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हमारी समस्याएँ—उन्हें हल करने में कौन हमारी मदद करेगा?

हमारी समस्याएँ—उन्हें हल करने में कौन हमारी मदद करेगा?

हमारी समस्याएँ—उन्हें हल करने में कौन हमारी मदद करेगा?

तूफ़ानी बादल जमा हो रहे थे जब रामू अपने पड़ोसी के घर तक जानेवाले ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर सँभलकर जा रहा था। उसे कुछ घबराहट-सी महसूस हो रही थी। परीक्षा का समय नज़दीक़ आ चुका था, और वह गणित के कुछ पाठ समझ नहीं पा रहा था। उसकी माँ ने आग्रह किया था कि वह उनके पड़ोसी के पास जाकर उनकी मदद माँगे, पर रामू ने कभी मास्टरजी से बात नहीं की थी, जो कि शहर की एक पाठशाला में गणित सिखाया करते थे। माँ ने कहा था कि वह एक दोस्ताना क़िस्म का परिवार था और मदद करने में उन्हें खुशी होगी। आख़िर, क्या मास्टरजी की पत्नी ने माँ की यह हालत देखकर रॅशन की दुकान से उसका अनाज-दाना उठाकर नहीं लाया था?

रामू ने अपनी माँ के बारे में सोचा और वह सुबह-शाम कितनी कड़ी मेहनत करती थी। और जल्द ही परिवार में एक और सदस्य आनेवाला था, जिसे खिलाना-पिलाना, कपड़े पहनाना और जिसकी देख-भाल करना पड़ता। तो यह कोई ताज्जुब की बात न थी कि उसका पिता उसे अच्छी तरह पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित करता रहता ताकि उसे एक अच्छी नौकरी मिले जिस से वह परिवार का भार उठाने में मदद कर सकता था।

वह मास्टरजी के घर तक पहुँच गया था। जब वह दरवाज़े पर ही हिचकिचा रहा था, एक कृपालु आवाज़ ने कहा: “हैलो, अन्दर आ जाओ,” और रामू अन्दर गया।

कुछ समय बाद, रामू का पिता, आनन्द, अपनी नौकरी से घर लौट रहा था और उसने अपने बेटे को मास्टरजी के घर से निकलते हुए देखा। रामू खुश नज़र आ रहा था, और उसकी चाल में एक नई स्फूर्ति थी। जैसे ही आनन्द मास्टरजी के घर के पास पहुँचा, आकाश मानो खुल गया, और मूसलाधार बारिश होने लगी। शिक्षक ने, जो कि रामू को अपने घर की ओर दौड़ता देख रहे थे, आनन्द को घर में बुला लिया और धारासार वर्षा को बाहर ही रखने के लिए दरवाज़े को झट से बन्द कर दिया।

वह समस्याएँ जो हम सब के सम्मुख हैं

अपनी साइकिल मरम्मत की दुकान में बिताए अपने नीरस दिन के बाद थका-मान्दा होने के कारण, आनन्द ने खुशी-खुशी एक प्याला गरमा-गरम चाय स्वीकार कर ली, जो मास्टरजी की पत्नी, मरियम ने उसके लिए बनायी थी। आनन्द ने साफ़-सुथरे कमरे को सरसरी रूप से देखा जब कि मरियम फिर से अपनी सिलाई मशीन के पास लौट गयी और पॉल तथा रेचल, मास्टरजी के बच्चे, अपना अपना गृहपाठ करने बैठ गए। अचानक, आनन्द को बड़ी कड़वाहट महसूस हुई और वह अपने आप को यह कहने से न रोक सका, “मैं देख सकता हूँ कि आप को उन सारी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ रहा है, जिनका मुझे हर दिन करना पड़ता है। आप सब इतने शान्त और सन्तुष्ट हैं। मुझे आप से कितनी जलन होती है!” मास्टरजी ने मुस्कराकर कहा, “ख़ैर, हमें भी अपने हिस्से की समस्याएँ हैं, आनन्द। लेकिन कौनसी बात तुम्हें ख़ास तौर से परेशान कर रही है?”

मास्टरजी की कृपालु दिलचस्पी से खुश होकर, आनन्द अपनी दिल की बात कहने लगा। पैसा, यही तो मुख्य बात थी। यह कभी काफ़ी नहीं था। मकान-मालिक किराए को बढ़ाते जा रहा था; स्कूल की फ़ीस और किताबों तथा यूनिफ़ॉर्मों की क़ीमत हमेशा बढ़ती थी। हर बार जब उसकी पत्नी, निर्मला, बाज़ार से लौटती, वह मूलभूत आवश्‍यकताओं के भी बढ़ते हुए दामों के बारे में शिकायत करती। अब वह फिर से गर्भवती थी, और डॉक्टर ने कहा था कि उसे टॉनिक की ज़रूरत है, क्योंकि वह कमज़ोर थी और उस में खून की कमी थी। पैसा कहाँ से आनेवाला था? अपने बेटे रामू को स्कूल ख़त्म करने में अभी कुछ साल बाक़ी थे, और एक अच्छे स्कूल में उसे भेजने के लिए जितना सारा ख़र्च हुआ था, उसके बावजूद क्या गारंटी थी कि उसे एक अच्छी नौकरी मिल जाती? अजी, कालेज के स्नातक भी, जिनके पास कई डिग्रियाँ थीं, बेरोज़गार थे। तो एक साइकिल-मरम्मत करनेवाले के बेटे को ऐसी नौकरी पाने की क्या उम्मीद थी जो उनकी ज़िन्दगी के हालातों को बेहतर बना देती? वह अपनी बेटियों के लिए वर पाने की आशा कैसे कर सकता था जब उनको दहेज देने के लिए पैसे ही नहीं थे। हालाँकि यह ग़ैर-क़ानूनी था, लोग फिर भी किसी न किसी रूप में इस के लिए माँग करते थे।

आनन्द अपने आप को एक ईमानदार आदमी समझता था। उसके माता-पिता ने उसे सिखाया था कि झूठ नहीं बोलना चाहिए और न ही बेईमानी करनी चाहिए। लेकिन उस से उसका क्या फ़ायदा हुआ था? उसे भ्रष्टाचार तो पसन्द नहीं था, लेकिन वह समझ गया कि ईमानदार तरीक़ों को अपनाकर वह शायद कभी आगे नहीं बढ़ेगा। दूसरे साइकिल-मरम्मत करनेवाले चोरी में आए हुए साइकिलों में व्यापार करते थे और पुराने फ़ालतू पुर्ज़ों को नया कहकर बेचते थे, और उनका धंधा तो बहुत अच्छा चल रहा था। तो क्यों न वह भी वही करे? कुछ और पैसा आ जाता तो उसका बहुत-सा भार हल्का हो जाता।

जब तक आनन्द ने अपना दुःखडा समाप्त नहीं किया तब तक मास्टरजी सहनशक्‍ति और सहानुभूति से सुनते ही रहे।

“आनन्द,” उन्होंने पूछा, “क्या तुम सचमुच सोचते हो कि पैसों से तुम्हारी समस्याओं का हल होगा? क्या तुम सोचते हो कि सभी अमीर लोग खुश हैं, सुरक्षित हैं और उनकी कोई समस्याएँ नहीं हैं? क्या वे कभी बीमार नहीं पड़ते? क्या उनके बच्चे ड्रग एडिक्ट, अनैतिक और अक्खड़ नहीं होते? क्या हम उन तथाकथित विकसित देशों में, जहाँ बहुत ज़्यादा पैसा है, भ्रष्टाचार, घूसख़ोरी, बेरोज़गारी और बढ़ती हुई हिंसा के बारे में नहीं सुनते? नहीं, आनन्द, मैं नहीं मान सकता कि सिर्फ़ पैसों से ही तुम्हारी या मेरी समस्याओं का हल हो सकता है।”

“आपकी समस्याएँ,” आनन्द ने कहा, “वे क्या हैं?”

“वे तुम्हारी जैसे ही तो हैं, आनन्द। मैं समझता हूँ कि हम में से अधिकांश लोगों की एक जैसी समस्याएँ हैं।”

“पर आप मेरे जैसे परेशान तो नहीं हैं। मैं देख सकता हूँ कि आपका परिवार शान्तमना और खुश है। आपका राज़ क्या है, मास्टरजी?”

“ख़ैर, आनन्द, हमारे पूरे परिवार को यक़ीन है कि एक व्यक्‍ति हैं जो हमारी समस्याओं का हल जल्द ही करनेवाले हैं।”

“क्यों, आप कोई खज़ाना विरासत में पाने वाले हैं क्या?”

“नहीं, वह नहीं,” मास्टरजी ने हँसते हुए कहा। “नहीं, आनन्द, हमारा विश्‍वास है कि बहुत जल्द परमेश्‍वर दुनिया के मामलों में दख़ल देनेवाले हैं और एक ऐसा परिवर्तन लानेवाले हैं जिस से सभ्य, शान्तिप्रिय लोगों को अब और महँगाई, बीमारी, अपराध, गृह-प्रबंध की समस्याएँ, बेरोज़गारी, हिंसा या असुरक्षा से परेशान होना नहीं पड़ेगा।”

आनन्द का चेहरा भौचक्का दिखायी दिया। “आप तो बिल्कुल मेरी माँ के जैसे बोल रहे हैं: ‘सब कुछ परमेश्‍वर पर छोड़ दो; तुम्हारा नसीब तो उसी के हाथ में है।’ आप जैसे सुशिक्षित व्यक्‍ति से ऐसे विचारों की उम्मीद न थी, मास्टरजी। मैं जानता हूँ कि आप एक ईसाई हैं, और जिन अन्य ईसाइयों को मैं जानता हूँ, वे आप के जैसे तो नहीं सोचते। वे राजनीति और मोर्चाबन्दी में सक्रिय हैं, और अपनी खुद की कोशिशों से वे स्थिति को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं; इन मामलों को बदलने के लिए वे यह स्थिति नहीं अपनाते कि ‘सब कुछ परमेश्‍वर पर ही छोड़ दो।’”

“शायद मुझे समझाना पड़ेगा, आनन्द, कि मैं और मेरा परिवार जिस पर विश्‍वास करते हैं, और जो कुछ गिरजाओं में सिखाया और किया जाता है, इन दोनों में एक बहुत बड़ा फ़र्क़ है। तुम जानते हो कि यहाँ इस शहर में ईसाई होने का दावा करनेवाले अनेक अलग-अलग दल हैं, यानी वे कहते हैं कि वे मसीह के अनुयायी हैं और बाइबल के उपदेशों का पालन करते हैं। फिर भी, जब कोई उनके विश्‍वासों की जाँच करता है, तब यह पाया जाता है कि उनके अनेक उपदेश मसीह के उपदेशों से अलग हैं। मिसाल के तौर पर, मसीह ने अपने अनुयायियों को अहिंसक होने और अपने शत्रुओं से प्रेम रखने के लिए सिखाया। क्या तथाकथित ईसाई राष्ट्र इस उपदेश का पालन करते हैं? क्या उन्होंने दोनों विश्‍व युद्धों में और परमाणु हथियार बनाने में नेतृत्व नहीं लिया है? और इतिहास से यह दिखाई देता है कि गिरजाओं ने इनका समर्थन किया है। तो जब भी वे अपने मिशनरियों को ग़ैर-ईसाई देशों में भेजते हैं, वे हमेशा ही मसीह के उपदेशों को नहीं ला रहे होते हैं।

“बहरहाल, पूरी दुनिया में ऐसे लोग हैं जो, हमारे ही जैसे, विश्‍वास करते हैं कि परमेश्‍वर जल्द ही हमारी समस्याओं का हल ले आएँगे। हम अपनी आशा को उन भविष्यद्वाणियों पर आधारित करते हैं जो बहुत समय पहले बाइबल में लिखी गई थीं। इन से हमें यक़ीन होता है कि एक विश्‍व परिवर्तन बहुत नज़दीक़ है, और हमारे पड़ोसियों को यह सुसमाचार सुनाने के लिए हम यथासंभव जितना कर सकते हैं, वह करते हैं। चूँकि इस परिवर्तन की प्रतिज्ञा करनेवाले बाइबल के परमेश्‍वर का नाम यहोवा है, हम यहोवा के गवाह के तौर से जाने जाते हैं।”

“ख़ैर, मास्टरजी, यह तो मेरे लिए एक नई बात है। आपको किसी और वक़्त इस के बारे में अधिक बातें ज़रूर बतानी होंगी।”

पृथ्वी पर खुश रहने की इच्छा

“वे परमेश्‍वर में विश्‍वास ज़रूर करते हैं,” निर्मला ने अपने ससुरजी से कहा।

“तुम किसकी बात कर रही हो, निर्मला?”

“आप को लगा कि चूँकि मास्टरजी और उनका परिवार कभी मन्दिर या मसजिद या गिरजाघर नहीं जाते, और उनके घर में न कोई मूर्तियाँ हैं और न ही कोई धार्मिक चित्र, तो वे परमेश्‍वर में विश्‍वास नहीं करते होंगे। लेकिन वे विश्‍वास करते हैं। जब मरियम मुझे आनेवाले बच्चे के लिए कपड़े सीने को सिखा रही थी तब उसने मुझे समझाया। उसने कहा कि वे एक ही परमेश्‍वर में विश्‍वास करते हैं जिन्होंने सब चीज़ों की सृष्टि की और जिनका नाम यहोवा है। चूँकि वह अदृश्‍य हैं और किसी ने उनको नहीं देखा, इसीलिए वे उनकी कोई मूर्ति या चित्र नहीं बनाते। उसने मुझे बताया कि उनकी पवित्र किताब, बाइबल कहती है कि “परमेश्‍वर आत्मा है, और अवश्‍य है कि उसके भजन करनेवाले आत्मा और सच्चाई से भजन करे।” (यूहन्‍ना ४:२४) तो देखने के लिए किसी दृश्‍य वस्तु का प्रयोग किए बिना ही वे परमेश्‍वर से प्रार्थना करते हैं। वे अपने आप को यहोवा के गवाह कहलाते हैं।

“और परमेश्‍वर का भजन सच्चाई से करने के बारे में उसने एक बड़ी दिलचस्प बात कही। उसने कहा कि सच्चाई का मतलब है, न कोई पौराणिक कथा या कल्पना, बल्कि बातें जैसी वे वास्तव में होती हैं। इसलिए, वे किसी मानव-निर्मित तत्त्वज्ञान में विश्‍वास नहीं करते, जो कि असली तथ्यों से सहमत नहीं है। (मरकुस ७:७, ८) एक उदाहरण के तौर से, उसने कहा कि जबकि अधिकांश धर्म सिखाते हैं कि हमारा परम लक्ष्य इस पृथ्वी को छोड़कर परमेश्‍वर में समा जाना है या किसी आत्मिक उत्तरजीवन में प्रतिफल पाना है, यह तथ्यों से सहमत नहीं था, चूँकि यह मनुष्यों की स्वाभाविक प्रवृत्ति न थी। उसने इस बात पर बल दिया कि मनुष्य जो बातें सबसे ज़्यादा चाहता है, वे एक अच्छा घर, अच्छा स्वास्थ्य, एक खुशहाल परिवार और प्रेमपूर्ण दोस्त हैं। जब लोग खुश होते हैं, वे मरकर स्वर्ग में जाना, या निर्वाण या मोक्ष प्राप्त करना नहीं चाहते, जिस से वे अपना व्यक्‍तित्व खो देंगे तथा व्यक्‍तियों के तौर से अस्तित्वहीन बनेंगे। ‘मनुष्य को किसने यह इच्छा दी होगी कि पृथ्वी पर खुशी से जीए?’ उसने मुझ से पूछा। यह तो वही रहे होंगे जिन्होंने इसकी सृष्टि की। तो ऐसा लगता है कि बाइबल सिखाती है कि यहोवा परमेश्‍वर ने मनुष्य को हमेशा के लिए यहीं इस पृथ्वी पर खुशी से जीने के लिए बनाया था। चूँकि यह मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा है, उसका कहना था कि बाइबल की यह शिक्षा बातों का वर्णन, जैसी वे वास्तव में हैं, वैसा ही करती है, और इसलिए इसे सत्य कहा जा सकता है।”

“ख़ैर, निर्मला, अगर वह सच है, तो परमेश्‍वर अपने उद्देश्‍य में विफल हुए हैं। लोग इस पृथ्वी पर खुश नहीं हैं। पार्थिव जीवन का मतलब है समस्याएँ और कष्ट, और हमें राहत सिर्फ़ तभी मिलेगी अगर हम इस पृथ्वी पर से साफ़ निकल जाएँगे। जो भी हो, आनन्द कहता है कि मास्टरजी और उनका परिवार आज रात को हमें मिलने आ रहे हैं। तो देखें कि वह इसके बारे में क्या कहते हैं।”

वह व्यक्‍ति जो सारी समस्याएँ हल करने की प्रतिज्ञा करते हैं

मौसम और बच्चों की आनेवाली परीक्षाओं के बारे में कुछ चर्चा करने के बाद, दादाजी ने उस तर्क का ज़िक्र किया जो उन्होंने दिन में पहले ही निर्मला के सामने पेश किया था। मास्टरजी ने कुछ क्षणों तक सोचा, फिर आनन्द की माँ से पूछा, “दादी, जब परिवार में किसी को मलेरिया हो जाता है, तब आप क्या करती हैं?”

चकित होकर, उन्होंने जवाब दिया, “बेशक, मैं उन्हें दवा देती हूँ। हमारे परिवार में यह बीमारी अक्सर हुआ करती है, इसलिए मैं जानती हूँ कि औषध-विक्रेता से क्या माँगना है।”

आनन्द के पिता की ओर मुड़कर, मास्टरजी ने कहा, “तो फिर, दादाजी, जब आप बीमार होते हैं, तब यही करना तर्कसंगत बात होती है; अच्छा होने के लिए आप दवा लेते हैं। आप यह तो नहीं कहते कि ‘मुझे मरने दो और पृथ्वी पर से निकल जाने दो।’ पर मान लीजिए कि हमारे पास सारे दुःखों को हटा देने और यहाँ पृथ्वी पर हमारी सारी समस्याओं को हल करने के लिए सही ‘दवा’ मौजूद थी। मरने और हमारे प्रिय लोगों को छोड़ देने के बजाय क्या हम यहीं रहना पसन्द नहीं करते?

“यह ज़ाहिर है कि मनुष्य को अपनी सारी समस्याएँ हल करने की क्षमता नहीं है। इसीलिए एक लम्बे अरसे से, मानव पृथ्वी पर दुःख भोग रहे हैं। पर क्या खुद आपका धर्मविश्‍वास नहीं सिखाता कि कलियुग के दौरान, परमेश्‍वर को अवतार लेना पड़ेगा ताकि पृथ्वी पर सत्युग ला सके? क्या इससे यह दर्शाया नहीं जाता कि, उस शिक्षा को विकसित करनेवाले प्राचीन तत्त्वज्ञों ने भी विश्‍वास किया कि परमेश्‍वर की इच्छा थी कि मनुष्य इस पृथ्वी पर आनन्दित रहे?

“इसी बस्ती के बारे में सोचिए, दादाजी। जब यह नई नई बाँधी गयी थी, तब यह एक बहुत ही अच्छी बस्ती थी, है ना? लेकिन अब इसे देखिए। यहाँ पर इतने सारे किराएदार रहने आए हैं जो दूसरों के बारे में परवाह ही नहीं करते। उन्होंने रास्तों की बत्तियाँ तोड़ दी हैं, जहाँ कहीं चाहा वहाँ कूड़ा-कचरा फेंक दिया, खिड़कियाँ तोड़ दीं और नलों की चोरी की है, जिस से पानी बरबाद होता है, और रास्ते भी कीचड़दार बन जाते हैं। तो अब क्या करने की ज़रूरत है? अगर बुरे किराएदारों को निकाल दिया जाता और बस्ती की सहूलियतों की मरम्मत की जाती, तो क्या हमें यहाँ रहने में मज़ा नहीं आता? यही परमेश्‍वर ने पूरी पृथ्वी पर करने की प्रतिज्ञा की है।

“बाइबल के अनुसार, परमेश्‍वर ने मनुष्य को पूर्ण, स्वस्थ और खुश बनाया। लेकिन परमेश्‍वर के नियमों की अवज्ञा करने के द्वारा, मनुष्यों ने अनर्थकारी रूप से कार्य किया है और उन में दोष आ गया है। (व्यवस्थाविवरण ३२:४, ५) और यही नहीं, आज वे इस पृथ्वी को भी बिगाड़ रहे हैं, जो कि परमेश्‍वर की सृष्टि है। इसलिए बाइबल कहती है कि परमेश्‍वर पहले इस पृथ्वी से बुरे ‘किराएदारों’ को निकाल देंगे और फिर अच्छे लोगों को खुशहाल स्थिति पुनःस्थापित करने की मदद करेंगे।”—प्रकाशितवाक्य ११:१८.

“पर मास्टरजी, कुछ समय बाद तो स्थिति फिर से बिगड़ ही जाएगी। इसीलिए परमेश्‍वर के इस पृथ्वी को साफ़ करने और सत्युग लाने के बाद, बुरी परिस्थितियाँ फिर सामने आती हैं और कलियुग फिर से आ जाता है। इसलिए पृथ्वी पर से निकल जाने से ही स्थायी शान्ति आ सकती है। मिसाल के तौर पर, मैंने समय-समय पर अपने परिवार की कुछेक समस्याओं को हल किया है, लेकिन वे फिर से आ ही जाती हैं, या उनके बदले कोई और समस्याएँ आ जाती हैं।”

“हाँ, यह तो हम सब के साथ होता है। लेकिन यह परमेश्‍वर के साथ नहीं होगा। उन्हें न केवल समस्याओं को हल करने की शक्‍ति है लेकिन उन्हें यह सुनिश्‍चित करने की शक्‍ति और इच्छा भी है कि वे फिर कभी न उठें; उन में शान्ति और सुरक्षा को पूरी दुनिया में स्थायी रूप से बनाए रखने की क्षमता है।”—नाहूम १:९.

इस समय, आनन्द, जो चुपचाप बैठकर विचार-विमर्श को सुन रहा था, बीच में बोला: “मैं आप से बिल्कुल सहमत नहीं हूँ, मास्टरजी। हमें इतने लंबे समय से अपनी समस्याओं से निपटना पड़ा है, और क्या परमेश्‍वर ने कभी दख़ल दिया है? नहीं! मैं समझता हूँ कि सिर्फ़ हम मानव ही कोई परिवर्तन ला सकते हैं। हमें पूरी व्यवस्था को बदल देना चाहिए, धनवान और भ्रष्ट लोगों के ख़िलाफ़ विद्रोह करके उन्हें सत्ता से निकाल देना चाहिए। अगर सारे संसार के पददलित लोग अत्याचार के विरूद्ध खड़े हुए, तो हम एक परिवर्तन ला सकेंगे। तब शायद कोई बड़ा डोनेशन्‌ या दान दिए बग़ैर या किसी जान-पहचानवाले के प्रभाव से उन पर दबाव डाले बग़ैर, मैं रामू और प्रिया को एक बेहतर पाठशाला में दाख़िल करा सकूँगा।”

“आनन्द, मैं समझ सकता हूँ कि तुम कैसे महसूस करते हो। दरअसल, बाइबल इस स्थिति के बारे में बताती है, यह कहते हुए कि सदियों से ‘एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के ऊपर अधिकार करके उस पर हानि लाता’ आया है।”—सभोपदेशक ८:९, न्यू.व.

“पर क्या यही परमेश्‍वर का इरादा न था?” आनन्द ने पूछा। “भक्‍ति स्थलों में भी, अमीरों को ग़रीबों के ऊपर अधिमान दिया जाता है और वे उन पर अधिकार चलाते हैं।”

“नहीं, यह परमेश्‍वर का इरादा नहीं था, आनन्द। बाइबल के वृत्तान्त में बताया गया है कि परमेश्‍वर ने मनुष्य को जीवन के निम्न प्रकारों पर—सिर्फ़ जानवर, मछली और परिन्दों पर ही अधिकार करने के लिए बनाया—संगी मानवों पर नहीं।”—उत्पत्ति १:२८.

“अच्छा। तो अगर ऐसा अधिकार परमेश्‍वर की इच्छाओं के ख़िलाफ़ है, तो क्या क्रांतिकारी परमेश्‍वर की इच्छा की पूर्ति नहीं कर रहे होंगे, अगर उन्होंने भ्रष्ट, अत्याचारी लोगों को नष्ट कर दिया?”

“लेकिन क्रांतिकारियों के ऐसे लोगों को हटा देने के बाद क्या होता? क्रांतिकारी सब कुछ अपने कब्ज़े में ले लेते और वे खुद अत्याचारी बन जाते, जिससे हम फिर उसी स्थिति में होते जहाँ पर हम ने शुरुआत की थी। नहीं, सिर्फ़ परमेश्‍वर ही सारे बुरे अधिकार को हटा सकते हैं और ईश्‍वरीय शासन को स्थापित करके स्थायी शान्ति ला सकते हैं। बाइबल कहती है कि यहोवा परमेश्‍वर बहुत जल्द यही करेंगे। और इसी पर मेरा परिवार और यहोवा के कई हज़ार गवाह दृढ़तापूर्वक विश्‍वास करते हैं, और इस से हमें भविष्य के लिए एक बहुत अच्छी आशा मिलती है।”

समस्याओं का हल कब होगा?

“वह सब तो ठीक लगता है,” आनन्द ने कहा, “लेकिन मैं पृथ्वी पर परिवर्तन या सुधार का कोई चिह्न नहीं देख सकता। मैं कैसे विश्‍वास कर सकता हूँ कि परमेश्‍वर मेरे जीवन में एक परिवर्तन ले आनेवाले हैं?”

“मान लो कि मैं ने तुम्हें बताया, आनन्द, कि जब तुम घर से कहीं बाहर गए हुए थे, तब मैं ने तुम्हारे बग़ीचे में एक आम का बीज बो दिया था। तुम बाहर जाकर देखते हो, पर तुम्हें कुछ भी नज़र नहीं आता, और न ही मिट्टी में खुदाई किए जाने का कोई संकेत है। मैं तुम्हारे लिए एक अजनबी हूँ। तुम्हें शायद लगे: ‘इस अजनबी को मेरे बग़ीचे में आकर एक आम का बीज बोने की तक़लीफ़ लेने की क्या ज़रूरत है?’ क्या तुम यह विश्‍वास करने के लिए प्रवृत्त होते कि मैं ने वास्तव में वही किया था जिसे करने का दावा मैं ने किया?”

“नहीं, मेरे ख़याल से मैं नहीं होता। कम से कम मेरे मन में बहुत संदिग्धता होती कि आप ने ऐसा किया था।”

“हाँ, मैं वह समझ सकता हूँ। अब, मान लो कि कुछ समय बाद तुम एक पौधे को उगते हुए देखते हो। तुम्हें अनुभूति होती है कि जब तुम घर पर नहीं रहते, तब कोई व्यक्‍ति आकर उस पौधे को चुपके से पानी दे रहा है। समय गुज़रता है, बरस बीत जाते हैं। तुम पहचानने लगते हो कि यह सचमुच एक आम का ही पेड़ है। फिर, एक वर्ष तुम देखते हो कि यह पेड़ कलियों से भरा हुआ है। अब तुम्हें कैसा लगेगा?”

“अजी, मैं जान जाता कि जो कुछ भी आप ने कहा था वह सच था। मैं जान जाता कि आप कृपालु थे और सचमुच मेरी परवाह करते थे। और उत्तेजना से उस फल की प्रतीक्षा करते हुए, मैं उस पेड़ पर नज़र रखता।”

“बिल्कुल सही। तुम्हारी प्रतिक्रिया वैसी ही है जैसी कोई अपेक्षा कर सकता है। तो फिर, यह एक दृष्टान्त है तुम्हें दिखाने के लिए कि क्यों यहोवा के गवाह प्रतीक्षा कर रहे हैं कि बहुत जल्द एक ज़बरदस्त विश्‍व परिवर्तन आएगा। मुझे इसे अधिक स्पष्ट करने दो।

“बाइबल के लिखे जाने के लिए क़रीब १,६०० वर्ष लगे। ४० से ज़्यादा अलग-अलग मनुष्यों ने इसे ६६ छोटी किताबों के रूप में लिखा, जिन को बाद में एक बड़ी किताब में संगृहीत किया गया। इन में से एक भी लेखक ने यह दावा नहीं किया कि वह अपने खुद के विचार व्यक्‍त कर रहा था। उन्होंने कहा कि परमेश्‍वर उन्हें क्या लिखना है, यह बता रहे थे और जानकारी उन्हीं की तरफ़ से थी। एक लेखक ने कहा, जो कि मध्य पूर्व में शासन करनेवाला एक राजा था: ‘यहोवा का आत्मा मुझ में होकर बोला, और उसी का वचन मेरे मुँह में आया।’—२ शमूएल २३:२.

“सबसे पहली किताब सृष्टि का वर्णन करती है; यह बताती है कि यहोवा परमेश्‍वर ने मनुष्य को पूर्ण बनाया और उसके मार्गदर्शन के लिए उसे नियम दिए। लेकिन उन्होंने उसे एक स्वतंत्र इच्छा भी दे दी ताकि वह चुन सके कि क्या उसे परमेश्‍वर के नियमों का पालन करना है या नहीं। इन नियमों का पालन करने से उन्हें खुशी मिलती; उन्हें तोड़ने से सज़ा मिलती। मनुष्य ने परमेश्‍वर के नियमों को तोड़ना चुना और इस प्रकार वह अपने आप पर और अपनी सन्तान पर दुःख और मृत्यु ले आया। लेकिन अब परमेश्‍वर ने एक ‘बीज’ बोया। जी हाँ, आशा का एक ‘बीज’ कि एक दिन वह हमारी सारी समस्याओं को हल कर देगा और मानवजाति में शान्ति और खुशी पुनःस्थापित कर देगा।

“यह ‘बीज’ एक प्रतिज्ञा के रूप में था कि परमेश्‍वर एक परिवर्तन ले आते। दरअसल, संपूर्ण इतिहास में परमेश्‍वर अधिकांश मनुष्यजाति के लिए एक ‘अजनबी’ रहे हैं। तुम और मैं और आज ज़िन्दा सभी लोग उस वक़्त मौजूद नहीं थे जब यहोवा ने वह प्रारंभिक वादा किया या उस ‘बीज’ को बोया था। और न ही हम उस वक़्त मौजूद थे जब वह अपनी प्रतिज्ञा को दोहराकर, उसको विस्तारपूर्वक प्रस्तुत करके, तथा इन सदियों में ज़्यादा तफ़सील देकर, उस बीज को ‘सींचते’ रहे। लेकिन इसका वृत्तान्त बाइबल में पाया जाता है, जो कई किताबों में फैला हुआ है। जब बाइबल पूरी की गयी, इस में पूर्ण रूप से समझाया गया था कि परमेश्‍वर किस तरीक़े से मनुष्यजाति की समस्याओं को हल करते।

“तो मेरे दृष्टान्त का मुद्दा यही है, आनन्द। हालाँकि हम ने उस ‘बीज’ का बोना नहीं देखा—जो कि परमेश्‍वर का प्रारंभिक वादा है—और न ही परमेश्‍वर द्वारा दी उस सारी अतिरिक्‍त जानकारी के ज़रिए उसकी सिंचाई देखी, फिर भी हम आज कलियों समेत उस पूर्ण रूप से विकसित पेड़ को देख सकते हैं। तो हमें यक़ीन हो सकता है कि फल भी आएगा।”

“आपका मतलब क्या है? जैसा कि मैं ने आप को पहले भी बताया, मैं ऐसी कोई भी बात नहीं देख सकता जिस से संकेत होता है कि एक परिवर्तन आ रहा है।”

“जी हाँ, तुम देख सकते हो। पर तुम इसे इसलिए पहचान नहीं पाते क्योंकि किसी ने भी तुम्हें नहीं बताया कि क्या देखना है। बाइबल विस्तृत वर्णन देती है कि उस वक़्त पृथ्वी पर परिस्थितियाँ किस तरह होंगी, जब परमेश्‍वर दख़ल देंगे। यह स्पष्ट रूप से कहती है कि लोगों की एक पीढ़ी अनेक विशिष्ट बातें देखेगी और जो पीढ़ी इस ‘चिह्न’ को देखती है, वही बुराई का अन्त और एक शान्तिमय नई दुनिया की शुरुआत भी देखेगी। (मत्ती २४:३) तो, आनन्द, क्या तुम यह जानना नहीं चाहोगे कि बाइबल क्या कहती है ताकि तुम अपने लिए फ़ैसला कर सको और यह तय कर सको कि क्या तुम भी इन बातों को घटित होते हुए देख सकते हो या नहीं?”

“मैं अवश्‍य चाहूँगा।”

“वह चिह्न”

“क्या तुम्हें याद है कि पिछली शाम को हम इस मोहल्ले में बढ़ती हुई हिंसा के बारे में चर्चा कर रहे थे, और हम सहमत हुए कि औरतों और बच्चों को शाम होने के बाद अकेला बाहर जाना नहीं चाहिए? इसी इलाके में, जो कि पहले शहर का कितना शान्तिमय हिस्सा हुआ करता था, कितने सारे लोगों पर हमला किया गया है और उन्हें लूटा गया है। ख़ैर, यही उस चिह्न का एक भाग है। बाइबल कहती है कि ‘अधर्म की बढ़ती’ होगी और कि लोग ‘पैसों के प्रेमी . . . असंयमी, उग्र’ होंगे। क्या तुम्हें याद है—हम ने नक़ली दवाओं के निर्माताओं पर हुए हाल के छापों के विषय में भी बातें की? पैसा बनाने की ख़ातिर लोगों की जानें ख़तरे में डालना कितनी क्रूर बात है! आम तौर पर, बीमार लोगों के लिए मनुष्यों के मन में दया आती है, लेकिन बाइबल कहती है कि इस बुरी दुनिया के अन्तिम दिनों में, समय बहुत कठिन होगा जब लोग ‘अपस्वार्थी, . . . स्वाभाविक स्नेह रहित, . . . और भले के बैरी’ बन जाते।”—मत्ती २४:१२; २ तीमुथियुस ३:१-३, न्यू.व.

रामू अचानक बोल उठा, “दादी हमें तो बस यही बताती है कि कलियुग का चिह्न है; वह कहती हैं कि कलियुग में लोग बहुत ही स्वार्थी और लोभी बन जाते हैं। लेकिन वह कहती हैं कि सत्युग को आने के लिए अभी बहुत वक़्त लगेगा, और कि यह उनके जीवन-काल में नहीं आएगा।”

“ख़ैर, रामू, अनेक लोग दादी के ही जैसे महसूस करते हैं। उन्हें भान होता है कि परिस्थितियाँ बहुत ही बुरी हैं, और वे एक परिवर्तन की अपेक्षा करते हैं, लेकिन यह कब आएगा, इसके विषय में कई अलग विचार हैं। इसी बात के विषय में बाइबल हमारी मदद करती है। यह पूर्ण रूप से स्पष्ट करती है कि यह परिवर्तन हमारे जीवनकाल में आएगा। दरअसल, सिर्फ़ मनुष्य के व्यक्‍तित्व के बिगड़ जाने की बात से कहीं अधिक बातें इस चिह्न में समाविष्ट हैं।

“बाइबल की मत्ती नामक किताब के अध्याय २४, आयत ७ में, यह कहा गया है, ‘क्योंकि जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और जगह जगह अकाल पड़ेंगे, और भूईंडोल होंगे।’ यह उस चिह्न का भाग है जो यीशु मसीह ने यह दिखाने के लिए दिया कि बुराई के आख़री दिन आ चुके थे और परमेश्‍वर से आनेवाला नाश नज़दीक़ था। अब इसकी तुलना उसी अवधि के एक वर्णन से कीजिए, जो प्रकाशितवाक्य नामक बाइबल की आख़री किताब में दिया गया है। अध्याय ६ में, आयत ४ से ८ तक, हम पाते हैं कि ये परिस्थितियाँ पूरी दुनिया में होगी। युद्ध का वर्णन करते हुए, यह ‘पृथ्वी से शान्ति ले लेने’ के विषय में बताती है। तुमने बेशक अपने इतिहास के पाठों में सीखा है, रामू, कि १९१४ वह साल था जब पहला विश्‍व युद्ध शुरु हुआ। इतिहासकार हमें बताते हैं कि यह इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था इसलिए कि उस समय से हम ने एक के बाद एक युद्ध देखे हैं, और पूरी पृथ्वी पर से शान्ति पूर्ण रूप से छीन ली गयी है।

“वही अध्याय उन अकालों के विषय में ज़्यादा तफ़सील देता है, जिनका ज़िक्र यीशु ने किया था। यह एक पूरे दिन की तनख़्वाह के बदले गेहूँ की सिर्फ़ एक छोटी-सी मात्रा हासिल करने के बारे में बताता है। तो आनन्द, क्या निर्मला इन्हीं बातों के विषय में शिकायत नहीं करती, जब वह बाज़ार जाती है? सबसे मूलभूत चीज़ों के भी दाम सतत बढ़ रहे हैं? आफ्रीका और एशिया के अनेक हिस्सों में हुए सूखे से उत्पन्‍न अन्‍न की भयंकर कमी को देखिए। रात को लाखों लोग भूखे ही सोते हैं। कुपोषण के कारण उत्पन्‍न बीमारियों की वजह से बच्चें मर जाते हैं। जी हाँ, अकाल हमारे समय में एक विश्‍व-व्यापी संकट है।

“उसी चिह्न का एक और भाग महामारी, या बीमारी है। मनुष्य ने चिकित्सा के क्षेत्र में जितनी भी प्रगति की है, उसके बावजूद भी वह अभी तक उन मच्छरों को हम से दूर नहीं कर सका है, जिनके कारण हम मलेरिया और अन्य रोगों से सताए जाते हैं। मनुष्य अभी तक हर किसी के लिए साफ़ पीने का पानी नहीं दे पाया है ताकि हमें टाइफॉइड, हैज़ा, कामला, डिसेन्ट्री, या कृमिरोग न हो। और तथाकथित विकसित देशों में जहाँ ये बीमारियाँ विरले ही होती हैं, वहाँ कैंसर, दिल की बीमारी, यौन-संबंध द्वारा संचारित रोग और कई अन्य महामारियों से पीड़ित रोगों की भरमार है।

“अब देखो, बाइबल यहाँ उस कालावधि की ओर स्पष्ट रूप से संकेत करती है जब अन्त वास्तव में आएगा। प्रिया, क्यों न तुम हमारे लिए मत्ती की किताब से, अध्याय २४, आयत ३२ से ३४ तक पढ़कर सुनाओ”

“अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो: जब उस की डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्म काल निकट है। इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो, कि वह निकट है, बरन द्वार ही पर है। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी।”

“शुक्रिया, प्रिया। क्या आप सब ने समझ लिया कि इसका क्या मतलब है? पेड़ पर कलियाँ निकल आती हैं, और आप जानते हैं कि गरमी का मौसम नज़दीक़ है। आप उस चिह्न को देखते हैं—उन सभी अलग-अलग बातों को घटित होते देखते हैं, जिन से यह चिह्न बनता है—और आप जानते हैं कि इस दुनिया के मामलों को नियंत्रण में लेने के लिए परमेश्‍वर का समय नज़दीक़ है। कितना नज़दीक़? यीशु कहता है कि ‘जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी।’ कौनसी पीढ़ी? अजी, वही पीढ़ी जो संपूर्ण चिह्न को देखती है। वरना, उस चिह्न का क्या फ़ायदा? यह उस वक़्त ज़िन्दा लोगों के लिए एक चेतावनी है कि उन्हें अवश्‍य अपनी जान बचाने के लिए क़दम उठाने चाहिए। जब रेल्वे प्लॅटफॉर्म पर घंटी बजती है, तो क्या इसका मतलब है कि गाड़ी कल आ रही है? क्या हम कहीं आराम से बैठकर सो जाते हैं? नहीं। हम अपनी पेटी या बैग उठाकर तैयार खड़े रहते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि गाड़ी थोड़े ही समय में प्लॅटफॉर्म पर आनेवाली है। तो यीशु कह रहा था कि जिस पीढ़ी ने चेतावनी देनेवाले चिह्न को देखा, वही पीढ़ी इस दुष्ट दुनिया का पूरा अन्त देखेगी। यानी, १९१४ में जब उस चिह्न का पहला भाग प्रकट हुआ, तब जो लोग ज़िन्दा थे और जो कुछ हो रहा था, उसके बारे में अवगत थे, उन में से कुछ लोग अभी तक ज़िन्दा होते जब अन्त आ जाता।”

“दादाजी, क्या आप १९१४ में ज़िन्दा थे?”

“नहीं, रामू, मैं उतना बूढ़ा तो नहीं हूँ। पर उसके कुछ समय बाद ही मेरा जन्म हुआ, और जब मैं छोटा था मुझे याद है, मेरी माँ ने मुझे बताया कि हम इसलिए बहुत ग़रीब थे कि मेरे पिता और उनके परिवार के कई सदस्य एक भयंकर रोग से मर गए जो पहले विश्‍व युद्ध के बाद आया था। उसे स्पॅनिश फ्लू कहा जाता था, और उसकी वजह से दुनिया भर करोड़ों लोग मर गए।”

“देखा, दादाजी, यह उस चिह्न का एक और भाग है। वह महामारी इतनी विशिष्ट थी कि आप उसके बारे में जानते हैं और आपको उसके प्रभाव भी याद हैं, हालाँकि यह क़रीब ७० साल पहले घटित हुई।

“फिर भी, हालाँकि परमेश्‍वर अपनी कृपा दिखाकर एक स्पष्ट चेतावनी देते हैं कि वह क्या करनेवाले हैं, बाइबल बताती है कि अधिसंख्यक लोग उस चेतावनी को नज़र-अंदाज़ करेंगे। यह हमें बताती है कि अधिकांश लोग अपने रोज़मर्रा मामलों में लगे रहेंगे, कि वे क्या खाएँगे, क्या पीएँगे, उनके बच्चे किस से शादी करेंगे और ऐसी अन्य स्वाभाविक बातों के ही विषय में चिन्तित रहेंगे, और वे तब तक कोई ध्यान न देंगे, जब तक उन पर विनाश अचानक आ न जाए। बाइबल पूर्वबतलाती है कि जब उनको इस बुरी दुनिया के आनेवाले अन्त के बारे में बताया जाएगा, तब अनेक लोग उपहास करेंगे और हँसी भी उडाएँगे। इसलिए, यह विनम्र, निष्कपट लोगों को चेतावनी देती है कि वे अधिसंख्यक जनता के समान न हों, पर इस चेतावनी को संजीदगी से लें।—मत्ती २४:३८, ३९; लूका २१:३४-३६; २ पतरस ३:३, ४.

“२१२ देशों में रहनेवाले ३८ लाख से अधिक लोगों ने ऐसा ही किया है। वे इस चेतावनी पर विश्‍वास करके यह साबित करने के लिए यथासंभव सब कुछ कर रहे हैं कि वे इस बड़े विनाश से बच निकलने और परमेश्‍वर द्वारा मनुष्यों को दिए इस सुन्दर घर में, योग्य ‘किराएदारों’ के रूप में इस पृथ्वी पर रहने के क़ाबिल हैं। आप पाएँगे कि जहाँ कहीं वे रहते हैं, वहाँ यहोवा के गवाह प्रजाति, जात-पात या वर्ण के विषय में कोई भेदभाव नहीं करते; वे एक ही बड़ा विश्‍व परिवार हैं। परमेश्‍वर के नियमों के प्रति आज्ञापालन दिखाकर, वे दुनिया में परिवर्तन लाने की कोशिश में, युद्ध, हिंसा, क्रांति या राजनीतिक आन्दोलनों में हिस्सा नहीं लेते। उलटा, वे हर किसी से प्रेम से बरताव करते हैं, और उस प्रेम की सबसे बड़ी अभिव्यक्‍ति वह समय, प्रयास और पैसा है, जो वे सब लोग घर-घर जाकर लोगों से मिलने और उन्हें परमेश्‍वर की चेतावनियों की ओर ध्यान देने का प्रोत्साहन देने में ख़र्च करते हैं, ताकि वे भी परमेश्‍वर की शान्तिमय नई दुनिया में जीवन का आनन्द उठा सकें।”

एक नई दुनिया—कितनी अलग?

“मास्टरजी,” रामू ने कहा, “आप एक नई दुनिया और परमेश्‍वर का परिवर्तन लाने के बारे में बोलते रहते हैं। परमेश्‍वर किस तरह के परिवर्तन करेंगे? मेरा मतलब है, इस नई दुनिया में क्या-क्या अलग होगा?”

“चलो रामू, हम रेचल से पूछते हैं कि वह हमें इसके बारे में कुछ बताएँ। रेचल, जब परमेश्‍वर मनुष्यों के मामलों में दख़ल देंगे तब पृथ्वी पर कैसी परिस्थितियाँ होंगी, इस विषय में तुमने बाइबल में जो पढ़ा है, उन में से कुछेक बातें क्या हैं? हमें ऐसी कुछ बातें बताओ जो तुम्हें आकर्षक लगती हैं।”

“यह बाइबल का एक आयत है जिसे मुझे इसलिए पढ़ना अच्छा लगता है,” रेचल ने कहा, “कि मुझे जानवरों के साथ खेलने में बहुत मज़ा आता है। अगर इजाज़त हो, तो मैं इसे पढ़कर सुनाऊँ? यह यशायाह की किताब से है, अध्याय ११, आयत ६ से ८ तक। यहाँ कहा गया है: ‘तब भेड़िया भेड़ के बच्चे के संग रहा करेगा, और चीता बकरी के बच्चे के साथ बैठा करेगा, और बछड़ा और जवान सिंह और पाला-पोसा हुआ बैल तीनों इकट्ठे रहेंगे, और एक छोटा लड़का उनकी अगुवाई करेगा। गाय और रीछनी मिलकर चरेंगी, और उनके बच्चे इकट्ठे बैठेंगे; और सिंह बैल की नाईं भूसा खाया करेगा। दूधपिउवा बच्चा करैत के बिल पर खेलेगा, और दूध छुड़ाया हुआ लड़का नाग के बिल में हाथ डालेगा।’ मैं समझती हूँ कि यह बहुत ही बढ़िया होगा जब सिंहों द्वारा हमला किए जाने या साँपों द्वारा डँसे जाने के डर के बग़ैर, हम जंगल में जा सकेंगे; हम सभी जानवरों से खेल सकेंगे।

“जब मुझे फ्लू या मलेरिया या एक सख़्त ज़ुकाम भी हो जाता है, तब मैं इस शास्त्रपद के बारे में सोचती हूँ, जिस में कहा गया है, ‘कोई निवासी न कहेगा कि “मैं रोगी हूँ।”’ (यशायाह ३३:२४) स्कूल में एक लड़की है जो लँगड़ी है क्योंकि जब वह बहुत छोटी थी तब उसे पोलियो हुआ था। वह कितना दुःख झेलती है और हमारे साथ खेलों में हिस्सा नहीं ले सकती। एक दिन मैं अपनी बाइबल को स्कूल ले गयी और उसे यशायाह ३५:५ और ६ से यह पढ़कर सुनाया: ‘तब अन्धों की आँखें खोली जाएँगी और बहिरों के कान भी खोले जाएँगे, तब लँगड़ा हरिण की सी चौकड़िया भरेगा और गूँगे अपनी जीभ से जयजयकार करेंगे।’ यह सुनकर वह कितनी खुश हुई थीं।

“जब मैं ने अपने मामा को, जो कि एक किसान हैं और हमारे गाँव में रहते हैं, यह आयत पढ़कर सुनाया, तब वह भी बहुत खुश हुए: ‘मृगतृष्णा ताल बन जाएगी और सूखी भूमि में सोते फूटेंगे।’ (यशायाह ३५:७) जब बरसात में बारिश नहीं आती और उनकी फ़सल कम होती है, तब उन्हें कितनी मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है। लेकिन बाइबल कहती है कि परमेश्‍वर की नई दुनिया में हर किसी के लिए बहुत-सा अन्‍न होगा—तब फ़सल की कोई विफलता न होगी! यह कहती है कि यहोवा परमेश्‍वर ‘सब देशों के लोगों के लिए ऐसी जेवनार करेगा जिस में भांति भांति का चिकना भोजन . . . होगा’ और ‘पृथ्वी पर बहुत सा अन्‍न होगा।’ (यशायाह २५:६; भजन ७२:१६, न्यू.व.) यहेजकेल ३४:२७ हमें बताता है: ‘मैदान के वृक्ष फलेंगे और भूमि अपनी उपज उपजाएगी, और वे अपने देश में निडर रहेंगे।’ क्या यह एक बढ़िया बात नहीं?”

“यह तो बहुत अच्छा होगा अगर मैं सचमुच एक सिंह के साथ खेल सकूँ,” आनन्द की सबसे छोटी बेटी, आशा ने कहा। “मैंने उन्हें चिढ़िया-घर में देखा है, और वे कितने डरावने लगते हैं।”

“मुझे यक़ीन है कि तुम्हें वह अच्छा लगेगा, आशा,” मास्टरजी ने कहा। “तो, क्या तुम समझ गए, आनन्द, कि बाइबल किस तरह दिखाती है कि यहोवा परमेश्‍वर हमारी विशिष्ट समस्याओं को समझते हैं और उन्हें हटा देने का वादा करते हैं? बीमारी, बारिश की कमी की वजह से अन्‍न की कमी और फ़सल का कम होता जाना, ये ऐसी बातें हैं जिनका असर हम सब पर होता है। अपर्याप्त गृह प्रबंध भी एक प्रमुख समस्या है। महँगे किराए और भीड़-भाड़, ये बातें परमेश्‍वर की नई दुनिया में नहीं रहेंगी। यशायाह ६५:२१ और २२ में, गृह प्रबंध के विषय में यह कहा गया है: ‘वे घर बनाकर उन में बसेंगे; वे दाख की बारियाँ लगाकर उनका फल खाएँगे। ऐसा नहीं होगा कि वे बनाएँ और दूसरा बसे; वा वे लगाएँ और दूसरा खाए।’ तो परमेश्‍वर वादा करते हैं कि पृथ्वी पर हर एक का घर और बग़ीचा होगा।

“परन्तु, इन उत्तम परिस्थितियों का आनन्द नहीं उठाया जा सकता अगर हम असुरक्षा इसलिए महसूस कर रहे होते कि युद्ध और हिंसा उत्पन्‍न करनेवाले बुरे लोग मौजूद थे। परमेश्‍वर इन्हीं लोगों का विनाश करेंगे। भजन ३७:१० कहता है: ‘थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भली-भाँति देखने पर भी उसको न पाएगा।’ चूँकि बुरे लोगों को नष्ट किया जाएगा, इसलिए हम इस वचन पर पूरा विश्‍वास कर सकते हैं, कि ‘वह पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाता है।’—भजन ४६:९.

“यहोवा परमेश्‍वर ये सब एक सरकार के ज़रिए पूरा करने का वादा करते हैं जिसे बाइबल में परमेश्‍वर का राज्य कहा गया है। यह सरकार किसी भी मानवी सरकार से अनेक रीतियों में अलग होगी। एक बात तो यह है कि यह एक स्वर्गीय सरकार होगी, इसलिए भ्रष्ट बनना इसके लिए नामुमकिन होगा। दूसरी बात, यह न सिर्फ़ अमीर और प्रभावकारी लोगों के लिए, बल्कि हर किसी के लिए इंसाफ़ की गारंटी देगी। आओ, मैं आप को बाइबल में से एक सुन्दर वर्णन दिखा दूँ, इस सरकार का, जब यह कार्य करेगी: ‘वह कंगालों का न्याय धर्म से, और पृथ्वी के नम्र लोगों का निर्णय खराई से करेगा; . . . उसकी कटि का फेंटा धर्म और उसकी कमर का फेंटा सच्चाई होगी।’—यशायाह ११:४, ५.

“आख़िर में, परमेश्‍वर का राज्य बाक़ी सारी सरकारों का स्थान लेगा, जिस से कि यह एक वास्तविक विश्‍व सरकार बनेगी। यह दानिय्येल की किताब में दी एक आश्‍चर्यजनक भविष्यद्वाणी में दिखाया गया है: ‘और उन राजाओं के दिनों में स्वर्ग का परमेश्‍वर, एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा। वरन वह उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।’ (दानिय्येल २:४४) जी हाँ, जब परमेश्‍वर का राज्य संपूर्ण रूप से सत्ताधारी होगा, तब जीवन कहीं बेहतर होगा। कोई ताज्जुब की बात नहीं कि यीशु ने अपने अनुयायियों को उसके आगमन की प्रतीक्षा करने के लिए सिखाया। उसने उन्हें परमेश्‍वर से प्रार्थना करने को भी कहा: ‘तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।’—मत्ती ६:१०.

“तो आप देख सकते हैं कि सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर, जिनका नाम यहोवा है, हमारी मुश्‍किलों से पूरी तरह अवगत हैं और वह हमारी ओर सहानुभूतिशील हैं। वह हमें आश्‍वासन देते हैं कि वह हमारी समस्याओं को हल करने के लिए बहुत जल्द कार्य करेंगे।”

इस समय बुद्धिमान सलाह से प्राप्त फ़ायदे

“वह सब तो बहुत ही अच्छा लगता है, मास्टरजी, लेकिन हाथ पर हाथ रखकर सिर्फ़ बैठे रहने और एक परिवर्तन लाने के लिए परमेश्‍वर का इंतज़ार करने से अभी मेरे बच्चों का भरण-पोषण होनेवाला नहीं है। हमें काम करना चाहिए। हमें ज़िन्दगी में हमारे हिस्से को सुधारने के लिए खुद कोशिश करनी चाहिए।”

“हमें अवश्‍य काम करना चाहिए, आनन्द। बाइबल हमें मुश्‍किलों के सम्मुख भी, कड़ी मेहनत करने के लिए कहती है, ताकि हम अपने आश्रितों के लिए प्रबंध कर सकें। (१ तीमुथियुस ५:८) दरअसल, यह स्पष्ट रूप से कहती है: ‘यदि कोई काम करना न चाहे, तो खाने भी न पाए।’ (२ थिस्सलुनीकियों ३:१०) यह हमें नियम, सिद्धान्त और सलाह भी देती है, जो अगर हम उन पर अमल करें, तो हमारे स्वास्थ्य और खुशी के लिए फ़ायदेमन्द हैं। मिसाल के तौर पर, बाइबल दिखाती है कि परमेश्‍वर अतिभोजन करना और शराब का अतिसेवन करना नापसन्द करते हैं। हम जानते हैं कि इन दोनों बातों से हमारे स्वास्थ्य को गंभीर रूप से हानि पहुँच सकती है और परिश्रम से कमाया पैसा उड़ाया जा सकता है।

“उसी तरह, बाइबल सिद्धान्तों से हम तम्बाकू और सुपारी से दूर रहना सीखते हैं, जिन से, जैसा कि डॉक्टर सहमत हैं, हमारा स्वास्थ्य गंभीर रूप से बिगड़ जाता है, और वह पैसा भी ख़र्च हो जाता है, जो कर्ज़ मिटाने या परिवार के लिए अन्‍न ख़रीदने के लिए बेहतर रूप से ख़र्च किया जा सकता है। (२ कुरिन्थियों ७:१) बाइबल के उच्च नैतिक स्तरों का पालन करने और निजी स्वच्छता के विषय में उसकी बुद्धिमान सलाह पर अमल करने से भी हम जज़्बाती तौर पर खुश रहते हैं और अनेक बीमारियों से बचने के लिए हमें मदद मिलती है। इसीलिए बाइबल में यहोवा पमरेश्‍वर अपने बारे में यह कहते हैं कि वह ‘तुझे तेरे लाभ के लिए शिक्षा’ देते हैं, और वह आगे जाकर यह कहते हैं कि ‘भला होता कि तू ने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता! तब तेरी शान्ति नदी के समान और तेरा धर्म समुद्र की लहरों के नाईं होता।’—यशायाह ४८:१७, १८.

“परन्तु हमें यह क़बूल करना पड़ता है कि हालाँकि हम आज बुद्धिमान सलाह पर अमल करने के द्वारा अपने जीवन का स्तर काफ़ी हद तक सुधार सकते हैं, फिर भी हम अभी तक बे-इंसाफ़ी, भ्रष्टाचार, प्रजातीय और जातीय पूर्वधारणा, पक्षपात, गंभीर बीमारी और मृत्यु जैसी बड़ी समस्याओं को हल नहीं कर सकते। इन्हें हमेशा के लिए हटा दिए जाने के लिए, खुद परमेश्‍वर को दख़ल देना पड़ेगा।”

“मैं विश्‍वास करती हूँ कि हम अपने ही अच्छे कार्यों से बड़े परिवर्तन ला सकते हैं,” दादी अचानक बीच में बोलीं। “हमारे अच्छे कर्म दूसरे लोगों को भी प्रभावित करते हैं, और हर रोज़ चिन्तन करने से हमें भीतरी शान्ति मिल सकती है और, चाहे किसी भी समस्या का सामना करना पड़े, उन से हम अविक्षुब्ध रह सकते हैं।”

“कई लोग आप ही के जैसे महसूस करते हैं, दादी, पर एक बात निश्‍चित है। हमारे कर्म चाहे कितने ही अच्छे क्यों न हों, फिर भी हम इस पृथ्वी पर से बुराई को नहीं हटा सकते। हमारे अच्छे कर्म दूसरों को अच्छाई करने तक शायद प्रभावित करें, लेकिन कुछ लोग नहीं बदलेंगे। वास्तव में, कुछ लोग आपकी भलाई का फ़ायदा उठाएँगे ताकि और भी बुराई कर सकें।

“आप सहमत होंगी कि अधिकांश हिन्दू मानते हैं कि सिर्फ़ परमेश्‍वर के अवतार लेने से सत्युग आ सकता है। उन्हें लगता है कि जब अधिकांश मनुष्य बुरे कर्म कर रहे होते हैं तब परमेश्‍वर का दख़ल देना बहुत ही ज़रूरी है। और ज़रा सोचिए, दादी, अगर आपको चिन्तन करने के कारण भीतरी शान्ति है भी, तो क्या यह स्वयं में कोई गारंटी देगी कि आनन्द उतना पैसा कमाएगा जिस से वह परिवार का भरण-पोषण कर सके और उन्हें शिक्षा दे सके? यह कोई गारंटी नहीं देती, है ना?

“आप चिन्तन के बारे में जो कहती है, वह बहुत दिलचस्प है। यद्यपि, पहले तो हमें सही रूप से चिन्तन करने सीखना चाहिए। मिसाल के तौर पर, हमारे पास जानकारी होनी चाहिए जिस पर हम चिन्तन कर सकें। इसीलिए हम अपने बच्चों को पाठशाला भेजते हैं; उन्हें एक ऐसे व्यक्‍ति की ज़रूरत है जिसके पास अधिक जानकारी है, ताकि उन्हें सिखा सके। फिर बच्चे सीखी हुई बातों पर चिन्तन कर सकते हैं। हम उन्हें सिर्फ़ घर पर ही बैठकर चिन्तन करने और अपने भीतर से ज्ञान आने देने के लिए तो नहीं कहते। हम एक शिक्षक, या गुरु, की आवश्‍यकता पहचानते हैं, एक ऐसा व्यक्‍ति जो हम से ज़्यादा जानता है। तो फिर कौन है जो मनुष्य और उसकी समस्याओं के बारे में ज़्यादा जानते हैं, सिवाय उस व्यक्‍ति के जिन्होंने उस की सृष्टि की? तो फिर, निश्‍चय ही हम अपने सृजनहार से अपेक्षा कर सकते हैं कि वह हमारे शिक्षक के रूप में कार्य करे और हमारी समस्याओं का हल दिखाए। हम अपने बच्चों को इसलिए शिक्षण देते हैं कि हम उन से प्रेम करते हैं। क्या एक प्रेममय, सर्वशक्‍तिमान, स्वर्गीय पिता समान रूप से न करेंगे?”

“मुझे कहना ही पड़ता है, मास्टरजी, कि तुम्हारा तर्क बहुत ही युक्‍तियुक्‍त है,” दादाजी बीच में बोले, “लेकिन जिस रीति से तुम इन बातों की व्याख्या करते हो, वह तो बहुत ही सरल है। हमारे धर्म में बहुत गहरा तत्त्वज्ञान है। हमारे सन्तों और ऋषियों ने ज़िन्दगी के मतलब पर चिन्तन करने में कई बरस बीताए। मैं ने भी अपनी सारी ज़िन्दगी पवित्र ग्रंथ पढ़े हैं, पर मैं ब्रह्‍माण्ड के सारे रहस्यों और जीवन और उसके उद्देश्‍य का मतलब अब भी समझ नहीं पाया हूँ।”

“यह निश्‍चय ही सच है कि परमेश्‍वर की बुद्धि हमारी बुद्धि से कहीं उच्च है, दादाजी। बाइबल अय्यूब नाम के एक आदमी के बारे में बताती है, जिसने परमेश्‍वर और उनकी सृष्टि के बारे में बरसों के गहरे चिन्तन के बाद स्वीकार किया, ‘देखो, ये तो उसकी गति के किनारे ही हैं, और उसकी आहट फुसफुसाहट ही सी तो सुन पड़ती है!’ (अय्यूब २६:१४) हालाँकि हम अपनी निम्न बुद्धि के साथ, परमेश्‍वर के विषय में जो कुछ जानने लायक है, वह सब कुछ नहीं समझ पाते, फिर भी, अगर वह ऐसा चाहें, तो क्या वह कम से कम हमें वे बातें नहीं सिखा पाएँगे, जिन्हें जानना ज़रूरी है?

“मिसाल के तौर पर, अगर गणित का एक प्राध्यापक, एक बहुत ही विद्वान पुरुष ने, जो कि एक प्रतिभाशाली गणितज्ञ के रूप में सुविख्यात हैं, बिना कुछ फ़ीस लिए रामू को सिखाने का प्रस्ताव रखा, क्या आप यह कहकर उसे अस्वीकार करते कि ‘वह तो बहुत ही ज्ञानी है; रामू वह सब कुछ कभी नहीं समझ पाएगा जो वह जानते हैं?’ बिल्कुल नहीं! आप को मालूम होगा कि वह चाहे कितने ही प्रतिभाशाली विद्वान क्यों न हों, पर अगर वह एक अच्छे शिक्षक हैं, तो वह के.जी. कक्षा के बच्चों को भी इस तरह सिखा सकते हैं कि वह पूर्ण रूप से समझ सकें। तो क्या एक सर्व-ज्ञानी परमेश्‍वर हमें, उनके बच्चों को, जो कुछ हमें जानने की ज़रूरत है, वह सरल भाषा में नहीं सिखा सकते, ताकि हम समझ सकें? बाइबल कहती है कि वह ऐसा ही करते हैं। यह कहती है: ‘तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे।’ (यशायाह ५४:१३) इसलिए आप पाते हैं कि बाइबल का उपदेश हम मानवों के लिए सरल और समझने में आसान है। यह दृष्टान्तों से भरी है, इस में साधारण लोगों के वृत्तान्त हैं और रोज़मर्रा ज़िन्दगी के विवरण ऐसी सरल भाषा में हैं, कि हम सब समझ सकते हैं। ऐसे उच्च बुद्धि संपन्‍न व्यक्‍ति के लिए हमें अपनी समस्याओं का हल दिखाने का यह एक उत्तम तरीक़ा है।

“लेकिन अब तो हमें जाना ही चाहिए। हम ने साथ कटे इस समय का सचमुच ही बहुत आनन्द लिया और हम आपकी मेहमानदारी के लिए शुक्रगुज़ार हैं।”

आदेशों की एक किताब

कुछ दिनों बाद, निर्मला और मरियम, मरियम की सिलाई मशीन, जो कि ठीक चल नहीं रही थी, की सूचना पुस्तक की जाँच कर रही थीं। जब मुश्‍किल सुलझा दी गयी, तब मरियम ने निर्मला से पूछा, “क्या तुम्हें नहीं लगता कि जिस परमेश्‍वर ने हमें बनाया, वह हमें आदेशों की एक किताब भी देते, ताकि जब हमें कोई समस्या हो तब उस की सहायता ले सकें?”

“तुम्हारा मतलब क्या है, मरियम?” निर्मला ने चकित होकर पूछा।

“जब हम ने यह सिलाई मशीन ख़रीदी, तब उसके बनानेवाले ने हमें एक सूचना पुस्तक दे दी। उसी तरह, क्या यह तर्कसंगत नहीं कि परमेश्‍वर, जो मनुष्य के बनानेवाले हैं, ऐसे आदेश देते जिससे, अगर मानव इन आदेशों का पालन करते, तो उनका फ़ायदा होता?”

“मेरे ख़याल से तुम मानती हो कि बाइबल उन आदेशों की किताब है?”

“हाँ, मैं मानती हूँ, निर्मला। ऐसी कई किताबें हैं जिन्हें पवित्र ग्रंथ कहा जाता है। इन में से कुछेक पौराणिक कथाओं के तौर से स्वीकृत होती हैं, और कुछेक इतिहास के किसी निश्‍चित समय में जीनेवाले व्यक्‍तियों के तत्त्व-ज्ञान के तौर से, जो उन्हीं की विचार-शक्‍ति द्वारा विकसित किया गया है। दूसरी किताबें इस तरह के नैतिक विधि-संग्रह और सामाजिक नियम देती हैं, जो किसी निश्‍चित समय में एक विशेष क्षेत्र के लिए उपयुक्‍त होती हैं। ये सभी किताबें अलग अलग बातें सिखाती हैं, और लोग उसी का पालन करना चुनते हैं जो उन्हें आकर्षित करे, उसी तरह जैसे एक औरत चुनती है कि वह कौनसे रंग की साड़ी पहनेगी।

“परन्तु, बाइबल अलग है। जैसा कि हम ने पहले बातचीत की थी, एक भी लेखक ने यह दावा नहीं किया कि वह विचारणा उसकी अपनी थी। जैसा कि एक लेखक ने उसकी व्याख्या की, बाइबल का संदेश ‘मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं’ हुआ, ‘पर भक्‍त जन . . . परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे।’ (२ पतरस १:२१) हालाँकि बाइबल के लिखे जाने के समय में इसकी सलाह प्रयोगात्मक थी, फिर भी यह आज २०वीं सदी में भी प्रयोगात्मक है, क्योंकि परमेश्‍वर का मार्गदर्शन अनन्त काल तक फ़ायदेमन्द है और उनके मानदण्ड बदलते नहीं। यह हमेशा ही उन लोगों के जीवन में, जो उसका पालन करते हैं, भलाई करने की एक शक्‍ति रही है, जिस से उन्हें अपने जीवन में ज़बरदस्त परिवर्तन करने की मदद मिली है। इसीलिए क़रीब २,००० वर्ष पहले रहनेवाले एक वकील ने कहा: ‘परमेश्‍वर का वचन जीवित और प्रबल है।’—इब्रानियों ४:१२.

“फिर भी, हम लोगों के लिए, जो आज ज़िन्दा हैं, बाइबल का सर्वाधिक उल्लेखनीय महत्त्व शायद यह है, निर्मला, कि यह स्पष्टतः हमारी पीढ़ी की ओर संकेत करती है कि यह वही पीढ़ी है जो वह परिवर्तन देखेगी जिसका वादा परमेश्‍वर ने किया था। यह हमें ‘वह चिह्न’ देती है जिसके बारे में हम उस शाम बातचीत कर रहे थे। बाइबल के लेखकों ने इस समय की प्रतीक्षा की, लेकिन उन में से अनेकों ने उनके द्वारा लिपिबद्ध की गयी भविष्यद्वाणियों का मतलब नहीं समझा, हालाँकि वे इस बात में बहुत अधिक दिलचस्पी रखते थे कि परमेश्‍वर किस तरह मनुष्य की समस्याओं को हल करेंगे। मिसाल के तौर पर, एक लेखक, दानिय्येल ने उन बातों की व्याख्या माँगी, जिनको लिखने के लिए उसे कहा गया था। लेकिन देखो उसे कैसा जवाब मिला: ‘हे दानिय्येल, चला जा; क्योंकि ये बातें अन्तसमय के लिए बन्द हैं और इन पर मुहर दी गई है . . . जो बुद्धिमान हैं वे ही समझेंगे।’ और, उसे अन्त के समय के बारे में बताया गया था कि ‘बहुत लोग पूछ-ताछ और ढूँढ़-ढाँढ़ करेंगे, और इस से ज्ञान भी बढ़ जाएगा।’—दानिय्येल १२:४, ८-१०.

“यह आज सचमुच ही हो रहा है। सदियों के लिए बाइबल सिर्फ़ उसकी मूल भाषाओं में, और फिर एक या दो अन्य भाषाओं में उपलब्ध थी। आज, हमारे पास १,९०० से अधिक भाषाओं में पूरी बाइबल या उसके अंश उपलब्ध हैं, और दुनिया भर में २०० करोड़ प्रतियाँ वितरित की गयी हैं। इस तथ्य से इस बात को भी जोड़ो कि यहोवा के ३८ लाख से अधिक गवाह घर घर जाकर लोगों को बाइबल समझाने की मदद कर रहे हैं, और तुम देख सकती हो कि भविष्यद्वाणी कैसे पूरी हो रही है। अब जब ‘सच्चा ज्ञान’ इस ‘अन्त के समय’ में बढ़ता है, ‘गुप्त की गयी’ बातें अब समझ में आ रही हैं। यह अत्यावश्‍यक है अगर लोगों को इस बुरी दुनिया के अन्त से बचने के लिए परमेश्‍वर के आदेशों के विषय में अवगत कराना है। बाइबल का अभ्यास करने के द्वारा, लोग देख सकते हैं कि परमेश्‍वर ने जो बातें अतीत में पूर्वबतलायी थीं, वे सचमुच ही घटित हुईं, इसलिए वे उनके वादे पर विश्‍वास कर सकते हैं, कि एक नई दुनिया हमारी समस्याओं का हल ले आएगी।”

बचने के लिए हमें क्या करना होगा

दादी ने अभी-अभी अपनी संध्योपासना ख़त्म की ही थी, कि मरियम निर्मला के साथ चलकर घर आ गयी। आनेवाले बच्चे के लिए बनाए गए सुन्दर कपड़ों की प्रशंसा करने के बाद, दादी ने अचानक विषय बदल दिया।

“अगर मास्टरजी सही हैं,” उन्होंने कहा, “और परमेश्‍वर जल्द ही बुरे लोगों का नाश कर देनेवाले हैं, हम तो सही-सलामत ही रहेंगे। हम बेईमानी नहीं करते और न झूठ बोलते हैं, हम मन्दिर जाकर प्रार्थना करते हैं, और हम एक नैतिक जीवन बीताते हैं। हमारे परिवार पर कोई आँच न आएगी।”

“परमेश्‍वर द्वारा बुरे लोगों के नाश से बचने के लिए एक नैतिक जीवन बीताना बेशक ज़रूरी होगा, दादी,” मरियम ने जवाब दिया। “वह अपनी नई दुनिया में ऐसे लोग नहीं चाहेंगे, जो झूठ बोलते हैं और बेईमानी तथा खून करते हैं, नहीं तो वह दुनिया इस मौजूदा संसार से ज़रा भी अलग न होगी, है ना? पर ज़रा सोचिए, दादी। किसी विपत्ति, जैसे बाढ़, के समय में सरकार हमें स्पष्ट आदेश देती है, ताकि हम बच सकें। ये आदेश यथार्थ स्थिति के विषय में उनकी जानकारी पर और जो वे जानते हैं होनेवाला है, उस पर आधारित हैं। हम घर में बैठकर यह नहीं कहते कि ‘मैं एक अच्छी इंसान हूँ, इसलिए मैं न डूबूँगी,’ है ना? अब, परमेश्‍वर बाढ़ से एक बहुत बड़ी विपत्ति ले आनेवाले हैं। वह एक ऐसा युद्ध ला रहे हैं, जिसे बाइबल आरमागेडोन कहती है, और जो पृथ्वी के हर एक व्यक्‍ति पर असर करेगा। (प्रकाशितवाक्य १६:१४-१६) पवित्र शास्त्र हमें बताते हैं कि बचने के लिए नैतिक रूप से अच्छा होना एक मूलभूत आवश्‍यकता है। लेकिन स्थिति के विषय में अपनी जानकारी पर आधारित, परमेश्‍वर ने अन्य स्पष्ट आदेश भी दिए हैं। अगर हमें बचना है, तो हमें इनका भी पालन करना चाहिए। परमेश्‍वर के आदेशों का पालन करनेवालों को उन ‘धर्मी,’ ‘ख़रे,’ और ‘निर्दोष’ जन के रूप में समझा जाएगा, जो बाइबल कहती है कि इस पृथ्वी पर बचे रहेंगे जब परमेश्‍वर बुरे लोगों का नाश करेंगे।”—नीतिवचन २:२०-२२.

इस पर दादाजी ने कहा: “लेकिन हमारी मौजूदा हालत में, हमें किस तरह इतना धर्मी ठहराया जाएगा कि हम बच सकें?”

मरियम ने जवाब दिया, “यहोवा परमेश्‍वर ने मनुष्य की मदद करने के लिए एक बहुत ही बढ़िया क़ानूनी प्रबंध किया है। मुझे इस बात को एक दृष्टान्त के ज़रिए समझाने दीजिए। निर्मला, मान लो कि तुम रामू को दस रुपये देकर उसे एक किलो शक्कर ख़रीदने के लिए भेजती हो। दुकान जाते जाते, रास्ते में वह खेलने के लिए रुक जाता है और पैसे खो देता है। जब वह दुकान पहुँच जाता है, तो क्या दुकानदार उसे शक्कर देगा?”

“नहीं, निश्‍चय ही नहीं,” निर्मला ने कहा।

“रामू रोते खड़ा रहता है। वह जानता है कि पूरे परिवार का नुक़सान होगा, इसलिए कि उसने पैसे खो दिए हैं। पास खड़े एक कृपालु सज्जन उस पर तरस खाकर उसे दस रुपये देता है। इसे दुकानदार को शक्कर के बदले दिया जाता है, और अब तुम्हारा परिवार इसका उपयोग कर सकता है।

“बाइबल हमें बताती है हमारी समस्याएँ तब शुरु हुईं जब परमेश्‍वर द्वारा सृजे पहले मानवी दंपति ने अपनी स्वतंत्र इच्छा का दुरुपयोग करके परमेश्‍वर के बुद्धिमान आदेशों की अवज्ञा करना पसन्द किया। ऐसा करने की सज़ा क्या होगी, इसके विषय में परमेश्‍वर ने उन्हें चेतावनी दी थी—वे पूर्णता खो देते, अपना परादीसीय घर खो देते, और हमेशा के लिए पृथ्वी पर रहने का अपना अधिकार खो देते। परमेश्‍वर ने अपने नियमों को न्यायपूर्वक लागू किया। इस से उनके बच्चे अपनी बड़ी हानि के कारण, मानो रोते रह गए। परन्तु चूँकि परमेश्‍वर अपना इंसाफ़ प्रेम से संतुलित करते थे, उन्होंने मनुष्यों को वह सब कुछ, जो पहले जोड़े ने खो दिया था, पुनः हासिल करने का मौक़ा देने का प्रबंध किया। दृष्टान्त के उस कृपालु सज्जन की तरह, परमेश्‍वर ने उस चीज़ का यथार्थ मूल्य दिया, जो खो दी गयी थी। उन्होंने खुद अपने आत्मिक बेटे को स्वर्ग से पृथ्वी पर यीशु मसीह नाम के एक मनुष्य के रूप में जन्म लेने के लिए भेजने के द्वारा ऐसा किया। जब यीशु ने स्वेच्छा से अपनी पूर्ण मानवी जान की बलि चढ़ायी, जो कि उस जान के बराबर थी जो पहले आदमी, आदम ने गवाँयी थी, और परमेश्‍वर को उसका मूल्य पेश किया, तब उस मूल्य को मनुष्यजाति के लिए वह चीज़ पुनः ख़रीदने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था जो गवाँ दी गयी थी, अर्थात्‌, एक परादीस पृथ्वी पर हमेशा के लिए पूर्ण जीवन।”

बातचीत के इस मोड़ पर, मास्टरजी, जो कुछ ही समय पहले आनन्द के साथ प्रवेश कर चुके थे, बोल उठे: “तो मरियम जो कह रही है, उस से आप देख सकते हैं कि यीशु परमेश्‍वर का अवतार नहीं, बल्कि परमेश्‍वर का एक आत्मिक बेटा था, जो एक मनुष्य के रूप में मनुष्यों के लिए अपना पूर्ण जीवन चढ़ाने के लिए जन्मा, जिस से पहले मानव दंपति की अवज्ञा के कारण जो खो गया था, उसे फिर से हासिल करने का मार्ग उनके लिए खुल जाता। परमेश्‍वर द्वारा बनाए गए इस प्रबंध को जब हम स्वीकार करते हैं, तब हम इस बुरी दुनिया के अन्त से बचने और एक शान्तिमय, समस्या-रहित पृथ्वी पर अनन्त जीवन का आनन्द लेने के रास्ते पर भली-भाँति होंगे। यह आशा इतनी बढ़िया है कि पूरी दुनिया में यहोवा के गवाह सभी जाति के लोगों को इसके विषय में सीखने की मदद करने के लिए जी जान से मेहनत कर रहे हैं। यह सच है, अपने लिए साबित करने के लिए कि इस आशा पर भरोसा किया जा सकता है, प्रयास की ज़रूरत है, लेकिन हमारे सामने जो प्रतिफल रखे गए हैं, वे निश्‍चय ही इस प्रयास को कोशिश के क़ाबिल बनाते हैं।”

एक उज्ज्वल भविष्य

साफ़ नीले आकाश में सूर्य चमक रहा था जब आनन्द, निर्मला और नए बच्चे को अस्पताल से लेकर घर आया। ऐसा लग रहा था कि बारिश का मौसम क़रीब ख़त्म हो चुका था। परिवार में बहुत उत्तेजना थी, और पड़ोसी नव-आगन्तुक को देखने आए। आनन्द चुपके से आंगन में आया और बैठकर एक चिड़िया को, जो घोंसला बनाने के लिए घास के टुकड़े इकट्ठा कर रही थी, देखता रहा। ‘मेरे जैसे वह भी अपने परिवार के लिए एक सुरक्षित भविष्य चाहती है,’ उसने सोचा।

अगर मास्टरजी की कही सारी बातें सच थीं, तब क्या होता? तब अपने घर में इस नए बच्चे के आगे एक बढ़िया भविष्य होता। आनन्द ने मास्टरजी के उन दोनों के बीच कुछ दिन पहले हुई बातचीत के आख़री शब्द याद किए। उन्होंने कहा था, “मान लो कि जब रामू ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है, तुम अख़बार में एक नौकरी का इश्‍तहार देखते हो। यह नौकरी एक ऐसे व्यक्‍ति को दी जा रही है, जिसके पास रामू जैसी योग्यताएँ हैं। तनख़्वाह उत्तम है, स्थान भी ऐसा है जहाँ वह रहना पसन्द करेगा, रहने के लिए अच्छी जगह उपलब्ध है, और काम भी ऐसा है जिसे करने में उसे खुशी मिलेगी। तुम क्या करते? उस इश्‍तहार की अनदेखी करते, या उस नौकरी को हासिल करने के लिए अपने सामर्थ में की हर संभव कोशिश करते?” ‘ख़ैर, ज़ाहिर है कि उसका जवाब क्या होता,’ आनन्द ने सोचा।

तो, उन सारी बातों का क्या, जो बाइबल कहती है कि परमेश्‍वर आज जीवित लोगों के सामने पेश कर रहे हैं? एक परादीस पृथ्वी, एक अच्छा घर, भरपूर अन्‍न, संतोषजनक नौकरी, पूर्ण स्वास्थ्य, और पूरी सुरक्षा। मान लो कि वह सच था। आनन्द बहुत देर तक सोचता रहा।

जैसे ही रंगों के एक शानदार धमाके में सूर्य अस्त होने लगा, उसने अपना निश्‍चय कर लिया। ‘हाँ,’ उसने अपने आप से कहा। ‘मुझे अपने परिवार और अपनी ख़ातिर इस सबूत की अच्छी तरह जाँच करनी चाहिए कि क्या यह परिवर्तन सचमुच आएगा या नहीं। और अगर मुझे यक़ीन होता है, तो हमें अपने सामर्थ में हर संभव कोशिश करनी चाहिए कि बुराई के अन्त से बचने के योग्य साबित हो सकें और एक आनन्दित भविष्य का मज़ा उठा सकें जब हमारी सारी समस्याओं को हल किया जा चुका होगा।’

पुनर्विचार के प्रश्‍न

हमारी समस्याएँ—उन्हें हल करने में कौन हमारी मदद करेगा?

रामू मास्टरजी से क्यों मिलने गया?

मास्टरजी ने आनन्द को किस कारण अपने घर में बुला लिया?

वह समस्याएँ जो हम सब के सम्मुख हैं

आनन्द को कड़वाहट क्यों महसूस हुई?

उसकी कुछ समस्याएँ क्या थीं?

आनन्द का दुःखड़ा सुनकर मास्टरजी की क्या प्रतिक्रिया थी?

मास्टरजी का परिवार खुश क्यों था?

क्या मास्टरजी के परिवार द्वारा अभ्यस्त धर्म और गिरजाओं में अभ्यस्त धर्म एक समान था? क्यों नहीं?

पृथ्वी पर खुश रहने की इच्छा

मरियम ने निर्मला को परमेश्‍वर के बारे में क्या समझाया?

“सच्चाई” क्या है?

मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति कहाँ रहने की है?

वह व्यक्‍ति जो सारी समस्याएँ हल करने की प्रतिज्ञा करते हैं

वह दृष्टान्त बताएँ जो मास्टरजी यह साबित करने के लिए देते हैं कि मनुष्य की प्रवृत्ति पृथ्वी पर रहने की है।

मास्टरजी क्या कहते हैं, कौन मनुष्य की सारी समस्याओं को हल करेंगे, और कब तक?

आनन्द इस से क्यों असहमत होता है?

मास्टरजी किस तरह दिखाते हैं कि हिंसा से मनुष्य की समस्याओं का हल नहीं हो सकता?

समस्याओं का हल कब होगा?

आम के पेड़ के बारे में मास्टरजी के दृष्टान्त का मुद्दा क्या था?

पवित्र बाइबल के बारे में कुछ तथ्य बतलाएँ।

“वह चिह्न”

निम्नलिखित शास्त्रपदों में “चिह्न” के कुछेक पहलू क्या हैं: (अ) २ तीमुथियुस ३:१-३; (ब) मत्ती २४:७; (क) प्रकाशितवाक्य ६:४-८?

मत्ती २४:३२-३४ उस अवधि को किस तरह निर्दिष्ट करता है, जब अन्त वास्तव में आएगा।

बुरे लोगों को परमेश्‍वर जल्द ही क्या करनेवाले हैं, इस चेतावनी की ओर अधिकांश लोग कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं?

यहोवा के गवाह किस रीति से अलग हैं?

एक नई दुनिया—कितनी अलग?

परमेश्‍वर की नई दुनिया के बारे में कुछेक बातें क्या हैं, जिनसे रेचल आकर्षित हुई?

बाइबल से दिखाएँ कि परमेश्‍वर हमारी विशेष समस्याओं को पहचानते हैं और उन्हें हटा देने का वादा करते हैं।

इस समय बुद्धिमान सलाह से प्राप्त फ़ायदे

बाइबल काम के बारे में क्या कहती है?

बाइबल के नियम और सिद्धान्त किस तरह फ़ायदेमन्द हैं?

बाइबल की शिक्षा सरल और समझने में आसान क्यों है?

आदेशों की एक किताब

मरियम को यक़ीन क्यों है कि बाइबल परमेश्‍वर के आदेशों की किताब है?

आज विशेष रूप से यह हमारे फ़ायदे का कैसे हो सकती है?

बचने के लिए हमें क्या करना होगा

क्या सिर्फ़ नैतिक रूप से अच्छा होना बचाव के लिए काफ़ी है?

मरियम इसका दृष्टान्त कैसे देती है?

चूँकि हम में से कोई भी इतने भले काम नहीं कर सकता कि हम अपना उद्धार खुद करे, परमेश्‍वर ने हमारे बचाव के लिए कौनसा क़ानूनी प्रबंध किया है?

एक उज्ज्वल भविष्य

नए बच्चे को घर लाने के बाद आनन्द किस बात पर मनन करता है?

[पेज 5 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“मैं देख सकता हूँ कि आप को उन सारी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ रहा है, जिनका मुझे हर दिन करना पड़ता है। आप सब इतने शान्त और सन्तुष्ट हैं। मुझे आप से कितनी जलन होती है!”

[पेज 7 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

मनुष्य जो बातें सबसे ज़्यादा चाहता है वे एक अच्छा घर, अच्छा स्वास्थ्य, एक खुशहाल परिवार और प्रेमपूर्ण दोस्त हैं

[पेज 13 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

सिर्फ़ मनुष्य के व्यक्‍तित्व के बिगड़ जाने की बात से कहीं अधिक बातें इस चिह्न में समाविष्ट हैं

[पेज 20 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

अगर बुरे किराएदारों को निकाल दिया जाता और बस्ती की सहूलियतों की मरम्मत की जाती, तो क्या हमें यहाँ रहने में मज़ा नहीं आता? यही परमेश्‍वर ने पूरी पृथ्वी पर करने की प्रतिज्ञा की है

[पेज 23 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“यह निश्‍चय ही सच है कि परमेश्‍वर की बुद्धि हमारी बुद्धि से कहीं उच्च है”

[पेज 27 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“हमारी मौजूदा हालत में, हमें किस तरह इतना धर्मी ठहराया जाएगा कि हम बच सकें?”

[पेज 8 पर तसवीर]

एक लम्बे अरसे से, मानव पृथ्वी पर दुःख भोग रहे हैं

[पेज 9 पर तसवीर]

क्या उन्हें एक आनन्दित भविष्य पाने का एक मौक़ा देने के लिए एक क्रांति की ज़रूरत होगी?

[पेज 14, 15 पर तसवीरें]

जब आप पेड़ पर कलियाँ निकल आयी देखते हैं, तब आप जानते हैं कि गरमी का मौसम नज़दीक़ है। उसी तरह, जब संपूर्ण चिह्न पूरा हो रहा हो, तब अन्त नज़दीक़ है

[पेज 16, 17 पर तसवीरें]

बाइबल विनम्र, निष्कपट लोगों को परमेश्‍वर की चेतावनियों को संजीदगी से लेने की चेतावनी देती है

[पेज 25 पर तसवीर]

बाइबल की सलाह आज भी प्रयोगात्मक है क्योंकि परमेश्‍वर का वचन अनन्तकालीन है

[पेज 29 पर तसवीर]

“मुझे अपने परिवार और अपनी ख़ातिर इस सबूत की अच्छी तरह जाँच करनी चाहिए”