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छुटकारे की ओर ले जानेवाला परमेश्‍वरीय सत्य का मार्ग

छुटकारे की ओर ले जानेवाला परमेश्‍वरीय सत्य का मार्ग

छुटकारे की ओर ले जानेवाला परमेश्‍वरीय सत्य का मार्ग

१, २. (क) अनेक लोगों द्वारा कौन-सी लोकप्रिय धार्मिक धारणा दोहराई जाती है? (ख) परन्तु यह किन प्रश्‍नों को उत्पन्‍न करता है?

अनेक लोगों की यह एक लोकप्रिय धारणा है कि “सभी मार्ग परमेश्‍वर की ओर ले जाते हैं।” निश्‍चय ही, इसका अर्थ यह होगा कि मनुष्यजाति के सभी धर्म परमेश्‍वर को स्वीकार्य हैं। इस विचार से सहमत होते हुए भगवद्‌ गीता  कहती है: “हे कुन्ती के पुत्र (अर्जुन), जो लोग दूसरे देवताओं के भक्‍त हैं विश्‍वास से ही उनकी उपासना करते हैं, परन्तु वे भी केवल मुझे पूजते हैं, यद्यपि वह विधिपूर्वक नहीं है।”—९:२३.

एक समझदार व्यक्‍ति सोच सकता है कि ‘आज कितने धार्मिक मार्ग हैं? और क्या धार्मिक लोगों को हमेशा से इतने विविध धार्मिक विश्‍वासों में से चुनना पड़ा है? उदाहरण के लिए, जब पृथ्वी पर केवल एक मनुष्य था तब कितने धार्मिक मार्ग अस्तित्व में थे?’

३. पहले धर्म का पता कैसे लगाया जा सकता है?

एक व्यक्‍ति इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकता कि धर्म इतिहास के द्वारा हम तक हमारे पूर्वजों से आया है। और चूँकि धर्म इतिहास के साथ इतने अविभाज्य रूप से जुड़ा हुआ है, यह तर्कसंगत है कि यदि हम इतिहास में काफ़ी पीछे की ओर देखें, तो वह हमें मनुष्य के पहले पूर्वज तक ले जायेगा, और यह फिर हमें पहले धार्मिक मार्ग की ओर ले आयेगा। तब वह पहला पुरुष कौन था? और उसका धर्म क्या था?

पहले पुरुष और स्त्री की उत्पत्ति

४. विज्ञान मानव शरीर की रचना के बारे में बाइबल के सृष्टि वृत्तांत से कैसे सहमत है?

हिंदू ग्रन्थों के अनुसार पहला पुरुष मनु था; बाइबल के अनुसार उसका नाम आदम था। (उत्पत्ति ५:१) परन्तु क्या पहले पुरुष का कोई इतिहास है जो प्रामाणिक और विश्‍वसनीय है, एवं ज्ञात तथ्यों की समता में है? आधुनिक चिकित्सा विज्ञान द्वारा जो खोज की गयी हैं वे इस प्रश्‍न के उत्तर की अतिरिक्‍त पुष्टि करती हैं। चिकित्सा वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारा मानव शरीर पृथ्वी की मिट्टी से प्राप्त ९० रासायनिक तत्त्वों से बना है। अब, यदि कोई प्राचीन इतिहास विशेष रूप  से बताता है कि पहला पुरुष पृथ्वी की मिट्टी से रचा गया था, तो क्या आप इस पर विश्‍वास करेंगे? क्यों न स्वयं पढ़ें कि बाइबल क्या कहती है? उत्पत्ति २:७ में वह बताती है: “और यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्‍वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया।”

५, ६. (क) सृष्टि के बारे बाइबल वृत्तांत कब लिखा गया था? (ख) सृष्टि के बारे में बाद की हिंदू परम्पराएं कैसे बाइबल इतिहास से मिलती हैं?

मनुष्य की उत्पत्ति का यह प्राचीन इतिहास उतना ही उल्लेखनीय है जितना कि हिंदू विद्वान एस. राधाकृष्णन द्वारा दिया गया कालक्रम। यह कालक्रम यरूशलेम के राजा सुलैमान को सा.यु.पू. ९७५ दिनांकित करता है, जिसके अनुसार भविष्यद्वक्‍ता मूसा का काल हुआ सा.यु.पू. दूसरी सहस्राब्दि के मध्य में। (१ राजा ६:१ से तुलना कीजिए।) और एक हिंदू स्वामी, भारती कृष्ण “मूसा की व्यवस्था” के बारे में लिखता है, और इस तरह वह मूसा को उत्पत्ति के संकलनकर्ता के रूप में स्वीकार करता है, क्योंकि यह ‘मूसा की व्यवस्था’ या बाइबल की प्रथम पाँच पुस्तकों का प्रारम्भिक हिस्सा है। यथार्थ में, भरोसे योग्य कालक्रम उत्पत्ति के संकलन की तिथि सा.यु.पू. १५१३ निश्‍चित करता है। इस प्रकार हमारे पास पहले पुरुष की उत्पत्ति का एक बहुत प्राचीन वर्णन है, जिससे २०वीं शताब्दी के चिकित्सा वैज्ञानिक सहमत हैं। कल्पित रूपान्तरणों और पौराणिक कथाओं से मुक्‍त एक विश्‍वसनीय इतिहास!

एक हिंदू के लिए यह दिलचस्पी की बात है क्योंकि अति आधुनिक हिंदू विद्वेता के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि रिगवेद का संकलन सा.यु.पू. प्रथम सहस्राब्दि के पहले भाग में हुआ, और यह साकार की हुई धरती, अर्थात्‌ पृथ्वी को मनुष्य की माता के रूप में चित्रित करता है। धरती जिसे शताब्दियों से पहले मानव जीव के गर्भ के रूप में याद किया गया, बाद में सामान्यतः “धरती माता” समझी जाती।—रिगवेद  १. १६४. ३३ से तुलना कीजिए।

७, ८. (क) क्या पहली स्त्री के बारे बाइबल का सृष्टि वृत्तांत सम्भव है? (ख) कैसे एक रिगवैदिक  परम्परा बाइबल के अभिलेख को प्रतिबिम्बित करती है?

ऐसा प्रतीत होता है कि मनु के सन्तान उत्पन्‍न करने में बारे में रिगवैदिक  वृत्तांत की जड़ें बाइबल में हैं। प्रारम्भिक हिंदू लेख पहले पुरुष को मनु के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिसको पत्नी की कमी ने अपनी एक पसुली (पर्शु) के द्वारा सन्तान उत्पन्‍न करने के लिए प्रेरित किया। बाद के समय का एक रिगवेद  भजन, मूर्तिमान रूप दी गयी पसुली, पर्शु का वर्णन पहले पुरुष, मनु की पुत्री के रूप में करता है, जिसके द्वारा वह बच्चों का पिता बनता है—“जन्म के समय बीस बच्चे”! (रिगवेद  १०. ८६. २३) पहली स्त्री, जो पहले पुरुष की पसुली से परमेश्‍वरीय रचना थी, समय बीतने पर परम्परागत रूप से उसकी पुत्री के रूप में देखी जा सकती थी।

एक समझदार व्यक्‍ति इस परम्परा को उत्पत्ति २:२१, २२ में दर्ज बाइबल के प्रारम्भिक ऐतिहासिक अभिलेख की एक दूरस्थ स्मृति के रूप में देखेगा, जहाँ हम पढ़ते हैं: “तब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम [मनुष्य, फुटनोट] को भारी नींद मे डाल दिया, और जब वह सो गया तब उस ने उसकी एक पसुली निकालकर उसकी सन्ती मांस भर दिया। और यहोवा परमेश्‍वर ने उस पसुली को जो उस ने आदम में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया।” पहली स्त्री की सृष्टि के बारे में बाइबल का वृत्तांत बिलकुल सुसंगत है। दिलचस्पी की बात है, डॉक्टर बताते हैं कि जब पेरिऑस्टियम (हड्डी को ढकनेवाली संयोजी ऊतक की झिल्ली) को रहने दिया जाता है, तो निकाली गयी पसुली फिर से अपने स्थान पर बढ़ जाती है। यहोवा परमेश्‍वर ने यह कार्य-प्रणाली अपनायी या नहीं, बाइबल नहीं बताती। फिर भी, मनुष्य का सृष्टिकर्ता होने के नाते, यहोवा परमेश्‍वर निश्‍चय ही पसुली की हड्डियों के इस असाधारण गुण को जानता था। पुरुष की एक पसुली का प्रयोग करके पहली स्त्री की सृष्टि करने का बाइबल वृत्तांत तर्कसंगत है, और यह कल्पित कथाओं से बिलकुल मुक्‍त है।

९. क्यों एक हिंदू के लिए बाइबल का सृष्टि अभिलेख प्रत्यक्ष दिलचस्पी की बात है?

स्वाभाविक है, मनुष्यजाति के पहले माता–पिता की सृष्टि के बारे में बाइबल का प्रामाणिक अभिलेख उनके बच्चों की आनेवाली पीढ़ियों को दिया जाता। बाद में, मनुष्य के पहले पूर्वजों की ये स्मृतियाँ मनुष्यजाति के बाद में बिखरे हुए समुदायों के लोक–साहित्य में मिल गयीं। इस प्रकार मनु और पर्शु के इन रिगवैदिक  वर्णनों का स्रोत बाइबल के प्रारम्भिक अभिलेख उत्पत्ति में है। इसलिए, एक निष्कपट और समझदार हिंदू के लिए सृष्टि और उसके सृष्टिकर्ता के बारे बाइबल के भरोसे योग्य वृत्तांत की जाँच करना मात्र सैद्धान्तिक दिलचस्पी की बात नहीं है, यह उसके लिए प्रत्यक्ष, व्यावहारिक महत्त्व की बात है।

पहले धर्म की खोज करना

१०. (क) बाइबल मनुष्य के पहले धर्म के बारे में क्या कहती है? (ख) क्यों यह व्यावहारिक था?

१० तो फिर, यह विश्‍वसनीय इतिहास दूसरी उत्पत्तियों के बारे में क्या कहता है? उदाहरण के लिए, धर्म की उत्पत्ति और बुराई एवं मृत्यु की उत्पत्ति के बारे क्या? फिर एक बार स्वयं उत्पत्ति २:१५-१७ में पढ़ें: “जब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम [मनुष्य, फुटनोट] को लेकर अदन की बाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रक्षा करे, तब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को यह आज्ञा दी, कि तू बाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता हैं: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्‍य मर जाएगा।” चूँकि इस आज्ञा को मानना परमेश्‍वर के प्रति भक्‍ति दिखाता, यह वृत्तांत वास्तव में पहले पुरुष के लिए नियत धर्म का वर्णन कर रहा है। इस तरह पहला धर्म परमेश्‍वर के प्रति आज्ञाकारिता का मार्ग होना था। मनुष्य के लिए नैतिक और आध्यात्मिक अर्थ में क्या अच्छा था और क्या बुरा, इसका निर्णय करने के लिए पहले धर्म ने हमारे बनाने वाले के अधिकार को स्वीकार किया। वह इतना सरल था! कोई मन्दिर या गिरजे, गुरु, मिशनरी या पादरी (पुरोहित), मूर्ति, या संस्कार नहीं थे। यह ऐसा धर्म था जो मुनष्य की शारीरिक और मानसिक समझ के अन्दर था। कोई दर्शन–शास्त्र, कोई अनुमानिक सिद्धांत बनाना नहीं था, कुछ ऐसा नहीं था जो साधारण मनुष्य के समझने या पालन करने के सामर्थ्य से बाहर था। मनुष्य का पहला धर्म वास्तविक और व्यावहारिक था—अपने सृष्टिकर्ता के प्रति सरल भक्‍ति का एक मार्ग जब वह बुद्धिमत्तापूर्वक अपनी आवश्‍यकताओं को पूरा करने और अपने उद्यानगृह की देखभाल के लिए अपने दैनिक काम में जाता था। निश्‍चय ही इस पर विश्‍वास करना कठिन नहीं है।

११. मनुष्य का पहला धर्म उसे कहाँ ले जाता?

११ यह वास्तविक इतिहास बताता है कि मनुष्य का पहला घर एक परादीस पृथ्वी थी। और उसका पहला धर्म उसे मृत्यु की ओर नहीं पर जीवन की ओर ले जाता! मनुष्य का पहला धर्म वह मार्ग था जो उसे उसकी परिपूर्ण, शारीरिक मानव देह में अनन्त जीवन की ओर ले जाता—ग़लत इच्छा और पाप से सच्ची स्वतंत्रता का साथ ही कर्म  के नियम जैसे किसी भी प्रकार के हानिकारक प्रभावों से छुटकारे का मानव जीवन। परमेश्‍वर ने मनुष्य के सामने शरीर में ही अनन्त काल तक सन्तुष्ट करनेवाले जीवन का चुनाव रखा; जो मृत्यु, समाप्ति के विपरीत है। अन्ततः मोक्ष या मुक्‍ति के लिए मनुष्य को उस के शरीर से कभी अलग करने का संकेत भी नहीं था। मनुष्य के पहले धर्म के अनुसार, मृत्यु कोई छुटकारा या मुक्‍ति नहीं थी। इसके बजाय, यह एक सज़ा थी। परन्तु कृपया ध्यान दें, परमेश्‍वर नहीं चाहता था कि मनुष्य मरे और अपनी शारीरिक देह एवं पार्थिव परादीस से वंचित हो जाए। तब क्या ग़लती हुई?

मृत्यु क्यों?—यह क्या है?

१२, १३. (क) हमारा पहला पूर्वज क्यों मरा? (ख) क्यों मनुष्य अपनी नियति चुन सका?

१२ क्यों हमारे पहले पूर्वज की मृत्यु हुई? इसलिए हुई क्योंकि उसने अपनी स्वतंत्र इच्छा का दुरुपयोग किया। परमेश्‍वर ने प्रेमपूर्वक मनुष्य को चयन की स्वतंत्रता दी थी। यह उत्पत्ति २:१७ में परमेश्‍वर द्वारा व्यक्‍त वचनों से देखा जा सकता है, जिसे हमने (अनुच्छेद १० में) अभी पढ़ा है। मानव परिपूर्णता के लिए आवश्‍यकता थी कि मनुष्य के पास स्वतंत्र इच्छा हो। इसलिए मनुष्य को चुनने की स्वतंत्रता दी गयी थी। मना किये हुए फल को खाएँ या उसे नहीं खाएँ? यही प्रश्‍न था। परमेश्‍वर की आज्ञा मानें या नहीं मानें? मनुष्य को अपनी नियति स्वयं चुनने के लिए छोड़ दिया गया था। यह मनुष्य की बुद्धिमत्ता और प्रेम करने की उसकी योग्यता के सामंजस्य में था।

१३ हां, यह मनुष्य के प्रेम करने की योग्यता है जो प्रमाणित करती है कि उसके पास स्वतंत्र इच्छा है। यदि “प्रेम” भाग्य का लिखा है, या दबाव के कारण है, तो वह प्रेम नहीं है। यह आवश्‍यक है कि प्रेम ऐच्छिक हो—प्राण (Soul) की सच्ची सहमति—और फलस्वरूप मनुष्य को प्रेम करने की इच्छा में स्वतंत्र होना था ताकि परमेश्‍वर के लिए उसका प्रेम सच्चा और वास्तविक हो। इसलिए परमेश्‍वर ने मनुष्य को स्वतंत्र नैतिक इच्छा प्रदान की, ताकि मनुष्य के पहले धर्म का उद्देश्‍य पूरा हो सके। इस तरह, मुनष्य अपने स्वर्गीय पिता के प्रति कृतज्ञता से—बुद्धिमान चुनाव कर सकता और अपने प्रेम का प्रदर्शन कर सकता था। प्रेम केवल अपने फलों से जाना जा सकता है, और एक आत्म–निर्भर परमेश्‍वर के प्रति प्रेम केवल उसके प्रति मनुष्य की आज्ञाकारिता के द्वारा ही प्रमाणित हो सकता है। जैसा बाइबल १ यूहन्‍ना ५:३ में कहती है: “परमेश्‍वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उसकी आज्ञाएं कठिन नहीं।”

१४. (क) पहले मनुष्य की अनाज्ञाकारिता के क्या परिणाम हुए? (ख) कैसे इसने उसकी सन्तान पर प्रभाव डाला?

१४ परन्तु हमारे पहले पूर्वज ने जानबूझकर अनाज्ञाकारिता का मार्ग अपनाया और इस प्रकार स्वयं को विश्‍व के परमेश्‍वर से दूर कर लिया। मनुष्य अब परमेश्‍वर के बिना अपने भरोसे था। परिणामस्वरूप, उसने अपनी मानव परिपूर्णता खो दी और सज़ा के तौर पर मृत्यु मानव लोक में आ गयी। आनुवंशिकता का स्वाभाविक नियम लागू हो गया और इस तरह पहले मनुष्य की सन्तान पाप से दूषित अतः परमेश्‍वर से विमुख अवस्था में उत्पन्‍न हुई। हमारे पहले पूर्वज ने उसके लिए दिये गये धर्म की प्रथम और सरल मांग, अर्थात्‌ परमेश्‍वर के प्रति प्रेम के कारण उसकी आज्ञा मानने की अवहेलना और अवज्ञा की। परिणाम यह हुआ कि उसकी सन्तान ने उस बड़ी विरासत को खो दिया जो उन्हें मिल सकती थी। इस तरह, पाप और दोष का भाव समस्त मनुष्यजाति को दिया गया, जिस में रिगवेद  के लेखक भी शामिल हैं। अतः वैदिक  ईश्‍वर वरुण को सम्बोधित एक भजन कहता है: “हे वरुण, जो भी अपराध हम मनुष्य होकर स्वर्गीय समुदाय के विरुद्ध करते हैं, जब हम विचार किए बिना तेरे नियमों का उल्लंघन करते हैं, तब हे ईश्‍वर उस पाप के लिए हमें सज़ा न दे।”—रिगवेद  ७. ८९. ५ की तुलना बाइबल के रोमियों ५:१२ से कीजिए।

१५, १६. (क) मृत्यु क्या है? (ख) इसलिए मृत्यु के बारे कौन-सी लोकप्रिय धारणाएँ सच नहीं हो सकती हैं?

१५ जैसा परमेश्‍वर ने कहा था अन्त में पहला मनुष्य अपने विद्रोह के कारण मर गया। हमारे पहले समान पूर्वज को मृत्यु की सज़ा देते हुए परमेश्‍वर का प्रकट संचार बताता है: “अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जायगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।” (उत्पत्ति ३:१९) यह मनुष्यों की मृत्यु के बारे में परमेश्‍वर का वर्णन है। दिलचस्पी की बात है कि बाइबल का यह पद मृतकों की अवस्था के बारे में बाद में किए गए वैदिक वर्णन का आधार प्रतीत होता है। ऊपर उद्धृत रिगवेद  भजन का पहला पद कहता है: “राजा वरुण; मुझे अभी मिट्टी के घर में प्रवेश करने न दे: शक्‍तिमान प्रभु, मुझ पर दया कर, मुझे बचा।” (रिगवेद  ७. ८९. १) इस पद पर रिगवेद  का एक फुटनोट कहता है: “मिट्टी का घर: क़ब्र अठारहवाँ–वेद  पद ३०.१४ से तुलना करें।” एक मृतक मनुष्य के शव का क़ब्र में जाना और भूमि की मिट्टी में मिल जाना निश्‍चय ही “मिट्टी के घर” में प्रवेश करना है!

१६ इस तरह मृत्यु मनुष्य को वहाँ ले जाती जहाँ से वह आया था—पृथ्वी की मिट्टी में। मृत्यु को किसी दूसरे अस्तित्व का द्वार नहीं होना था। मनुष्य के लिए मृत्यु को जीवन के विपरीत होना था, अर्थात्‌ अनस्तित्व। मृत्यु को जीवन के कालचक्र, या जन्म और पुनर्जन्म चक्र की अनिश्‍चित बंधुआई की शुरूआत नहीं करनी थी। मृत्यु को जीवन का अन्त होना था। निश्‍चय ही, हिंदू धारणा जीवन का कालचक्र और उससे सम्बन्धित प्राण (Soul) के देहान्तरण की शिक्षा हिंदू लेखों में सबसे प्रारम्भिक लेख रिगवेद  में नहीं पायी जाती है। जब तक उपनिषद लेखों को रचा नहीं गया तब तक देहान्तरण के बारे हिंदू धारणा शुरू नहीं हुई थी। और हिंदू लेखक एस. एन. दासगुप्ता के अनुसार, यह सा.यु.पू. वर्ष ७०० और ६०० के बीच हुई। यह मूसा द्वारा उत्पत्ति अध्याय दो के लिखे जाने के ८०० और ९०० वर्षों बाद हुआ।

१७. किस पर मनुष्य का भावी जीवन निर्भर है?

१७ परमेश्‍वर के उद्देश्‍य में मनुष्य के लिए कोई भी भावी जीवन अमर प्राण (Soul) पर नहीं, परन्तु मृतक व्यक्‍ति के बारे में परमेश्‍वर की स्मृति पर निर्भर करेगा। इस परमेश्‍वरीय सच्चाई के समर्थन में, एक प्राचीन कुलपिता, अय्यूब जिस के बारे में परमेश्‍वर ने कहा, ‘[पृथ्वी में] उसके तुल्य और कोई नहीं है,’ उसने इस प्रकार स्वयं को व्यक्‍त किया: “मनुष्य लेट जाता और फिर नहीं उठता; जब तक आकाश बना रहेगा तब तक वह न जागेगा, और न उसकी नींद टूटेगी। भला होता कि तू मुझे अधोलोक में छिपा लेता और जब तक तेरा कोप ठंढा न हो जाए तब तक मुझे छिपाए रखता, और मेरे लिये समय नियुक्‍त करके फिर मेरी सुधि  लेता। यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा? जब तक मेरा छुटकारा न होता तब तक मैं अपनी कठिन सेवा के सारे दिन आशा लगाए रहता। तू मुझे बुलाता, और मैं बोलता; तुझे अपने हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती।” (अय्यूब १:८; १४:१२-१५, लगभग सा.यु.पू. १५०० में लिखा गया; तिरछे टाइप हमारे।) मनुष्य को अपनी मृत्यु नींद में तब तक रुकना पड़ता जब तक उसे याद करने का परमेश्‍वर उचित समय नहीं आता। इस प्रकार मनुष्य जाति का भावी जीवन एक मृत्युरहित प्राण (Soul) पर नहीं, परमेश्‍वर की अचूक स्मृति पर निर्भर करता।

मानव पूर्वजों को भविष्य की आशा प्रकट की गयी

१८. क्यों परमेश्‍वर ने मनुष्यजाति को पूर्णतया नहीं छोड दिया था?

१८ लेकिन, हालाँकि पहले मनुष्य ने परमेश्‍वर को छोड़ दिया था, क्या परमेश्‍वर ने मनुष्य को छोड़ दिया? मनुष्यजाति के प्रथम ऐतिहासिक अभिलेख प्रकट करते हैं कि परमेश्‍वर ने अपने न्याय को दया के साथ संतुलित किया। न्याय से ही परमेश्‍वर ने मुनष्यजाति को पाप के लिए उचित हरजाना सहने की अनुमति दी। परन्तु दया से ही उसने अपने साथ उनके मेल–मिलाप का प्रबन्ध किया और उन्हें पार्थिव परादीस पुनःस्थापित करने की आशा दी। बाइबल का वास्तविक इतिहास बताता है: “क्योंकि सृष्टि अपनी इच्छा से नहीं पर आधीन करनेवाले की ओर से व्यर्थता के आधीन इस आशा  से की गई। कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्‍वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।” (रोमियों ८:२०, २१) और क्या यह वास्तविकता नहीं है कि मानव इतिहास व्यर्थता का एक लंबा अभिलेख है? मानव इतिहास वास्तव में इस बाइबलीय कथन की सच्चाई का प्रमाण देता है। परन्तु परमेश्‍वर ने किस तरह आशा के एक आधार का प्रबन्ध किया?

१९. सभी मानवी आशाओं के लिए आधार प्रतिज्ञा क्या है?

१९ हमारे इतिहास के प्रारंभ में, परमेश्‍वर ने उत्पत्ति ३:१५ के इन शब्दों में मनुष्यजाति के लिए आशा प्रकट की: “मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्‍न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।” यह वह आधार प्रतिज्ञा है जिस पर सारी मनुष्यजाति की आशाएँ टिकी हुई हैं। यथार्थ में, यह सारी मनुष्यजाति के लिए हमारे महान पूर्वज की प्रतिज्ञा है!

२०. (क) बाइबल की पहली भविष्यद्वाणी में कौन-से चार पात्र अन्तर्ग्रस्त हैं? (ख) आपके महान पूर्वज की यह प्रतिज्ञा कैसे पूरी होगी?

२० पूरे मानव इतिहास में यह पहली पवित्र भविष्यद्वाणी चार मुख्य पात्रों के चारों ओर घूमती है, अर्थात, (१) सर्प की आकृति में बैरी, (२) बैरी का वंश, (३) स्त्री, और (४) उसका वंश। चूँकि इन पात्रों का वर्णन प्रतीकों में किया गया है, बाइबल ‘स्त्री के वंश’ की पहचान का उल्लेख एक “पवित्र भेद” के तौर पर करती है। (कुलुस्सियों १:२६, NW से तुलना कीजिए।) तोभी, वह व्यक्‍ति जिसे भविष्यवाणी सम्बोधित की गयी है स्पष्टतः परमेश्‍वर की सर्वसत्ता का पहला बैरी और उसके विरुद्ध विद्रोह करनेवाला है, और उसका “वंश” उसके समर्थक हैं। “स्त्री” परमेश्‍वर के विश्‍व संगठन का प्रतीक है, जो परमेश्‍वर की सर्वसत्ता के प्रति पत्नीतुल्य वफ़ादारी और अधीनता बनाए रखती है। (यशायाह ५४:१, से तुलना कीजिए; गलतियों ४:२६; प्रकाशितवाक्य १२:१) इसलिए, बड़े विद्रोही को कुचलने, परमेश्‍वर की सर्वसत्ता को दोषमुक्‍त करने, और उस सारी मनुष्यजाति का, जो परमेश्‍वर के शासन का समर्थन करती है, महान छुड़ानेवाला होने के लिए ‘स्त्री का वंश’ परमेश्‍वर के जीवधारियों से बने विश्‍व संगठन में से परमेश्‍वर के पुत्र के रूप में उत्पन्‍न होता। इस प्रकार आपके महान पूर्वज की ओर से यह प्रतिज्ञा परमेश्‍वर द्वारा दुष्ट की सेना के विरुद्ध युद्ध की घोषणा है, और अन्तिम परिणाम, अर्थात परमेश्‍वरीय सर्वसत्ता और भलाई की जीत की पूर्वसूचना है।

२१, २२. (क) यह बाइबल प्रतिज्ञा हिंदू परम्परा में कैसे सुरक्षित रखी गयी है? (ख) यह हिंदू तस्वीर क्या चित्रित करती है?

२१ यह एक अद्‌र्भित तथ्य है कि बाइबल की इस आधार प्रतिज्ञा की स्मृति हिंदू धार्मिक विकास के हज़ारों वर्षों के दौरान ताज़ा रखी गयी है। चूँकि बाइबल में अभिलिखित ‘स्त्री के वंश’ द्वारा ‘सर्प के सिर’ को कुचलने की यह परमेश्‍वरीय प्रतिज्ञा मनुष्यजाति के पहले मानव माता–पिता को बतायी गयी थी, तब यह पहले से अपेक्षा की जानी चाहिए कि इस प्रतिज्ञा के कुछ चिह्न राष्ट्रों के मध्य पाये जाएंगे। और ऐसा ही हुआ है।

२२ आधुनिक हिंदू आज सनातन–लक्ष्मी नामक एक देवी की तस्वीर की पूजा करते हैं। माता और बच्चे का प्रतीक-प्रयोग पहले की एक “स्त्री” और उसके “वंश” की याद दिलाता है, जब कि सुरक्षा के लिए माता द्वारा पकड़ी हुई तलवार और ढाल स्पष्टतः एक शत्रु से पहले से किसी “बैर” का संकेत करते हैं। लक्ष्मी की इस तस्वीर का प्रमुख अर्थ सम्भवतः हज़ारों वर्षों के बीतने पर ओझल हो गया है, पर इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह मनुष्यजाति की प्रारम्भिक आशाओं को चित्रित करता है जो बाइबल में पहले मनुष्य के प्रथम माता–पिता को दी गयी थी। और, शायद इस पर ध्यान दिये बिना, हिंदू, बाइबल की पहली प्रतिज्ञा की स्मृति को लक्ष्मी की इस तस्वीर में मिला लेते हैं।

२३, २४. (क) इस तस्वीर की तार्किक रूप से केवल कैसे व्याख्या की जा सकती है? (ख) उत्पत्ति ३:१५ सारी मनुष्यजाति के लिए क्या आशा प्रस्तुत करता है?

२३ जब बाइबल की पहली भविष्यद्वाणी से इस हिंदू तस्वीर की तुलना करते हैं, तब यह पूछना उचित है कि ‘पहले कौन आया, हिंदू तस्वीर या बाइबल शास्त्र?’ ऐतिहासिक रूप से, उत्तर होगा: शास्त्र। यह भविष्यद्वाणी मनुष्य के पहले पार्थिव पूर्वज के प्रारम्भिक जीवनकाल में ही की गयी थी, जिस के बाद भविष्यद्वाणी का सही महत्त्व परमेश्‍वर के निश्‍चित समय तक बाद की पीढ़ियों से गुप्त रखा गया। (कुलुस्सियों १:२६) दूसरी ओर, तर्कानुसार धार्मिक लेखों और तस्वीरों में चित्रित ‘माता–देवी–बच्चा’ धारणा की कल्पना प्रथम मनुष्य और उसके इस पहली भविष्यद्वाणी के प्राप्त करने से पहले नहीं की जा सकती थी!

२४ बाइबल के बिना, इस हिंदू तस्वीर की दूसरी व्याख्याएं केवल निराधार कल्पनाओं के बराबर हैं। पक्षपाती व्याख्याएं एक विचारशील व्यक्‍ति को वास्तव में सन्तुष्ट नहीं करतीं। इसलिए, लक्ष्मी की इस आधुनिक तस्वीर में चित्रित हिंदुओं की भावी आशाएं अपनी उत्पत्ति केवल बाइबल के सुरक्षित इतिहास में ही पाती हैं। इस प्रकार, उत्पत्ति ३:१५ में ‘स्त्री के वंश’ की बाइबल की भविष्यद्वाणी निष्कपट हिंदुओं को परमेश्‍वर की सर्वसत्ता की अन्तिम जीत, और विश्‍व में से जिस में हमारी पृथ्वी भी सम्मिलित है, सब विद्रोहों और दुष्टता के अन्तिम निष्कासन की आशा देती है। और ‘स्त्री का [सच्चा] वंश’ छुटकारा देनेवाला है जिसे परमेश्‍वर ने स्वयं नियुक्‍त किया है। कोई भी व्यक्‍ति अब तक इस अति महत्त्वपूर्ण वाद–विषय को इस कारण निपटा नहीं सका, क्योंकि इसे परमेश्‍वर के तरीक़े से और उसके नियत समय पर करने की आवश्‍यकता है।

२५. हम उत्पत्ति ३:१५ की सच्ची पूर्णता का पता कैसे लगा सकते हैं?

२५ विश्‍व की अवस्था को पुनःव्यवस्थित करने की इस परमेश्‍वरीय प्रतिज्ञा की सच्ची पूर्णता प्राप्त करने के लिए, हमें मानव इतिहास के बारे में अपनी खोज को जारी रखने की आवश्‍यकता है। इसलिए हम मनुष्यजाति के पहले समुदाय—हमारे समान मानव पूर्वजों के ऐतिहासिक विकास की खोज करते हैं। परमेश्‍वर द्वारा सृष्टि किये गये पहले दम्पत्ति को बच्चे हुए और धीरे–धीरे मानव परिवार बढ़ता गया। परमेश्‍वर से उनके विमुख होने पर हत्या, व्यभिचार, और मनुष्यों के भ्रष्ट चाल–चलन के स्तर अपना कुरूप सिर उठाने लगे।—उत्पत्ति ५:३-५; ४:८, २३.

अवतारों की उत्पत्ति

२६–३०. (क) अवतारों के बारे में हिंदू धार्मिक शिक्षा पर बाइबल कैसे प्रकाश डालती है? (ख) क्यों यह कहा जा सकता है कि कुछ हिंदू परम्पराओं के मूल बाइबल के सच्चे अभिलेख में मिलते हैं?

२६ और अब इतिहास में एक असाधारण घटना घटी—वह घटना जिसका हिंदू लोक–साहित्य में संकेत मिलता है। बाइबल का प्रामाणिक इतिहास बताता है: “फिर जब मनुष्य भूमि के ऊपर बहुत बढ़ने लगे, और उनके बेटियां उत्पन्‍न हुईं, तब परमेश्‍वर के पुत्रों ने मनुष्य की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दर हैं; सो उन्हों ने जिस जिसको चाहा उन से ब्याह कर लिया। और यहोवा ने कहा, मेरा आत्मा मनुष्य से सदा लों विवाद करता न रहेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही है: उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी।

२७ “उन दिनों में पृथ्वी पर दानव रहते थे; और इसके पश्‍चात्‌ जब परमेश्‍वर के पुत्र मनुष्य की पुत्रियों के पास गए तब उनके द्वारा जो सन्तान उत्पन्‍न हुए, वे पुत्र शूरवीर होते थे, जिनकी कीर्त्ति प्राचीनकाल से प्रचलित है।

२८ “और यहोवा ने देखा, कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्‍न होता है सो निरन्तर बुरा ही होता है।”—उत्पत्ति ६:१-५.

२९ इस का अर्थ है कि अदृश्‍य क्षेत्र में परमेश्‍वर के बुद्धिमान आत्मिक पुत्रों ने आकर्षक मानव स्त्रियों के प्रति अस्वाभाविक इच्छाओं को बढ़ाया और इस तरह इन “स्वर्गदूतों ने अपने पद को स्थिर न रखा बरन अपने निज निवास को छोड़ दिया।” (यहूदा ६) परमेश्‍वर के इन स्वर्गदूतीय पुत्रों ने पृथ्वी पर अवतार लिया या मानव देह धारण कर ली। उन्होंने आकर्षक शारीरिक स्त्रियों के साथ सहवास किया और अतिमानवीय शक्‍ति रखनेवाले संकर सन्तानों को पैदा किया। संस्कृत शब्द अवतार  का अर्थ “अवतरण” है, विशेषकर एक ईश्‍वर के स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के बारे में। यहाँ, बाइबल इतिहास वास्तविक घटनाओं के बारे में बताता है जो बाद में अवतारों के सम्बन्ध में हिंदू धर्म-शिक्षा में प्रकट हुआ।

३० यह सच्चा बाइबल वृत्तांत पुराण  के नाम से जाने गये हिंदू लेखों के धर्मविज्ञान पर भी प्रकाश डालता है। पुराण  में देवताओं और दानवों और उनके शक्‍तिशाली कामों, उनके प्रेम सम्बन्ध और उनकी लड़ाइयों और चमत्कारों के वृत्तांतों का अभिलेख है। पुराण  गन्धर्व कहलाने वाले देवताओं के एक वर्ग वर्णन करता है जिन्हें एक तेज़ पार्थिव गंध प्राप्त है। गन्धर्वों को विवाह से भी जोड़ा जाता है, और उनके बारे में कहा गया है कि वे स्त्रियों से प्रेम करते तथा उनके बारे में हमेशा सोचते रहते हैं। उनकी प्रेमिकाएँ अपसराएँ हैं, जिन्हें हिंदू लेखों में बहकानेवाली और स्वच्छंद संभोगी करके चित्रित किया गया है, और जिन में मातृसुलभ भावनाओं की कमी है। अपसराओं में भी पार्थिव सुगन्ध होती है, जिसे पसन्द किया जाता था। फिर हिंदू धर्मविज्ञान में अर्ध देवताओं का एक समूह है जो गण  कहलाता है, और एक हिंदू विशेषज्ञ के अनुसार गण  संकर व्यक्‍ति हैं। ये वृत्तांत परमेश्‍वर के अनाज्ञाकारी आत्मिक पुत्रों के बारे में बाइबल के सच्चे अभिलेख से मिलते हैं। उन स्वर्गदूतों का भी अपना प्रेम सम्बन्ध था, वे बड़े बड़े चिन्ह एवं चमत्कार भी कर सकते थे। और उनके दानवी संकर सन्तान भी शक्‍तिशाली काम कर सकते थे। ये अनाज्ञाकारी स्वर्गदूत और दानव पृथ्वी पर कम से कम १२० वर्षों तक रहे। अनेक प्रसिद्ध कामों का रिकार्ड बनाने के लिए वह समय उनके लिए पर्याप्त था, जैसा बाइबल बताती है। इस तरह ये घटनाएँ अनेक प्राचीन लोगों की धार्मिक दंतकथाओं में अलग-अलग हद तक यथार्थता से बतायी गयी हैं।

३१, ३२. परमेश्‍वर बड़ी बाढ़ क्यों लाया?

३१ फिर भी, ये घटनाएँ दुष्टता को बढ़ावा देने का कारण बनीं, जिसने परमेश्‍वर को बड़ी बाढ़ या जलप्रलय  लाने के लिए प्रेरित किया। सच्चा इतिहास रिपोर्ट देता है: “उस समय पृथ्वी परमेश्‍वर की दृष्टि में बिगड़ गई थी, और उपद्रव से भर गई थी। और परमेश्‍वर ने पृथ्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियों ने पृथ्वी पर अपनी अपनी चाल चलन बिगाड़ ली थी। तब परमेश्‍वर ने नूह से कहा, . . . मैं आप पृथ्वी पर जलप्रलय करके सब प्राणियों को, जिन में जीवन की आत्मा [“शक्‍ति,” NW] है, आकाश के नीचे से नाश करने पर हूं: और सब जो पृथ्वी पर हैं मर जाएंगे।”—उत्पत्ति ६:११-१७.

३२ “और क्या पक्षी, क्या घरेलू पशु, क्या बनैले पशु, और पृथ्वी पर सब चलनेवाले प्राणी, और जितने जन्तु पृथ्वी में बहुतायत से भर गए थे, वे सब, और सब मनुष्य मर गए।”—उत्पत्ति ७:२१.

३३. कैसे और कब यह वर्तमान युग शुरू हुआ?

३३ अब पृथ्वी उस जलप्रलय या बाढ़ के फलस्वरूप साफ हो गयी थी। परमेश्‍वर ने धार्मिकता के लिए अपने प्रेम का प्रदर्शन किया था, और, चूँकि उसने कुछ लोगों को बचाने का प्रबन्ध किया, मनुष्यजाति की एक नयी शुरूआत हुई। हमारे वर्तमान युग, या काल, की शुरूआत हुई। फिर भी, जल–प्रलय से पूर्व के इन इतिहासों का ज्ञान प्रत्यक्षतः जलप्रलय से बचने वालों की स्मृति में रह गया और आज अनेक लोगों द्वारा माने जानेवाले देवाताओं और धर्मों के बारे में विश्‍वासों एवं विचारों का आधार बन गया।

पिशाचों को किसने बनाया?

३४. उन अवतारों का क्या हुआ?

३४ जब जलप्रलय  भक्‍तिहीन लोगों को जल की कब्र में बहा ले गया, तब विद्रोही स्वर्गदूतों ने अपनी शारीरिक देह छोड़ दी और आत्मिक लोक को लौट गए। वे धार्मिक शासकत्व के लिए परमेश्‍वर के उद्देश्‍य में उस के साथ फिर से मिलने के लिए नहीं, परन्तु पिशाचों के राजकुमार के साथ मिलने के लिए वापस लौटे जो परमेश्‍वर का मुख्य विरोधी है। यही वह पहला पिशाच था जिसने प्रारम्भ में परमेश्‍वर की सर्वसत्ता के विरुद्ध पहले पुरुष और स्त्री को विद्रोह करने के लिए सहमत किया था, और यही वह था जिसे उत्पत्ति ३:१५ की महान भविष्यद्वाणी सम्बोधित की गयी। इस पहले पिशाच ने धोखा देने के द्वारा और जीवन एवं मृत्यु के बारे ग़लत विचार बताने के द्वारा मानव विद्रोह को उत्पन्‍न किया था। ऐसा कैसे हुआ?

३५. कैसे पहले पिशाच ने हमारे पहले मानव पूर्वजों को परमेश्‍वर के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए सहमत किया?

३५ आइये फिर से साथ मिलकर उत्पत्ति ३:१-५ के अभिलेख को देखें: “यहोवा परमेश्‍वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त्त था, और उस ने स्त्री से कहा, क्या सच है, कि परमेश्‍वर ने कहा, कि तुम इसे बाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना? स्त्री ने सर्प से कहा, इस बाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकते हैं। पर जो वृक्ष बाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्‍वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे। तब सर्प ने स्त्री से कहा, तुम निश्‍चय न मरोगे, वरन परमेश्‍वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्‍वर के तुल्य हो जाओगे।”

३६. शैतान ने दावे के साथ क्या कहा, और कैसे वह सारे संसार को भरमा रहा है?

३६ परमेश्‍वर का विरोध करने के द्वारा, उस पहले इब्‌लीस ने, अपने प्रवक्‍ता सर्प के ज़रिये स्वयं को झूठा और झूठ का पिता बनाया। (यूहन्‍ना ८:४४) परमेश्‍वर के प्रति उस विरोध के कारण वह शैतान कहलाया, क्योंकि शैतान का अर्थ “विरोधी,” या “प्रतिरोधी” है। शैतान ने दावे के साथ कहा कि मनुष्यजाति का सतत जीवन परमेश्‍वर के प्रति आज्ञाकरिता पर निर्भर नहीं था। इस तरह, शैतान ने जीवन और मृत्यु के बारे में कुछ ग़लतफ़हमियाँ चालाकी से मनुष्यजाति के गले मढ़ दीं। वास्तव में, बाइबल कहती है कि शैतान सारे संसार को भरमा रहा है। (प्रकाशितवाक्य १२:९) इन ग़लतफ़हमियों के आधार पर ही अधिकांश मानवजाति को आज जीवन और मृत्यु के बारे में अपनी धारणाएँ मिली हैं। निश्‍चय ही, हज़ारों वर्षों के दौरान ये धारणाएँ जीवन, मृत्यु और धर्म के बारे में लोकप्रिय विश्‍वासों और मनोवृत्तियों में ढल गयी हैं।

३७. कैसे एक परिपूर्ण स्वर्गदूत इब्‌लीस बन सकता था?

३७ परन्तु आप पूछ सकते हैं, एक परिपूर्ण स्वर्गदूत पिशाच या इब्‌लीस कैसे बन सकता था? ठीक उसी प्रकार जैसे पहले परिपूर्ण मनुष्य ने परमेश्‍वर के विरुद्ध विद्रोह किया। स्वतंत्र इच्छा का दुरुपयोग करने के द्वारा! एक अच्छा जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्‍ति अपराधी कैसे बनता है? चोरी करने के द्वारा एक व्यक्‍ति स्वयं को चोर बनाता है। उसी प्रकार, एक परिपूर्ण स्वतंत्र नैतिक कर्ता, चाहे वह मनुष्य हो या आत्मिक प्राणी हो, अपनी स्वतंत्र इच्छा का दुरुपयोग कर सकता है और भ्रष्ट होकर परमेश्‍वर के विरुद्ध विद्रोही बन सकता है। जलप्रलय-पूर्व युग में परमेश्‍वर के परिपूर्ण स्वर्गदूतीय पुत्रों के साथ भी यही हुआ था। उन्होंने अपने मूल निवास स्थान को छोड़ने के लिए अपनी स्वतंत्र इच्छा का प्रयोग किया। परन्तु अब वे बाढ़, या जलप्रलय  के कारण अपने आत्मिक अस्तित्व को दोबारा प्राप्त करने के लिए विवश थे, यद्यपि उन परमेश्‍वर की कृपा नहीं थी।

आर्य लोग भारत कैसे आये

३८, ३९. इस वर्तमान युग में, पिशाचों के पास मनुष्यजाति पर अपना दुष्ट प्रभाव डालने का पहला अवसर कब आया?

३८ इस तरह जलप्रलय के बाद साफ़ की हुई पृथ्वी में शैतान के नेतृत्व में पिशाचों ने मनुष्यजाति पर अपना दुष्ट प्रभाव डालने का प्रयास करना और परमेश्‍वर के शासकत्व या सर्वसत्ता के अधीन मनुष्यजाति को फिर से लाने के उसके घोषित उद्देश्‍य की प्रगति का विरोध करना आरम्भ किया। (उत्पत्ति ३:१५) इस वर्तमान युग में उनको पहला अवसर तब मिला जब सारी मनुष्यजाति अभी तक एक भाषा बोलती थी। आप स्वयं उत्पत्ति ११:१-९ में इस इतिहास को पढ़ सकते हैं।

३९ “सारी पृथ्वी पर एक ही भाषा, और एक ही बोली थी। उस समय लोग पूर्व की ओर चलते चलते शिनार देश में एक मैदान पाकर उस में बस गए। तब वे आपस में कहने लगे, कि आओ; हम ईंटें बना बना के भली भांति आग में पकाएं, और उन्हों ने पत्थर के स्थान में ईंट से, और चूने के स्थान में मिट्टी के गारे से काम लिया। फिर उन्हों ने कहा, आओ, हम एक नगर और एक गुम्मट बना लें, जिसकी चोटी आकाश से बातें करे, इस प्रकार से हम अपना नाम करें ऐसा न हो कि हम को सारी पृथ्वी पर फैलना पड़े।

४०. सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर ने उनकी विद्रोही योजनाओं को कैसे व्यर्थ कर दिया?

४० “जब लोग नगर और गुम्मट बनाने लगे; तब इन्हें देखने के लिये यहोवा उतर आया। और यहोवा ने कहा, मैं क्या देखता हूं, कि सब एक ही दल के हैं, और भाषा भी उन सब की एक ही है, और उन्हों ने ऐसा ही काम भी आरम्भ किया; और अब जितना वे करने का यत्न करेंगे, उस में से कुछ उनके लिये अनहोना न होगा। इसलिये, आओ, हम उतर के उनकी भाषा में बड़ी गड़बड़ी डालें, कि वे एक दूसरे की बोली को न समझ सकें। इस प्रकार यहोवा ने उनको, वहां से सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया; और उन्हों नें उस नगर का बनाना छोड़ दिया। इस कारण उस नगर का नाम बाबुल पड़ा; क्योंकि सारी पृथ्वी की भाषा में जो गड़बड़ी है, सो यहोवा ने वहीं डाली, और वहीं से यहोवा ने मनुष्यों को सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया।”

४१. (क) इस प्रकार बाइबल किन ऐतिहासिक उत्पत्तियों को प्रकट करती है? (ख) क्यों यह बाइबल को हमारी सतत्‌ दिलचस्पी के योग्य बनाता है?

४१ यह सब भारत–यूरोपीय भाषाओं की उत्पत्ति का प्रारम्भिक ऐतिहासिक वृत्तांत है, जिसमें संस्कृत, प्रकृत, पाली, और द्रविड़ बोलियां भी सम्मिलित हैं। बाबुल में यह ईश्‍वरीय हस्तक्षेप प्रसिद्ध प्राचीन स्थानान्तरण का कारण बना जिसके फलस्वरूप आर्य जातियाँ केन्द्रीय एशिया के मार्ग से होकर भारत और यूरोप में आयीं। आधुनिक विज्ञान वर्तमान समय की जातियों और भाषाओं की इन ऐतिहासिक उत्पत्तियों का समर्थन करता प्रतीत होता है। उदाहरण के लिए, पूर्वी भाषाओं के विद्वान, सर हेनरी रॉलिन्सन ने कहा: “यदि हम शास्त्रीय अभिलेख के सभी उल्लेखों से स्वतंत्र, मात्र भाषाई मार्ग के प्रतिच्छेदन द्वारा मार्गदर्शित होते तोभी हमें शिनार के मैदानों तक पहुँचना चाहिए, जो उस केंद्र-बिन्दु के रूप में है जहाँ से विभिन्‍न मार्ग निकले थे।” निर्विवाद रूप से, बाइबल ऐतिहासिक शुरूआत को प्रस्तुत करती है जो आपकी जाति और आपकी भाषा की रचना की ओर ले गयी, और इस प्रकार बाइबल आपकी सतत दिलचस्पी और ध्यान के योग्य है।

४२. (क) बाबुल में परमेश्‍वर के हस्तक्षेप के बाद कौन-सी मानवी घटनाएँ हुईं? (ख) क्यों अनेक लोग विश्‍वास करते हैं कि “सब मार्ग परमेश्‍वर की ओर ले जाते हैं”? (ग) क्या एक नीति-संहिता का होना परमेश्‍वर से सीधे प्रकटन का प्रमाण है?

४२ बाबुल के गुम्मट की घटना परमेश्‍वरीय इच्छा की एक और मानव अस्वीकृति थी, और परमेश्‍वर के हस्तक्षेप के फलस्वरूप मनुष्यों को पराजय मिली और बाद में भाषा-समूह पृथ्वी की छोर तक फैल गए। इसलिए, विश्‍वसनीय इतिहास बताता है: “नूह के पुत्रों के घराने ये ही हैं: और उनकी जातियों के अनुसार उनकी वंशावलियां ये ही हैं; और जलप्रलय के पश्‍चात्‌ पृथ्वी भर की जातियां इन्हीं में से होकर बंट गईं।” (उत्पत्ति १०:३२) मनुष्यजाति ने परमेश्‍वरीय सर्वसत्ता से विमुख होने के बाद स्वयं अपने राजत्व और याजक-पदों की स्थापना की, जिसके परिणामस्वरूप अनेक धर्म बने जिनके निर्धारित विश्‍वास, रीतियाँ, संस्कार और चिन्तन निःसंदेह बाबुल से लाये गये विचारों से प्रभावित थे। फिर भी, निःसन्देह सृष्टि किये गये हमारे पहले माता-पिता में परमेश्‍वर द्वारा दिये गये अंतःकरण ने समान नीति-संहिता बनाने में संसार के धर्मों को प्रभावित किया, जो बहुतों को यह विश्‍वास दिलाने का कारण बना कि “सभी मार्ग परमेश्‍वर की ओर ले जाते हैं।” बाइबल यह व्याख्या देते हुए इस पर प्रकाश डालती है: “फिर जब अन्यजाति लोग जिन के पास व्यवस्था नहीं, स्वभाव ही से व्यवस्था की बातों पर चलते हैं, तो व्यवस्था उन के पास न होने पर भी वे अपने लिये आप ही व्यवस्था हैं। वे व्यवस्था की बातें अपने अपने हृदयों में लिखी हुई दिखाते हैं और उन के विवेक भी गवाही देते हैं, और उन की चिन्ताएं परस्पर दोष लगाती, या उन्हें निर्दोष ठहराती हैं।” (रोमियों २:१४, १५) पर एक नीति-संहिता का होना परमेश्‍वरीय प्रकटन की प्राप्ति का प्रमाण नहीं है। निरीश्‍वरवादात्मक विचारधारा, साम्यवाद में कुछ धर्मों के समान नीति-संहिता है। हाँ, परमेश्‍वरीय प्रकटन में मात्र एक नीति-संहिता के अलावा और भी बहुत कुछ शामिल है, जैसा निम्नलिखित जानकारी दिखायेगी।

परमेश्‍वर से मनुष्यों के मेल–मिलाप की तैयारी

४३. कैसे परमेश्‍वर ने पूरे इतिहास में दिखाया है कि वह मनुष्यजाति को नहीं भूला है?

४३ फिर भी, हालाँकि मनुष्यजाति ने परमेश्‍वरीय इच्छा को त्याग दिया था, परमेश्‍वर ने अभी तक मनुष्यजाति को अस्तित्व में रखा है। इसलिए बाइबल हमें आश्‍वासन देती है: “उस ने बीते समयों में सब जातियों को अपने अपने मार्गों में चलने दिया। तौभी उस ने अपने आप को बे–गवाह न छोड़ा; किन्तु वह भलाई करता रहा, और आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर, तुम्हारे मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।”—प्रेरितों १४:१६, १७.

४४. (क) कैसे परमेश्‍वर ने अपने साथ मनुष्यजाति के मेल-मिलाप का उद्देश्‍य बनाया? (ख) छुटकारा देनेवाला ‘प्रतिज्ञा का वंश’ उत्पन्‍न करने के लिए परमेश्‍वर द्वारा इब्राहीम के वंशज क्यों चुने गये?

४४ परन्तु मनुष्यजाति के जानबूझकर निरंकुश होने की बात को मन में रखते हुए, हम पूछते हैं, कैसे वे इच्छापूर्वक परमेश्‍वर के साथ पुनः मेल–मिलाप की स्थिति में वापस लाये जाएंगे? परमेश्‍वर ने अपने उस साधन को बनाने के लिए जिसके द्वारा सभी जातियाँ लाभ प्राप्त कर सकतीं, मानव परिवार के एक छोटे समुदाय को लेने का प्रेमपूर्वक प्रबन्ध किया। सृष्टिकर्ता ने एक प्राचीन कुलपिता, इब्राहीम के वंशजों को प्रयोग करने के लिए चुना। अपने पापपूर्ण उत्तराधिकार के बावजूद इब्राहीम ने परमेश्‍वर की प्रकट इच्छा के प्रति अटल निष्ठा दिखायी। जब इब्राहीम ने अपने पुत्र इसहाक को बलिदान करने तक की अपनी इच्छा दिखायी, यदि वही परमेश्‍वर की इच्छा थी, “फिर यहोवा के दूत ने . . . स्वर्ग से इब्राहीम को पुकार के कहा, यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूं, कि तू ने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; इस कारण मैं निश्‍चय तुझे आशीष दूंगा; और निश्‍चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बाल के किनकों के समान अनगिनित करूंगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा: और पृथ्वी की सारी जातियां  अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।” (तिरछे टाइप हमारे।)—उत्पत्ति २२:१५-१८.

४५. (क) क्यों यहूदी बाक़ी मनुष्यजाति से अधिक अच्छे नहीं थे? (ख) ऐसी स्पष्टवादिता बाइबल के सम्बन्ध में क्या सुझाती है?

४५ फलस्वरूप, उत्पत्ति ३:१५ के छुटकारा देनेवाले ‘प्रतिज्ञा के वंश’ को इब्राहीम के वंशजों से उत्पन्‍न होना था और इस प्रकार वह पहचाना जा सकता था। फिर भी, इब्राहीम के वंशज—यहूदी—इसलिए नहीं चुने गये कि वे मनुष्यजाति की अन्य जातियों से अधिक अच्छे थे। परमेश्‍वर के साथ उनके जातीय मध्यस्थ, मूसा, ने यह कहते हुए इस का संकेत किया, जैसा व्यवस्थाविवरण ९:६ में अभिलिखित है: “इसलिए यह जान ले कि तेरा परमेश्‍वर यहोवा, जो तुझे वह अच्छा देश देता है कि तू उसका अधिकारी हो, उसे वह तेरे धर्म [“धार्मिकता,” NW] के कारण नहीं दे रहा है; क्योंकि तू तो एक हठीली जाति है।” (बोली में ऐसी स्पष्टवादिता तथ्यों के एक निष्पक्ष, भरोसे योग्य इतिहास का संकेत करती है!) परन्तु परमेश्‍वरीय साधन बनने के लिए यहूदी जाति को क्यों चुना गया?

४६. (क) उदाहरण देकर समझायें कि क्यों हमें परमेश्‍वर के चुनाव पर अप्रसन्‍न होने की ज़रूरत नहीं है। (ख) इस्राएल के साथ अस्थायी रूप से व्यवहार करने में परमेश्‍वर का उद्देश्‍य क्या था?

४६ क्योंकि वे इब्राहीम के विश्‍वासी पुत्र इसहाक और पोते याक़ूब के द्वारा इब्राहीम के वंशज थे। इसके अतिरिक्‍त, मनुष्यजाति के छुटकारा देनेवाले को मनुष्यजाति के इस संसार में एक मनुष्य होकर जन्म लेना था, एक अवतार लेकर नहीं, ईश–मानव होकर नही, पर एक शुद्ध, भौतिक मनुष्य होकर, इब्राहीम का जन्म–जात वंशज होकर आना था। चाहे किसी भी जाति को परमेश्‍वर ने वफ़ादार पुरखों के कारण भी चुना होता, दूसरी जातियाँ अपने को अलग छोड़ा हुआ समझकर नाराज़ हो सकती थीं। फिर भी, जो कोई परमेश्‍वर के चुनाव की धार्मिकता पर भरोसा रखता है वह वैसा बिलकुल महसूस नहीं करेगा। उदाहरण के तौर पर, जब दर्शकों की एक बड़ी भीड़ एक मंच नाटक में उपस्थित होती है, तो वह मंच पर अभिनय नहीं करने के कारण अपने को अलग छोड़ा हुआ महसूस नहीं करती है। उसी प्रकार जब उस परमेश्‍वरीय व्यक्‍ति ने मनुष्यजाति के एक छोटे हिस्से को परमेश्‍वर के सिद्धान्तों और व्यवहारों के बारे संसार को सिखलाने के लिए एक जीवित प्रदर्शन बनने के लिए चुन लिया, तब उसने बाक़ी मनुष्यजाति को उपेक्षित नहीं किया। इस्राएली इतिहास सारी मानवजाति को सिखाता है कि उस समय क्या होता है जब परमेश्‍वर के बुद्धियुक्‍त, धार्मिक नियमों का या तो पालन किया जाता है अथवा उनकी अवज्ञा की जाती है। इस प्रकार, मात्र इस्राएलियों के साथ अस्थायी रूप से व्यवहार करते समय, परमेश्‍वर बाद में सब जाति के लोगों को आशीष देने के अपने दीर्घकालीन उद्देश्‍य को पूरा कर रहा था।—उत्पत्ति २२:१८.

तब आपका भविष्य क्या है?

४७. (क) क्यों हमारी छानबीन को हमें बाइबल में भरोसा देना चाहिए? (ख) बाइबल आप से कैसे भविष्य की प्रतिज्ञा करती है और किस आश्‍वासन के साथ?

४७ हम ने जीवन, पाप, मृत्यु और धर्म की सही उत्पत्ति का पता लगा लिया है। हम ने देखा कि किस तरह बाइबल का भरोसे योग्य इतिहास आधुनिक विज्ञान द्वारा, हाँ, और तार्किक रूप से हिंदू परम्परा द्वारा अनुप्रमाणित है। हमने देखा कि किस तरह मानव परमेश्‍वरीय सत्य के मार्ग से हट गए, और फिर पाप एवं मृत्यु से सच्चे छुटकारे की महान प्रतिज्ञा की गयी। यह बाइबल भविष्य के बारे में क्या कहती है उस पर एक व्यक्‍ति को भरोसा दिलाता है। आप निश्‍चित हो सकते हैं कि परमेश्‍वर आपके लिए एक बहुत खुशहाल और समृद्ध भविष्य का प्रबन्ध कर रहा है। हमने सीखा कि मनुष्यजाति के लिए परमेश्‍वर का प्रारम्भिक उद्देश्‍य था कि हम मानव परिपूर्णता में एक पार्थिव परादीस में जीएँ। पवित्र शास्त्र इस पृथ्वी पर ही उस महिमायुक्‍त परादीस की पुनःस्थापना की ओर संकेत करता है। सच्चे बाइबल इतिहास का परमेश्‍वर कहता है, जैसे यशायाह ५५:११ में अभिलिखित है: “उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।”

४८. धर्मी कितने समय तक पृथ्वी में बसे रहेंगे, और कैसी परिस्थितियों में?

४८ इसलिए एक पुनःस्थापित पार्थिव परादीस में जीने की आपकी अपनी भावी आशाएं एवं प्रत्याशाएं पूरी हो सकती हैं। परमेश्‍वर ने आप के मनुष्यत्व को पाप और अपरिपूर्णता से शुद्ध करने का प्रबन्ध किया है, ताकि शरीर में मानव परिपूर्णता तक आप उन्‍नत हो सकें। भजन ३७:२९ में बाइबल कहती है: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” यशायाह ३३:२४ में भी हम पढ़ते हैं: “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं; और जो लोग उस में बसेंगे उनका अधर्म क्षमा किया जाएगा।”

४९. (क) वह परमेश्‍वर कौन है जो इन अद्‌र्भित वरदानों का प्रबन्ध कर रहा है? (ख) यहोवा किस प्रकार का परमेश्‍वर है?

४९ परन्तु वह परमेश्‍वर कौन है जिसका उद्देश्‍य है आपको ये वरदान देना जो कि मानवी दृष्टि से असम्भव हैं? जैसा हम पहले देख चुके हैं, उसका नाम यहोवा है। इसका अर्थ परमेश्‍वर के अद्‌र्भित व्यक्‍तित्व के अनुरूप है। यहोवा का अर्थ है “वह अस्तित्व में लाता है,” जिसका अर्थ हुआ कि परमेश्‍वर (अपनी प्रतिज्ञाओं या घोषित उद्देश्‍यों का) पूरा करनेवाला है। केवल सच्चा और जीवित परमेश्‍वर ही उचित रीति से और प्रामाणिक रूप से ऐसा नाम रख सकता है। यहोवा के बारे में, बाइबल कहती है: “निश्‍चय जानो, कि यहोवा ही परमेश्‍वर है! उसी ने हम को बनाया, और हम उसी के हैं; हम उसकी प्रजा, और उसकी चराई की भेड़ें हैं। क्योंकि यहोवा भला है, उसकी करुणा सदा के लिये, और उसकी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।”—भजन १००:३, ५.

५०. यहोवा क्यों एक पक्षपाती परमेश्‍वर नहीं है?

५० क्योंकि यहोवा अच्छा है और उसमें प्रेममय दयालुता है उसने आप के लिए और आप के परिवार के लिए ऐसे महिमायुक्‍त भविष्य को सम्भव बनाया है। जैसा एक विचारशील व्यक्‍ति ने एक बार कहा: “अब मुझे निश्‍चय हुआ, कि परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म [“धार्मिकता,” NW] के काम करता है, वह उसे भाता है।”—प्रेरितों १०:३४, ३५.

५१. इन महत्त्वपूर्ण विषयों पर अन्य प्रश्‍नों का उत्तर आप कैसे पा सकते हैं?

५१ परन्तु कब आप इन अच्छी प्रतिज्ञाओं का आनन्द उठा सकेंगे? कैसे परादीस पूरी पृथ्वी में पुनःस्थापित किया जायेगा? जब यह होगा तब क्या आप जीवित होंगे? इन का उत्तर जानने के लिए हम आपको व्यक्‍तिगत जाँच करने और पवित्र बाइबल का अध्ययन करने के लिए उत्साहित करते हैं। साथ ही कृपया अपने क्षेत्र में यहोवा के साक्षियों से सम्पर्क स्थापित करें, या प्रकाशकों को लिखें। आपकी पूर्ण सन्तुष्टि के लिए इन अत्यावश्‍यक बातों की मुफ़्त चर्चा का प्रबन्ध किया जा सकता है।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज २४ पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

भाषाओं की गड़बड़ी के कारण प्रवसन हुआ

बाबुल

अफ्रीका

भारत

[पेज ४ पर तसवीर]

पहला मनुष्य मिट्टी से रचा गया

[पेज ६ पर तसवीर]

पहली स्त्री मनुष्य की पसुली से रची गयी थी

[पेज ९ पर तसवीर]

अनन्त मानव जीवन अंततः मोक्ष को अनावश्‍यक बना देता है

[पेज १० पर तसवीर]

चयन की स्वतंत्रता: परमेश्‍वर की आज्ञा मानें या नहीं मानें?

[पेज १३ पर तसवीर]

अपरिपूर्ण अस्तित्व

[पेज १४ पर तसवीर]

सर्प का सिर कुचलने के लिए प्रतिज्ञा का वंश

[पेज २० पर तसवीर]

संकर दानवों को पौराणिक ख्याति मिलती है

[पेज २९ पर पूरे पेज पर तसवीर]