जहन्नुम क्या यह ख़ुदाई इंसाफ का हिस्सा है?
जहन्नुम क्या यह ख़ुदाई इंसाफ का हिस्सा है?
कोई किसी को तड़पाए ऐसा मंज़र कभी आपने देखा है? हम ऐसी उम्मीद नहीं करते। दरअसल, किसी को जानबूझकर तड़पाना एक घिनौनी और वहशी हरकत है। मगर ख़ुदा किसी को तड़पाए तो उसके बारे में क्या? क्या आप ऐसा तसव्वुर कर सकते हैं? जबकि जहन्नुम की आग में तड़पाने की तालीम का मतलब यही होता है, जो कई मज़हबों में साहिबे-अख़्तियार तालीम मानी जाती है।
आगे बताए गए दर्दनाक मंज़र पर चंद लम्हों के लिए ग़ौर कीजिए: एक आदमी को लोहे के गरम तवे के ऊपर भूना जा रहा है। उस अज़ाब में, वो रहम की भीख माँग रहा है, लेकिन उसकी कोई नहीं सुनता। उसे तड़पाया जाना बगैर किसी रुकावट के घंटा-ब-घंटा, दिन-ब-दिन लगातार जारी रहता है!
एक इंसान ने चाहे कैसा भी जुर्म क्यों न किया हो, उसकी ऐसी हालत देखकर क्या आपका दिल नहीं पसीजेगा? और जिसने तड़पाने का हुक्म दिया है उसके बारे में क्या सोचें? क्या उसे एक मुहब्बती इंसान कहा जा सकता है? किसी भी हालत में नहीं! मुहब्बत रहीम होती है, जो तरस दिखाती है। एक मुहब्बती बाप अपने बच्चों को सज़ा दे सकता है मगर उनको कभी तड़पाएगा नहीं!
इसके बरअक्स बहुत-से मज़हब ये सिखाते हैं कि ख़ुदा गुनहगारों को हमेशा के लिए जहन्नुम की आग में तड़पाता है। और ये दावा किया जाता है कि ये ख़ुदाई इंसाफ़ है। अगर ये सच है, तो हमेशा तड़पानेवाली उस ख़ौफ़नाक जगह को किसने बनाया? और वहाँ दिए जानेवाले अज़ाब के
लिए कौन ज़िम्मेवार है? जवाब साफ़ ज़ाहिर हैं। अगर वाकई कोई ऐसी जगह है, तो फिर ज़रूरी है कि ख़ुदा ही उसका बनानेवाला हुआ और जो कुछ भी वहाँ होता है उसका ज़िम्मेवार भी वही हुआ।क्या आप इसे मान सकते हैं? बाइबल a कहती है: “ख़ुदा मुहब्बत है।” (1 यूहन्ना 4:8) तो क्या फिर मुहब्बत का एक ख़ुदा ऐसा ज़ुल्म करेगा? एक इंसान जो थोड़ी-सी भी शर्म रखता है, ऐसा गुरेज़ तक नहीं करेगा। कभी नहीं!
एक ग़ैर-वाजिब तालीम
फिर भी, बहुत से ये यकीन करते हैं कि बुरे लोग एक आग की जहन्नुम में हमेशा तड़पने के लिए डाले जाएँगे। क्या ऐसी तालीम मौज़ू है? इंसानी ज़िंदगी वैसे ही 70 या 80 साल की होती है। फिर भी अगर किसी ने सारी उम्र इंतेहा बुरे ही काम किए हैं, तो क्या उसे हमेशा तड़पाना एक सही सज़ा होगी? हरगिज़ नहीं। एक इंसान को उसके महदूद बुरे कामों के लिए जो उसने अपनी सारी ज़िंदगी में किए, हमेशा की आग में तड़पाने की सज़ा सरासर बे-इंसाफ़ी होगी।
हमारी मौत के बाद क्या होता है इसकी सच्चाई कौन जानता है? सिर्फ ख़ुदा ही हमारे लिए इसे ज़ाहिर कर सकता है और ऐसा उसने अपने लिखे हुए कलाम बाइबल के अंदर किया भी है, जिसका ज़िक्र ऊपर किया गया है। यहाँ बाइबल ऐसा कहती है: “जिस तरह [जानवर] मरता है उसी तरह [इंसान] मरता है, सब में एक ही साँस है। . . . सब के सब एक ही जगह जाते हैं, सब के सब ख़ाक से हैं, और सब के सब ख़ाक से मिल जाते हैं।” (वाऐज़ 3:19,20) यहाँ पर किसी भी आतिशी जहन्नुम का ज़िक्र नहीं है। इंसान ख़ाक में लौट जाता है—मरने के बाद उसका कोई वजूद नहीं रहता।
तड़पने के लिए एक इंसान को होश में होना चाहिए, क्या मरे हुए होश में हैं? जी नहीं। “ज़िंदा जानते हैं के वो मरेंगे पर मुरदे कुछ भी नहीं जानते
और उनके लिए और कुछ अजर नहीं क्योंकि उनकी याद जाती रही है।” (वाऐज़ 9:5) मरे हुओं के लिए ये नामुमकिन है, ‘जिन्हें किसी बात का होश नहीं,’ कि वो जहन्नुम की आग को महसूस करें।एक नुकसानदेह तालीम
कुछ लोग ये बरकरार रखना चाहते हैं कि चाहे जहन्नुम की तालीम सही हो या ग़लत मगर ये फ़ायदेमंद है। लेकिन क्यों? वो ये कहते हैं कि ये बुरे कामों को रोकने का एक तरीका है। क्या ये सच है? तो फिर ज़मीन के उन हिस्सों में जहाँ लोग जहन्नुम की आग में यक़ीन करते हैं, वहाँ क्या गुनाह दूसरी जगहों से कम है? बिलकुल नहीं! दरअसल जहन्नुम की तालीम बहुत नुकसानदेह है। क्या एक शख्स जो ये यक़ीन करता है कि ख़ुदा लोगों को अज़ीयत देता है, क्या ख़ुद अज़ीयत को नफ़रत की नज़र से देखेगा? भला वो ऐसा क्यों करेगा? जो ऐसे बेरहम ख़ुदा में यक़ीन करते हैं अकसर अपने ख़ुदा ही की तरह बेरहम बन जाते हैं।
एक वाजिब इंसान इस बात को चाहे किसी भी नज़र से देखे वो ये बात कभी नहीं मानेगा कि एक जहन्नुम जैसी जगह है जहाँ लोगों को तड़पाया जाता है। दलैल यानी तर्क इसके बिलकुल मुख़ालिफ़ है! इंसानी फ़ितरत इसको नहीं मानती। इससे ज़्यादा अहम बात ये है, कि ख़ुदा का कलाम ही ऐसी किसी जगह के बारे में नहीं बताता। जब इंसान मर जाता है, “तो वो मिट्टी में मिल जाता है। उसी दिन उसके मनसूबे फ़ना हो जाते हैं।”—ज़बूर 146:4.
गुनाह की सज़ा क्या है?
तो फिर क्या इसका ये मतलब हुआ कि हमें अपने गुनाहों की सज़ा नहीं मिलती है? जी नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है। हमारा पाक ख़ुदा गुनहगारों को सज़ा देता है, उन्हें तड़पाता नहीं है। और जब गुनहगार माफ़ी माँगते हैं तो वो उन्हें माफ़ करता है। गुनाह की सज़ा क्या है? बाइबल इसका सीधा जवाब देती है: “गुनाह की मज़दूरी तो मौत है।” (रोमियों 6:23) ज़िंदगी ख़ुदा की तरफ़ से एक तोहफ़ा है। जब हम गुनाह करते हैं तो उस तोहफ़े के लायक नहीं रहते, और हम मर जाते हैं।
आप पूछ सकते हैं: ‘ये इंसाफ़ कहाँ हुआ? क्यों, सभी तो मरते हैं!’ जी हाँ ये सच है क्योंकि हम सभी गुनहगार हैं। दरअसल कोई भी ज़िंदगी के रोमियों 5:12.
क़ाबिल नहीं है। “एक आदमी के सबब से गुनाह दुनिया में आया और गुनाह के सबब से मौत आयी और यूँ मौत सब आदमियों में फैल गई इसलिए के सब ने गुनाह किया।”—इस जगह शायद आप ये सोचें: ‘अगर हम सब गुनाह करते हैं और सब मरते हैं, तो फिर हम नेक क्यों बनें? ऐसा लगता है कि बदकिरदार के साथ भी वैसा ही सलूक होता है जैसा कि ख़ुदा की ख़िदमत करनेवाले के साथ।’ लेकिन ऐसी बात नहीं है, हालाँकि हम गुनहगार हैं, ख़ुदा उन्हें माफ़ करता है जो दिल से पछताते और अपने रास्तों को बदलने की पूरी कोशिश करते हैं। वो हमारी कोशिशों का अजर देता है ताकि हम ‘अपनी अक़्लों को नया बनाएँ’ और अच्छे काम करें। (रोमियों 12:2) ये सच्चाइयाँ एक आलीशान उम्मीद की बुनियाद हैं।
अच्छे कामों का अजर
जब हम मर जाते हैं तो हमारा वजूद ख़त्म हो जाता है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सबकुछ ही ख़त्म हो गया। वफ़ादार अय्यूब को ये मालूम था कि जब वो मरेगा तो कबर (शिओल) में जाएगा। लेकिन उसने ख़ुदा से जो दुआ की ज़रा उस पर ग़ौर कीजिए: “काश के तू मुझे पाताल में छुपा दे। और जब तक तेरा कहर टल ना जाए मुझे पोशीदा रखे और कोई मौइय्यन वक्त मेरे लिए ठहराए और मुझे याद करे! अगर आदमी मर जाए तो क्या वो फिर जीएगा? . . . तू मुझे पुकारता और मैं तुझे जवाब देता।”—अय्यूब 14:13-15.
अय्यूब यक़ीन करता था कि अगर वो मौत तक वफ़ादार रहा, तो ख़ुदा उसे याद करके फिर जी उठाएगा। पुराने ज़माने में ख़ुदा के सारे ख़ादिमों का यही यकीन था। यीशु ने इस उम्मीद को ख़ुद पुख़्ता किया, जब उसने कहा: “वो वक्त आता है के जितने कबरों में हैं उसकी आवाज़ सुनकर निकलेंगे, जिन्होंने नेकी की है ज़िंदगी की कयामत के वास्ते और जिन्होंने बदी की है सज़ा की कयामत के वास्ते।”—यूहन्ना 5:28,29.
मुरदों का जी उठना कब होगा? बाइबल के मुताबिक बहुत ही जल्द। बाइबल की पेशनगोई ज़ाहिर करती है कि 1914 में ये दुनिया अपने “आख़िरी दिनों” में दाख़िल हो गयी। (2 तीमुथियुस 3:1) बहुत-से लोग उसे ‘दुनिया की आख़िरत’ कहते हैं! ख़ुदा बहुत ही जल्द बुराई को निकालकर एक दुनिया बसाएगा जो एक आसमानी हुकूमत के ज़ेरे-असर होगी।—मत्ती, बाब 24; मरकुस, बाब 13; लूका, बाब 21; मुकाशफ़ा 16:14.
इसका नतीजा होगा एक फ़िरदौस, जो सारी ज़मीन पर फैल जाएगा, जिस पर वो लोग बसेंगे जिन्होंने सच्चाई से ख़ुदा की ख़िदमत करने की कोशिश की है। बुरे लोग जहन्नुम की आग में नहीं झुलसेंगे, लेकिन उनके लिए फ़िरदौस में कोई जगह ना होगी। ज़बूर 37:10,11, में हम पढ़ते हैं: “थोड़ी देर में शरीर नाबूद हो जाएगा तू उसकी जगह को ग़ौर से देखेगा पर वो ना होगा लेकिन हलीम मुल्क के वारिस होंगे और सलामती की फ़रावानी से शादमान रहेंगे।”
क्या ये सबकुछ एक ख़्वाब है? जी नहीं, ये ख़ुदा का वायदा है। बाइबल में हम ये पढ़ते हैं: “फिर मैंने तख्त में से किसी को बुलंद आवाज़ से ये कहते सुना के देख ख़ुदा का ख़ैमा आदमियों के दरमियान है और वो उनके साथ सुकूनत करेगा और वो उसके लोग होंगे और ख़ुदा आप उनके साथ रहेगा और उनका ख़ुदा होगा। और वो उनकी आँखों के सब आँसू पोछ देगा। इसके बाद ना मौत रहेगी और ना मातम रहेगा। न आह व नाला ना दर्द। पहली चीज़ें जाती रहीं।”—मुकाशफ़ा 21:3,4.
क्या आप इन लफ़्ज़ों का यकीन करते हैं? आपको करना चाहिए। ख़ुदा के अलफ़ाज़ हमेशा सच्चे होते हैं। (यसायाह 55:11) इंसान के लिए ख़ुदा का क्या मकसद है इसे जानने की हम आपसे गुज़ारिश करते हैं। यहोवा के साक्षी ख़ुशी से आपकी मदद करना चाहेंगे। अगर आप उनकी मदद चाहते हैं, तो हम चाहेंगे कि आप नीचे दिए हुए किसी भी पते पर लिखिए।
जब तक बसूरत दीगर ज़ाहिर ना किया गया हो, बाइबल का मुस्तमल तरजुमा उर्दू रिवाइज़ड वर्शन से है।
[फुटनोट]
a इस्लाम के मुताबिक, बाइबल तीन किताबों से मिलकर बनी है। और ये तौरेत, ज़बूर और इंजील हैं। क़ुरान की करीब 64 आयतें साफ़-साफ़ बताती हैं कि ये तीनों किताबें ख़ुदा का कलाम हैं और इन्हें पढ़ना और उसके क़वानीनों पर चलना ज़रूरी है। कुछ लोग तौरेत, ज़बूर और इंजील की किताबों पर शक करते हैं। वो कहते हैं कि इसमें लिखी हुई बातों को बदल दिया गया है। जो ऐसा दावा करते हैं वो कहते हैं कि ख़ुदा अपने कलाम को महफ़ूज़ नहीं रख सकता है।