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बच्चे मुझे अकेला क्यों नहीं छोड़ते?

बच्चे मुझे अकेला क्यों नहीं छोड़ते?

अध्याय १९

बच्चे मुझे अकेला क्यों नहीं छोड़ते?

लड़के की चाल उसका हाल बताती है। बेचैन और अपने बारे में अनिश्‍चित, स्पष्ट है कि वह अपने नए माहौल से घबराया हुआ है। बड़े छात्र तुरन्त ताड़ जाते हैं कि वह स्कूल में एक नया बच्चा है। देखते ही देखते युवा उसे घेर लेते हैं और उसकी धज्जियाँ उड़ाने लगते हैं! चेहरा तमतमाया हुआ, वह सबसे पास की सुरक्षा—टॉयलॆट—की ओर भागता है। कमरा हँसी से गूँज उठता है।

दूसरों को छेड़ना, सताना, और अपमानित करना अनेक युवाओं के क्रूर शौक़ हैं। बाइबल समय में भी, कुछ युवाओं ने तुच्छ स्वभाव दिखाया। उदाहरण के लिए, एक बार छोटे लड़कों के एक झुंड ने भविष्यवक्‍ता एलीशा को सताया। उसके पद का तिरस्कार करते हुए, वे युवा अनादरपूर्वक चिल्लाए: “हे चन्दुए चढ़ जा, हे चन्दुए चढ़ जा।” (२ राजा २:२३-२५) उसी प्रकार आज, अनेक युवा दूसरों के बारे में अपमानजनक, चोट पहुँचानेवाली बातें कहने को प्रवृत्त रहते हैं।

“मैं अपनी नौवीं कक्षा में सबसे नाटा था,” कक्षा में विकास-जनित पीड़ा (अंग्रेज़ी) का एक लेखक याद करता है। “जूनियर हाई [स्कूल] के लिए कक्षा में सबसे होशियार बच्चा और सबसे नाटा बच्चा होना भयंकर जोड़ था: जो मुझे नाटा होने के लिए नहीं चिढ़ाना चाहते थे वे मुझे होशियार लड़का होने के लिए चिढ़ाते थे। ‘चश्‍मुद्दीन’ के साथ-साथ मुझे ‘चलती-फिरती डिक्शनरी’ कहा जाता था, और ८०० दूसरे नाम [गंदे शब्द] दिए गए थे।” बच्चों का अकेलापन (अंग्रेज़ी) का लेखक आगे कहता है: “जिन बच्चों में शारीरिक अपंगता, वाक्‌ समस्याएँ, या प्रत्यक्ष शारीरिक या व्यवहार-सम्बन्धी निरालापन होता है वे दूसरे बच्चों की छेड़ख़ानी का आसान निशाना होते हैं।”

कभी-कभी युवा एक क़िस्म की क्रूर प्रतिस्पर्धा में पड़ने के द्वारा अपना बचाव करते हैं: एक दूसरे को (अकसर दूसरे के माता-पिता के बारे में) और भी चोट पहुँचानेवाले अपशब्द कहते हैं। लेकिन अनेक युवा समकक्ष सताहट का सामना करते समय निःसहाय होते हैं। एक युवा याद करता है कि किसी-किसी दिन, संगी सहपाठियों द्वारा छेड़े और सताए जाने के कारण, वह इतना डर जाता और दुःखी हो जाता कि उसे ‘लगता वह उलटी कर देगा।’ इस चिन्ता में कि दूसरे छात्र उसके साथ क्या करेंगे, वह अपनी पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाता था।

हँसी की बात नहीं

क्या आप समकक्ष क्रूरता का निशाना बने हैं? तो आप यह जानकर सांत्वना पा सकते हैं कि परमेश्‍वर इसे हँसी की बात नहीं समझता। एक जेवनार के बारे में बाइबल के वृत्तान्त पर विचार कीजिए जो इब्राहीम के पुत्र इसहाक का दूध छुड़ाने का उत्सव मनाने के लिए रखी गयी थी। प्रत्यक्षतः इसहाक को मिलनेवाली विरासत के कारण जलन में आकर, इब्राहीम का बड़ा पुत्र इश्‍माएल, इसहाक की “हंसी” करने लगा। लेकिन यह छेड़छाड़ हलका मज़ाक न होकर, ‘सताहट’ के बराबर थी। (गलतियों ४:२९) अतः इसहाक की माँ, सारा ने इस छेड़ख़ानी में शत्रुता भाँप ली। उसने इसे अपने पुत्र, इसहाक के द्वारा एक “वंश,” या मसीहा उत्पन्‍न करने के यहोवा के उद्देश्‍य का अपमान समझा। सारा की बिनती पर, इश्‍माएल और उसकी माँ को इब्राहीम के घराने से निकाल दिया गया।—उत्पत्ति २१:८-१४.

उसी प्रकार, यह कोई हँसी की बात नहीं जब बच्चे आपको दुर्भाव से सताते हैं—ख़ासकर जब वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि आप बाइबल स्तरों के अनुसार जीने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के लिए, मसीही युवा दूसरों के साथ अपना विश्‍वास बाँटने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन, जैसे यहोवा के युवा साक्षियों के एक समूह ने कहा: “स्कूल में बच्चे हमारा मज़ाक उड़ाते हैं क्योंकि हम दर-दर जाकर प्रचार करते हैं, और इसलिए वे हमें नीचा दिखाते हैं।” जी हाँ, प्राचीन समय में परमेश्‍वर के विश्‍वासी सेवकों की तरह, अनेक मसीही युवा ‘ठट्ठों में उड़ाए जाने के द्वारा परखे’ जाते हैं। (इब्रानियों ११:३६) ऐसी निन्दा सहने में उनके साहस के लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए!

वे ऐसा क्यों करते हैं

फिर भी, आप शायद सोचें कि क्या किया जाए जिससे आपके उत्पीड़क आपको अकेला छोड़ दें। पहले, इस पर विचार कीजिए कि छेड़ख़ानी का कारण क्या है। “हंसी में हृदय दुखी हो सकता है,” बाइबल नीतिवचन १४:१३ (NHT) में कहती है। हँसी तब फूटती है जब युवाओं का एक गुट किसी को सताता है। लेकिन वे “हर्षित मन से जयजयकार” नहीं कर रहे होते। (यशायाह ६५:१४, NHT) अकसर हँसी आन्तरिक अशान्ति को छिपाने का मुखौटा-भर होती है। बहादुरी के दिखावे के पीछे, उत्पीड़क शायद असल में कह रहे हों: ‘हम अपने आपको पसन्द नहीं करते, लेकिन किसी दूसरे को नीचा दिखाने से हमें अच्छा लगता है।’

जलन भी आक्रमण भड़काती है। किशोर यूसुफ के बारे में बाइबल वृत्तान्त याद कीजिए, जिसके अपने भाई उसके विरुद्ध हो गए क्योंकि वह अपने पिता का दुलारा था। अत्यधिक जलन न केवल मौखिक दुर्व्यवहार का बल्कि हत्या के षड्यंत्र का भी कारण बनी! (उत्पत्ति ३७:४, ११, २०) उसी प्रकार आज, एक छात्र जो पढ़ाई में बहुत तेज़ है या जिसे शिक्षक बहुत पसन्द करते हैं वह अपने समकक्षों की जलन भड़का सकता है। लगता है कि अपशब्द ‘उसे औक़ात में ले आते हैं।’

अतः असुरक्षा, जलन, और निम्न आत्म-गौरव अकसर उपहास के कारण होते हैं। तो फिर, आपको अपना आत्म-गौरव खोने की क्या ज़रूरत है इसलिए कि किसी असुरक्षित युवा ने अपना खो दिया है?

सताहट को रोकना

‘क्या ही धन्य है वह पुरुष जो ठट्ठा करनेवालों की मण्डली में नहीं बैठता,’ भजनहार कहता है। (भजन १:१) आपके ऊपर से उनका ध्यान हटाने के लिए उपहास में शामिल होना अपमान चक्र को आगे ही बढ़ाता है। “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; . . . भलाई से बुराई को जीत लो” ईश्‍वरीय सलाह है।—रोमियों १२:१७-२१.

सभोपदेशक ७:९ आगे कहता है: “अपने मन में उतावली से क्रोधित न हो, क्योंकि क्रोध मूर्खों ही के हृदय में रहता है।” जी हाँ, आप छेड़छाड़ को इतनी गंभीरता से क्यों लें? माना, यदि कोई आपके डील-डौल की हँसी उड़ाता है या आपके चेहरे के दाग़-धब्बों का मज़ाक उड़ाता है तो यह चुभता है। फिर भी, वे बातें जबकि अरुचिकर हो सकती हैं, ज़रूरी नहीं कि दुर्भावपूर्ण हों। सो यदि कोई नासमझी में—या उतनी नासमझी में न सही—आपकी किसी दुःखती रग को छेड़ता है, तो चूर-चूर क्यों हों? यदि कही गयी बात अश्‍लील या निंदनीय नहीं है, तो उसमें हास्य को देखने की कोशिश कीजिए। ‘हंसने का समय’ होता है, और खेल-खेल में की गयी छेड़ख़ानी का बुरा मानना शायद उचित प्रतिक्रिया न हो।—सभोपदेशक ३:४.

लेकिन तब क्या यदि छेड़छाड़ क्रूर या यहाँ तक कि हिंसक है? याद रखिए कि उपहास करनेवाला आपकी प्रतिक्रिया का आनन्द उठाना चाहता है, आपके कष्ट में मज़ा लेना चाहता है। प्रतिघात करना, आत्मरक्षी बनना, या आँसू बहाने लगना संभवतः उसे छेड़ख़ानी करते रहने के लिए प्रोत्साहित करेगा। उसे आपको परेशान होते देखने की संतुष्टि क्यों दें? अपमान से निपटने का सबसे अच्छा तरीक़ा होता है उसकी परवाह किए बिना नज़रअंदाज़ कर देना।

राजा सुलैमान ने आगे कहा: “जितनी बातें कही जाएं सब पर कान न लगाना [“लोगों की हर बात पर ध्यान न देना”—टुडेज़ इंग्लिश वर्शन], ऐसा न हो कि तू सुने कि तेरा दास तुझी को शाप देता है। क्योंकि तू आप जानता है कि तू ने भी बहुत बेर औरों को शाप दिया है।” (सभोपदेशक ७:२१, २२) उपहास करनेवालों की हानिकर बातों पर ‘कान लगाने’ का अर्थ होगा आपके बारे में उनकी राय की अत्यन्त चिन्ता करना। क्या उनकी राय निर्णायक है? प्रेरित पौलुस पर ईर्ष्यालु समकक्षों ने अनुचित रूप से हमला किया, लेकिन उसने उत्तर दिया: “मेरी दृष्टि में यह बहुत छोटी बात है, कि तुम या मनुष्यों का कोई न्यायी मुझे परखे, . . . मेरा परखनेवाला प्रभु है।” (१ कुरिन्थियों ४:३, ४) परमेश्‍वर के साथ पौलुस का सम्बन्ध इतना मज़बूत था कि उसके पास अनुचित हमलों का सामना करने के लिए विश्‍वास और आन्तरिक शक्‍ति थी।

अपना उजियाला चमकाना

कभी-कभी आपका ठट्ठा एक मसीही के रूप में आपकी जीवन-शैली के कारण किया जा सकता है। स्वयं यीशु मसीह को ऐसा “विद्रोह” सहना पड़ा। (इब्रानियों १२:३, NHT) निर्भीकता से यहोवा का संदेश बताने के कारण यिर्मयाह की भी ‘दिन भर हंसी होती थी।’ सताहट इतनी सतत थी कि कुछ समय के लिए यिर्मयाह ने अपना उत्साह खो दिया। “मैं उसकी [यहोवा की] चर्चा न करूंगा न उसके नाम से बोलूंगा,” उसने फ़ैसला किया। लेकिन, परमेश्‍वर और सत्य के लिए उसके प्रेम ने अंततः उसे प्रेरित किया कि अपने भय पर जय पाए।—यिर्मयाह २०:७-९.

उसी प्रकार आज भी कुछ मसीही युवा निरुत्साहित हुए हैं। छेड़ख़ानी रोकने की चिन्ता में, कुछ ने यह सच्चाई छिपाने की कोशिश की है कि वे मसीही हैं। लेकिन अकसर परमेश्‍वर के लिए प्रेम अंततः ऐसों को प्रेरित करता है कि अपने भय पर जय पाएँ और ‘अपना उजियाला चमकाएँ’! (मत्ती ५:१६) उदाहरण के लिए, एक किशोर ने कहा: “मेरी मनोवृत्ति बदल गयी। मैंने यह समझना बंद कर दिया कि मसीही होना एक भार है जिसे उठाए फिरना है बल्कि उसे गर्व की बात समझने लगा।” आप भी परमेश्‍वर को जानने और उसके द्वारा दूसरों की मदद करने के लिए प्रयोग किए जाने के विशेषाधिकार में “घमण्ड” कर सकते हैं।—१ कुरिन्थियों १:३१.

लेकिन, हमेशा दूसरों की आलोचना करने के द्वारा या दूसरों को यह विचार देने के द्वारा कि आप अपने आपको श्रेष्ठ समझते हैं, शत्रुता मत मोल लीजिए। जब अपने विश्‍वास को बाँटने का अवसर आता है तब उसे बाँटिए, परन्तु “नम्रता व श्रद्धा के साथ।” (१ पतरस ३:१५, NHT) जब आप स्कूल में हैं तब अच्छे चाल-चलन की आपकी साख आपकी सबसे बड़ी सुरक्षा साबित हो सकती है। जबकि दूसरे शायद आपकी साहसी स्थिति को पसन्द न करें, फिर भी वे प्रायः अनमनेपन से ही सही, इसके लिए आपका आदर करेंगे।

वनॆस्सा नाम की एक लड़की को एक गुट की लड़कियाँ सताती थीं। वे उसे मारतीं, इधर-उधर धक्का देतीं, उसके हाथों में से पुस्तकें गिरा देतीं—यह सब कुछ एक झगड़ा शुरू करने की कोशिश में। उन्होंने उसके सिर पर और साफ़ सफ़ेद पोशाक पर चॉकलेट मिल्क शेक तक उँडेल दिया। फिर भी वह कभी उत्तेजित नहीं हुई। कुछ समय बाद, वनॆस्सा को उस गुट की नेता यहोवा के साक्षियों के एक अधिवेशन में मिली! “मैं तुम से नफ़रत करती थी . . . ,” पहले की धौंसिया ने कहा। “मैं देखना चाहती थी कि तुम बस एक बार अपना संयम खो दो।” लेकिन, अपनी इस जिज्ञासा के कारण कि वनॆस्सा कैसे अपना संतुलन बनाए रखती है, उसने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन स्वीकार किया। “जो मैंने सीखा मुझे उससे प्रेम हो गया,” उसने आगे कहा, “और कल मैं बपतिस्मा ले रही हूँ।”

सो समकक्षों द्वारा “विद्रोह” से अपना मनोबल न टूटने दीजिए। जब उपयुक्‍त हो, तब हास्यभाव दिखाइए। बुराई का बदला भलाई से दीजिए। झगड़े की आग को हवा मत दीजिए, और कुछ समय बाद आपके उत्पीड़क उपहास के लिए आपको निशाना बनाने में शायद ही कोई मज़ा पाएँगे, क्योंकि “लकड़ी न होने से आग बुझती है।”—नीतिवचन २६:२०.

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ जो दूसरों को क्रूरता से छेड़ते हैं उन्हें परमेश्‍वर किस दृष्टि से देखता है?

◻ युवा सताहट के पीछे अकसर क्या होता है?

◻ आप उपहास को कैसे कम कर सकते या रोक भी सकते हैं?

◻ यह क्यों महत्त्वपूर्ण है कि आप स्कूल में ‘अपना उजियाला चमकाएँ,’ तब भी जब दूसरे आपको छेड़ते हैं?

◻ स्कूल में हिंसा से अपने आपको बचाने के लिए आप कौन-से क़दम उठा सकते हैं?

[पेज 155 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

बहादुरी के दिखावे के पीछे, उत्पीड़क शायद असल में कह रहे हों: ‘हम अपने आपको पसन्द नहीं करते, लेकिन किसी दूसरे को नीचा दिखाने से हमें अच्छा लगता है’

[पेज 152 पर बक्स]

मैं पिटने से कैसे बचूँ?

‘जब आप स्कूल आते हैं तब जान हथेली पर रखकर लाते हैं।’ अनेक छात्र ऐसा कहते हैं। लेकिन एक शस्त्र लेकर चलना मूर्खता है और मुसीबत को न्योता देता है। (नीतिवचन ११:२७) तो फिर, आप अपना बचाव कैसे कर सकते हैं?

ख़तरे के स्थान जानिए और उनसे दूर रहिए। कुछ स्कूलों में गलियारे, सीढ़ी-कूपक, और लॉकर कक्ष बड़े जोख़िम के स्थान होते हैं। और टॉयलॆट झगड़ों के लिए जमा होने और नशीले पदार्थों के सेवन के स्थान के रूप में इतने कुख्यात हैं कि अनेक युवा इन सुविधाओं को प्रयोग करने के बजाय असुविधा में होना ज़्यादा पसन्द करते हैं।

अपनी संगति पर ध्यान दीजिए। अकसर एक युवा अपने आपको एक झगड़े के बीच पाता है मात्र इसलिए कि वह ग़लत गुट के साथ संगति करता है। (नीतिवचन २२:२४, २५ देखिए।) निःसंदेह, अपने स्कूल-साथियों से रूखा व्यवहार करना उनको विमुख कर सकता है या आपके प्रति शत्रुतापूर्ण बना सकता है। यदि आप उनके साथ मैत्रीपूर्ण और शिष्ट हैं, तो वे आपको अकेला छोड़ने के लिए अधिक प्रवृत्त होंगे।

झगड़ों से दूर हो जाइए। ‘एक दूसरे को बलपरीक्षा के लिए मजबूर’ मत कीजिए। (गलतियों ५:२६, NW फुटनोट) यदि एक झगड़े में आप जीत जाते हैं, तो भी आपका विरोधी झगड़े के एक और दौर के लिए मौक़े की तलाश में रहेगा। सो पहले कोशिश कीजिए कि बात करके काम बन जाए और झगड़ा न हो। (नीतिवचन १५:१) यदि बात करने से काम नहीं बनता, तो हिंसक भिड़न्त से बचने के लिए वहाँ से चले जाइए—ज़रूरत पड़े तो भाग जाइए। याद रखिए, “जीवता कुत्ता मरे हुए सिंह से बढ़कर है।” (सभोपदेशक ९:४) अंतिम उपाय के रूप में, अपने बचाव और सुरक्षा के लिए जो भी उचित क़दम लेना ज़रूरी हो लीजिए।—रोमियों १२:१८.

अपने माता-पिता से बात कीजिए। युवा “शायद ही कभी अपने स्कूल संत्रास के बारे में अपने माता-पिताओं को बताते हैं, इस डर से कि माता-पिता उन्हें डरपोक समझेंगे या धौंसियों का सामना नहीं करने के लिए धिक्कारेंगे।” (बच्चों का अकेलापन) लेकिन, अकसर समस्या को रोकने का एकमात्र रास्ता होता है माता या पिता द्वारा हस्तक्षेप।

परमेश्‍वर से प्रार्थना कीजिए। परमेश्‍वर इसकी गारंटी नहीं देता कि आप शारीरिक हानि से बचेंगे। लेकिन वह आपको भिड़न्त का सामना करने के लिए साहस और स्थिति को शान्त करने के लिए ज़रूरी बुद्धि दे सकता है।—याकूब १:५.

[पेज 151 पर तसवीर]

अनेक युवा समकक्षों द्वारा सताहट के शिकार हैं

[पेज 154 पर तसवीर]

उपहास करनेवाला आपके कष्ट में मज़ा लेना चाहता है। प्रतिघात करना या आँसू बहाने लगना सताहट बढ़ाने का भी प्रोत्साहन दे सकता है

[पेज 156 पर तसवीर]

छेड़े जाते समय हास्यभाव दिखाने की कोशिश कीजिए