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आधुनिक जीवन के लिए एक व्यावहारिक किताब

आधुनिक जीवन के लिए एक व्यावहारिक किताब

आधुनिक जीवन के लिए एक व्यावहारिक किताब

आज के संसार में सलाह देनेवाली किताबें बहुत लोकप्रिय हैं। लेकिन वे जल्द ही पुरानी हो जाती हैं और कुछ समय बाद ही उनमें फेर-बदल होता है या वे फेंक दी जाती हैं। बाइबल के बारे में क्या? यह क़रीब २,००० साल पहले पूरी की गयी थी। फिर भी, उसके मूल संदेश में कभी कोई सुधार नहीं किया गया या उसमें कुछ जोड़ा नहीं गया। क्या ऐसी किताब में हमारे समय के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन हो सकता है?

कुछ लोग कहते हैं, नहीं। “कोई भी व्यक्‍ति कॆमिस्ट्री की किताब के १९२४ संस्करण का प्रयोग एक आधुनिक कॆमिस्ट्री कक्षा के लिए करने का पक्ष नहीं लेगा,” बाइबल पुरानी हो चुकी है ऐसा महसूस करने का कारण समझाते हुए डॉ. ईलाइ एस. चॆसन ने लिखा। दिखने में, यह तर्क उपयुक्‍त लगता है। आख़िरकार, बाइबल के लिखे जाने के बाद से मानसिक स्वास्थ्य और मानव व्यवहार के बारे में मनुष्य ने बहुत कुछ सीखा है। सो ऐसी पुरानी किताब आधुनिक जीवन के लिए कैसे अर्थपूर्ण हो सकती है?

शाश्‍वत सिद्धांत

जबकि यह सच है कि समय बदल गया है, फिर भी मानव की मूल ज़रूरतें नहीं बदलीं। इतिहास के हर दौर में लोगों को प्रेम और स्नेह की ज़रूरत रही है। उनमें ख़ुश रहने और अर्थपूर्ण जीवन जीने की चाहत रही है। आर्थिक दबाव का सामना कैसे करें, विवाह को सफल कैसे बनाएँ, और अपने बच्चों में अच्छे नैतिक मूल्य कैसे बिठाएँ, इस पर उन्हें सलाह की ज़रूरत पड़ती रही है। बाइबल में ऐसी सलाह है जो इन मूल ज़रूरतों को पूरा करती है।—सभोपदेशक ३:१२, १३; रोमियों १२:१०; कुलुस्सियों ३:१८-२१; १ तीमुथियुस ६:६-१०.

बाइबल की सलाह मानव स्वभाव की अच्छी समझ व्यक्‍त करती है। इसके सुस्पष्ट, शाश्‍वत सिद्धांतों के कुछ उदाहरण लीजिए जो आधुनिक जीवन के लिए व्यावहारिक हैं।

विवाह के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन

यूएन क्रॉनिकल कहता है, परिवार “मानव संगठन की सबसे पुरानी और सबसे बुनियादी इकाई है; यह पीढ़ियों के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण कड़ी है।” लेकिन, यह “महत्त्वपूर्ण कड़ी” अब भयानक तेज़ी से टूट रही है। “आज के संसार में,” क्रॉनिकल कहता है, “अनेक परिवार ऐसी कठिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जो अपनी भूमिका निभाने की और, वास्तव में, क़ायम रहने की उनकी योग्यता के लिए ख़तरा हैं।” पारिवारिक इकाई को क़ायम रहने में मदद देने के लिए बाइबल कौन-सी सलाह पेश करती है?

पहली बात, पति-पत्नी को एक दूसरे से कैसा व्यवहार करना चाहिए इस बारे में बाइबल बहुत कुछ कहती है। उदाहरण के लिए, पतियों के बारे में वह कहती है: “उचित है, कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है।” (तिरछे टाइप हमारे।) (इफिसियों ५:२८, २९) पत्नी को सलाह दी गयी कि “अपने पति के लिए गहरा आदर रखे।”—इफिसियों ५:३३, NW.

ऐसी बाइबल सलाह को लागू करने में क्या शामिल है इस पर विचार कीजिए। एक पति जो अपनी पत्नी से “अपनी देह के समान” प्रेम रखता है, वह उससे घृणा नहीं करता या उस पर अत्याचार नहीं करता। वह उस पर हाथ नहीं उठाता, ना ही उसे अपनी बातों से या भावात्मक रीति से दुःख देता है। इसके बजाय, वह उसे वही इज़्ज़त देता है और लिहाज़ दिखाता है जो वह अपने लिए रखता है। (१ पतरस ३:७) इसलिए उसकी पत्नी अपने विवाह-बंधन में प्रेम और सुरक्षा महसूस करती है। पति इस तरह अपने बच्चों को एक अच्छा उदाहरण देता है कि स्त्रियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। दूसरी ओर, अपने पति के लिए “गहरा आदर” रखनेवाली पत्नी, उसे हर बात में टोकने से या उसका अपमान करने से उसकी गरिमा उससे न छीनेगी। पत्नी उसका आदर करती है, इसलिए पति महसूस करता है कि वह उस पर भरोसा करती है, उससे ख़ुश है और उसकी क़दर करती है।

क्या इस आधुनिक संसार में ऐसी सलाह व्यावहारिक है? दिलचस्पी की बात है कि वे जिनका पेशा परिवारों का अध्ययन करना है, आज समान निष्कर्षों पर पहुँचे हैं। एक पारिवारिक सलाहकारी कार्यक्रम की व्यवस्थापिका ने कहा: “जिन सबसे ख़ुशहाल परिवारों को मैं जानती हूँ उनमें ख़ुद माता और पिता के बीच एक मज़बूत, प्रेमपूर्ण रिश्‍ता होता है। . . . इस मज़बूत बुनियादी रिश्‍ते से बच्चों में सुरक्षा पैदा होती हुई दिखती है।”

सालों से, विवाह के बारे में बाइबल की सलाह, असंख्य नेकनीयत पारिवारिक सलाहकारों की सलाह से कहीं ज़्यादा भरोसेमंद साबित हुई है। देखा जाए तो, कुछ समय पहले की ही बात है जब अनेक विशेषज्ञ तलाक़ को एक दुःखदायी विवाह-बंधन से मुक्‍ति का जल्द और आसान इलाज बताकर बढ़ावा दे रहे थे। आज, उनमें से अनेक विशेषज्ञ लोगों से आग्रह करते हैं कि अगर संभव हो तो अपने विवाह को क़ायम रखें। लेकिन यह परिवर्तन तब आया जब नुक़सान हो चुका है।

इसके विपरीत, बाइबल विवाह के विषय पर भरोसेमंद, संतुलित सलाह देती है। यह स्वीकार करती है कि कुछ बहुत ही गंभीर परिस्थितियों में तलाक़ लिया जा सकता है। (मत्ती १९:९) साथ ही, यह छोटे-मोटे कारणों से लिए गए तलाक़ की निंदा करती है। (मलाकी २:१४-१६) यह विवाह में विश्‍वासघात की भी निंदा करती है। (इब्रानियों १३:४) इसके अनुसार, विवाह में वचनबद्धता शामिल होती है: “इस कारण पुरुष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे।” * (तिरछे टाइप हमारे।)—उत्पत्ति २:२४; मत्ती १९:५, ६.

विवाह के बारे में बाइबल की सलाह आज उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी बाइबल के लिखते समय थी। जब पति-पत्नी एक दूसरे से व्यवहार करते वक़्त प्रेम और आदर दिखाते हैं और विवाह को अनमोल रिश्‍ता समझते हैं, तो विवाह—और उसके साथ परिवार—के क़ायम रहने की संभावना ज़्यादा होती है।

माता-पिता के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन

कई दशकों पहले अनेक माता-पिताओं ने—बाल प्रशिक्षण पर “नए-नए विचारों” से प्रेरित होकर—सोचा कि “मना करना मना है।” उन्हें डर था कि बच्चों पर प्रतिबंध लगाने से उन्हें दुःख और निराशा होगी। बच्चों के पालन-पोषण पर नेकनीयत सलाहकार इस बात पर बल दे रहे थे कि माता-पिता को अपने बच्चों को केवल नरमी से डाँटना चाहिए। लेकिन अब, अनेक ऐसे विशेषज्ञ अनुशासन की भूमिका पर फिर से विचार कर रहे हैं, और चिंतित माता-पिता इस विषय पर स्पष्ट जानकारी ढूँढ़ रहे हैं।

लेकिन, बाइबल ने बच्चों के पालन-पोषण पर हमेशा से स्पष्ट, उचित सलाह दी है। क़रीब २,००० साल पहले, इसने कहा: “हे बच्चेवालो अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो।” (इफिसियों ६:४) “शिक्षा” अनुवादित यूनानी संज्ञा का अर्थ है “पालन-पोषण, प्रशिक्षण, उपदेश।” बाइबल कहती है कि ऐसा अनुशासन, या उपदेश माता-पिता के प्रेम का प्रमाण है। (नीतिवचन १३:२४) सुस्पष्ट नैतिक निर्देशनों और सही तथा ग़लत की अच्छी परख रखने से बच्चे उन्‍नति करते हैं। अनुशासन से उन्हें यह संदेश मिलता है कि उनके माता-पिता को उनकी और वे जिस प्रकार के व्यक्‍ति बनने जा रहे हैं, उसकी चिंता है।

लेकिन माता-पिता के अधिकार—“छड़ी की ताड़ना”—में कभी दुर्व्यवहार शामिल नहीं होना चाहिए। * (नीतिवचन २२:१५; २९:१५) बाइबल माता-पिता को सावधान करती है: “हे बच्चेवालो, अपने बालकों को हद से ज़्यादा न सुधारो, न हो कि तुम उन्हें निराश कर दो।” (कुलुस्सियों ३:२१, फिलिप्पस्‌) बाइबल यह भी मानती है कि शारीरिक मार, सिखाने का सामान्यतया सबसे प्रभावकारी तरीक़ा नहीं है। नीतिवचन १७:१० कहता है: “एक घुड़की समझनेवाले के मन में जितनी गड़ जाती है, उतना सौ बार मार खाना मूर्ख के मन में नहीं गड़ता।” इसके अलावा, बाइबल एहतियाती अनुशासन की सिफ़ारिश करती है, जिससे मार की ज़रूरत ही न पड़े। व्यवस्थाविवरण ११:१९ में माता-पिता से आग्रह किया गया है कि अपने बच्चों के मन में नैतिक मूल्य बिठाने के लिए अनौपचारिक घड़ियों का फ़ायदा उठाएँ।—व्यवस्थाविवरण ६:६, ७ भी देखिए।

माता-पिता को दी गयी बाइबल की शाश्‍वत सलाह स्पष्ट है। बच्चों को नियमित और प्रेमपूर्ण अनुशासन की ज़रूरत है। व्यावहारिक अनुभव दिखाता है कि ऐसी सलाह सचमुच काम करती है। *

लोगों को अलग करनेवाली बाधाओं को पार करना

आज जातीय, राष्ट्रीय और नृजातीय बाधाएँ लोगों को अलग करती हैं। संसार-भर के युद्धों में निर्दोष मनुष्यों के क़त्लेआम में इन बनावटी सीमाओं का हाथ रहा है। अगर इतिहास गवाही दे, तो अलग-अलग जातियों और राष्ट्रों के स्त्री-पुरुषों की, एक दूसरे को समान समझकर व्यवहार करने की आशा बहुत ही धुँधली है। “इसका समाधान,” एक अफ्रीकी राजनेता कहता है, “हमारे हृदय में है।”११ लेकिन इंसान का हृदय बदलना आसान नहीं है। फिर भी, विचार कीजिए कि बाइबल का संदेश हृदय को कैसे प्रेरित करता है और समानता की भावना को बढ़ावा देता है।

बाइबल की यह शिक्षा कि परमेश्‍वर ने “एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियां . . . बनाई हैं,” जातीय श्रेष्ठता के किसी भी विचार को दूर कर देती है। (प्रेरितों १७:२६) यह दिखाती है कि वास्तव में केवल एक जाति है—मानवजाति। बाइबल आगे हमें ‘परमेश्‍वर के सदृश्‍य बनने’ का प्रोत्साहन देती है, जिसके बारे में वह कहती है: “[वह] किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (इफिसियों ५:१; प्रेरितों १०:३४, ३५) जो व्यक्‍ति बाइबल को गंभीरता से लेते हैं और जो सचमुच इसकी शिक्षाओं के अनुसार जीना चाहते हैं, उनके बीच यह ज्ञान एकता लाता है। यह गहराई तक जाकर, मनुष्य के हृदय में काम करती है, जिससे लोगों को अलग करनेवाली मानव-निर्मित बाधाएँ ख़त्म हो जाती हैं। एक उदाहरण लीजिए।

जब हिटलर ने सारे यूरोप में युद्ध छेड़ दिया, तब मसीहियों का एक समूह था—यहोवा के साक्षी—जिसने निर्दोष मनुष्यों के क़त्लेआम में भाग लेने से दृढ़तापूर्वक इनकार किया। उन्होंने अपने संगी मनुष्य के विरुद्ध ‘तलवार नहीं चलायी।’ परमेश्‍वर को प्रसन्‍न करने की अपनी इच्छा के कारण उन्होंने यह स्थिति ली। (यशायाह २:३, ४; मीका ४:३, ५) वे सचमुच बाइबल की शिक्षा को मानते थे—कि कोई राष्ट्र या जाति दूसरे से बेहतर नहीं है। (गलतियों ३:२८) उन्होंने शांतिप्रेमी होने की स्थिति अपनायी। इस कारण, यहोवा के साक्षी यातना शिविरों के सबसे पहले कारावासियों में थे।—रोमियों १२:१८.

लेकिन बाइबल पर चलने का दावा करनेवाले सभी लोगों ने ऐसी स्थिति नहीं ली। दूसरे विश्‍व युद्ध के कुछ ही समय बाद, जर्मनी के प्रोटॆस्टंट पादरी, मार्टीन नॆमार्लर ने लिखा: “जो कोई व्यक्‍ति परमेश्‍वर को [युद्धों] के लिए दोषी ठहराना चाहता है वह परमेश्‍वर के वचन को नहीं जानता, या जानना नहीं चाहता। . . . मसीही चर्च युगों-युगों से युद्धों, सैनिकों और हथियारों पर बार-बार आशीष देते रहे हैं और . . . उन्होंने युद्ध में अपने शत्रुओं के विनाश के लिए बड़े अमसीही तरीक़े से प्रार्थना की है। यह सब हमारी ग़लती है और हमारे बाप-दादाओं की ग़लती है, लेकिन किसी भी तरह परमेश्‍वर दोषी नहीं है। और हम आज के मसीही, गंभीर बाइबल विद्यार्थी [यहोवा के साक्षी] जैसे एक तथाकथित पंथ के सामने शर्म से सिर झुकाए खड़े हैं, जो सैकड़ों और हज़ारों की संख्या में यातना शिविरों में गए और मौत को [भी] गले लगाया क्योंकि उन्होंने फ़ौजी सेवा से और मनुष्यों पर गोली दाग़ने से इनकार किया था।”१२

आज तक, यहोवा के साक्षी अपने भाईचारे के लिए सुप्रसिद्ध हैं, जो अरबी और यहूदी, क्रोएशियाई और सर्बियावासी, हूटू और टूटसी को एक करता है। लेकिन, साक्षी इस बात को सहजता से स्वीकार करते हैं कि ऐसी एकता, इसलिए संभव नहीं कि वे दूसरों से बेहतर हैं, बल्कि इसलिए संभव है कि वे बाइबल के संदेश की शक्‍ति से प्रेरित होते हैं।—१ थिस्सलुनीकियों २:१३.

व्यावहारिक मार्गदर्शन जो अच्छा मानसिक स्वास्थ्य बढ़ाता है

एक व्यक्‍ति का शारीरिक स्वास्थ्य अकसर उसके मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए, वैज्ञानिक अध्ययनों ने क्रोध के हानिकर प्रभावों को सिद्ध किया है। ड्यूक यूनिवर्सिटी मॆडिकल सॆंटर में व्यवहार अनुसंधान के निदेशक, डॉ. रॆडफ़र्ड विलियम्स्‌ और उनकी पत्नी, वर्जीनिया विलियम्स्‌ अपनी किताब, क्रोध घातक है में कहते हैं: “मौजूदा ज़्यादातर सबूत संकेत करते हैं कि झगड़ालू लोगों को अनेक कारणों से हृदय-संबंधी रोग (साथ ही अन्य बीमारियाँ) होने का बड़ा ख़तरा है। इन कारणों में कम दोस्त होना, क्रोधित होने पर शरीर पर बहुत ज़्यादा असर पड़ना, और स्वास्थ्य के लिए ख़तरा पैदा करनेवाले कामों में पड़ जाना शामिल है।”१३

ऐसे वैज्ञानिक अध्ययन किए जाने के हज़ारों साल पहले, बाइबल ने सरल लेकिन स्पष्ट शब्दों में हमारी भावात्मक अवस्था और हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के बीच संबंध जोड़ा: “शान्त मन, तन का जीवन है, परन्तु मन के जलने से हड्डियां भी जल जाती हैं।” (नीतिवचन १४:३०; १७:२२) बुद्धिमानी से, बाइबल सलाह देती है: “क्रोध से परे रह, और जलजलाहट को छोड़ दे,” और “अपने मन में उतावली से क्रोधित न हो।”—भजन ३७:८; सभोपदेशक ७:९.

बाइबल में क्रोध पर क़ाबू पाने के बारे में भी समझ-भरी सलाह है। उदाहरण के लिए, नीतिवचन १९:११ (NHT) कहता है: “मनुष्य की समझ-बूझ उसे शीघ्र क्रोधित नहीं होने देती, और अपराध पर ध्यान न देना उसकी महानता है।” “समझ-बूझ” के लिए इब्रानी शब्द एक क्रिया से लिया गया है जो किसी बात का “कारण जानने” की ओर ध्यान आकर्षित करता है।१४ बुद्धिमानी-भरी सलाह है: “करने से पहले सोचिए।” दूसरे व्यक्‍ति अमुक तरीक़े से क्यों बात या व्यवहार करते हैं इसके मूल कारणों को समझने की कोशिश करना एक व्यक्‍ति को ज़्यादा सहनशील होने में मदद दे सकता है—और उसका क्रोध कम कर सकता है।—नीतिवचन १४:२९.

एक और व्यावहारिक सलाह कुलुस्सियों ३:१३ में पायी जाती है, जो कहता है: “एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।” छोटी-मोटी नोक-झोंक तो आए दिन होती रहती है। यह अभिव्यक्‍ति, “एक दूसरे की सह लो,” उन बातों को सहने का संकेत करती है जो हमें दूसरों में पसंद नहीं हैं। ‘क्षमा करने’ का अर्थ है नाराज़गी छोड़ देना। कटु भावनाओं को मन में पालने के बजाय उन्हें छोड़ देना बुद्धिमानी है; मन में ग़ुस्सा रखना हमारे बोझ को सिर्फ़ बढ़ाएगा।—“मानवी रिश्‍तों के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन” बक्स देखिए।

आज, सलाह और मार्गदर्शन के अनेक ज़रिये हैं। लेकिन बाइबल सचमुच अनोखी है। इसकी सलाह केवल किताबी नहीं है, ना ही कभी इसकी सलाह से हमारी हानि होती है। इसके बजाय, इसकी बुद्धि “अति विश्‍वासयोग्य” साबित हुई है। (भजन ९३:५) इसके अलावा, बाइबल की सलाह शाश्‍वत है। हालाँकि इसे क़रीब २,००० साल पहले पूरा कर दिया गया था, इसके शब्द अब भी असरदार हैं। और चाहे हमारा रंग कुछ भी हो या चाहे हम किसी भी देश में रहते हों, उनका असर हर जगह एक-सा है। बाइबल के शब्दों में शक्‍ति भी है—लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की शक्‍ति। (इब्रानियों ४:१२) इस प्रकार इस किताब को पढ़ने और इसके सिद्धांतों को लागू करने से आपका जीवन समृद्ध हो सकता है।

[फुटनोट]

^ इब्रानी शब्द दवाक, जिसका यहाँ “मिला रहेगा” अनुवाद किया गया है, “स्नेह और निष्ठा से किसी का साथ देने का अर्थ देता है।” यूनानी में, मत्ती १९:५ में “साथ रहेगा” अनुवादित शब्द उस शब्द से जुड़ा हुआ है जिसका अर्थ है “चिपकाना,” “जोड़ देना,” “कसकर जोड़ देना।”

^ बाइबल समय में, शब्द “छड़ी” (इब्रानी, शेवेत) का अर्थ था एक “लकड़ी” या “लाठी,” जैसी एक चरवाहा इस्तेमाल करता था।१० इस संदर्भ में अधिकार की सूचक छड़ी, प्रेमपूर्ण मार्गदर्शन का संकेत करती है, कठोर निर्दयता का नहीं।—भजन २३:४ से तुलना कीजिए।

^ वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित, किताब पारिवारिक सुख का रहस्य में “अपने बच्चे को बालकपन से प्रशिक्षित कीजिए,” “अपने किशोर को फलने-फूलने में मदद दीजिए,” “क्या घर में एक विद्रोही है?”, “अपने परिवार को विनाशकारी प्रभावों से बचाइए” अध्याय देखिए।

[पेज 24 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

बाइबल पारिवारिक जीवन पर स्पष्ट, उचित सलाह देती है

[पेज 23 पर बक्स]

ख़ुशहाल परिवारों की विशेषताएँ

कई साल पहले एक शिक्षिका और परिवार विशेषज्ञ ने एक विस्तृत सर्वेक्षण किया जिसमें परिवारों को सलाह देनेवाले ५०० से ज़्यादा पेशेवरों को उन लक्षणों पर टिप्पणी करने के लिए कहा गया जो उन्होंने “ख़ुशहाल” परिवारों में देखे थे। दिलचस्पी की बात है कि जो सबसे सामान्य लक्षण बताए गए वे ऐसी बातें हैं जिनकी सिफ़ारिश बाइबल बहुत पहले से कर चुकी है।

नियमित रूप से अच्छी बातचीत करना सूची में सबसे ऊपर थी, जिसमें मतभेद सुलझाने के प्रभावकारी तरीक़े शामिल थे। ख़ुशहाल परिवारों में एक सर्वसामान्य नियम पाया गया कि “रात को कोई भी दूसरे के लिए मन में ग़ुस्सा लेकर नहीं सोता,” सर्वेक्षण की संचालिका ने कहा। फिर भी, १,९०० साल पहले, बाइबल ने सलाह दी: “क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे।” (इफिसियों ४:२६) बाइबल के समय में सूर्यास्त से सूर्यास्त तक दिन गिना जाता था। सो आधुनिक विशेषज्ञों द्वारा परिवारों का अध्ययन करने से बहुत पहले, बाइबल ने बुद्धिमत्तापूर्ण सलाह दी: फूट डालनेवाले मामलों को जल्दी सुलझाओ—इससे पहले कि वह दिन समाप्त हो और दूसरा शुरू हो जाए।

ख़ुशहाल परिवार “बाहर निकलने से ठीक पहले या सोने से पहले ऐसे विषयों पर बात नहीं करते जो व्यक्‍ति को भड़का सकते हैं,” संचालिका ने पाया। “मैं ने बार-बार यह वाक्यांश सुना, ‘सही समय।’” अनजाने ही ऐसे परिवारों ने अपने शब्दों में, २,७०० साल पहले लिखा गया बाइबल का यह नीतिवचन व्यक्‍त किया: “जैसे चान्दी की टोकरियों में सोनहले सेब हों वैसा ही ठीक समय पर कहा हुआ वचन होता है।” (तिरछे टाइप हमारे।) (नीतिवचन १५:२३; २५:११) यह उपमा शायद तराशी हुई चांदी की तश्‍तरियों में सेबों के आकार के स्वर्ण आभूषणों की ओर इशारा करती है—जो बाइबल के समय में मूल्यवान और मनमोहक संपत्ति हुआ करते थे। यह उचित समय पर कहे गए शब्दों की मोहकता और मूल्य दिखाता है। तनावपूर्ण परिस्थितियों में, सही समय पर कहे गए सही शब्द बेशक़ीमती होते हैं।—नीतिवचन १०:१९.

[पेज 26 पर बक्स]

मानवी रिश्‍तों के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन

“क्रोध तो करो, पर पाप मत करो। अपने बिछौनों पर पड़े हुए मनन करो और शान्त रहो।” (भजन ४:४, NHT) छोटी-मोटी नाराज़गी के मामले में, अपने शब्दों पर लगाम लगाना बुद्धिमानी हो सकती है, इस प्रकार आप भावात्मक मुक़ाबले से दूर रहेंगे।

“ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोचविचार का बोलना तलवार की नाईं चुभता है, परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।” (नीतिवचन १२:१८) बोलने से पहले सोचिए। बिना सोचविचार से कहे गए शब्द दूसरों को चोट पहुँचा सकते हैं और मित्रता ख़त्म कर सकते हैं।

“कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है, परन्तु कटुवचन से क्रोध धधक उठता है।” (नीतिवचन १५:१) कोमलता से जवाब देने के लिए आत्म-संयम की ज़रूरत होती है, लेकिन ऐसा करने से समस्याएँ सुलझ जाती हैं और शांतिपूर्ण रिश्‍तों को बढ़ावा मिलता है।

“झगड़े का आरम्भ मानो पानी के फूट निकलने के समान है, अतः झगड़ा होने से पहले ही उसे त्याग दो।” (नीतिवचन १७:१४, NHT) इससे पहले कि आप ग़ुस्सा हो जाएँ, एक उत्तेजक स्थिति से निकल आना बुद्धिमानी है।

“अपने मन में उतावली से क्रोधित न हो, क्योंकि क्रोध मूर्खों ही के हृदय में रहता है।” (सभोपदेशक ७:९) भावनाएँ कामों से पहले आती हैं। जो व्यक्‍ति जल्द नाराज़ हो जाता है वह मूर्ख है, क्योंकि उसका ऐसा करना बिना सोचे-विचारे शब्दों और कार्यों की ओर ले जा सकता है।

[पेज 25 पर तसवीर]

यहोवा के साक्षी यातना शिविरों के सबसे पहले कारावासियों में थे