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दूसरों धर्मों के रीति-रिवाज़ों में शामिल होना

दूसरों धर्मों के रीति-रिवाज़ों में शामिल होना

क्या सभी धर्मों के लोग एक ही ईश्‍वर की उपासना करते हैं?

क्या यहोवा सभी धर्मों को स्वीकार करता है, भले ही वे अलग-अलग बातें सिखाएँ?

मत 7:13, 14; यूह 17:3; इफ 4:4-6

  • इससे जुड़े किस्से:

    • यह 24:15​—यहोशू की बातों से साफ-साफ पता चलता है कि हमें चुनना होगा कि हम किसकी उपासना करेंगे, यहोवा की या दूसरे ईश्‍वरों की

    • 1रा 18:19-40​—यहोवा ने भविष्यवक्‍ता एलियाह के ज़रिए साफ दिखाया कि यहोवा के सेवकों को दूसरे किसी भी ईश्‍वर की पूजा में शामिल नहीं होना चाहिए

झूठे देवी-देवताओं के बारे में और उन्हें जो उपासना दी जाती है, उस बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है?

जब लोग कहते हैं कि वे यहोवा की उपासना कर रहे हैं, पर उसमें झूठे रीति-रिवाज़ भी मिलाते हैं, तो यह देखकर यहोवा को कैसा लगता है?

यश 1:13-15; 1कुर 10:20-22; 2कुर 6:14, 15, 17

  • इससे जुड़े किस्से:

    • निर्ग 32:1-10​—जब हारून ने सोने का बछड़ा बनाया और लोगों ने कहा कि वे उसकी पूजा करके “यहोवा के लिए एक त्योहार” मनाएँगे, तो इस पर यहोवा को बहुत गुस्सा आया

    • 1रा 12:26-30​—राजा यारोबाम नहीं चाहता था कि उसके लोग यरूशलेम के मंदिर में जाएँ, इसलिए उसने मूर्तियाँ बनवायीं और कहा कि वे यहोवा हैं। इस वजह से लोग पाप करने लगे

दूसरे देवी-देवताओं को पूजनेवालों से दूर रहने के बारे में यहोवा ने इसराएलियों को क्या सिखाया?

जब इसराएली दूसरे देवी-देवताओं को पूजने लगे, तो यहोवा ने क्या किया?

न्या 10:6, 7; भज 106:35-40; यिर्म 44:2, 3

  • इससे जुड़े किस्से:

    • 1रा 11:1-9​—राजा सुलैमान दूसरों देशों की अपनी पत्नियों के दबाव में आकर मूर्तिपूजा को बढ़ावा देने लगा और इससे यहोवा का क्रोध भड़क उठा

    • भज 78:40, 41, 55-62​—आसाप ने बताया कि जब इसराएलियों ने बार-बार बगावत की और मूर्तिपूजा की, तो यहोवा को बहुत दुख पहुँचा और उसने उन्हें ठुकरा दिया

यीशु ने ऐसी शिक्षाओं के बारे में कैसा महसूस किया जो बाइबल से नहीं थीं?

  • इससे जुड़े किस्से:

    • मत 16:6, 12​—यीशु ने कहा कि फरीसियों और सदूकियों की शिक्षाएँ खमीर की तरह हैं, जो जल्दी फैलती हैं और जिन्हें मानने से लोग यहोवा से दूर चले जाते हैं

    • मत 23:5-7, 23-33​—यीशु ने शास्त्रियों और फरीसियों को दिखावा करने और गलत शिक्षाएँ सिखाने के लिए फटकारा

    • मर 7:5-9​—यीशु ने शास्त्रियों और फरीसियों का परदाफाश किया कि वे परमेश्‍वर के वचन की शिक्षाओं से ज़्यादा इंसान की बनायी परंपराओं को अहमियत देते हैं

क्या यीशु ने अपने चेलों को बढ़ावा दिया कि वे अलग-अलग गुट बनाएँ?

  • इससे जुड़े किस्से:

    • यूह 15:4, 5​—यीशु ने एक अंगूर की बेल की मिसाल देकर समझाया कि उसके चेलों को उसके साथ एकता में रहना चाहिए और उनके बीच भी एकता होनी चाहिए

    • यूह 17:1, 6, 11, 20-23​—अपनी मौत से एक रात पहले जब यीशु अपने प्रेषितों के साथ था, तो उसने प्रार्थना की कि उसके सभी चेलों के बीच एकता रहे

हालाँकि पहली सदी में अलग-अलग मंडलियाँ थीं, पर क्या वे सभी एक ही शिक्षाएँ मानती थीं और एक ही तरीके से यहोवा की उपासना करती थीं?

प्रेष 16:4, 5; रोम 12:4, 5

  • इससे जुड़े किस्से:

    • प्रेष 11:20-23, 25, 26​—अंताकिया और यरूशलेम की मंडलियों के बीच अच्छा तालमेल और एकता थी

    • रोम 15:25, 26; 2कुर 8:1-7​—पहली सदी की मंडलियों ने मुश्‍किल समय में एक-दूसरे की बहुत मदद की। इस तरह उन्होंने दिखाया कि उनके बीच प्यार और एकता है

क्या यहोवा ऐसे सभी धर्मों को स्वीकार करता है, जो दावा करते हैं कि वे यीशु को मानते हैं?

अगर लोग यीशु और प्रेषितों की शिक्षाएँ नहीं मानते, तो क्या परमेश्‍वर उनकी उपासना स्वीकार करता है?

प्रेष 20:29, 30; 1ती 4:1-3

  • इससे जुड़े किस्से:

    • मत 13:24-30, 36-43​—यीशु ने झूठे मसीहियों की तुलना जंगली पौधों से की और समझाया कि एक वक्‍त आएगा, जब कुछ समय के लिए मंडली में ज़्यादातर लोग झूठे मसीही होंगे

    • 1यूह 2:18, 19​—बुज़ुर्ग प्रेषित यूहन्‍ना ने बताया कि यीशु के जन्म के करीब 100 साल के अंदर ही मंडली कई मसीह के विरोधियों से भर गयी है

अगर मंडली में ऐसे लोगों को रहने दिया जाता है, जो गलत शिक्षाएँ सिखाते हैं और बुरे काम करते हैं, तो क्या होता है?

अपने बीच एकता बनाए रखने के लिए मसीहियों को क्या करना चाहिए?

मसीहियों को झूठी उपासना से दूर क्यों रहना चाहिए?

लोगों को यह बताना क्यों सही है कि धर्मों की कौन-सी शिक्षाएँ झूठी हैं?

जब दूसरे धर्मों के लोग हम पर हमला करते हैं, ज़ुल्म करते हैं, तो हमें क्यों हैरानी नहीं होनी चाहिए?