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जैसे यीशु की मृत्यु नज़दीक आती है प्रेरित बहस करते हैं

जैसे यीशु की मृत्यु नज़दीक आती है प्रेरित बहस करते हैं

अध्याय ९८

जैसे यीशु की मृत्यु नज़दीक आती है प्रेरित बहस करते हैं

यीशु और उसके शिष्य यरदन नदी के पास हैं, जहाँ वे पेरीया ज़िले से पार करके यहूदिया में आते हैं। उनके साथ सा.यु. वर्ष ३३ का फसह के लिए, जो सिर्फ़ एक हफ़्ता बाद होनेवाला है, और भी बहुत से लोग यात्रा कर रहे हैं।

यीशु अपने शिष्यों के आगे चल रहे हैं, और वे उसके निडर संकल्प से चकित हैं। याद करें कि कुछ हफ़्ते पहले जब लाज़र की मृत्यु हुई थी और यीशु पेरीया से यहूदिया आनेवाले थे तो थोमा ने दूसरों को प्रोत्साहित किया: “आओ, हम भी उसके साथ मरने को चलें।” यह भी याद करें कि यीशु लाज़र को जिलाने के बाद, यहूदी महासभा ने यीशु को मार डालने की योजना बनायी। यह ताज्जुब की बात नहीं कि शिष्य डर जाते हैं जैसे वे यहूदिया में प्रवेश करते हैं।

आगे जो कुछ होनेवाला है उसके लिए उन्हें तैयार करने, यीशु १२ प्रेरितों को अलग ले जाकर, उन से कहते हैं: “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं और मनुष्य का पुत्र महायाजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा, और वे उसे घात के योग्य ठहराएँगे और अन्य जातियों के हाथ में सौंपेंगे, और वे उसको ठट्ठों में उड़ाएँगे, और उस पर थूकेंगे, और उसे कोड़े मारेंगे, और उसे घात करेंगे, और तीन दिन के बाद वह जी उठेगा।”

हाल ही के महीनों में यह तीसरी बार है जब यीशु ने अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के बारे में अपने शिष्यों को बताया है। और हालाँकि वे उनकी बात सुनते हैं, वे समझ नहीं पाते। शायद यह इसलिए होगा क्योंकि वे पृथ्वी पर इस्राएल के राज्य का पुनःस्थापना पर विश्‍वास करते हैं, और मसीह के साथ एक पार्थिव राज्य में महिमा और इज़्ज़त पाने का राह देख रहे हैं।

फसह को जानेवाले यात्रियों में, याकूब और यूहन्‍ना नामक प्रेरितों की माँ शलोमी भी है। यीशु ने बेशक उनके उत्तेजनापूर्ण मिज़ाज की वजह से इन आदमियों का नाम “गर्जन के पुत्र” रख दिया। कुछ समय से इन्होंने यीशु के राज्य में प्रमुख बनने की महत्त्वाकांक्षा अपने मन में रखा, और इन्होंने अपनी माँ को अपनी ख्वाहिश बता दी है। वह अब उनकी ओर से यीशु के पास आती है, उसके सामने झुककर प्रणाम करती है, और एक अनुग्रह पाने की विनती करती है।

यीशु पूछते हैं, “तू क्या चाहती है?”

वह जवाब देती है: “यह कह, कि मेरे ये दो पुत्र तेरे राज्य में एक तेरे दहिने और एक तेरे बाएँ बैठें।”

इस विनती के स्रोत को समझकर, यीशु याकूब और यूहन्‍ना को कहते हैं: “तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो? जो कटोरा मैं पीने पर हूँ, क्या तुम पी सकते हो?”

वे बोले, “पी सकते हैं।” यीशु के अभी-अभी बताने पर भी कि उसे अत्याधिक उत्पीड़न का सामना करना होगा और अन्त में उसे मार डाला जाएगा, वे यह स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाते कि उस “कटोरे” का यही मतलब है जिसे वह पीने जा रहा है।

फिर भी, यीशु उनको कहते हैं: “तुम मेरा कटोरा तो पीओगे, पर अपने दहिने और बाँए किसी को बिठाना मेरा काम नहीं, पर जिन के लिए मेरे पिता की ओर से तैयार किया गया, उन्हीं के लिए है।”

ऐन वक़्त पर बाकी दस प्रेरित जान जाते हैं कि याकूब और यूहन्‍ना ने क्या विनती की है, और वे क्रोधित हैं। प्रेरितों के बीच कौन सर्वश्रेष्ठ है, इस पहले हुए बहस में शायद याकूब और यूहन्‍ना प्रमुख रहे होंगे। उनकी यह विनती यह प्रकट करती है कि उन्होंने इस विषय पर दी गयी यीशु की सलाह को अमल में नहीं लाया है। यह दुःख की बात है कि उनकी प्रमुखता पाने की ख्वाहिश अभी भी प्रबल है।

इसलिए इस नए विवाद और इससे उत्पन्‍न हुए दुर्भाव से निपटने के लिए, यीशु १२ प्रेरितों को एकत्र बुलाते हैं। उन्हें प्रेमपूर्वक सलाह देते हुए वे कहते हैं: “तुम जानते हो कि राष्ट्रों के हाकिम उन पर हुक़ूमत चलाते हैं, और जो बड़े हैं वे उन पर अधिकार जताते हैं। परन्तु तुम में ऐसा न होगा, परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने। और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने।”—NW.

अनुकरण करने के लिए यीशु ने नमूना रखा है, जिसे वह समझाता है: “जैसे कि मनुष्य का पुत्र, वह इसलिए नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, परन्तु इसलिए आया कि आप सेवा टहल करें, और बहुतों की छुड़ौती के लिए अपने प्राण दे।” यीशु ने न केवल दूसरों की सेवा टहल की है परन्तु मानवजाति के लिए अपने प्राण देने के हद तक करने जा रहा है! शिष्यों को भी मसीह के समान मनोवृत्ति की आवश्‍यकता है, कि अपनी सेवा कराने के बजाय, दूसरों की सेवा करें और प्रमुख स्थान पाने के बजाय निम्न बनकर रहें। मत्ती २०:१७-२८; मरकुस ३:१७; ९:३३-३७; १०:३२-४५; लूका १८:३१-३४; यूहन्‍ना ११:१६.

▪ शिष्यों को अब डर क्यों लगता है?

▪ आगे होनेवाली घटनाओं के लिए, यीशु अपने शिष्यों को कैसे तैयार करते हैं?

▪ यीशु से क्या विनती की जाती है, और दूसरे प्रेरित इससे कैसे प्रभावित होते हैं?

▪ अपने प्रेरितों के बीच समस्या से यीशु कैसे निपटते हैं?