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मैं “अपनी माता और पिता का आदर” क्यों करूँ?

मैं “अपनी माता और पिता का आदर” क्यों करूँ?

अध्याय १

मैं “अपनी माता और पिता का आदर” क्यों करूँ?

“अपनी माता और पिता का आदर कर।” अनेक युवाओं को ये शब्द ऐसे लगते हैं मानो अन्धकार युग की कोई बात हो।

युवा पिंकी * ने एक ऐसे लड़के के साथ डेटिंग करने के द्वारा जो नशीले पदार्थों और शराब का दुरुपयोग करता था, खुलकर अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह छेड़ दिया। ज़िद्द में आकर, वह देर रात तक नाचने के लिए भी जाती। “मुझे लगता था कि वह बहुत सख़्त हैं,” पिंकी बताती है। “मैं १८ साल की थी, और सोचती थी कि मैं सब कुछ जानती हूँ। मुझे लगता था मेरे पिता बड़े ख़राब हैं और चाहते ही नहीं कि मैं मज़ा करूँ, सो मैं बाहर जाती और वही करती जो मैं करना चाहती थी।”

ज़्यादातर युवा शायद पिंकी की हरकतों को ग़लत मानें। फिर भी, यदि उनके माता-पिता उन्हें अपना कमरा साफ़ करने, अपना गृह-कार्य करने, या एक निश्‍चित समय तक घर लौटने की आज्ञा देते, तो अनेक युवा अन्दर ही अन्दर कुढ़ते या, उससे भी बदतर, खुलकर अपने माता-पिता की अवज्ञा करते! लेकिन, एक युवा का अपने माता-पिता के प्रति जो दृष्टिकोण है उसी हिसाब से घर में अंततः या तो युद्ध होगा या शान्ति, इतना ही नहीं यह उसके जीवन की भी बात हो सकती है। क्योंकि ‘अपने माता-पिता का आदर’ करने की आज्ञा परमेश्‍वर से आती है, और वह इस आज्ञा को मानने के साथ यह उत्प्रेरणा जोड़ता है: “कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे।” (इफिसियों ६:२, ३) बहुत कुछ दाँव पर है। इसलिए, आइए इस पर एक ताज़ा नज़र डालें कि अपने पिता और अपनी माता का आदर करने का असल में क्या अर्थ है।

उनका “आदर” करने का क्या अर्थ है

“आदर” में विधिवत्‌ स्थापित अधिकार को स्वीकार करना सम्मिलित है। उदाहरण के लिए, मसीहियों को आज्ञा दी गयी है कि ‘राजा का सम्मान करें।’ (१ पतरस २:१७) जबकि आप शायद एक राष्ट्रीय शासक के साथ हमेशा सहमत न हों, फिर भी उसके स्थान या पद का आदर किया जाना है। उसी प्रकार, परिवार में परमेश्‍वर ने माता-पिता को कुछ अधिकार दिया है। इसका अर्थ है कि आपके लिए नियम बनाने के उनके परमेश्‍वर-प्रदत्त अधिकार को आपको स्वीकार करना चाहिए। यह सच है कि दूसरे माता-पिता शायद आपके माता-पिता से अधिक ढील देते हों। लेकिन, यह फ़ैसला करना कि आपके लिए सर्वोत्तम क्या है आपके माता-पिता का काम है—और अलग-अलग परिवारों के अलग-अलग स्तर हो सकते हैं।

यह भी सच है कि अच्छे से अच्छे माता-पिता कभी-कभी अड़ियल—यहाँ तक कि ग़लत हो सकते हैं। लेकिन नीतिवचन ७:१, २ में, एक बुद्धिमान जनक ने कहा: “हे मेरे पुत्र [या पुत्री], . . . मेरी आज्ञाओं को मान, इस से तू जीवित रहेगा।” उसी प्रकार, आपके माता-पिता के नियम, या ‘आज्ञाएँ’ सामान्यतः आपकी भलाई के इरादे से होती हैं और उनके सच्चे प्रेम और परवाह की अभिव्यक्‍ति हैं।

उदाहरण के लिए, जॉन की माँ ने उसे कई बार बताया था कि उसे उनके घर के पास के छः-पथ राजमार्ग को पार करने के लिए हमेशा पैदल-पथ का प्रयोग करना चाहिए। एक दिन, स्कूल की दो लड़कियों ने उसे सड़क के बीच से ही छोटा रास्ता लेने के लिए ललकारा। उनके द्वारा “डरपोक!” चिढ़ाए जाने की परवाह न करते हुए, जॉन पैदल-पथ से गया। आधे रास्ते पहुँचने पर, जॉन ने घिसटते पहियों की आवाज़ सुनी। नीचे झाँका तो उसने भय से देखा कि उन दो लड़कियों को एक कार ने टक्कर मारकर हवा में उछाल दिया था! माना कि अपने माता-पिता की आज्ञा मानना शायद ही कभी जीवन-मृत्यु की बात होती है। फिर भी, आज्ञाकारिता से सामान्यतः आपको लाभ होता है।

‘अपने माता-पिता का आदर’ करने का अर्थ यह भी है कि जब ताड़ना दी जाती है तब उसे स्वीकार करें, रूठें नहीं, या नख़रेबाज़ी न करें। केवल मूर्ख “अपने पिता की शिक्षा का तिरस्कार करता है,” नीतिवचन १५:५ कहता है।

अंततः, आदर करने का अर्थ मात्र औपचारिक आदर देने या कुड़कुड़ाकर आज्ञा मानने से अधिक है। बाइबल में “आदर” अनुवादित मूल यूनानी क्रिया का मूल अर्थ है किसी को बहुत महत्त्व का समझना। अतः अपने माता-पिता को अनमोल, अति सम्माननीय, और प्रिय समझा जाना चाहिए। इसमें सम्मिलित है उनके प्रति स्नेह और मूल्यांकन की भावनाएँ रखना। लेकिन, कुछ युवाओं में अपने माता-पिता के प्रति स्नेही भावनाएँ बिलकुल नहीं होतीं।

समस्याकारी माता-पिता—आदर के योग्य?

जीना नाम की एक युवा ने लिखा: “मेरे पापा बहुत पीते थे, और मैं सो नहीं पाती थी क्योंकि मेरे माता-पिता बहुत बहस करते और चिल्लाते थे। मैं बिस्तर पर लेटती और बस रोती रहती। मैं उनको बता नहीं सकती थी कि मुझे कैसे लगता है क्योंकि मेरी मम्मी शायद मुझे मारतीं। बाइबल कहती है ‘अपने पिता का आदर कर,’ लेकिन मैं नहीं कर सकती।”

जो माता-पिता गरम-मिज़ाज या बदचलन हैं, जो पियक्कड़ हैं, या जो एक दूसरे के साथ झगड़ते हैं—क्या वे वास्तव में आदर के योग्य हैं? जी हाँ, क्योंकि बाइबल कैसे-भी जनक का “अनादर” करने की निन्दा करती है। (नीतिवचन ३०:१७) नीतिवचन २३:२२ हमें यह भी याद दिलाता है कि आपके माता-पिता आपके “जन्मानेवाले” हैं। यह स्वयं ही उनका आदर करने का कारण है। ग्रॆगरी, जो कभी बहुत ही अनादरपूर्ण था, अब कहता है: “मैं यहोवा परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ कि [मेरी माँ] ने मुझे गिरा नहीं दिया या जब मैं नन्हा-सा था तब मुझे कचरा-पेटी में नहीं डाल दिया। वह एक-जनक हैं, और हम छः हैं। मैं जानता हूँ कि उनके लिए बड़ा मुश्‍किल था।”

जबकि आपके माता-पिता परिपूर्ण नहीं हैं, फिर भी उन्होंने आपके लिए अनेक त्याग किए हैं। “एक समय हमारे पास खाने के लिए बस एक डिब्बा मक्का और कुछ आटा बचा था,” ग्रॆगरी आगे कहता है। “मेरी मम्मी ने उसे हम बच्चों के लिए बना दिया, लेकिन ख़ुद नहीं खाया। मैं पेट-भर खाकर सोने गया, लेकिन सोचता रहा कि मम्मी ने क्यों नहीं खाया। अब जब मेरा ख़ुद का परिवार है, तब मैं समझता हूँ कि वह हमारे लिए त्याग कर रही थीं।” (एक शोध अध्ययन १८ साल की उम्र तक एक बच्चे को पालने का ख़र्च $६६,४०० बताता है।)

यह भी समझिए कि मात्र इसलिए कि आपकी माता या पिता का उदाहरण सबसे अच्छा नहीं है, यह अर्थ नहीं रखता कि वह हर बात जो वह आपको बताती/ता है ग़लत है। यीशु के समय में, धार्मिक अगुवे भ्रष्ट थे। लेकिन, यीशु ने लोगों से कहा: “वे तुम से जो कुछ कहें वह करना, और मानना; परन्तु उन के से काम मत करना।” (मत्ती २३:१-३, २५, २६) क्या यह सिद्धान्त कुछ माता-पिताओं पर नहीं लागू किया जा सकता?

नाराज़गी की भावनाओं से निपटना

तब क्या यदि आपको लगता है कि आपकी माता या पिता अपने अधिकार का बहुत दुरुपयोग कर रहे हैं? * शान्त रहिए। न विद्रोह करने से, न ही घृणा और दुर्भाव का व्यवहार करने से कोई लाभ होता है। (सभोपदेशक ८:३, ४सभोपदेशक १०:४ से तुलना कीजिए।) एक १७-वर्षीय लड़की अपने माता-पिता से नाराज़ रहने लगी क्योंकि वे अपनी तू-तू मैं-मैं में लगे रहते थे और लगता था कि उसकी ओर उनका ध्यान ही नहीं है। तब उनसे अपनी नाराज़गी को उसने उन बाइबल सिद्धान्तों पर उतारा जो उसके माता-पिता ने उसे सिखाने चाहे थे। मात्र दुर्भाव के कारण, वह लैंगिक अनैतिकता और नशीले पदार्थों का दुरुपयोग करने लगी। “मुझे लगा अपने माता-पिता के साथ मुझे यही करना चाहिए,” उसका कटु उत्तर था। लेकिन दुर्भावपूर्ण होने के द्वारा, उसने अपने आपको ही चोट पहुँचायी।

बाइबल चिताती है: “ध्यान रख कि रोष तुझे दुर्भावपूर्ण [कार्यों] के लिए न प्रलोभित करे . . . चौकस रह कि तू चोट पहुँचानेवाले काम की ओर न फिरे।” (अय्यूब ३६:१८-२१, NW) इस बात को समझिए कि माता-पिता अपने आचरण के लिए यहोवा के सामने उत्तरदायी हैं और उन्हें किसी भी गंभीर अन्याय के लिए उत्तर देना पड़ेगा।—कुलुस्सियों ३:२५.

नीतिवचन १९:११ कहता है: “जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है, और अपराध को भुलाना उसको सोहता है।” कभी-कभी माता या पिता के चोट पहुँचानेवाले कार्यों को क्षमा करने और भूल जाने की कोशिश करना ही अच्छा होता है। उसकी ग़लतियों पर सोचते रहने के बजाय, उसके अच्छे गुणों पर ध्यान दीजिए। उदाहरण के लिए, डोडी की मम्मी भावशून्य थी और सौतेला पिता पियक्कड़। नोट कीजिए कि कैसे उनकी कमियों के बारे में उसकी अंतर्दृष्टि ने कड़ुवाहट को दबाया। वह कहती है: “लगता है मेरी मम्मी ने हमें कभी प्रेम नहीं दिखाया, क्योंकि बचपन में उन्हें परपीड़ित किया गया था और कभी सिखाया ही नहीं गया कि प्रेम कैसे दिखाएँ। मेरे सौतेले पिता जब नशे में नहीं होते थे तब हमारे कार्यों में दिलचस्पी दिखाते थे, लेकिन ऐसा बहुत ही कम होता था। फिर भी, मेरे और मेरी बहन के पास हमेशा रहने के लिए एक घर और घर में खाना था।”

ख़ुशी की बात है कि पथभ्रष्ट या लापरवाह माता-पिता बहुत कम हैं। अति संभव है कि आपके माता-पिता आप में दिलचस्पी लेते हैं और एक अच्छा उदाहरण रखने की कोशिश करते हैं। फिर भी, आपको शायद कभी-कभी उनसे कुछ नाराज़गी हो। “कभी-कभी जब मैं मम्मी से किसी समस्या पर बात कर रहा होता और वह मेरी बात समझ नहीं पातीं,” रॉजर नाम का एक युवक स्वीकार करता है, “मुझे गुस्सा आ जाता और उन्हें चोट पहुँचाने के लिए मैं दुर्भाव से कुछ कह देता। उनसे बदला लेने का यह मेरा तरीक़ा था। लेकिन जब मैं वहाँ से चला जाता, मुझे बहुत बुरा लगता, और मैं जानता था कि उनको भी अच्छा नहीं लगता था।”

विचारहीन शब्द शायद ‘चुभें’ और ‘पीड़ा दें,’ लेकिन वे आपकी समस्याओं को नहीं सुलझाएँगे। “बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।” (नीतिवचन १२:१८; १५:१, NHT) “जबकि यह कठिन था, फिर भी मैं वापस जाता और क्षमा माँगता,” रॉजर बताता है। “तब मैं ज़्यादा शान्ति के साथ समस्या पर बात कर पाता था, और हम उसे सुलझा पाते थे।”

‘मेरे पापा की बात सही थी’

दिलचस्पी की बात है कि कुछ युवा जनकीय उपदेशों का विरोध करते-करते अपने आपको और अपने माता-पिता को थका देते हैं, और बाद में उन्हें पता चलता है कि शुरू से ही उनके माता-पिता सही थे। उदाहरण के लिए, पिंकी (आरंभ में उल्लिखित) पर विचार कीजिए। वह एक दिन अपने बॉयफ्रॆन्ड के साथ सैर पर गयी। वह चरस और बियर के नशे में था। कार क़ाबू से बाहर हो गयी और १०० किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से एक खम्भे से जा टकरायी। पिंकी बच गयी—उसके माथे पर एक गहरी चोट आयी। उसका बॉयफ्रॆन्ड घटना-स्थल से भाग खड़ा हुआ, और उसकी मदद करने के लिए अस्पताल तक नहीं आया।

“जब मेरे माता-पिता अस्पताल आए,” पिंकी ने स्वीकार किया, “मैंने उन्हें बताया कि मेरे पापा की हर बात सही थी और मुझे बहुत पहले ही सुन लेनी चाहिए थी। . . . मैंने बहुत बड़ी ग़लती की थी, और इस कारण मेरी जान पर बन आयी।” उसके बाद, पिंकी ने अपने माता-पिता की ओर अपने रुख में कुछ बड़े बदलाव किए।

शायद आपकी ओर से भी कुछ बदलाव उपयुक्‍त हों। ‘अपने माता-पिता का आदर’ करना शायद सचमुच एक पुराना विचार लगे। लेकिन ऐसा करना न केवल होशियारी की बात है बल्कि परमेश्‍वर की दृष्टि में सही बात भी है। लेकिन तब क्या, यदि आप अपने माता-पिता को आदर दिखाना चाहते हैं लेकिन आपको लगता है कि आपको ग़लत समझा जा रहा है या रोक-टोक लगाकर जकड़ा जा रहा है? आइए जाँचते हैं कि ऐसी परिस्थितियों में आप अपनी स्थिति कैसे सुधार सकते हैं।

[फुटनोट]

^ पैरा. 4 इस पुस्तक में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

^ पैरा. 18 हम यहाँ शारीरिक या लैंगिक दुर्व्यवहार के मामलों का उल्लेख नहीं कर रहे हैं जिनमें एक युवा को घर के बाहर से पेशेवर मदद माँगने की ज़रूरत पड़ सकती है।

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ अपने माता-पिता का आदर करने का क्या अर्थ है?

◻ माता-पिता इतने सारे नियम क्यों बनाते हैं? क्या उन नियमों से आपको लाभ हो सकता है?

◻ यदि आपके माता-पिता का आचरण निन्दनीय है तो क्या आपको उनका आदर करना चाहिए? क्यों?

◻ कभी-कभी अपने माता-पिता से शायद जो नाराज़गी आपको हो, उससे निपटने के कुछ लाभकारी तरीक़े क्या हैं? कुछ मूर्खतापूर्ण तरीक़े क्या हैं?

[पेज 16 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“मुझे लगता था मेरे पिता बड़े ख़राब हैं और चाहते ही नहीं कि मैं मज़ा करूँ, सो मैं बाहर जाती और वही करती जो मैं करना चाहती थी”

[पेज 12 पर तसवीर]

आपको अपने माता-पिता के नियमों को किस दृष्टि से देखना चाहिए?

[पेज 14 पर तसवीर]

क्या आपको ऐसे माता-पिता का आदर करना चाहिए जिनका आचरण निन्दनीय है?