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असल में यीशु कौन है?

असल में यीशु कौन है?

अध्याय ५९

असल में यीशु कौन है?

जब यीशु और उनके शिष्यों को ले जानेवाली नाव बैतसैदा पहुँचती है, लोग एक अंधे को उसके पास लाकर बिनती करते हैं कि वह उस मनुष्य को छूकर चंगा करें। यीशु उस मनुष्य का हाथ पकड़कर उसे गाँव से बाहर ले जाते हैं और, उसकी आँखों में थूकने के बाद, पूछते हैं: “क्या तू कुछ देखता है?”

वह व्यक्‍ति जवाब देता है: “मैं आदमियों को देखता हूँ; क्योंकि मुझे पेड़ दिखाई देते हैं, पर वे चल रहे हैं।” (NW) उस मनुष्य की आँखों पर अपना हाथ रखकर, यीशु उसकी दृष्टि लौटा देते हैं जिससे वह साफ-साफ देखने लगता है। फिर यीशु उस व्यक्‍ति को शहर में कभी न प्रवेश करने का आदेश देकर घर भेज देते हैं।

यीशु अब अपने शिष्यों के साथ उत्तर पलिश्‍तीन की छोर में, कैसरिया फिलिप्पी नामक गाँव के लिए निकल पड़ते हैं। कैसरिया फिलिप्पी के सुन्दर स्थान तक यह क़रीब ४८ किलोमीटर का लम्बा चढ़ाव है, समुद्र तल से क़रीब ३५० मीटर ऊपर। इस सफ़र के लिए शायद दो दिन लगते हैं।

रास्ते में, यीशु अकेले प्रार्थना करने जाते हैं। उसकी मृत्यु से पहले केवल नौ या दस महीने रह गए हैं, और वह अपने शिष्यों के लिए चिंतित है। बहुतों ने उसका पीछा पहले ही छोड़ दिया है। दूसरे स्पष्टतया उलझे हुए हैं और निराश हैं क्योंकि उसने लोगों के उसे राजा बनाने के प्रयासों को अस्वीकार किया और जब उसके दुश्‍मनों ने उसे चुनौती दी थी, उसने अपनी राजाधिकार सिद्ध करने स्वर्ग से कोई चिह्न नहीं दिया था। उसके प्रेरित उसकी पहचान के बारे में क्या विश्‍वास करते हैं? जब वे उस जगह आते हैं जहाँ वह प्रार्थना कर रहा है यीशु पूछते हैं: “लोग मुझे क्या कहते हैं?”

वे जवाब देते हैं, “कितने तो यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला कहते हैं, और कई एलिय्याह, और कितने यिर्मयाह या भविष्यवक्‍ताओं में से कोई एक कहते हैं।” (NW) हाँ, लोग समझते हैं कि यीशु इन मृतकों में से एक है जिसे जिलाया गया है!

“परन्तु, तुम मुझे क्या कहते हो?” यीशु पूछते हैं।

पतरस फ़ौरन जवाब देता है: “तू जीवते परमेश्‍वर का पुत्र, मसीह है।”

पतरस के जवाब पर अनुमोदन व्यक्‍त करने के बाद, यीशु कहते हैं: “मैं भी तुझसे कहता हूँ, कि तू पतरस है, और मैं इस चट्टान पर अपनी कलीसिया बनाऊँगा; और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे।” (NW) यहाँ यीशु पहले यह घोषित करते हैं कि वह एक कलीसिया बनाएगा और पृथ्वी पर उनकी वफ़ादार ज़िन्दगी के बाद, उसके सदस्यों को मृत्यु भी ग़ुलामी में नहीं रखेगी। फिर वह पतरस से कहता है: “मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा।”

इस प्रकार यीशु प्रकट करते हैं कि पतरस ख़ास अनुग्रहों को पानेवाला है। नहीं, पतरस को प्रेरितों में पहला स्थान नहीं दिया गया, न ही उसे कलीसिया की बुनियाद बनाया गया। यीशु ख़ुद वह चट्टान है जिस पर उसकी कलीसिया बनाया जाएगा। लेकिन पतरस को तीन कुंजियाँ दी जानेवाली थी, जिससे लोगों के अमुक समूहों के लिए स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का सुअवसर को, मानो, खोलना था।

पतरस पहली कुंजी को पिन्तेकुस्त सा.यु. वर्ष ३३ में उपयोग करेगा, पश्‍चातापी यहूदियों को दिखाने कि बचने के लिए उन्होंने क्या करना चाहिए। विश्‍वासी सामरियों को परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करने का सुअवसर खोलने के लिए वह दूसरी कुंजी का उपयोग उसके कुछ समय बाद करेगा। फिर सा.यु. वर्ष ३६ में वह खतना-रहित अन्यजातियों के लिए, कुरनेलियुस और उसके दोस्तों को, उसी सुअवसर खोलने के लिए तीसरी कुंजी का उपयोग करेगा।

यीशु अपने प्रेरितों के साथ अपनी चर्चा जारी रखते हैं। वह उन कष्ट और मृत्यु के बारे में बताकर, जिसका वह यरूशलेम में जल्द ही सामना करनेवाले हैं, उन्हें निराश कर देता है। यह नहीं समझने के कारण कि यीशु को स्वर्गीय जीवन का पुनरुत्थान मिलेगा, पतरस यीशु को अलग ले जाता है। वह कहता है, “हे प्रभु, अपने ऊपर दया कर; परमेश्‍वर न करें, तुझ पर ऐसा कभी न होगा।” (NW) अपना पीठ फेरकर, यीशु जवाब देते हैं: “हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो; तू मेरे लिए ठोकर का कारण है, क्योंकि तू परमेश्‍वर की बातें नहीं, पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।”

स्पष्टतया, प्रेरितों के अलावा यीशु के साथ दूसरे भी यात्रा कर रहे हैं, इसलिए अब वह उन्हें अपने पास बुलाता है और स्पष्ट करता है कि उसके अनुयायी बनना आसान नहीं होगा। “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहता है,” वह कहता है, “तो अपने आप से इनक़ार करे और अपना यातना-स्तंभ उठाकर मेरे पीछे हो ले। क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे और सुसमाचार के लिए अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा।”—NW.

हाँ, यदि उन्हें उसके कृपा के योग्य सिद्ध होना है, तो यीशु के अनुयायियों को साहसी और आत्म-त्यागी बनना चाहिए। वह बतलाता है: “जो कोई इस व्यभिचारी और पापी पीढ़ी में मुझ से और मेरी बातों से लजाएगा, मनुष्य का पुत्र भी जब वह पवित्र दूतों के साथ अपने पिता की महिमा सहित आएगा, तब उससे लजाएगा।” मरकुस ८:२२-३८; मत्ती १६:१३-२८; लूका ९:१८-२७.

▪ क्यों यीशु अपने शिष्यों के बारे में चिंतित हैं?

▪ यीशु की पहचान के बारे में लोगों का नज़रिया क्या है?

▪ पतरस को कौनसी कुंजियाँ दी गयी, और उन्हें कैसे इस्तेमाल करना है?

▪ पतरस को कैसी डाँट मिली, और क्यों?