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मैं क्या करूँ कि मेरे माता-पिता मुझे अधिक छूट दें?

मैं क्या करूँ कि मेरे माता-पिता मुझे अधिक छूट दें?

अध्याय ३

मैं क्या करूँ कि मेरे माता-पिता मुझे अधिक छूट दें?

आप कहते हैं आप इतने बड़े हो गए हैं कि सप्ताहांत में देर तक बाहर रह सकते हैं। वे कहते हैं आपको जल्दी घर आना है। आप कहते हैं आपको वह नयी फ़िल्म देखनी है जिसके बारे में सब लोग बात कर रहे हैं। वे कहते हैं आप उसे नहीं देख सकते। आप कहते हैं आपकी पहचान कुछ अच्छे बच्चों से हो गयी है जिनके साथ आप बाहर जाना चाहेंगे। वे कहते हैं वे पहले आपके मित्रों से मिलना चाहेंगे।

जब आप एक किशोर होते हैं, तब कभी-कभी ऐसा लग सकता है मानो आपके माता-पिता की आपके जीवन पर एक कड़ी पकड़ है। ऐसा लगता है कि जब भी आप कहते हैं “मैं करना चाहता हूँ” उत्तर अवश्‍य ही यह होता है “नहीं, आप नहीं कर सकते।” न ही आपके जीवन का कोई हिस्सा आपके माता-पिता की “पैनी नज़रों” से बच पाता है। १५-वर्षीय डॉली कहती है: “मेरे पापा हमेशा जानना चाहते हैं कि मैं कहाँ हूँ, किस समय घर आऊँगी। अधिकांश माता-पिता ऐसा करते हैं। क्या उन्हें सब कुछ जानने की ज़रूरत है? उनको चाहिए कि मुझे अधिक छूट दें।”

युवा यह शिक़ायत भी करते हैं कि उनके माता-पिता उनका आदर नहीं करते। जब कुछ ग़लत हो जाता है, तब उन पर भरोसा करने के बजाय बिना सुनवाई के उनको दोषी ठहराया जाता है। इसके बजाय कि उन्हें अपने चुनाव करने की अनुमति दी जाए, उन्हें नियमों से घेरकर रखा जाता है।

“मानसिक व्यथा”

क्या आपके माता-पिता कभी-कभी आपके साथ एक छोटे बच्चे की तरह व्यवहार करते हैं? यदि हाँ, तो याद रखिए कि कुछ ही समय पहले आप सचमुच बच्चे थे। एक असहाय शिशु के रूप में आपकी छवि आपके माता-पिता के मन में काफ़ी ताज़ा है और इतनी आसानी से नहीं जाएगी। वे अब भी उन बचकाना ग़लतियों को याद करते हैं जो आप किया करते थे और इसलिए वे आपका बचाव करना चाहते हैं—चाहे आपको ऐसी सुरक्षा चाहिए या नहीं।

आपका बचाव करने का वह आवेग बहुत ही प्रचण्ड है। जब मम्मी-पापा आपके सिर पर छत डालने, आपको पहनाने, या आपको खिलाने में व्यस्त नहीं होते हैं, तब वे अकसर उन समस्याओं से उलझ रहे होते हैं कि आपको कैसे पढ़ाएँ, सिखाएँ, और हाँ, सुरक्षित रखें। आप में उनकी दिलचस्पी निश्‍चित ही सतही नहीं है। वे जिस रीति से आपका पालन-पोषण करते हैं उसके लिए वे परमेश्‍वर के सामने ज़िम्मेदार हैं। (इफिसियों ६:४) और जब कोई बात आपके हित को ख़तरे में डालती हुई दिखती है, तब वे चिन्ता करते हैं।

यीशु मसीह के माता-पिता पर विचार कीजिए। यरूशलेम को एक यात्रा के बाद, वे अनजाने में उसके बिना घर की ओर निकल पड़े। जब उन्हें उसकी अनुपस्थिति का एहसास हुआ, तब उन्होंने बड़ी लगन से—जी-जान से—उसे ढूँढा! और जब आख़िर में उन्होंने ‘उसे मन्दिर में पाया,’ तब यीशु की माँ ने कहा, “हे पुत्र, तू ने हम से क्यों ऐसा व्यवहार किया? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए [“मानसिक व्यथा में,” NW] तुझे ढूंढ़ते थे।” (तिरछे टाइप हमारे।) (लूका २:४१-४८) अब यदि यीशु—परिपूर्ण बालक—ने अपने माता-पिता को बेचैन किया, तो सोचिए कि आप अपने माता-पिता को कितना चिन्तित करते होंगे!

उदाहरण के लिए, उस अन्तहीन झगड़े को लीजिए कि किस समय आपको घर आना चाहिए। शायद आपको इस तरह की रोक-टोक का कोई कारण नहीं दिखता। लेकिन क्या आपने कभी अपने माता-पिता के दृष्टिकोण से बातों को देखा है? माता-पिता के बारे में बच्चों की पुस्तक (अंग्रेज़ी) के स्कूल-आयु लेखकों ने यही करने की कोशिश की। उन्होंने उन बातों की एक सूची बनायी जिनको उन्होंने कहा “वे कल्पनाएँ जो माता-पिताओं के मन में चलती होंगी कि यदि उनके बच्चे सही समय पर घर में नहीं हैं तो वे क्या कर रहे होंगे।” इस सूची में ऐसी बातें सम्मिलित थीं जैसे ‘नशीले पदार्थ लेना, कार दुर्घटना में पड़ना, बाग़ीचों में मटरगश्‍ती करना, गिरफ़्तार होना, अश्‍लील फ़िल्में देखने जाना, मादक पदार्थ बेचना, बलात्कार होना या लूटा जाना, जेल पहुँचना, और परिवार के नाम पर कलंक लगाना।’

सभी माता-पिता इतनी बड़ी-बड़ी बातें नहीं सोचते। लेकिन क्या यह सच नहीं कि अनेक युवजन ऐसी बातों में अंतर्ग्रस्त हैं? सो क्या आपको इस सुझाव से खिजना चाहिए कि देर से घर आना और ग़लत क़िस्म की संगति रखना दोनों ही हानिकर हो सकते हैं? यीशु के माता-पिता भी उसका पता-ठिकाना जानना चाहते थे!

वे क्यों दम घोंटकर रखते हैं

कुछ युवा कहते हैं कि उनको हानि पहुँचने के बारे में उनके माता-पिता का डर संविभ्रम बीमारी की हद तक है! लेकिन याद रखिए, आप पर बहुत समय लगाया गया है और आपसे बहुत भावनाएँ जुड़ी हैं। आपके बड़े होने और अंततः अलग हो जाने का विचार आपके माता-पिता को परेशान कर सकता है। एक जनक ने लिखा: “मेरा एकलौता बच्चा अब उन्‍नीस का है, और मुझसे तो यह विचार ही नहीं सहा जाता कि वह घर छोड़कर जाए।”

अतः कुछ माता-पिता अकसर अपने बच्चों का दम घोंटकर रखते हैं या ज़रूरत से ज़्यादा सुरक्षित रखते हैं। लेकिन, बदले में आपका अनावश्‍यक प्रतिक्रिया दिखाना सचमुच एक ग़लती होगी। एक युवती याद करती है: “जब तक कि मैं लगभग १८ साल की नहीं हो गयी, मेरी माँ और मैं बहुत क़रीब थे। . . . [लेकिन] जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई हमें समस्याएँ होने लगीं। मैं कुछ स्वतंत्रता पाना चाहती थी, जिसे उन्होंने हमारे सम्बन्ध के लिए एक ख़तरा समझा होगा। बदले में, उन्होंने मुझे और कसकर रखने की कोशिश शुरू की, और मैंने और दूर होने के द्वारा प्रतिक्रिया दिखायी।”

कुछ हद तक स्वतंत्रता सही है, लेकिन इसे अपने पारिवारिक बन्धनों की क़ीमत पर मत प्राप्त कीजिए। आप अपने माता-पिता के साथ अपना सम्बन्ध अधिक प्रौढ़ स्तर पर कैसे रख सकते हैं, जो परस्पर समझ, सहनशीलता, और आदर पर आधारित हो? एक बात तो यह है कि आदर को आदर मिलता है। एक बार प्रेरित पौलुस ने याद किया: “जब शारीरिक पिता भी हमारी ताड़ना करते थे तो हमने उनका आदर किया।” (तिरछे टाइप हमारे।) (इब्रानियों १२:९, NHT) इन आरंभिक मसीहियों के माता-पिता अचूक नहीं थे। पौलुस ने आगे कहा (आयत १०): “हमारे मानवी पिता . . . केवल वही कर सकते थे जो उनके विचार से सर्वोत्तम था।”—द जरूसलेम बाइबल।

कभी-कभी इन पुरुषों ने ग़लत फ़ैसले किए। फिर भी वे अपने बच्चों के आदर के योग्य थे। आपके माता-पिता भी इसके योग्य हैं। यह बात कि वे शायद दमघोंटू क़िस्म के हैं विद्रोही होने का कोई कारण नहीं। उन्हें वही आदर दीजिए जो आप अपने लिए चाहते हैं।

ग़लतफ़हमियाँ

क्या आपको कभी अपने बस के बाहर परिस्थितियों के कारण घर आने में देरी हुई है? क्या आपके माता-पिता ने अति-प्रतिक्रिया दिखायी? ऐसी ग़लतफ़हमियाँ आपको आदर जीतने का एक और अवसर देती हैं। याद कीजिए कि युवा यीशु ने अपने आपको कैसे संभाला जब उसके परेशान माता-पिता ने अंततः उसे मन्दिर में, निर्मलता से कुछ उपदेशकों के साथ परमेश्‍वर के वचन से चर्चा करते हुए पाया। क्या यीशु ने एक भावात्मक भाषण देना, रोना, या रें-रें करना शुरू कर दिया कि उनका उसके अभिप्रायों पर संदेह करना कितना अनुचित था? उसके शान्त उत्तर को नोट कीजिए: “तुम मुझे क्यों ढूंढ़ते थे? क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्‍य है?” (लूका २:४९) इसमें संदेह नहीं कि यीशु ने यहाँ जो प्रौढ़ता दिखायी उससे उसके माता-पिता प्रभावित हुए। अतः “कोमल उत्तर सुनने से” न केवल “जलजलाहट ठण्डी होती है” बल्कि इससे आपको अपने माता-पिता का आदर जीतने में भी मदद मिल सकती है।—नीतिवचन १५:१.

नियम और विनियम

आप अपने माता-पिता की माँगों पर कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं उसका भी इससे काफ़ी सम्बन्ध है कि आपके साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा। कुछ युवा रूठते, झूठ बोलते, या खुलकर अवज्ञा करते हैं। अधिक प्रौढ़ तरीक़ा अपनाकर देखिए। यदि आप देर तक बाहर रहने की अनुमति चाहते हैं तो बचकाना माँगें मत कीजिए या रें-रें मत कीजिए कि “दूसरे सभी बच्चे देर तक बाहर रहते हैं।” लेखिका ऐन्ड्रिया ईगन सलाह देती है: “उन्हें जितना हो सके [बताइए] कि आप क्या करना चाहते हैं, ताकि वे स्थिति को असल में समझें। . . . यदि आप उनको इस बारे में सब कुछ बताते हैं कि आप कहाँ होंगे और किस के साथ होंगे और देर तक बाहर रहना आपके लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है . . . , तो वे शायद हाँ कह दें।”

या यदि आपके माता-पिता आपके मित्रों को परखना चाहते हैं—जो कि उन्हें करना चाहिए—तो बच्चे की तरह पिनपिनाइए नहीं। सॆवॆनटीन (अंग्रेज़ी) पत्रिका ने सलाह दी: “समय-समय पर मित्रों को अपने साथ घर लाइए, ताकि जब आप कहते हैं कि आप बिल के साथ फ़िल्म देखने जा रहे हैं, तो आपके पिता के पास दूसरे कमरे से गरजने का कोई कारण नहीं है, ‘बिल? कौन बिल?’”

“और दिया जाएगा”

अपने छोटे भाई रॉन के बारे में बात करते समय जिम मुस्कराता है। “हमारे बीच केवल ११ महीने का फ़र्क है,” वह कहता है, “लेकिन हमारे माता-पिता ने हमारे साथ बहुत अलग-अलग व्यवहार किया। उन्होंने मुझे बहुत छूट दी। मैं परिवार की कार चला सकता था। एक साल तो उन्होंने मुझे न्यू यॉर्क सिटी की यात्रा पर एक छोटे भाई को लेकर जाने दिया।

“लेकिन, रॉन के साथ अलग था,” जिम आगे कहता है। “उसे अधिक छूट नहीं दी गयी। जब वह बड़ा हुआ तब पापा ने उसे गाड़ी चलाना सिखाने का कष्ट भी नहीं किया। और जब उसे लगा कि वह डेटिंग करने की उम्र का हो गया है, तब मेरे माता-पिता ने उसे नहीं करने दी।”

पक्षपात? जी नहीं। जिम समझाता है: “रॉन ग़ैर-ज़िम्मेदार क़िस्म का था। उसमें पहल करने की कमी थी। वह अकसर उसे नियुक्‍त किए गए काम को करने से चूक जाता था। और जबकि मैंने अपने माता-पिता को उलटकर कभी कुछ नहीं कहा, रॉन उन्हें बता देता कि वह सहमत नहीं है। यह हमेशा उलटकर उस पर आता।” यीशु ने मत्ती २५:२९ में कहा: “क्योंकि जिस किसी के पास है, उसे और दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा: परन्तु जिस के पास नहीं है, उस से वह भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा।”

क्या आप अधिक छूट और ज़िम्मेदारी चाहते हैं? तो अपने आपको ज़िम्मेदार साबित कीजिए। जो भी काम आपके माता-पिता आपको नियुक्‍त करते हैं उसे गंभीरता से लीजिए। यीशु की एक नीतिकथा के युवा की तरह मत बनिए। अपने पिता द्वारा यह कहे जाने पर, “बेटे जा, आज दाख की बारी में काम कर,” उसने कहा, “अच्छा मैं जाऊंगा,” परन्तु “वह नहीं गया।” (मत्ती २१:२८, २९, NHT) अपने माता-पिता को विश्‍वस्त कीजिए कि यदि वे आपसे कुछ करने के लिए कहते हैं, तो चाहे वह कितना भी छोटा काम क्यों न हो, समझिए हो गया।

“मैंने अपने माता-पिता को दिखाया कि मैं ज़िम्मेदारी संभाल सकता हूँ,” जिम याद करता है। “वे मुझे बैंक भेजते, हमारी सुविधाओं के बिलों का भुगतान करने देते, सुपर बाज़ार जाकर ख़रीदारी करने देते। और जब मम्मी को बाहर जाकर नौकरी करनी पड़ी, तब मैंने घर का खाना भी बनाया।”

पहल करना

यदि आपके माता-पिता ने आपको ऐसे कार्य नियुक्‍त ही नहीं किए हैं तब क्या? अलग-अलग बातों में पहल कीजिए। सॆवॆनटीन पत्रिका ने सुझाव दिया: “अपने परिवार के लिए एक बार खाना पकाने का प्रस्ताव रखिए, और अपने माता-पिता को बताइए कि आप सब कुछ करना चाहते हैं: क्या पकेगा यह सोचना, सामान की सूची बनाना, बजट बनाना, ख़रीदारी करना, पकाना, सफ़ाई करना।” और यदि खाना बनाना आपका क्षेत्र नहीं है, तो आस-पास ध्यान दीजिए और देखिए कि और कौन-सा काम किया जा सकता है। जब बर्तन धोने हैं, झाड़ू लगानी है, या कमरों को ठीक करना है तब इन कामों को करने के लिए आपको अपने माता-पिता से एक स्पष्ट आदेश की ज़रूरत नहीं है।

अनेक युवा गर्मियों में या सप्ताहांतों में अंश-कालिक नौकरी करते हैं। यदि आप ऐसा करते हैं तो क्या आपने साबित किया है कि आप अपना पैसा बचाने और संभालने के योग्य हैं? क्या आपने अपने रहने और खाने की ओर कुछ योग देने की स्वेच्छा दिखायी है? (अपने इलाक़े में एक कमरा किराए पर लेने की वर्तमान दर पता लगाना शायद आपकी आँखें खोल दे।) ऐसा करने का अर्थ हो सकता है कम जेबख़र्च, लेकिन जब आपके माता-पिता पैसे को संभालने के आपके बड़ों-जैसे तरीक़े को देखते हैं तब निश्‍चित ही वे आपको अधिक छूट देने के लिए प्रवृत्त होंगे।

पल्ला छोड़ना

माता-पिता हमारे भरोसे के मित्र होने चाहिए, सलाह और परामर्श के समृद्ध स्रोत। (यिर्मयाह ३:४ से तुलना कीजिए।) लेकिन, इसका यह अर्थ नहीं कि आपको हर छोटा फ़ैसला करने के लिए उन पर निर्भर होना चाहिए। अपने “ज्ञानेन्द्रिय” प्रयोग करने के द्वारा ही आप फ़ैसले करने की अपनी योग्यता में विश्‍वास बढ़ाते हैं।—इब्रानियों ५:१४.

सो छोटे-से संकट का पहला चिन्ह देखते ही अपने माता-पिता के पास भागने के बजाय, पहले अपने मन में समस्या को सुलझाने की कोशिश कीजिए। स्थिति के बारे में “बहुत उतावले” या आवेगी होने के बजाय, पहले “ज्ञान पर विचार” करने की बाइबल सलाह को मानिए। (यशायाह ३२:४, NW) कुछ छानबीन कीजिए, ख़ासकर यदि बाइबल सिद्धान्त अंतर्ग्रस्त हैं। शान्त होकर स्थिति पर मनन कीजिए, फिर अपने माता-पिता के पास जाइए। हमेशा यह कहने के बजाय, ‘पापा, मैं क्या करूँ?’ या ‘मम्मी, आप क्या करतीं?’ स्थिति समझाइए। उन्हें बताइए कि स्थिति के बारे में आपने क्या सोचा है। फिर उनके विचार पूछिए।

अब आपके माता-पिता आपको एक बच्चे की तरह नहीं बल्कि एक वयस्क की तरह बात करते देखते हैं। आपने यह साबित करने की ओर एक बड़ा क़दम उठाया है कि आप एक वयस्क बन रहे हैं जो कुछ हद तक छूट के योग्य है। अति संभव है कि आपके माता-पिता आपके साथ एक वयस्क की तरह व्यवहार करने लगें।

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ माता-पिता अपने बच्चों का बचाव करने और उनका पता-ठिकाना जानने के बारे में प्रायः इतने चिन्तित क्यों होते हैं?

◻ यह क्यों महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने माता-पिता से आदर के साथ व्यवहार करें?

◻ अपने माता-पिता के साथ हुई ग़लतफ़हमियों को सबसे अच्छी तरह कैसे दूर किया जा सकता है?

◻ आप अपने माता-पिता के नियमों और विनियमों के साथ कैसे सहयोग दे सकते हैं और फिर भी कुछ छूट पा सकते हैं?

◻ कौन-से कुछ तरीक़ों से आप अपने माता-पिता को साबित कर सकते हैं कि आप ज़िम्मेदार हैं?

[पेज 29 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“मेरे पापा हमेशा जानना चाहते हैं कि मैं कहाँ हूँ, किस समय घर आऊँगी। . . . क्या उन्हें सब कुछ जानने की ज़रूरत है?”

[पेज 27 पर तसवीर]

क्या आपको लगता है कि आपके माता-पिता आपको बंदिश में रखते हैं?

[पेज 30 पर तसवीर]

जब ग़लतफ़हमियाँ हो गयी हैं तब शान्त रहना आदर पाने का एक तरीक़ा है