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यहेजकेल किताब की एक झलक

यहेजकेल किताब की एक झलक

यहेजकेल किताब को इन भागों में बाँटा जा सकता है:

अध्याय 1 से 3

यहेजकेल यहूदियों के साथ बैबिलोन में बंदी है। यहोवा उसे ई.पू. 613 में कुछ दर्शन दिखाता है और उसे कबार नदी के पास रहनेवाले यहूदियों को भविष्यवाणी सुनाने का काम सौंपता है।

अध्याय 4 से 24

ई.पू. 613 से 609 के दौरान यहेजकेल यरूशलेम और उसके लोगों के बारे में कुछ भविष्यवाणियाँ सुनाता है जो बगावती हो गए हैं और मूर्तिपूजा करने लगे हैं। वह खास तौर से उन्हें दंड की भविष्यवाणियाँ सुनाता है।

अध्याय 25 से 32

ई.पू. 609 में बैबिलोन यरूशलेम की आखिरी घेराबंदी शुरू करता है। इस साल से यहेजकेल यरूशलेम के बारे में भविष्यवाणी करना छोड़कर इसराएल के आस-पास के दुश्‍मन राष्ट्रों के बारे में दंड की भविष्यवाणी सुनाता है। ये राष्ट्र हैं अम्मोन, एदोम, मिस्र, मोआब, पलिश्‍त, सीदोन और सोर।

अध्याय 33 से 48

ई.पू. 606 से यरूशलेम और उसका मंदिर, जो कि बैबिलोन से सैकड़ों किलोमीटर दूर हैं, खंडहर बनकर रह जाते हैं। यहेजकेल आशा का संदेश सुनाता है कि यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल की जाएगी।

यहेजकेल किताब में घटनाओं का ब्यौरा क्रम में और विषय के मुताबिक है। पहले यरूशलेम और उसके मंदिर के नाश के बारे में और उसके बाद शुद्ध उपासना की बहाली के बारे में भविष्यवाणियाँ की गयी हैं। यह क्रम बिलकुल सही है, क्योंकि मंदिर में शुद्ध उपासना बंद होने की वजह से ही बाद में उसके दोबारा शुरू होने की भविष्यवाणियाँ की गयीं।

दुश्‍मन राष्ट्रों को सुनायी गयी भविष्यवाणियों (अध्याय 25 से 32) का ज़िक्र यरूशलेम के नाश की भविष्यवाणियों के बाद और शुद्ध उपासना की बहाली की भविष्यवाणियों से पहले है। एक विद्वान कहता है, “यहेजकेल ने पहले भविष्यवाणी की कि परमेश्‍वर का क्रोध कैसे उसके लोगों पर भड़केगा। फिर उसने बताया कि दूसरे राष्ट्रों को दंड कैसे दिया जाएगा और आखिर में बताया कि यहोवा अपने लोगों पर कैसे दया करेगा। यह क्रम बिलकुल सही है, क्योंकि अपने लोगों पर दया करके उन्हें छुड़ाने के लिए पहले यह ज़रूरी था कि परमेश्‍वर उनके दुश्‍मनों को सज़ा दे।”

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