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मेरे माता-पिता मुझे समझते क्यों नहीं?

मेरे माता-पिता मुझे समझते क्यों नहीं?

अध्याय २

मेरे माता-पिता मुझे समझते क्यों नहीं?

हमें समझा जाए, यह चाहना स्वाभाविक है। और यदि आपके माता-पिता उन बातों में नुकताचीनी करते हैं—या दिलचस्पी नहीं दिखाते—जो आपको प्रिय हैं या जो आपके विचार से महत्त्वपूर्ण हैं, तो आप बहुत निराश हो सकते हैं।

सोलह वर्षीय रॉबर्ट को लगता है कि उसके पिता उसकी पसन्द के संगीत को नहीं समझते। “वह बस चिल्लाकर कहते हैं, ‘उसे बंद करो!’” रॉबर्ट ने कहा। “सो मैं उसे और उन्हें बंद कर देता हूँ।” इसी प्रकार अनेक युवा भावात्मक रूप से अपने ही एकान्त संसार में सिमट जाते हैं जब उन्हें लगता है कि माता-पिता समझ नहीं रहे। युवाओं के एक गहन अध्ययन में, सर्वेक्षण किए गए २६ प्रतिशत युवाओं ने स्वीकार किया, “मेरी यह कोशिश रहती है कि ज़्यादातर समय घर से दूर रहूँ।”

अतः अनेक घरों में युवाओं और माता-पिता के बीच एक बड़ी दरार, या खाई रहती है। इसका कारण क्या है?

“बल” बनाम “पक्के बाल”

नीतिवचन २०:२९ कहता है: “जवानों का गौरव उनका बल है।” लेकिन यह शक्‍ति, या “बल” आप और आपके माता-पिता के बीच तरह-तरह के झगड़ों की जड़ बन सकता है। नीतिवचन आगे कहता है: “परन्तु बूढ़ों की शोभा उनके पक्के बाल हैं।” आपके माता-पिता के शायद सचमुच “पक्के बाल” न हों, लेकिन वे आपसे बड़े हैं और अकसर जीवन को अलग तरह से देखते हैं। वे समझते हैं कि जीवन में हर स्थिति का अन्त सुखद नहीं होता। कटु व्यक्‍तिगत अनुभव ने शायद उनकी जवानी के जोश को थोड़ा ठंडा कर दिया हो। अनुभव से प्राप्त इस बुद्धि—मानो “पक्के बाल”—के कारण कुछ बातों में उनका उत्साह शायद आपके जितना न हो।

युवा जिम कहता है: “मेरे माता-पिता (मन्दी-युग के बच्चों) को लगता है कि पैसे को ज़रूरी चीज़ों को ख़रीदने या उन पर ख़र्च करने के लिए बचाया जाना चाहिए। लेकिन मैं अभी भी जी रहा हूँ। . . . मैं बहुत यात्रा करना चाहता हूँ।” जी हाँ, व्यक्‍ति के युवा “बल” और उसके माता-पिता के “पक्के बाल” के बीच शायद एक बड़ी खाई हो। इस कारण अनेक परिवारों में पहनावे और बनाव-श्रंगार, विपरीत लिंग के साथ व्यवहार, नशीले पदार्थों और शराब के प्रयोग, प्रतिबन्ध, साथी, और काम-काज जैसे मामलों को लेकर बहुत-ही फूट पड़ी है। पीढ़ी-खाई को पाटा जा सकता है। लेकिन इससे पहले कि आप अपने माता-पिता से यह अपेक्षा करें कि वे आपको समझें, आपको उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए।

माता-पिता भी मनुष्य हैं

“जब मैं छोटा था, तो स्वाभाविक ही यह सोचता था कि मम्मी ‘परिपूर्ण’ हैं और मेरी जैसी उनकी कोई कमज़ोरी और भावना नहीं है,” जॉन कहता है। फिर उसके माता-पिता का तलाक़ हो गया, और उसकी माँ सात बच्चों को पालने के लिए अकेली रह गयी। जॉन की बहन जूली याद करती है: “मुझे उनको रोते देखना याद है क्योंकि हर काम निपटाने की कोशिश में वह हताश हो गयी थीं। फिर मुझे समझ आया कि हमारा दृष्टिकोण ग़लत था। वह सब कुछ हमेशा सही समय पर और सही तरीक़े से नहीं कर सकतीं। हमने देखा कि उनकी भावनाएँ हैं और वह भी मनुष्य हैं।”

यह स्वीकार करना कि आपके माता-पिता मनुष्य ही हैं जिनकी आपकी जैसी भावनाएँ हैं, आपका उनको समझने की ओर एक बड़ा क़दम है। उदाहरण के लिए, वे शायद आपको अच्छी तरह पालने की अपनी क्षमता के बारे में बहुत अनिश्‍चित महसूस करते हों। या, आप जिन नैतिक ख़तरों और प्रलोभनों का सामना करते हैं उससे व्याकुल होकर, वे शायद कभी-कभी किसी बात पर अनावश्‍यक प्रतिक्रिया दिखाएँ। वे शायद भौतिक, आर्थिक, या भावात्मक कठिनाइयों से भी जूझ रहे हों। उदाहरण के लिए, एक पिता को शायद अपनी नौकरी से घृणा हो लेकिन वह कभी शिक़ायत नहीं करता हो। सो जब उसका बच्चा कहता है, “मुझे स्कूल से नफ़रत है,” तो कोई आश्‍चर्य नहीं कि सहानुभूति से प्रतिक्रिया दिखाने के बजाय, वह उल्टे कहता है, “क्या हो गया है आपको? आप बच्चों के लिए तो सब आसान है!”

“व्यक्‍तिगत रुचि” लीजिए

तो फिर, आप कैसे पता लगा सकते हैं कि आपके माता-पिता कैसा महसूस करते हैं? “अपनी ही हित [“व्यक्‍तिगत रुचि,” NW] की नहीं, बरन दूसरों की हित [“व्यक्‍तिगत रुचि,” NW] की भी चिन्ता” करने के द्वारा। (फिलिप्पियों २:४) अपनी माँ से यह पूछकर देखिए कि जब वह किशोरी थीं तब वह कैसी थीं। उनकी भावनाएँ, उनके लक्ष्य क्या थे? “संभावना है,” टीन (अंग्रेज़ी) पत्रिका ने कहा, “कि यदि उनको लगता है कि आप उनमें रुचि रखते हैं, और उनकी कुछ भावनाओं के कारण जानते हैं, तो वह आपकी [भावनाओं के कारण] और अधिक जानने की कोशिश करेंगी।” यही बात निःसंदेह आपके पिता के बारे में भी सही होगी।

यदि एक झगड़ा शुरू होता है, तो जल्दी से अपने माता-पिता पर भावशून्य होने का आरोप मत लगा दीजिए। अपने आपसे पूछिए: ‘क्या मेरी माता या पिता की तबियत ख़राब थी या वह किसी बात के बारे में चिन्तित थे? क्या उन्हें मेरी किसी विचारहीन करनी या कथनी से तो चोट नहीं पहुँची? क्या वे यूँ ही मेरी बात को कुछ का कुछ समझते हैं?’ (नीतिवचन १२:१८) ऐसी समानुभूति दिखाना उस पीढ़ी-खाई को भरने के लिए एक अच्छी शुरूआत है। अब आप कोशिश कर सकते हैं कि आपके माता-पिता आपको समझें! लेकिन, अनेक युवा इसे अत्यधिक कठिन बना देते हैं। कैसे?

दोहरा जीवन जीना

सत्रह-वर्षीय मिनी अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध एक लड़के के साथ छिपकर डेटिंग करने के द्वारा ठीक यही कर रही थी। वह निश्‍चित थी कि उसके माता-पिता उसके बॉयफ्रॆन्ड के लिए उसकी भावनाओं को समझेंगे ही नहीं। स्वाभाविक है, उसके और उनके बीच की खाई बढ़ती गयी। “हम एक दूसरे को दुःखी कर रहे थे,” मिनी कहती है। “मुझे घर आने से नफ़रत थी।” उसने फ़ैसला किया कि वह विवाह कर लेगी—घर से दूर जाने के लिए कुछ भी करेगी!

इसी प्रकार अनेक युवा दोहरा जीवन जीते हैं—ऐसे काम करते हैं जो उनके माता-पिता जानते नहीं और अनुमति नहीं देते—और फिर इस बात का शोक मनाते हैं कि उनके माता-पिता ‘उन्हें समझते नहीं’! ख़ुशी की बात है कि मिनी को एक उम्रदार मसीही स्त्री ने मदद दी जिसने उससे कहा: “मिनी, ज़रा अपने माता-पिता के बारे में सोचो . . . उन्होंने आपको पाला है। यदि आप इस रिश्‍ते को नहीं संभाल सकतीं, तो आप अपनी उम्र के किसी व्यक्‍ति के साथ रिश्‍ता कैसे संभालेंगी जिसने आपको १७ साल तक प्रेम नहीं दिया है?”

मिनी ने ईमानदारी से अपने आपको जाँचा। उसे जल्द ही समझ आया कि उसके माता-पिता सही थे और कि उसका अपना हृदय ग़लत था। उसने अपने बॉयफ्रॆन्ड के साथ अपनी संगति रोक दी और अपने और अपने माता-पिता के बीच की दरार को पाटना शुरू किया। इसी प्रकार यदि आपने अपने जीवन का एक महत्त्वपूर्ण भाग अपने माता-पिता से छिपाकर रखा है, तो क्या यह उनको सच बताने का समय नहीं है?—“मैं अपने माता-पिता को कैसे बताऊँ?” अंतःपत्र देखिए।

बात करने के लिए समय निकालिए

‘अपने पापा के साथ बिताया वह मेरा सबसे अच्छा समय था!’ जॉन ने उस सैर के बारे में कहा जो उसने और उसके पिता ने एकसाथ की। “मैंने अपने पूरे जीवन में उनके साथ अकेले कभी छः घंटे नहीं बिताए थे। छः घंटे जाना, छः घंटे आना। कोई कार रेडियो नहीं। हमने सचमुच बात की। यह ऐसा था मानो हमने एक दूसरे की खोज की। जितना मैंने सोचा था वह उससे भी अच्छे निकले। इसने हमें मित्र बना दिया।” इसी प्रकार क्यों न अपनी मम्मी या पापा से खुलकर बात करने की कोशिश करें—नियमित रूप से?

दूसरे वयस्कों के साथ मित्रता करने से भी मदद मिलती है। मिनी याद करती है: “मेरा बड़ों के साथ बिलकुल भी सम्बन्ध नहीं था। लेकिन जब मेरे माता-पिता दूसरे वयस्कों के साथ संगति करते तब मैंने उनके पीछे-पीछे जाने की ठानी। कुछ समय बाद मैंने उनके साथ मित्रता कर ली जो मेरे माता-पिता की उम्र के थे, और इसने मुझे और सम्पूर्ण दृष्टिकोण दिया। अपने माता-पिता के साथ बातचीत करना और आसान हो गया। घर का वातावरण नाटकीय रूप से सुधर गया।”

उनके साथ संगति करना जिन्होंने सालों के दौरान बुद्धि प्राप्त की है, आपको जीवन का एक संकीर्ण, सीमित दृष्टिकोण अपनाने से भी रोकेगा, जो कि हो सकता है यदि आप केवल अपने युवा मित्रों की संगति में रहें तो।—नीतिवचन १३:२०.

अपनी भावनाएँ बताइए

“मैं सीधे अपने हृदय से बोलता हूँ और अपने होंठों से आ रहा ज्ञान निष्कपटता से बताता हूँ,” युवा एलीहू ने कहा। (अय्यूब ३३:३, द होली बाइबल इन द लैंगुएज ऑफ़ टुडे, विलियम बॆक द्वारा) क्या आप अपने माता-पिता से इस प्रकार बात करते हैं जब कपड़ों, प्रतिबन्धों, या संगीत जैसी बातों पर आपकी टक्कर होती है?

युवा ग्रॆगरी को लगा कि उसकी मम्मी एकदम कठोर हैं। वह उनके बीच गरमागरम झगड़ों से बचने के लिए जितना हो सके घर से दूर रहता था। लेकिन फिर वह कुछ मसीही प्राचीनों की सलाह पर चला। वह कहता है, “मैंने मम्मी को बताना शुरू किया कि मुझे कैसा लगता है। मैंने उन्हें बताया कि क्यों मैं अमुक काम करना चाहता था और अनुमान नहीं लगाया कि वह जानती थीं। अकसर मैं अपने हृदय की बात कहता और समझाता कि मैं कुछ ग़लत काम करने की कोशिश नहीं कर रहा था और मुझे कितना बुरा लगा क्योंकि उन्होंने मेरे साथ एक छोटे बच्चे की तरह व्यवहार किया। फिर उन्होंने समझना शुरू किया और धीरे-धीरे स्थिति काफ़ी बेहतर हो गयी।”

इसी प्रकार शायद आप भी पाएँ कि ‘सीधे अपने हृदय से बोलना’ अनेक ग़लतफ़हमियों को दूर करने में मदद दे सकता है।

मतभेद दूर करना

लेकिन, इसका यह अर्थ नहीं कि आपके माता-पिता तुरन्त बातों को आपकी दृष्टि से देखने लगेंगे। इसलिए आपको अपनी भावनाओं पर पकड़ रखनी है। “मूर्ख अपने सारे मन की बात [मनोवेग] खोल देता है, परन्तु बुद्धिमान अपने मन को रोकता, और शान्त कर देता है।” (नीतिवचन २९:११) शान्तिपूर्वक अपने दृष्टिकोण के लाभ पर चर्चा कीजिए। विषय से जुड़े रहिए, इस पर बहस करने के बजाय कि “दूसरे सभी ऐसा करते हैं!”

कभी-कभी आपके माता-पिता मना कर देंगे। इसका यह अर्थ नहीं कि वे आपको नहीं समझते। वे शायद विपत्ति को रोकना-भर चाहते हों। “मेरी माँ मेरे साथ बहुत सख़्त हैं,” एक १६-वर्षीय लड़की स्वीकार करती है। “उनका मुझसे यह कहना कि मैं अमुक काम नहीं कर सकती, या [कि मुझे] एक निश्‍चित समय घर आना है मुझे परेशान कर देता है। लेकिन अन्दर की गहराई से, वह सचमुच परवाह करती हैं। . . . वह मेरी राह देखती हैं।”

आपसी समझ से एक परिवार में जो सुरक्षा और स्नेह आता है वह शब्दों से परे है। वह मनोव्यथा के समय में घर को एक आशियाना बना देता है। लेकिन सभी सम्बन्धित जनों की ओर से सच्चे प्रयास की ज़रूरत है।

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ युवाओं और माता-पिता में प्रायः झगड़ा क्यों होता है?

◻ अपने माता-पिता के बारे में एक बेहतर समझ, उनके बारे में आपके दृष्टिकोण को कैसे प्रभावित कर सकती है?

◻ आप अपने माता-पिता को और अच्छी तरह कैसे समझ सकते हैं?

◻ दोहरा जीवन जीना आप और आपके माता-पिता के बीच की दरार को क्यों बढ़ा देता है?

◻ जब आपको गंभीर समस्याएँ हो रही हैं तब अपने माता-पिता को बताना क्यों सबसे अच्छी बात है? आप उनको किस तरह बता सकते हैं?

◻ आपको और अच्छी तरह समझने में आप अपने माता-पिता की मदद कैसे कर सकते हैं?

[पेज 22 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“यदि [आपकी माँ] को लगता है कि आप उनमें रुचि रखते हैं, और उनकी कुछ भावनाओं के कारण जानते हैं, तो वह आपकी [भावनाओं के कारण] और अधिक जानने की कोशिश करेंगी।”—टीन पत्रिका

[पेज 20, 21 पर बक्स/तसवीर]

मैं अपने माता-पिता को कैसे बताऊँ?

अपने माता-पिता के सामने ग़लती स्वीकार करना सुखद काम नहीं है। युवा विजय कहता है: “मैंने हमेशा यह समझा कि मेरे माता-पिता को मुझ पर बहुत भरोसा है और इसने मेरे लिए उनके पास जाना मुश्‍किल बना दिया क्योंकि मैं उन्हें चोट नहीं पहुँचाना चाहता था।”

वे युवा जो किसी आड़ का सहारा लेते हैं प्रायः एक घायल अंतःकरण की टीस झेलते हैं। (रोमियों २:१५) उनकी ग़लतियाँ “भारी बोझ” बन सकती हैं, सहन से बहुत बाहर। (भजन ३८:४) लगभग हमेशा ही, वे झूठ बोलने के द्वारा अपने माता-पिता को धोखा देने के लिए मजबूर होते हैं, और इस प्रकार और भी ग़लतियाँ करते हैं। अतः परमेश्‍वर के साथ उनका सम्बन्ध ख़राब हो जाता है।

बाइबल कहती है: “जो अपने अपराध छिपा रखता है, उसका कार्य सुफल नहीं होता, परन्तु जो उनको मान लेता और छोड़ भी देता है, उस पर दया की जायेगी।” (नीतिवचन २८:१३) जैसे १९-वर्षीय बॆटी कहती है: “यहोवा तो वैसे भी सब कुछ देखता है।”

यदि यह गंभीर कुकर्म का मामला है, तो यहोवा से क्षमा माँगिए, प्रार्थना में अपनी ग़लती स्वीकार कीजिए। (भजन ६२:८) उसके बाद, अपने माता-पिता को बताइए। (नीतिवचन २३:२६) उनके पास जीवन का अनुभव है और वे प्रायः आपकी मदद कर सकते हैं कि आप अपनी ग़लतियों को पीछे छोड़कर उन्हें दोहराने से बचें। “उसके बारे में बात करना सचमुच आपकी मदद कर सकता है,” १८-वर्षीय क्रिस रिपोर्ट करता है। “अंततः अपने सिर का बोझ हलका करने से राहत मिलती है।” समस्या यह है, आप अपने माता-पिता को बताएँ कैसे?

बाइबल ‘ठीक समय पर कहे हुए वचन’ के बारे में बताती है। (नीतिवचन २५:११. सभोपदेशक ३:१, ७ से तुलना कीजिए।) वह कब हो सकता है? क्रिस आगे कहता है: “मैं रात्रि-भोजन तक रुकता हूँ और फिर पापा से कहता हूँ कि मुझे उनसे बात करनी है।” एक एक-जनक के पुत्र ने एक और समय आज़माया: “मैं अकसर सोने से पहले मम्मी के साथ बात करता; उस समय वह ज़्यादा आराम से होतीं। जब वह काम से घर लौटतीं, तब वह बड़ी भन्‍नाई हुई होतीं।”

आप शायद कुछ इस प्रकार कहें, “मम्मी-पापा, कोई बात मुझे परेशान कर रही है।” और तब क्या यदि आपके माता-पिता के पास ध्यान देने के लिए समय नहीं है? आप शायद कहें, “मैं जानता हूँ कि आप व्यस्त हैं, लेकिन कोई बात सचमुच मुझे परेशान कर रही है। क्या हम बात कर सकते हैं?” तब आप शायद पूछें: “क्या आपने कभी ऐसा कुछ किया है जिसके बारे में बात करने के लिए आप बहुत लज्जित थे?”

अब आता है कठिन हिस्सा: अपने माता-पिता को ग़लती के बारे में बताना। नम्र होइए और ‘सच बोलिए,’ अपनी ग़लती की गंभीरता को कम मत कीजिए या ज़्यादा ख़राब बातों को छिपाने की कोशिश मत कीजिए। (इफिसियों ४:२५. लूका १५:२१ से तुलना कीजिए।) उन शब्दों का प्रयोग कीजिए जो आपके माता-पिता समझेंगे, ऐसी अभिव्यक्‍तियाँ नहीं जो केवल युवा लोगों के लिए ख़ास अर्थ रखती हैं।

स्वाभाविक है, शुरू-शुरू में आपके माता-पिता को शायद चोट लगे और वे निरुत्साहित हों। सो चकित या क्रोधित मत होइए यदि वे आप पर भाव-प्रवण शब्दों के बाण चलाते हैं! यदि आपने उनकी पिछली चेतावनियाँ मानी होतीं, तो संभवतः आप इस स्थिति में नहीं होते। सो शान्त रहिए। (नीतिवचन १७:२७) अपने माता-पिता की सुनिए और उनके प्रश्‍नों के उत्तर दीजिए, चाहे वे कैसे भी क्यों न पूछें।

इसमें संदेह नहीं कि बातों को सुलझाने की आपकी उत्सुकता उन पर गहरा प्रभाव करेगी। (२ कुरिन्थियों ७:११ से तुलना कीजिए।) फिर भी, कुछ सुयोग्य अनुशासन स्वीकार करने के लिए तैयार रहिए। “वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तौभी जो उस को सहते सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता है।” (इब्रानियों १२:११) यह भी याद रखिए कि इसके बाद भी आपको अपने माता-पिता की मदद और अनुभवी सलाह की ज़रूरत पड़ेगी। उनको अपनी छोटी-छोटी समस्याएँ बताने की आदत डालिए ताकि जब बड़ी समस्याएँ आती हैं तब आप उनको अपने मन की बात बताने में डरें नहीं।

[तसवीर]

एक ऐसा समय चुनिए जब आपके माता-पिता की मनःस्थिति ज़्यादा अनुकूल हो