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आपकी ज़िंदगी किस तरफ जा रही है?

आपकी ज़िंदगी किस तरफ जा रही है?

आपकी ज़िंदगी किस तरफ जा रही है?

• आज कई लोग रोज़मर्रा के कामों में इतने डूबे हुए हैं कि कभी सोचते ही नहीं कि उनकी ज़िंदगी किस तरफ जा रही है।

• बाइबल हमें सचेत करती है कि भविष्य में कैसी अनोखी घटनाएँ होंगी। साथ ही, यह हमें आगाह करती है कि संसार भर में मौजूद इंसानी संगठनों में भारी उथल-पुथल होनेवाली है। बाइबल की इस जानकारी से फायदा पाने और आनेवाले संकट से बचने के लिए हमें बिना देर किए सही कदम उठाना होगा।

• कुछ लोग जानते तो हैं कि बाइबल क्या कहती है और उस पर अमल करने की कोशिश भी करते हैं, मगर ज़िंदगी की चिंताओं में उलझकर सही राह से भटक जाते हैं।

• आपकी ज़िंदगी जिस तरफ जा रही है, क्या आप उससे खुश हैं? जब भी आप कुछ योजना बनाते हैं, तो क्या आप सोचते हैं कि आगे चलकर आपकी ज़िंदगी पर इसका क्या असर होगा?

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आपके लिए कौन-सी बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है?

नीचे बतायी बातों को आप कितना ज़रूरी समझते हैं? उनकी अहमियत के हिसाब से उन्हें नंबर दीजिए।

इनमें से कई बातों की ज़िंदगी में अपनी एक जगह है, लेकिन अगर आपके सामने चुनाव रखा जाए तो आप किस बात को पहला, दूसरा, और बाकी नंबर देंगे?

․․․ मनोरंजन/मन-बहलाव

․․․ मेरी नौकरी या मेरा करियर

․․․ मेरी सेहत

․․․ मेरी खुशी

․․․ मेरा जीवन-साथी

․․․ मेरे माता-पिता

․․․ मेरे बच्चे

․․․ एक अच्छा घर, बढ़िया कपड़े

․․․ हर काम में अव्वल होने की चाहत

․․․ परमेश्‍वर की उपासना

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क्या आपके चुनाव ऐसी ज़िंदगी की ओर ले जा रहे हैं जैसी आप वाकई जीना चाहते हैं?

इन सवालों पर गौर कीजिए

मनोरंजन/मन-बहलाव: मैं जिस तरीके से अपना मन-बहलाता हूँ, क्या उससे मुझे ताज़गी मिलती है? क्या मैं सनसनीखेज़ खेलों से मन बहलाता हूँ जिनका मेरी सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है या मैं हमेशा के लिए अपाहिज हो सकता हूँ? क्या मुझे ऐसे मनोरंजन पसंद हैं जिनसे मुझे चंद घंटों का “मज़ा” तो मिलता है, मगर बाद में लंबे समय तक मुझे पछतावा होता है और बुरा लगता है? मैं जो मनोरंजन चुनता हूँ वे भले ही अच्छे किस्म के हों, मगर क्या मैं उनमें इतना डूब जाता हूँ कि ज़रूरी कामों के लिए मुझे ज़रा भी वक्‍त नहीं मिलता?

मेरी नौकरी या मेरा करियर: क्या मैं अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए नौकरी करता हूँ या फिर नौकरी का बिलकुल गुलाम बन चुका हूँ? क्या मैं नौकरी में इतना समय और इतनी ताकत लगाता हूँ कि इसका मेरी सेहत पर बुरा असर हो रहा है? अगर मेरे सामने ओवरटाइम करने या अपने जीवन-साथी और बच्चों के साथ समय बिताने का चुनाव रखा जाए तो मैं क्या पसंद करूँगा? अगर मेरा मालिक चाहता है कि मैं अपने विवेक के खिलाफ काम करूँ या ऐसा कोई काम करूँ जिससे मेरे आध्यात्मिक कामों में रुकावट पैदा होगी तो क्या मैं अपनी नौकरी बचाने के लिए मालिक की बात मान लूँगा?

मेरी सेहत: क्या मैं अपनी सेहत के मामले में लापरवाह हूँ या उसकी देखभाल के लिए हमेशा एहतियात बरतता हूँ? क्या मैं हमेशा दूसरों से अपनी सेहत के बारे में ही बात करता हूँ? क्या मैं अपनी सेहत का इस तरह खयाल रखता हूँ जिससे ज़ाहिर हो कि मुझे अपने परिवार की चिंता है?

मेरी खुशी: क्या मैं हमेशा सिर्फ अपनी खुशी की सोचता हूँ? क्या मैं अपने जीवन-साथी और परिवार की खुशी से पहले अपनी खुशी को अहमियत देता हूँ? मैं जिन तरीकों से खुशी पाने की कोशिश करता हूँ, क्या वे सच्चे परमेश्‍वर के एक सेवक लिए सही हैं?

मेरा जीवन-साथी: क्या मैं अपने जीवन-साथी को सिर्फ उस वक्‍त अपना हमदम समझता हूँ जब मुझे उसकी ज़रूरत महसूस होती है? क्या मैं अपने साथी की इज़्ज़त करता हूँ और समझता हूँ कि वह इसका हकदार है? क्या मैं अपने जीवन-साथी के बारे में वैसा ही नज़रिया रखता हूँ जैसा यहोवा पर विश्‍वास रखनेवाले एक इंसान का होना चाहिए?

मेरे माता-पिता: बच्चे खुद से पूछ सकते हैं कि क्या मैं अपने माता-पिता की बात मानता हूँ—कुछ पूछे जाने पर क्या मैं अदब से जवाब देता हूँ, वे मुझे जो काम सौंपते हैं उन्हें पूरा करता हूँ, घर आने के लिए वे जो समय तय करते हैं, उसी समय घर आता हूँ, जिस तरह की संगति या कामों से वे मुझे खबरदार करते हैं, उनसे दूर रहता हूँ? अगर मैं एक बालिग हूँ, तो क्या मैं अपने माता-पिता की बात आदर के साथ सुनता हूँ, ज़रूरत पड़ने पर उनकी मदद करता हूँ? क्या मैं अपनी सहूलियत के हिसाब से उनकी मदद करता हूँ या परमेश्‍वर के वचन की सलाह के मुताबिक?

मेरे बच्चे: क्या मैं बच्चों को सही नैतिक उसूल सिखाना अपनी ज़िम्मेदारी समझता हूँ, या उम्मीद करता हूँ कि बच्चे स्कूल में यह सब सीख जाएँगे? क्या मैं बच्चों के साथ वक्‍त बिताता हूँ, या मानता हूँ कि खिलौने, टीवी या कंप्यूटर मेरी कमी को पूरा कर देंगे? बच्चे जब भी परमेश्‍वर की चितौनियों को नज़रअंदाज़ करते हैं, क्या मैं उन्हें अनुशासन देता हूँ, या सिर्फ तभी अनुशासन देता हूँ जब उनकी किसी हरकत से मुझे खीज आती है?

एक अच्छा-सा घर, बढ़िया कपड़े: क्या बात मुझे अपने रंग-रूप और घर के साज़ो-सामान पर ध्यान देने के लिए उकसाती है—अपने पड़ोसियों की नज़रों में छा जाना? अपने परिवार की भलाई? या यह कि मैं परमेश्‍वर का उपासक हूँ?

हर काम में अव्वल होने की चाहत: क्या मैं मानता हूँ कि मुझे हर काम को बढ़िया-से-बढ़िया तरीके से करना है? क्या मैं अव्वल आने की जी-तोड़ कोशिश करता हूँ? अगर कोई मुझसे बेहतर काम करता है, तो क्या मुझे जलन होती है?

परमेश्‍वर की उपासना: क्या मैं मानता हूँ कि अपने जीवन-साथी, बच्चों, माता-पिता या मालिक से ज़्यादा परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाना ज़रूरी है? आरामदायक ज़िंदगी की चाह में, क्या मैं परमेश्‍वर की सेवा को दूसरी जगह देता हूँ?

बाइबल की इन सलाहों पर गहराई से सोचिए

आपकी ज़िंदगी में परमेश्‍वर की क्या जगह है?

सभोपदेशक 12:13: “परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।”

खुद से पूछिए: क्या मेरी ज़िंदगी दिखाती है कि मैं इस सलाह को मान रहा हूँ? क्या मैं परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानने के लिए घर पर, काम की जगह या स्कूल में अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करता हूँ? या क्या मैं ज़िंदगी के दूसरे कामों या दबावों से फुरसत मिलने पर ही परमेश्‍वर की उपासना के लिए समय देता हूँ?

परमेश्‍वर के साथ आपका रिश्‍ता कैसा है?

नीतिवचन 3:5, 6: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।”

मत्ती 4:10: “तू प्रभु अपने परमेश्‍वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।”

खुद से पूछिए: क्या मैं परमेश्‍वर के बारे में ठीक वैसा ही महसूस करता हूँ जैसा इन आयतों में बताया गया है? क्या मेरे रोज़मर्रा के काम और जिस तरह से मैं मुश्‍किल हालात से निपटता हूँ, उनसे ज़ाहिर होता है कि मैं परमेश्‍वर पर भरोसा रखता हूँ और उसकी भक्‍ति करता हूँ?

बाइबल की पढ़ाई और अध्ययन को आप कितना ज़रूरी समझते हैं?

यूहन्‍ना 17:3: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।”

खुद से पूछिए: बाइबल पढ़ने और उसकी बातों पर मनन करने के लिए क्या मैं काफी समय देता हूँ जिससे ज़ाहिर हो कि मुझे इस आयत पर यकीन है?

मसीही कलीसिया की सभाओं में हाज़िर होना आपके लिए कितनी अहमियत रखता है?

इब्रानियों 10:24, 25: “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें . . . और ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो।”

भजन 122:1: “जब लोगों ने मुझ से कहा, कि हम यहोवा के भवन को चलें, तब मैं आनन्दित हुआ।”

खुद से पूछिए: क्या मेरी ज़िंदगी दिखाती है कि मैं परमेश्‍वर के वचन की इस आज्ञा को एहसान भरे दिल से मानता हूँ? पिछले महीने क्या मैंने कोई और काम में लगे रहने की वजह से किसी मसीही सभा को नागा किया था?

क्या आप पूरे जोश के साथ दूसरों को परमेश्‍वर और उसके मकसद के बारे में बताते हैं?

मत्ती 24:14: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि . . . गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।”

मत्ती 28:19, 20: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ . . . उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।”

भजन 96:2: “यहोवा के लिये गाओ, उसके नाम को धन्य कहो; दिन दिन उसके किए हुए उद्धार का शुभसमाचार सुनाते रहो।”

खुद से पूछिए: क्या मैं इस काम को अपनी ज़िंदगी में उतनी अहमियत देता हूँ जितना कि ज़रूरी है? क्या मैं इसमें इतनी मेहनत करता हूँ जिससे ज़ाहिर हो कि मैं वक्‍त की नज़ाकत को समझ रहा हूँ?