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यहेजकेल के दर्शन के मंदिर से मिलनेवाली सीख

यहेजकेल के दर्शन के मंदिर से मिलनेवाली सीख

शुद्ध उपासना बुलंद हुई और दूषित होने से बचायी गयी

दर्शन में मंदिर “एक बहुत ऊँचे पहाड़” (1) पर बुलंद किया गया था। क्या हमने भी शुद्ध उपासना को बुलंद किया है, उसे अपनी ज़िंदगी में सबसे पहली जगह दी है?

मंदिर चारों तरफ की दीवार (2) से घिरा हुआ था। मंदिर एक बहुत बड़ी खुली जगह (3) के बीचों-बीच था। इनसे हमें क्या सीख मिलती है? यही कि हमें सावधान रहना है कि कोई भी बात हमारी उपासना को दूषित न कर दे। जब रोज़मर्रा की “आम” बातों को भी शुद्ध उपासना से दूर रखने के लिए कहा गया है, तो सोचिए कि हमें अशुद्ध या अनैतिक चालचलन से कितना दूर रहना चाहिए!​—यहे. 42:20.

हमेशा के लिए आशीषें

मंदिर के पवित्र-स्थान से पानी की एक धारा हलकी-हलकी बहती है। यह आगे चलकर एक गहरी नदी (4) बन जाती है जो देश में जीवन लाती है और ज़मीन को उपजाऊ बनाती है। इन आशीषों के बारे में अध्याय 19 में चर्चा की जाएगी।

सबके लिए एक-जैसे स्तर

ऊँचे-ऊँचे बाहरी दरवाज़ों (5) और भीतरी दरवाज़ों (9) पर ध्यान देने से हम क्या सीखते हैं? शुद्ध उपासना करनेवाले सब लोगों के लिए यहोवा ने चालचलन के मामले में ऊँचे स्तर ठहराए हैं। गौर कीजिए कि बाहरी और भीतरी दरवाज़ों की नाप एक-जैसी है। इससे हम सीखते हैं कि यहोवा ने अपने सभी सेवकों के लिए एक-जैसे स्तर ठहराए हैं, फिर चाहे वे ज़िम्मेदारी के किसी भी पद पर हों या किसी भी रूप में सेवा करते हों।

यहोवा की मेज़ पर भोज

भोजन के कमरे (8) हमें याद दिलाते हैं कि पुराने ज़माने में लोग मंदिर में जो बलिदान लाते थे, उनमें से कुछ बलिदानों के हिस्से वे भी खा सकते थे। ऐसा करके वे मानो यहोवा के साथ मिलकर भोज करते थे। आज हम जिस लाक्षणिक मंदिर में सेवा करते हैं वहाँ हम बलिदान नहीं चढ़ाते, क्योंकि ‘एक बलिदान’ चढ़ाया जा चुका है। (इब्रा. 10:12) मगर हम तारीफ के बलिदान ज़रूर चढ़ाते हैं।​—इब्रा. 13:15.

परमेश्‍वर का पक्का वादा

मंदिर के नाप की जो बारीक जानकारी दी गयी है, उसकी हर बात समझना शायद हमें बहुत मुश्‍किल लगे। मगर इस जानकारी से हम एक अहम बात सीखते हैं। वह यह कि यहोवा का यह वादा पक्का है कि शुद्ध उपासना बहाल होगी, ठीक जैसे मंदिर का माप पक्का था और बदला नहीं जा सकता था। यहेजकेल ने मंदिर में इंसानों को देखने का कहीं ज़िक्र नहीं किया है। मगर उसने यह ज़रूर लिखा कि यहोवा ने याजकों, प्रधानों और लोगों को कड़ी सलाह दी थी। इससे हम सीखते हैं कि परमेश्‍वर के सभी सेवकों को उसके नेक स्तरों पर चलना चाहिए।