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दाख़बारी में मज़दूर

दाख़बारी में मज़दूर

अध्याय ९७

दाख़बारी में मज़दूर

यीशु ने अभी-अभी कहा, “बहुतेरे जो पहले हैं आखरी होंगे; और जो आखरी हैं, पहले होंगे।” अब वे इसे एक कहानी के ज़रिये चित्रित करते हैं। वे आरंभ करते हैं, “स्वर्ग का राज्य किसी गृहस्थ के समान है, जो सवेरे निकला कि अपने दाख़ की बारी में मज़दूरों को लगाए।”

यीशु आगे कहते हैं: “और [गृहस्थ ने] मज़दूरों से एक दिनार रोज़ पर ठहराकर, उन्हें अपनी दाख़ की बारी में भेजा। फिर तीसरे घंटे निकलकर, औरों को बाज़ार में बेकार खड़े देखकर, उसने कहा, ‘तुम भी दाख़ की बारी में जाओ, और जो कुछ ठीक है, तुम्हें दूँगा,’ सो वे भी गए। फिर उसने छठे और नौवे घंटे के निकट निकलकर वैसा ही किया। और ग्यारहवें घंटे फिर निकलकर औरों को खड़े पाया, और उन से कहा; ‘तुम क्यों यहाँ दिन भर बेकार खड़े हो?’ उन्होंने उस से कहा, ‘इसलिए कि किसी ने हमें मज़दूरी पर नहीं लगाया।’ उस ने उन से कहा, ‘तुम भी दाख़ की बारी में जाओ।’”—NW.

गृहस्थ, या दाख़ की बारी का मालिक, यहोवा परमेश्‍वर है, और दाख़ की बारी इस्राएली राष्ट्र है। दाख़ की बारी में काम करनेवाले मज़दूर, नियम वाचा में लाए गए व्यक्‍ति हैं; यह विशेषकर प्रेरितों के समय के यहूदी हैं। मज़दूरी का समझौता केवल पूरे दिन काम करनेवाले मज़दूरों से किया गया है। दिनभर का काम की मज़दूरी एक दिनार है। चूँकि “तीसरा घंटा” सुबह के नौ बजे है, जो तीसरे, छठे और नौवे और ग्यारहवें घंटे बुलाए गए, वे क्रमशः ९, ६, ३, और १ घंटे काम करते हैं।

बारह-घंटे, या पूरे दिन, के मज़दूर उन यहूदी अगुओं को चित्रित करते हैं जो धार्मिक सेवा में निरन्तर लगे हुए थे। वे यीशु के शिष्यों से भिन्‍न हैं, जिनका अधिकांश जीवन, मछुवाही या अन्य रोज़गारों में बीता था। सा.यु. वर्ष २९ के पतझड़ में “गृहस्थ” ने यीशु को इन्हें इकट्ठा करके अपने शिष्य बनाने के लिए भेजा था। इस प्रकार यह “आखरी” या ग्यारहवें घंटे आए हुए दाख़ की बारी के मज़दूर बन गए हैं।

आख़िरकार, यीशु की मृत्यु के साथ प्रतीकात्मक कार्यदिवस ख़त्म होता है, और मज़दूरों को वेतन देने का वक़्त आता है। आखरी को पहले मज़दूरी देने का असामान्य नियम पाला जाता है, जैसे कि समझाया गया: “सांझ को दाख़ की बारी के स्वामी ने अपने भण्डारी से कहा, ‘मज़दूरों को बुलाकर आखरी जनों से लेकर पहलों तक उन्हें मज़दूरी दे दे।’ सो जब वे आए, जो ग्यारहवें घंटे लगाए गए थे, तो उन्हें एक दिनार मिला। जो पहले आए, उन्होंने यह समझा कि हमें अधिक मिलेगा; परन्तु उन्हें भी एक ही दिनार मिला। मिलने पर वे गृहस्थ के ख़िलाफ कुड़कुड़ाकर कहने लगे, ‘इन आखरी जनों ने एक ही घंटा काम किया; और तू ने उन्हें हमारे बराबर कर दिया, जिन्होंने दिन भर का भार उठाया और घाम सहा!’ उसने उन में से एक को जवाब दिया, ‘हे मित्र, मैं तुझ से कुछ अन्याय नहीं करता, क्या तू ने मुझ से एक दिनार न ठहराया? जो तेरा है, उठा ले, और चला जा। मेरी इच्छा यह है, कि जितना तुझे उतना ही इस पिछले को भी दूँ। क्या उचित नहीं कि मैं अपने माल से जो चाहूँ सो करुँ? क्या तू मेरे भले होने के कारण बुरी दृष्टि से देखता है?’” अन्त में, यीशु ने पहले कही गयी मुद्दे को दोहराते हुए कहा: “इसी रीति से जो आखरी हैं, वे पहले होंगे, और जो पहले हैं, वे आखरी होंगे।”—NW.

यीशु की मृत्यु पर, यह दिनार का ग्रहण नहीं घटित हुआ, परन्तु पिन्तेकुस्त सा.यु. वर्ष ३३ में हुआ, जब “भण्डारी,” मसीह, अपने शिष्यों पर पवित्र आत्मा उँडेलते हैं। यीशु का ये शिष्य, “आखरी,” या ग्यारहवें घंटे, मज़दूरों के समान हैं। पवित्र आत्मा का वरदान स्वयं दिनार को चित्रित नहीं करता। दिनार वह चीज़ है जिसे शिष्यों को इस पृथ्वी पर उपयोग करना है। यह वह चीज़ है जिसका अर्थ उनकी जीविका, उनका अनन्त जीवन है। यह एक आत्मिक इस्राएली होने का ख़ास अनुग्रह है, परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करने के लिए अभिषिक्‍त।

पहले किराए पर लिए गए जन ध्यान देते हैं कि यीशु के शिष्यों को मज़दूरी मिल चुकी है, और वे उन्हें उस प्रतीकात्मक दिनार का प्रयोग करते हुए देखते हैं। लेकिन वे पवित्र आत्मा और उससे संबंधित राज्य के विशेषाधिकारों से और ज़्यादा चाहते हैं। उनका कुड़कुड़ाना और एतराज़ मसीह के उन शिष्यों पर उत्पीड़न लाने में परिणत हो जाती है, जो दाख़ की बारी में “आखरी” मज़दूर हैं।

क्या पहली शताब्दी की वह पूर्ति यीशु के दृष्टान्त की एकमात्र पूर्ति थी? नहीं, इस बीसवीं शताब्दी में मसीहजगत के पादरी वर्ग को उनके पद और ज़िम्मेदारियों के कारण, परमेश्‍वर की प्रतीकात्मक दाख़ की बारी में काम करने के लिए “पहले” किराए पर लिए गए। वे, वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी से संबंधित समर्पित प्रचारकों को परमेश्‍वरीय सेवा में मान्य नियतकार्य पानेवाले “आखरी” व्यक्‍ति मानते थे। परन्तु, दरअसल, इन्हीं जनों को, जिन्हें पादरी वर्ग ने तुच्छ समझा, वह दिनार मिला—परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य का अभिषिक्‍त राजदूतों की हैसियत से सेवा करने का सम्मान। मत्ती १९:३०-२०:१६.

▪ दाख की बारी किसको चित्रित करती है? दाख़ की बारी का स्वामी और १२-घंटे और १-घंटे का मज़दूर किन को चित्रित करते हैं?

▪ प्रतीकात्मक कार्यदिवस कब समाप्त हुआ, और मज़दूरी कब दी गयी?

▪ दिनारों के भुगतान से क्या चित्रित होता है?