क्या परमेश्वर हमेशा यीशु से प्रवर है?
क्या परमेश्वर हमेशा यीशु से प्रवर है?
यीशु ने परमेश्वर होने का दावा कभी नहीं किया। उसने अपने बारे में जो कुछ भी कहा वह सूचित करता है कि उसने किसी भी रीति से खुद को परमेश्वर के बराबर नहीं समझा—न अधिकार में, न ज्ञान में, न उम्र में।
उसके अस्तित्व की हर एक अवधि में, चाहे वह स्वर्ग में हो या पृथ्वी पर, उसकी बातें और आचरण परमेश्वर के प्रति अधीनता प्रतिबिंबित करते हैं। परमेश्वर हमेशा प्रवर व्यक्ति है, और यीशु अवर व्यक्ति जो परमेश्वर द्वारा सृजा गया था।
परमेश्वर और यीशु के बीच प्रभेद करना
बारम्बार, यीशु ने दिखाया कि वह परमेश्वर से एक अलग हस्ती था, और कि उसे, यीशु को, अपने ऊपर एक परमेश्वर था, एक ऐसा परमेश्वर जिसकी वह पूजा करता था, और एक परमेश्वर जिसे वह “पिता” कहता था। परमेश्वर, यानी, पिता, से एक प्रार्थना में, यीशु ने कहा, “तुझ, अद्वैत सच्चे परमेश्वर।” (यूहन्ना १७:३) यूहन्ना २०:१७ में उसने मरियम मगदलीनी से कहा: “मैं अपने पिता, और तुम्हारे पिता, और अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास जाता हूँ।” (आर.एस., कैथोलिक संस्करण) २ कुरिन्थियों १:३ में प्रेरित पौलुस इस रिश्ते को सत्यापित करता है: “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद हो।” चूँकि यीशु का एक परमेश्वर था, जो उसका पिता था, वह उसी समय वह परमेश्वर नहीं हो सकता था।
यीशु और परमेश्वर के विषय दो स्पष्ट रूप से अलग व्यक्ति के तौर से बात करने में प्रेरित पौलुस को कोई संकोच न था: “हमारे लिए तो एक ही परमेश्वर है, अर्थात् पिता, . . . और एक ही प्रभु है, अर्थात् यीशु मसीह।” (१ कुरिन्थियों ८:६, जे.बी.) प्रेरित इस प्रभेद को दिखाता है जब वह “परमेश्वर, मसीह यीशु और चुने हुए स्वर्गदूतों की उपस्थिति” का ज़िक्र करता है। (१ तीमुथियुस ५:२१, आर.एस. कॉमन बाइबल) जिस तरह पौलुस यीशु और स्वर्गदूतों को स्वर्ग में एक दूसरे से विशिष्ट होने के तौर से ज़िक्र करता है, उसी तरह यीशु और परमेश्वर एक दूसरे से विशिष्ट हैं।
यूहन्ना ८:१७, १८ में यीशु के शब्द भी अर्थपूर्ण हैं। वह कहता है: “तुम्हारी व्यवस्था में भी लिखा है कि ‘दो जनों की गवाही मिलकर ठीक होती है।’ एक तो मैं आप अपनी गवाही देता हूँ, और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है, जिस ने मुझे भेजा।” यहाँ यीशु दिखाता है कि वह और पिता, यानी सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अवश्य दो विशिष्ट हस्ती होंगे, वरना और किस तरह सचमुच ही दो गवाह हो सकते थे?
यीशु ने यह कहकर और आगे दिखाया कि वह परमेश्वर से एक अलग हस्ती था: “तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक अर्थात् परमेश्वर।” (मरकुस १०:१८, जे.बी.) तो यीशु कह रहा था कि कोई भी परमेश्वर के जैसे उत्तम नहीं, खुद यीशु भी नहीं। परमेश्वर ऐसी रीति से उत्तम है कि यह उसे यीशु से विशिष्ट करता है।
परमेश्वर का आज्ञाकारी सेवक
बारम्बार, यीशु ने ऐसे बयान दिए, जैसे कि: “पुत्र अपनी इच्छा के अनुसार कुछ नहीं कर सकता, वह जैसा पिता को करते देखता है, केवल वही कर सकता है।” (यूहन्ना ५:१९, मोनसिन्यर आर. ए. नॉक्स द्वारा द होली बाइबल) “मैं अपनी इच्छा नहीं, वरन अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ।” (यूहन्ना ६:३८) “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।” (यूहन्ना ७:१६) क्या भेजनेवाला भेजे हुए व्यक्ति से प्रवर नहीं?
यह रिश्ता यीशु के दाख की बारी के दृष्टान्त से ज़ाहिर है। उसने परमेश्वर, अपने पिता, की तुलना दाख की बारी के मालिक से की, जो विदेश गया और उस को कुछ खेतिहरों की रखवाली में छोड़ गया, जो कि यहूदी पुरोहित-वर्ग को चित्रित करते थे। जब बाद में मालिक ने दाख की बारी का कुछ फल ले आने के लिए एक गुलाम को भेजा, खेतिहरों ने उस गुलाम को पीटकर उसे खाली हाथ भेज दिया। फिर मालिक ने दूसरे गुलाम को भेज दिया, और फिर तीसरे को, पर दोनों से वही सलूक किया गया। आख़िर, मालिक ने कहा: “मैं अपने प्रिय पुत्र [यीशु] को भेजूँगा। क्या जाने वे उसका आदर करें।” लेकिन उन दुष्ट खेतिहरों ने कहा: “‘यह तो वारिस है; आओ, हम उसे मार डालें, कि मीरास हमारी हो जाए।’ और उन्होंने उसे दाख की बारी से बाहर निकालकर मार डाला।” (लूका २०:९-१६) इस प्रकार यीशु ने खुद अपनी स्थिति स्पष्ट की, कि वह एक ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए परमेश्वर द्वारा भेजा गया था, उसी तरह जैसे कोई पिता अपने आज्ञाकारी पुत्र को भेजता है।
यीशु के अनुयायियों ने उसका विचार हमेशा परमेश्वर के आज्ञाकारी सेवक के तौर से किया, परमेश्वर के समानाधिकारी के तौर से नहीं। उन्होंने परमेश्वर से “तेरे पवित्र सेवक यीशु” के बारे प्रेरितों के काम ४:२३, २७, ३०, आर.एस., कैथोलिक संस्करण।
में प्रार्थना की, “जिसे तू ने अभिषेक किया, . . . कि चिन्ह और अद्भुत काम तेरे पवित्र सेवक यीशु के नाम से किए जाएँ।”—हर समय परमेश्वर प्रवर है
यीशु की सेवा की बिल्कुल शुरुआत में ही, जब वह बपतिस्मा के पानी से बाहर आया, स्वर्ग से परमेश्वर की आवाज़ ने कहा: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।” (मत्ती ३:१६, १७) क्या परमेश्वर यह कह रहा था कि वह अपना ही पुत्र था, कि वह खुद से प्रसन्न था, कि उसने खुद को भेजा था? नहीं, परमेश्वर सृष्टिकर्ता यह कह रहा था कि वह, प्रवर हस्ती की हैसियत से, आगे के काम के लिए, अवर हस्ती, अपने पुत्र यीशु का समर्थन कर रहा था।
यीशु ने अपने पिता की वरिष्ठता सूचित की, जब उसने कहा: “यहोवा का आत्मा मुझ पर है, इसलिए कि उस ने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिए मेरा अभिषेक किया है।” (लूका ४:१८) अभिषेक करने का मतलब यह है कि कोई प्रवर व्यक्ति अधिकार या एक नियतकार्य एक ऐसे व्यक्ति को देता है, जिसे पहले से अधिकार न हो। यहाँ परमेश्वर स्पष्ट रूप से प्रवर है, इसलिए कि उसने यीशु को अभिषिक्त करके उसे वह अधिकार दे दिया जो उसके पास पहले न था।
यीशु ने अपने पिता की वरिष्ठता स्पष्ट की जब दो चेलों की माँ ने माँगा कि जिस समय यीशु अपना राज्य अधिकार प्राप्त करता तब उसका एक बेटा यीशु की दायीं तरफ़ और दूसरा उसकी बायीं तरफ़ बैठे। यीशु ने जवाब दिया: “पर अपनी दायीं और बायीं तरफ़ के आसनों पर किसी को बिठाना मेरा हक़ नहीं, पर जिन के लिए मेरे पिता,” यानी परमेश्वर, “ने नियत किए हैं, वे उन्हीं के हैं।” (मत्ती २०:२३, जे.बी.) अगर यीशु सर्वशक्तिमान होता तो वे स्थान देना उसके हाथ में होता। लेकिन यीशु वे स्थान न दे सका, इसलिए कि उन्हें देना परमेश्वर के हाथ में था, और यीशु परमेश्वर न था।
यीशु की निजी प्रार्थनाएँ उसके अवर स्थान का एक शक्तिशाली उदाहरण हैं। जब यीशु मरने वाला था, उसने यह प्रार्थना करके दिखाया कि कौन उस से प्रवर था: “हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।” (लूका २२:४२) वह किस से प्रार्थना कर रहा था? अपने ही एक हिस्से से? नहीं, वह एक ऐसे व्यक्ति से प्रार्थना कर रहा था जो उस से बिल्कुल अलग था, उसका पिता, और परमेश्वर, जिसकी इच्छा प्रवर थी और उसकी इच्छा से भिन्न हो सकती थी, वह एकमात्र हस्ती जो ‘इस कटोरे को हटा ले’ सकता था।
फिर, जब वह मरणासन्न था, यीशु ने ज़ोर से पुकारा: “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मरकुस १५:३४, जे.बी.) यीशु किसे पुकार रहा था? खुद को या अपने ही एक हिस्से को? बेशक, वह पुकार, “हे मेरे परमेश्वर,” एक ऐसे व्यक्ति के मुँह से नहीं निकली जिसने खुद को परमेश्वर समझा। और अगरचे यीशु ही परमेश्वर होता, तो किसने उसे छोड़ा था? खुद ने? वह तो अर्थहीन होता। यीशु ने यह भी कहा: “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” (लूका २३:४६) अगर यीशु परमेश्वर होता, तो उसे किस कारण से अपनी आत्मा पिता के हाथों सौंपनी चाहिए?
यीशु के मरने के बाद, अंशतः तीन दिन वह कब्र में था। अगर वह परमेश्वर होता, तो फिर हबक्कूक १:१२ ग़लत है जब वह कहता है: “हे मेरे प्रभु यहोवा, हे मेरे पवित्र परमेश्वर, तू नहीं मरता।” (न्यू.व.) मगर बाइबल कहती है कि यीशु ज़रूर मरा और कब्र में अचेत था। और यीशु को किसने मृतावस्था से पुनर्जीवित किया? अगर वह सचमुच मरा हुआ था, तो वह अपने आप को पुनर्जीवित न कर सका होगा। दूसरी ओर, अगर वह सचमुच नहीं मरा, तो उसकी मिथ्या मृत्यु से आदम के पाप के लिए छुटकारे का दाम चुकाया न जाता। लेकिन उसने अपनी असली मृत्यु से उस दाम को पूरा चुका दिया। तो यह “परमेश्वर” ही था “[जिस] ने [यीशु को] मृत्यु के बन्धनों से छुड़ाकर जिलाया।” (प्रेरितों के काम २:२४) प्रवर हस्ती, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने, अवर हस्ती, अपने सेवक यीशु को मृतावस्था से जिलाया।
क्या यीशु का चमत्कार करने का सामर्थ, जैसी कि लोगों को जिलाना, यह सूचित करता है कि वह परमेश्वर था? ख़ैर, प्रेरितों और भविष्यद्वक्ता एलिय्याह और एलीशा के पास भी वही शक्ति थी, लेकिन उस से वे मनुष्यों से कुछ ज़्यादा तो नहीं बने। परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ताओं,
यीशु और प्रेरितों को चमत्कार करने की शक्ति यह दिखाने के लिए दी कि वह उनका समर्थन कर रहा था। मगर इस से उन में से कोई भी किसी अनेकसंख्यक ईश्वरत्व का हिस्सा नहीं बने।यीशु को सीमित ज्ञान था
जब यीशु ने इस रीति-व्यवस्था के अंत के बारे में अपनी भविष्यवाणी दी, तब उसने कहा: “उस दिन या उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र; परन्तु केवल पिता।” (मरकुस १३:३२, आर.एस., कैथोलिक संस्करण) अगरचे यीशु किसी ईश्वरत्व का समानाधिकारी पुत्र अंश हुआ होता, तो उसे वह मालूम होता जो पिता को मालूम है। लेकिन यीशु को नहीं मालूम था, इसलिए कि वह परमेश्वर के बराबर न था।
उसी तरह, हम इब्रानियों ५:८ में पढ़ते हैं कि यीशु ने “दुःख उठा उठाकर आज्ञा माननी सीखी।” क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि परमेश्वर को कुछ सीखना पड़ा? नहीं, पर यीशु को सीखना पड़ा, इसलिए कि जो सब बातें परमेश्वर को मालूम थीं, वे उसे मालूम न थीं। और उसे एक ऐसी बात सीखनी पड़ी जिसे सीखने की परमेश्वर को कभी ज़रूरत नहीं—आज्ञाकारिता। परमेश्वर को कभी किसी की आज्ञा नहीं माननी पड़ती है।
जो बातें परमेश्वर को मालूम हैं और जो मसीह को मालूम हैं, उन के बीच का फ़र्क तब भी था जब यीशु परमेश्वर के साथ स्वर्ग में रहने के लिए जिलाया गया। बाइबल की आख़री किताब के पहले शब्दों पर ग़ौर करें: “यीशु मसीह का प्रकाशितवाक्य जो उसे परमेश्वर ने . . . दिया।” (प्रकाशितवाक्य १:१, आर.एस., कैथोलिक संस्करण) अगर यीशु खुद ईश्वरत्व का एक हिस्सा था, तो क्या उसे ईश्वरत्व के किसी दूसरे हिस्से—परमेश्वर से एक प्रकाशितवाक्य दिए जाने की कोई ज़रूरत थी? निश्चय ही, उसे उसके बारे में सब मालूम हुआ होगा, इसलिए कि परमेश्वर को मालूम था। लेकिन यीशु को मालूम न था, क्योंकि वह परमेश्वर न था।
यीशु सतत अधीनस्थ रहता है
उसके मानव-पूर्वी अस्तित्व में, और जब वह पृथ्वी पर था, तब भी, यीशु परमेश्वर के अधीनस्थ था। उसके पुनरुत्थान के बाद, वह एक अधीनस्थ, गौण स्थान पर ही रहता है।
यीशु के पुनरुत्थान के बारे में बोलते हुए, पतरस और उसके साथीदारों ने यहूदी महासभा को बताया: “उसी [यीशु] को परमेश्वर ने . . . अपने दहिने हाथ तक ऊँचा कर दिया।” (प्रेरितों के काम ५:३१) पौलुस ने कहा: “परमेश्वर ने उसे अति महान भी किया।” (फिलिप्पियों २:९) अगर यीशु परमेश्वर हुआ होता, तो यीशु को उन्नत, यानी, जिस स्थान का आनन्द उसने पहले ही लिया, उससे और ऊँचे स्थान पर पदोन्नत किस तरह किया गया होता? वह तो पहले ही त्रियेक का एक उन्नत हिस्सा हुआ होता। अगर, उसके उन्नयन से पहले, यीशु परमेश्वर के बराबर होता, तो उसे और अधिक उन्नत करने से वह परमेश्वर से प्रवर बना होता।
पौलुस ने यह भी कहा कि मसीह ने “स्वर्ग ही में प्रवेश किया, ताकि हमारे लिए अब परमेश्वर की वास्तविक उपस्थिति में प्रस्तुत हो।” (इब्रानियों ९:२४, जे.बी.) अगर आप किसी और की उपस्थिति में प्रस्तुत होंगे, तो आप वह व्यक्ति किस तरह हो सकते हैं? आप हो ही नहीं सकते। आप तो अलग और विशिष्ट ही होंगे।
उसी तरह, उस पर पत्थरवाह करके उसे मार डालने से पहले, शहीद स्तिफनुस ने “स्वर्ग की ओर देखा और परमेश्वर की महिमा को और यीशु को परमेश्वर की दहिनी ओर खड़ा” देखा। (प्रेरितों के काम ७:५५) स्पष्ट रूप से, उसने दो अलग व्यक्ति देखे—पर कोई पवित्र आत्मा नहीं, कोई त्रियेक ईश्वरत्व नहीं।
प्रकाशितवाक्य ४:८ से ५:७ तक के वृत्तांत में, परमेश्वर को अपने स्वर्गीय सिंहासन पर बैठा हुआ दिखाया गया है, लेकिन यीशु को नहीं। उसे परमेश्वर के दायें हाथ से एक लपेटवाँ कागज़ लेने के लिए परमेश्वर के पास आना पड़ता है। यह दिखाता है कि स्वर्ग में यीशु परमेश्वर नहीं बल्कि उस से अलग है।
उत्तरवर्ती बातों के अनुरूप, मॅनचेस्टर, इंग्लैंड, के बुलेट्टिन ऑफ द जॉन राइलैंडस् लाइब्रेरी बताता है: “उसके पुनरुत्थान के पश्चात् के स्वर्गीय जीवन में, यीशु एक निजी व्यक्तित्व बनाए रखनेवाले के तौर से चित्रित है, जो परमेश्वर के व्यक्तित्व से उतना ही विशिष्ट और अलग है जितना कि पार्थिव यीशु के रूप में पृथ्वी पर उसके जीवन में उसका व्यक्तित्व विशिष्ट और अलग था। परमेश्वर की बगल में और परमेश्वर की तुलना में, वह, वस्तुतः, परमेश्वर के स्वर्गीय दरबार में एक अन्य स्वर्गीय हस्ती के तौर से प्रकट होता है, उसी तरह जैसे स्वर्गदूत थे—हालाँकि परमेश्वर के पुत्र की हैसियत से, वह एक अलग ही दर्जे में खड़ा है, और उन से कहीं बढ़कर है।”—फिलिप्पियों २:११ से तुलना करें।
बुलेट्टिन यह भी कहता है: “परन्तु, स्वर्गिक मसीह के रूप में उसके जीवन और कर्तव्यों के बारे में जो कुछ कहा गया है, उसका यह न मतलब है या न ही संकेत है कि दैवी रूप में वह खुद परमेश्वर के बराबर है और पूर्ण रूप से परमेश्वर है। उलटे, उसके स्वर्गिक व्यक्तित्व और सेवा के नए नियम के चित्र में, हम एक ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो दोनों, परमेश्वर से अलग और अधीनस्थ है।”
१ कुरिन्थियों १५:२४, २८, एन.जे.बी.
स्वर्ग में अनन्तकालीन भविष्य में, यीशु परमेश्वर का एक अलग, अधीनस्थ सेवक सतत बना रहेगा। बाइबल उसे इस तरह व्यक्त करती है: “इस के बाद अन्त होगा; उस समय [स्वर्ग में] वह [यीशु] . . . राज्य को परमेश्वर पिता के हाथ में सौंप देगा . . . तो पुत्र आप भी उसके अधीन हो जाएगा जिस ने सब कुछ उसके अधीन कर दिया; ताकि सब में परमेश्वर ही सब कुछ हो।”—यीशु ने कभी परमेश्वर होने का दावा नहीं किया
बाइबल का दृष्टिकोण स्पष्ट है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, यहोवा, न केवल यीशु से एक अलग व्यक्ति है, लेकिन वह हर समय उस से प्रवर है। यीशु को हमेशा अलग और अवर, परमेश्वर के एक नम्र सेवक के तौर से पेश किया जाता है। इसलिए बाइबल स्पष्ट रूप से कहती है कि “मसीह का सिर परमेश्वर है,” उसी तरह जैसे “हर एक पुरुष का सिर मसीह है।” (१ कुरिन्थियों ११:३) और इसलिए खुद यीशु ने कहा: “पिता मुझ से बड़ा है।”—यूहन्ना १४:२८, आर.एस., कैथोलिक संस्करण।
वास्तविकता यह है कि यीशु परमेश्वर नहीं और उसने कभी ऐसा होने का दावा नहीं किया। यह बात विद्वानों की एक बढ़ती हुई संख्या से मान ली जा रही है। जैसे कि राइलैंडस् का बुलेट्टिन कहता है: “इस वास्तविकता का सामना करना ही पड़ेगा कि पिछले तीस-चालीस सालों के दौरान नए नियम में किया जानेवाला अनुसंधान, नए नियम के सम्मानित विद्वानों की एक बढ़ती हुई संख्या को इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए मजबूर कर रहा है कि यीशु ने . . . निश्चय ही अपने आप को कभी परमेश्वर नहीं माना।”
बुलेट्टिन पहली-सदी के मसीहियों के बारे में भी कहता है: “इसलिए, जब उन्होंने [यीशु को] मसीह, मानव-पुत्र, परमेश्वर का पुत्र और प्रभु जैसी सम्मानसूचक उपाधियाँ दीं, तो ये यह कहने के तरीक़े न थे कि वह परमेश्वर था, लेकिन यह कि उसने परमेश्वर का काम किया।”
इस प्रकार, कुछ धार्मिक विद्वान भी स्वीकार करते हैं कि यीशु का परमेश्वर होने की कल्पना बाइबल की सारी गवाही का विरोध करती है। वहाँ, परमेश्वर हमेशा प्रवर है, और यीशु अधीनस्थ सेवक।
[पेज १९ पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
‘नए नियम में किया जानेवाला अनुसंधान, विद्वानों की एक बढ़ती हुई संख्या को इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए मजबूर कर रहा है कि यीशु ने निश्चय ही अपने आप को कभी परमेश्वर नहीं माना।’—बुलेट्टिन ऑफ द जॉन राइलैंडस् लाइब्रेरी
[पेज १७ पर तसवीर]
यीशु ने यहूदियों से कहा: “मैं अपनी इच्छा नहीं, वरन अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ।”—यूहन्ना ६:३८
[पेज १८ पर तसवीर]
जब यीशु ने ज़ोर से पुकारा: “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?” उस ने निश्चय ही नहीं माना कि वह खुद परमेश्वर था