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क्या आपको उस में विश्‍वास करना चाहिए?

क्या आपको उस में विश्‍वास करना चाहिए?

क्या आपको उस में विश्‍वास करना चाहिए?

क्या आप त्रियेक में विश्‍वास करते हैं? ईसाईजगत्‌ में अधिकांश लोग करते हैं। आख़िर, यह सदियों से गिरजाओं का मुख्य धर्मसिद्धांत जो रहा है।

इस का विचार करके, आप सोचेंगे कि इस पर तो कोई सवाल पैदा ही नहीं होता। मगर सवाल है, और आज-कल उसके कुछ समर्थकों ने भी इस विवाद को आगे बढ़ाया है।

ऐसे विषय में सिर्फ़ सरसरी दिलचस्पी से ज़्यादा कुछ और क्यों दिखाना चाहिए? इसलिए कि खुद यीशु ने कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को, और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” तो हमारा सारा भविष्य हमारे परमेश्‍वर का सही तत्त्व जानने पर निर्भर रहता है, और उसका मतलब है त्रियेक के विवाद की तह तक पहुँचना। इसलिए, क्यों न आप खुद के लिए इसकी जाँच करें।—यूहन्‍ना १७:३, कैथोलिक जेरूसलेम बाइबल (जे.बी).

विविध त्रियेकीय धारणाएँ विद्यमान हैं। पर आम तौर से त्रियेक की सीख यह है कि ईश्‍वरत्व में तीन व्यक्‍ति हैं, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा; फिर भी, मिलकर वे बस एक ही परमेश्‍वर हैं। धर्मसिद्धांत कहता है कि ये तीन समान, सर्वशक्‍तिमान, और असृष्ट हैं, चूँकि वे ईश्‍वरत्व में अनन्त काल से अस्तित्ववान रहे हैं।

परंतु, अन्य कहते हैं कि त्रियेक का धर्मसिद्धांत झूठ है, कि सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर एक विशिष्ट, अनन्त और सर्वशक्‍तिशाली व्यक्‍ति होने के तौर से बेजोड़ हैं। वे कहते हैं कि यीशु अपने मानव-पूर्वी अस्तित्व में, स्वर्गदूतों की तरह, एक विशिष्ट आत्मिक व्यक्‍ति था जिसे परमेश्‍वर ने सृजा, और इसी कारण उसकी एक शुरुआत थी। वे सिखाते हैं कि यीशु कभी, किसी भी भावार्थ में सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के बराबर न था; वह हमेशा परमेश्‍वर के अधीन रहा है और अब भी अधीन ही है। वे यह भी विश्‍वास करते हैं कि पवित्र आत्मा एक व्यक्‍ति नहीं बल्कि परमेश्‍वर का आत्मा, उसकी सक्रिय शक्‍ति है।

त्रियेक के समर्थक कहते हैं कि यह न केवल धार्मिक परम्परा पर आधारित है, लेकिन बाइबल पर भी। इस धर्मसिद्धांत के आलोचक कहते हैं कि यह एक बाइबल उपदेश नहीं, यहाँ तक कि एक ऐतिहासिक स्रोत में यह भी घोषित किया गया: “[त्रियेक] का मूल पूर्ण रूप से विधर्मी है।”—द पेगनिज़्म इन आवर क्रिस्‌चिॲनिटी।

अगर त्रियेक सच है, तो यह कहना कि यीशु ईश्‍वरत्व का एक हिस्सा न होकर कभी परमेश्‍वर के बराबर न था, उसके लिए अपमानजनक है। पर अगर त्रियेक झूठ है, तो किसी को सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर का समवर्ग कहना परमेश्‍वर के लिए अपमानजनक है, और मरियम को “परमेश्‍वर की माता” कहकर पुकारना उस से भी बदतर। अगर त्रियेक झूठ है, तो यह कहना परमेश्‍वर को अपमानित करता है, जैसा कि कैथोलिसिज़्म  नामक किताब में कहा गया है: “यदि [लोग] यह विश्‍वास पूर्ण और अदूषित नहीं रखेंगे, [वे] बेशक ही सदा के लिए नष्ट हो जाएँगे। और कैथोलिक विश्‍वास यह है: हम त्रियेक में एक परमेश्‍वर की उपासना करते हैं।”

तो फिर, काफ़ी ठोस कारण हैं कि आप को किस लिए त्रियेक के बारे में सच्चाई जाननी चाहिए। लेकिन उसके मूल और उसकी सच्चाई का दावा जाँचने से पहले, इस धर्मसिद्धांत को ज़्यादा स्पष्ट रूप से परिभाषित करना मददपूर्ण होगा। तो फिर, त्रियेक ठीक-ठीक है क्या? उसके समर्थक उसकी व्याख्या किस तरह करते हैं?

यदि अन्य प्रकार से दिखाया न हों, तो सर्व बाइबल उद्धरण द होली बाइबल हिन्दी ओल्ड वर्शन  1984 संस्करण से हैं।

[पेज २ पर तसवीरें]

बाँयी तरफ़: द्वितीय सहस्राब्दी (सा.यु.पू.) की मिस्री मूर्तिकला। ॲमोन-रा, रामसीज़ II, और मूट का त्रिक। दाँयी तरफ़: चौदवीं सदी (सा.यु.) यीशु मसीह, पिता और पवित्र आत्मा की त्रियेक मूर्तिकला। ग़ौर करें, तीन व्यक्‍ति मगर सिर्फ़ चार पैर।