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मैं कभी-कभार मौज-मस्ती क्यों न करूँ?

मैं कभी-कभार मौज-मस्ती क्यों न करूँ?

अध्याय ३७

मैं कभी-कभार मौज-मस्ती क्यों न करूँ?

शुक्रवार शाम को, पॉलीन मसीही सभाओं में जाती थी। वह चर्चाओं का आनन्द लेती थी, लेकिन कभी-कभी उसे इस बात से चिढ़ होती थी कि वह वहाँ है और उसके स्कूल के मित्र बाहर मौज-मस्ती कर रहे हैं।

सभा समाप्त होने पर, घर लौटते समय पॉलीन रास्ते में इलाक़े के कुछ किशोरों को बाहर मौज करते देखती। वह याद करती है: “तेज़ संगीत और चमचमाती बत्तियों से आकर्षित होकर, मैं वहाँ से गुज़रते हुए गाड़ी से बाहर देखती और लालसा से सोचती कि वे कितना मज़ा कर रहे होंगे।” कुछ समय बाद, अपने मित्रों के साथ मज़ा करने की उसकी इच्छा उसके जीवन में सबसे बड़ी बात बन गयी।

पॉलीन की तरह, आपको शायद कभी-कभी महसूस हो कि क्योंकि आप एक मसीही हैं, आप कुछ खो रहे हैं। आप वह टीवी कार्यक्रम देखना चाहते हैं जिसके बारे में बाक़ी सभी बात कर रहे हैं, लेकिन आपके माता-पिता कहते हैं कि वह बहुत हिंसक है। आप बाज़ार जाकर स्कूल के बच्चों के साथ मटरगश्‍ती करना चाहते हैं, लेकिन आपके माता-पिता उन्हें “बुरी संगति” कहते हैं। (१ कुरिन्थियों १५:३३) आप उस पार्टी में जाना चाहते हैं जिसमें आपके सभी स्कूल-साथी जाएँगे, लेकिन मम्मी-पापा मना करते हैं।

आपके स्कूल-साथी जब जी चाहे आते-जाते दिखते हैं, अपने माता-पिता के हस्तक्षेप के बिना फ़िल्में देखने जाते हैं और पौ फटने तक पार्टियाँ करते हैं। अतः आपको उनकी स्वतंत्रता से जलन हो सकती है। ऐसा नहीं कि आप कुछ ग़लत करना चाहते हैं। आप तो बस कभी-कभार मौज-मस्ती करना चाहते हैं।

मनबहलाव—परमेश्‍वर का दृष्टिकोण

आश्‍वस्त रहिए कि मज़ा करने की चाह में कोई बुराई नहीं। आख़िरकार, यहोवा “आनन्दित परमेश्‍वर” है। (१ तीमुथियुस १:११, NW) और बुद्धिमान पुरुष सुलैमान के द्वारा वह कहता है: “हे जवान, अपनी जवानी में आनन्द कर, और अपनी जवानी के दिनों में मगन रह; अपनी मनमानी कर और अपनी आंखों की दृष्टि के अनुसार चल।” लेकिन, फिर सुलैमान ने चिताया: “यह जान रख कि इन सब बातों के विषय परमेश्‍वर तेरा न्याय करेगा।”—सभोपदेशक ११:९, १०.

यह जानना कि परमेश्‍वर आपको अपने कार्यों के लिए ज़िम्मेदार ठहराता है मनबहलाव का एक बिलकुल ही अलग रूप दिखाता है। क्योंकि वैसे तो परमेश्‍वर मौज-मस्ती करने के लिए व्यक्‍ति की निन्दा नहीं करता, लेकिन वह उसको अस्वीकार करता है जो ‘सुखविलास का चाहनेवाला’ है, उसको जो बस मौज-मस्ती करने के लिए ही जीता है। (२ तीमुथियुस ३:१, ४) ऐसा क्यों है? राजा सुलैमान पर विचार कीजिए। अपनी विशाल संपत्ति का प्रयोग करके, उसने हर कल्पनीय मानव सुख का स्वाद लिया। वह कहता है: “जितनी वस्तुओं के देखने की मैं ने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रुका; मैं ने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका।” परिणाम? “सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है।” (सभोपदेशक २:१०, ११) जी हाँ, परमेश्‍वर जानता है कि आगे चलकर, भोग-विलास चाहने का जीवन आपको बस खाली और कुंठित छोड़ता है।

परमेश्‍वर यह माँग भी करता है कि आप मलिन करनेवाले अभ्यासों से मुक्‍त रहें, जैसे ड्रग दुरुपयोग और विवाहपूर्व सॆक्स। (२ कुरिन्थियों ७:१) फिर भी, ऐसी अनेक बातें जो किशोर मज़े के लिए करते हैं वे व्यक्‍ति को इन अभ्यासों में फँसा सकती हैं। उदाहरण के लिए, एक युवती ने कुछ स्कूल-साथियों की एक पार्टी में जाने का फ़ैसला किया जिसमें किसी बड़े की निगरानी नहीं होती। “स्टीरियो पर बज रहा संगीत मस्त था, बढ़िया नाच, शुद्ध जलपान और ख़ूब हँसी-मज़ाक था,” वह याद करती है। लेकिन फिर, “कोई गाँजा ले आया। फिर शराब आयी। और तब सब कुछ गड़बड़ होने लगा।” फल था लैंगिक अनैतिकता। उस लड़की ने स्वीकार किया: “मैं तब से दुःखी और हताश हूँ।” बड़ों की निगरानी के बिना, कितनी आसानी से ऐसी पार्टियाँ “जंगली दावतें,” या लीलाक्रिड़ा बन जाती हैं!—गलतियों ५:२१, बाइंगटन।

यह आश्‍चर्य की बात नहीं कि आपके माता-पिता इस बारे में बहुत चिन्तित हों कि आप अपना फ़ुरसत का समय कैसे बिताते हैं, संभवतः इस पर पाबंदी लगाते हैं कि आप कहाँ जा सकते हैं और किसके साथ संगति कर सकते हैं। उनका उद्देश्‍य? परमेश्‍वर की चेतावनी मानने में आपकी मदद करना: “अपने मन से खेद और अपनी देह से दुःख दूर कर, क्योंकि लड़कपन और जवानी दोनों व्यर्थ है।”—सभोपदेशक ११:१०.

सुख-विलास चाहनेवालों से ईर्ष्या करते हैं?

यह सब भूल जाना और कुछ युवा जिस स्वतंत्रता का मज़ा लेते हुए दिखते हैं उससे ईर्ष्या करना आसान है। पॉलीन ने मसीही सभाओं में जाना छोड़ दिया और सुख-विलास चाहनेवाली भीड़ में हो ली। “जिन ग़लत कामों से मुझे चिताया गया था मैंने अपने आपको वह सभी काम करते पाया,” वह याद करती है। अपने सुख-विलास के चस्के के कारण आख़िरकार पॉलीन की गिरफ़्तारी हुई और उसे पथभ्रष्ट लड़कियों के स्कूल में डाल दिया गया!

बहुत पहले भजन ७३ के लेखक के मन में पॉलीन की तरह ही भावनाएँ उठीं। “जब मैं दुष्टों का कुशल देखता था, तब उन घमण्डियों के विषय डाह करता था,” उसने स्वीकार किया। वह धर्मी सिद्धान्तों के अनुसार जीने के महत्त्व पर भी संदेह करने लगा। “निश्‍चय, मैं ने अपने हृदय को व्यर्थ शुद्ध किया और अपने हाथों को निर्दोषता में धोया है,” उसने कहा। लेकिन फिर उसे एक गहरी अंतर्दृष्टि प्राप्त हुई: दुष्ट लोग “फिसलनेवाले स्थानों में” हैं, सर्वनाश की मुँडेर पर लड़खड़ा रहे हैं!—भजन ७३:३, १३, १८.

पॉलीन ने यह जाना—दुःखद अनुभव से। अपनी दुनियावी रंगरली के बाद, उसने फिर से परमेश्‍वर का अनुग्रह पाने के लिए अपने जीवन में बड़े बदलाव किए। दूसरी ओर, यह समझने के लिए कि ‘मौज-मस्ती’ करने की क़ीमत बहुत अधिक हो सकती है आपको गिरफ़्तार होने, लैंगिक रूप से फैलनेवाली बीमारी से ग्रस्त होने, या ड्रग विनिवर्तन की वेदना सहने की ज़रूरत नहीं। मज़ा करने के अनेक हितकर, प्रोत्साहक तरीक़े हैं जो ऐसे जोख़िमों से मुक्‍त हैं। उनमें से कुछ क्या हैं?

हितकर मौज-मस्ती

अमरीकी युवाओं के एक सर्वेक्षण ने प्रकट किया कि किशोर “परिवार के साथ समय-समय पर सैर और काम-काज का आनन्द लेते हैं।” एक परिवार के रूप में एकसाथ काम करने में सिर्फ़ मज़ा ही नहीं आता बल्कि यह परिवार की एकता को भी बढ़ा सकता है।

इसका अर्थ एकसाथ टीवी देखना ही नहीं, उससे अधिक है। डॉ. ऐन्थनी पीटरोपिन्टो कहता है: “टॆलिविज़न देखने के साथ समस्या यह है कि, जबकि यह दूसरों की संगति में किया जा सकता है, यह मूलतः एकाकी काम है। . . . फिर भी, आधुनिक परिवार की टॆलिविज़न के साथ निष्क्रिय व्यस्तता की तुलना में घर में खेलने के खेल, पिछवाड़े खेलने के खेल, ख़ास खाना पकाना, शिल्प के काम, और ज़ोर से पढ़ना जैसे मनोरंजन निश्‍चित ही संचार, सहयोग, और बौद्धिक उत्तेजन के अधिक अवसर देते हैं।” जैसे सात बच्चों का पिता, जॉन कहता है: ‘एक परिवार के रूप में किया जाए तो आँगन साफ़ करना या घर की पुताई करना भी मज़ेदार हो सकता है।’

यदि आपका परिवार पहले से ही ऐसे काम एकसाथ नहीं कर रहा है, तो पहल कीजिए और अपने माता-पिता को इनका सुझाव दीजिए। परिवार के साथ सैर या काम-काज के लिए कुछ दिलचस्प और रोमांचक बातें सोचिए।

लेकिन, आनन्द लेने के लिए आपको हमेशा दूसरों के साथ होने की ज़रूरत नहीं। मेरी, एक युवती जो अपनी संगति का बड़ा ध्यान रखती है, अकेले में अपने समय का आनन्द लेना सीख गयी है। “मैं पियानो और वायलिन बजाती हूँ, और मैं उनका अभ्यास करने में कुछ समय बिताती हूँ,” वह कहती है। एक और किशोरी, शीतल भी कुछ ऐसा ही कहती है: “मैं अपने ही आनन्द के लिए कभी-कभी कहानियाँ या कविताएँ लिखने में समय बिताती हूँ।” आप भी पठन, बढ़ईगिरी, या कोई वाद्य बजाना जैसे कौशल विकसित करने के द्वारा समय का सदुपयोग करना सीख सकते हैं।

मसीही समूहन

समय-समय पर, मित्रों के साथ इकट्ठा होना भी आनन्दकर होता है। और अनेक क्षेत्रों में कई ऐसी हितकर गतिविधियाँ होती हैं जिनका आप आनन्द ले सकते हैं। बोलिंग खेलना, स्केटिंग करना, साइकिल चलाना, बेसबॉल और बासकॆटबॉल खेलना उत्तर अमरीका में लोकप्रिय गतिविधियाँ हैं। आप रुचि बढ़ाकर किसी संग्रहालय या चिड़ियाघर जाने की कोशिश कर सकते हैं। और हाँ, संगी मसीही युवाओं के साथ मिलकर रिकॉर्ड बजाना या एक हितकर टीवी कार्यक्रम देखना भी उचित है।

आप एक ज़्यादा औपचारिक समूहन की योजना बनाने में आपकी मदद करने के लिए अपने माता-पिता से भी कह सकते हैं। तरह-तरह की गतिविधियों का प्रबन्ध करने के द्वारा उसे रुचिकर बनाइए, जैसे पार्टी खेल और समूह गान। यदि आपके कुछ मित्रों में संगीत कौशल है, तो उसे दिखाने के लिए उनको थोड़ा मनाया जा सकता है। अच्छा खाना भी एक अवसर का मज़ा बढ़ाता है, लेकिन उसे विशेष या महँगा होने की ज़रूरत नहीं। कभी-कभी मेहमान खाने की अलग-अलग चीज़ें साथ ला सकते हैं।

क्या पास में कोई बाग़ीचा या खुला क्षेत्र है जहाँ गेंद खेलने या तैराकी जैसी गतिविधियाँ संभव हों? क्यों न एक पिकनिक की योजना बनाएँ? फिर, परिवार मिलकर खाना ला सकते हैं ताकि किसी एक पर आर्थिक भार न पड़े।

संतुलन इसकी कुंजी है। मज़ा आने के लिए संगीत को इतना तेज़ होने की ज़रूरत नहीं कि कान फट जाएँ, न ही मस्ती के लिए नृत्य को अश्‍लील या मादक होने की ज़रूरत है। उसी तरह, मैदान के खेलों का भी गलाकाट होड़ के बिना आनन्द लिया जा सकता है। फिर भी, एक जनक कहता है: “कुछ युवा कभी-कभी बहस करते हैं, लगभग झगड़ा करने की हद तक।” ‘एक दूसरे के साथ होड़’ नहीं करने की बाइबल सलाह पर चलने के द्वारा ऐसी गतिविधियों को आनन्दकर रखिए।—गलतियों ५:२६, NW.

आपको किसे बुलाना चाहिए? बाइबल कहती है, “भाइयों के पूरे संघ के लिए प्रेम रखो।” (१ पतरस २:१७, NW) अपने समूहनों को समकक्षों तक ही सीमित क्यों रखें? अपनी संगति को फैलाइए। (२ कुरिन्थियों ६:१३ से तुलना कीजिए।) एक जनक ने कहा: “वृद्धजन जबकि कुछ गतिविधियों में अकसर भाग नहीं ले पाते, फिर भी आने का और जो चल रहा है उसे देखने का आनन्द लेते हैं।” बड़ों की उपस्थिति अकसर बातों को हाथ से बाहर नहीं होने देती। लेकिन, “पूरे संघ” को एकसाथ बुलाना संभव नहीं। इसके अलावा, छोटे समूहनों को संभालना ज़्यादा आसान होता है।

मसीही समूहन एक दूसरे को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने का अवसर भी देते हैं। सच है, कुछ युवा यह महसूस करते हैं कि एक समूहन में आध्यात्मिकता जोड़ना उसका मज़ा ख़त्म कर देता है। “जब हम कोई समूहन करते हैं,” एक मसीही लड़के ने शिक़ायत की, “यह ‘बैठो, अपनी बाइबल निकालो, और बाइबल खेल खेलो’ होता है।” लेकिन, भजनहार ने कहा: “क्या ही धन्य है वह पुरुष जो . . . यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्‍न रहता” है। (भजन १:१, २) अतः बाइबल पर केंद्रित चर्चाएँ—या खेल भी—काफ़ी आनन्दकर हो सकती हैं। शायद आपको शास्त्र के बारे में अपना ज्ञान तेज़ करने-भर की ज़रूरत है ताकि ज़्यादा अच्छी तरह भाग लेने में समर्थ हों।

दूसरा तरीक़ा है कई लोगों से यह पूछना कि वे मसीही कैसे बने। या कुछ लोगों को मज़ाकिया कहानियाँ सुनाने के लिए कहने के द्वारा थोड़ी सरगर्मी और हँसी का माहौल बनाइए। प्रायः इनसे मूल्यवान सबक़ सीखने को मिलते हैं। एक समूहन में इस पुस्तक के कुछ अध्यायों को भी एक दिलचस्प सामूहिक चर्चा का आधार बनाया जा सकता है।

मनबहलाव को संतुलन में रखिए!

निश्‍चित ही यीशु मसीह कभी-कभार मौज-मस्ती करने के विरोध में नहीं था। बाइबल बताती है कि वह काना में एक विवाह-भोज में गया, जहाँ निःसंदेह भोजन, संगीत, नृत्य, और प्रोत्साहक संगति की कमी नहीं थी। यीशु ने तो चमत्कारिक रूप से दाखमधु बनाने के द्वारा विवाह-भोज की सफलता में योग भी दिया!—यूहन्‍ना २:३-११.

लेकिन यीशु का जीवन रात-दिन की दावत नहीं था। उसने अपना अधिकतर समय आध्यात्मिक हितों में व्यस्त रहने में बिताया, लोगों को परमेश्‍वर की इच्छा सिखायी। उसने कहा: “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।” (यूहन्‍ना ४:३४) परमेश्‍वर की इच्छा पर चलने से यीशु को उससे कहीं अधिक स्थायी सुख मिला जो किसी क्षणिक मनोरंजन से मिला होता। आज, अभी भी ‘प्रभु के काम में करने को काफ़ी है।’ (१ कुरिन्थियों १५:५८, NW; मत्ती २४:१४) लेकिन जब समय-समय पर आपको कुछ मनबहलाव की ज़रूरत महसूस होती है, तब उसका संतुलित, हितकर रीति से आनन्द लीजिए। जैसे एक लेखक ने कहा: “जीवन हमेशा हरकत और रोमांच से खचाखच-भरा नहीं हो सकता—और यदि होता तो आप संभवतः पस्त हो जाते!”

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ कुछ मसीही युवा संसार के युवाओं से ईर्ष्या क्यों करते हैं? क्या आपको कभी ऐसा लगा है?

◻ उनके चालचलन के बारे में परमेश्‍वर युवाओं को क्या चेतावनी देता है, और इसका उनके मनबहलाव की पसन्द पर कैसा प्रभाव होना चाहिए?

◻ ऐसे युवाओं से ईर्ष्या करना जो परमेश्‍वर के नियमों और सिद्धान्तों का उल्लंघन करते हैं क्यों मूर्खता है?

◻ (१) परिवार के सदस्यों के साथ, (२) अकेले में, और (३) संगी मसीहियों के साथ, हितकर मनबहलाव का आनन्द लेने के कुछ तरीक़े क्या हैं?

◻ मनबहलाव के सम्बन्ध में यीशु मसीह ने संतुलन का उदाहरण कैसे रखा?

[पेज 297 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“तेज़ संगीत और चमचमाती बत्तियों से आकर्षित होकर, मैं वहाँ से गुज़रते हुए गाड़ी से बाहर देखती और लालसा से सोचती कि वे कितना मज़ा कर रहे होंगे”

[पेज 302 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“कोई गाँजा ले आया। फिर शराब आयी। और तब सब कुछ गड़बड़ होने लगा”

[पेज 299 पर तसवीर]

क्या बाइबल सिद्धान्तों पर चलनेवाले युवा सचमुच मौज-मस्ती नहीं कर पाते?

[पेज 300 पर तसवीर]

कोई शौक़ बढ़ाना खाली समय प्रयोग करने का एक हितकर तरीक़ा है

[पेज 301 पर तसवीर]

मसीही समूहन तब ज़्यादा आनन्दकर होते हैं जब तरह-तरह की गतिविधियों का प्रबन्ध किया जाता है और उसमें अलग-अलग उम्र के लोग होते हैं