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समाज में दर्जा

समाज में दर्जा

एक व्यक्‍ति किस जाति या खानदान का है या समाज में उसकी क्या हैसियत है, क्या इससे परमेश्‍वर को कोई फर्क पड़ता है?

प्रेष 17:26, 27; रोम 3:23-27; गल 2:6; 3:28

  • इससे जुड़े किस्से:

    • यूह 8:31-40​—कुछ यहूदियों को बहुत गर्व था कि वे अब्राहम के वंशज हैं, पर यीशु ने उनकी सोच सुधारी क्योंकि उनके काम अब्राहम जैसे नहीं थे

जो लोग दूसरी जाति या देश के होते हैं, क्या हमें उन्हें नीचा देखना चाहिए?

यूह 3:16; रोम 2:11

  • इससे जुड़े किस्से:

    • यो 4:1-11​—यहोवा ने सब्र के साथ भविष्यवक्‍ता योना को सिखाया कि वह दूसरे देश के लोगों, यानी नीनवे के लोगों पर दया करे

    • प्रेष 10:1-8, 24-29, 34, 35​—प्रेषित पतरस ने सीखा कि यहोवा दूसरी जातियों के लोगों को भी मंज़ूर करता है। इसलिए उसने पहले गैर-यहूदियों को यानी कुरनेलियुस और उसके घराने को मसीही बनने में मदद की

जो भाई-बहन अमीर हैं क्या उन्हें खुद को दूसरों से बड़ा समझना चाहिए? क्या उन्हें उम्मीद करनी चाहिए कि उन पर खास ध्यान दिया जाए या उनकी खास इज़्ज़त की जाए?

क्या निगरान या प्राचीन होने का यह मतलब है कि वे दूसरों से बड़े हैं और हुक्म चला सकते हैं?

2कुर 1:24; 1पत 5:2, 3

  • इससे जुड़े किस्से:

    • व्य 17:18-20​—यहोवा ने इसराएल के राजाओं को खबरदार किया कि वे खुद को दूसरों से बड़ा ना समझें क्योंकि दूसरे इसराएली उनके भाई हैं

    • मर 10:35-45​—यीशु ने अपने चेलों की सोच सुधारी क्योंकि वे ऊँचा पद पाने के बारे में कुछ ज़्यादा ही सोच रहे थे (मर 10:42 का अध्ययन नोट, “लोगों पर हुकुम चलाते हैं” भी देखें)

यहोवा किन लोगों को मंज़ूर करता है?

क्या मसीहियों को समाज में बदलाव लाने के आंदोलनों में हिस्सा लेना चाहिए?

इफ 6:5-9; 1ती 6:1, 2

  • इससे जुड़े किस्से:

    • यूह 6:14, 15​—लोगों ने यीशु को राजा बनाना चाहा क्योंकि उन्हें लगा कि वह समाज में सुधार ला सकता है, पर यीशु ने उनका राजा बनने से इनकार कर दिया