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सब्त के दिन बालें तोड़ना

सब्त के दिन बालें तोड़ना

अध्याय ३१

सब्त के दिन बालें तोड़ना

शीघ्र ही यीशु और उसके शिष्य यरूशलेम को छोड़कर वापस गलील जाते हैं। यह वसंत ऋतु है, और खेतों में बालें तैयार हैं। शिष्य भूखे हैं। सो वे बालें तोड़कर खाते हैं। पर चूँकि वह सब्त का दिन है, उनका कार्य अनदेखा नहीं रहता।

यरूशलेम के धार्मिक अगुओं ने सब्त के दिन के तथाकथित उल्लंघन के कारण हाल ही में यीशु को मार डालना चाहा। अब फरीसी इलज़ाम लगाते हैं। “देख, तेरे चेले वह काम कर रहे हैं, जो सब्त के दिन करना उचित नहीं,” वे दोष लगाते हैं।

फरीसी दावा करते हैं कि बालों को तोड़ना और हाथों में रगड़कर खाना कटनी और दाँवना है। काम के अर्थ के बारे में उनकी दृढ़ व्याख्या ने सब्त के दिन को बोझिल बना दिया है, जबकि यह ख़ुशी और आध्यात्मिक उन्‍नति का समय होना था। इसलिए यीशु प्रत्युत्तर पवित्र शास्त्र के उदाहरणों से देते हैं यह दिखाते हुए कि यहोवा परमेश्‍वर का उद्देश्‍य अपने सब्त के नियम को अनुचित रूप से सख़्त अनुप्रयोग करना कभी नहीं था।

यीशु कहते हैं कि जब दाऊद और उसके साथी भूखे थे, उन्होंने तम्बू में रुककर भेंट की रोटियाँ खायीं। ये रोटियाँ पहले ही यहोवा के सामने से हटा ली गयी थीं और उनकी जगह ताज़ी राटियाँ रखी गयी थीं, और वे साधारणतः याजकों के खाने के लिए रखी गयी थीं। तथापि ऐसे हालात में दाऊद और उसके साथियों को उसे खाने पर अपराधी नहीं ठहराया गया।

दूसरा उदाहरण देते हुए, यीशु कहते हैं: “क्या तुम ने व्यवस्था में नहीं पढ़ा, कि याजक सब्त के दिन मंदिर में सब्त के दिन की विधि को तोड़ने पर भी निर्दोष ठहरते हैं?” हाँ, सब्त के दिन भी याजक पशु बलिदान की तैयारी में मंदिर में बध करते और दूसरे काम भी करते हैं! “पर मैं तुम से कहता हूँ,” यीशु कहते हैं, “यहाँ वह है, जो मंदिर से भी बड़ा है।”

फरीसियों को डाँटते हुए, यीशु आगे कहते हैं: “यदि तुम इसका अर्थ जानते, ‘मैं दया से प्रसन्‍न हूँ, बलिदान से नहीं,’ तो तुम निर्दोष को दोषी न ठहराते।” अन्त में वह कहता है: “मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है।” यीशु का कहने का मतलब क्या है? यीशु अपने हज़ार वर्ष के शान्तिपूर्ण राज्य शासन का उल्लेख कर रहे हैं।

६,००० सालों से मनुष्यजाति शैतान इब्‌लीस के अधीन कष्टदायक दासत्व का दुःख अनुभव कर रही है, जिस में हिंसा और युद्ध साधारण है। दूसरी ओर, यीशु का महान सब्त शासन ऐसी सब तकलीफ़ और ज़ुल्मों से छुटकारे का समय होगा। मत्ती १२:१-८; लैव्यव्यवस्था २४:५-९; १ शमूएल २१:१-६; गिनती २८:९; होशे ६:६.

▪ यीशु के शिष्यों के खिलाफ़ क्या दोष लगाया जाता है, और यीशु इसका जवाब कैसे देते हैं?

▪ यीशु फरीसियों के कौनसी कमी की पहचान करते हैं?

▪ यीशु किस तरह “सब्त के दिन का प्रभु है?”