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मैं कौन-सा पेशा चुनूँ?

मैं कौन-सा पेशा चुनूँ?

अध्याय २२

मैं कौन-सा पेशा चुनूँ?

‘मैं अपने बाक़ी जीवन के साथ क्या करूँ?’ कभी-न-कभी आपको इस चुनौती-भरे प्रश्‍न का सामना करना पड़ता है। आपके सामने उलझन में डालनेवाले इतने सारे विकल्प होते हैं—चिकित्सा, व्यापार, कला, शिक्षा, कम्प्यूटर साइंस, इंजीनियरिंग, व्यवसाय। और आप शायद उस युवा के जैसा महसूस करें जिसने कहा: “मेरे हिसाब से सफलता है . . . उस सुविधा स्तर को बनाए रखना जिसके साथ आप बड़े हुए हैं।” या दूसरों के जैसे, आप शायद जीवन में अपना आर्थिक स्तर सुधारने के सपने देखते हों।

लेकिन क्या सफलता में भौतिक लाभ से अधिक सम्मिलित है? क्या कोई सांसारिक पेशा आपको असली संतुष्टि दे सकता है?

‘उसका कोई महत्त्व नहीं’

चमक-धमक, रोमांच, पैसा! फ़िल्में, टीवी, और पुस्तकें सांसारिक पेशों को इसी तरह प्रस्तुत करती हैं। लेकिन ऐसी सफलता पाने के लिए, पेशों के सोपान चढ़नेवालों को अकसर पहचान बनाने के जीवन-मरण संघर्ष में एक दूसरे से होड़ लगानी पड़ती है। डॉ. डगलस लाबीएर बताता है कि कैसे युवा वयस्क, जिनमें से अनेकों के “फ़ास्ट-ट्रैक, हाई-टॆक पेशे हैं, असंतुष्टि, चिन्ता, हताशा, खालीपन, भयग्रस्तता की भावनाएँ, साथ ही ढेरों शारीरिक शिक़ायतें रिपोर्ट करते हैं।”

बहुत पहले, राजा सुलैमान ने सांसारिक सफलता की व्यर्थता को प्रकट किया। क्योंकि सुलैमान के पास लगभग असीमित साधन थे, उसने अनगिनत पेशों में उपलब्धियाँ पायीं। (सभोपदेशक २:४-१० पढ़िए।) फिर भी, सुलैमान ने निष्कर्ष निकाला: “तब मैं ने फिर से अपने हाथों के सब कामों को, और अपने सब परिश्रम को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ [“मैं ने समझा कि उसका कोई महत्त्व नहीं,” टुडेज़ इंग्लिश वर्शन] और वायु को पकड़ना है।”—सभोपदेशक २:११.

एक नौकरी धन और मान ला सकती है, लेकिन वह व्यक्‍ति की ‘आध्यात्मिक ज़रूरतों’ को संतुष्ट नहीं कर सकती। (मत्ती ५:३, NW) अतः संतुष्टि उनसे दूर रहती है जो अपना जीवन केवल सांसारिक उपलब्धि पर केंद्रित रखते हैं।

पेशा जो संतुष्टि देता है

राजा सुलैमान सलाह देता है: “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।” (सभोपदेशक १२:१३) आज मसीहियों की मुख्य बाध्यता है राज्य संदेश का प्रचार करना। (मत्ती २४:१४) और जो युवा परमेश्‍वर के सामने अपनी बाध्यता को गंभीरता से लेते हैं वे इस कार्य में अपने भरसक पूरा भाग लेने के लिए विवश महसूस करते हैं—चाहे वे स्वाभाविक रूप से प्रचार करने को प्रवृत्त न भी हों। (२ कुरिन्थियों ५:१४ से तुलना कीजिए।) पूर्ण-समय की सांसारिक नौकरियाँ करने के बजाय, हज़ारों ने पूर्ण-समय के पायनियर सुसमाचारकों के रूप में सेवा करने का चुनाव किया है। दूसरे विदेशी मिशनरियों के रूप में या वॉच टावर सोसाइटी के शाखा दफ़्तरों में सेवा करते हैं।

एमिली, जिसने पायनियर बनने के लिए एक कार्यकारी सचिव के रूप में अपना पेशा छोड़ दिया, कहती है: “मैंने इस कार्य के लिए सच्चा प्रेम विकसित कर लिया है।” जी हाँ, पूर्ण-समय की सेवकाई से अधिक संतोषदायी, रोमांचक पेशे की कल्पना भी नहीं की जा सकती! और एक व्यक्‍ति के पास इससे बढ़कर कौन-सा विशेषाधिकार हो सकता है कि वह “परमेश्‍वर के सहकर्मियों” में से एक हो?—१ कुरिन्थियों ३:९.

विश्‍वविद्यालय शिक्षा—लाभकारी?

अधिकांश पायनियर सेवक अंश-कालिक नौकरी से अपना निर्वाह करते हैं। लेकिन तब क्या यदि बाद में आपको एक परिवार चलाने की ज़रूरत पड़ती है? निश्‍चित ही एक व्यक्‍ति परमेश्‍वर की सेवा में अपनी जवानी के साल बिताने के लिए कभी पछताएगा नहीं! फिर भी, क्या यह समझदारी की बात नहीं होगी कि एक युवा पहले विश्‍वविद्यालय डिग्री ले ले और शायद बाद में सेवकाई का लक्ष्य साधे?

निःसंदेह, बाइबल स्पष्ट शब्दों में नहीं बताती कि एक मसीही युवा को कितने साल का स्कूल प्रशिक्षण लेना चाहिए। न ही वह शिक्षा की निन्दा करती है। “महान उपदेशक,” यहोवा अपने लोगों को प्रोत्साहित करता है कि अच्छी तरह पढ़ें और अपने विचार स्पष्ट रीति से व्यक्‍त करें। (यशायाह ३०:२०, NW; भजन १:२; इब्रानियों ५:१२) इसके अलावा, शिक्षा लोगों के और जिस संसार में हम रहते हैं उसके बारे में हमारी समझ को बढ़ा सकती है।

फिर भी, क्या विश्‍वविद्यालय डिग्री हमेशा इतना अधिक समय और पैसा लगाने के योग्य होती है जिसकी वह माँग करती है? * जबकि आँकड़े दिखाते हैं कि विश्‍वविद्यालय स्नातक ज़्यादा वेतन कमाते हैं और हाई स्कूल स्नातकों की तुलना में कम बेरोज़गारी का सामना करते हैं, फिर भी पुस्तक अपनी कॉलेज शिक्षा की योजना बनाना (अंग्रेज़ी) हमें याद दिलाती है कि ये आँकड़े मात्र औसत हैं। विश्‍वविद्यालय स्नातकों में से केवल एक छोटी संख्या को असल में बहुत-ऊँचे वेतन मिलते हैं; बाक़ियों को काफ़ी सामान्य मज़दूरी मिलती है। इसके अलावा, विश्‍वविद्यालय स्नातकों की ऊँची आमदनी “असाधारण क्षमताओं, प्रेरणा, रोज़गार के लिए क्षेत्र अवसरों, . . . ख़ास कौशल” जैसे तत्वों के कारण भी हो सकती है—मात्र उनकी बहुत शिक्षा के कारण नहीं।

“एक [विश्‍वविद्यालय] डिग्री अब रोज़गार बाज़ार में सफलता की गारंटी नहीं देती,” यू.एस. श्रम विभाग कहता है। “व्यवसायिक, तकनीकी, और प्रबंधकीय पेशों में काम कर रहे [विश्‍वविद्यालय स्नातकों का] अनुपात . . . घट गया क्योंकि इन पेशों का इतनी तेज़ी से विस्तार नहीं हुआ कि स्नातकों की बढ़ती संख्या को काम दे सकें। फलस्वरूप, मोटे तौर पर ५ में से १ [विश्‍वविद्यालय] स्नातक जो १९७० और १९८४ के बीच रोज़गार बाज़ार में आया उसने एक ऐसी नौकरी ली जिसके लिए सामान्य रूप से एक डिग्री की ज़रूरत नहीं है। संभावना है कि स्नातकों की यह उमड़ती संख्या दशक १९९० के मध्य तक चलती रहेगी।”

विचार के लिए और तथ्य

विश्‍वविद्यालय डिग्री आपकी रोज़गार संभावना को शायद बढ़ाए या न बढ़ाए। लेकिन एक तथ्य निर्विवाद है: “समय कम किया गया है”! (१ कुरिन्थियों ७:२९) इसके सभी अनुमानित लाभों के बावजूद, क्या विश्‍वविद्यालय में चार या उससे अधिक साल बिताना उस बाक़ी बचे समय का सबसे अच्छा प्रयोग होगा?—इफिसियों ५:१६.

क्या विश्‍वविद्यालय शिक्षा आपको अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों की तरफ़ बढ़ाएगी या उनसे दूर करेगी? याद रखिए, बड़ी आमदनी एक मसीही प्राथमिकता नहीं है। (१ तीमुथियुस ६:७, ८) फिर भी, यू.एस. विश्‍वविद्यालय प्रशासकों के एक सर्वेक्षण ने बताया कि आज के छात्र ‘पेशा-केंद्रित हैं, भौतिक सफलता के बारे में चिन्तित हैं, अपने बारे में चिन्तित हैं।’ छात्रों के एक समूह ने कहा: “पैसा। लगता है कि हम सिर्फ़ पैसे की बात करते हैं।” तीव्र प्रतिस्पर्धा और स्वार्थी भौतिकवाद के वातावरण में डूबना आपको कैसे प्रभावित कर सकता है?

विश्‍वविद्यालयों में अब शायद १९६० के दशक के उपद्रवी दृश्‍य न हों। लेकिन विश्‍वविद्यालय ऊधम में कमी का यह अर्थ नहीं कि कैम्पस का माहौल हितकर है। कैम्पस जीवन के बारे में एक अध्ययन ने अन्त में कहा: “छात्रों के पास निजी और सामाजिक मामलों में अभी भी लगभग पूरी छूट है।” नशीले पदार्थ और शराब का खुलकर प्रयोग होता है, और लैंगिक स्वच्छंदता सामान्य है—अपवाद नहीं। यदि आपके देश में विश्‍वविद्यालयों के बारे में यह सच है, तो क्या वहाँ रहना नैतिक रूप से शुद्ध रहने के आपके प्रयासों को विफल कर सकता है?—१ कुरिन्थियों ६:१८.

एक और चिन्ता है “मूल धार्मिक विश्‍वासों के पालन” में आयी कमी के साथ उच्चतर शिक्षा के प्रभाव का सुप्रमाणित सम्बन्ध। (सांसारिक युग में पवित्रजन, अंग्रेज़ी) अधिक नम्बर लाने के दबाव से कुछ मसीही युवाओं ने आध्यात्मिक गतिविधियों की उपेक्षा की है और इस प्रकार विश्‍वविद्यालयों द्वारा बढ़ाए गए सांसारिक सोच-विचार के हमले के आगे कमज़ोर पड़ गए हैं। कुछ का विश्‍वास रूपी जहाज़ डूब गया है।—कुलुस्सियों २:८.

विश्‍वविद्यालय शिक्षा के विकल्प

इन तथ्यों को देखते हुए, अनेक मसीही युवाओं ने विश्‍वविद्यालय शिक्षा न लेने का फ़ैसला किया है। अनेकों ने पाया है कि यहोवा के साक्षियों की कलीसियाओं में दिए गए प्रशिक्षण—ख़ासकर साप्ताहिक ईश्‍वरशासित सेवकाई स्कूल—से उन्हें रोज़गार पाने में एक असल बढ़त मिली है। जबकि उनके पास एक विश्‍वविद्यालय डिग्री नहीं होती, फिर भी ऐसे युवा संतुलित, अपने विचार व्यक्‍त करने में कुशल, और ज़िम्मेदारी संभालने में काफ़ी सक्षम होना सीखते हैं। इसके अलावा, माध्यमिक स्कूल के समय, कुछ युवा टाइपिंग, कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग, ऑटो रिपेयर, मशीन-शॉप काम, इत्यादि का कोर्स करते हैं। ऐसे कौशल उन्हें अंश-कालिक नौकरी पाने में मदद देते हैं और अकसर इनकी बहुत माँग होती है। और जबकि अनेक युवा ‘अपने हाथों से काम करना’ तुच्छ समझते हैं, बाइबल “परिश्रम” करने को गौरव देती है। (इफिसियों ४:२८. नीतिवचन २२:२९ से तुलना कीजिए।) स्वयं यीशु मसीह ने एक व्यवसाय इतनी अच्छी तरह सीखा कि उसे “वही बढ़ई” कहा गया!—मरकुस ६:३.

सच है, कुछ देशों में विश्‍वविद्यालय स्नातक रोज़गार बाज़ार में ऐसे टूट पड़े हैं कि बिना किसी अतिरिक्‍त कार्य प्रशिक्षण के, साधारण नौकरियाँ भी पाना मुश्‍किल हो गया है। लेकिन अकसर अपरॆंटिसशिप कार्यक्रम, व्यवसायिक या तकनीकी स्कूल, और अल्पकालिक विश्‍वविद्यालय कोर्स होते हैं जो कम-से-कम समय और पैसा लेकर ऐसे कौशल सिखाते हैं जिनकी माँग है। यह भी कभी मत भूलिए कि एक ऐसा तत्व है जिसे रोज़गार आँकड़े सम्मिलित नहीं करते: उन लोगों का भरण-पोषण करने की परमेश्‍वर की प्रतिज्ञा जो आध्यात्मिक हितों को प्राथमिकता देते हैं।—मत्ती ६:३३.

रोज़गार संभावनाएँ और शैक्षिक प्रणालियाँ अलग-अलग जगह अलग होती हैं। युवाओं की क्षमताएँ और झुकाव अलग होते हैं। और जबकि यह सलाह दी जाती है कि मसीही सेवकाई को पेशा बनाना लाभकारी है, फिर भी यह व्यक्‍तिगत चुनाव का मामला है। अतः यह फ़ैसला करते समय कि आपके लिए कितनी शिक्षा सही है, आप और आपके माता-पिता को इसमें सम्मिलित सभी तत्वों पर ध्यानपूर्वक विचार करना चाहिए। ऐसे फ़ैसले करने में ‘हर व्यक्‍ति को अपना ही बोझ उठाना चाहिए।’—गलतियों ६:५.

उदाहरण के लिए, यदि आपके माता-पिता आग्रह करते हैं कि आप विश्‍वविद्यालय जाएँ, तो आपके पास उनकी आज्ञा मानने के अलावा और कोई चारा नहीं है क्योंकि आप उनकी निगरानी में रह रहे हैं। * (इफिसियों ६:१-३) संभवतः आप घर से ही जाकर पढ़ाई कर सकते हैं और विश्‍वविद्यालय गतिविधियों में उलझने से बच सकते हैं। ध्यान से अपने कोर्स चुनिए, उदाहरण के लिए, सांसारिक तत्वज्ञान के बजाय रोज़गार कौशल सीखने पर ध्यान दीजिए। अपनी संगति के बारे में सतर्क रहिए। (१ कुरिन्थियों १५:३३) सभा उपस्थिति, क्षेत्र सेवा, और व्यक्‍तिगत अध्ययन के द्वारा अपने आपको आध्यात्मिक रूप से मज़बूत बनाए रखिए। कुछ ऐसे युवा जिनको विश्‍वविद्यालय जाने के लिए बाध्य किया गया है पायनियर कार्य करने में भी समर्थ हुए हैं क्योंकि उन्होंने ऐसी सारणी के कोर्स चुने हैं जिससे यह करना संभव हुआ है।

अपने पेशे को ध्यानपूर्वक और प्रार्थनापूर्वक चुनिए, ताकि यह न सिर्फ़ व्यक्‍तिगत ख़ुशी दे बल्कि आपको ‘स्वर्ग में धन इकट्ठा करने’ के लिए भी समर्थ करे।—मत्ती ६:२०.

[फुटनोट]

^ पैरा. 15 अमरीका में, विश्‍वविद्यालय का ख़र्च औसतन $१०,००० प्रति वर्ष से कहीं अधिक है! छात्रों को अकसर अपना उधार चुकाने में सालों लग जाते हैं।

^ पैरा. 26 अपने माता-पिता को संतुष्ट करने के लिए शायद चार-वर्षीय डिग्री प्राप्त करना ज़रूरी न हो। उदाहरण के लिए, अमरीका में एक एसोशिएट डिग्री अनेक व्यवसायिक और सेवा-सम्बन्धित क्षेत्रों में मालिकों को स्वीकार्य है और यह दो साल में प्राप्त की जा सकती है।

चर्चा के लिए प्रश्‍न

◻ सांसारिक पेशे अकसर व्यक्‍तिगत ख़ुशी देने से क्यों चूक जाते हैं?

◻ परमेश्‍वर का भय माननेवाले सभी युवाओं को क्यों पूर्ण-समय सेवकाई को पेशा बनाने के बारे में विचार करना चाहिए?

◻ उच्चतर शिक्षा के प्रस्तावित लाभ क्या हैं, और क्या ऐसे दावे हमेशा सही निकलते हैं?

◻ विश्‍वविद्यालय शिक्षा कौन-से ख़तरे खड़े कर सकती है?

◻ एक युवा विश्‍वविद्यालय शिक्षा के कौन-से विकल्पों पर विचार कर सकता है?

[पेज 175 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

एक नौकरी धन और मान ला सकती है, लेकिन वह व्यक्‍ति की ‘आध्यात्मिक ज़रूरतों’ को संतुष्ट नहीं कर सकती

[पेज 177 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“एक [विश्‍वविद्यालय] डिग्री अब रोज़गार बाज़ार में सफलता की गारंटी नहीं देती”