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अध्याय 2

परमेश्‍वर ने उनकी भेंट मंज़ूर की

परमेश्‍वर ने उनकी भेंट मंज़ूर की

इब्रानियों 11:4

अध्याय किस बारे में है: यहोवा ने शुद्ध उपासना के लिए शुरू से क्या इंतज़ाम किया था

1-3. (क) हम किन सवालों पर गौर करेंगे? (ख) हम किन चार अहम बातों पर गौर करेंगे जो शुद्ध उपासना के लिए ज़रूरी हैं? (शुरूआती तसवीर देखें।)

 हाबिल ध्यान से अपनी भेड़ों को देख रहा है। उसने बड़े प्यार से इन्हें पाला है। अब वह इनमें से कुछ भेड़ों को चुनता है, उनको हलाल करता है और यहोवा को उनकी भेंट चढ़ाता है। इस तरह बलिदान चढ़ाकर हाबिल यहोवा की उपासना कर रहा है। क्या यहोवा इस अपरिपूर्ण इंसान की उपासना स्वीकार करेगा?

2 प्रेषित पौलुस ने हाबिल के बारे में लिखा, “परमेश्‍वर ने उसकी भेंट मंज़ूर की।” लेकिन यहोवा ने कैन की भेंट मंज़ूर नहीं की। (इब्रानियों 11:4 पढ़िए।) परमेश्‍वर ने क्यों हाबिल की भेंट मंज़ूर की और कैन की नहीं? हम कैन, हाबिल और उन लोगों से क्या सीख सकते हैं जिनका ज़िक्र इब्रानियों अध्याय 11 में किया गया है? इन सवालों का जवाब जानने से हम और अच्छी तरह जान पाएँगे कि किस तरह की उपासना शुद्ध उपासना कहलाती है।

3 अब हम हाबिल से लेकर यहेजकेल के दिनों तक हुई कुछ घटनाओं पर चर्चा करेंगे। हम देखेंगे कि हमें इन चार बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि हमारी उपासना यहोवा को मंज़ूर हो: हमें सिर्फ यहोवा की  उपासना करनी चाहिए, उपासना सबसे बढ़िया  होनी चाहिए, सही तरीके से  और सही इरादे से  करनी चाहिए।

कैन की भेंट क्यों ठुकरा दी गयी?

4, 5. कैन ने शायद किन वजहों से अपनी भेंट यहोवा को अर्पित की?

4 उत्पत्ति 4:2-5 पढ़िए। कैन को मालूम था कि उसे सिर्फ यहोवा की  उपासना करनी चाहिए इसलिए उसी को भेंट चढ़ानी चाहिए। कैन सालों से यहोवा को जानता था, क्योंकि जब उसने और हाबिल ने भेंट चढ़ायी तब वे दोनों करीब 100 साल के रहे होंगे। * कैन के पास यहोवा को जानने के कई मौके थे। दोनों लड़के बचपन से जानते थे कि अदन के बाग में क्या हुआ था। वे दूर से अदन की हरियाली भी देखते होंगे। उन्होंने वहाँ तैनात करूबों को भी देखा होगा जो बाग का रास्ता रोके हुए थे। (उत्प. 3:24) उनके माता-पिता ने उन्हें बताया होगा कि यहोवा ने ही सबकुछ बनाया है और उसने नहीं चाहा था कि इंसान ज़िंदगी में इतनी मुश्‍किलें झेलें और एक दिन मर जाएँ। (उत्प. 1:24-28) इन बातों की जानकारी होने की वजह से शायद कैन को मालूम था कि उसे यहोवा को ही भेंट चढ़ानी चाहिए।

5 कैन ने और किस वजह से यहोवा को बलिदान चढ़ाया होगा? यहोवा ने भविष्यवाणी की थी कि एक “वंश” आएगा और वह उस “साँप” का सिर कुचल देगा जिसने हव्वा को बहकाया था। (उत्प. 3:4-6, 14, 15) पहलौठा बेटा होने की वजह से कैन ने सोचा होगा कि वही वह “वंश” है। (उत्प. 4:1) इसके अलावा यहोवा ने पापी इंसानों से बातचीत पूरी तरह बंद नहीं की थी। आदम के पाप करने के बाद भी परमेश्‍वर ने उससे बात की थी। उसने शायद किसी स्वर्गदूत के ज़रिए उससे बात की होगी। (उत्प. 3:8-10) कैन के बलिदान चढ़ाने के बाद यहोवा ने उससे भी बात की थी। (उत्प. 4:6) इन सारी बातों से पता चलता है कि कैन जानता था कि सिर्फ यहोवा की उपासना की जानी चाहिए।

6, 7. कैन ने जो भेंट दी या जिस तरीके से दी, क्या उसमें कोई दोष था? समझाइए।

6 तो फिर क्यों यहोवा कैन की भेंट से खुश नहीं हुआ? क्या उसकी भेंट बढ़िया  नहीं थी? इस बारे में बाइबल कुछ नहीं बताती। यह सिर्फ इतना बताती है कि कैन ने “ज़मीन की उपज” में से कुछ भेंट चढ़ायी। आगे चलकर यहोवा ने मूसा के कानून में बताया कि इस तरह की भेंट उसे मंज़ूर है। (गिन. 15:8, 9) इस बात पर भी ध्यान दीजिए कि उस समय के हालात कैसे थे। उन दिनों वे सिर्फ साग-सब्ज़ियाँ खाया करते थे। (उत्प. 1:29) सब्ज़ियाँ उगाने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी होती थी, क्योंकि अदन के बाग के बाहर की ज़मीन शापित थी। (उत्प. 3:17-19) कैन ने खून-पसीना एक करके अपने गुज़ारे के लिए जो उगाया था, उसे परमेश्‍वर को भेंट चढ़ाया। फिर भी यहोवा ने उसकी भेंट मंज़ूर नहीं की।

7 तो क्या कैन ने सही तरीके से  भेंट नहीं चढ़ायी? क्या उसका तरीका यहोवा को मंज़ूर नहीं था? ऐसी बात नहीं है। कैन की भेंट ठुकराते वक्‍त यहोवा ने नहीं कहा कि उसका भेंट चढ़ाने का तरीका गलत है। दरअसल बाइबल में यह लिखा ही नहीं है कि कैन और हाबिल ने किस तरीके से भेंट चढ़ायी। तो फिर क्यों परमेश्‍वर ने उसकी भेंट ठुकरा दी?

कैन का इरादा सही नहीं था (पैराग्राफ 8, 9 देखें)

8, 9. (क) यहोवा ने क्यों कैन और उसकी भेंट को ठुकरा दिया? (ख) कैन और हाबिल के बारे में बाइबल में जो लिखा है, उसमें क्या बात आपको अच्छी लगी?

8 पौलुस ने इब्रानियों किताब में जो लिखा उससे पता चलता है कि कैन ने सही इरादे से  भेंट नहीं चढ़ायी। उसे परमेश्‍वर पर विश्‍वास नहीं था। (इब्रा. 11:4; 1 यूह. 3:11, 12) इसलिए परमेश्‍वर ने कैन की भेंट के साथ-साथ उसे भी ठुकरा दिया। (उत्प. 4:5-8) यहोवा ने एक पिता की तरह कैन को सुधारने की कोशिश की। उसने मानो प्यार से उस पर हाथ रखकर उसे समझाया मगर उसने यहोवा का हाथ झटक दिया। कैन के दिल में ‘दुश्‍मनी, तकरार और जलन’ ने घर कर लिया था। (गला. 5:19, 20) उसका दिल अच्छा नहीं था, इसलिए भले ही उसने सिर्फ यहोवा को  भेंट चढ़ायी, उसकी भेंट बहुत बढ़िया  थी और उसने सही तरीके से  चढ़ायी, फिर भी यहोवा ने उसकी भेंट ठुकरा दी। कैन की बुरी मिसाल से हमें सबक मिलता है कि शुद्ध उपासना का मतलब सिर्फ बाहरी दिखावा नहीं है, हमारा इरादा सही होना चाहिए।

9 बाइबल कैन के बारे में बहुत कुछ बताती है। जैसे यह कि यहोवा ने उससे क्या कहा और उसने यहोवा को क्या जवाब दिया। बाइबल में उसके बच्चों के नाम भी लिखे हैं और यह भी कि उन्होंने क्या-क्या किया था। (उत्प. 4:17-24) लेकिन हाबिल की कही एक भी बात बाइबल में दर्ज़ नहीं है, न ही कहीं यह लिखा है कि उसके बच्चे थे भी कि नहीं। फिर भी हाबिल से आज हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। वह कैसे?

शुद्ध उपासना करने में हाबिल ने एक मिसाल रखी

10. हाबिल ने शुद्ध उपासना करने में कैसे एक अच्छी मिसाल रखी?

10 हाबिल ने अपनी भेंट यहोवा को चढ़ायी, क्योंकि वह जानता था कि सिर्फ यहोवा की  उपासना की जानी चाहिए। उसकी भेंट सबसे बढ़िया  थी, क्योंकि उसने ‘अपनी भेड़ों में से पहलौठे मेम्ने’ अर्पित किए थे। हालाँकि बाइबल यह नहीं बताती कि उसने अपनी भेंट किसी वेदी पर चढ़ायी थी या नहीं, लेकिन उसने ज़रूर सही तरीके से  भेंट चढ़ायी होगी। फिर भी हाबिल की भेंट के बारे में सबसे खास बात यह है कि उसने सही इरादे से  भेंट चढ़ायी थी। इसीलिए आज 6,000 साल बाद भी हम उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। हाबिल ने यहोवा पर विश्‍वास करने और उसके नेक स्तरों को मानने की वजह से भेंट चढ़ायी थी। यह हम कैसे कह सकते हैं?

हाबिल ने उन चार खास बातों का ध्यान रखा जो शुद्ध उपासना के लिए ज़रूरी हैं (पैराग्राफ 10 देखें)

11. यीशु हाबिल को एक नेक इंसान क्यों कह सका?

11 आइए सबसे पहले गौर करें कि यीशु ने हाबिल के बारे में क्या कहा। यीशु उसे अच्छी तरह जानता था, क्योंकि उसने स्वर्ग से उसे देखा था। उसे आदम के इस बेटे में खास रुचि थी। (नीति. 8:22, 30, 31; यूह. 8:58; कुलु. 1:15, 16) उसने हाबिल को एक नेक इंसान कहा, क्योंकि उसने स्वर्ग से हाबिल को नेक काम करते देखा था। (मत्ती 23:35) एक नेक इंसान वह होता है जो मानता है कि सही-गलत के स्तर ठहराने का हक यहोवा को है। वह उन स्तरों पर चलता भी है और यह उसकी बातों और कामों से ज़ाहिर होता है। (लूका 1:5, 6 से तुलना करें।) नेक इंसान होने का नाम कमाने में समय लगता है। इसका मतलब परमेश्‍वर को भेंट चढ़ाने से पहले ही हाबिल ने उसके नेक स्तरों पर चलकर एक अच्छा नाम कमाया था। यहोवा के स्तरों पर चलना हाबिल के लिए बहुत मुश्‍किल रहा होगा। एक तो उसका बड़ा भाई कैन उसके लिए अच्छी मिसाल नहीं था। कैन के दिल में दुष्टता भरी थी। (1 यूह. 3:12) हाबिल की माँ ने भी यहोवा की आज्ञा तोड़ दी थी और पिता यहोवा से बगावत कर चुका था। आदम खुद फैसला करना चाहता था कि उसके लिए अच्छा क्या है और बुरा क्या। (उत्प. 2:16, 17; 3:6) एक ऐसे परिवार में रहते हुए, जहाँ कोई सही राह पर नहीं चलता था, हाबिल को सही काम करने के लिए कितनी हिम्मत की ज़रूरत पड़ी होगी!

12. कैन और हाबिल में खास तौर से क्या फर्क था?

12 अब आइए देखें कि प्रेषित पौलुस ने कैसे बताया कि विश्‍वास और नेकी के बीच गहरा नाता है। उसने लिखा, “विश्‍वास ही से हाबिल ने परमेश्‍वर को ऐसा बलिदान चढ़ाया जो कैन के बलिदान से श्रेष्ठ था। और इसी विश्‍वास की वजह से उसे गवाही दी गयी कि वह नेक है।” (इब्रा. 11:4) पौलुस की बातों से पता चलता है कि हाबिल कैन की तरह नहीं था। उसे सारी ज़िंदगी यहोवा पर विश्‍वास था और भरोसा था कि उसके स्तर और उसके काम हमेशा सही होते हैं।

13. हाबिल की मिसाल से हम क्या सीखते हैं?

13 हाबिल की मिसाल से हम सीखते हैं कि सिर्फ ऐसे इंसान की उपासना शुद्ध हो सकती है जिसके दिल के इरादे शुद्ध हों यानी जो पूरे दिल से यहोवा पर विश्‍वास करता हो और मानता हो कि उसके स्तर बिलकुल सही हैं। हम यह भी सीखते हैं कि भक्‍ति का सिर्फ एक काम करना काफी नहीं है। शुद्ध उपासना में यह बात मायने रखती है कि हमारे जीने का तरीका और हमारा चालचलन कैसा है।

हाबिल की मिसाल पर कुलपिता चले

14. यहोवा ने नूह, अब्राहम और याकूब की भेंट क्यों स्वीकार की?

14 अपरिपूर्ण इंसानों में हाबिल पहला शख्स था जिसने यहोवा की शुद्ध उपासना की। बाद में और भी कई लोगों ने शुद्ध उपासना की। पौलुस ने ऐसे कुछ लोगों के बारे में बताया जैसे कुलपिता नूह, अब्राहम और याकूब। (इब्रानियों 11:7, 8, 17-21 पढ़िए।) इन सबने यहोवा को बलिदान चढ़ाए। यहोवा ने उनका बलिदान इसलिए मंज़ूर किया, क्योंकि उन्होंने न सिर्फ यहोवा को बलि चढ़ायी बल्कि उन सारी बातों का भी ध्यान रखा जिनसे उनकी उपासना मंज़ूर हो। आइए जानें कैसे।

नूह के बलिदानों से सबको एक अहम सीख मिली (पैराग्राफ 15, 16 देखें)

15, 16. नूह ने कैसे उन चार अहम बातों का ध्यान रखा जो शुद्ध उपासना के लिए ज़रूरी हैं?

15 नूह का जन्म आदम की मौत के 126 साल बाद हुआ था। तब तक चारों तरफ झूठी उपासना फैल चुकी थी। * (उत्प. 6:11) जलप्रलय से पहले धरती पर जितने भी परिवार थे, उनमें से सिर्फ नूह और उसका परिवार सही तरीके से यहोवा की सेवा करता था। (2 पत. 2:5) जलप्रलय से बचने के बाद नूह ने एक वेदी बनायी और यहोवा को बलिदान अर्पित किया। बाइबल के इसी ब्यौरे में पहली बार वेदी का ज़िक्र आता है। यहोवा को दिल से भेंट चढ़ाकर नूह ने अपने परिवार को और आनेवाली पीढ़ियों को यह सीख दी कि सिर्फ यहोवा की  उपासना की जानी चाहिए। उसने कुछ ‘शुद्ध जानवर और पंछी’ लिए और उनकी बलि चढ़ायी। (उत्प. 8:20) उसकी भेंट सबसे बढ़िया  थी, क्योंकि यहोवा ने ही इन जानवरों को शुद्ध कहा था।—उत्प. 7:2.

16 नूह ने वेदी पर यहोवा के लिए होम-बलि चढ़ायी। क्या यह उपासना करने का सही तरीका  था? जी हाँ। बाइबल कहती है कि यहोवा इन बलिदानों की सुगंध पाकर खुश हुआ। फिर उसने नूह और उसके बेटों को आशीर्वाद दिया। (उत्प. 8:21; 9:1) यहोवा ने उसकी भेंट क्यों स्वीकार की? इसकी सबसे खास वजह यह थी कि नूह ने सही इरादे से  भेंट चढ़ायी। ये बलिदान चढ़ाकर उसने एक बार फिर अपने विश्‍वास का सबूत दिया। उसे पूरा विश्‍वास था कि यहोवा के स्तर और उसके काम हमेशा सही होते हैं। नूह ने सारी ज़िंदगी यहोवा की आज्ञा मानी और वह उसके स्तरों पर चला। वह “सच्चे परमेश्‍वर के साथ-साथ चलता रहा।” इसीलिए वह एक नेक इंसान कहलाया।—उत्प. 6:9; यहे. 14:14; इब्रा. 11:7.

17, 18. अब्राहम ने कैसे उन चार अहम बातों का ध्यान रखा जो शुद्ध उपासना के लिए ज़रूरी हैं?

17 अब्राहम ऊर शहर में रहता था जहाँ हर कहीं झूठी उपासना होती थी। वहाँ चंद्र देवता नन्‍ना के लिए एक विशाल मंदिर बना था। * एक समय पर अब्राहम का पिता भी झूठे देवताओं को पूजता था। (यहो. 24:2) मगर अब्राहम ने यहोवा की उपासना करने का फैसला किया। उसने शायद अपने पूर्वज शेम से सच्चे परमेश्‍वर के बारे में सीखा था। शेम नूह के बेटों में से एक था। शेम और अब्राहम 150 साल साथ-साथ जीए थे।

18 अब्राहम एक लंबी ज़िंदगी जीया और उसने कई बार भेंट चढ़ायी। उसने हर बार यहोवा को भेंट चढ़ायी, क्योंकि वह जानता था कि सिर्फ यहोवा की  उपासना की जानी चाहिए। (उत्प. 12:8; 13:18; 15:8-10) अब्राहम ने हमेशा सबसे बढ़िया  भेंट चढ़ायी। यह हम पूरे यकीन के साथ कह सकते हैं, क्योंकि एक बार वह अपने प्यारे बेटे इसहाक की बलि चढ़ाने को भी तैयार हो गया था। इस मौके पर यहोवा ने उसे बलि चढ़ाने का सही तरीका  भी बताया। (उत्प. 22:1, 2) अब्राहम ने यहोवा का हर निर्देश माना। वह अपने बेटे की बलि चढ़ाने ही वाला था कि यहोवा ने उसे रोक दिया। (उत्प. 22:9-12) यहोवा ने अब्राहम की उपासना स्वीकार की, क्योंकि वह हमेशा सही इरादे से  भेंट चढ़ाता था। पौलुस ने लिखा, “अब्राहम ने यहोवा पर विश्‍वास किया और इस वजह से उसे नेक समझा गया।”—रोमि. 4:3.

याकूब ने अपने परिवार के लिए एक अच्छी मिसाल रखी (पैराग्राफ 19, 20 देखें)

19, 20. याकूब ने कैसे उन चार अहम बातों का ध्यान रखा जो शुद्ध उपासना के लिए ज़रूरी हैं?

19 याकूब अपनी ज़िंदगी के ज़्यादातर साल कनान में रहा। यहोवा ने वादा किया था कि वह अब्राहम और उसके वंशजों को वह देश देगा। (उत्प. 17:1, 8) उस देश के लोगों की उपासना इतनी घिनौनी थी कि यहोवा ने कहा कि “उन्हें उस देश से खदेड़ दिया जाएगा।” (लैव्य. 18:24, 25) जब याकूब 77 साल का हुआ तो वह कनान छोड़कर चला गया, फिर उसने शादी की और अपने बड़े घराने के साथ वापस कनान लौटा। (उत्प. 28:1, 2; 33:18) कनान लौटने से पहले उसके परिवार के कुछ लोगों पर झूठी उपासना का असर पड़ चुका था। मगर जब यहोवा ने याकूब से कहा था कि वह कनान देश के बेतेल जाए और वहाँ उसके लिए एक वेदी बनाए, तो उसने तुरंत कदम उठाया। पहले उसने अपने परिवार से कहा, “तुम्हारे पास झूठे देवताओं की जितनी भी मूर्तियाँ हैं, उन्हें निकालो और खुद को शुद्ध करो।” फिर उसने यहोवा की हिदायतें मानीं।​​—उत्प. 35:1-7.

20 याकूब ने कनान लौटने के बाद वहाँ बहुत-सी वेदियाँ बनायीं। उसने हर बार यहोवा को ही बलिदान चढ़ाए, क्योंकि वह जानता था कि सिर्फ यहोवा की  उपासना की जानी चाहिए। (उत्प. 35:14; 46:1) वह सबसे बढ़िया  भेंट चढ़ाता था और हमेशा सही तरीके से  और सही इरादे से  यहोवा की उपासना करता था। इसीलिए बाइबल कहती है कि याकूब एक “निर्दोष” इंसान था, ऐसा इंसान जिसे परमेश्‍वर ने मंज़ूर किया था। (उत्प. 25:27, फु.) उसने सारी ज़िंदगी अपने वंशजों के लिए यानी इसराएल राष्ट्र के लिए एक बढ़िया मिसाल रखी।—उत्प. 35:9-12.

21. हम कुलपिताओं से शुद्ध उपासना के बारे में क्या सीखते हैं?

21 शुद्ध उपासना के मामले में हम कुलपिताओं से क्या सीखते हैं? उनकी तरह हम भी ऐसे लोगों के बीच रहते हैं जो शुद्ध उपासना से हमारा ध्यान भटका सकते हैं। अगर हम उनके बहकावे में आ जाएँ, तो हम तन-मन से यहोवा की भक्‍ति नहीं कर पाएँगे। हो सकता है हमारे परिवार के कुछ लोग भी हमारा ध्यान भटका दें। हमें यहोवा पर अपना विश्‍वास मज़बूत करना चाहिए और पूरा यकीन होना चाहिए कि उसके स्तर हमेशा सही होते हैं। तब हम दूसरों के दबाव में नहीं आएँगे। यहोवा पर मज़बूत विश्‍वास होने से हम उसकी आज्ञा मानेंगे और अपना समय, अपनी ताकत और अपने साधन उसकी सेवा में लगाएँगे। (मत्ती 22:37-40; 1 कुरिं. 10:31) यह कितनी खुशी की बात है कि जब हम यहोवा के बताए तरीके से और सही इरादे से उसकी उपासना करते हैं और अपना भरसक करते हैं, तो वह हमें नेक समझता है!—याकूब 2:18-24 पढ़िए।

शुद्ध उपासना के लिए समर्पित राष्ट्र

22-24. कानून में कैसे बताया गया कि सिर्फ यहोवा की उपासना की जाए, सबसे बढ़िया बलिदान दिए जाएँ और सही तरीके से उपासना की जाए?

22 यहोवा ने याकूब के वंशजों को कानून दिया ताकि उन्हें पता रहे कि वह उनसे क्या चाहता है। अगर वे यहोवा की आज्ञा मानते, तो वे उसकी “खास जागीर” और “एक पवित्र राष्ट्र” बनते। (निर्ग. 19:5, 6) गौर कीजिए कि कानून में कैसे उन चार खास बातों पर ज़ोर दिया गया जो शुद्ध उपासना के लिए ज़रूरी हैं।

23 इसराएलियों को साफ-साफ बताया गया था कि उन्हें सिर्फ यहोवा की  उपासना करनी चाहिए। यहोवा ने उनसे कहा, “मेरे सिवा तुम्हारा कोई और ईश्‍वर न हो।” (निर्ग. 20:3-5) वे यहोवा को जो भी बलिदान चढ़ाते, वे सबसे बढ़िया  बलिदान होने चाहिए थे। मिसाल के लिए अगर एक इसराएली जानवर का बलिदान चढ़ाता, तो उसे ध्यान रखना था कि वह जानवर अच्छा हो और उसमें कोई खराबी न हो। (लैव्य. 1:3; व्यव. 15:21; कृपया मलाकी 1:6-8 से तुलना करें।) हालाँकि यहोवा को दी गयी भेंट में से कुछ लेवियों को दिया जाता था, मगर हर लेवी को भी कुछ भेंट अर्पित करनी होती थी। उन्हें यहोवा को अर्पित “सबसे बढ़िया भेंट” में से जो हिस्सा मिलता, उसी में से कुछ भेंट उन्हें यहोवा को देनी होती थी। (गिन. 18:29) जहाँ तक सही तरीके से  उपासना करने की बात है, इसराएलियों को साफ-साफ बताया गया था कि उन्हें यहोवा के लिए क्या बलिदान चढ़ाना है, कैसे चढ़ाना है और कहाँ चढ़ाना है। उन्हें कैसी ज़िंदगी जीनी चाहिए, इस बारे में उन्हें 600 से ज़्यादा नियम दिए गए थे और उनसे कहा गया था, “तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा ने तुम्हें जो-जो आज्ञा दी है, उसका तुम सख्ती से पालन करना। तुम न दाएँ मुड़ना न बाएँ।”—व्यव. 5:32.

24 क्या यह बात मायने रखती थी कि इसराएली कहाँ बलिदान चढ़ाते? बिलकुल। यहोवा ने उनसे एक पवित्र डेरा बनाने के लिए कहा ताकि वह शुद्ध उपासना की खास जगह हो। (निर्ग. 40:1-3, 29, 34) उन दिनों इसराएलियों को अपनी भेंट पवित्र डेरे पर लानी होती थी, तभी परमेश्‍वर उसे स्वीकार करता। *व्यव. 12:17, 18.

25. क्या बात सबसे ज़्यादा मायने रखती थी? समझाइए।

25 मगर इससे भी ज़्यादा यह बात मायने रखती थी कि एक इसराएली सही इरादे से  बलिदान चढ़ाए। उसके दिल में यहोवा और उसके स्तरों के लिए गहरा लगाव होना था। (व्यवस्थाविवरण 6:4-6 पढ़िए।) जब इसराएली बस खानापूर्ति के लिए उपासना करते, तो यहोवा उनकी भेंट स्वीकार नहीं करता था। (यशा. 1:10-13) भविष्यवक्‍ता यशायाह के ज़रिए यहोवा ने बताया कि भक्‍ति का दिखावा करके उसे धोखा नहीं दिया जा सकता। उसने कहा, ‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं, मगर इनका दिल मुझसे कोसों दूर रहता है।’—यशा. 29:13.

मंदिर में उपासना

26. सुलैमान का मंदिर पहले किस बात के लिए जाना जाता था?

26 वादा किए गए देश में इसराएलियों के बसने के 400 साल बाद राजा सुलैमान ने एक मंदिर बनाया ताकि वह शुद्ध उपासना की खास जगह हो। यह मंदिर पवित्र डेरे से कहीं ज़्यादा आलीशान था। (1 राजा 7:51; 2 इति. 3:1, 6, 7) मंदिर में पहले सिर्फ यहोवा की  उपासना की जाती थी। मंदिर के समर्पण के समय सुलैमान और उसकी प्रजा ने यहोवा को हज़ारों की तादाद में बढ़िया  बलिदान चढ़ाए। वे सभी बलिदान परमेश्‍वर के कानून के मुताबिक सही तरीके से  अर्पित किए गए। (1 राजा 8:63) यहोवा ने उनकी उपासना स्वीकार की। मगर इसकी वजह यह नहीं थी कि मंदिर को बनाने में बहुत पैसे लगे थे और हज़ारों की तादाद में भेंट चढ़ायी गयी थी। इसकी वजह यह थी कि उन लोगों ने सही इरादे से  यहोवा को भेंट चढ़ायी थी। मंदिर के समर्पण के समय सुलैमान ने भी इसी बात पर ज़ोर दिया कि यहोवा की उपासना सही इरादे से करना ज़रूरी है। उसने कहा, “जैसे आज तुम्हारा दिल पूरी तरह हमारे परमेश्‍वर यहोवा पर लगा है उसी तरह हमेशा लगा रहे और तुम सब उसके कायदे-कानून और उसकी आज्ञाएँ मानते रहना।”—1 राजा 8:57-61.

27. (क) इसराएल के राजाओं और उनकी प्रजा ने क्या किया? (ख) यहोवा ने क्या किया?

27 दुख की बात है कि राजा सुलैमान की सलाह पर इसराएली ज़्यादा समय तक नहीं चले। उन्होंने उन अहम बातों का ध्यान नहीं रखा जो शुद्ध उपासना के लिए बेहद ज़रूरी होती हैं। इसराएल के राजाओं का और उनकी प्रजा का मन भ्रष्ट हो गया, उन्होंने यहोवा पर विश्‍वास करना और उसके नेक स्तरों को मानना छोड़ दिया। यहोवा ने कई बार उनके पास भविष्यवक्‍ताओं को भेजा ताकि वे उनकी सोच सुधारें और उन्हें बताएँ कि अगर वे न बदलें, तो उन्हें क्या अंजाम भुगतने पड़ेंगे। (यिर्म. 7:13-15, 23-26) ऐसा ही एक जाना-माना और वफादार भविष्यवक्‍ता था यहेजकेल। उसके ज़माने में शुद्ध उपासना बस नाम के लिए की जाती थी।

यहेजकेल ने शुद्ध उपासना को भ्रष्ट होते देखा

28, 29. हम यहेजकेल के बारे में क्या जानते हैं? (यह बक्स देखें: “यहेजकेल—उसकी ज़िंदगी और उसका ज़माना।”)

28 सुलैमान के मंदिर में होनेवाली उपासना से यहेजकेल अच्छी तरह वाकिफ था। उसका पिता एक याजक था और वह अपनी बारी आने पर मंदिर में सेवा करता होगा। (यहे. 1:3) यहेजकेल का बचपन शायद अच्छा गुज़रा था। उसके पिता ने उसे यहोवा और उसके नियमों के बारे में सिखाया होगा। जब यहेजकेल करीब एक साल का था, तब यहोवा के मंदिर में “कानून की किताब” मिली। * उस समय भले राजा योशियाह का राज चल रहा था। जब योशियाह ने कानून की किताब में लिखी बातें सुनीं, तो उस पर इतना गहरा असर हुआ कि उसने और भी जोश से शुद्ध उपासना को बढ़ावा दिया।—2 राजा 22:8-13.

यहेजकेल के पिता ने उसे यहोवा और उसके कानून के बारे में सिखाया होगा (पैराग्राफ 28 देखें)

29 यहेजकेल ने अपने ज़माने से पहले के वफादार लोगों की तरह उन चार बातों का ध्यान रखा जो शुद्ध उपासना के लिए ज़रूरी हैं। यहेजकेल किताब पढ़ने से हम जान पाते हैं कि उसने सिर्फ यहोवा की उपासना की, जी-जान से उसकी सेवा की, यहोवा की हर आज्ञा मानी और वह भी उसी तरीके से जैसे यहोवा ने चाहा था। यहेजकेल ने यह सब इसलिए किया, क्योंकि वह दिल से यहोवा पर विश्‍वास करता था। उसके ज़माने के ज़्यादातर लोगों ने ऐसा नहीं किया था। यहेजकेल बचपन से यिर्मयाह की भविष्यवाणियाँ सुनता आया था। यिर्मयाह ने ईसा पूर्व 647 में भविष्यवाणी करनी शुरू की और ऐलान किया कि यहोवा जल्द ही इसराएलियों को दंड देनेवाला है।

30. (क) यहेजकेल की भविष्यवाणियों से हम क्या जान सकते हैं? (ख) भविष्यवाणी क्या होती है? यहेजकेल की भविष्यवाणियों का क्या-क्या मतलब हो सकता है? (यह बक्स देखें: “यहेजकेल की भविष्यवाणियों की समझ।”)

30 यहेजकेल ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से जो किताब लिखी, वह बताती है कि परमेश्‍वर के लोग उससे कितने दूर चले गए थे। (यहेजकेल 8:6 पढ़िए।) यही वजह थी कि यहोवा ने उन्हें सज़ा दी और बैबिलोन की बँधुआई में भेज दिया। उनमें से जिन लोगों को सबसे पहले बंदी बनाकर बैबिलोन ले जाया गया, उनमें यहेजकेल भी था। (2 राजा 24:11-17) लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसे सज़ा मिल रही थी। यह हम कैसे कह सकते हैं? उसे बँधुआई में रहनेवालों के बीच रहकर यहोवा का दिया काम करना था। यहेजकेल ने अपनी किताब में जो रोमांचक दर्शन और भविष्यवाणियाँ दर्ज़ कीं, उनसे ज़ाहिर हुआ कि यरूशलेम में शुद्ध उपासना दोबारा कैसे शुरू की जाएगी। उनसे यह भी ज़ाहिर हुआ कि आगे चलकर कैसे पूरी धरती पर यहोवा से प्यार करनेवाले शुद्ध उपासना करेंगे।

31. इस किताब से हम क्या जानेंगे?

31 इस किताब के आनेवाले अध्यायों में हमें स्वर्ग की एक झलक मिलेगी जहाँ यहोवा निवास करता है, हम जानेंगे कि बीते वक्‍त में शुद्ध उपासना किस हद तक दूषित हो गयी थी, कैसे यहोवा ने शुद्ध उपासना बहाल की और अपने लोगों की रक्षा की और कैसे भविष्य में दुनिया का हर इंसान सिर्फ यहोवा की उपासना करेगा। अगले अध्याय में हम यहेजकेल के बताए पहले दर्शन पर गौर करेंगे। इससे हमारे दिलो-दिमाग पर यहोवा की महानता की गहरी छाप पड़ेगी और उसके संगठन का जो हिस्सा स्वर्ग में है, उसे हम मन की आँखों से देख पाएँगे। तब हम यह बात और अच्छी तरह समझ पाएँगे कि सिर्फ यहोवा की उपासना क्यों की जानी चाहिए।

^ पैरा. 4 हाबिल का जन्म शायद आदम और हव्वा के अदन से बाहर आने के कुछ ही समय बाद हुआ था। (उत्प. 4:1, 2) उत्पत्ति 4:25 कहता है कि परमेश्‍वर ने “हाबिल की जगह” शेत दिया। हाबिल की हत्या के बाद जब शेत का जन्म हुआ, तब आदम 130 साल का था। (उत्प. 5:3) इसलिए हम कह सकते हैं कि हाबिल की मौत करीब 100 साल की उम्र में हुई होगी।

^ पैरा. 15 उत्पत्ति 4:26 बताता है कि आदम के परपोते एनोश के दिनों में “लोगों ने यहोवा का नाम पुकारना शुरू किया।” वे शायद यहोवा की बेइज़्ज़ती करने के लिए उसका नाम पुकारते थे। हो सकता है उन्होंने अपनी मूर्तियों का नाम यहोवा रखा।

^ पैरा. 17 नन्‍ना देवता सीन नाम से भी जाना जाता था। हालाँकि ऊर के लोग कई देवताओं को पूजते थे, मगर उस शहर में खास तौर से नन्‍ना देवता के लिए मंदिर और वेदियाँ बनायी गयी थीं।

^ पैरा. 24 जब पवित्र डेरे से करार का संदूक निकाल दिया गया, तो इसके बाद शायद यहोवा उन बलिदानों को भी स्वीकार करने लगा जो पवित्र डेरे के बजाय दूसरी जगहों पर अर्पित किए जाते थे।—1 शमू. 4:3, 11; 7:7-9; 10:8; 11:14, 15; 16:4, 5; 1 इति. 21:26-30.

^ पैरा. 28 ई.पू. 613 में जब यहेजकेल ने भविष्यवाणी करनी शुरू की, तब वह शायद 30 साल का था। इसका मतलब, उसका जन्म करीब ई.पू. 643 में हुआ होगा। (यहे. 1:1) योशियाह ने ई.पू. 659 में राज करना शुरू किया। उसके राज के करीब 18वें साल में यानी करीब ई.पू. 642-641 में कानून की किताब मिली। शायद वह मूसा की लिखी किताब थी।