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यह किताब कैसे बची?

यह किताब कैसे बची?

यह किताब कैसे बची?

प्राचीन लेखनों के प्राकृतिक दुश्‍मन थे—आग, नमी, फफूँद। बाइबल ऐसे ख़तरों से सुरक्षित नहीं थी। संसार की सबसे सुलभ किताब बनने के लिए इसने समय के थपेड़ों को कैसे सहा है, इसका रिकॉर्ड अन्य प्राचीन लेखनों से श्रेष्ठ है। यह इतिहास क्षणिक दिलचस्पी से ज़्यादा की माँग करता है।

बाइबल के लेखकों ने अपने शब्दों को पत्थर पर नक़्श नहीं किया था; ना ही उन्होंने उन्हें मिट्टी की मज़बूत पटियाओं पर लिखा था। स्पष्टतया उन्होंने अपने शब्द नाशवान्‌ वस्तुओं पर लिखे थे—पपीरस (इसी नाम के मिस्री पौधे से बना था) और चर्मपत्र (जानवरों की चमड़ी से बना था)।

मूल लेखनों का क्या हुआ? उनमें से ज़्यादातर लेखन शायद प्राचीन इस्राएल में बहुत पहले सड़कर ख़त्म हो गए। विशेषज्ञ ऑस्कार पारॆट समझाता है: “इन दोनों लेखन साधनों [पपीरस और चमड़े] को नमी, फफूँद और अनेक कीड़ों से बराबर ख़तरा रहता है। हम रोज़मर्रा के अनुभव से जानते हैं कि कितनी आसानी से काग़ज़, यहाँ तक कि मज़बूत चमड़ा भी, खुली हवा में या सीलन-भरे कमरे में ख़राब हो जाता है।”

अगर मूल लेखन अस्तित्त्व में नहीं हैं, तो बाइबल लेखकों के शब्द हमारे समय तक कैसे बचे रहे?

अतिसावधान नक़लनवीसों द्वारा सुरक्षित रखे गए

मूल लेखनों के तुरंत बाद, हस्तलिखित प्रतियाँ बनायी जाने लगीं। शास्त्र की नक़ल उतारना असल में प्राचीन इस्राएल में एक रोज़गार बन गया। (एज्रा ७:६; भजन ४५:१) लेकिन, ये प्रतियाँ भी नाशवान्‌ वस्तुओं पर लिखी गयीं। आख़िरकार इनकी जगह दूसरी हस्तलिखित प्रतियों ने ले ली। जब मूल लेखन नहीं रहे, तो ये प्रतियाँ भावी हस्तलिपियों का आधार बनीं। प्रतियों की नक़ल उतारना एक ऐसा काम था जो शताब्दियों तक चलता रहा। शताब्दियों के दौरान नक़लनवीसों द्वारा की गयी ग़लतियों ने क्या बाइबल के पाठ को बहुत ज़्यादा बदल दिया? सबूत कहता है, नहीं।

पेशेवर नक़लनवीस बहुत ही समर्पित थे। जिन शब्दों की वे नक़ल उतारते थे उनके लिए उनमें गहरी श्रद्धा थी। वे अतिसावधान भी थे। इब्रानी शब्द जिसका अनुवाद “नक़लनवीस” किया गया है सोफ़ेर है, जो गिनने और हिसाब रखने का संकेत देता है। नक़लनवीसों के काम की यथार्थता का उदाहरण देने के लिए, मसोरा लेखकों * को लीजिए। उनके बारे में, विद्वान टॉमस हार्टवॆल हॉर्न समझाता है: “उन्होंने . . . यह हिसाब लगाया कि पंचग्रंथ [बाइबल की पहली पाँच किताबों] में बीच का अक्षर कौन-सा है, हर किताब में बीच का वाक्यांश कौन-सा है, और [इब्रानी] वर्णमाला का हर अक्षर सारे इब्रानी शास्त्र में कितनी बार आता है।”

इस प्रकार, कुशल नक़लनवीसों ने अनेक ऐसे तरीक़े अपनाए जिनके द्वारा बाइबल पाठ की यथार्थता को हर पहलू से जाँच सकें। बाइबल पाठ से एक अक्षर भी न छूट जाए, इसके लिए वे नक़ल किए गए शब्दों की ही नहीं परन्तु अक्षरों की भी गिनती करने की हद तक गए। इसमें शामिल मेहनत और सावधानी पर विचार कीजिए: कहा जाता है कि उन्होंने इब्रानी शास्त्र में ८,१५,१४० अलग-अलग अक्षरों का हिसाब रखा! ऐसी कड़ी मेहनत से उच्च स्तर की यथार्थता निश्‍चित हुई।

इसके बावजूद, नक़लनवीस अचूक नहीं थे। क्या कोई ऐसा सबूत है कि, शताब्दियों तक बार-बार नक़ल किए जाने के बावजूद, बाइबल पाठ अब तक भरोसे के योग्य है?

विश्‍वास के लिए ठोस आधार

यह बात मानने का उचित कारण है कि बाइबल हमारे समय तक सही-सही पहुँचायी गयी है। इसका सबूत मौजूदा हस्तलिखित लिपियाँ हैं—संपूर्ण इब्रानी शास्त्र या उसके भागों की अनुमानित ६,००० लिपियाँ और यूनानी भाषा में मसीही शास्त्र की कुछ ५,००० लिपियाँ। इनमें से इब्रानी शास्त्र की एक हस्तलिपि का १९४७ में पता लगाया गया। यह हस्तलिपि एक उदाहरण है कि शास्त्र की नक़ल कितनी यथार्थता से उतारी जाती थी। तब से इसे “आधुनिक समय की सबसे बड़ी हस्तलिपि खोज” कहा गया है।

उस साल के आरंभ में अपनी भेड़ों को चराते वक़्त, एक युवा ख़ानाबदोश चरवाहे ने मृत सागर के पास एक गुफ़ा खोज निकाली। उसमें उसे मिट्टी के कई मर्तबान मिले, जिनमें से ज़्यादातर ख़ाली थे। लेकिन, एक सीलबंद मर्तबान में उसे चमड़े का एक खर्रा मिला जिसे संभालकर कपड़े में लपेटा गया था और जिसमें बाइबल की यशायाह की पूरी किताब थी। इस अच्छी तरह रखे गए लेकिन फटे-पुराने खर्रे में सुधार किए जाने के चिन्ह थे। उस युवा चरवाहे को यह पता नहीं था कि जिस पुराने खर्रे को वह अपने हाथों में लिए हुए है उसे आगे चलकर अंतर्राष्ट्रीय दिलचस्पी हासिल होगी।

इस ख़ास हस्तलिपि के बारे में ऐसी कौन-सी बात इतनी महत्त्वपूर्ण थी? १९४७ में उपलब्ध सबसे पुरानी और संपूर्ण इब्रानी हस्तलिपियाँ लगभग सा.यु. दसवीं शताब्दी की थीं। लेकिन इस खर्रे को सा.यु.पू. दूसरी शताब्दी * का बताया गया था—हज़ार साल से भी ज़्यादा समय पहले का। * विद्वानों को यह जानने में बहुत दिलचस्पी थी कि यह खर्रा बहुत समय बाद बनायी गयी हस्तलिपियों की तुलना में कैसा है।

एक अध्ययन में, विद्वानों ने मृत सागर खर्रे में यशायाह के ५३वें अध्याय की तुलना, एक हज़ार साल बाद बनाए गए मसोरा पाठ से की। बाइबल से एक सामान्य परिचय किताब, इस अध्ययन के परिणामों को समझाती है: “यशायाह ५३ में १६६ शब्दों में से, केवल सत्रह अक्षरों पर संदेह होता है। इनमें से दस अक्षर बस वर्तनी का फ़र्क़ है, जिससे अर्थ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। चार अन्य अक्षर शैली से संबंधित छोटे परिवर्तन हैं, जैसे कि संयोजन। बाक़ी तीन अक्षरों से शब्द “प्रकाश” बनता है, जिसे आयत ११ में जोड़ा गया था, और यह अर्थ पर बहुत बड़ा प्रभाव नहीं डालता। . . . अतः, १६६ शब्दों के एक अध्याय में, हज़ारों सालों के संचारण के बाद केवल एक शब्द है (तीन अक्षर) जिस पर संदेह होता है—और इस शब्द से उस लेखांश के अर्थ में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आता।”

प्रोफ़ॆसर मिलर बरोज़, जो सालों से मृत सागर खर्रों पर काम कर रहे थे, और उनके अंतर्विषय की जाँच कर रहे थे, ऐसे ही निष्कर्ष पर पहुँचे: “यशायाह खर्रे और मसोरा पाठ के बीच . . . अनेक भिन्‍नताएँ, नक़ल उतारने में की गयी ग़लतियों के रूप में समझायी जा सकती हैं। इन्हें छोड़, मध्ययुगीन हस्तलिपियों में पाए गए पाठ के साथ कुल मिलाकर एक असाधारण मेल पाया जाता है। इतनी पुरानी हस्तलिपि से ऐसा मेल, पारंपरिक पाठ की सामान्य यथार्थता का आश्‍वस्त करनेवाला सबूत देता है।”

“आश्‍वस्त करनेवाला सबूत” मसीही यूनानी शास्त्र की नक़ल उतारने के बारे में भी दिया जा सकता है। उदाहरण के लिए, १९वीं शताब्दी में कोडॆक्स साइनाइटीकस की खोज ने, जो सा.यु. चौथी शताब्दी के समय की एक चर्मपत्र हस्तलिपि थी, शताब्दियों बाद बनायी गयी मसीही यूनानी शास्त्र की हस्तलिपियों की यथार्थता को पक्का करने में मदद दी। यूहन्‍ना के सुसमाचार का एक पपीरस भाग मिस्र के फ़ेयूम ज़िले में पाया गया था। इसे सा.यु. दूसरी शताब्दी के पहले हिस्से का बताया गया है, जो मूल लेखन के ५० साल से भी कम समय बाद था। सूखी रेत में यह शताब्दियों तक सुरक्षित रहा। काफ़ी समय बाद लिखी गयी हस्तलिपियों के पाठ से इसका पाठ मेल खाता है।

इस प्रकार सबूत यह पुष्टि करता है कि नक़लनवीस, असल में, बहुत ही यथार्थ थे। फिर भी, उनसे ग़लतियाँ होती थीं। कोई एक हस्तलिपि परिशुद्ध नहीं है—यशायाह का मृत सागर खर्रा भी नहीं। फिर भी, जहाँ-जहाँ मूलपाठ से प्रतियाँ भिन्‍न थीं, उन सभी भिन्‍नताओं को ढूँढ़कर सही करने में विद्वान समर्थ हुए हैं।

नक़लनवीसों की ग़लतियों को ठीक करना

सोचिए कि १०० व्यक्‍तियों से एक लंबे दस्तावेज़ की एक हस्तलिखित प्रति बनाने के लिए कहा जाए। निश्‍चय ही कुछ नक़लनवीस ग़लतियाँ करेंगे। लेकिन, वे सभी एक-सी ग़लतियाँ नहीं करेंगे। अगर आप सभी १०० प्रतियों को लेते और बड़ी सावधानी से उनकी तुलना करते, तो आप ग़लतियों को ढूँढ़ पाएँगे और पहले दस्तावेज़ के सही-सही पाठ को प्राप्त कर पाएँगे, चाहे आपने उसे पहले कभी देखा भी न हो।

उसी तरह, सभी बाइबल नक़लनवीसों ने एक-सी ग़लतियाँ नहीं कीं। तुलना करके विश्‍लेषण करने के लिए अब असल में हज़ारों बाइबल हस्तलिपियों की मौजूदगी से, मूलपाठ विद्वान ग़लतियाँ पहचान सके हैं, मूल शब्द निश्‍चित कर सके हैं, और ज़रूरी सुधार लिख सके हैं। ऐसे ध्यानपूर्ण अध्ययन के परिणामस्वरूप, मूलपाठ के विद्वानों ने मूल भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ बाइबल पाठ की रचना की है। इब्रानी और यूनानी पाठ के ये परिष्कृत संस्करण, उन शब्दों को अपनाते हैं जिन्हें सामान्यतः मूल शब्द समझा जाता है। कुछ हस्तलिपियों में पाए जा सकनेवाले परिवर्तनों या भिन्‍न अनुवादों को इन संस्करणों में अकसर फुटनोट के माध्यम से दिया गया है। मूलपाठ विद्वानों द्वारा रचे गए इन परिष्कृत संस्करणों से ही बाइबल अनुवादक आधुनिक भाषाओं में बाइबल का अनुवाद करते हैं।

सो जब आप बाइबल का एक आधुनिक अनुवाद पढ़ते हैं, तो इस विश्‍वास का पर्याप्त कारण है कि इब्रानी और यूनानी पाठ जिन पर यह अनुवाद आधारित है, असाधारण ईमानदारी से मूल बाइबल लेखकों के शब्दों को पेश करते हैं। * इसका रिकॉर्ड सचमुच अनोखा है कि हज़ारों साल तक हाथ से बाइबल की बार-बार नक़ल उतारी जाने पर भी यह कैसे बची रही। इसलिए एक अरसे से ब्रिटिश म्यूज़ियम के अध्यक्ष रहे, सर फ्रॆडरिक कॆन्यन कह सके: “इस बात का निश्‍चित रूप से दावा किया जा सकता है कि कुल मिलाकर बाइबल का पाठ विश्‍वसनीय है . . । संसार में किसी और प्राचीन किताब के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता।”१०

[फुटनोट]

^ मसोरा लेखक (अर्थात्‌ “परंपरा के महारथी”) इब्रानी शास्त्र के नक़लनवीस थे जो सा.यु. छठवीं और दसवीं शताब्दियों के बीच जीए थे। जिन हस्तलिपि प्रतियों को उन्होंने बनाया उन्हें मसोरा पाठ पुकारा जाता है।

^ सा.यु.पू. का अर्थ है “सामान्य युग पूर्व।” सा.यु. “सामान्य युग” को सूचित करता है, जिसे अकसर ए.डी. कहा जाता है जो एनो डॉमिनी का संक्षिप्त रूप है, अर्थात्‌ “प्रभु के साल में।”

^ इमानवॆल तोव की इब्रानी बाइबल की पाठालोचना कहती है: “कार्बन १४ जाँच की सहायता से, 1QIsaa [मृत सागर यशायाह खर्रा] की तिथि अब २०२ और १०७ सायुपू के बीच दी गयी है (पुरालिपीय तिथि: १२५-१०० सायुपू) . . । बताए गए पुरालिपीय तरीक़े को हाल के सालों में बेहतर किया गया है। इस तरीक़े में अक्षरों के आकार और स्थिति की तुलना बाहरी प्रमाणों, जैसे कि तारीख़वाले सिक्कों और शिलालेखों से की जाती है। इसके आधार पर सुनिश्‍चित तिथि-निर्धारण हो पाता है। यह तरीक़ा अब बाक़ियों की तुलना में भरोसेमंद तरीक़े के रूप में क़ायम हो चुका है।”

^ हाँ, हो सकता है कि भिन्‍न-भिन्‍न अनुवादकों ने मूल इब्रानी और यूनानी पाठ के पालन में सख़्ती या नरमी बरती हो।

[पेज 8 पर तसवीर]

बाइबल को कुशल नक़लनवीसों ने सुरक्षित रखा

[पेज 9 पर तसवीर]

यशायाह का मृत सागर खर्रा (नक़ल दिखायी गयी), और एक हज़ार साल बाद रचा गया मसोरा पाठ लगभग समान हैं