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पहली शताब्दी की मसीही कलीसिया

पहली शताब्दी की मसीही कलीसिया

पहली शताब्दी की मसीही कलीसिया

पिन्तेकुस्त सा.यु. ३३ में, पवित्र आत्मा यीशु के १२० चेलों पर उँडेली गयी, और अनेक भाषाओं में उन्होंने परमेश्‍वर के बड़े-बड़े कामों के बारे में बताना शुरू किया। यह मसीही कलीसिया की शुरूआत थी। लगभग ३,००० नए चेलों ने उस दिन बपतिस्मा लिया।—प्रेरितों, अध्याय २.

विभिन्‍न स्थानों में कलीसियाओं की संख्या बढ़ने लगीं जैसे-जैसे प्रेरितों और दूसरों ने परमेश्‍वर का वचन निडरता से बताना जारी रखा। जैसा प्रेरितों की किताब में अभिलिखित है, शीघ्र ही प्रचार कार्य पूरे भूमध्य क्षेत्र में, बाबुल और उत्तरी अफ्रीका से रोम और शायद स्पेन तक फैल गया।—रोमियों १५:१८-२९; कुलुस्सियों १:२३; १ पतरस ५:१३.

जहाँ कहीं लोग चेले बने, उन्होंने कलीसियाएँ बनाईं। कलीसियाओं में सही शिक्षा और आचरण का स्तर बनाए रखने के लिए योग्य, परिपक्व पुरुष, प्राचीनों या अध्यक्षों के रूप में नियुक्‍त किए गए। परन्तु उन्होंने एक पादरी–वर्ग संस्थापित नहीं किया; वे परमेश्‍वर के राज्य के सेवक और सहकर्मी थे।—प्रेरितों १४:२३; २०:२८; १ कुरिन्थियों ३:५; ५:१३; कुलुस्सियों ४:११; १ तीमुथियुस ३:१-१५; इब्रानियों १३:१७; १ पतरस ५:१-४.

प्रेरित और दूसरे निकट सहकर्मी एक शासी निकाय के रूप में काम करते थे। वे प्रचार कार्य में अगुवाई करते थे। उन्होंने यरूशलेम की कलीसिया की समस्याओं का समाधान किया। उन्होंने नए विश्‍वासियों को मज़बूत करने के लिए योग्य भाइयों को सामरिया और अन्ताकिया भेजा। उन्होंने खतना के सम्बन्ध में उठे विवाद को निपटाया, और अपना निर्णय सब कलीसियाओं को पालन करने के लिए भेजा। फिर भी ये पुरुष दूसरों के ऊपर प्रभुता जतानेवाले नहीं थे लेकिन पूरी कलीसिया के सेवक और सहकर्मी थे।—प्रेरितों ४:३३; ६:१-७; ८:१४-२५; ११:२२-२४; १५:१-३२; १६:४, ५; १ कुरिन्थियों ३:५-९; ४:१, २; २ कुरिन्थियों १:२४.

प्रारम्भिक चेले मसीहियों के तौर पर जाने जाते थे, जो परमेश्‍वरीय प्रबन्ध द्वारा ऐसे कहलाए गए थे। उनके पास वह शिक्षाएँ भी थीं जो उनकी अलग पहचान कराती थीं; इन्हें प्रेरितों की शिक्षा, या स्वास्थ्यकर वचनों का नमूना कहा जाता था। यह शास्त्रीय शिक्षा सत्य के रूप में भी जानी जाती थी।—यूहन्‍ना १७:१७; प्रेरितों २:४२; ११:२६; रोमियों ६:१७; १ तीमुथियुस ४:६; ६:१, ३; २ तीमुथियुस १:१३, NW; २ पतरस २:२; २ यूहन्‍ना १, ४, ९.

वे प्रेम में संयुक्‍त भाइयों का एक विश्‍व–व्यापी संघ थे। उन्होंने दूसरे देशों के अपने संगी विश्‍वासियों में दिलचस्पी दिखायी। जब वे विदेश में यात्रा करते थे, संगी विश्‍वासी अपने घरों में उनका स्वागत करते थे। उन्होंने नैतिक आचरण का एक ऊँचा स्तर बनाए रखा, और वे संसार से अलग, पवित्र लोग थे। उन्होंने हमेशा यहोवा की उपस्थिति के दिन के समय को ध्यान में रखा और उत्साहपूर्वक अपने विश्‍वास की सार्वजनिक घोषणा की।—यूहन्‍ना १३:३४, ३५; १५:१७-१९; प्रेरितों ५:४२; ११:२८, २९; रोमियों १०:९, १०, १३–१५, NW; तीतुस २:११-१४; इब्रानियों १०:२३; १३:१५; १ पतरस १:१४-१६; २:९-१२; ५:९; २ पतरस ३:११-१४; ३ यूहन्‍ना ५–८.

तथापि, जैसा पहले बताया गया था, दूसरी और तीसरी शताब्दी में, एक बड़े धर्म–त्याग के विकास की शुरूआत हुई। इसका परिणाम यह हुआ की बृहत गिरजा-व्यवस्थाएँ बनीं जिन्होंने शिक्षा, आचरण, संगठन, और संसार के प्रति स्थिति के सम्बन्ध में प्रारम्भिक मसीही कलीसिया की शुद्धता को बनाए नहीं रखा।—मत्ती १३:२४-३०, ३७–४३; २ थिस्सलुनीकियों, अध्याय २.

लेकिन, यीशु ने पहले से बताया था कि इस रीति–व्यवस्था की समाप्ति में सच्ची उपासना की पुनःस्थापना की जाएगी। यहोवा के गवाह विश्‍वास करते हैं कि यह पुनःस्थापना यीशु की भविष्यवाणी के लगभग १,९०० वर्ष बाद, हमारे समय में उनके विश्‍वव्यापी कार्य में देखी जा सकती है। आगे के पृष्ठ बताएँगे कि ऐसा क्यों है।

• मसीही कलीसिया की स्थापना कैसे हुई, और यह कैसे बढ़ी?

• कलीसिया का निरीक्षण कैसे किया गया?

• कौनसी बातों ने पहली–शताब्दी के मसीहियों को स्पष्ट रूप से अलग किया?

[पेज ७ पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

काला सागर

कैस्पियन समुद्र

महासागर

लाल सागर

फ़ारस की खाड़ी

पहली शताब्दी में जिन क्षेत्रों में सुसमाचार पहुँचा

इटली

रोम

यूनान

माल्टा

क्रेते

साइप्रस

बिथुनिया

गलतिया

एशिया

कप्पदुकिया

किलिकिया

सिरिया

इस्राएल

यरूशलेम

मिसुपुतामिया

बाबुल

इन क्षेत्रों के कुछ लोग विश्‍वासी बने

इल्लुरिकुम

मेदी

पारथी

एलाम

अरबिया

लीबिया

मिस्र

इथियोपिया

[पेज ७ पर तसवीरें]

प्रारम्भिक मसीहियों ने निडरता से परमेश्‍वर के वचन का प्रचार किया जहाँ कहीं वे यात्रा करते थे

मसीहियों का संगी विश्‍वासियों के घरों में स्वागत किया जाता था