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अध्याय 13

‘मंदिर का ब्यौरा दे’

‘मंदिर का ब्यौरा दे’

यहेजकेल 43:10

अध्याय किस बारे में है: महिमा से भरपूर मंदिर के दर्शन का मतलब

1-3. (क) एक विशाल और भव्य मंदिर का दर्शन पाकर यहेजकेल को क्यों दिलासा मिला होगा? (शुरूआती तसवीर देखें।) (ख) इस अध्याय में हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

 कल्पना कीजिए कि यहेजकेल अब 50 साल का हो गया है। उसने अपनी ज़िंदगी के 25 साल बँधुआई में गुज़ारे हैं। बरसों से यरूशलेम का मंदिर खंडहर पड़ा हुआ है। अगर यहेजकेल ने कभी सोचा होगा कि वह वहाँ लौटकर उस मंदिर में याजक के नाते सेवा करेगा, तो उसका सपना चूर-चूर हो गया होगा। यहूदियों को बँधुआई से छूटने में अभी और 56 साल लगते, इसलिए यहेजकेल जानता है कि वह जीते-जी कभी यहोवा के लोगों को अपने देश लौटते नहीं देख पाएगा। और मंदिर को दोबारा बनते हुए देखने के बारे में तो वह सोच भी नहीं सकता। (यिर्म. 25:11) ये बातें उसे बहुत परेशान करती होंगी और वह दुखी हो जाता होगा।

2 यहोवा की बड़ी कृपा थी कि उसने इस समय यहेजकेल को एक ऐसा दर्शन दिखाया जिससे उसे दिलासा मिला होगा और उसका हौसला बढ़ा होगा। इस दर्शन में यहेजकेल को बहुत कुछ दिखाया जाता है। उसे अपने देश ले जाया जाता है और एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर खड़ा किया जाता है। वहाँ उसकी मुलाकात एक ऐसे आदमी से होती है “जिसका रूप ताँबे जैसा था।” वह दरअसल एक स्वर्गदूत था। वह यहेजकेल को एक विशाल मंदिर का दौरा कराता है और वहाँ की एक-एक चीज़ दिखाता है। (यहेजकेल 40:1-4 पढ़िए।) दर्शन इतना असल था कि यहेजकेल को यह सब हकीकत लगा होगा। दर्शन से उसका विश्‍वास ज़रूर मज़बूत हुआ होगा। पर साथ ही वह दंग रह गया होगा और थोड़ी उलझन में पड़ गया होगा, क्योंकि यह मंदिर उस मंदिर जैसा नहीं था जो उसने बहुत पहले यरूशलेम में देखा था। यरूशलेम के उस मंदिर में और दर्शन के इस मंदिर में भले ही कुछ समानताएँ थीं, फिर भी यह मंदिर कई मायनों में हटकर था।

3 यहेजकेल किताब के आखिरी नौ अध्यायों में इस रोमांचक दर्शन की ब्यौरेदार जानकारी दी गयी है। लेकिन इस दर्शन की बातों का मतलब समझते वक्‍त हमारा रवैया कैसा होना चाहिए? यहेजकेल ने दर्शन में जो मंदिर देखा, क्या वह परमेश्‍वर के लाक्षणिक मंदिर को दर्शाता है जिसके बारे में पौलुस ने सदियों बाद बताया था? यह दर्शन यहेजकेल और उसके साथ बँधुआई में रहनेवालों के लिए क्या मायने रखता था? आइए एक-एक करके इन सवालों पर चर्चा करें।

हमारा रवैया कैसा होना चाहिए?

4. (क) मंदिर के दर्शन के बारे में पहले क्या बताया जाता था? (ख) क्या मानना सही लगता है?

4 पहले हमारे प्रकाशनों में बताया जाता था कि यहेजकेल ने जो मंदिर देखा, वह उस महान लाक्षणिक मंदिर को दर्शाता है जिसका ज़िक्र पौलुस ने इब्रानियों नाम की किताब में किया था। * इसलिए हम मानते थे कि यहेजकेल के दर्शन के मंदिर के कई हिस्सों का लाक्षणिक मतलब हो सकता है और पौलुस ने पवित्र डेरे के हिस्सों का जो लाक्षणिक मतलब समझाया, उसी के आधार पर यहेजकेल के बताए मंदिर के हिस्सों का लाक्षणिक मतलब समझा जा सकता है। लेकिन जब इस बारे में और भी गहराई से अध्ययन और मनन किया गया और प्रार्थना की गयी, तो देखा गया कि यहेजकेल के दर्शन का मंदिर लाक्षणिक मंदिर नहीं हो सकता।

5, 6. (क) पवित्र डेरे के बारे में समझाते वक्‍त पौलुस ने कैसे नम्रता का सबूत दिया? (ख) पवित्र डेरे की कुछ चीज़ों के बारे में उसने क्या कहा? (ग) दर्शन के मंदिर का मतलब समझते वक्‍त हम कैसे पौलुस की तरह नम्र हो सकते हैं?

5 यहेजकेल के दर्शन के मंदिर के हर हिस्से का लाक्षणिक मतलब निकालना सही नहीं होगा। ऐसा क्यों? एक दिलचस्प मिसाल पर गौर कीजिए। जब पौलुस ने पवित्र डेरे और लाक्षणिक मंदिर के बारे में समझाया, तो उसने पवित्र डेरे की कई चीज़ों का ज़िक्र किया। जैसे सोने का धूपदान, संदूक का ढकना और सोने का मर्तबान जिसमें मन्‍ना था। मगर क्या उसने इन सारी चीज़ों का लाक्षणिक मतलब बताया? नहीं। पवित्र शक्‍ति ने शायद उसे इन सबका मतलब बताने के लिए नहीं उभारा। पौलुस ने लिखा, “अभी इन सब चीज़ों का ब्यौरा नहीं दिया जा सकता।” (इब्रा. 9:4, 5) पौलुस पवित्र शक्‍ति के निर्देश को मानने और नम्रता से उस समय का इंतज़ार करने के लिए तैयार था जब यहोवा इन चीज़ों का मतलब ज़ाहिर करता।—इब्रा. 9:8.

6 इस दर्शन के मंदिर का मतलब समझते वक्‍त हमारा रवैया भी पौलुस जैसा होना चाहिए। इस मंदिर के बारे में काफी जानकारी दी गयी है पर इससे जुड़ी बातों का मतलब जानने के लिए अच्छा होगा कि हम यहोवा के समय का इंतज़ार करें। ज़रूरत पड़े तो यहोवा सही वक्‍त पर हमें इनका मतलब बताएगा। (मीका 7:7 पढ़िए।) तो क्या यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने इस दर्शन के बारे में अब तक कोई समझ नहीं दी है? ऐसी बात नहीं है।

क्या यहेजकेल के दर्शन का मंदिर लाक्षणिक मंदिर को दर्शाता है?

7, 8. (क) हमारी समझ में क्या बदलाव हुआ है? (ख) दर्शन का मंदिर लाक्षणिक मंदिर से कैसे अलग था?

7 जैसे पैराग्राफ 4 में बताया गया है, सालों से हमारे प्रकाशनों में यही समझाया गया कि यहेजकेल के दर्शन का मंदिर यहोवा के महान लाक्षणिक मंदिर को दर्शाता है, जिसका ज़िक्र पौलुस ने इब्रानियों के नाम खत में किया था। लेकिन इस बारे में गहराई से अध्ययन करने से पता चलता है कि दर्शन का वह मंदिर महान लाक्षणिक मंदिर नहीं हो सकता। यह हम कैसे कह सकते हैं?

8 एक वजह यह है कि यहेजकेल ने मंदिर का जो ब्यौरा दिया, वह उस लाक्षणिक मंदिर के ब्यौरे से मेल नहीं खाता जो पौलुस ने दिया था।  जैसे इस बात पर गौर कीजिए। पौलुस ने बताया कि मूसा के दिनों का पवित्र डेरा किसी ऐसी बात को दर्शाता है जो उस डेरे से भी महान है। पवित्र डेरे में एक “परम-पवित्र” भाग होता था, ठीक जैसे सुलैमान और जरुबाबेल के बनाए मंदिर में था। पौलुस ने कहा कि उस डेरे का परम-पवित्र भाग ‘इंसान के हाथ की बनायी पवित्र जगह’ थी और “असल की बस एक नकल” थी। तो फिर “असल” क्या है? पौलुस ने समझाया कि वह “स्वर्ग” है। (इब्रा. 9:3, 24) मगर जहाँ तक यहेजकेल की बात है, क्या उसने दर्शन में स्वर्ग देखा था? जी नहीं। उस दर्शन से ऐसा कोई सुराग नहीं मिलता कि उसने स्वर्ग की चीज़ें देखी थीं। *

9, 10. बलिदानों के मामले में दर्शन का मंदिर, लाक्षणिक मंदिर से कैसे अलग था?

9 यहेजकेल ने मंदिर के बारे में जो बताया और पौलुस ने जो बताया, उसमें एक और बड़ा फर्क है। इससे हमें यकीन होता है कि दर्शन का मंदिर लाक्षणिक मंदिर नहीं हो सकता। यह फर्क बलिदानों को लेकर है। यहेजकेल ने दर्शन में सुना था कि लोगों, मुखियाओं और याजकों को बलिदानों के बारे में ढेर सारी हिदायतें दी गयी थीं। उन्हें अपने पापों के लिए बलिदान चढ़ाने थे। उन्हें शांति-बलियाँ भी चढ़ानी थीं, जिनके कुछ हिस्से शायद वे मंदिर के भोजन के कमरों में खा सकते थे। (यहे. 43:18, 19; 44:11, 15, 27; 45:15-20, 22-25) मगर पौलुस ने जिस महान लाक्षणिक मंदिर की बात की, क्या उसमें बार-बार बलिदान चढ़ाए जाते हैं?

यहेजकेल के दर्शन का मंदिर महान लाक्षणिक मंदिर को नहीं दर्शाता

10 इसका जवाब बड़ा ही आसान है। पौलुस ने बताया, “जब मसीह महायाजक बनकर आया कि हमारे लिए वे बढ़िया आशीषें लाए जो हमें मिल चुकी हैं, तो वह ऐसे तंबू में दाखिल हुआ जो और भी श्रेष्ठ और परिपूर्ण है। यह तंबू इंसान के हाथ का बनाया हुआ नहीं है यानी इस धरती की सृष्टि का हिस्सा नहीं है। वह बकरों और बैलों का खून लेकर नहीं बल्कि खुद अपना खून लेकर हमेशा-हमेशा के लिए एक ही बार  पवित्र जगह में दाखिल हुआ और हमें सदा के लिए छुटकारा दिलाया।” (इब्रा. 9:11, 12) इससे पता चलता है कि महान लाक्षणिक मंदिर में सिर्फ एक बलिदान चढ़ाया गया और वह था, यीशु का फिरौती बलिदान। यह बलिदान सबसे बड़े महायाजक यीशु मसीह ने खुद चढ़ाया था। मगर यहेजकेल के दर्शन के मंदिर में बकरों और बैलों के कई बलिदानों का ज़िक्र है। इससे साफ पता चलता है कि उस दर्शन का मंदिर महान लाक्षणिक मंदिर को नहीं दर्शाता।

11. यहेजकेल के दिनों में लाक्षणिक मंदिर के बारे में बताने का समय क्यों नहीं आया था?

11 इससे हमें दूसरी वजह पता चलती है कि यहेजकेल ने जो देखा, वह महान लाक्षणिक मंदिर क्यों नहीं हो सकता। वह यह कि यहेजकेल के दिनों तक परमेश्‍वर का वह समय नहीं आया था कि वह लाक्षणिक मंदिर के बारे में सच्चाई ज़ाहिर करे।  याद रखिए कि यहेजकेल के दर्शन की बातें सबसे पहले बँधुआई में रहनेवाले यहूदियों को बतायी गयी थीं। उन पर मूसा का कानून लागू था। इसलिए बँधुआई से छूटने पर उन्हें यरूशलेम लौटना था और वहाँ दोबारा मंदिर और वेदी बनाकर मूसा के कानून के मुताबिक शुद्ध उपासना करनी थी। उन्हें वहाँ बलिदान भी चढ़ाने थे। वाकई ऐसा ही हुआ। वहाँ लौटने के बाद उन्होंने करीब 600 साल तक बलिदान चढ़ाए। अब ज़रा सोचिए, अगर यहेजकेल के दर्शन का मंदिर एक लाक्षणिक मंदिर को दर्शाता, तो उसके दिनों के यहूदियों पर इसका क्या असर होता? अगर उन्हें बताया जाता कि उस लाक्षणिक मंदिर में महायाजक अपने जीवन की बलि चढ़ाता है और सारे बलिदान रद्द कर देता है, तो वे इसका क्या मतलब समझते? क्या मूसा का कानून मानने का उनका इरादा कमज़ोर नहीं पड़ जाता? जैसा कि हम जानते हैं, यहोवा अपने लोगों को हमेशा सही वक्‍त पर सच्चाई की रौशनी देता है जब वे उसे समझने के काबिल होते हैं।

12-14. दर्शन के मंदिर और लाक्षणिक मंदिर के बारे में जो बताया गया है, वह कैसे एक-दूसरे से जुड़ा है? (यह बक्स देखें: “दो अलग मंदिर—उनसे मिलनेवाली सीख।”)

12 तो फिर यहेजकेल ने मंदिर का जो ब्यौरा दिया और पौलुस ने लाक्षणिक मंदिर के बारे में जो बताया, वह कैसे एक-दूसरे से जुड़ा है? याद रखिए कि पौलुस ने यहेजकेल के बताए मंदिर को ध्यान में रखकर नहीं, बल्कि पवित्र डेरे को ध्यान में रखकर लाक्षणिक मंदिर के बारे में समझाया था। यह सच है कि उसने ऐसी कई चीज़ों का ज़िक्र किया जो सुलैमान और जरुबाबेल के बनाए मंदिर में थीं और यहेजकेल के दर्शन के मंदिर में भी थीं। मगर मोटे तौर पर देखें, तो यहेजकेल और पौलुस ने दो अलग-अलग बातों पर ज़ोर दिया, एक ही बात नहीं बतायी। * यहेजकेल ने कुछ ऐसी जानकारी दी जो पौलुस ने नहीं दी और पौलुस ने कुछ ऐसी बातें बतायीं जो यहेजकेल ने नहीं बतायीं।

13 हम कह सकते हैं कि यहेजकेल और पौलुस ने जो बताया, वह इस तरह एक-दूसरे से जुड़ा है: पौलुस के ब्यौरे से हम सीखते हैं कि उपासना के बारे में यहोवा का इंतज़ाम  क्या है। और यहेजकेल के ब्यौरे से हम सीखते हैं कि उपासना के बारे में यहोवा के स्तर  क्या हैं। पौलुस ने शुद्ध उपासना के बारे में यहोवा का इंतज़ाम  समझाने के लिए पवित्र डेरे से जुड़ी कुछ बातों का मतलब बताया। जैसे यह कि महायाजक, बलिदान, वेदी और परम-पवित्र भाग किस बात को दर्शाते हैं। वहीं दूसरी तरफ यहेजकेल ने उस भव्य दर्शन की जो जानकारी दी, उससे हमारे मन में यह बात अच्छी तरह बैठ जाती है कि यहोवा के स्तर  बहुत ऊँचे हैं। हम उसके स्तरों के बारे में कई अहम बातें सीखते हैं।

14 यहेजकेल के दर्शन के बारे में हमें जो नयी समझ मिली है, उसका यह मतलब नहीं कि वह दर्शन हमारे लिए कोई खास मायने नहीं रखता। आज हम उस दर्शन से क्या सीख सकते हैं, यह जानने के लिए आइए देखें कि यहेजकेल के दिनों में और बाद में वफादार यहूदियों को इस दर्शन से क्या सीख मिली।

वह दर्शन यहूदियों के लिए क्या मायने रखता था?

15. (क) इस दर्शन के ज़रिए यहूदियों को कौन-सा खास संदेश दिया गया था? (ख) यहेजकेल अध्याय 8 और अध्याय 40-48 में क्या फर्क है?

15 बाइबल से इसका जवाब जानने के लिए आइए इससे जुड़े कुछ सवालों पर गौर करें। पहला सवाल, इस दर्शन के ज़रिए यहूदियों को कौन-सा खास संदेश दिया गया? चंद शब्दों में कहें तो यह कि शुद्ध उपासना बहाल की जाएगी। यहेजकेल भी यह बात अच्छी तरह समझ गया होगा। यहोवा ने उसे मंदिर का यह दर्शन दिखाने से कुछ समय पहले एक और दर्शन में दिखाया था कि यरूशलेम के मंदिर में कितने बुरे काम हो रहे थे। जब उसे मंदिर का दर्शन मिला, तब तक वह उन बुरे कामों के बारे में लिख भी चुका था। यह उसकी किताब के अध्याय 8 में दर्ज़ है। मगर अब मंदिर का दर्शन पाने के बाद उसे यह ब्यौरेदार जानकारी देते हुए कितनी खुशी हुई होगी कि शुद्ध उपासना बहाल होगी। इस बारे में यहेजकेल अध्याय 40 से 48 में लिखा है। इन अध्यायों में बताए दर्शन में यहेजकेल देखता है कि शुद्ध उपासना पहले की तरह भ्रष्ट नहीं हो रही है बल्कि उसी तरह की जा रही है जैसे की जानी चाहिए। दर्शन में एक नमूना दिखाया गया कि मूसा के कानून के मुताबिक यहोवा की उपासना कैसे की जानी चाहिए।

16. यहेजकेल के दर्शन ने यशायाह की बात को कैसे पुख्ता किया?

16 शुद्ध उपासना की बहाली के लिए यह ज़रूरी है कि इसे बुलंद किया जाए। यहेजकेल के ज़माने से सौ साल पहले भविष्यवक्‍ता यशायाह ने लिखा था, “आखिरी दिनों में, यहोवा के भवन का पर्वत, सब पहाड़ों के ऊपर बुलंद किया जाएगा और सभी पहाड़ियों से ऊँचा किया जाएगा।” (यशा. 2:2) यशायाह को इस बात की एक झलक मिली थी कि यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल होगी और उसे सबसे ज़्यादा अहमियत दी जाएगी, मानो उसे सबसे ऊँचे पहाड़ पर बुलंद किया जाएगा। याद कीजिए कि यहेजकेल के दर्शन में भी यहोवा का भवन “बहुत ऊँचे पहाड़ पर” था। (यहे. 40:2) इस तरह यहेजकेल के दर्शन ने यशायाह की बात को पुख्ता किया कि शुद्ध उपासना बहाल की जाएगी।

यहेजकेल ने जो मंदिर देखा, वह एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर था (पैराग्राफ 16 देखें)

17. यहेजकेल अध्याय 40-48 का निचोड़ बताइए।

17 आइए अध्याय 40 से 48 में बताए मंदिर की एक झलक देखें और जानें कि यहेजकेल ने क्या-क्या देखा और सुना। वह देखता है कि एक स्वर्गदूत मंदिर के चारों तरफ की दीवार और उसके दरवाज़ों और आँगनों को और पवित्र-स्थान को नाप रहा है। (यहे. 40-42) इसके बाद एक रोमांचक घटना घटती है: मंदिर में यहोवा का शानदार प्रवेश! फिर यहोवा अपने भटके हुए लोगों, याजकों और प्रधानों को अपने अंदर सुधार लाने के लिए सलाह देता है और कुछ हिदायतें भी देता है। (यहे. 43:1-12; 44:10-31; 45:9-12) यहेजकेल देखता है कि पवित्र-स्थान से एक नदी बह रही है। वह जहाँ कहीं बहती है, जीवन और आशीषें लाती है। आखिर में वह नदी मृत सागर में जा मिलती है। (यहे. 47:1-12) यहेजकेल देखता है कि सब गोत्रों में ज़मीन का सही-सही बँटवारा किया जाता है और शुद्ध उपासना की जगह देश के लगभग बीच में है। (यहे. 45:1-8; 47:13–48:35) यह सब दिखाकर यहोवा अपने लोगों को यकीन दिलाना चाह रहा था कि शुद्ध उपासना ज़रूर बहाल होगी और बुलंद की जाएगी। वह अपने मंदिर में मौजूद होगा और वहाँ से अपने लोगों को आशीष देगा। वह उन्हें चंगा करेगा, जीवन देगा और दोबारा बसाए गए देश में शांति कायम करेगा।

यहेजकेल ने जो मंदिर देखा उससे दर्शाया गया कि यहोवा शुद्ध उपासना को कैसे बहाल करेगा (पैराग्राफ 17 देखें)

18. क्या दर्शन का यह मतलब था कि सचमुच ऐसा मंदिर बनाया जाएगा? समझाइए।

18 दूसरा सवाल, क्या दर्शन का यह मतलब था कि सचमुच ऐसा मंदिर बनाया जाएगा? नहीं। यहेजकेल और दूसरे यहूदियों ने यह नहीं समझा होगा कि दर्शन में दिखाए मंदिर जैसा कोई मंदिर सचमुच बनाया जाएगा। हम यह कैसे कह सकते हैं? याद कीजिए कि यहेजकेल ने जो मंदिर देखा, वह “एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर” था। यशायाह ने अपनी भविष्यवाणी में जिस मंदिर का ज़िक्र किया, वह भी एक ऊँचे पहाड़ पर था। मगर यरूशलेम में पहले जिस जगह मंदिर था, वहाँ इतना बड़ा मंदिर बनाना नामुमकिन था। यह सच है कि यहूदी जब अपने देश लौटते, तो वे यरूशलेम के मोरिया पहाड़ पर ही दोबारा मंदिर बनाते जहाँ सुलैमान ने बनाया था। मगर क्या मोरिया पहाड़ ‘बहुत ऊँचा पहाड़’ था? जी नहीं। उसके चारों तरफ ऐसे कई पहाड़ थे जो उसके बराबर थे या उससे भी ऊँचे थे। इतना ही नहीं, यहेजकेल ने जो मंदिर देखा उसके आस-पास की जगह भी बहुत विशाल थी और चारों तरफ एक दीवार थी। इतना बड़ा मंदिर और उसके आस-पास की विशाल जगह मोरिया पहाड़ पर नहीं समा सकती थी। मोरिया पहाड़ तो दूर, सुलैमान के दिनों में यरूशलेम शहर का जो दायरा था, उसमें भी वह सब नहीं बन पाता। बँधुआई में रहनेवाले यहूदी यह भी नहीं सोच सकते थे कि मंदिर के पवित्र-स्थान से सचमुच की एक नदी बहेगी और मृत सागर में जा मिलेगी और वहाँ के खारे पानी को मीठा बना देगी। एक और बात यह है कि वादा किए गए देश का इलाका पहाड़ी था जबकि दर्शन में देखी गयी ज़मीन समतल थी और सब गोत्रों को एक सीध में ज़मीन का टुकड़ा दिया गया था। * इन सारी बातों से साबित होता है कि यहूदियों ने यह नहीं सोचा होगा कि दर्शन के मंदिर जैसा कोई मंदिर सचमुच बनाया जाएगा।

19-21. (क) यहेजकेल के ज़माने के लोगों को दर्शन की बातें क्यों बतायी गयी थीं? (ख) इस दर्शन का उन पर क्यों ऐसा असर होता?

19 तीसरा सवाल, यहेजकेल के ज़माने के लोगों को दर्शन की बातें क्यों बतायी गयी थीं? वह इसलिए कि वे इस बात पर मनन करें कि उपासना के बारे में यहोवा के स्तर कितने ऊँचे हैं। तब उन्हें खुद पर शर्म आती कि वे उन स्तरों को मानने से कितने चूक गए थे। यहोवा ने यहेजकेल से कहा कि वह “इसराएल के घराने को मंदिर के बारे में ब्यौरा दे।” उसे मंदिर के बारे में इतनी बारीक जानकारी देनी थी कि लोग उसके “नमूने पर गौर” कर पाते, मन में उसकी एक तसवीर बना पाते। उन्हें क्यों ऐसा करना था? इसलिए नहीं कि वे दर्शन के उस मंदिर जैसा कोई मंदिर बनाएँ बल्कि इसलिए कि “वे अपने गुनाहों पर शर्मिंदा महसूस करें,” ठीक जैसे यहोवा ने कहा था।—यहेजकेल 43:10-12 पढ़िए।

20 इस दर्शन के बारे में जानकर नेकदिल वालों का ज़मीर उन्हें क्यों कचोटता और वे शर्मिंदा क्यों महसूस करते? ध्यान दीजिए कि यहेजकेल से क्या कहा गया था: “इंसान के बेटे, मैं तुझे यहोवा के मंदिर की विधियों और उसके नियमों  के बारे में जो कुछ बताऊँगा उस पर ध्यान देना, मैं तुझे जो कुछ दिखाऊँगा उसे गौर से देखना और मेरी हर बात कान लगाकर सुनना।” (यहे. 44:5) यहेजकेल को विधियों और नियमों के बारे में कई बार बताया गया। (यहे. 43:11, 12; 44:24; 46:14) उसे यहोवा के स्तर भी बार-बार याद दिलाए गए। यहाँ तक कि उसे एक हाथ का माप और बाट-पत्थरों का सही माप भी बताया गया। (यहे. 40:5; 45:10-12; कृपया नीतिवचन 16:11 से तुलना करें।) इस एक दर्शन का ब्यौरा देते वक्‍त यहेजकेल ने मूल भाषा में “नाप” और “माप” जैसे शब्द 50 से ज़्यादा बार इस्तेमाल किए हैं!

21 यहोवा ने मापने की इकाइयों, बाट-पत्थरों, विधियों और नियमों की बात क्यों की? वह अपने लोगों को क्या बताना चाह रहा था? शायद वह एक अहम सच्चाई की तरफ उनका ध्यान खींच रहा था। वह यह कि शुद्ध उपासना के लिए स्तर तय करने का हक सिर्फ यहोवा को है। जिन लोगों ने उन स्तरों को नहीं माना था उन्हें शर्मिंदा महसूस कराने के लिए यह सब बताया गया था। पर सवाल यह है कि उस दर्शन से यहूदियों ने कैसे इस तरह की बातें सीखीं? अगले अध्याय में हम ऐसी ही कुछ बातों पर गौर करेंगे। तब हम और अच्छी तरह जान पाएँगे कि यह अनोखा दर्शन हमारे लिए क्या मायने रखता है।

दर्शन के मंदिर के बारे में जानकर नेकदिल लोग क्यों शर्मिंदा महसूस करते? (पैराग्राफ 19-21 देखें)

^ पैरा. 4 लाक्षणिक मंदिर शुद्ध उपासना करने का एक इंतज़ाम है जो यहोवा ने किया है। उसने यह इंतज़ाम यीशु मसीह के फिरौती बलिदान के आधार पर किया है। हम मानते हैं कि यह इंतज़ाम ई. 29 में शुरू हुआ।

^ पैरा. 8 गौर कीजिए कि यहेजकेल का दर्शन दानियेल के दर्शन से (दानियेल अध्याय 7) कैसे अलग है। दानियेल ने दर्शन में स्वर्ग देखा था।—दानि. 7:9, 10, 13, 14.

^ पैरा. 12 मिसाल के लिए, पौलुस ने महायाजक के बारे में बताया और समझाया कि सालाना प्रायश्‍चित के दिन वह क्या करता था। (इब्रा. 2:17; 3:1; 4:14-16; 5:1-10; 7:1-17, 26-28; 8:1-6; 9:6-28) मगर यहेजकेल के दर्शन में न तो महायाजक का ज़िक्र है, न ही प्रायश्‍चित के दिन का।