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पड़ोसी जैसा सामरी

पड़ोसी जैसा सामरी

अध्याय ७३

पड़ोसी जैसा सामरी

यीशु शायद यरूशलेम से लगभग तीन किलोमीटर दूर बैतनियाह नामक गाँव के पास है। मूसा का नियम में एक प्रवीण आदमी पास आकर सवाल पूछता है: “हे गुरु, अनन्त जीवन का वारिस होने के लिए मैं क्या करुँ?”

यीशु को पता चलता है कि यह आदमी, एक वक़ील, सिर्फ़ जानकारी के लिए ही नहीं, पर उसे परखना चाहता है। यहूदियों का संवेदनशीलता को ठेस पहुँचानेवाली जवाब यीशु से प्राप्त करना यह उस वक़ील का मक़सद हो सकता है। अतः यीशु वक़ील को ख़ुद वचनबद्ध हो जाने के लिए सवाल पूछते हैं: “व्यवस्था में क्या लिखा है? तू कैसे पढ़ता है?”

जवाब में, वक़ील असाधारण अन्तर्दृष्टि दिखाते हुए, परमेश्‍वर का नियम से व्यवस्थाविवरण ६:५ और लैव्यव्यवस्था १९:१८ से उद्धृत करके, कहता है: “‘तू अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपना सारा दिल और अपना सारा प्राण और अपनी सारी ताक़त और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख,’ और, ‘अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।’”

“तू ने ठीक जवाब दिया,” यीशु कहते हैं। “यही करते रह और तुझे जीवन मिलेगा।”—NW.

तथापि, वक़ील संतुष्ट नहीं है। यीशु का जवाब उसके लिए पर्याप्त रूप से स्पष्ट नहीं है। वह यीशु से इस बात की पुष्टि चाहता है कि उसके अपने विचार सही हैं और इसलिए वह दूसरों के साथ अपने व्यवहार में धर्मी है। इसलिए, वह पूछता है: “मेरा पड़ोसी कौन है?”

जैसे प्रतीत होता है कि लैव्यव्यवस्था १९:१८ का संदर्भ सूचित करता है, यहूदी विश्‍वास करते हैं कि “पड़ोसी” शब्द केवल संगी यहूदियों के लिए लागू होता है। दरअसल, बाद में प्रेरित पतरस ने भी बताया: “तुम जानते हो कि अन्यजाति की संगति करना या उसके यहाँ जाना यहूदी के लिए अधर्मी है।” इसलिए वक़ील, और शायद यीशु के शिष्य भी विश्‍वास करते हैं कि यदि वे केवल संगी यहूदियों पर दया दिखाएँगे तो धर्मी हैं, क्योंकि, उनकी राय में, ग़ैर-यहूदी असल में उनके पड़ोसी नहीं।

अपनी श्रोताओं को ठेस पहुँचाए बग़ैर, कैसे यीशु उनके मत को सुधार सकते हैं? वह एक कहानी सुनाता है, जो संभवतः एक वास्ततिक घटना पर आधारित है। यीशु बतलाते हैं, “एक [यहूदी] यरूशलेम से यरीहो जा रहा था, और वह डाकुओं में गिर गया, जिन्होंने उसके कपड़े उतार लिए और मार-पीटकर उसे अधमुआ छोड़कर चले गए।”

“इत्तफ़ाक से,” यीशु आगे कहते हैं, “उसी मार्ग से एक याजक जा रहा था, परन्तु, उसे देख के कतराकर चला गया। इसी रीति से एक लेवी उस जगह पर आया, वह भी उसे देख के कतराकर चला गया। परन्तु एक सामरी यात्री वहाँ आ निकला, और उसे देखकर तरस खाया।”—NW.

अनेक याजक और मन्दिर के उनके सहायक लेवी यरीहो में रहते हैं, जो ९१५ मीटर उतरनेवाली उस ख़तरनाक सड़क पर से २२ किलोमीटर की दूरी पर है, जहाँ से वे यरूशलेम में मन्दिर में सेवा करने जाते हैं। याजक और लेवी से यह अपेक्षा की जाती है कि वे किसी दुःखद संगी यहूदी की सहायता करें। पर वे ऐसा नहीं करते। इसके बजाय, एक सामरी करता है। यहूदी सामरियों से इतना नफ़रत करते हैं कि हाल ही में उन्होंने यीशु को “एक सामरी” कहकर उसका कड़े शब्दों से अपमान किया था।

यहूदी की सहायता के लिए सामरी क्या करता है? “उसके पास आकर,” यीशु कहते हैं, “उसके घावों पर तेल और दाखरस डालकर पट्टियाँ बांधी। फिर अपने जानवर पर चढ़ाकर सराय में ले गया, और उसकी सेवा टहल की। दूसरे दिन उसने दो दीनार निकालकर [करीबन दो दिन की मज़दूरी] भटियारे को दिए, और कहा, ‘इस की सेवा टहल करना, और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं लौटने पर तुझे भर दूँगा।’”

कहानी सुनाने के बाद, यीशु वक़ील से पूछते हैं: “अब तेरी समझ में जो डाकुओं में घिर गया था, इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा?”

सामरी की अच्छाई को श्रेय देने में बेचैनी महसूस करते हुए, वह वक़ील सिर्फ़ कहता है: “वही जिस ने उस पर तरस खाया।”

यीशु निष्कर्ष निकालते हैं, “जा, तू भी ऐसा ही कर।”

यदि यीशु वक़ील से सीधा कहता कि ग़ैर-यहूदी भी उसके पड़ोसी हैं, तो न केवल वह मनुष्य इसे अस्वीकार करता बल्कि संभवतः अधिकांश दर्शक यीशु के साथ वाद-विवाद में उस मनुष्य का पक्ष लेते। तथापि, यह सच्ची कहानी एक अखण्डनीय तरीके से स्पष्ट करती है कि हमारे पड़ोसियों में वे लोग भी शामिल हैं जो हमारी अपनी जाति और राष्ट्र के नहीं हैं। यीशु का सिखाने का क्या ही अद्‌भुत तरीक़ा! लूका १०:२५-३७; प्रेरितों के काम १०:२८; यूहन्‍ना ४:९; ८:४८.

▪ वक़ील यीशु से क्या प्रश्‍न पूछता है, और स्पष्टतया उसका पूछने का मक़सद क्या है?

▪ यहूदी लोग किसे अपना पड़ोसी मानते हैं, और किस कारण से हम यक़ीन कर सकते हैं कि शिष्य भी इस विचार से सहमत हैं?

▪ किस तरह यीशु सही विचार पेश करते हैं ताकि वक़ील इसका खण्डन न कर सके?