तब ‘कुछ भी चलता है’?

सही संदेश?

“जो आप पहनते हैं,” पम्मी नाम की एक लड़की कहती है, “असल में आप वही हैं और अपने बारे में वैसा ही महसूस करते हैं।” जी हाँ, पहनावा दूसरों को आपके बारे में एक संदेश, एक टिप्पणी भेजता है। पहनावा फुसफुसाकर कह सकता है कर्तव्यनिष्ठा, स्थिरता, उच्च नैतिक स्तर। या वह विद्रोह और असंतोष की चीख लगा सकता है। वह एक क़िस्म की पहचान का भी काम कर सकता है। कुछ युवा एक तरह की छाप बनाने के लिए फटे हुए, पंक स्टाइल के, या महँगे डिज़ाइनर कपड़े पहनते हैं। दूसरे ऐसे कपड़े पहनते हैं जो विपरीत लिंग को आकर्षित करें या जो उन्हें अपनी उम्र से बड़ा दिखाएँ।

अतः यह देखना आसान है कि क्यों पहनावा अनेक युवाओं के लिए इतना महत्त्वपूर्ण है। लेकिन, ड्रॆस फ़ॉर सक्सॆस (अंग्रेज़ी) का लेखक, जॉन टी. मोलॉए चिताता है: “हमारे पहनावे का उन लोगों पर ख़ास असर होता है जिनसे हम मिलते हैं और यह हमारे साथ उनके व्यवहार को बहुत प्रभावित करता है।”

कोई आश्‍चर्य नहीं कि आपके माता-पिता आपके पहनावे के बारे में इतनी चिन्ता करते हैं! उनके लिए यह मात्र व्यक्‍तिगत पसन्द की बात नहीं। वे चाहते हैं कि आप सही संदेश भेजें, वह जो आपको एक संतुलित, ज़िम्मेदार व्यक्‍ति के रूप में प्रस्तुत करता है। लेकिन, क्या आपका पहनावा यह लक्ष्य पूरा करता है? आप किस हिसाब से कपड़े चुनते हैं?

“मैं अपनी सहेलियों की देखा-देखी करती हूँ”

अनेक युवाओं के लिए, पहनावा उनकी स्वतंत्रता और व्यक्‍तिकता की एक टिप्पणी है। लेकिन युवा होने के नाते, आपका व्यक्‍तित्व अभी भी चंचलता की अवस्था में है—अभी भी विकसित हो रहा है, अभी भी बदल रहा है। सो जबकि आप अपने बारे में एक टिप्पणी करना चाहते हैं, आप शायद बहुत निश्‍चित न हों कि उस टिप्पणी में क्या होना चाहिए या उसे कैसे कहा जाना चाहिए। अतः कुछ युवा ऊटपटांग, बेढंगी पोशाक पहनते हैं। लेकिन, अपनी ‘व्यक्‍तिकता’ स्थापित करने के बजाय, वे बस अपने अनाड़ीपन की ओर ध्यान आकर्षित कर रहे होते हैं—अपने माता-पिता को लज्जित करने की बात अलग रही।

दूसरे युवा अपने समकक्षों के जैसे कपड़े पहनने का चुनाव करते हैं; लगता है कि यह उन्हें सुरक्षा और एक गुट के साथ पहचान का भाव देता है। निश्‍चित ही, ज़रूरी नहीं कि लोगों के रंग में रंग जाने की चाह ग़लत हो। (१ कुरिन्थियों ९:२२ से तुलना कीजिए।) लेकिन क्या असल में एक मसीही अविश्‍वासी युवाओं के साथ पहचाना जाना चाहेगा? और क्या किसी भी क़ीमत पर समकक्ष स्वीकृति चाहना बुद्धिमानी की बात है? एक युवा लड़की ने स्वीकार किया: “मैं अपनी सहेलियों की देखा-देखी करती हूँ सिर्फ़ इसलिए कि वे कुछ न कहें।” लेकिन उसे क्या कहते हैं जो किसी दूसरे के इशारों पर नाचता है, जो किसी और की मर्ज़ी पर चलता है? बाइबल उत्तर देती है: ‘क्या तुम नहीं जानते कि किसी की आज्ञा मानने के लिये तुम अपने आप को सौंप देते हो, तो जिसकी आज्ञा मानते हो उसी के दास बन जाते हो?’—रोमियों ६:१६, NHT.

युवाओं के बीच “अनुपालन पर इतना अधिक बल दिया जा सकता है कि लगता है मानो गुट सदस्य गुट आदर्शों के क़ैदी हैं, क्या पहनना है, कैसे बात करनी है, क्या करना है, और यहाँ तक कि क्या सोचना और मानना है इस पर सलाह के लिए वे उन पर [अपने समकक्षों पर] निर्भर करते हैं।”—किशोरावस्था: बचपन से प्रौढ़ता में बदलाव (अंग्रेज़ी)।

लेकिन ऐसी सलाह देने के लिए आपके मित्र कितने योग्य हैं? (मत्ती १५:१४ से तुलना कीजिए।) क्या आपकी तरह उन्हें भी भावात्मक विकास-जनित पीड़ाएँ नहीं हो रहीं? तो फिर, क्या यह बुद्धिमानी की बात है कि दब्बू बनकर उन्हें आपके स्तर स्थापित करने दें—तब भी जब वे आपकी सहज बुद्धि या आपके माता-पिता के मूल्यों और इच्छा के विरुद्ध हैं?

आज “आया”—कल “गया”

दूसरे युवा फ़ैशन की हवा के हिसाब से चलते हैं। लेकिन ये हवाएँ कितनी तरंगी होती हैं! हमें बाइबल के शब्द याद आते हैं: “इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं।” (१ कुरिन्थियों ७:३१) इसलिए जो आज “आया” है वह कल देखते ही देखते, एकाएक (महँगा होने की बात अलग है) पुराना पड़ सकता है। कुरते कभी तंग कभी ढीले होते हैं, पैंट के पायँचे कभी छोटे कभी बड़े होते हैं, यह सब निर्माताओं और कपड़े डिज़ाइन करनेवालों के हित के लिए होता है, जो आसानी से बहकायी गयी जनता से ख़ूब कमाते हैं।

उदाहरण के लिए, कुछ साल पहले की डिज़ाइनर-जीन सनक पर विचार कीजिए। जीनस्‌ अचानक हाई फ़ैशन बन गयी। लोगों ने कॆल्विन क्लाइन और ग्लोरिया वैन्डरबिल्ट जैसे नाम के चलते-फिरते पोस्टर बनने के लिए मुँहमाँगी क़ीमत दी। “लोग नाम चाहते हैं,” “सरजियो वैलॆन्टे” जीनस्‌ बनानेवाली कंपनी के अध्यक्ष, इलाई कैपलॆन ने समझाया। लेकिन, यह श्री. वैलॆन्टे है कौन, जिसका विख्यात नाम जीनस्‌ की जेबों पर इतना साफ़-साफ़ लिखा होता है? “वह है ही नहीं,” न्यूज़वीक (अंग्रेज़ी) ने रिपोर्ट किया। और व्याख्या में स्वयं कैपलॆन ने पूछा: “इलाई कैपलॆन जीनस्‌ कौन ख़रीदनेवाला था?”

‘लेकिन क्या स्टाइल में रहना ग़लत है?’ आप शायद पूछें। ज़रूरी नहीं। बाइबल समय में परमेश्‍वर के सेवकों ने स्थानीय प्रथा के अनुसार कपड़े पहने। उदाहरण के लिए, बाइबल कहती है कि तामार ने धारियोंवाली कुर्ती पहनी, क्योंकि उन दिनों में “जो राजकुमारियां कुंवारी रहती थीं वे ऐसे ही वस्त्र पहिनती थीं।”—२ शमूएल १३:१८.

लेकिन क्या व्यक्‍ति को स्टाइल का दास बनना चाहिए? एक युवा लड़की ने शोक मनाया: “आप एक दुकान में एक बढ़िया पैंट देखती हैं जो बाक़ी सब के पास है और आप कहती हैं, ‘मम्मी, मुझे यह पैंट दिला दीजिए,’ और वह कहती हैं, ‘नहीं, यह तो मैं घर पर बना दूँगी।’ मैं कहती हूँ, ‘लेकिन आप समझती नहीं। मुझे यह पैंट चाहिए।’” लेकिन, सचमुच, क्या आपका फ़ैशन डिज़ाइनरों की कठपुतली बनना आपसे आपकी व्यक्‍तिकता छीनकर आपके असली रूप को धुँधला नहीं कर देता? आप उत्तेजक विज्ञापनों, नारों, और डिज़ाइनर नामों के वश में क्यों आएँ?

बाइबल हमें रोमियों १२:२ में बताती है: “इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्‍वर की भली और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।” जब आपके कपड़े पसन्द करने की बात आती है तब ‘परमेश्‍वर की भावती इच्छा’ क्या है?

‘शालीन और उचित’

पहला तीमुथियुस २:९ (NHT) मसीहियों को प्रोत्साहित करता है कि “शालीनता और सादगी के साथ उचित वस्त्रों से अपने आप को सुसज्जित करें।” स्वाभाविक है कि ‘उचित वस्त्र’ साफ़-सुथरे होंगे। “शालीनता” परिस्थितियों को ध्यान में रखती है। अच्छी तरह सिला सूट शायद काम पर उपयुक्‍त हो, लेकिन समुद्र किनारे वह अजीब लगता है! वैसे ही, स्नान-वस्त्र को दफ़्तर में हास्यप्रद समझा जाएगा।

अतः यहोवा के युवा साक्षी ध्यान रखेंगे कि मसीही सभाओं में या दूसरों को प्रचार करने के कार्य में उनका पहनावा बहुत ही अनौपचारिक न हो बल्कि उनकी पहचान परमेश्‍वर के युवा सेवकों के रूप में कराए। दूसरा कुरिन्थियों ६:३, ४ में पौलुस के शब्दों को याद कीजिए: “हम किसी बात में ठोकर खाने का कोई भी अवसर नहीं देते, कि हमारी सेवा पर कोई दोष न आए। परन्तु हर बात से परमेश्‍वर के सेवकों की नाईं अपने सद्‌गुणों को प्रगट करते हैं।”

शालीनता दूसरों की भावनाओं का भी ध्यान रखती है। जैसे प्रेरित पौलुस ने कहा, एक मसीही के कार्यों को न केवल अपने अंतःकरण का “परन्तु दूसरे का” भी ध्यान रखना चाहिए। (१ कुरिन्थियों १०:२९) क्या आपको ख़ासकर अपने माता-पिता के अंतःकरण के बारे में चिन्तित नहीं होना चाहिए?

उचित वस्त्र पहनने के लाभ

बाइबल एक समय के बारे में बताती है जब रानी एस्तेर को अपने पति, राजा के सामने जाने की ज़रूरत थी। लेकिन, इस प्रकार बिन बुलाए जाने की सज़ा मौत हो सकती थी! निःसंदेह एस्तेर ने तन-मन से परमेश्‍वर की मदद के लिए प्रार्थना की। लेकिन “राजसी वस्त्र पहिनकर”—अवसर के लिए उपयुक्‍त ढंग से तैयार होकर—उसने अपने स्वरूप पर भी ध्यान दिया! और ‘जब राजा ने एस्तेर रानी को आंगन में खड़ी हुई देखा, तब उस से प्रसन्‍न हुआ।’—एस्तेर ५:१, २.

आपका आकर्षक परन्तु शालीन ढंग से कपड़े पहनना आपको एक नौकरी के इंटरव्यू में अच्छा प्रभाव छोड़ने में मदद दे सकता है। जीविका विकास केंद्र की अध्यक्ष, विकी एल. बॉम कहती है: “कुछ स्त्रियाँ गड़बड़ा जाती हैं जब वे किसी इंटरव्यू के लिए जाती हैं। वे सोचती हैं कि डेटिंग पर जा रही हैं, और विमोहक दिखती हैं।” परिणाम? “यह आपमें व्यवसायिक-स्तर की कमी दिखाता है।” वह सलाह देती है कि “जो चीज़ें तंग या उत्तेजक हैं” उन्हें न पहनें।

नौकरी ढूँढते समय युवकों को भी उचित वस्त्र पहनने का यत्न करना चाहिए। जॉन टी. मोलॉए कहता है कि व्यवसायी “अपने बाल बनाते और जूते चमकाते हैं। और वे दूसरे पुरुषों से इसी की अपेक्षा करते हैं।”

लेकिन, निर्लज्ज पोशाक दूसरों के साथ आपका सम्बन्ध बिगाड़ सकती है। साइकॉलोजी टुडे (अंग्रेज़ी) ने किशोरों के बीच किए गए एक सर्वेक्षण का उल्लेख किया जिसने दिखाया कि “बड़े गले के ब्लाउज़, शॉट्‌र्स, तंग जीनस्‌ [पहनना], या बिना ब्रा” के होना पुरुषों द्वारा लैंगिक आमंत्रण समझा जा सकता है। एक युवक ने स्वीकार किया: “जब मैं देखता हूँ कि वे कैसे कपड़े पहनती हैं, तब व्यक्‍तिगत रूप से मुझे युवतियों के बारे में एकदम शुद्ध विचार रखना काफ़ी कठिन लगता है।” शालीन पोशाक लोगों को आपके भीतरी गुणों का मूल्यांकन करने में समर्थ करती है। यदि आप निश्‍चित नहीं कि अमुक वस्त्र शालीन है या नहीं, तो अपने माता-पिता से सलाह लीजिए।

“भीतरी मनुष्यत्व” को संवारना

प्रेरित पतरस ने मसीहियों को प्रोत्साहित किया कि उनका “छिपा हुआ और गुप्त मनुष्यत्व, नम्रता और मन की दीनता की अविनाशी सजावट से सुसज्जित रहे, क्योंकि परमेश्‍वर की दृष्टि में इसका मूल्य बड़ा है”—जी हाँ, दूसरों की दृष्टि में भी! (१ पतरस ३:४) फ़ैशनेबल ड्रॆस आपके कुछ समकक्षों को चकाचौंध कर सकती है। लेकिन कपड़े दिल नहीं जीतते या सच्चे मित्र नहीं बनाते। यह “भीतरी मनुष्यत्व” को संवारने—जो मनुष्य आप अन्दर से हैं उसे सुधारने—से प्राप्त होता है। (२ कुरिन्थियों ४:१६) एक व्यक्‍ति जो अन्दर से सुन्दर है हमेशा दूसरों को आकर्षक लगेगा, चाहे उसके कपड़े सबसे नए स्टाइल के न भी हों या उन पर बेतुके डिज़ाइनर नमूने न “गुदे” हों।

कौन जाने आगे कौन-सी सनक युवाओं को दुकानों में दौड़ाती हुई ले जाए। लेकिन, आप अपने लिए सोच सकते हैं। पहनावे के उच्च स्तर रखिए। सनकी पोशाक और कपड़ों से दूर रहिए जो लैंगिकता पर ध्यान खींचते हैं। थोड़े संकोची ही रहिए, फ़ैशन के रथ पर सवार होनेवाले पहले व्यक्‍ति मत होइए—ज़रूरी नहीं कि आख़िरी हों। अच्छे क़िस्म के कपड़े ढूँढिए जो चलेंगे—जिनका फ़ैशन जल्दी से जाएगा नहीं। निश्‍चित कीजिए कि आपके कपड़े सही संदेश भेजते हैं, संचार-माध्यम या समकक्षों द्वारा गढ़ी गयी कोई छवि नहीं, परन्तु आपका असली रूप दिखाते हैं!

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ कपड़े एक संदेश कैसे भेजते हैं?

◻ अपने कपड़े पसन्द करने में कुछ युवाओं का झुकाव अजीब चीज़ों की तरफ़ क्यों होता है?

◻ जब कपड़े पसन्द करने की बात आती है तब आप अपने समकक्षों से कितना प्रभावित होते हैं?

◻ हमेशा स्टाइल में रहने की कोशिश करने के कुछ नुक़सान क्या हैं?

◻ कौन-सी बात निर्धारित करती है कि अमुक स्टाइल ‘शालीन और उचित’ है या नहीं?

[पेज 94 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“जो आप पहनते हैं असल में आप वही हैं और अपने बारे में वैसा ही महसूस करते हैं”

[पेज 91 पर तसवीर]

माता-पिता अकसर अपने बच्चों से उनके पहनावे को लेकर भिड़ते हैं। क्या माता-पिता बस पुराने रिवाज़ वाले बन रहे हैं?

[पेज 92 पर तसवीर]

अनेक युवा ऊटपटांग पोशाक द्वारा अपनी व्यक्‍तिकता दिखाने की कोशिश करते हैं

[पेज 93 पर तसवीर]

परिस्थिति के अनुसार उपयुक्‍त ढंग से कपड़े पहनिए। पहनावा आपके बारे में एक संदेश भेजता है!