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भाग 1

संतोष से भरी ज़िंदगी—सिर्फ एक कल्पना?

संतोष से भरी ज़िंदगी—सिर्फ एक कल्पना?

किसी अमीर देश में एक ऐसा घर देखकर जो ऐशो-आराम और सुख-सुविधा की हर चीज़ से भरा है, आप शायद सोचें कि इस घर में दुनिया का हर सुख मौजूद होगा। मगर उस घर के अंदर कदम रखते ही आप क्या पाते हैं? घर में नाम के लिए भी सुख नहीं है। जवान बच्चें हैं जो माँ-बाप से कभी सीधे मुँह बात ही नहीं करते, बोल-चाल के नाम पर बस “हाँ,” “हूँ” में जवाब देते हैं। उनकी माँ अपने पति का पल-भर का साथ पाने के लिए तरसती है। और पति चाहता है कि कोई आकर उसे बेकार की बातों से परेशान न करे। उनके बूढ़े माता-पिता किसी दूसरे घर में अकेले रहते हैं। महीनों गुज़र गए हैं और वो आज भी अपने बच्चों और नाती-पोतों को देखने के लिए तरस रहे हैं। लेकिन इनके जैसे दूसरे कई परिवार भी थे जो इस तरह की समस्याओं को पार करने में कामयाब हुए हैं और आज वाकई बहुत खुश हैं। आप जानते हैं क्यों?

2 अब एक गरीब देश की बात लीजिए। वहाँ भी एक परिवार रहता है जिसमें सात जन हैं। वे एक खस्ताहाल झोपड़ी में रहते हैं जो कभी-भी गिर सकती है। उनका यह भी ठिकाना नहीं कि उन्हें अगले वक्‍त की रोटी मिलेगी या नहीं। उनकी ऐसी हालत हमें इस कड़वी सच्चाई की याद दिलाती है कि इंसान दुनिया से भूख और गरीबी मिटाने में कितनी बुरी तरह नाकाम रहा है। मगर इनके जैसे कई परिवार गरीबी का जीवन बिताते हुए भी बहुत खुश हैं। क्यों?

3 पैसे की तंगी सिर्फ गरीब देशों में नहीं बल्कि अमीर देशों में भी पैदा हो सकती है। मिसाल के लिए, जापान में एक परिवार ने उस वक्‍त मकान खरीदा जब देश की अर्थ-व्यवस्था अपने “शिखर” पर थी। ऐसे में उन्हें पूरी उम्मीद थी कि तनख्वाहें बढ़ती चली जाएँगी। इसलिए उन्होंने भारी किश्‍तों पर मकान खरीद लिया। लेकिन जब अचानक देश की अर्थ-व्यवस्था में “भारी गिरावट” आयी तो वे किश्‍ते न भर सके जिसकी वजह से उन्हें मजबूरी में अपना मकान औने-पौने बेचना पड़ा। हालाँकि यह परिवार उस घर में नहीं रहता है मगर अभी भी उनके सिर पर उस मकान की किश्‍तों का कर्ज़ा चढ़ा हुआ है। और-तो-और, उन्होंने क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करके जो मनमानी खरीदारी की थी, उसका बिल चुकाने का बोझ भी अब उन पर आ पड़ा है। पिता घोड़ों की रेस पर बाज़ी लगाता है और इस तरह सारा परिवार कर्ज़ के दलदल में धँसता चला जा रहा है। लेकिन इनके जैसे दूसरे कई परिवार थे जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में बदलाव किए और आज वे सुखी हैं। क्या आप जानना चाहेंगे कैसे?

4 चाहे आप कहीं भी क्यों न रहते हों, लोगों के बर्ताव से आपकी ज़िंदगी तनाव से भर सकती है और आप अपना सुख-चैन खो सकते हैं। हो सकता है, काम की जगह लोग हमेशा पीठ पीछे आपकी बुराई करते हों। वे आपकी तरक्की देखकर जलते हों और बेवजह आपकी नुक्‍ताचीनी करते हों। या आपको हर दिन ऐसे आदमी के साथ काम करना पड़े जो आप पर धौंस जमाता हो और आपको तंग करता हो। आपके बच्चे को शायद स्कूल में दूसरे बच्चे डराते-धमकाते हों, उसे तंग करते हों या उस पर कोई ध्यान ही न दिया जाता हो। इस पर अगर आप एक अकेली माँ या पिता हैं, तो इस सच्चाई को आप अच्छी तरह जानते होंगे कि आपकी परिस्थिति की वजह से दूसरों के साथ रिश्‍ता बनाना कितना मुश्‍किल हो जाता है। ये सारी समस्याएँ कितने ही स्त्री-पुरुषों की ज़िंदगी को तनाव से भर देती हैं।

5 यह तनाव एक इंसान के अंदर ज्वालामुखी की तरह उबलता रहता है और एक दिन अचानक फूट पड़ता है। इसीलिए तनाव को ऐसा हत्यारा कहा गया है जो दबे पाँव चला आता है और लंबे समय तक रहनेवाले तनाव को हलका ज़हर कहा गया है जो धीरे-धीरे एक इंसान को मौत के मुँह में ले जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मिनासोटा के प्रोफेसर, रॉबर्ट एल. वेनिंगा कहते हैं कि “आज दुनिया के लगभग हर कोने में कामकाजी लोगों में तनाव और उससे होनेवाली बीमारियों का असर देखा जा सकता है।” कहा जाता है कि अमरीका में हर साल तनाव से जुड़ी बीमारियों के लिए 200 अरब डॉलर खर्च किए जाते हैं। यहाँ तक कि तनाव को अमरीका की निर्यात की सबसे नयी चीज़ कहा गया है। और आज शब्द “तनाव” दुनिया की जानी-मानी भाषाओं में आम तौर पर सुनने को मिलता है। जब तनाव की वजह से आप एक काम समय पर पूरा नहीं कर पाते, तो आपके अंदर दोष की भावना पैदा हो सकती है। हाल में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि एक आम इंसान दोष की भावना से लड़ते हुए दिन में दो घंटे बिताता है। मगर ऐसे लोग भी हैं जो तनाव से उबर पाए और ज़िंदगी में कामयाब हुए हैं।

6 रोज़-रोज़ की इन सारी समस्याओं का सामना कैसे किया जा सकता है और संतोष से भरी ज़िंदगी कैसे हासिल की जा सकती है? इसे हासिल करने के लिए कुछ लोग, विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गयी अपनी मदद आप कीजिए या दूसरी ऐसी किताबों से सलाह लेते हैं। मगर क्या ऐसी किताबों पर भरोसा किया जा सकता है? डॉ. बॆंजमिन स्पॉक, जिनकी बच्चों की परवरिश के बारे में लिखी एक किताब 42 भाषाओं में अनुवाद की गयी और जिसकी करीब 5 करोड़ कॉपियाँ बाँटी गयीं, उन्होंने एक बार कहा: “आज अमरीका में रहनेवाले माता-पिता की सबसे आम समस्या यह है कि . . . वे बच्चों के साथ सख्ती बरतना नहीं जानते।” उन्होंने आगे कहा कि इस समस्या के लिए वे और उनके जैसे पेशेवर लोग सबसे ज़्यादा कसूरवार हैं। उन्होंने कबूल किया: “हमने इस बात पर ज़ोर देकर कि हम सब कुछ जानते हैं, माता-पिता का आत्म-विश्‍वास कमज़ोर कर दिया। और जब तक हमें इस बात का एहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी।” तो अब हमारा यह सवाल पूछना वाजिब होगा: ‘आज और आनेवाले दिनों में संतोष से भरी ज़िंदगी जीने के लिए हम किसकी सलाह पर पूरा भरोसा कर सकते हैं?’