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एक किताब जो सजीव भाषाएँ “बोलती” है

एक किताब जो सजीव भाषाएँ “बोलती” है

एक किताब जो सजीव भाषाएँ “बोलती” है

अगर एक भाषा जिसमें अमुक किताब लिखी गयी है मर जाती है, तो फिर वास्तव में वह किताब भी मर जाती है। आज बहुत कम लोग उन प्राचीन भाषाओं को पढ़ सकते हैं जिनमें बाइबल लिखी गयी थी। फिर भी यह जीवित है। यह बच पायी है क्योंकि इसने मानवजाति की सजीव भाषाओं में “बोलना सीखा” है। जिन अनुवादकों ने इसे अन्य भाषाएँ बोलना “सिखाया,” उन्होंने कभी-कभी पहाड़ जैसी बाधाओं का सामना किया।

बाइबल का अनुवाद करना—इसके १,१०० से ज़्यादा अध्यायों और ३१,००० से ज़्यादा आयतों सहित—एक बड़ा काम है। लेकिन, समर्पित अनुवादकों ने शताब्दियों से ख़ुशी-ख़ुशी इस चुनौती को स्वीकार किया। इनमें से अनेक कठिनाइयाँ सहने और अपने काम के लिए मरने तक को तैयार थे। मानवजाति की भाषाओं में बाइबल के अनुवाद किए जाने का इतिहास, लगन और प्रतिभा की अनोखी कहानी है। इस प्रेरक रिकॉर्ड के केवल एक छोटे अंश पर विचार कीजिए।

अनुवादकों के सम्मुख चुनौतियाँ

आप एक किताब का अनुवाद ऐसी भाषा में कैसे करेंगे जिसकी कोई लिखित लिपि नहीं है? अनेक बाइबल अनुवादकों ने ऐसी ही चुनौती का सामना किया। उदाहरण के लिए, सा.यु. चौथी शताब्दी के उल्फिलास ने बाइबल को ऐसी भाषा में अनुवाद करने का बीड़ा उठाया जो उस समय आधुनिक तो थी लेकिन लिखित नहीं थी—गॉथ भाषा। उल्फिलास ने २७ अक्षरोंवाली गॉथ भाषा की वर्णमाला का आविष्कार करके यह बाधा पार की। यह वर्णमाला उसने मुख्यतः यूनानी और लातीनी वर्णमालाओं के आधार पर बनायी। गॉथ भाषा में लगभग पूरी बाइबल का उसका अनुवाद सा.यु. ३८१ से पहले पूरा हुआ।

नौवीं शताब्दी में, यूनानी बोलनेवाले दो भाई, सिरिल (जिसका नाम पहले कॉन्सटनटीन था) और मिथोडीअस, दोनों श्रेष्ठ विद्वान और भाषाविज्ञानी, स्लाव-भाषी लोगों के लिए बाइबल अनुवाद करना चाहते थे। लेकिन आज की स्लाव भाषाओं के पहले रूप—स्लैवोनियाई भाषा की कोई लिखित लिपि नहीं थी। सो इन दो भाइयों ने एक वर्णमाला का आविष्कार किया ताकि बाइबल का अनुवाद कर सकें। इस प्रकार बाइबल अब अनेक अन्य लोगों, स्लाव-भाषियों से “बोल” सकती थी।

सोलहवीं शताब्दी में, विलियम टिंडल ने बाइबल का अनुवाद मूल भाषाओं से अंग्रेज़ी में करने का बीड़ा उठाया, लेकिन उसने चर्च और सरकार दोनों से कड़े विरोध का सामना किया। टिंडल, जिसकी शिक्षा ऑक्सफ़र्ड में हुई थी, एक ऐसा अनुवाद करना चाहता था जिसे ‘हल जोतनेवाला लड़का’ भी समझ सके। लेकिन यह काम करने के लिए, उसे भागकर जर्मनी जाना पड़ा, जहाँ १५२६ में उसका अंग्रेज़ी “नया नियम” छापा गया। जब इंग्लैंड में चोरी-छिपे प्रतियाँ लायी गयीं, तो अधिकारी इतने क्रोधित हुए कि वे उन्हें सबके सामने जलाने लगे। टिंडल को बाद में धोखा देकर पकड़वाया गया। उसे फाँसी लगाए जाने और फिर जलाए जाने से पहले, उसने ऊँची आवाज़ में ये शब्द कहे: “हे प्रभु, इंग्लैंड के राजा की आँखें खोल!”

बाइबल अनुवाद जारी रहा; अनुवादक रोके नहीं रुकते थे। सन्‌ १८०० तक, कम-से-कम बाइबल के कुछ भागों ने ६८ भाषाएँ “बोलनी सीख” ली थीं। उसके बाद, बाइबल संस्थाओं—ख़ासकर १८०४ में स्थापित ब्रिटिश एण्ड फ़ॉरॆन बाइबल सोसाइटी—के गठन से बाइबल ने जल्द ही अन्य नयी भाषाएँ भी “सीखीं।” सैकड़ों युवा मिशनरियों के रूप में विदेश जाने के लिए आगे आए, अनेक लोगों का मुख्य लक्ष्य था बाइबल का अनुवाद करना।

अफ्रीका की भाषाएँ सीखना

सन्‌ १८०० में, अफ्रीका में केवल लगभग एक दर्जन लिखित भाषाएँ थीं। सैकड़ों अन्य बोली जानेवाली भाषाओं में, लेखन व्यवस्था का आविष्कार होने तक अनुवाद संभव नहीं था। मिशनरी आए और उन्होंने भाषाएँ सीखीं, किताबों या शब्दकोशों की सहायता के बिना। उसके बाद उन्होंने एक लिखित रूप का विकास करने के लिए मेहनत की, और फिर उन्होंने लोगों को सिखाया कि वह लिपि कैसे पढ़ें। उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि किसी दिन लोग अपनी भाषा में बाइबल पढ़ सकें।

ऐसा ही एक मिशनरी था, स्कॉट्‌लैंडवासी रॉबर्ट मॉफ़ॆट। सन्‌ १८२१ में, २५ साल की उम्र में, मॉफ़ॆट ने दक्षिणी अफ्रीका के स्वाना-भाषी लोगों के बीच एक मिशन बनाया। उनकी अलिखित भाषा सीखने के लिए, वह लोगों के साथ मिला-जुला, उनके बीच रहने के लिए कभी-कभी वह भीतरी प्रदेश की ओर निकल पड़ता था। “लोग भले थे,” उसने बाद में लिखा, “और भाषा में मुझसे हुई ग़लतियों से अनेक ठहाके फूट पड़ते थे। एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि एक व्यक्‍ति बिना मेरी नक़ल किए किसी शब्द या वाक्य को सुधारता, और वह इतनी अच्छी तरह मेरी नक़ल करता कि दूसरों को उसमें बड़ा मज़ा आता।” मॉफ़ॆट लगा रहा और आख़िरकार उसने उस भाषा में महारत हासिल कर ली, और उसका लिखित रूप विकसित किया।

सन्‌ १८२९ में, स्वाना-भाषी लोगों के बीच आठ साल काम करने के बाद, मॉफ़ॆट ने लूका की सुसमाचार-पुस्तक का अनुवाद समाप्त किया। उसे छापने के लिए, वह बैलगाड़ी से क़रीब ९०० किलोमीटर का सफ़र तय करके समुद्र के किनारे पहुँचा और उसके बाद केप टाउन के लिए एक जहाज़ पर सवार हुआ। वहाँ गवर्नर ने उसे सरकारी छापाख़ाना इस्तेमाल करने की अनुमति दी, लेकिन मॉफ़ॆट को ख़ुद ही टाइप बिठाना था और छापना था, आख़िरकार उसने १८३० में यह सुसमाचार-पुस्तक प्रकाशित कर ली। पहली बार, स्वाना-भाषी लोग बाइबल का एक भाग अपनी भाषा में पढ़ सकते थे। सन्‌ १८५७ में, मॉफ़ॆट ने स्वाना में पूरी बाइबल का अनुवाद ख़त्म किया।

जब पहली बार स्वाना-भाषी लोगों को लूका की सुसमाचार-पुस्तक प्राप्त हुई, तब उनकी क्या प्रतिक्रिया थी, इसका वर्णन मॉफ़ॆट ने बाद में किया। उसने कहा: “मैं ऐसे लोगों को जानता हूँ जो लूका की प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए सैकड़ों मील चलकर आए। . . . मैं ने उन्हें लूका के भाग पाकर रोते हुए, उसे अपनी छाती से लगाकर कृतज्ञता के आँसू बहाते देखा है, इस हद तक कि मुझे कई लोगों से कहना पड़ा, ‘तुम अपने आँसुओं से अपनी किताबें ख़राब कर दोगे।’”

मॉफ़ॆट जैसे समर्पित अनुवादकों ने इस प्रकार अनेक अफ्रीकियों को—जिनमें से कुछ ने पहले लिखित भाषा की कोई ज़रूरत नहीं समझी—लिखित में विचारों का आदान-प्रदान करने का पहला अवसर दिया। लेकिन, अनुवादक यह मानते थे कि वे अफ्रीका के लोगों को इससे भी ज़्यादा क़ीमती तोहफ़ा दे रहे थे—उनकी अपनी भाषा में बाइबल। आज पूरी बाइबल या उसके कुछ भाग, ६०० से ज़्यादा अफ्रीकी भाषाओं में “बोलते” हैं।

एशिया की भाषाएँ सीखना

जहाँ अफ्रीका के अनुवादक बोली गयी भाषाओं के लिखित रूप का विकास करने की कोशिश कर रहे थे, वहीं संसार के दूसरे भाग में अन्य अनुवादक एक अलग क़िस्म की बाधा का सामना कर रहे थे—उन भाषाओं में अनुवाद करना जिनमें पहले से ही जटिल लिखित लिपियाँ मौजूद थीं। एशिया की भाषाओं में बाइबल का अनुवाद करनेवालों के सम्मुख यह चुनौती थी।

उन्‍नीसवीं शताब्दी की शुरूआत में, विलियम कैरी और जॉशुआ मार्शमॆन भारत गए और वहाँ की अनेक लिखित भाषाओं में महारत हासिल की। एक मुद्रक, विलियम वार्ड की मदद से उन्होंने बाइबल के कम-से-कम कुछ भागों का अनुवाद लगभग ४० भाषाओं में किया। विलियम कैरी के बारे में, लेखक जे. हर्बर्ट केन समझाता है: “उसने [बंगला भाषा की] एक सुंदर, सहज बोलचाल की शैली का आविष्कार किया, जिसने पुराने प्रतिष्ठित रूप की जगह ली, जिससे यह भाषा आधुनिक पाठकों के लिए ज़्यादा स्पष्ट और आकर्षक बन गयी।”

अमरीका में पैदा हुए और पले-बढ़े, एडनाइरम जडसन ने बर्मा की यात्रा की, और १८१७ में बाइबल बर्मी भाषा में अनुवाद करनी शुरू की। बाइबल का अनुवाद करने के लिए किसी पूर्वी भाषा में महारत हासिल करने में होनेवाली मुश्‍किल का वर्णन करते हुए, उसने लिखा: ‘जब हम पृथ्वी की दूसरी ओर रहनेवाले लोगों द्वारा बोली गयी भाषा सीखते हैं, जिनका सोच-विचार करने का तरीक़ा हमसे भिन्‍न होता है, और इसलिए जिनके बोलचाल के तरीक़े पूरी तरह नए होते हैं, और जिनके अक्षर और शब्द, अब तक हमारे सामने आयी किसी भी भाषा से मिलते-जुलते नहीं होते; जब हमारे पास कोई शब्दकोश या दुभाषिया नहीं होता और उस भाषा के शिक्षक की मदद हासिल कर सकने से पहले हमें उस भाषा को थोड़ा-बहुत समझना ज़रूरी होता है—तब इसके लिए कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है!’

जडसन के मामले में, इसका अर्थ था कुछ १८ सालों का कठोर परिश्रम। बर्मी बाइबल का आख़िरी भाग १८३५ में छापा गया था। लेकिन, बर्मा में रहने की उसे बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी। जब वह अनुवाद का काम कर रहा था, उस पर जासूस होने का इलज़ाम लगाया गया और इसलिए उसने मच्छरों से भरे एक जेल में लगभग दो साल बिताए। उसकी रिहाई के कुछ ही समय बाद, उसकी पत्नी और बच्ची बुख़ार के कारण मृत्यु का ग्रास बन गयीं।

जब २५-वर्षीय रॉबर्ट मॉरिसन १८०७ में चीन आया, तो उसने बाइबल को चीनी भाषा में, जो सबसे जटिल लिखित भाषाओं में एक है, अनुवाद करने के बहुत ही कठिन काम का बीड़ा उठाया। उसे चीनी भाषा की बहुत ही कम जानकारी थी, जिसका उसने केवल दो साल पहले अध्ययन करना शुरू किया था। मॉरिसन को चीनी कानून का भी सामना करना था, जो चीन को अलग-थलग रखना चाहता था। चीनी लोगों को विदेशियों को भाषा सिखाने की मनाही थी, और इसका उल्लंघन मृत्युदंड था। एक विदेशी का चीनी भाषा में बाइबल अनुवाद करना मृत्युदंड अपराध था।

निडर किंतु सावधान रहकर, मॉरिसन ने उस भाषा का अध्ययन जारी रखा, और बड़ी तेज़ी से उसे सीखा। दो सालों में ही उसने ईस्ट इंडिया कंपनी में एक अनुवादक की नौकरी हासिल कर ली। दिन के समय, वह कंपनी के लिए काम करता, लेकिन छुप-छुपकर और हर घड़ी पकड़े जाने के डर में, वह बाइबल अनुवाद का काम करता। १८१४ में, चीन में उसके आने के सात साल बाद, उसके पास मसीही यूनानी शास्त्र छपने के लिए तैयार था। पाँच साल बाद, विलियम मिल्न की मदद से, उसने इब्रानी शास्त्र पूरा किया।

यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी—बाइबल अब उस भाषा में “बोल” सकती थी जिसके बोलनेवालों की संख्या संसार में किसी भी अन्य भाषा के बोलनेवालों से ज़्यादा थी। योग्य अनुवादकों के कारण अन्य एशियाई भाषाओं में अनुवाद होने लगे। आज, बाइबल के भाग एशिया की ५०० से अधिक भाषाओं में उपलब्ध हैं।

टिंडल, मॉफ़ॆट, जडसन और मॉरिसन जैसे लोगों ने सालोंसाल मेहनत क्यों की—कुछ ने तो अपनी जान भी जोख़िम में डाली—ताकि ऐसे लोगों के लिए एक किताब का अनुवाद करें जिन्हें वे जानते नहीं थे, और कुछ मामलों में, ऐसे लोगों के लिए जिनकी भाषा लिखित नहीं थी? निश्‍चय ही सम्मान या पैसा पाने के लिए नहीं। वे मानते थे कि बाइबल परमेश्‍वर का वचन है और कि इसे लोगों से “बोलना” चाहिए—सब लोगों से—उनकी अपनी भाषा में।

चाहे आप मानते हों या नहीं कि बाइबल परमेश्‍वर का वचन है, आप शायद इस बात पर सहमत हों कि उन समर्पित अनुवादकों द्वारा दिखायी गयी आत्मत्यागी भावना आज के संसार में दुर्लभ है। एक किताब जो ऐसी निःस्वार्थ भावना जगाती है, क्या जाँचने योग्य नहीं?

[पेज 12 पर चार्ट]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

भाषाओं की संख्या जिनमें बाइबल के भाग सन्‌ १८०० से छापे गए हैं

६८ १०७ १७१ २६९ ३६७ ५२२ ७२९ ९७१ १,१९९ १,७६२ २,१२३

१८०० १९०० १९९५

[पेज 10 पर तसवीर]

बाइबल का अनुवाद करते हुए टिंडल

[पेज 11 पर तसवीर]

रॉबर्ट मॉफ़ॆट

[पेज 12 पर तसवीर]

एडनाइरम जडसन

[पेज 13 पर तसवीर]

रॉबर्ट मॉरिसन