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मैं अपने आपको पसन्द क्यों नहीं करता?

मैं अपने आपको पसन्द क्यों नहीं करता?

अध्याय १२

मैं अपने आपको पसन्द क्यों नहीं करता?

“मुझे अपने बारे में ज़रा भी ख़ास नहीं लगता,” लूइज़ ने शोक मनाया। क्या आपको भी कभी-कभार अपने बारे में बुरा लगता है?

सचमुच, हर किसी को कुछ हद तक स्वाभिमान की ज़रूरत है। इसे “वह तत्व” कहा गया है “जो मानव अस्तित्व को गरिमा देता है।” इसके अलावा, बाइबल कहती है: “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।” (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती १९:१९) और यदि आपको अपने बारे में बुरा लगता है, तो शायद आपको दूसरों के बारे में भी बुरा लगे।

‘मुझसे कोई काम ठीक तरह नहीं होता!’

किस कारण आपको अपने बारे में ये नकारात्मक भावनाएँ हो सकती हैं? एक बात है कि आपकी कमियाँ आपको कुंठित कर सकती हैं। आप बढ़ रहे हैं, और अकसर फूहड़पन का एक दौर आता है जब चीज़ें गिराना या उनसे जा टकराना हर दिन की परेशानी है। और फिर आपके पास निराशाओं से झट बाहर निकलने का बड़ों जैसा अनुभव भी तो नहीं। और क्योंकि “अभ्यास के कारण” आपकी “ज्ञानेन्द्रियां” अच्छी तरह से पक्की नहीं हुई हैं, तो आप शायद हमेशा सबसे बुद्धिमानी के फ़ैसले न करें। (इब्रानियों ५:१४, NHT) कभी-कभी आपको शायद लगे कि आपसे कोई काम ठीक तरह नहीं होता!

अपने माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा न कर पाना निम्न स्वाभिमान का एक और कारण हो सकता है। “यदि स्कूल में मुझे ‘७०%’ मिलते हैं,” एक युवा कहता है, “मेरे माता-पिता यह जानना चाहते हैं कि ‘७५%’ क्यों नहीं मिले और कहते हैं कि मैं निखट्टू हूँ।” निःसंदेह, माता-पिता का अपने बच्चों से यह आग्रह करना स्वाभाविक है कि अपनी ओर से अच्छे से अच्छा करें। और जब आप उचित अपेक्षाओं पर पूरे नहीं उतरते, तब आप निश्‍चित हो सकते हैं कि आपको उसके बारे में सुनना पड़ेगा। बाइबल की सलाह है: “हे मेरे पुत्र [या पुत्री], अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा, और अपनी माता की शिक्षा को न तज।” (नीतिवचन १:८, ९) निराश होने के बजाय, आलोचना को स्वीकार कीजिए और उससे सीखिए।

लेकिन, तब क्या यदि किसी के माता-पिता अनुचित तुलना करते हैं? (“आप अपने बड़े भाई, पॉल की तरह क्यों नहीं हो सकते? वह हमेशा अव्वल आता था।”) ऐसी तुलनाएँ जबकि उस समय पीड़ादायी लग सकती हैं, अकसर एक अकाट्य बात स्पष्ट करती हैं। आपके माता-पिता आपका भला चाहते हैं। और यदि आपको लगता है कि वे आपके साथ ज़्यादती कर रहे हैं, तो क्यों न शान्ति से उनके साथ इस विषय पर बातचीत करें?

आत्म-सम्मान बढ़ाना

आप गिरते स्वाभिमान को कैसे उठा सकते हैं? पहले, अपने गुणों और अवगुणों को ईमानदारी से आँकिए। आप पाएँगे कि आपके अनेक तथाकथित अवगुण काफ़ी महत्त्वहीन हैं। बड़ी कमियों के बारे में क्या, जैसे गरम-मिज़ाज या स्वार्थ? मन लगाकर इन समस्याओं पर काम कीजिए और आपका आत्म-सम्मान अवश्‍य ही बढ़ेगा।

इसके अलावा, इस सच्चाई से आँख न मूँदिए कि पहले ही आपके पास गुण हैं! आप शायद न सोचें कि खाना बना पाना या फ्लैट टायर ठीक कर पाना उतना महत्त्वपूर्ण है। लेकिन एक भूखा व्यक्‍ति या मुसीबत में पड़ा मोटर-चालक ऐसे कौशल के लिए आपकी सराहना करेगा! अपने सद्‌गुणों के बारे में भी सोचिए। क्या आप पढ़ाकू हैं? धैर्यवान हैं? करुणामय हैं? उदार हैं? कृपालु हैं? ये गुण छोटी-मोटी कमियों से कहीं बढ़कर हैं।

इस संक्षिप्त पड़ताल-सूची पर विचार करना भी मदद दे सकता है:

व्यावहारिक लक्ष्य रखिए: यदि हमेशा आप तारे तोड़ना चाहते हैं, तो आपको कटु निराशा हो सकती है। ऐसे लक्ष्य रखिए जो प्राप्य हों। टाइपिंग जैसा कौशल सीखना कैसा रहेगा? कोई वाद्य बजाना या दूसरी भाषा बोलना सीखिए। अपना पठन सुधारिए या विस्तृत कीजिए। उपलब्धि का एक उपयोगी उपफल है आत्म-सम्मान।

अच्छा काम कीजिए: यदि आप रद्दी काम करते हैं, तो आपको अपने बारे में अच्छा नहीं लगेगा। परमेश्‍वर ने अपने सृजनात्मक काम में आनन्द लिया और सृजनात्मक युगों के पूरे होने पर उनको “अच्छा” कहा। (उत्पत्ति १:३-३१) जो कुछ आप घर पर या स्कूल में करते हैं उसे कुशलता और ध्यान से करने के द्वारा आप भी अपने काम में आनन्द ले सकते हैं।—नीतिवचन २२:२९ देखिए।

दूसरों के लिए कुछ कीजिए: हाथ पर हाथ धरे बैठे दूसरों से अपनी सेवा-टहल करवाने से आत्म-सम्मान नहीं मिलता। यीशु ने कहा कि “जो कोई . . . बड़ा होना चाहे वह” दूसरों के लिए “सेवक बने,” अथवा नौकर बने।—मरकुस १०:४३-४५.

उदाहरण के लिए, १७-वर्षीय किम ने गर्मी की छुट्टियों के हर महीने ६० घंटे दूसरों को बाइबल सत्य सीखने में मदद देने के लिए रखे। वह कहती है: “यह मुझे यहोवा के निकट लाया है। इसने मुझे लोगों के लिए सच्चा प्रेम विकसित करने में भी मदद दी है।” इसकी संभावना कम है कि इस ख़ुश युवती में आत्म-सम्मान की कमी होगी!

अपने मित्र ध्यान से चुनिए: “अपने साथ मेरा सम्बन्ध बहुत दुःखमय है,” १७-वर्षीय बार्बरा ने कहा। “जब मैं उन लोगों के साथ होती हूँ जिनको मुझ पर विश्‍वास है, तब मैं अच्छा काम करती हूँ। पर जब मेरे साथ मशीन के फ़ालतू पुरजे की तरह व्यवहार किया जाता है, मैं नासमझ बन जाती हूँ।”

जो लोग अक्खड़ या अपमानी होते हैं वे सचमुच आपको अपने बारे में बुरा महसूस करा सकते हैं। सो ऐसे मित्र चुनिए जो असल में आपके हित में दिलचस्पी रखते हैं, मित्र जो आपको प्रोत्साहन देते हैं।—नीतिवचन १३:२०.

परमेश्‍वर को अपना निकटतम मित्र बनाइए: “यहोवा मेरी चट्टान, और गढ़” है, भजनहार दाऊद ने कहा। (भजन १८:२) उसका विश्‍वास उसकी अपनी योग्यताओं में नहीं, परन्तु यहोवा के साथ अपनी घनिष्ठ मित्रता में था। अतः, जब बाद में उस पर संकट आया, तब वह अपना धैर्य खोए बिना तीव्र आलोचना सह सका। (२ शमूएल १६:७, १०) आप भी, “परमेश्‍वर के निकट आ” सकते हैं और इस प्रकार अपने में नहीं, परन्तु यहोवा में “घमण्ड” कर सकते हैं!—याकूब २:२१-२३; ४:८; १ कुरिन्थियों १:३१.

बंद रास्ते

एक लेखक ने कहा: “कभी-कभी एक कमज़ोर पहचान और निम्न स्वाभिमान रखनेवाला किशोर संसार का सामना करने के लिए एक झूठा रूप या मुखौटा लगाने की कोशिश करता है।” जो भेष कुछ युवा अपनाते हैं वे जाने-माने हैं: “पहलवान,” बदचलन गुलछर्रेबाज़, ऊटपटांग कपड़े पहने पंक रॉकर। लेकिन इन मुखौटों के पीछे, ऐसे युवा अभी भी हीनता की भावनाओं से जूझते हैं।—नीतिवचन १४:१३.

उदाहरण के लिए, उन पर विचार कीजिए जो “हताशा की भावनाओं को भगाने के लिए, [चाहनीय महसूस करने के द्वारा] स्वाभिमान बढ़ाने के लिए, अंतरंगता पाने के लिए और, गर्भधारण करके प्रेम तथा एक और मनुष्य—एक शिशु—की संदेहरहित स्वीकृति पाने के लिए” बदचलनी करते हैं। (किशोरावस्था हताशा से निपटना, अंग्रेज़ी) एक निराश युवती ने लिखा: “मैंने अपने सृष्टिकर्ता के साथ एक ठोस सम्बन्ध बनाने की कोशिश करने के बजाय, उसकी जगह लैंगिक अंतरंगता से सांत्वना पाने की कोशिश की। मैंने सिर्फ़ खालीपन, अकेलापन और अधिक हताशा पायी।” तो फिर, ऐसे बंद रास्तों से सावधान रहिए।

चेतावनी के दो शब्द

दिलचस्पी की बात है, शास्त्र बारंबार अपने बारे में बहुत ऊँचा सोचने के विरुद्ध चिताता है! ऐसा क्यों? प्रत्यक्षतः इसलिए कि हम में से अधिकतर, आत्म-विश्‍वास प्राप्त करने के अपने प्रयास में, अकसर लक्ष्य से आगे बढ़ जाते हैं। अनेक अहंकारी बन जाते हैं और अपनी कुशलताओं और क्षमताओं को बहुत बढ़ा-चढ़ा देते हैं। कुछ तो दूसरों को नीचा करने के द्वारा अपने को ऊँचा उठाते हैं।

प्रथम शताब्दी में, यहूदियों और अन्यजातियों (ग़ैर-यहूदियों) के बीच तीव्र द्वंद्वभाव ने रोम की एक मसीही कलीसिया को ग्रस लिया था। सो प्रेरित पौलुस ने अन्यजातियों को याद दिलाया कि केवल परमेश्‍वर की “कृपा” के द्वारा उन्हें परमेश्‍वर के अनुग्रह की स्थिति में “साटा” गया था। (रोमियों ११:१७-३६) आत्म-धर्मी यहूदियों को भी अपनी अपरिपूर्णताओं का सामना करना पड़ा। “इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं,” पौलुस ने कहा।—रोमियों ३:२३.

पौलुस ने उनका स्वाभिमान नहीं छीना परन्तु कहा: “क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, . . . हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे।” (रोमियों १२:३) सो जबकि कुछ हद तक आत्म-सम्मान “चाहिए,” व्यक्‍ति को इस सम्बन्ध में नितान्त नहीं होना चाहिए।

जैसे डॉ. ऐलॆन फ्रॉम कहता है: “एक व्यक्‍ति जो अपने बारे में उचित छवि रखता है वह उदास नहीं, परन्तु उसे पागलों की तरह ख़ुश होने की ज़रूरत नहीं। . . . वह निराशावादी नहीं, परन्तु उसका आशावाद अनियंत्रित नहीं। वह न तो दुःसाहसी है न ही विशिष्ट भय से मुक्‍त . . . वह स्वीकार करता है कि वह सदाबहार सफल व्यक्‍ति नहीं है, न ही वह सदैव [निरन्तर] असफल होता है।”

सो विनम्र बनिए। “परमेश्‍वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है।” (याकूब ४:६) अपने गुण स्वीकार कीजिए, परन्तु अपनी कमियों की उपेक्षा मत कीजिए। इसके बजाय, उन पर काम कीजिए। फिर भी समय-समय पर आप अपने पर संदेह करेंगे। लेकिन आपको कभी अपने आत्म-गौरव पर या इस बात पर कि परमेश्‍वर आपकी परवाह करता है संदेह करने की ज़रूरत नहीं। क्योंकि “यदि कोई परमेश्‍वर से प्रेम रखता है, तो उसे परमेश्‍वर पहिचानता है।”—१ कुरिन्थियों ८:३.

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ कुछ युवाओं को अपने बारे में नकारात्मक भावनाएँ क्यों होती हैं? क्या आप ऐसे युवाओं की भावनाएँ समझ सकते हैं?

◻ आप अपने माता-पिता की माँगों को कैसे पूरा कर सकते हैं?

◻ आत्म-सम्मान बढ़ाने के कुछ तरीक़े क्या हैं?

◻ स्वाभिमान बढ़ाने के कुछ बंद रास्ते क्या हैं?

◻ आपको अपने बारे में बहुत ऊँचा सोचने से क्यों सचेत रहना चाहिए?

[पेज 98 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

स्वाभिमान को “वह तत्व” कहा गया है “जो मानव अस्तित्व को गरिमा देता है”

[पेज 99 पर तसवीर]

क्या आप निरुत्साहित, हीन महसूस करते हैं? समाधान है

[पेज 101 पर तसवीर]

डींगमार या शेख़ीबाज़ बनना निम्न स्वाभिमान का कोई समाधान नहीं

[पेज 102 पर तसवीर]

क्या कभी-कभी आपको लगता है कि आपसे कोई काम ठीक तरह नहीं होता?