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क्या मुझे घर छोड़ना चाहिए?

क्या मुझे घर छोड़ना चाहिए?

अध्याय ७

क्या मुझे घर छोड़ना चाहिए?

“मम्मी-पापा:

“आख़िरकार मैं जा रही हूँ। जैसा मैंने पहले कहा है, मैं आपको ठेस पहुँचाने के लिए या किसी तरह से मज़ा चखाने के लिए ऐसा नहीं कर रही। मैं उस बंदिश में रहने से ख़ुश नहीं हो सकती जिसमें आप मुझे रखना चाहते हैं। हो सकता है कि मैं इस तरह भी ख़ुश न होऊँ, लेकिन मैं पता तो करना चाहूँगी।”

इस तरह शुरू हुआ एक १७-वर्षीय लड़की का अपने माता-पिता को विदाई पत्र। उदाहरण के लिए, जर्मनी गणराज्य संघ में, १५ और २४ के बीच की उम्र की हर तीसरी लड़की और हर चौथा लड़का अब घर से अलग रहता है। शायद आपने भी घर छोड़ने की सोची हो।

परमेश्‍वर ने पूर्वदेखा कि विवाह करने की इच्छा एक व्यक्‍ति को ‘अपने माता पिता को छोड़ने’ के लिए प्रेरित करती। (उत्पत्ति २:२३, २४) और घर छोड़ने के अन्य उचित कारण हैं, जैसे परमेश्‍वर के प्रति अपनी सेवा को विस्तृत करना। (मरकुस १०:२९, ३०) लेकिन, अनेक युवाओं के लिए घर छोड़ना बस उस स्थिति से बाहर निकलने का तरीक़ा होता है जो उन्हें असहनीय लगती है। एक युवक कहता है: “आप बस अधिक स्वतंत्र होना चाहते हैं। घर में अपने माता-पिता के साथ रहना अब संतोषप्रद नहीं रहता। आप हमेशा बहस में पड़ जाते हैं, और वे आपकी ज़रूरतें नहीं समझते। इसके अलावा, आपको इतनी बंदिश लगती है, हमेशा अपने माता-पिता को अपने हर काम का जवाब देना पड़ता है।”

स्वतंत्रता के लिए तैयार?

आप स्वतंत्रता चाहते हैं, लेकिन क्या इसका यह अर्थ है कि आप इसके लिए तैयार हैं? एक बात यह है कि अपना निर्वाह आप करना शायद उतना आसान न हो जितना कि आप सोचते हैं। अकसर नौकरियों की कमी होती है। किराए आसमान छू रहे हैं। और आर्थिक उलझन में फँसे युवा अकसर क्या करने पर मजबूर होते हैं? जड़ें खींचना (अंग्रेज़ी) के लेखक कहते हैं: “वे घर लौटते हैं और अपेक्षा करते हैं कि माता-पिता उनको संभालने का भार फिर से उठाएँ।”

और आपकी मानसिक, भावात्मक, और आध्यात्मिक प्रौढ़ता के बारे में क्या? आपको शायद यह सोचना अच्छा लगे कि आप बड़े हो गए हैं, लेकिन आपके माता-पिता आप में शायद अब भी “बालकों की” कुछ “बातें” देखते हों। (१ कुरिन्थियों १३:११) और वास्तव में, क्या आपके माता-पिता यह आँकने की सबसे अच्छी स्थिति में नहीं कि आप कितनी छूट संभालने के लिए तैयार हैं? उनके फ़ैसले के विरुद्ध जाना और अपने आप निकल पड़ना विपत्ति को बुलावा दे सकता है!—नीतिवचन १:८.

‘मेरी अपने माता-पिता से नहीं पटती!’

क्या आपके किस्से में यह सही है? यदि हाँ, तो भी यह अपना बोरिया बिस्तर बाँधने का कोई कारण नहीं है। एक युवा होने के नाते, आपको अभी भी अपने माता-पिता की ज़रूरत है और संभवतः आनेवाले सालों में आप उनकी अंतर्दृष्टि और बुद्धि से लाभ उठाएँगे। (नीतिवचन २३:२२) क्या आपको उन्हें अपने जीवन से निकाल फेंकना चाहिए सिर्फ़ इसलिए कि उनके साथ व्यवहार करने में आपके सामने एकाध रोड़े आए हैं?

कार्सटेन नाम के एक जर्मन युवा ने पूर्ण-समय के सेवक के रूप में जीवन-वृत्ति अपनाने के लिए घर छोड़ा। इस विषय में वह कहता है: “सिर्फ़ इसलिए कभी घर मत छोड़िए कि आपकी अपने माता-पिता से नहीं पटती। यदि आपकी उनसे नहीं पट सकती तो आपकी दूसरे लोगों से कभी कैसे पट सकेगी? घर छोड़ना आपकी समस्या का हल नहीं करेगा। इसके विपरीत, यह मात्र इतना साबित करेगा कि आप अपने पैरों पर खड़े होने के लिए बहुत कच्चे हैं और यह आपके माता-पिता के साथ और अधिक विमुखता का कारण बनेगा।”

नैतिकता और अभिप्राय

युवजन असमय घर छोड़ने में सम्मिलित नैतिक ख़तरों को भी अकसर नज़रअंदाज़ करते हैं। लूका १५:११-३२ में, यीशु एक युवक के बारे में बताता है जो स्वतंत्र होकर अपने रास्ते जाना चाहता था। अब अपने माता-पिता के अच्छे प्रभाव के अधीन न होने के कारण, वह “कुकर्म” करने लगा, लैंगिक अनैतिकता में फँस गया। जल्द ही उसने अपनी संपत्ति उड़ा दी। नौकरी मिलना इतना कठिन था कि उसने वह काम भी स्वीकार किया जिसे यहूदी घृणित समझते थे—सूअर चराना। लेकिन, वह तथाकथित फ़ज़ूलख़र्च, या उड़ाऊ पुत्र अपने होश में आ गया। अपने अहम्‌ को मारकर, वह घर लौटा और अपने पिता से क्षमा की भीख माँगी।

हालाँकि यह नीतिकथा परमेश्‍वर की दया विशिष्ट करने के लिए बतायी गयी थी, इसमें यह व्यावहारिक सबक़ भी है: अनुचित अभिप्राय से घर छोड़ना आपको नैतिक और आध्यात्मिक रूप से हानि पहुँचा सकता है! दुःख की बात है कि एक स्वतंत्र मार्ग पर निकल पड़नेवाले कुछ मसीही युवाओं ने आध्यात्मिक तबाही सही है। आर्थिक रूप से स्थिर न रह पाने के कारण, कुछ ने ऐसे अन्य युवाओं के साथ ख़र्च की साझेदारी की है जिनकी जीवन-शैली बाइबल सिद्धान्तों की विषमता में है।—१ कुरिन्थियों १५:३३.

हॉर्स्ट नाम का एक जर्मन युवा अपनी उम्र के एक युवा की याद करता है जिसने घर छोड़ दिया: “हालाँकि उसका विवाह नहीं हुआ था, वह अपनी प्रेमिका के साथ रहने लगा। वे पार्टियाँ करते थे जहाँ बहुत शराब होती थी, और वह अकसर पीकर धुत्त हो जाता था। यदि वह अब भी घर पर रह रहा होता, तो उसके माता-पिता इनमें से किसी बात की अनुमति नहीं देते।” हॉर्स्ट ने अन्त में कहा: “यह सच है, जब आप घर छोड़ देते हैं तब आपके पास अधिक छूट होती है। लेकिन यदि सच-सच कहें, तो क्या अकसर इसे बुरे काम करने के लिए एक अवसर के रूप में नहीं प्रयोग किया जाता?”

सो यदि आप अधिक छूट के लिए लालायित हैं, तो अपने आपसे पूछिए: मैं अधिक छूट क्यों चाहता हूँ? क्या इसलिए कि मैं भौतिक संपत्ति पा सकूँ या इसलिए कि मुझे उस तरह व्यवहार करने का मौक़ा मिले जिसकी अनुमति मेरे माता-पिता नहीं देते यदि मैं घर पर रहता? याद रखिए कि बाइबल यिर्मयाह १७:९ में क्या कहती है: “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?”

मैं बड़ा कैसे होऊँगा यदि घर न छोड़ूँ?

पुस्तक किशोरावस्था (अंग्रेज़ी) कहती है: “माता-पिता के घर को छोड़ देना सफलतापूर्वक [वयस्कता में] पहुँचने की गारंटी नहीं देता। न ही घर पर रहने का अर्थ है बड़े होने में असफल होना।” सचमुच, बड़े होने का अर्थ अपना ख़ुद का पैसा, नौकरी और मकान होने से अधिक है। एक बात यह है कि ईमानदारी से समस्याओं का सामना करने से जीवन में निपुणता हासिल होती है। ऐसी स्थितियों से भागने से कुछ प्राप्त नहीं होता जो हमारी पसन्द की नहीं। “पुरुष के लिये जवानी में जूआ उठाना भला है,” विलापगीत ३:२७ कहता है।

उदाहरण के लिए, उन माता-पिताओं को लीजिए जिनके साथ पटरी बैठाना कठिन है या जो बहुत सख़्त हैं। मैक का पिता उसे स्कूल-उपरांत काम में जोत देता था। गर्मियों की छुट्टियों के दौरान, जब दूसरे बच्चे खेलते, मैक को काम करना पड़ता। “मैंने सोचा वह दुनिया के सबसे बुरे आदमी हैं कि हमको खेलने और मज़ा करने से रोकते हैं,” अभी ४७-वर्षीय मैक कहता है। “अकसर मैं सोचता, ‘काश मैं यहाँ से निकलकर एक अपना घर बना सकता!’” लेकिन, अब मैक इस बात को अलग दृष्टिकोण से देखता है: “पापा ने मेरे लिए जो किया वह अमूल्य है। उन्होंने मुझे मेहनत करना और कष्ट सहना सिखाया। तब से मुझे उससे कहीं गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा है, लेकिन मैं उनसे अच्छी तरह निपटना जानता हूँ।”

मूर्ख का स्वर्ग

लेकिन, बस घर पर रहना ही आपके प्रौढ़ होने की गारंटी नहीं देता। एक युवा कहता है: “अपने माता-पिता के साथ घर पर रहना मूर्ख के स्वर्ग में रहने के जैसा था। वे मेरे लिए सब कुछ करते थे।” अपने काम आप करना सीखना बड़े होने का एक हिस्सा है। माना, कूड़ा फेंकना या कपड़े धोना उतना मज़ेदार नहीं है जितना कि अपने मनपसन्द गीत सुनना। लेकिन यदि आप ये काम करना कभी नहीं सीखते तो परिणाम क्या हो सकता है? आप एक असहाय वयस्क बन सकते हैं, पूरी तरह से अपने माता-पिता या दूसरों पर निर्भर।

क्या आप (चाहे युवक हों या युवती) खाना पकाना, सफ़ाई करना, इस्त्री करना, या घर अथवा गाड़ी की मरम्मत करना सीखने के द्वारा बाद में स्वतंत्रता के लिए तैयारी कर रहे हैं?

आर्थिक स्वतंत्रता

धनी देशों में युवा अकसर समझते हैं कि पैसा आना आसान है और ख़र्च करना उससे भी आसान। यदि उनके पास अंश-कालिक नौकरी है, तो वे अकसर अपना पैसा स्टीरियो और महँगे कपड़ों पर ख़र्च करने के लिए प्रवृत्त होते हैं। लेकिन, ऐसे युवाओं की आँखें एक धक्के से खुलती हैं, जब वे घर छोड़कर अपने बलबूते पर रहते हैं! हॉर्स्ट (पहले उल्लिखित) याद करता है: “महीने के अन्त तक [अपने बलबूते पर रहते समय] मेरा बटुआ और अलमारी दोनों खाली होते थे।”

क्यों न तभी पैसा संभालना सीखें जब आप घर पर रह रहे हैं? आपके माता-पिता के पास ऐसा करने का सालों का अनुभव है और वे आपको अनेक फँदों से बचने में मदद दे सकते हैं। पुस्तक जड़ें खींचना उनसे ऐसे प्रश्‍न पूछने का सुझाव देती है: ‘हर महीने बिजली, ताप, पानी, टॆलिफ़ोन का कितना ख़र्च आता है? हम किस क़िस्म के कर देते हैं? हम कितना किराया देते हैं?’ आप शायद यह जानकर हैरान हो जाएँ कि कार्यरत युवाओं के पास अकसर अपने माता-पिता से ज़्यादा जेबख़र्च होता है! सो यदि आपके पास नौकरी है, तो गृहस्थी प्रबन्ध के लिए थोड़ा-बहुत पैसे से मदद देने का प्रस्ताव रखिए।

छोड़ने से पहले सीखिए

जी नहीं, बड़े होने के लिए आपको घर छोड़ने की ज़रूरत नहीं। लेकिन जब आप वहाँ हैं तब आपको अच्छी समझदारी और संतुलन विकसित करने के लिए मेहनत करनी चाहिए। यह भी सीखिए कि दूसरों के साथ कैसे पटरी बैठाएँ। साबित कीजिए कि आप आलोचना, असफलता या निराशा झेल सकते हैं। ‘कृपा, भलाई, नम्रता और संयम’ विकसित कीजिए। (गलतियों ५:२२, २३) ये गुण एक प्रौढ़ पुरुष या स्त्री के सच्चे लक्षण हैं।

आज नहीं तो कल, परिस्थितियाँ, जैसे विवाह, आपको अपने माता-पिता के घर के घोंसले से बाहर निकाल ही देंगी। लेकिन तब तक, छोड़ने की जल्दी में क्यों रहें? अपने माता-पिता से इस विषय में बात कीजिए। आपका घर पर रहना शायद उन्हें ख़ुश करे, ख़ासकर यदि आप परिवार के हित में बड़ा योग देते हैं। उनकी मदद से, आप घर में ही बढ़ना, सीखना, और प्रौढ़ होना जारी रख सकते हैं।

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ अनेक युवा घर छोड़ने के लिए उतावले क्यों होते हैं?

◻ अधिकांश युवा इस क़दम के लिए तैयार क्यों नहीं होते?

◻ असमय घर छोड़ने में कुछ ख़तरे क्या हैं?

◻ भगोड़े कौन-सी कुछ समस्याओं का सामना करते हैं?

◻ घर पर रहते हुए भी आपके लिए प्रौढ़ होना कैसे संभव है?

[पेज 57 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“सिर्फ़ इसलिए कभी घर मत छोड़िए कि आपकी अपने माता-पिता से नहीं पटती . . . आपकी दूसरे लोगों से कभी कैसे पट सकेगी?”

[पेज 60, 61 पर बक्स]

क्या भाग जाना इसका हल है?

दस लाख से अधिक किशोर हर साल घर से भाग जाते हैं। कुछ असहनीय स्थितियों के कारण भागते हैं—जैसे शारीरिक या लैंगिक दुर्व्यवहार। लेकिन अधिकांशतः, प्रतिबन्ध, स्कूल के नम्बर, घरेलू काम, और मित्रों का चुनाव जैसे मामलों को लेकर माता-पिता के साथ हुई बहस भागने का कारण बनती है।

संभवतः कुछ बातों पर आपके माता-पिता का दृष्टिकोण और सोच-विचार आपसे नहीं मिलता। लेकिन क्या आपने इस तथ्य पर विचार किया है कि आपके माता-पिता “प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में” आपका पालन-पोषण करने के लिए परमेश्‍वर के सामने ज़िम्मेदार हैं? (इफिसियों ६:४, NHT) सो वे शायद आग्रह करें कि आप उनके साथ धार्मिक सभाओं और गतिविधियों में जाएँ या दूसरे युवाओं के साथ आपकी संगति को भी सीमित रखें। (१ कुरिन्थियों १५:३३) क्या यह विद्रोह करने या भागने का कोई कारण है? परमेश्‍वर के सामने आपकी भी एक ज़िम्मेदारी है: “अपनी माता और पिता का आदर कर।”—इफिसियों ६:१-३.

इसके अलावा, भागने से किसी बात का हल नहीं होता। “भागना आपके लिए बस और समस्याएँ उत्पन्‍न करता है,” एमी याद करती है, जो १४ की उम्र में भाग गयी थी। मार्गरॆट ओ. हाइड अपनी पुस्तक मेरा मित्र भागना चाहता है (अंग्रेज़ी) में कहती है: “कुछ ही भगोड़ों को असल में नौकरी मिलती है और अपने आप निर्वाह कर पाते हैं। लेकिन, उनमें से अधिकांश के लिए, जीवन अब घर छोड़ने के समय से बदतर है।” और टीन पत्रिका कहती है: “किशोरों को सड़कों पर स्वतंत्रता नहीं मिलती। इसके बजाय, उन्हें—अपने जैसे—दूसरे भगोड़े या परित्यक्‍त मिल जाते हैं जो छोड़ी गयी इमारतों में रहते हैं, जहाँ उनके पास बलात्कारियों या लुटेरों से कोई बचाव नहीं होता। उन्हें ऐसे भी बहुत से लोग मिल जाते हैं जो युवाओं का शोषण करना अपना गंदा धन्धा बना लेते हैं, और किशोर भगोड़े एक आसान निशाना होते हैं।”

घर से भागने के बाद, एमी से एक २२-वर्षीय पुरुष ने “मित्रता” की। “उसने और उसके नौ मित्रों ने [एमी के] साथ संभोग करने के द्वारा” उससे उसके ठहराव की क़ीमत ली। साथ ही, वह “पीकर धुत्त हो गयी और ढेर सारे नशीले पदार्थ लिए।” सरिता नाम की एक और लड़की से उसके सौतेले दादा ने छेड़छाड़ की और वह भाग गयी। वह एक वेश्‍या बन गयी जो सड़कों पर रहती और बाग़ीचों की बॆंचों पर या जहाँ कहीं उसे जगह मिलती सो जाती। ये अनेक भगोड़ों के ठेठ नमूने हैं।

अधिकांश भगोड़ों के पास शायद ही कोई नौकरी पाने योग्य कौशल होता है। न ही सामान्यतः उनके पास कोई ज़रूरी काग़ज़ात होते हैं कि उनको नौकरी दी जाए: जन्म-प्रमाणक, समाज सुरक्षा कार्ड, स्थायी पता। “मुझे चोरी करनी पड़ी, भीख माँगनी पड़ी,” लूइस कहता है, “लेकिन ज़्यादा करके चोरी करनी पड़ी क्योंकि वहाँ कोई आपको कुछ नहीं देता।” कुछ ६० प्रतिशत भगोड़े लड़कियाँ होती हैं, जिनमें से अनेक वेश्‍यावृत्ति के द्वारा अपना जीवन-यापन करती हैं। भगोड़ों का शोषण करने के लिए उनकी तलाश में, अश्‍लील-चित्रणकर्ता, नशीले पदार्थ बेचनेवाले, और भड़ुवे बस अड्डों के चक्कर काटते हैं। वे सहमे हुए युवाओं को सोने के लिए जगह और खाने के लिए भोजन देने का प्रस्ताव रख सकते हैं। वे शायद उन्हें वह भी दें जिसकी उन्हें घर पर कमी थी—यह भावना कि उन से प्रेम किया जाता है।

लेकिन, कुछ समय बाद, ऐसे “हितैषी” क़ीमत माँगते हैं। और इसका अर्थ हो सकता है उनके लिए वेश्‍या के रूप में काम करना, लैंगिक विकृतियों में भाग लेना, या अश्‍लील तस्वीरें खिंचवाना। इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं कि अनेक भगोड़े गंभीर रूप से घायल—या मृत—मिलते हैं!

अतः इसमें समझदारी है कि अपने माता-पिता से बात करने की हर कोशिश करें—और इसका अर्थ है एक से अधिक बार ऐसा करें। उन्हें बताइए कि आपको कैसा लगता है और क्या हो रहा है। (अध्याय २ और ३ देखिए।) शारीरिक या लैंगिक दुर्व्यवहार के मामले में, शायद बाहरी मदद की ज़रूरत पड़े।

मामला जो भी हो, बात कीजिए, भागिए मत। यदि घर पर जीवन आदर्श नहीं है, तो भी यह ध्यान में रखिए कि जब आप भागते हैं तो स्थिति और भी बदतर हो सकती है।

[पेज 59 पर तसवीरें]

अपने बलबूते पर रहने के लिए ज़रूरी घरेलू कौशल घर पर सीखे जा सकते हैं