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मैं इतना शर्मीला क्यों हूँ?

मैं इतना शर्मीला क्यों हूँ?

अध्याय १५

मैं इतना शर्मीला क्यों हूँ?

“सब मुझे कहते हैं मैं कितनी सुन्दर हूँ,” एक युवती ने एक समाचार-पत्र स्तंभ को लिखा। फिर भी उसने आगे कहा: “मुझे लोगों से बात करने में मुश्‍किल होती है। यदि बात करते समय मैं किसी की आँखों में देखूँ, तो मेरा चेहरा लाल हो जाता है और मैं अन्दर से एकदम घुटने लगती हूँ . . . काम पर मैंने इस बारे में कई बातें सुनी हैं कि मैं कितनी ‘घमंडी’ हूँ क्योंकि मैं किसी से बात नहीं करती। . . . मैं घमंडी नहीं, बस शर्मीली हूँ।”

एक सर्वेक्षण ने दिखाया कि पूछे जानेवालों में से ८० प्रतिशत अपने जीवन में किसी-न-किसी समय शर्मीले थे, और ४० प्रतिशत ने अपने आपको अभी भी शर्मीला माना। सचमुच, शर्मीलापन आरंभिक समय से मानवजाति के लिए एक सामान्य बात रही है। बाइबल हमें बताती है कि संकोच करके मूसा ने इस्राएल जाति के सामने परमेश्‍वर के प्रवक्‍ता के रूप में कार्य करने से इनकार कर दिया। (निर्गमन ३:११, १३; ४:१, १०, १३) यह भी प्रतीत होता है कि मसीही शिष्य तीमुथियुस शर्मीला था और खुलकर बोलने और अपने अधिकार को उचित रूप से प्रयोग करने के बारे में संकोची था।—१ तीमुथियुस ४:१२; २ तीमुथियुस १:६-८.

शर्मीलापन क्या है

लोगों के साथ बेचैनी महसूस करना शर्मीलापन है, जैसे उनके साथ जो अजनबी हैं, अधिकार में हैं, विपरीत लिंग के व्यक्‍ति हैं, या यहाँ तक कि जो आपके समकक्ष हैं। अत्यधिक आत्म-संकोच भिन्‍न-भिन्‍न तरीक़ों से अपने शिकारों को प्रभावित करता है। कुछ लजा जाते हैं; वे बोल नहीं पाते, उनकी आँखें झुक जाती हैं और धड़कन बढ़ जाती है। दूसरे अपना संतुलन खो देते हैं और बोलते चले जाते हैं। और दूसरे हैं जो खुलकर अपनी राय या पसन्द बताना कठिन पाते हैं।

लेकिन, असल में कुछ हद तक शर्मीलेपन के सकारात्मक पहलू हैं। यह मर्यादा और नम्रता का तुल्य है, और जो बातें परमेश्‍वर देखता और सराहता है उनमें से एक यह है कि ‘उसके साथ नम्रता से चलें।’ (मीका ६:८) विचारशील और विनीत दिखने, रोबीले और बहुत लड़ाका न होने का एक और लाभ है। एक शर्मीले व्यक्‍ति को अकसर एक अच्छा श्रोता मानकर पसन्द किया जाता है। लेकिन जब शर्मीलापन हमें अपनी पूरी क्षमता दिखाने से रोकता और पीछे हटाता है और हमारे सम्बन्धों, कार्य, और भावनाओं को हानि पहुँचाता है, तब इसके बारे में कुछ करना आवश्‍यक है!

एक अच्छी शुरूआत है समस्या को समझना। (नीतिवचन १:५) शर्मीलापन यह नहीं बताता कि आप क्या हैं; यह आपका बर्ताव, किसी स्थिति में आपकी प्रतिक्रिया, दूसरों के साथ अनुभवों से आपने जो आदतें सीखी और पक्की की हैं, वह बताता है। आप सोचते हैं कि दूसरे आपके बारे में नकारात्मक राय बना रहे हैं, कि वे आपको पसन्द नहीं करते। आप सोचते हैं कि दूसरे आपसे बेहतर या ज़्यादा सामान्य हैं। आप सोचते हैं कि सब कुछ उलटा-पुलटा हो जाएगा यदि आपने दूसरे लोगों के साथ सम्बन्ध बनाने की कोशिश की। आप अपेक्षा करते हैं कि सब कुछ गड़बड़ हो जाएगा, और अकसर ऐसा होता है—क्योंकि आप तनाव में आ जाते हैं और अपनी धारणाओं के सामंजस्य में कार्य करते हैं।

कैसे शर्मीलापन आपके जीवन को प्रभावित करता है

सिमटने से, नहीं बोलने से, या अपने आपमें इतना व्यस्त रहने से कि आप दूसरों पर ध्यान नहीं देते, आप शायद यह विचार दें कि आप घमंडी, ग़ैरमिलनसार, ऊबे हुए, या यहाँ तक कि बेपरवाह या अनजान हैं। जब आपके विचार अपने ऊपर होते हैं, तब चल रही चर्चा पर ध्यान केंद्रित करना मुश्‍किल होता है। सो आप उस जानकारी पर कम ध्यान देते हैं जो आपको मिल रही है। तब आपको जिसका सबसे अधिक डर था वही होता है—आप मूर्ख दिखते हैं।

सारांश में, आपने अपने आपको शर्मीलेपन की जेल की दीवारों के पीछे बंद कर दिया है और चाबी फेंक दी है। आप अवसर हाथ से जाने देते हैं। आप उन वस्तुओं या स्थितियों को स्वीकार करते हैं जो असल में आपको चाहिए नहीं—यह सब इसलिए कि आप खुलकर अपनी राय व्यक्‍त करने से डरते हैं। आप लोगों से मिलने और नए मित्र बनाने या ऐसे काम करने के आनन्द से चूक जाते हैं जो आपके जीवन को निखारते। लेकिन दूसरे भी चूकते हैं। वे कभी आपका असली रूप नहीं जान पाते।

शर्मीलापन दूर करना

समय और प्रयास के साथ, बर्ताव बदल सकता है। सबसे पहले, इस बारे में चिन्ता करना छोड़िए कि क्या दूसरा व्यक्‍ति आपको आँक रहा है। वह संभवतः अपने बारे में सोचने में, और वह क्या बोलेगा और करेगा, इसमें डूबा हुआ है। और यदि वह व्यक्‍ति बचकाना हरकत में आपकी हँसी उड़ाता है, तो समझिए कि उसको समस्या है। “जो अपने पड़ोसी को तुच्छ जानता है, वह निर्बुद्धि है।” (नीतिवचन ११:१२) जो इस योग्य हैं कि उन्हें मित्र बनाया जाए वे बाहरी दिखावे से नहीं बल्कि आप जिस क़िस्म के व्यक्‍ति हैं उससे आपको आँकेंगे।

साथ ही, सकारात्मक रूप से सोचने की कोशिश कीजिए। कोई परिपूर्ण नहीं; हम सब की अपनी-अपनी ख़ूबियाँ और कमियाँ हैं। याद रखिए, किसी चीज़ को देखने के अलग-अलग तरीक़े होते हैं, अलग-अलग पसन्द और नापसन्द होती हैं। राय अलग होने का यह अर्थ नहीं कि आपको एक व्यक्‍ति के रूप में ठुकरा दिया गया है।

दूसरों को उचित रीति से आँकना भी सीखिए। एक युवक जो पहले शर्मीला हुआ करता था, कहता है: “मैंने अपने बारे में दो बातें पता लगायीं . . . पहली, मैं बहुत आत्म-केंद्रित था। मैं अपने बारे में बहुत सोच रहा था, चिन्ता कर रहा था कि जो मैं कहता हूँ उसके बारे में लोग क्या सोचते हैं। दूसरी, मैं दूसरे व्यक्‍तियों पर बुरे अभिप्रायों का दोष लगा रहा था—उन पर भरोसा न करके यह सोच रहा था कि वे मुझे तुच्छ समझेंगे।”

यह युवक यहोवा के साक्षियों की एक सभा में उपस्थित हुआ। “मैंने वहाँ एक भाषण सुना जिसने सचमुच मेरी मदद की,” वह याद करता है। ‘वक्‍ता ने बताया कि प्रेम मिलनसार है; कि यदि आपके पास प्रेम है तो आप लोगों के बारे में सबसे अच्छा सोचते हैं, सबसे बुरा नहीं। सो मैंने सीखा कि लोगों पर बुरे अभिप्रायों का दोष न लगाऊँ। मैंने अपने आपसे कहा: “वे सहानुभूति दिखाएँगे, कृपा दिखाएँगे, विचारशीलता दिखाएँगे।” मैं लोगों पर भरोसा करने लगा। मैंने माना कि कुछ लोग शायद मुझे ग़लत समझें, लेकिन अब मुझे लगा कि यह उनकी समस्या है।’

“मैंने यह भी सीखा कि मुझे सक्रिय रूप से प्रेम दिखाना शुरू करने—दूसरों के लिए अपने आपको और बढ़ाने—की ज़रूरत है,” उसने बताया। “पहले मैंने इसे युवाओं पर आज़माकर देखा। बाद में मैंने दूसरों से उनके घरों में मिलना शुरू किया। मैंने उनकी ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील होना, उनकी मदद करने के बारे में सोचना सीखा।” इस प्रकार उसने लूका ६:३७, ३८ में दी गयी यीशु की सलाह की सत्यता सीखी: “दोष मत लगाओ; तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा: दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नहीं ठहराए जाओगे: . . . दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: . . . क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।”

शुरूआत करना

सो मिलनसार होना—हैलो कहना और बातचीत शुरू करना—सीखिए। यह कोई साधारण-सी बात हो सकती है, जैसे मौसम पर कुछ कहना। याद रखिए: आपके ऊपर केवल ५० प्रतिशत ज़िम्मेदारी है। बाक़ी की आधी दूसरे व्यक्‍ति पर है। यदि आप बोलते समय हकला जाते हैं, तो निकम्मा मत महसूस कीजिए। यदि दूसरे हँसते हैं, तो उनके साथ हँसना सीखिए। यह कहना कि “वह ठीक-से नहीं निकला” आपको सहज होने और बातचीत जारी रखने में मदद देगा।

पसन्द के कपड़े पहनिए, लेकिन यह देखिए कि आपके कपड़े साफ़ और इस्त्री किए हुए हों। यह महसूस करना कि आप अपनी ओर से बहुत अच्छे दिख रहे हैं इस सम्बन्ध में आशंका कम करेगा और आपको चल रही चर्चा पर ध्यान केंद्रित करने में समर्थ करेगा। सीधे खड़े होइए—फिर भी सहज रहिए। अच्छे दिखिए और मुस्कराइए। मैत्रीपूर्ण ढंग से आँखों का संपर्क बनाए रखिए और दूसरा व्यक्‍ति जो कह रहा है उस पर सिर हिलाइए या मुँह से हामी भरिए।

जब कठिन स्थिति का सामना कर रहे हों, जैसे दूसरों के सामने भाषण देना या नौकरी का इंटरव्यू देना, तब जितना हो सके तैयारी करके आइए। पहले से अभ्यास कीजिए कि आप क्या बोलेंगे। वाक्‌ समस्याएँ अभ्यास के द्वारा भी दूर या कम की जा सकती हैं। इसमें समय लगेगा, जैसे किसी दूसरे नए कौशल को सीखने में लगता है। लेकिन जैसे-जैसे आप सकारात्मक परिणाम देखते हैं, वैसे-वैसे आप सफल होने के लिए और प्रोत्साहित होंगे।

परमेश्‍वर जो मदद दे सकता है उसकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। प्राचीन इस्राएल जाति का पहला राजा, शाऊल शुरू-शुरू में बहुत ही शर्मीला था। (१ शमूएल, अध्याय ९ और १०) लेकिन जब कार्यवाही करने का समय आया, तब “शाऊल पर परमेश्‍वर का आत्मा बल से उतरा,” और उसके नेतृत्व में लोगों ने विजय पायी!—१ शमूएल, अध्याय ११.

आज मसीही युवाओं पर यह ज़िम्मेदारी है कि परमेश्‍वर और उसके प्रतिज्ञात धार्मिकता के नए संसार के बारे में सीखने में दूसरों की मदद करें। (मत्ती २४:१४) यह सुसमाचार ले जाना और विश्‍व के सर्वोच्च अधिकारी का प्रतिनिधित्व करना निश्‍चित ही आत्म-विश्‍वास जगाएगा और व्यक्‍ति की मदद करेगा कि अपने ऊपर से ध्यान हटाए। तो फिर, आप निश्‍चित हो सकते हैं कि यदि आप वफ़ादारी से परमेश्‍वर की सेवा करते हैं, तो वह आपको आशिष देगा और अपना शर्मीलापन दूर करने में आपकी मदद करेगा।

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ यह शर्मीलापन है क्या, और दूसरों की उपस्थिति में एक शर्मीला व्यक्‍ति कैसा बर्ताव करता है? क्या किसी हद तक यह बात आपके बारे में सच है?

◻ जब एक शर्मीला व्यक्‍ति दूसरों के साथ होता है तब वह आत्म-विश्‍वास क्यों खो देता है?

◻ शर्मीलेपन के कारण एक व्यक्‍ति को कैसे हानि पहुँच सकती है?

◻ शर्मीलापन दूर करने के कुछ तरीक़े क्या हैं? क्या इनमें से किसी सुझाव से आपको सफलता मिली है?

[पेज 121 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

शर्मीला व्यक्‍ति मित्रता और अवसरों से चूक जाता है

[पेज 124 पर बक्स]

आप शर्मीलापन दूर कर सकते हैं

बदलने की चाह रखने और यह मानने से कि बदलाव सचमुच संभव है

नकारात्मक विचारों के बदले में सकारात्मक कार्य करने से

अपने लिए व्यावहारिक और अर्थपूर्ण लक्ष्य रखने से

सहज होना और चिन्ता से निपटना सीखने से

पहले से एक स्थिति का अभ्यास करने से

धीरे-धीरे सफल अनुभवों से आत्म-विश्‍वास प्राप्त करने से

याद रखने से कि राय अलग-अलग होती है और कि दूसरे भी ग़लती करते हैं

कौशल बढ़ाने के लिए अभ्यास करने और नए कौशल सीखने से

प्रेम दिखाने और दूसरों की मदद करने के लिए आगे बढ़ने से

सुहावने कपड़े पहनने और आत्म-विश्‍वास के साथ व्यवहार करने से

परमेश्‍वर जो मदद देता है उस पर भरोसा रखने से

मसीही सभाओं और दूसरों के साथ अपना विश्‍वास बाँटने में व्यस्त रहने से

[पेज 123 पर तसवीरें]

शर्मीला व्यक्‍ति कल्पना करता है कि दूसरे उसे तुच्छ समझते हैं

[पेज 125 पर तसवीर]

मिलनसार होना—मुस्कराना, दूसरों को नमस्कार करना, और एक बातचीत चलाना—सीखिए