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अध्याय 21

“शहर का नाम होगा, ‘यहोवा वहाँ है’”

“शहर का नाम होगा, ‘यहोवा वहाँ है’”

यहेजकेल 48:35

अध्याय किस बारे में है: शहर और भेंट की ज़मीन के मायने क्या हैं

1, 2. (क) ज़मीन के एक टुकड़े को किस मकसद से अलग रखने के लिए कहा गया? (जिल्द पर तसवीर देखें।) (ख) दर्शन की इन बातों से बँधुआई में रहनेवालों को क्या यकीन हुआ?

 यहेजकेल को आखिरी दर्शन में बताया जाता है कि देश की ज़मीन का एक टुकड़ा एक खास मकसद से अलग रखा जाए। यह ज़मीन इसराएलियों के किसी गोत्र को विरासत में नहीं दी जाएगी बल्कि यहोवा को भेंट की जाएगी। यहेजकेल को एक अनोखे शहर के बारे में भी बताया जाता है जिसका नाम भी अपने आप में अनूठा है। दर्शन की ये बातें जानकर बँधुआई में रहनेवालों को इस बात का पक्का यकीन होता है कि जब वे अपने प्यारे देश लौट जाएँगे, तो यहोवा उनके साथ रहेगा।

2 यहेजकेल उस भेंट की ज़मीन के बारे में काफी ब्यौरा देता है। आइए दर्शन की इन बातों को जाँचें, क्योंकि यहोवा के उपासकों के नाते हम इससे बहुत कुछ सीख सकते हैं।

“पवित्र भेंट और शहर के लिए”

3. यहोवा ने ज़मीन का जो टुकड़ा अलग रखने के लिए कहा, उसके पाँच हिस्से क्या हैं? (ख) ये हिस्से क्यों अलग ठहराए गए? (यह बक्स देखें: ‘तुम भेंट के लिए ज़मीन अलग रखना।’)

3 ज़मीन का जो टुकड़ा अलग रखा गया था (बक्स 21क, 1), उसका एक हिस्सा बहुत खास था (2)। उत्तर से दक्षिण तक इसकी चौड़ाई 25,000 हाथ (13 किलोमीटर) थी और पूरब से पश्‍चिम तक लंबाई भी 25,000 हाथ थी। इस चौकोर हिस्से को “भेंट की पूरी  ज़मीन” कहा गया था (2)। इस ज़मीन को तीन भागों में बाँटा गया था। ऊपरी भाग लेवियों के लिए था और बीच का भाग मंदिर और याजकों के लिए। इन दोनों भागों को मिलाकर “पवित्र  भेंट” कहा गया था (4)। “बाकी ज़मीन” यानी नीचे का छोटा भाग आम इस्तेमाल   के लिए” था (5)। यह ज़मीन शहर के लिए थी।—यहे. 48:15, 20.

4. यहोवा को दी गयी भेंट के बारे में जानकर हमें क्या सीख मिलती है?

4 यहोवा को दी गयी इस भेंट के बारे में जानकर हमें क्या सीख मिलती है? ध्यान दीजिए, यहोवा ने बताया था कि सबसे पहले  देश की ज़मीन का एक टुकड़ा खास भेंट के लिए अलग रखा जाए और इसके बाद  बाकी ज़मीन गोत्रों में बाँटी जाए। ऐसा कहकर यहोवा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि देश में उपासना की इस खास जगह को सबसे ज़्यादा अहमियत दी जाए। (यहे. 45:1) इससे बँधुआई में रहनेवाले यहूदियों के दिमाग में यह बात अच्छी तरह बैठ गयी होगी कि उन्हें अपनी ज़िंदगी में यहोवा की उपासना को पहली जगह देनी चाहिए। आज हमें भी यहोवा की उपासना को सबसे ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए, जैसे बाइबल पढ़ना, मसीही सभाओं में जाना, प्रचार करना वगैरह। यहोवा अपनी मिसाल से हमें यही सिखाना चाहता है कि हमें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उसकी उपासना को सबसे पहली जगह देनी चाहिए।

“ज़मीन के बीचों-बीच शहर होगा”

5, 6. (क) शहर की ज़मीन किसकी थी? (ख) शहर का मतलब क्या नहीं है? क्यों?

5 यहेजकेल 48:15 पढ़िए। “शहर” और उसके आस-पास की ज़मीन के क्या मायने थे? (यहे. 48:16-18) दर्शन में यहोवा ने यहेजकेल को बताया कि ‘शहर के लिए अलग की गयी ज़मीन इसराएल के पूरे घराने की होगी।’ (यहे. 45:6, 7) इससे पता चलता है कि शहर और उसके आस-पास की ज़मीन उस “पवित्र भेंट” का हिस्सा नहीं थी जो उन्हें ‘यहोवा के लिए अलग रखनी’ थी। (यहे. 48:9) इस बात को ध्यान में रखते हुए आइए देखें कि शहर के इंतज़ाम से हमें क्या-क्या सीख मिलती है।

6 शहर के इंतज़ाम से हमें क्या सीख मिलती है, यह जानने से पहले आइए देखें कि शहर का मतलब क्या नहीं हो सकता। दर्शन के इस शहर का मतलब दोबारा बनाया गया यरूशलेम शहर नहीं हो सकता जहाँ मंदिर बनाया गया था। ऐसा क्यों? क्योंकि यहेजकेल ने दर्शन में जो शहर देखा उसमें कोई मंदिर नहीं था। दर्शन का वह शहर दोबारा बसाए गए इसराएल के किसी और शहर को भी नहीं दर्शाता। वह इसलिए क्योंकि दर्शन में जिस तरह के शहर की बात की गयी है, वैसा शहर यहूदियों ने अपने देश लौटने के बाद कभी नहीं बनाया। उनके वंशजों ने भी कभी ऐसा शहर नहीं बनाया। दर्शन का शहर स्वर्ग को भी नहीं दर्शाता। वह इसलिए क्योंकि दर्शन में शहर “आम इस्तेमाल” की ज़मीन पर बना हुआ था, न कि उपासना के लिए अलग ठहरायी गयी ज़मीन पर।—यहे. 42:20.

7. (क) यहेजकेल ने जो शहर देखा, वह कैसा शहर था? (ख) उस शहर का क्या मतलब हो सकता है? (शुरूआती तसवीर देखें।)

7 तो फिर वह शहर क्या है जो यहेजकेल ने दर्शन में देखा था? याद कीजिए कि उसने जिस दर्शन में एक देश देखा था, उसी दर्शन में उसने शहर भी देखा था। (यहे. 40:2; 45:1, 6) परमेश्‍वर के वचन से सुराग मिलता है कि देश का मतलब एक लाक्षणिक देश या फिरदौस जैसा माहौल है। तो फिर शहर भी कोई लाक्षणिक शहर ही होगा। आम तौर पर शहर के नाम से हमारे मन में कैसी तसवीर आती है? एक ऐसी जगह जहाँ बहुत-से लोग साथ मिलकर रहते हैं और सबकुछ अच्छी व्यवस्था और कायदे-कानून के मुताबिक होता है। इसी को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि यहेजकेल ने जो व्यवस्थित शहर देखा, जो कि चौकोर था, अच्छी व्यवस्था के मुताबिक काम करनेवाले एक प्रशासन को दर्शाता है।

8. (क) यह प्रशासन कहाँ काम करता है? (ख) हम ऐसा क्यों कह सकते हैं?

8 यह प्रशासन कहाँ काम करता है? दर्शन में देखा गया कि शहर देश के अंदर है। इससे पता चलता है कि आज यह प्रशासन यहोवा के लोगों के बीच काम करता है और उन्हें निर्देश देता है। यह भी गौर कीजिए कि शहर आम इस्तेमाल की ज़मीन पर बनाया गया था, न कि पवित्र ज़मीन पर। इससे पता चलता है कि शहर स्वर्ग के किसी प्रशासन को नहीं बल्कि धरती पर मौजूद एक प्रशासन को दर्शाता है। यह प्रशासन आज फिरदौस जैसे माहौल में रहनेवालों की खातिर काम कर रहा है।

9. (क) धरती का प्रशासन आज किन लोगों से बना है? (ख) हज़ार साल के राज में यीशु क्या करेगा?

9 धरती पर मौजूद यह प्रशासन किन लोगों से बना है? यहेजकेल के दर्शन में शहर के सरकारी काम-काज की अगुवाई करनेवाले व्यक्‍ति को “प्रधान” कहा गया है। (यहे. 45:7) वह परमेश्‍वर के लोगों का एक निगरान था, मगर वह न तो याजक था न ही लेवी। इस प्रधान के बारे में जानकर आज हमें मंडली के निगरानों का खयाल आता है, खासकर उन भाइयों का जो ‘दूसरी भेड़ों’ में से हैं। (यूह. 10:16) ये भाई स्वर्ग की सरकार के अधीन रहकर नम्रता से सेवा करते हैं और चरवाहों के नाते प्यार से हमारी देखभाल करते हैं। आनेवाले हज़ार साल के राज में यीशु “सारी धरती पर” ‘हाकिमों’ यानी काबिल प्राचीनों को ठहराएगा। (भज. 45:16) उस दौरान वे स्वर्ग के राज के निर्देशों को मानते हुए परमेश्‍वर के लोगों की देखभाल करेंगे।

“यहोवा वहाँ है”

10. (क) शहर का नाम क्या है? (ख) इस नाम से लोगों को क्या यकीन हुआ होगा?

10 यहेजकेल 48:35 पढ़िए। शहर का नाम है, “यहोवा वहाँ है।” इस नाम से लोगों को यकीन हुआ होगा कि उस शहर में यहोवा की मौजूदगी रहेगी। यहोवा ने यहेजकेल को दिखाया था कि यह शहर देश के बीचों-बीच है। वह एक तरह से बँधुआई में रहनेवालों को भरोसा दिला रहा था कि ‘मैं फिर से  तुम लोगों के साथ रहूँगा।’ यह जानकर उन्हें कितनी हिम्मत मिली होगी!

11. शहर और उसके नाम से हमें क्या सीख मिलती है?

11 यहेजकेल की भविष्यवाणी की इन बातों से हमें क्या सीख मिलती है? इस शहरनुमा प्रशासन को जो नाम दिया गया है, उससे हमें भरोसा होता है कि आज धरती पर जो यहोवा की सेवा करते हैं, उनके साथ यहोवा है और हमेशा  रहेगा। शहर के इस अनोखे नाम से एक और अहम सच्चाई उजागर होती है। वह यह कि यह शहर या प्रशासन इंसानों को कोई अधिकार नहीं सौंपता बल्कि उनसे यहोवा के नियम लागू करवाता है जो बहुत सख्त नहीं होते और हमारे भले के लिए होते हैं। मिसाल के लिए, दर्शन में यहोवा ने प्रशासन को यह अधिकार नहीं दिया कि वह मनचाहे तरीके से ज़मीन बाँटे बल्कि उसने खुद गोत्रों में ज़मीन बाँटी थी। उसी तरह आज यहोवा ने खुद अपने हर सेवक को एक तरह से ज़मीन का एक टुकड़ा दिया है। उसने अपने सभी सेवकों को, यहाँ तक कि उन्हें भी जो दुनिया के नज़रिए से मामूली समझे जाते हैं, सेवा करने के मौके दिए हैं। प्रशासनिक ज़िम्मेदारियाँ सँभालनेवालों से यहोवा उम्मीद करता है कि वे यहोवा के इन फैसलों की इज़्ज़त करें।—यहे. 46:18; 48:29.

12. (क) शहर की एक खासियत क्या थी? इससे क्या पता चलता है? (ख) शहर की बनावट से मसीही निगरानों को क्या सीख मिलती है?

12 “यहोवा वहाँ है” नाम के इस शहर की एक और खासियत थी। इस शहर के 12 फाटक थे जबकि पुराने ज़माने में शहरों की हिफाज़त के लिए बहुत कम फाटक हुआ करते थे। (यहे. 48:30-34) इस चौकोर शहर के हर तरफ तीन-तीन फाटक थे। इतने सारे फाटकों का होना दिखाता है कि इस शहर की प्रशासनिक ज़िम्मेदारियाँ सँभालनेवाले लोग मिलनसार हैं और परमेश्‍वर के सभी सेवकों की मदद करने के लिए हरदम तैयार रहते हैं। इतना ही नहीं, शहर के चारों तरफ 12  फाटक होने की वजह से “इसराएल के पूरे  घराने” में से हर कोई उसमें जा सकता था। (यहे. 45:6) शहर की इस बनावट से मसीही निगरान एक अहम बात सीखते हैं। यहोवा चाहता है कि वे मिलनसार हों और फिरदौस जैसे माहौल में रहनेवाले हर भाई-बहन की मदद करने के लिए हमेशा तैयार हों।

मसीही निगरान मिलनसार होते हैं और दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं (पैराग्राफ 12 देखें)

परमेश्‍वर के लोग उसकी ‘उपासना करने आते हैं’ और शहर की खातिर सेवा करते हैं

13. यहोवा ने किस तरह की सेवाओं के बारे में बताया?

13 आइए एक बार फिर यहेजकेल के दिनों में चलें और देखें कि उसने ज़मीन के बँटवारे के बारे में जो दर्शन देखा, उसमें और क्या-क्या जानकारी दी जाती है। यहोवा बताता है कि लोग तरह-तरह की सेवा करेंगे। “पवित्र-स्थान के सेवक” यानी याजक बलिदान अर्पित करेंगे और यहोवा के पास आकर उसकी सेवा करेंगे। और “मंदिर में सेवा करनेवाले” यानी लेवी “वहाँ सेवा के सभी काम” करेंगे। (यहे. 44:14-16; 45:4, 5) इन लोगों के अलावा, कुछ लोग शहर के पास आकर काम करेंगे। वे कौन हैं?

14. शहर के पास काम करनेवालों की तरह आज कौन सेवा करते हैं?

14 वे “सब गोत्रों  के लोग” हैं। वे शहर के पास काम करने आएँगे ताकि उनकी सेवाओं से शहर की मदद हो। वे फसलें उगाएँगे ताकि शहर की खातिर सेवा करनेवालों को खाने के लिए उपज मिले। (यहे. 48:18, 19) आज फिरदौस जैसे माहौल में रहनेवाले सब लोगों को  कुछ इसी तरह की सेवा करने का मौका मिला है। हमें मसीह के अभिषिक्‍त भाइयों को और “बड़ी भीड़” के उन लोगों को सहयोग देने का मौका मिला है जिन्हें यहोवा ने अगुवाई करने की ज़िम्मेदारी दी है। (प्रका. 7:9, 10) उन्हें सहयोग देने का एक अहम तरीका है, विश्‍वासयोग्य दास से मिलनेवाले निर्देशों को खुशी-खुशी मानना।

15, 16. (क) यहेजकेल को दर्शन में और क्या बताया जाता है? (ख) आज हमें भी कैसी सेवाएँ करने का मौका मिला है?

15 यहेजकेल को दर्शन में एक और बात बतायी जाती है जिससे हमें परमेश्‍वर की सेवा के बारे में एक अहम सीख मिलती है। यहोवा उसे बताता है कि 12 गोत्रों के लोग, जिनमें लेवी नहीं हैं, दो  जगहों पर सेवा करेंगे। एक जगह है मंदिर का आँगन और दूसरी है शहर की ज़मीन यानी चरागाह। इन दोनों जगहों पर वे क्या-क्या काम करेंगे? मंदिर के आँगन में सब गोत्रों के लोग “यहोवा की उपासना”  करेंगे और उसके लिए बलिदान  अर्पित करेंगे। (यहे. 46:9, 24) और शहर की ज़मीन पर सब गोत्रों के लोग जुताई-बोआई  करेंगे ताकि पैदा होनेवाली उपज से शहर की मदद  हो। इन मेहनती लोगों से हम क्या सीखते हैं?

16 आज बड़ी भीड़ के लोगों को भी कुछ इसी तरह की सेवाएँ करने का मौका मिला है। एक तो वे यहोवा के “मंदिर  में” तारीफ के बलिदान  चढ़ाकर उसकी उपासना  करते हैं। (प्रका. 7:9-15) जब वे प्रचार करते हैं, मसीही सभाओं में जवाब देते हैं और गीत गाते हैं, तो वे अपने विश्‍वास का ऐलान करके बलिदान चढ़ा रहे होते हैं। इन तरीकों से यहोवा की उपासना करना वे अपनी खास ज़िम्मेदारी मानते हैं। (1 इति. 16:29) इसके अलावा, यहोवा के कई लोग अलग-अलग तरीकों से यहोवा के संगठन की मदद  करते हैं। जैसे राज-घर और शाखा दफ्तर बनाना, उनका रख-रखाव करना या दूसरी निर्माण योजनाओं में हाथ बँटाना। दूसरे लोग इन योजनाओं के लिए दान देते हैं। इस तरह ये भाई-बहन जुताई-बोआई  करते हैं ताकि उनके काम से “परमेश्‍वर की महिमा” हो। (1 कुरिं. 10:31) वे सब पूरे जोश से और खुशी-खुशी मेहनत करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि यहोवा “ऐसे बलिदानों से बहुत खुश होता है।” (इब्रा. 13:16) क्या आप भी इस तरह जी-जान से सेवा करते हैं?

यहेजकेल ने शहर के अंदर और फाटकों के पास होनेवाली सेवाओं का जो ब्यौरा दिया, उससे हमें क्या सीख मिलती है? (पैराग्राफ 14-16 देखें)

‘हम नए आकाश और नयी पृथ्वी का इंतज़ार कर रहे हैं’

17. (क) नयी दुनिया में यह भविष्यवाणी कैसे बड़े पैमाने पर पूरी होगी? (ख) उस समय शहरनुमा प्रशासन से किसे फायदा होगा?

17 यहेजकेल ने भेंट की ज़मीन का जो दर्शन देखा, क्या उसकी भविष्यवाणी नयी दुनिया में बड़े पैमाने पर पूरी होगी? जी हाँ! यहेजकेल ने देखा कि “पवित्र भेंट” कहलानेवाली ज़मीन, जहाँ “यहोवा का पवित्र-स्थान” यानी मंदिर था, देश के बीचों-बीच है। (यहे. 48:10) इससे हमें भरोसा होता है कि हर-मगिदोन के बाद हम चाहे धरती पर कहीं भी रहें, यहोवा हमारे बीच निवास करेगा। (प्रका. 21:3) हज़ार साल के राज के दौरान शहरनुमा प्रशासन पूरी धरती पर काम करेगा। यह प्रशासन उन लोगों से बना होगा जिन्हें पूरी धरती पर परमेश्‍वर के सेवकों की देखरेख करने की ज़िम्मेदारी दी जाएगी। वे “नयी पृथ्वी” को यानी नए समाज के सब लोगों को प्यार से निर्देश देंगे और उनकी मदद करेंगे।—2 पत. 3:13.

18. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि शहरनुमा प्रशासन परमेश्‍वर की हुकूमत के निर्देशों के मुताबिक काम करेगा? (ख) शहर का नाम हमें क्या भरोसा दिलाता है?

18 हम यकीन रख सकते हैं कि यह शहरनुमा प्रशासन परमेश्‍वर की हुकूमत से मिलनेवाले निर्देशों के मुताबिक काम करेगा। परमेश्‍वर के वचन से पता चलता है कि धरती के प्रशासन या शहर की बनावट स्वर्ग की नगरी नयी यरूशलेम से मिलती-जुलती है जो मसीह के 1,44,000 साथी राजाओं से बनी है। जैसे स्वर्ग की नगरी के 12 फाटक हैं, उसी तरह धरती के शहर के भी 12 फाटक हैं। (प्रका. 21:2, 12, 21-27) इससे पता चलता है कि धरती पर मौजूद प्रशासन स्वर्ग से हुकूमत करनेवाले राज के फैसलों के मुताबिक ही काम करेगा। यह प्रशासन उस राज के फैसलों को ध्यान से लागू करेगा। शहर का नाम है, “यहोवा वहाँ है।” इस नाम से हम सबको इस बात का भरोसा होता है कि फिरदौस में हमेशा-हमेशा के लिए शुद्ध उपासना होती रहेगी। कितना सुनहरा भविष्य हमारे सामने है!