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आख़री दिनों का चिह्न

आख़री दिनों का चिह्न

अध्याय १११

आख़री दिनों का चिह्न

अब मंगलवार की दोपहर हुई है। जैसे यीशु जैतुन के पहाड़ पर बैठकर नीचे मंदिर को देख रहे हैं, पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्‍ना अकेले में उनके पास आते हैं। वे मंदिर के बारे में चिंतित हैं, क्योंकि यीशु ने अभी-अभी पूर्वबतलाया कि उस में पत्थर पर पत्थर भी नहीं छोड़ा जाएगा।

लेकिन जैसे वे यीशु के पास आते हैं स्पष्टतया उनके मन में और भी कुछ है। कुछ हफ़्तों पहले, उसने अपनी “उपस्थिति” के बारे में बतलाया, जिसके दौरान “मनुष्य का पुत्र प्रकट होना था।” और इससे भी पहले अवसर पर, उसने उनको “इस रीति-व्यवस्था के अन्त” (NW) के बारे में बताया था। इसलिए प्रेरित काफी जिज्ञासु हैं।

वे कहते हैं, “हम से कह कि ये बातें कब होंगी [जिसका परिणाम यरूशलेम और उसके मंदिर का नाश है], और तेरी उपस्थिति का, और इस रीति-व्यवस्था के अन्त का क्या चिह्न होगा?” (NW) दरअसल, उनका सवाल का तीन भाग हैं। पहला, वे यरूशलेम और उसके मंदिर के अन्त के बारे में, फिर राज्य सत्ता में यीशु की उपस्थिति के बारे में, और आख़िर में समस्त रीति-व्यवस्था के अन्त के बारे में जानना चाहते हैं।

अपने विस्तृत जवाब में, यीशु सवाल के तीनों हिस्सों को जवाब देते हैं। वे एक चिह्न देते हैं जो यहूदी रीति-व्यवस्था के अन्त की पहचान करता है; लेकिन वे इससे भी ज़्यादा बताते हैं। वे ऐसा एक चिह्न भी देते हैं जो उनके भावी शिष्यों को चौकन्‍न करेगा ताकि वे जान सकें कि वे उनकी उपस्थिति के दौरान और समस्त रीति-व्यवस्था के अन्त के निकट जी रहे हैं।

जैसे-जैसे साल बीतते जाते हैं, प्रेरित यीशु की भविष्यवाणी की पूर्ति देखते हैं। जी हाँ, जो कुछ उन्होंने पूर्वबतलाया था वे उनके ही दिनों में घटित होने लगते हैं। इस प्रकार, जो मसीही ३७ साल बाद, सा.यु. वर्ष ७० में ज़िन्दा हैं, वे यहूदी रीति-व्यवस्था का मंदिर सहित नाश से अनजान पकड़े नहीं जाते।

बहरहाल, मसीह की उपस्थिति और रीति-व्यवस्था का अन्त सा.यु. वर्ष ७० में नहीं होता है। राज्य सत्ता में उनकी उपस्थिति काफ़ी समय बाद होती है। लेकिन कब? यीशु की भविष्यवाणी पर ग़ौर करने से यह प्रकट होता है।

यीशु पूर्वबतलाते हैं कि “लड़ाई और लड़ाइयों की चर्चा” होगी। वे कहते हैं, “राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा,” और अकाल, भूकम्प और महामरियाँ होंगी। उनके शिष्यों से नफरत की जाएगी और वे मारे जाएँगे। झूठे भविष्यवक्‍ता उठेंगे और बहुतों को बहकाएँगे। अधर्म बढ़ेगा, और बहुतों का प्रेम ठंडा हो जाएगा। उसी समय पर, परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सब राष्ट्रों को गवाही के जैसे प्रचार किया जाएगा।

हालाँकि सा.यु. वर्ष ७० में यरूशलेम के नाश से पहले यीशु की भविष्यवाणी की सीमित पूर्ति होती है, उसकी मुख्य पूर्ति उनकी उपस्थिति और रीति-व्यवस्था के अन्त के दौरान होती है। १९१४ से जगत की घटनाओं का पूनरीक्षण प्रकट करता है कि उस साल से यीशु की महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणी की मूख्य पूर्ति हो रही है।

यीशु का चिह्न का एक और हिस्सा “उजाड़नेवाली घृणित वस्तु” का प्रकटन है। सा.यु. वर्ष ६६ में यह घृणित वस्तु रोम की ‘डेरा डाली हुई सेना’ के रूप में दिखाई देती है जो यरूशलेम को घेर लेकर मंदिर की दिवार नष्ट करती है। “घृणित वस्तु” वहाँ खड़ी है जहाँ उसे नहीं होना चाहिए।

चिह्न की मुख्य पूर्ति में, घृणित वस्तु राष्ट्र संघ और इसका उत्तराधिकारी, संयुक्‍त राष्ट्र संघ है। ईसाई जगत विश्‍व शांति के लिए इस संगठन को परमेश्‍वर के राज्य का बदलाई मानती है। कितना घृणित! इसलिए, ऐन वक़्त पर, संयुक्‍त राष्ट्र संघ के साथ संबंधित राजनीतिक शक्‍तियाँ ईसाईजगत (प्रतिरूपी यरूशलेम) पर हमला करेंगी और उसे उजाड़ देंगी।

इसलिए यीशु पूर्वबतलाते हैं: “उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरंभ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा।” सामान्य युग ७० में यरूशलेम का नाश सचमुच एक बड़ा क्लेश है, जिस में दस लाख से भी अधिक लोग मारे गए। यीशु की भविष्यवाणी के इस हिस्से की मुख्य पूर्ति अत्यधिक बड़ी होगी।

आख़री दिनों के दौरान भरोसा

जैसे-जैसे मंगलवार, नीसान ११, ढल रहा है, यीशु राज्य सत्ता में अपनी उपस्थिति और रीति-व्यवस्था के अन्त के चिह्न के विषय में अपने प्रेरितों के साथ विचार-विमर्श जारी रखते हैं। वे उन्हें झूठे मसीह का पीछा करने के बारे में चेतावनी देते हैं। वे कहते हैं, “यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा देने” की कोशिशें की जाएँगीं। लेकिन, दूरदर्शी ऊकाबों की तरह, यह चुने हुए जन वहाँ इकट्ठे होंगे जहाँ सच्चा आध्यात्मिक भोजन पाया जाता है, अर्थात, सच्चे मसीह के साथ उनकी अदृश्‍य उपस्थिति में। वे झूठे मसीह के साथ एकत्रित होकर भरमाए नहीं जाएँगे।

झूठे मसीहा सिर्फ़ एक दृश्‍य प्रकटन कर सकते हैं। इसकी तुलना में, यीशु की उपस्थिति अदृश्‍य होगी। यीशु कहते हैं कि क्लेश के आरंभ होने के बाद: “सूरज अन्धेरा हो जाएगा, और चाँद अपना प्रकाश नहीं देगा।” (NW) हाँ, यह मानवीय अस्तित्व का सबसे अंधकारमय समय होगा। ऐसा प्रतीत होगा मानो दिन के समय सूरज अँधेरा बन गया है, और मानो रात के समय चाँद अपनी रोशनी नहीं देता है।

“आकाश की शक्‍तियाँ हिलाई जाएँगी,” यीशु आगे कहते हैं। इस प्रकार वे सूचित करते हैं कि प्राकृतिक स्वर्ग एक शकुनात्मक रूप लेंगे। पिछले मानवीय इतिहास में अनुभव किया हुआ किसी भी डर और हिंसा से यह कहीं ज़्यादा होगा।

परिणामस्वरूप, यीशु कहते हैं, “देश देश के लोगों को संकट होगा, क्योंकि वे समुद्र के गरजने और लहरों के कोलाहल से घबरा जाएँगे, और भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते-देखते लोगों के जी में जी न रहेगा।” वाक़ई, जैसे-जैसे मानवीय अस्तित्व का यह सबसे अंधकारमय समय अपनी समाप्ति के निकट आता है, “मनुष्य के पुत्र का चिह्न आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे।”

परन्तु जब इस दुष्ट रीति-व्यवस्था को नाश करने ‘मनुष्य का पुत्र बड़ी सामर्थ के साथ आएगा,’ तब हर व्यक्‍ति विलाप नहीं करते रहेंगे। “चुने हुए,” १,४४,००० जो मसीह के साथ उनके स्वर्गीय राज्य में सहभागी होंगे, विलाप नहीं करेंगे, न ही उनके साथी, जिन्हें यीशु ने कुछ समय पहले “अन्य भेड़ें” पुकारा था। मानवीय इतिहास के सबसे अन्धकारमय समय के दौरान रहते हुए भी, यह लोग यीशु के प्रोत्साहन की ओर प्रतिक्रिया दिखाते हैं: “जब ये बातें होने लगें, तो सीधे होकर अपने सिर ऊपर उठाना, क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट है।”

ताकि आख़री दिनों के दौरान जीनेवाले उनके शिष्य अन्त की निकटता को पहचान सकें, यीशु यह दृष्टान्त देते हैं: “अंजीर के पेड़ और सब पेड़ों को देखो: ज्योंही उन की कोंपले निकलती है, तो तुम देखकर आप ही जान लेते हो कि गरमी नज़दीक है। इसी रीति से जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्‍वर का राज्य निकट है। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें न हो ले, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी।”—NW.

इसलिए, जब उनके शिष्य चिह्न के अनेक निराले लक्षणों को पूरा होते देखते हैं, तो उनको यह समझ लेना चाहिए कि रीति-व्यवस्था का अन्त नज़दीक है और परमेश्‍वर का राज्य जल्द ही सारी दुष्टता को मिटा देगा। दरअसल, अंत यीशु ने पूर्वबतलायी हुई सभी बातों की पूर्ति देखनेवाले लोगों के जीवन-काल में ही घटित होगी! उस महत्त्वपूर्ण आख़री दिनों के दौरान जीवित शिष्यों को चेतावनी देते हुए, यीशु कहते हैं:

“सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन और जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएँ, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े। क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा। इसलिए जागते रहो, और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के सामने खड़े होने के योग्य बनो।”

समझदार और मूर्ख कुँवारियाँ

यीशु राज्य सत्ता में अपनी उपस्थिति का चिह्न के लिए अपनी प्रेरितों की विनती का जवाब दे रहे हैं। अब वे चिह्न के अतिरिक्‍त लक्षणों को तीन दृष्टान्त, या उदाहरणों में देते हैं।

उनकी उपस्थिति के दौरान जी रहे लोग हर एक दृष्टान्त की पूर्ति को देख सकेंगे। वे पहले दृष्टांत का परिचय इन शब्दों से करते हैं: “तब स्वर्ग का राज्य उन दस कुँवारियों के समान होगा जो अपनी मशालें लेकर दूल्हे से भेंट करने को निकलीं। उन में पाँच मूर्ख और पाँच समझदार थीं।”

“स्वर्ग का राज्य दस कुँवारियों के समान होगा,” इस अभिव्यक्‍ति से यीशु का कहने का मतलब यह नहीं कि स्वर्गीय राज्य के उत्तराधिकारी में से आधे मूर्ख और आधे समझदार होंगे! नहीं, बल्कि उनका कहने का मतलब यह है कि स्वर्ग के राज्य के संबंध में, इसके या उसके जैसे विशेषता है, या राज्य से संबंधित मामले अमुक वस्तु के जैसे होंगे।

दस कुँवारियाँ उन सब मसीहियों का प्रतीक हैं जो स्वर्गीय राज्य में जाने की स्थिति में हैं या जाने का दावा कर रहे हैं। सा.यु. वर्ष ३३ के पिन्तेकुस्त में मसीही कलीसिया पुनरुत्थित, महिमान्वित दूल्हा, यीशु मसीह को विवाह में प्रतिज्ञा किया गया। लेकिन विवाह भविष्य में किसी अनिर्दिष्ट समय पर स्वर्ग में होनेवाला था।

इस दृष्टान्त में, दस कुँवारियाँ दूल्हे का स्वागत करने और विवाह के जुलूस में शामिल होने के उद्देश्‍य से जाती हैं। जब वह पहुँचेगा, वे अपनी मशालों से जुलूस के मार्ग को प्रकाशमान्‌ करेंगी, और इस प्रकार वे दूल्हे का आदर करती हैं जैसे वह अपनी दूल्हन को उस के लिए बनाए घर में लाता है। तथापि, यीशु व्याख्या करते हैं: “मूर्खों ने अपनी मशालें तो लीं, परन्तु अपने साथ तेल नहीं लिया। परन्तु समझदारों ने अपनी मशालों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी भर लिया। जब दूल्हे के आने में देर हुई, तो वे सब ऊँघने लगीं, और सो गईं।”

अधिक समय तक दूल्हे की देर सूचित करती है कि शासन करनेवाले राजा के रूप में मसीह की उपस्थिति दूर भविष्य में होगी। आख़िरकार, वर्ष १९१४ में वे अपने सिंहासन पर आते हैं। उससे पहले लम्बी रात के दौरान, सारी कुँवारियाँ सो जाती हैं। लेकिन उन्हें इस के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता है। मूर्ख कुँवारियों की कुप्पियों में तेल न होने के कारण उन्हें दोषी ठहराया जाता है। यीशु व्याख्या करते हैं कि किस तरह दूल्हे के पहुँचने से पहले कुँवारियाँ जाग जाती हैं: “आधी रात को धूम मची, ‘देखो, दूल्हा आ रहा है, उस से भेंट करने के लिए चलो।’ तब वे सब कुँवारियाँ उठकर अपनी मशालें ठीक करने लगीं। मूर्खों ने समझदारों से कहा, ‘अपने तेल में से कुछ हमें भी दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझी जाती हैं।’ समझदारों ने उत्तर दिया, ‘कदाचित हमारे और तुम्हारे लिए पूरा न हो। भला तो यह है, कि तुम बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिए मोल ले लो!’”

तेल उस चीज़ का प्रतीक है, जो सच्चे मसीहों को प्रदीपकों के जैसे चमकते रखती है। यह परमेश्‍वर का उत्प्रेरित वचन है, जिसे सच्चे मसीही कसकर पकड़े रहते हैं, और साथ ही पवित्र आत्मा है, जो इस वचन को समझने में उनकी मदद करती है। शादी की दावत को जानेवाली जुलूस के दौरान दूल्हे के स्वागत में रोशनी फैलाने के लिए यह आध्यात्मिक तेल समझदार कुँवारियाँ को समर्थ करता है। पर मूर्ख कुँवारी वर्ग में, अपनी कुप्पियों में, वह आवश्‍यक आध्यात्मिक तेल नहीं है। क्या हो रहा है इसका वर्णन यीशु करते हैं:

“जब [मूर्ख कुँवारियाँ तेल] मोल लेने जा रही थीं, तो दूल्हा आ पहुँचा, और जो तैयार थीं, वे उसके साथ ब्याह के घर में चली गईं, और द्वार बन्द किया गया। इसके बाद वे दूसरी कुँवारियाँ भी आकर कहने लगीं, ‘हे स्वामी, हमारे लिए द्वार खोल दे! उसने उत्तर दिया, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता।”

मसीह अपने स्वर्गीय राज्य में आने के बाद, सच्चे अभिषिक्‍त मसीहियों का समझदार कुँवारी वर्ग, आए हुए दूल्हे के स्तुति में इस अन्धकारमय जगत में रोशनी फैलाने के अपने ख़ास अनुग्रह के लिए जागते हैं। लेकिन जो मूर्ख कुँवारियों द्वारा चित्रित किए गए, इस अभिनंदनीय स्तुति देने के लिए तैयार नहीं हैं। इसलिए जब समय आता है, मसीह उनको स्वर्ग में हो रहे शादी की दावत को दरवाज़ा नहीं खोलते। वे इनको जगत की सबसे गहरी रात के अन्धेरे में, सब अधर्म के श्रमिकों के साथ नाश होने के लिए बाहर छोड़ देते हैं। “इसलिए जागते रहो,” यीशु अन्त में कहते हैं, “क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को।”

तोड़ों का दृष्टान्त

यीशु एक और दृष्टान्त, तीन दृष्टान्तों की श्रृंख्ला में दूसरा, देने के द्वारा जैतून पहाड़ पर अपने प्रेरितों के साथ विचार-विमर्श जारी रखते हैं। कुछ दिनों पहले, जब वे यरीहो में थे, उन्होंने मुहरों का दृष्टान्त दिया यह दिखाने कि राज्य के आने में काफी समय बाकी है। अभी सुनाया जानेवाला दृष्टान्त, जिस में काफी मिलता-जुलता विशेषताएँ हैं, अपनी पूर्ति में राज्य सत्ता में मसीह की उपस्थिती के दौरान गतिविधियों का वर्णन करती है। यह सचित्र करता है कि जब तक उसके शिष्य इस पृथ्वी पर हैं, उनको ‘उसकी सम्पत्ति’ बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए।

यीशु शुरू करते हैं: “क्योंकि यह [अर्थात, राज्य के साथ मिला हुआ हालात] उस मनुष्य की सी दशा है जिस ने परदेश को जाते समय अपने दासों को बुलाकर, अपनी सम्पत्ति उन को सौंप दी।” वह मनुष्य यीशु है जो, स्वर्ग में जाने से पहले, अपने दासों को—स्वर्गीय राज्य में जाने की स्थिति में शिष्यों को—अपनी सम्पत्ति सौंपता है। यह सम्पत्ति भौतिक सम्पत्ति नहीं, पर उस पोषित क्षेत्र को चित्रित करती है जिस में उसने और अधिक शिष्यों को ले आने की संभावना तैयार किया है।

यीशु स्वर्ग जाने से कुछ समय पहले अपनी सम्पत्ति अपने दासों को सौंपते हैं। वे ऐसा कैसे करते हैं? उनको पृथ्वी के छोर तक राज्य संदेश प्रचार करने के द्वारा वे पोषित क्षेत्र में काम करते रहने का आदेश देते हैं। जैसे यीशु कहते हैं: “उसने एक को पाँच तोड़े, दूसरे को दो, तीसरे को एक, हर एक का उसकी सामर्थ के अनुसार दिया, और वह परदेश चला गया।”

इस प्रकार आठ तोड़े—मसीह की सम्पत्ति—दासों की क़ाबिलियत, या आध्यात्मिक सम्भावनाओं के अनुसार बाँटे गए। दासों का अर्थ, शिष्यों के वर्ग हैं। पहली शताब्दी में, वह वर्ग जिसे पाँच तोड़े दिए गए स्पष्टतया प्रेरितों को शामिल करता है। यीशु आगे बताते हैं कि पाँच और दो तोड़े दिए गए दासों ने अपने राज्य के प्रचार और शिष्य बनाने के काम से तोड़ों को दुगना किया। लेकिन, एक तोड़ा दिया गया दास ने उसे ज़मीन में छुपा दिया।

“बहुत दिनों के बाद,” यीशु आगे कहते हैं, “दासों का स्वामी आया और उन से लेखा लेने लगा।” इस २०वीं शताब्दी में, लगभग १,९०० साल बाद, यीशु लेखा लेने वापस आए, सो यह सचमुच, “बहुत दिनों के बाद” था। फिर यीशु व्याख्या करते हैं:

“जिस को पाँच तोड़े मिले थे, उस ने पाँच तोड़े और लाकर कहा, ‘हे स्वामी, तू ने मुझे पाँच तोड़े सौंपे थे; देख, मैं ने पाँच तोड़े और कमाए हैं।’ उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य हे अच्छा और विश्‍वासयोग्य दास! तू थोड़े में विश्‍वासयोग्य रहा, मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा, अपने स्वामी के आनंद मे सम्भागी हो।’” जिस दास ने दो तोड़े पाए उसने भी उसी प्रकार अपने तोड़ों को दुगना किया, और उसने भी वैसा ही सराहना और इनाम पाया।

लेकिन, कैसे ये विश्‍वासी दास अपने स्वामी के आनंद में शरीक होते हैं? उनके स्वामी, यीशु मसीह, का आनंद राज्य पाने में है जब वे परदेश अपने पिता के पास स्वर्ग में चले गए थे। आधुनिक समयों में, विश्‍वासयोग्य दास को राज्य की और भी ज़िम्मेदारियाँ सौंपे जाने में बड़ी ख़ुशी है, और जैसे वे अपनी पार्थिव अवधि पूरी करते हैं, उन्हें स्वर्गीय राज्य को पुनरुत्थित होने की पराकाष्ठा तक पहुँचनेवाली ख़ुशी है। पर तीसरे दास के बारे में क्या?

“हे स्वामी, मैं जानता था कि तू कठोर मनुष्य है,” वह दास शिकायत करता है। “सो मैं डर गया और जाकर तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया। देख, जो तेरा है वह यह है।” दास ने जानबूझकर प्रचार करने और शिष्य बनाने के द्वारा पोषित क्षेत्र में काम करने से इनक़ार कर दिया। इसलिए स्वामी उसे “दुष्ट और आलसी दास” पुकारकर उस पर न्याय सुनाते हैं: “वह तोड़ा उससे ले लो . . . और इस निकम्मे दास को बाहर अन्धेरे में फेंक दो, जहाँ उसका रोना और दाँत पीसना होगा।” जो इस दुष्ट दास वर्ग के हैं, बाहर फेंके जाने के कारण, किसी भी आध्यात्मिक आनंद से वंचित कर दिए गए हैं।

यह उन सब के लिए एक गंभीर सबक़ है जो मसीह के अनुयायी होने का दावा करते हैं। अगर वे उनका सराहना और इनाम का आनंद उठाना चाहते हैं, और बाहर के अन्धकार में फेंके जाने और आख़िरी नाश से बचना चाहते हैं, उन्होंने प्रचार कार्य में पूरा हिस्सा लेने से अपने स्वर्गीय स्वामी की सम्पत्ति का बढ़ावे के लिए काम करना चाहिए। क्या आप इस संबंध में अध्यवसायी हैं?

जब मसीह राज्य सत्ता में आते हैं

यीशु अभी भी अपने प्रेरितों के साथ जैतून के पहाड़ पर हैं। उनकी उपस्थिती और रीति-व्यवस्था के अन्त का चिह्न के लिए उनकी विनती के जवाब में, वे अब उन्हें इन तीन दृष्टान्तों की श्रृंखला में आख़री दृष्टान्त बताते हैं। “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्गदूत उसके साथ आएँगे,” यीशु आरंभ करते हैं, “तब वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा।”

इंसान स्वर्गदूतों को उनकी स्वर्गीय महिमा में नहीं देख सकते। तो स्वर्गदूतों के साथ मनुष्य के पुत्र, यीशु मसीह, का आगमन मानवी आँखों को अदृष्य होगा। आगमन वर्ष १९१४ में होता है। लेकिन किस उद्देश्‍य के लिए? यीशु समझाते हैं: “सब जातियाँ उसके सामने इकट्ठी की जाएँगीं; और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। और वह भेड़ों को अपनी दहिनी ओर और बकरियों को बाईं ओर खड़ी करेगा।”

कृपापात्र पक्ष के तरफ अलग रखे हुओं का क्या होगा, इसका वर्णन करते हुए यीशु कहते हैं: “तब राजा अपनी दहिनी ओर वालों से कहेगा, ‘हे मेरे पिता के धन्य लोगों, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिए तैयार किया हुआ है।’” इस दृष्टान्त की भेड़ें मसीह के साथ स्वर्ग में राज्य नहीं करेंगी, लेकिन वे पार्थिव प्रजा बनने से राज्य के अधिकारी होंगे। “जगत की आदि” तब हुई जब आदम और हव्वा ने पहले बच्चों को उत्पन्‍न किया, जो मनुष्यजाति की छुड़ौती के परमेश्‍वरीय प्रबंध से लाभ उठा सकते हैं।

लेकिन क्यों भेड़ों को राजा के कृपापात्र दाहिनी ओर अलग किया गया? “क्योंकि मैं भूखा था,” राजा जवाब देते हैं, “और तुम ने मुझे खाने को दिया; मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी पिलाया। मैं परदेशी था, तुम ने मुझे अपने घर में ठहराया। मैं नंगा था, तुम ने मुझे कपड़े पहनाए। मैं बीमार था, तुम ने मेरी सुधि ली। मैं बन्दीगृह में था, तुम मुझ से मिलने आए।”

चूँकि भेड़ें पृथ्वी पर हैं, वे जानना चाहते हैं कि कैसे उन्होंने स्वर्गीय राजा के लिए ऐसे भले काम किए। “हे प्रभु, हम ने कब तुझे भूखा देखा और खिलाया,” वे पुछते हैं, “या प्यासा देखा, और पिलाया? हम ने कब तुझे परदेशी देखा और अपने घर में ठहराया या नंगा देखा और कपड़े पहिनाए? हम ने कब तुझे बीमार या बन्दीगृह में देखा और तुझ से मिलने आए?”

“मैं तुझ से सच कहता हूँ,” राजा जवाब देते हैं, “तुम ने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।” १,४४,००० में से पृथ्वी पर शेष जन मसीह के भाई हैं जो उनके साथ स्वर्ग में राज्य करेंगे। यीशु कहते हैं कि उन भाइयों को भला करना उनको भला करने के बराबर है।

इसके बाद, राजा बकरियों को संबोधित करते हैं। “हे स्रापित लोगों, मेरे सामने से उस अनन्त आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गई है। क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को नहीं दिया, मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी नहीं पिलाया। मैं परदेशी था, और तुम ने मुझे अपने घर में नहीं ठहराया; मैं नंगा था, और तुम ने मुझे कपड़े नहीं पहनाए; बीमार और बन्दीगृह में था, और तुम ने मेरी सुधि न ली।”

लेकिन, बकरियाँ शिकायत करती हैं: “हे प्रभु, हम ने तुझे कब भूखा, या प्यासा, या परदेशी, या नंगा, या बीमार, या बन्दीगृह में देखा, और तेरी सेवा टहल न की?” बकरियों का प्रतिकूल दृष्टि से न्याय उसी आधार पर किया गया जिस तरह भेड़ों को अनुकूल दृष्टि से न्याय किया जाता है। “तुम ने जो [मेरे इन भाइयों से] इन छोटों से छोटों में से किसी एक के साथ नहीं किया,” यीशु जवाब देते हैं, “वह मेरे साथ भी नहीं किया।”

इसलिए मसीह की राज्य सत्ता में उपस्थिति, बड़े क्लेश में इस दुष्ट रीति-व्यवस्था के अन्त से कुछ समय पहले, न्याय का समय होगा। बकरियाँ “अनन्त दण्ड में जाएँगे, परन्तु धर्मी [भेड़ें] अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।” मत्ती २४:२-२५:४६; १३:४०, ४९; मरकुस १३:३-३७; लूका २१:७-३६; १९:४३, ४४; १७:२०-३०; २ तीमुथियुस ३:१-५; यूहन्‍ना १०:१६; प्रकाशितवाक्य १४:१-३.

▪ क्या प्रेरितों का सवाल को सुझाता है, लेकिन स्पष्टतया उनके मनों में और क्या है?

▪ सा.यु. ७० में यीशु की भविष्यवाणी का कौनसा हिस्सा पूरा होता है, लेकिन तब क्या घटित नहीं होता है?

▪ यीशु की भविष्यवाणी की पहली पूर्ति कब है, और उसकी प्रमुख पूर्ति कब है?

▪ अपनी पहली और आख़री पूर्ति में घृणित वस्तु क्या है?

▪ बड़े क्लेश की आख़री पूर्ति यरूशलेम के नाश के साथ क्यों नहीं है?

▪ जगत की कौनसी हालतें मसीह की उपस्थिति को चिह्नित करती हैं?

▪ कब ‘पृथ्वी के सब कुल के लोग अपनी छाती पीटेंगे,’ लेकिन मसीह के अनुयायी क्या करते होंगे?

▪ अपने भावी शिष्यों को अन्त की निकटता समझने में मदद करने के लिए यीशु क्या दृष्टान्त देते हैं?

▪ अपने उन शिष्यों को जो अन्त के दिनों में जी रहे होंगे यीशु क्या चेतावनी देते हैं?

▪ दस कुँवारियाँ किसकी प्रतीक हैं?

▪ दूल्हे को विवाह में मसीही कलीसिया कब वादा किया गया, लेकिन शादी की दावत में अपनी दुल्हन को ले जाने दूल्हा कब पहुँचता है?

▪ तेल किसे चित्रित करता है, और उसका होना समझदार कुँवारियों को क्या करने के क़ाबिल बनाता है?

▪ शादी की दावत कहाँ होती है?

▪ मूर्ख कुँवारियाँ कौनसे शानदार इनाम को खो देती हैं, और उनकी दशा क्या है?

▪ तोड़ों का दृष्टान्त कौनसा सबक़ देता है?

▪ दास कौन हैं, और वह सम्पत्ति क्या है जिससे वे सौंपे गए हैं?

▪ स्वामी लेखा लेने कब आते हैं, और वह क्या पाता है?

▪ वह आनंद क्या है जिस में विश्‍वासयोग्य दास प्रवेश करते हैं, और दुष्ट, तीसरा दास, के साथ क्या होता है?

▪ मसीह की उपस्थिति क्यों अदृश्‍य होना चाहिए, और उस समय वे क्या काम करते हैं?

▪ किस अर्थ में भेड़ें राज्य के वारिस होते हैं?

▪ “जगत की आदि” कब हुई?

▪ लोगों का भेड़ या बकरी होने का न्याय किस आधार पर किया जाता है?