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परिचय

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आमुखव्यावहारिक उत्तर

‘मेरे माता-पिता मुझे समझते क्यों नहीं?’ ‘क्या मैं ड्रग्स और शराब लेकर देखूँ?’ ‘विवाह से पहले सॆक्स के बारे में क्या?’ ‘मैं कैसे जानूँ कि यह सच्चा प्रेम है?’ ‘मेरे लिए भविष्य में क्या है?’

ऐसे प्रश्‍न पूछनेवाले न तो आप पहले युवा हैं—न ही आख़िरी। लेकिन, जब युवा ये मूल प्रश्‍न उठाते हैं, तब उन पर ढेरों असंगत उत्तर थोप दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, शराब पीना। माता-पिता शायद आपको मना करें—जबकि स्वयं इसका सेवन करते हों। पत्रिकाएँ और टीवी कार्यक्रम इसके गुण गाते हैं। समकक्ष आपको उकसाते हैं कि इसे आज़माकर देखो। तो फिर, इसमें आश्‍चर्य नहीं कि अनेक युवा इस बारे में सचमुच उलझन में हैं कि उन्हें करना क्या चाहिए।

आज के युवाओं के प्रश्‍नों के स्पष्ट और व्यावहारिक उत्तरों की आवश्‍यकता देखते हुए, सजग होइए! पत्रिका * ने जनवरी १९८२ में “युवा लोग पूछते हैं . . . ” शीर्षक का एक रूपक आरंभ किया। इस श्रंखला को तुरन्त पाठकों की अनुकूल प्रतिक्रिया मिली। “यह श्रंखला आज युवाओं की दशा में आपकी सतत रुचि का प्रमाण है,” एक क़दरदान पाठक ने लिखा। “मैं आशा और प्रार्थना करता हूँ कि ये लेख कभी बंद न हों,” दूसरे ने लिखा।

एक और युवा पाठक ने इस प्रकार कहा: ‘मैं १४ साल का हूँ और मैंने सोचा भी नहीं था कि बड़ा होना इतना कठिन हो सकता है। आज बच्चों पर इतना अधिक दबाव है। इसी कारण मैं इन लेखों के लिए बहुत आभारी हूँ। इन्हें प्रकाशित कराने के लिए मैं हर रात परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ।’ लेकिन, ये लेख बचकाना नहीं थे, न ही हमारे पाठकों को ‘बचकाना समझने’ का कोई प्रयास किया गया था। अतः “युवा लोग पूछते हैं . . . ” को बड़ों ने भी पसन्द किया। “मैं ४० साल का हूँ,” एक जनक ने लिखा। “ये लेख हम माता-पिताओं के लिए सचमुच ईश्‍वर की देन हैं।” मसीही प्राचीनों ने यहोवा के साक्षियों की कलीसियाओं में युवाओं को समझने और उनके साथ व्यवहार करने में इन्हें ख़ासकर उपयोगी पाया।

“युवा लोग पूछते हैं . . . ” को इतनी उत्साही प्रतिक्रिया क्यों मिली है? दिए गए उत्तर सचमुच व्यावहारिक हैं! हर लेख गहरा शोध करने के बाद निकलता है। इसके अलावा, यह निश्‍चित करने के लिए कि असल में युवाओं के क्या सोच और भाव हैं, सजग होइए! के रिपोर्टरों ने संसार-भर में सैकड़ों युवाओं से बात की है! उनकी सच्ची अभिव्यक्‍तियों ने इन लेखों को वास्तविक और व्यावहारिक बनाने में बहुत मदद दी है।

लेकिन, “युवा लोग पूछते हैं . . . ” की सफलता का असली रहस्य इस सच्चाई में है कि दिए गए उत्तर किसी मत या व्यक्‍तिगत विचार पर नहीं, बल्कि परमेश्‍वर के वचन, बाइबल में पायी गयी सनातन सच्चाइयों पर आधारित हैं। ‘बाइबल?’ आप शायद पूछें। जी हाँ, इसमें युवाओं के लिए काफ़ी कुछ है। (नीतिवचन अध्याय, १-७; इफिसियों ६:१-३ देखिए।) इसे हमारे सृष्टिकर्ता ने उत्प्रेरित किया था, जो “जवानी की अभिलाषाओं” से अच्छी तरह परिचित है। (२ तीमुथियुस २:२०-२२; ३:१६) और जबकि बाइबल समय से अब तक मानव समाज काफ़ी बदल गया है, युवाओं की अभिलाषाएँ नहीं बदलीं। इसलिए बाइबल हमेशा के जितनी सामयिक है। लेकिन, हमने बाइबल की सलाह को एक ऐसे ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है कि युवाओं को यह न लगे कि उन्हें भाषण दिया जा रहा है, बल्कि लगे कि उनके साथ तर्क किया जा रहा है। और जबकि विषय को मुख्यतः यहोवा के साक्षियों के बीच युवाओं को ध्यान में रखते हुए लिखा गया है, कोई भी जो बाइबल में दी गयी व्यावहारिक बुद्धि का आदर करता है इसे पढ़कर आनन्द ले सकता है।

अनेक पाठकों के निवेदनों को मानकर, हमने कई “युवा लोग पूछते हैं . . . ” लेखों को पुस्तक रूप में संकलित किया है। यहाँ दिए गए ३९ अध्याय १९८२ और १९८९ के बीच सजग होइए! में आए लगभग २०० लेखों में से, १०० से अधिक लेखों की जानकारी को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करते हैं। कुछ ताज़ा जानकारी जोड़ी गयी है। इसके अतिरिक्‍त, इसे अलग-अलग देशों और जातियों के युवाओं की तस्वीरों से अच्छी तरह सजाया गया है।

बिना संकोच किए विषय-सूची को देखिए और जो प्रश्‍न आपको सबसे अधिक लागू होते हैं उन्हें पढ़िए। लेकिन, हमारी सलाह है कि बाद में आप समय निकालकर इस पुस्तक को शुरू से आख़िर तक पढ़ें, और शास्त्रवचनों को अपनी बाइबल से खोलकर देखें।

कुछ परिवारों में, माता-पिता और बच्चों के बीच संचार नहीं होता या होता भी है तो अटपटा होता है। इसलिए हमने ‘चर्चा के लिए प्रश्‍न’ नाम का एक पहलू जोड़ा है, जो हर अध्याय के अन्त में आता है। प्रश्‍न हर अनुच्छेद का विश्‍लेषण करने के लिए नहीं बनाए गए हैं। न ही वे माता-पिता के लिए अपने बच्चों की परीक्षा लेने का साधन हैं। वे युवाओं और माता-पिता के बीच चर्चाएँ उकसाने के लिए बनाए गए हैं। अनेक प्रश्‍न आपको अपना दृष्टिकोण देने या विचाराधीन विषय को अपनी स्थिति में लागू करने की छूट देते हैं।

इसलिए अनेक परिवार शायद इस पुस्तक को कभी-कभी पारिवारिक अध्ययन के लिए एक आधार के रूप में प्रयोग करना चाहें। परिवार के सदस्य बारी-बारी से अनुच्छेद पढ़ने और उल्लिखित शास्त्रवचनों को खोलकर देखने के द्वारा ऐसा कर सकते हैं। चर्चा के लिए प्रश्‍न बीच-बीच में, उपयुक्‍त उपशीर्षक पूरे होने पर या पूरा अध्याय समाप्त होने पर पूछे जा सकते हैं। सभी को अपनी भावनाएँ खुलकर और निष्कपटता से व्यक्‍त करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। युवा अपने बीच भी पुस्तक की चर्चा करने का आनन्द ले सकते हैं।

ये युवाओं के लिए भी “कठिन समय” हैं। (२ तीमुथियुस ३:१) लेकिन, परमेश्‍वर के वचन के ज्ञान के साथ, आप जीवन के इस कठिन समय को सफलता से पार कर सकते हैं। (भजन ११९:९) इसलिए, उन प्रश्‍नों के व्यावहारिक, बाइबल-आधारित उत्तरों का यह संग्रहण प्रदान करने में हमें ख़ुशी है जो शायद आपको उलझन में डालते हैं।

प्रकाशक

[फुटनोट]

^ पैरा. 5 Praharidurg Prakashan Society, India द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका।