क्या इससे फ़र्क पड़ता है कि मैं क्या पढ़ती हूँ?
अध्याय ३५
क्या इससे फ़र्क पड़ता है कि मैं क्या पढ़ती हूँ?
राजा सुलैमान ने चिताया: “बहुत पुस्तकों की रचना का अन्त नहीं होता, और बहुत पढ़ना देह को थका देता है।” (सभोपदेशक १२:१२) सुलैमान पढ़ने से निरुत्साहित करने की कोशिश नहीं कर रहा था; वह तो बस आपको चयनात्मक होने की सलाह दे रहा था।
सतरहवीं शताब्दी के फ्रांसीसी तत्वज्ञानी रॆने डॆकार्ट ने कहा: “जब व्यक्ति अच्छी पुस्तकें पढ़ता है तब वह मानो अतीत के कुलीन लोगों के साथ बातचीत करता है। हम इसे एक विशिष्ट बातचीत भी कह सकते हैं जिसमें लेखक केवल अपने सबसे उत्तम विचार व्यक्त करता है।” लेकिन, सभी लेखक इस योग्य नहीं होते कि उनके साथ “बातचीत” की जाए, न ही उनके सभी विचार असल में “उत्तम” होते हैं।
सो बहु-उल्लिखित बाइबल सिद्धान्त फिर से लागू होता है: “बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।” (१ कुरिन्थियों १५:३३) जी हाँ, आप जिन लोगों के साथ संगति करते हैं वे आपके व्यक्तित्व को ढाल सकते हैं। क्या आपने कभी किसी मित्र के साथ इतना समय बिताया है कि आपने उस मित्र की तरह व्यवहार करना, बात करना, और सोचना भी शुरू कर दिया हो? एक पुस्तक पढ़ना उसके लेखक के साथ बातचीत करने में घंटों बिताने के जैसा है।
अतः मत्ती २४:१५ (NW) में यीशु ने जो सिद्धान्त बताया वह उपयुक्त है: “पाठक समझ का प्रयोग करे।” जो आप पढ़ते हैं उसे जाँचना और परखना सीखिए। सभी मनुष्यों पर कुछ हद तक पक्षपात का असर होता है और वे तथ्यों को प्रस्तुत करने में हमेशा पूरी तरह निष्पक्ष नहीं होते। इसलिए, जो आप पढ़ते या सुनते हैं वह सभी कुछ आँख-कान बंद करके स्वीकार मत कीजिए: “भोला तो हर एक बात को सच मानता है, परन्तु चतुर मनुष्य समझ बूझकर चलता है।”—नीतिवचन १४:१५.
आपको ख़ासकर ऐसा कुछ भी पढ़ने के बारे में सचेत रहना चाहिए जो किसी जीवन-दर्शन की व्याख्या करता हो। उदाहरण के लिए, किशोरों की पत्रिकाएँ डेटिंग से लेकर विवाहपूर्व सॆक्स तक हर बात पर सलाह से भरी होती हैं—लेकिन, हमेशा ऐसी सलाह से नहीं जो एक मसीही को माननी चाहिए। और उन पुस्तकों के बारे में क्या जो गूढ़ दार्शनिक प्रश्नों में उलझ जाती हैं?
बाइबल चिताती है: “चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के द्वारा अहेर न कर ले, जो मनुष्यों के परम्पराई मत . . . के अनुसार है, पर मसीह के अनुसार नहीं।” (कुलुस्सियों २:८) बाइबल और बाइबल-आधारित प्रकाशन जैसे यह, कहीं बेहतर सलाह देते हैं।—२ तीमुथियुस ३:१६.
रोमांस उपन्यास—अहानिकर पठन?
रोमांस उपन्यास पढ़ना मात्र अमरीका में ही कुछ २ करोड़ लोगों की व्यसनी आदत बन गयी है। निःसंदेह स्वयं परमेश्वर ने पुरुष और स्त्री में प्रेम कर बैठने और विवाह करने की इच्छा डाली है। (उत्पत्ति १:२७, २८; २:२३, २४) तो फिर यह आश्चर्य की बात नहीं कि अधिकतर कल्पकथाओं में रोमांस प्रमुख रूप से प्रस्तुत किया जाता है, और ज़रूरी नहीं कि यह आपत्तिजनक हो। कुछ रोमांस उपन्यासों को तो उत्तम साहित्य का दर्जा भी मिला है। लेकिन आजकल लेखकों ने नए क़िस्म के रोमांस उपन्यास गढ़ना लाभकारी पाया है क्योंकि ये पुराने उपन्यास आधुनिक स्तरों के हिसाब से नीरस समझे जाते हैं। कुछ तो कहानी में नाटकीयता लाने और रंग भरने के लिए अभी भी ऐतिहासिक या मध्ययुगीन वातावरण प्रयोग करते हैं। दूसरे वर्तमान शैली और वातावरण प्रयोग करते हैं। फिर भी, कुछ छोटी-मोटी अदल-बदल को छोड़, आधुनिक रोमांस उपन्यास काफ़ी जाना-पहचाना फ़ार्मूला अपनाते हैं: हीरो और हिरोइन अपने खिलते रोमांस के बीच आयी अलंघ्य बाधाओं को पार करते हैं।
ज़्यादातर, हीरो हट्टा-कट्टा, यहाँ तक कि अक्खड़ आदमी होता है जिसमें से आत्म-विश्वास उमड़ रहा होता है। लेकिन, हिरोइन शायद नाज़ुक और कमज़ोर हो, और वह अकसर हीरो से १०-१५ साल छोटी होती है। और जबकि वह उसे दुतकारता रहता है, फिर भी वह उस पर जान देती है।
अकसर कोई और भी हिरोइन को चाहता है। हालाँकि वह रहम-दिल और लिहाज़वाला होता है, फिर भी हिरोइन की धड़कन बढ़ाने या दिलचस्पी
जगाने में सफल नहीं होता। सो वह अपने निर्मोही हीरो को एक नरम इंसान बनाने के लिए अपने क़ातिल हुस्न को काम में लाती है और हीरो अब खुलकर अपने अटल प्यार का इज़हार करता है। सभी पुराने गिले-शिकवे दूर कर और माफ़ कर, वे ख़ुशी-ख़ुशी शादी करते हैं और हमेशा-हमेशा के लिए सुखी रहते हैं . . .क्या प्रेम प्रेम-कहानियों के जैसा है?
क्या ऐसी मनगढ़ंत कहानियाँ पढ़ना सच्चाई की ओर से आपकी नज़र को धुँधला कर सकता है? काजल, जिसने १६ की उम्र से रोमांस उपन्यास पढ़ना शुरू किया, याद करती है: “मैं उस युवक की तलाश में थी जो लम्बा-चौड़ा, साँवला-सलोना हो; जो रंगीला हो और जिसका व्यक्तित्व रोबीला हो।” उसने स्वीकार किया: “यदि मैं एक युवक के साथ डेटिंग करती और वह चूमना और छूना नहीं चाहता, तो वह नीरस था, भले ही वह लिहाज़वाला और रहम-दिल होता। मैं वह रोमांच चाहती थी जिसके बारे में मैंने उपन्यासों में पढ़ा था।”
काजल ने अपने विवाह के बाद रोमांस पढ़ना जारी रखा और वह कहती है: “मेरा एक अच्छा घर और परिवार था, लेकिन किसी कारण वह काफ़ी नहीं था . . . मैं वह सनसनी, रोमांच और उत्तेजन चाहती थी जो उपन्यासों में इतने लुभावने ढंग से बताया जाता है। मुझे लगा मेरे विवाह में कुछ गड़बड़ है।” लेकिन, बाइबल ने काजल को यह समझने में मदद दी कि अवश्य है एक पति अपनी पत्नी को रस या “रोमांच” से अधिक दे। बाइबल कहती है: “उचित है, कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है।”—इफिसियों ५:२८, २९.
और उन विषयों के बारे में क्या जो रोमांस उपन्यासों में इतने आम होते हैं, सुखी अन्त और मतभेदों का सरल हल? वे वास्तविकता से कहीं दूर हैं। काजल याद करती है: “जब मेरा अपने पति के साथ मतभेद होता था, तब मैं उसके साथ विषय पर बात करने के बजाय उन पैंतरों की नक़ल करती थी जो हिरोइन अपनाती है। जब मेरा पति हीरो की तरह प्रतिक्रिया नहीं दिखाता था, मैं कुढ़ती थी।” क्या पत्नियों के लिए बाइबल की सलाह कहीं ज़्यादा कुलुस्सियों ३:१८.
वास्तविक और व्यावहारिक नहीं जब यह कहती है, “हे पत्नियो, . . . अपने अपने पति के आधीन रहो”?—लैंगिक विषय
दिलचस्पी की बात है, किशोर लैंगिक रूप से बेपरदा रोमांस पुस्तकों की माँग सबसे ज़्यादा करते हैं, जो कुछ शहरों में जन पुस्तकालयों में उपलब्ध होती हैं। क्या वे आपको हानि पहुँचा सकती हैं? १८-वर्षीय कैरॆन बताती है: “उन पुस्तकों ने सचमुच मेरे अन्दर तीव्र कामवासना और जिज्ञासा भड़कायी। हीरो के साथ कामुक मिलन के समय हिरोइन में जो हर्ष और उल्लास की भावनाएँ उठती हैं उससे मुझे भी उन्हीं भावनाओं की लालसा हुई। सो जब मैं डेटिंग कर रही थी,” वह आगे कहती है, “मैंने उन्हीं अनुभूतियों को दोहराने की कोशिश की। इस कारण मैं व्यभिचार कर बैठी।” लेकिन क्या उसका अनुभव उन हिरोइनों के जैसा था जिनके बारे में उसने पढ़ा था और कल्पना की थी? कैरॆन ने पाया: “ये भावनाएँ लेखकों के मन की उपज हैं। ये वास्तविक नहीं।”
यौन कल्पनाएँ गढ़ना सचमुच कुछ लेखकों का लक्ष्य होता है। इस पर विचार कीजिए कि एक प्रकाशक रोमांस-उपन्यास लेखकों को क्या निर्देश देता है: “हीरो के चुम्बन और आलिंगन से उठती वासना और कामुक अनुभूतियों को लैंगिक मिलन का मुख्य विषय होना चाहिए।” लेखकों को यह सलाह भी दी जाती है कि प्रेम कहानियों को “पाठक में रोमांच, तनाव, और गहरी भावात्मक और मादक प्रतिक्रिया भड़कानी चाहिए।” स्पष्टतया, ऐसी पुस्तकें पढ़ना व्यक्ति को बाइबल की सलाह पर चलने में मदद नहीं देगा कि “अपने उन अंगों को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा।”—कुलुस्सियों ३:५.
चयनात्मक होना
तो फिर, ऐसे उपन्यासों से दूर रहना सबसे अच्छा है जो अनैतिक कामनाएँ जगाते हैं या जो अवास्तविक आशाएँ उत्पन्न करते हैं। क्यों न रुचि
बदलें और दूसरी क़िस्म की पुस्तकें पढ़कर देखें, जैसे इतिहास या विज्ञान की पुस्तकें? ऐसा नहीं कि कल्पकथाओं की मनाही है, क्योंकि कुछ काल्पनिक रचनाएँ मनोरंजक ही नहीं बल्कि शैक्षिक भी होती हैं। लेकिन यदि किसी उपन्यास में सॆक्स, निरर्थक हिंसा, भूत-विद्या या ऐसे “हीरो” प्रस्तुत किए जाते हैं जो लंपट, निर्दयी, या लोभी होते हैं, तो क्या आपको उसे पढ़ने में अपना समय बरबाद करना चाहिए?सो एहतियात बरतिए। एक पुस्तक पढ़ने से पहले, उसकी जिल्द और उस पर चढ़े कवर को जाँचिए; देखिए कि पुस्तक के बारे में कुछ आपत्तिजनक तो नहीं। और यदि सावधानी के बावजूद एक पुस्तक अहितकर निकलती है, तो इतना चरित्र बल रखिए कि पुस्तक बंद कर दें।
इसकी विषमता में, बाइबल और बाइबल-सम्बन्धी प्रकाशन पढ़ना आपकी मदद करेगा, नुक़सान नहीं। उदाहरण के लिए, एक जापानी लड़की कहती है कि बाइबल पढ़ने से उसे अपना मन सॆक्स—अकसर युवाओं के लिए एक समस्या—से दूर रखने में मदद मिली। “मैं हमेशा बाइबल को अपने बिस्तर के पास रखती हूँ और सोने से पहले उसे पढ़ने का निश्चय करती हूँ,” वह कहती है। “जब मैं अकेली होती हूँ और मेरे पास कुछ करने को नहीं होता (जैसे सोने के समय) तब मेरा मन कभी-कभी सॆक्स की ओर चला जाता है। सो बाइबल पढ़ने से मुझे सचमुच मदद मिलती है!” जी हाँ, उन विश्वासी लोगों के साथ “बातचीत” करना जिनके बारे में बाइबल में लिखा है आपको ठोस नैतिक शक्ति देगा और आपकी ख़ुशी में बड़ा योग देगा।—रोमियों १५:४.
चर्चा के लिए प्रश्न
◻ आप जो पढ़ते हैं उसमें आपको चयनात्मक होने की ज़रूरत क्यों है?
◻ रोमांस उपन्यास अनेक युवाओं को इतने आकर्षक क्यों लगते हैं? लेकिन उनके ख़तरे क्या हैं?
◻ आप पढ़ने के लिए उपयुक्त पुस्तकें कैसे चुन सकते हैं?
◻ बाइबल और बाइबल-आधारित प्रकाशन पढ़ने के कुछ लाभ क्या हैं?
[पेज 287 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“मेरा एक अच्छा घर और परिवार था, लेकिन किसी कारण वह काफ़ी नहीं था . . . मैं वह सनसनी, रोमांच और उत्तेजन चाहती थी जो उपन्यासों में इतने लुभावने ढंग से बताया जाता है। मुझे लगा मेरे विवाह में कुछ गड़बड़ है”
[पेज 283 पर तसवीर]
हज़ारों पुस्तकें उपलब्ध होने के कारण, आपको चयनात्मक होने की ज़रूरत है
[पेज 285 पर तसवीर]
रोमांस उपन्यास मग्न कर सकते हैं, लेकिन क्या वे प्रेम और विवाह के बारे में हितकर दृष्टिकोण सिखाते हैं?