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बाग़ में व्यथा

बाग़ में व्यथा

अध्याय ११७

बाग़ में व्यथा

जब यीशु प्रार्थना करना समाप्त करते हैं, वे और उनके ११ वफादार प्रेरित यहोवा को स्तुति के गीत गाते हैं। फिर वे ऊपरी कमरे से उतरकर, रात की ठण्डे अन्धकार में निकलते हैं, और किद्रोन तराई से होकर बैतनियाह के तरफ चल पड़ते हैं। लेकिन रास्ते में, वे एक मन पसन्द जगह, गतसमनी का बाग़, में रुकते हैं। यह जैतून पहाड़ पर या उसके आसपास स्थित है। अक़सर यीशु अपने प्रेरितों के साथ यहाँ जैतून के पेड़ों के बीच मिला करते थे।

आठ प्रेरितों को—शायद बाग़ के प्रवेश द्वार के निकट—छोड़कर वे उन्हें आदेश देते हैं: “यहीं बैठे रहना, जब कि मैं वहाँ जाकर प्रार्थना करूँ।” फिर वह अन्य तीन—पतरस, याकूब और यूहन्‍ना—को साथ लेकर बाग़ में और आगे जाता है। यीशु उदास और हद से ज़्यादा बेक़रार होते हैं। वे उन्हें कहते हैं, “मेरा जी मौत तक बहुत उदास है, तुम यहीं ठहरो और मेरे साथ जागते रहो।”—NW.

थोड़ा और आगे बढ़कर यीशु मुँह के बल गिर जाते हैं और गम्भीरता से प्रार्थना करने लगते हैं: “हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए। तौभी, जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” उनके कहने का मतलब क्या है? क्यों वह “मौत तक बहुत उदास है”? क्या वह मरने और छुटकारे का प्रबन्ध प्रदान करने के फ़ैसले से पीछे हट रहा है?

बिलकुल नहीं! यीशु मौत से बचने की विनती नहीं कर रहे हैं। यहाँ तक कि एक बलिदान रूपी मौत को टालने का ख़्याल, जिसका सुझाव पतरस ने एक बार दिया था, उसके लिए घृणित है। इसके बजाय, वह इसलिए व्यथा में है क्योंकि वह डर रहा है कि मरने का तरीका—एक तुच्छ अपराधी के समान—पिता के नाम पर कलंक लाएगा। वह अब यह महसूस कर रहा है कि कुछ ही घंटों में उसे एक बदतरीन क़िस्म का व्यक्‍ति—परमेश्‍वर के ख़िलाफ़ एक निन्दक—के जैसे स्तंभ पर चढ़ाया जाएगा! यह बात उसे अत्यधिक व्याकुल कर रही है।

देर तक प्रार्थना करने के बाद, यीशु वापस आकर तीनों प्रेरितों को सोते हुए पाते हैं। पतरस को संबोधित करते हुए, वे कहते हैं: “क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग सके? जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।” तो भी उनके ऊपर आए तनाव और घड़ी की देरी को मानते हुए, वह कहता है: “आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।”

यीशु फिर दूसरी बार जाकर परमेश्‍वर से “यह कटोरा,” अर्थात, उसके लिए यहोवा का नियत भाग, या इच्छा, हटाने की विनती करते हैं। जब वह वापस आता है, वह दोबारा तीनों को सोता हुआ पाता है जबकि उन्हें प्रार्थना करनी चाहिए थी कि वे प्रलोभन में न पड़े। जब यीशु उन से बात करते हैं, वे यह नहीं जानते कि क्या जवाब दें।

अन्त में, तीसरी बार, यीशु कुछ दूरी तक जाते हैं और घुटने टेककर ऊँची आवाज़ से और आसुओं के साथ प्रार्थना करते हैं: “हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले।” एक अपराधी के समान मृत्यु से अपने पिता के नाम पर आनेवाली बदनामी के कारण, यीशु तीव्रता से दर्द महसूस कर रहे हैं। अजी, ईश-निन्दक—वह जो परमेश्‍वर को शाप देता है—होने का इलज़ाम सहा नहीं जाता!

फिर भी, यीशु प्रार्थना जारी रखते हैं: “जो मैं चाहता हूँ, वह नहीं, परन्तु जो तू चाहता है।” यीशु आज्ञाकारिता से अपनी इच्छा परमेश्‍वर के आधीन करते हैं। इस पर, स्वर्ग से एक दूत दिखायी देता है और उसे प्रोत्साहनदायक शब्दों से सामर्थ देता है। संभवतः, स्वर्गदूत यीशु को बताता है कि पिता की स्वीकृती उस पर है।

तो भी, यीशु के कन्धों पर कितना बोझ! उसका अपना और सम्पूर्ण मानवजाति का अनन्त जीवन तराज़ू पर लटका हुआ है। भावनात्मक तनाव बहुत है। इसलिए यीशु अधिक गंभीरता से प्रार्थना करते हैं, और उनका पसीना रक्‍त की बूँदों के जैसे ज़मीन पर गिरते हैं। अमेरिकन चिकित्सा-समुदाय का जर्नल (The Journal of the American Medical Association) नामक पत्रिका अवलोकन करती है, “हालाँकि यह एक बहुत ही विरल दृश्‍यघटना है, रक्‍त का पसीना . . . अत्यन्त भावनात्मक अवस्था में आ सकते हैं।”

इसके बाद, यीशु तीसरी बार अपने प्रेरितों के पास लौटते हैं, और एक बार फिर उन्हें सोए हुए पाते हैं। वे शोक के वजह से थक गए हैं। वह चिल्ला उठता है, “ऐसे समय पर तुम सो रहे हो और विश्राम करते हो! बहुत हो गया! घड़ी आ पहुँची है! देखो! मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है। उठो, चलें! देखो, मेरा पकड़वानेवाला निकट आ पहुँचा है।”—NW.

जब वे बोल ही रहे हैं, एक बड़ी भीड़ यहूदा इस्करियोती के साथ मशाल और बत्ती और हथियार लिए आती है। मत्ती २६:३०, ३६-४७; १६:२१-२३; मरकुस १४:२६, ३२-४३; लूका २२:३९-४७; यूहन्‍ना १८:१-३; इब्रानियों ५:७.

▪ ऊपरी कमरा छोड़ने के बाद, यीशु प्रेरितों को कहाँ ले जाते हैं, और वह वहाँ क्या करता है?

▪ जब यीशु प्रार्थना कर रहे हैं, प्रेरित क्या कर रहे हैं?

▪ यीशु व्यथा में क्यों हैं, और वह परमेश्‍वर से क्या विनती करता है?

▪ यीशु का पसीना रक्‍त की बूँद बनने से क्या सूचित होता है?