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परमेश्‍वर का उद्देश्‍य अब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच रहा है

परमेश्‍वर का उद्देश्‍य अब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच रहा है

परमेश्‍वर का उद्देश्‍य अब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच रहा है

धार्मिक परिस्थितियों में जीनेवाले आनन्दित लोगों को बसाना पृथ्वी की सृष्टि करने में परमेश्‍वर का उद्देश्‍य था। इसमें जीवित रहने के लिए, मनुष्यजाति को परमेश्‍वर के नियमों को मानना था, परन्तु पहले मानव जोड़े ने आज्ञा नहीं मानी और पापी बन गए तथा मृत्यु–दण्ड प्राप्त किया। यह उनकी सब सन्तानों पर पाप और मृत्यु लायी।—उत्पत्ति १:२७, २८; २:१६, १७; ३:१-१९; रोमियों ५:१२.

परमेश्‍वर, जिसका नाम यहोवा है, ने पृथ्वी से अनाज्ञाकारिता के प्रभावों और पाप को हटाने का निर्णय लिया। समय आने पर उसने पृथ्वी पर नज़र डाली और मनुष्यजाति में एक विश्‍वासयोग्य मनुष्य अब्राम को देखा, जिसका नाम उसने बदलकर इब्राहीम रखा। परमेश्‍वर ने इब्राहीम से प्रतिज्ञा की कि उसकी सन्तान एक बड़ी जाति बनेगी और उसी जाति से परमेश्‍वर एक वंश प्रदान करेगा जिसके द्वारा पृथ्वी के सब परिवार स्वयं आशिष प्राप्त करेंगे।—उत्पत्ति १२:१-३; १८:१८, १९; २२:१८, NW; भजन ८३:१८; इब्रानियों ११:८-१६.

सामान्य युग पूर्व १६वीं शताब्दी के अन्त के क़रीब, इब्राहीम के पोते याकूब या इस्राएल की सन्तान १२ गोत्र बन गए जो मिस्र के दासत्व में रहते थे। यहोवा ने इन इस्राएलियों को मिस्र से छुड़ाया और उन्हें एक जाति बनाया। सीनै पर्वत पर मूसा के द्वारा उसने उन्हें उनके राष्ट्रीय संविधान के रूप में व्यवस्था दी। यहोवा उनका राजा, न्यायी, और विधि देनेवाला था। इस्राएल जाति परमेश्‍वर के चुने हुए लोग और उसके गवाह बन गए जो उसके उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए संगठित किए गए। उनके द्वारा मसीहा आता, जो सब जातियों के लोगों के लाभ के लिए एक चिरस्थायी राज्य की स्थापना करता।—निर्गमन १९:५, ६; १ इतिहास १७:७-१४; १ राजा ४:२०, २५; यशायाह ३३:२२, NW; ४३:१०-१२; रोमियों ९:४, ५.

पंद्रह शताब्दियों बाद, या लगभग २,००० वर्ष पहले, परमेश्‍वर ने अपने एकलौते पुत्र को स्वर्ग से पृथ्वी पर यहूदी युवा कुँवारी मरियम से जन्म लेने के लिए भेजा। उसका नाम यीशु रखा गया और उसे उस राज्य का वारिस होना था जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्‍वर ने उसके पूर्वज दाऊद से की थी। तीस वर्ष की आयु में, यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले के द्वारा यीशु का बपतिस्मा हुआ और उसने परमेश्‍वर के राज्य की घोषणा करनी शुरू की। बीमारों को चंगा करने के द्वारा उसने प्रदर्शित किया कि कैसे वह आनेवाला राज्य मानवजाति को आशिष देगा। दृष्टान्तों के द्वारा, उसने बताया कि उन सब से क्या माँग की जाएगी जो अनन्त जीवन चाहते थे। फिर यीशु काठ पर मार डाला गया, उसका परिपूर्ण मानव जीवन मनुष्यजाति के लिए छुड़ौती बना।—मत्ती १:१८-२४; ३:१३-१६; ४:१७-२३; ६:९, १०; अध्याय १३; २०:२८; लूका १:२६-३७; २:१४; ४:४३, ४४; ८:१; यूहन्‍ना ३:१६; प्रेरितों १०:३७-३९.

यीशु ने व्याख्या की थी कि मसीहाई राज्य को दूर भविष्य में, यानी रीति–व्यवस्था की समाप्ति में स्थापित होना था। उस समय वह अदृश्‍य रूप से स्वर्ग में शासन कर रहे राजा के तौर पर उपस्थित होगा और पृथ्वी पर अपना ध्यान निर्दिष्ट करने के द्वारा अपनी उपस्थिति का बोध करवाएगा। संसार की घटनाएँ दिखाती हैं कि हम १९१४ से इस समय में जी रहे हैं। जैसे यीशु ने पूर्वबताया था, राज्य का सुसमाचार सब जातियों पर गवाही के तौर पर सारे जगत में प्रचार किया जा रहा है। जिसका परिणाम यह है कि सब जातियों में से लोग परमेश्‍वर के राज्य के पक्ष में इकट्ठे किए जा रहे हैं। ये लोग वर्तमान रीति–व्यवस्था के नाश से बच जाएँगे और मसीहाई राज्य के अधीन पृथ्वी पर अनन्त जीवन प्राप्त करेंगे।—मत्ती, अध्याय २४ और २५; प्रकाशितवाक्य ७:९-१७.

आज अनेक गिरजे परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने का दावा करते हैं। परन्तु कैसे आप सच्ची मसीही कलीसिया को पहचान सकते हैं? पहली शताब्दी की मसीही कलीसिया के बारे में शास्त्रवचनों की जाँच करने के द्वारा और फिर उनको देखने के द्वारा जो आज उसी नमूने का अनुकरण करते हैं।

• परमेश्‍वर के उद्देश्‍य की पूर्ति में इब्राहीम और इस्राएल ने क्या भूमिका निभायी?

• अपनी सेवकाई तथा अपनी मृत्यु के द्वारा यीशु ने किन बातों को निष्पन्‍न किया?

• हमारे वर्तमान काल को चिह्नित करने के लिए किन घटनाओं की भविष्यवाणी की गयी थी?