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मैं असली मित्र कैसे बनाऊँ?

मैं असली मित्र कैसे बनाऊँ?

अध्याय ८

मैं असली मित्र कैसे बनाऊँ?

“मैं आठ साल से इस क्षेत्र में स्कूल जा रहा हूँ, लेकिन अब तक मैं एक मित्र नहीं बना पाया! एक भी नहीं।” रॉनी नाम के एक युवा ने इस तरह शोक प्रकट किया। और संभवतः समय-समय पर आपको भी मित्रता करने में इसी तरह निराशा हाथ आयी हो। लेकिन असली मित्र होते क्या हैं? और उन्हें बनाने का रहस्य क्या है?

एक नीतिवचन कहता है: “मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।” (नीतिवचन १७:१७) लेकिन मित्रता में दुःख में सहारा बनने से अधिक सम्मिलित है। मालिनी नाम की एक युवती कहती है: “कभी-कभी एक नाम-भर की सहेली आपको मुसीबत में पड़ते देखेगी और फिर कहेगी, ‘मैंने तुम्हें उस ओर जाते देखा था, लेकिन मैं तुम्हें बताने से डरती थी।’ लेकिन जब एक असली सहेली आपको ग़लत रास्ते पर जाते देखती है, वह आपको चिताने की कोशिश करेगी इससे पहले कि बहुत देर हो जाए—चाहे उसे यह पता भी हो कि शायद आप उसकी बात पसन्द न करें।”

जिस व्यक्‍ति ने आपकी इतनी परवाह की है कि आपको सच बताया है, क्या आप इसलिए उसको ठुकरा देंगे कि आपके अहम्‌ को चोट पहुँची है? नीतिवचन २७:६ कहता है: “मित्र से लगे घाव में बैरी के ढेरों चुम्बनों से अधिक भरोसा रखा जा सकता है।” (बाइंगटन) अतः एक व्यक्‍ति जो सीधा सोचता और सीधा बोलता है वह उस क़िस्म का व्यक्‍ति है जिसे आपको मित्र बनाना चाहिए।

नक़ली बनाम असली मित्र

“मेरा जीवन इसका सबूत है कि सभी ‘मित्र’ आपके गुणों को नहीं उभारते,” २३-वर्षीय पॆगी कहती है। जब वह किशोरी थी तब पॆगी को घर छोड़ने पर मजबूर किया गया। लेकिन, बिल और उसकी पत्नी लॉए नाम के दो यहोवा के साक्षियों ने उससे मित्रता की। उन्होंने पॆगी के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया। “जो महीने मैंने उनके साथ बिताए वे सच्चे आनन्द, संतोष, और शान्ति से भरे थे,” पॆगी ने कहा। फिर भी, उसने कुछ युवाओं के साथ रहने का चुनाव किया जिनसे उसकी मुलाक़ात हुई थी—और बिल और लॉए को छोड़ दिया।

पॆगी आगे बताती है: “मैंने अपने नए ‘मित्रों’ से कई बातें सीखीं—स्टीरियो चुराना, नक़ली चॆक चलाना, चरस पीना, और अंततः $२००-प्रति-दिन की नशे की लत का ख़र्च पूरा करना।” १८ साल की उम्र में उसकी मुलाक़ात रॉकी नाम के एक युवक से हुई जिसने उसे जितने चाहिए उतने नशीले पदार्थ देने का प्रस्ताव रखा—मुफ़्त। “मैंने सोचा मेरी सारी मुश्‍किलें दूर हो गयीं। मुझे फिर कभी चोरी और बेईमानी नहीं करनी पड़ेगी,” पॆगी ने सोचा। लेकिन, रॉकी ने उसे वेश्‍यावृत्ति में लगा दिया। आख़िरकार पॆगी उस शहर और अपने तेज़-रफ़्तार “मित्रों” से दूर भाग गयी।

उसके नए स्थान पर, एक दिन दो यहोवा के साक्षियों ने पॆगी से भेंट की। “दोनों स्त्रियाँ चौंक गयीं जब मैंने उन्हें गले लगाया और मेरी आँखों से ख़ुशी के आँसू बहने लगे,” पॆगी ने बताया। “मैं अपने पिछले ‘मित्रों’ के पाखण्ड से घृणा करने लगी थी, लेकिन यहाँ वे लोग थे जो सच्चे थे।” पॆगी ने अपना बाइबल अध्ययन फिर से शुरू कर दिया।

लेकिन, अपने जीवन को परमेश्‍वर के मार्गों के अनुरूप करना आसान नहीं था। धूम्रपान छोड़ना ख़ासकर कठिन था। लेकिन, एक साक्षी मित्र ने सलाह दी: “चूकने के बाद प्रार्थना करने और क्षमा माँगने के बजाय, क्यों न पहले प्रार्थना करें और शक्‍ति माँगें जब आपको धूम्रपान करने की हुड़क लगती है?” पॆगी कहती है: “इस कृपापूर्ण और व्यावहारिक सुझाव ने काम बना दिया। . . . सालों बाद पहली बार, मैंने अन्दर से साफ़ महसूस किया और यह जाना कि आत्म-सम्मान रखने का क्या अर्थ है।”

पॆगी का अनुभव नीतिवचन १३:२० में दिए बाइबल के शब्दों की सत्यता को विशिष्ट करता है: “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।” पॆगी कहती है: “यदि मैंने परमेश्‍वर से प्रेम करनेवाले उन व्यक्‍तियों के साथ अपनी मित्रता बनाए रखी होती, तो मैं उन सारी बातों से बच गयी होती जो अब एक भद्दी याद हैं।”

मित्र ढूँढना

आपको ऐसे मित्र कहाँ मिल सकते हैं जो परमेश्‍वर से प्रेम करते हैं? मसीही कलीसिया के अन्दर। ऐसे युवा ढूँढ निकालिए जो न सिर्फ़ अपने विश्‍वास का अंगीकार करते हैं बल्कि अपने विश्‍वास और भक्‍ति का समर्थन करनेवाले कार्य भी करते हैं। (याकूब २:२६ से तुलना कीजिए।) यदि ऐसे युवा मिलना मुश्‍किल हैं, तो अपने से बड़े कुछ मसीहियों से पहचान कीजिए। उम्र को मित्रता के आड़े आने की ज़रूरत नहीं। बाइबल दाऊद और योनातन के बीच आदर्श मित्रता के बारे में बताती है—और योनातन दाऊद के पिता की उम्र का था!—१ शमूएल १८:१.

लेकिन, आप मित्रता शुरू कैसे कर सकते हैं?

दूसरों में सक्रिय दिलचस्पी

यीशु मसीह ने इतनी पक्की मित्रता की कि उसके मित्र उसके लिए मरने को तैयार थे। क्यों? एक बात यह है कि यीशु ने लोगों की परवाह की। उसने आगे बढ़कर दूसरों की मदद की। वह शामिल होना ‘चाहता था।’ (मत्ती ८:३) सचमुच, दूसरों में दिलचस्पी लेना मित्र बनाने की ओर पहला क़दम है।

उदाहरण के लिए, डेविड नाम का एक युवा कहता है कि उसे “लोगों के लिए सच्चा प्रेम रखने और दूसरों में सक्रिय दिलचस्पी लेने” के कारण मित्र बनाने में सफलता मिली है। वह आगे कहता है: “एक बहुत बड़ी बात है व्यक्‍ति का नाम जानना। दूसरे अकसर प्रभावित होते हैं कि आपने उनका नाम याद रखने का ध्यान तो रखा। इस कारण वे आपको शायद कुछ अनुभव या समस्या बताएँ और मित्रता बढ़ने लगती है।”

इसका यह अर्थ नहीं कि आपको हल्ला-गुल्ला मचानेवाला बहिर्मुखी होने की ज़रूरत है। यीशु “मन में दीन” था, आडंबरी या दिखावटी नहीं। (मत्ती ११:२८, २९) दूसरों में सच्ची दिलचस्पी ही उन्हें आकर्षित करती है। अकसर अति साधारण बातें, जैसे एकसाथ मिलकर भोजन करना या किसी काम में व्यक्‍ति की मदद करना, मित्रता को गहरा करने का काम कर सकती हैं।

“तुम किस रीति से सुनते हो”

“चौकस रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो,” यीशु ने सलाह दी। (लूका ८:१८) जबकि उसके मन में था परमेश्‍वर की बातें सुनने का महत्त्व, यह सिद्धान्त सम्बन्ध बनाने में भी अच्छी तरह लागू होता है। एक अच्छा श्रोता होना मित्रता बढ़ाने के लिए अत्यावश्‍यक है।

यदि हम सचमुच इसमें दिलचस्पी लेते हैं कि दूसरे क्या कह रहे हैं, तो प्रायः वे हमारी ओर खिंचते हैं। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि आप ‘अपने ही हित की [संभवतः आपको जो कहना है उसकी ही] नहीं, बरन दूसरों के हित की भी चिन्ता करें।’—फिलिप्पियों २:४.

निष्ठावान रहिए

यीशु ने अपने मित्रों का साथ दिया। वह उनसे “अन्त तक . . . प्रेम रखता रहा।” (यूहन्‍ना १३:१) गॉरडन नाम का एक युवक अपने मित्रों के साथ इसी तरह व्यवहार करता है: “एक मित्र का मुख्य गुण है उसकी निष्ठा। क्या बुरे समय में वह सचमुच आपका साथ देगा? जब दूसरे कोई ग़लत बात कहते तब मैं और मेरा मित्र एक दूसरे का पक्ष लेते। हम सचमुच एक दूसरे का साथ देते—लेकिन केवल तभी जब हम सही होते।”

लेकिन, नक़ली मित्र ढोंग रचकर एक दूसरे के पीठ में छुरा भोंकना बड़ी बात नहीं समझते। “ऐसे साथी होते हैं जो एक दूसरे को टुकड़ों में तोड़ने को प्रवृत्त होते हैं,” नीतिवचन १८:२४ (NW) कहता है। क्या आप हानिकर गपशप में शामिल होने के द्वारा एक मित्र की प्रतिष्ठा ‘तोड़ेंगे,’ या क्या आप निष्ठापूर्वक उसके पक्ष में खड़े होंगे?

अपनी भावनाएँ बताइए

यीशु ने अपनी सबसे गहरी भावनाएँ प्रकट करने के द्वारा अपने को दूसरों की दृष्टि में और प्रिय बनाया। कभी-कभी उसने बताया कि उसको “तरस आया,” उसने “प्रेम किया,” या वह “बहुत उदास” है। कम-से-कम एक अवसर पर, यहाँ तक कि उसके “आंसू बहने लगे।” यीशु उनके सामने अपना हृदय खोलने से लज्जित नहीं था जिन पर उसे भरोसा था।—मत्ती ९:३६; २६:३८; मरकुस १०:२१; यूहन्‍ना ११:३५.

निश्‍चित ही, इसका यह अर्थ नहीं कि मिलनेवाले हर व्यक्‍ति के सामने आपको अपनी भावनाएँ उँडेल देनी चाहिए! लेकिन आप सभी के साथ सच बोल सकते हैं। और जब आप किसी को जानने लगते और उस पर भरोसा करने लगते हैं, तब आप धीरे-धीरे अपनी सबसे गहरी भावनाओं को और भी प्रकट कर सकते हैं। साथ ही, दूसरों के लिए समानुभूति और “सहानुभूति” रखना सीखना अर्थपूर्ण मित्रता के लिए अनिवार्य है।—१ पतरस ३:८, NW.

परिपूर्णता की अपेक्षा मत कीजिए

जब एक मित्रता की अच्छी शुरूआत होती है, तब भी परिपूर्णता की अपेक्षा मत कीजिए। “हम सभी तरह-तरह से ग़लतियाँ करते हैं, लेकिन जो पुरुष यह दावा कर सकता है कि वह कभी ग़लत बात नहीं कहता वह अपने आपको परिपूर्ण समझ सकता है।” (याकूब ३:२, फिलिप्स) इसके अलावा, मित्रता की क़ीमत होती है—समय और भावना। “आपको देने के लिए तत्पर होना चाहिए,” प्रॆसली नाम का एक युवक कहता है। “वह मित्रता का एक बड़ा हिस्सा है। बातों के बारे में आपकी अपनी भावनाएँ हैं लेकिन आप अपने मित्र की भावनाओं और विचारों को आगे रखने के लिए झुकने को तैयार हैं।”

लेकिन, मित्रता की क़ीमत, प्रेम न करने की क़ीमत—खाली अकेलेपन के जीवन—के आगे कुछ नहीं। सो अपने लिए मित्र बनाइए। (लूका १६:९ से तुलना कीजिए।) दूसरों की परवाह कीजिए। उनकी सुनिए और उनमें सच्ची दिलचस्पी दिखाइए। यीशु की तरह, तब आपके पास शायद अनेक लोग हों जिनसे आप कह सकते हैं, “तुम मेरे मित्र हो।”—यूहन्‍ना १५:१४.

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ आप एक असली मित्र को कैसे पहचान सकते हैं? किस क़िस्म के मित्र नक़ली होते हैं?

◻ आप मित्रों को कहाँ ढूँढ सकते हैं? क्या हमेशा उन्हें आपकी उम्र का ही होना चाहिए?

◻ यदि एक मित्र गंभीर समस्या में है तो आपको क्या करना चाहिए?

◻ मित्र बनाने के चार तरीक़े क्या हैं?

[पेज 66 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“मैंने अपने नए ‘मित्रों’ से कई बातें सीखीं—स्टीरियो चुराना, नक़ली चॆक चलाना, चरस पीना, और अंततः $२००-प्रति-दिन की नशे की लत का ख़र्च पूरा करना”

[पेज 68, 69 पर बक्स]

क्या मुझे अपने मित्र की चुग़ली खानी चाहिए?

यदि आप जान जाते हैं कि एक मित्र नशीले पदार्थों में हाथ डाल रहा है, लैंगिकता से खेल रहा है, बेईमानी, या चोरी कर रहा है—तो क्या आप इस विषय में किसी ज़िम्मेदार व्यक्‍ति को बताएँगे? अधिकतर तो नहीं बताएँगे, और एक अजीब-सी चुप्पी साध लेंगे जो युवाओं के बीच एक आम बात है।

कुछ को “चुग़लख़ोर” कहलाने का डर होता है। दूसरों के मन में निष्ठा का ग़लत अर्थ होता है। अनुशासन को हानिकर बात समझते हुए, वे सोचते हैं कि अपने मित्र की समस्याओं को ढाँकने से वे उस पर एहसान करते हैं। इसके अलावा, चुप्पी तोड़ने पर समकक्ष उसकी खिल्ली उड़ा सकते हैं और संभवतः उनकी मित्रता टूट सकती है।

फिर भी, जब ली नाम के एक युवा को पता चला कि उसका सबसे पक्का मित्र, क्रिस धूम्रपान कर रहा है, तब उसने क़दम उठाने का फ़ैसला किया। ली कहता है: “मेरा अंतःकरण मुझे खाए जा रहा था क्योंकि मुझे पता था कि मुझे किसी को बताना चाहिए!” बाइबल समय में एक युवा को ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा। “यूसुफ सतरह वर्ष का होकर अपने भाइयों के संग भेड़-बकरियों को चराता था . . . सो उनकी बुराइयों का समाचार अपने पिता के पास पहुंचाया।” (उत्पत्ति ३७:२) यूसुफ जानता था कि यदि वह चुप रहा, तो उसके भाइयों का आध्यात्मिक हित ख़तरे में होगा।

पाप एक पतनकारी, क्षयकारी शक्‍ति है। यदि ग़लती करनेवाले मित्र को मदद न मिले—संभवतः सख़्त शास्त्रीय अनुशासन के रूप में—तो वह दुष्टता में और भी गहरा डूबता जा सकता है। (सभोपदेशक ८:११) अतः, एक मित्र के कुकर्म को ढाँकने का कोई लाभ नहीं, साथ ही यह असुधार्य हानि भी पहुँचा सकता है।

इसलिए बाइबल प्रबोधन देती है: “हे भाइयो, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा भी जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो।” (गलतियों ६:१) आपको शायद न लगे कि ग़लती करनेवाले मित्र को सुधारने के लिए आपके पास शास्त्रीय योग्यताएँ हैं। लेकिन क्या यह निश्‍चित करना समझदारी नहीं होगी कि मामला किसी ऐसे व्यक्‍ति को रिपोर्ट किया जाए जो मदद करने के योग्य है?

अतः यह अत्यावश्‍यक है कि आप अपने मित्र के पास जाएँ और उसके दोष का खुलासा करें। (मत्ती १८:१५ से तुलना कीजिए।) यह आपकी ओर से साहस और हिम्मत की माँग करेगा। दृढ़ रहिए, उसके पाप के बारे में विश्‍वासोत्पादक प्रमाण दीजिए, स्पष्ट रूप से बताइए कि आपको क्या मालूम है और वह आपको कैसे पता चला। (यूहन्‍ना १६:८ से तुलना कीजिए।) वचन मत दीजिए कि आप किसी से नहीं कहेंगे, क्योंकि ऐसा वचन परमेश्‍वर की दृष्टि में स्वीकार्य नहीं होगा, जो कुकर्म को ढाँकने की निन्दा करता है।—नीतिवचन २८:१३.

संभवतः कोई ग़लतफ़हमी हो गयी है। (नीतिवचन १८:१३) यदि नहीं, और वास्तव में कुकर्म हुआ है, तो हो सकता है कि अपनी समस्या का खुलासा होने पर आपके मित्र को राहत मिली है। एक अच्छा श्रोता बनिए। (याकूब १:१९) दोष की अभिव्यक्‍तियाँ, जैसे “आपको नहीं करना चाहिए था!” या हैरानी की अभिव्यक्‍तियाँ, जैसे “आपने किया कैसे!,” प्रयोग करने के द्वारा उसकी भावनाओं के सहज प्रवाह को रोकिए नहीं। समानुभूति दिखाइए और जो आपका मित्र महसूस करता है उसे महसूस कीजिए।—१ पतरस ३:८.

अकसर स्थिति उससे अधिक मदद की माँग करती है जो आप देने की स्थिति में हैं। तो, हठ कीजिए कि आपका मित्र अपने माता-पिता को या दूसरे ज़िम्मेदार वयस्कों को ग़लती के बारे में बताए। और यदि आपका मित्र ऐसा करने से इनकार कर दे तो? उसे बताइए कि यदि वह उचित समय के अन्दर मामला नहीं सुलझाता तो आप, उसके सच्चे मित्र होने के नाते, उसकी ओर से किसी के पास जाने के लिए बाध्य होंगे।—नीतिवचन १७:१७.

शुरू-शुरू में आपका मित्र शायद न समझे कि आपने ऐसा क़दम क्यों उठाया। वह शायद नाराज़ हो जाए और बिना सोचे आपसे मित्रता तोड़ दे। लेकिन ली कहता है: “मैं जानता हूँ कि किसी को बताने के द्वारा मैंने सही काम किया। मेरे अंतःकरण को काफ़ी चैन मिला क्योंकि क्रिस को ज़रूरी मदद मिल रही थी। बाद में उसने मुझसे आकर कहा कि जो मैंने किया उसके लिए वह मुझसे नाराज़ नहीं है और इससे भी मुझे आराम मिला।”

यदि आपका पहचानवाला आपके साहसी क़दमों से चिढ़ना जारी रखता है, तो प्रत्यक्ष है कि वह पहले से आपका सच्चा मित्र कभी था ही नहीं। लेकिन आपको यह जानने की संतुष्टि होगी कि आपने परमेश्‍वर के प्रति अपनी निष्ठा साबित की और दिखाया कि आप एक सच्चे मित्र हैं।

[पेज 67 पर तसवीर]

क्या आपको मित्र बनाने में परेशानी है?

[पेज 70 पर तसवीर]

दूसरों में दिलचस्पी लेना मित्रता शुरू करने की कुंजी है