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यीशु अपने विरोधियों का भर्त्सना करते हैं

यीशु अपने विरोधियों का भर्त्सना करते हैं

अध्याय १०९

यीशु अपने विरोधियों का भर्त्सना करते हैं

यीशु ने धार्मिक विरोधियों को इतना बख़ूबी से चकरा दिया है कि वे उसे कुछ और पूछने से डरते हैं। इसलिए वह उनकी अज्ञानता का पर्दाफ़ाश करना आरंभ करता है: “मसीह के विषय में तुम क्या समझते हो?” वह पूछता है। “वह किसका सन्तान है?”

“दाऊद का,” फरीसी जवाब देते हैं।

यद्यपि यीशु यह इनक़ार नहीं करते कि दाऊद मसीहा, या ख्रीस्त, का शारीरिक पूर्वज है, वह पूछता है: “तो दाऊद आत्मा में होकर [भजन संहिता ११० में] उसे ‘प्रभु’ क्यों कहता है? ‘यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा: “मेरे दाहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों के नीचे न कर दूँ।”’ भला, जब दाऊद उसे प्रभु कहता है, तो वह उसका पुत्र कैसे हो सकता है?”—NW.

फरीसी ख़ामोश हैं, क्योंकि वे ख्रीस्त, या अभिषिक्‍त जन, की सच्ची पहचान नहीं जानते। मसीहा दाऊद का मानवी वंश ही नहीं, जैसे फरीसी प्रत्यक्ष रूप से विश्‍वास करते हैं, परन्तु वह स्वर्ग में अस्तित्व में था और दाऊद का प्रवर, या प्रभु था।

भीड़ और अपने शिष्यों की ओर मुड़कर, यीशु शास्त्रियों और फरीसियों के बारे में चेतावनी देते हैं। चूँकि ये “मूसा की गद्दी पर बैठे हैं,” वे परमेश्‍वर का नियम पढ़ाते हैं, यीशु उकसाते हैं: “ये तुम से जो कहें वह करना, और मानना।” परन्तु वह आगे कहता है, “उनके काम के अनुसार मत करना, क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं।”—NW.

वे कपटी हैं, और यीशु उनकी भर्त्सना उसी तरह की भाषा में करते हैं जिसे उसने कुछ महीने पहले एक फरीसी के यहाँ भोजन करते समय किया था। “वे अपने सब काम,” वह कहता है, “लोगों को दिखाने के लिए करते हैं।” और वह यह ग़ौर करते हुए उदाहरण प्रदान करता है:

“वे अपने शास्त्रों से समाया हुआ तावीज़ों को चौड़ा करते हैं जिन्हें वे सुरक्षा के तौर पर पहनते हैं।” (NW) ये छोटे तावीज़ में, जो माथे पर या बाँह पर पहने जाते हैं, नियम के चार हिस्से रहते हैं: निर्गमन १३:१-१०, ११-१६; और व्यवस्थाविवरण ६:४-९; ११:१३-२१. लेकिन फरीसी इन तावीज़ों का आकार बढ़ाते हैं, ताकि दूसरों को प्रभावित कर सकें कि वे नियम के प्रति उत्साही हैं।

यीशु आगे कहते हैं कि “वे अपने वस्त्रों की कोरें बढ़ाते हैं।” गिनती १५:३८-४० में इस्राएलियों को अपने वस्त्र पर झब्बा बनाने का आज्ञा दिया गया था, परन्तु फरीसी अपने झब्बों को औरों से ज़्यादा बड़ा बनाते हैं। सब कुछ दिखावे के लिए ही किया जाता है! “वे मुख्य-मुख्य जगहें पसंद करते हैं,” यीशु घोषणा करते हैं।

दुःख की बात ये है कि उसके शिष्य भी इस विशिष्टता की आकांक्षा से प्रभावित हुए हैं। इसलिए वह सलाह देता है: “परन्तु तुम रब्बी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है, और तुम सब भाई हो। और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है। और ‘स्वामी’ भी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही स्वामी है, अर्थात मसीह।” शिष्यों ने अव्वल होने की आकांक्षा को अपने आप में से दूर करना चाहिए! “जो तुम में बड़ा हो, वह तुम्हारा सेवक बने,” यीशु निर्देश देते हैं।

उसके बाद वह शास्त्रियों और फरीसियों पर धिक्कार की श्रृंखला का घोषणा करता है, और बार-बार उन्हें कपटी कहता है। वे “मनुष्यों के विरोध में स्वर्ग के राज्य का द्वार बंद करते हैं,” और वह कहता है, “वे विधवाओं के घरों को खा जाते हैं और दिखाने के लिए बड़ी देर तक प्रार्थना करते हैं।”

“हे अंधे अगुवों, तुम पर हाय,” यीशु कहते हैं। वह फरीसियों का आध्यात्मिक मूल्यों की कमी के लिए भर्त्सना करता है, जो उनके द्वारा किए गए निरंकुश भेदों से साबित होता है। उदाहरण के लिए, वे कहते हैं, ‘यदि कोई मंदिर की शपथ खाए तो कुछ नहीं, परन्तु यदि कोई मंदिर के सोने की सौगंध खाए तो उससे बंध जाएगा।’ (NW) उस उपासना का जगह की आध्यात्मिक क़ीमत पर ज़ोर देने के बजाय, वे मंदिर के सोने पर ज़ोर देते हैं, और अपना नैतिक अंधापन भी दिखाते हैं।

फिर, जैसे उन्होंने पहले किया था, यीशु फरीसियों को “व्यवस्था की गम्भीर बातें, अर्थात, न्याय और दया और विश्‍वास” की उपेक्षा करने के लिए निन्दा करते हैं, जबकि वे तुच्छ जड़ी-बूटियाँ का दसमांश, या दसवाँ अंश, अदा करने में ज़्यादा ध्यान देते हैं।

यीशु फरीसियों को “अंधे अगुवे” कहकर बुलाते हैं, जो “मच्छर को तो छान डालते हैं, परन्तु ऊँट को निगल जाते हैं!” वे अपने दाख़रस से मच्छर को छान डालते हैं, एक कीडा होने के वजह से नहीं लेकिन इसलिए कि वह रैतिक रूप से अशुद्ध है। फिर भी, उनके द्वारा नियम की गम्भीर बातों का अवहेलना ऊँट को निगलने के बराबर है, जो रैतिक रूप से अशुद्ध जानवर है। मत्ती २२:४१-२३:२४; मरकुस १२:३५-४०; लूका २०:४१-४७; लैव्यव्यवस्था ११:४, २१-२४.

▪ फरीसियों को भजन संहिता ११० में दाऊद द्वारा कही बातों के बारे में जब यीशु सवाल करते हैं, तो वे ख़ामोश क्यों रह जाते हैं?

▪ क्यों फरीसी अपने शास्त्र से समाए हुए तावीज़ों को चौड़ा करते और अपने वस्त्र की झब्बों को बढ़ाते हैं?

▪ यीशु अपने शिष्यों को क्या सलाह देते हैं?

▪ फरीसी क्या निरंकुश भेद करते हैं, और किस तरह यीशु उन्हें गम्भीर बातों की उपेक्षा के लिए निन्दा करते हैं?