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ज़िन्दगी में इससे ज़्यादा और भी कुछ है!

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ज़िन्दगी में इससे ज़्यादा और भी कुछ है!

१. क्यों बहुत सारे लोग इतना कम आनन्द जीवन में पाते हैं? (सभोपदेशक १:१४, १५; २:१७, १८)

समृद्धि, शान्ति, एक अच्छा जीवन है! ये चीज़ें कितनी चाहने योग्य हैं। लेकिन किस रीति से आप  अपना दिन बिताते हैं? लोग जो अपने परिवारों को चलाने के लिये ख़र्च देते हैं, अक्सर उन कामों को करते हैं जिसका वे आनन्द नहीं उठाते हैं, और काफ़ी लोग बेकारी के भय का सामना करते हैं। बहुत सी गृहपत्नियों के लिये, भारी परिश्रम के लम्बे दिन होते हैं, दिन-ब-दिन बिना किसी राहत और बिना बड़ी संतुष्टि के। युवा लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या इसी प्रकार के जीवन की प्रत्याशा लेकर बड़ी हो रही है। उन थोड़े से लोगों के लिये भी जो महसूस करते हैं कि ज़िन्दगी ने उनके साथ और भी दया के साथ व्यवहार किया है, भविष्य अनिश्‍चितता से छुपा हुआ है।

२. मानवजाति का भविष्य कैसा नज़र आता है? (यशायाह ६०:२)

वास्तव में, क्या जीवन में यही सब कुछ है? संसार में जहाँ भी आप देखें, यह रीति बुरी तरह पीड़ा में नज़र आती है। इसमें उर्जा की कमी और अनियंत्रित मुद्रास्फीति खाद्य पदार्थ में कमी और वातावरण का दूषित होना, क्रान्ति, राष्ट्रों के बीच में अमित्रता का सम्बन्ध और बैरी प्रॉपागान्डा, वास्तविक युद्ध, न्यूक्लियर हथियार को अत्याधिक मात्रा में जमा करना, जातीय समस्यायें और मानवजाति के अधिकतर लोगों के बीच में असंतुष्टि की वृद्धि है। पृथ्वी का कोई भी भाग उन समस्याओं से ख़ाली नहीं है जो मानव जीवन और जीवित रहने के लिये ख़तरा लाते हैं!

३. क्यों हमें भविष्य के बारे में चिन्ता करनी चाहिए? (प्रकाशितवाक्य ३:१०)

कुछ लोग इस प्रकार की मनोवृत्ति रखने वाले नज़र आते हैं, ‘कौन फ़िक्र करता है जब तक कि मुझे कुछ नहीं होता?’ लेकिन कितना अदूरदर्शी ख़्याल है! अनिवार्य निष्कर्ष यह है कि बहुत जल्द ये समस्याएँ प्रत्येक व्यक्‍ति  के जीवन को प्रभावित करेगी ।

४, ५. (अ) कौन सी मनोवृत्ति मानवजाति में से अधिकतर लोग लेते नज़र आते हैं, और क्यों? (ब) क्यों बाइबल में उपाय हो सकता है? (२ तीमुथियुस ३:१६, १७; रोमियों १५:४; १ कुरिन्थियों १०:११)

मानव नेताओं ने सम्भव उपायों के प्रस्ताव रखे हैं—आर्थिक, वैज्ञानिक और राजनीतिक क्षेत्रों में एक अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर। परन्तु क्या ये सब ख़ाली और असंतोषजनक प्रमाणित नहीं हुए? छुटकारे के लिये अधिकतर प्रस्तावित योजनाएँ ‘आरम्भ ही नहीं हुईं।’ संसार के नेताओं में कोई भी एक वास्तविक दूरी युक्‍त स्थायी उपाय प्रस्तुत नहीं कर सकता है। जिसके कारण, अधिकांश मानवजाति जीवन में बिना किसी उद्देश्‍य के नज़र आती है; वे सामान्य मनोवृत्ति को ग्रहण करते हैं, “आओ, खाएं-पीएं, क्योंकि कल तो मर ही जाएंगे।”

ये अन्तिम उद्धृत किये गये शब्द बाइबल में १ कुरिन्थियों १५:३२ में पाये जाते हैं, परन्तु एक प्रसंग में वह एक निश्‍चित दृष्टिकोण को प्रोत्साहन देते हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि बाइबल मानवजाति की समस्याओं का उपाय रखती है? अवश्‍य, बहुत से लोग हैं, जो बाइबल का तिरस्कार करते हैं। परन्तु, संसार के मामलों की संकटपूर्ण स्थिति को दृष्टि में रखते हुए, शायद अभी समय है कि बाइबल को एक और नज़र से देखें। क्योंकि, यह एक बहुत पुरानी पुस्तक है, इसके कुछ भाग ३,४०० से अधिक वर्ष पहले लिखे गये थे। यह मानवजाति के सभी जातियों का आदर प्राप्त कर चुकी है। यह आज की जीवित भाषाओं की अधिकतर संख्याओं में अनुवाद की गयी है और इसका वितरण मानव इतिहास में किसी भी और प्रकाशन से बहुत ज़्यादा बढ़ गया है। खैर, तब, क्या यह हमें बताती है कि ज़िन्दगी में इससे ज़्यादा और भी कुछ है?

जीवन की समस्याओं का समाधान पाना

६. बाइबल मसीही जगत को किस दृष्टिकोण से देखती है? (याकूब १:२७; ५:३-५)

बाइबल के कुछ आलोचकों ने मसीही जगत का ग़रीबों को शोषण करने और क्रूसेड्‌स धर्म-न्यायालय और बीसवीं शताब्दी के युद्धों द्वारा निर्दोष लोगों के रक्‍त बहाये जाने के अभिलेख पर ध्यान आकर्षित किया है। ‘यदि इसी तरह बाइबल लोगों को ऐसे काम करने का कारण बनती है, हमें इससे कुछ भी नहीं चाहिए,’ वे कहते हैं। परन्तु सत्य यह है कि इस प्रकार के खून के दोषी लोगों ने बाइबल को एक बहाना बना के ग़ैरमसीही कामों को करने के लिये व्यवहार किया। बाइबल ख़ुद उनके कामों का खंडन करती है, और उन्हें प्रकट करती है कि वे नकली मसीही हैं। बाइबल एक सच्चा नैतिक जीवन जीने का समर्थन करती है।

७, ८. (अ) कौन से प्रश्‍नों का उत्तर बाइबल दे सकती है? (मत्ती ७:७)

कुछ आलोचक यह दावा करते हैं कि बाइबल अवैज्ञानिक और अप्रचलित है और यह कल्पित कथाओं की एक किताब है। परन्तु क्या यह ऐसा ही है? आज हमें उन परमावश्‍यक प्रश्‍नों के निश्‍चयतापूर्ण उत्तरों की आवश्‍यकता है जो हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं, जैसे कि: मनुष्य कहाँ से आया? वर्तमान परिस्थितियों का क्या अर्थ है? क्या पृथ्वी पर से मानव जीवन नाश हो जाएगा? मानवजाति के लिये भविष्य में क्या रखा है?

बाइबल इन और अन्य प्रश्‍नों का उत्तर देती है जिसे लोग अक्सर पूछते हैं। कल्पित कथाओं को व्यवहार करने से दूर, बाइबल वास्तविकताओं के साथ व्यवहार करती है। तथ्य यह है, कि इसने संसार के हरेक भाग के लोगों को अपने जीवन को इस रीति से व्यवहार करने के लिये प्रदर्शन किया है जो उन्हें वास्तविक संतुष्टि देती है। जब आप बाइबल को जाँचते हैं, आप पायेंगे कि यह आपके  प्रश्‍नों का उत्तर देती है, आपके जीवन में वास्तविक ख़ुशी प्राप्त करने के लिये आपको  व्यवहारिक सहायता देती है। यह आपको अपना जीवन अर्थपूर्ण बनाने में सहायता करेगी।

विश्‍व-मंडल अस्तित्व में कैसे आया

९, १०. (अ) बाइबल के अनुसार विश्‍व का उद्‌गम क्या है? (यशायाह ४५:१२, १८) (ब) निर्माण के विषय मे विश्‍व का साक्ष्य क्या है? (इब्रा. ३:४)

यदि हम पता लगाना चाहते हैं कि जीवन क्या है, एक आधारभूत प्रश्‍न है जिसका उत्तर दिया जाना जरूरी है, वह है: जीवन का मूल क्या है? दूसरे शब्दों में, हम कहाँ से आये हैं? क्या हमारे जीवित रहने का कोई उद्देश्‍य है? बाइबल कहती है कि “परमेश्‍वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।” (उत्पत्ति १:१) परन्तु आधुनिक दिनों के विचारकर्ता पूछते हैं: क्या वास्तव में एक सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर—एक सृष्टिकर्ता है? क्या यह सच नहीं कि बहुत से लोग विश्‍वास करते हैं कि विश्‍व-मंडल विकासवाद का एक परिणाम है?

१० क्या आप कभी एक प्लैनेटेरियम में गये हैं? यदि गये हैं, तो इसमें कोई शक नहीं कि आपने उन पेचीदे यंत्र रचना पर जो आकाश के वास्तविक प्रतिरूप को एक घूमे हुए गुम्बद में परिवर्तित करने के लिये बनाये गये हैं, और साथ ही साथ हमारे सौर्य मंडल के नमूने की सही गति पर आश्‍चर्य किया होगा। आपने सोचा होगा, कि मनुष्य के फोटो उतारने की क्रिया और यंत्रकला के कौशल का क्या ही सुन्दर परिणाम है! लेकिन थोड़ी देर के लिये सोचिये। यदि विश्‍व के इस प्रतिरूप को बनाने के लिये गुणी मानवों की ज़रूरत हुई, निश्‍चय ही इस अतिविशाल विश्‍व-मंडल को बनाने के लिये एक और भी अधिक गुणी बुद्धि की ज़रूरत हुई होगी।

११. कौन सी चीज़ को स्वीकार करने के लिये शिक्षित सांसारिक चिंतक विवश है? (रोमियों १:२०-२३)

११ यह उन्‍नीसवीं शताब्दी में जाकर चार्ल्स डार्विन ने सिद्धान्त बनाया कि विश्‍व विकासवाद का एक परिणाम है। परन्तु क्या आप, भी, सोचते हैं कि इन सभी चीज़ों को किसी ने नहीं बनाया? क्या आप सोचते हैं कि जीवन अचानक आ गया? बहुत से बुद्धिमान लोग पाते हैं कि विकासवाद का सिद्धान्त पूर्ण नहीं है। उदाहरण के लिये, इतिहासकार अर्नल्ड टॉयन्‌बी ने कहा:

“मैं नहीं सोचता हूँ कि डार्विन के विकासवाद के सिद्धान्त ने एक इसकी जगह किसी और रास्ते का निश्‍चित लेख दिया है जिसके द्वारा विश्‍व-मंडल अस्तित्व में लाया गया होगा।”⁠

हाँ, डार्विन ने भी जीवन के स्रोत के बारे में चर्चा करते समय, मान लिया:

“परमेश्‍वर के अस्तित्व पर विश्‍वास करने का अन्य स्रोत, जो तर्कों से सम्बन्धित है और भाव से नहीं, मुझे प्रभावित करता है। . . . यह इस बहुत बड़े और अद्‌भुत विश्‍व-मंडल, साथ ही साथ पीछे की ओर देखने और दूर तक भविष्यकाल तक देखने की योग्यता के साथ मनुष्य के, अचानक या आवश्‍यकता के परिणाम से उत्पन्‍न होने का अनुमान करने में अत्यन्त कठिनाई और असम्भव पाने के नतीजे के द्वारा उत्पन्‍न होता है। इस रीति से ध्यान करते समय, मैं अपने आपको एक प्रथम कारण का विचार करने में विवश पाता हूँ।”⁠

१२. कौन सी चीज़ हमें नम्रतापूर्वक स्वीकार करनी चाहिए, और क्यों? (प्रेरितों के काम १४:१५-१७)

१२ हाँ, स्पष्ट तर्क हमें बताता है कि एक महान प्रथम कारण, एक सृष्टिकर्ता होना चाहिए—परमेश्‍वर! और जब हम विचार करते हैं कि मनुष्य के सबसे अधिक दूर दर्शक यन्त्रों ने उसके अद्‌भुत विश्‍वमंडल की गहराई को भली-भाँति परीक्षा करना केवल आरम्भ किया है, हमें नम्रतापूर्वक स्वीकार करना चाहिए कि मनुष्य की बुद्धि और योग्यताएँ परमेश्‍वर की श्रेष्ठ बुद्धि और सामर्थ्य के सामने अत्यधिक छोटे हो जाते हैं। जैसा कि हम देखेंगे कि यदि हम एक ख़ुशहाल और अर्थपूर्ण जीवन का आनन्द उठाना चाहते हैं तो परमेश्‍वर को इस सम्बन्ध से अलग नहीं किया जा सकता है। विश्‍व-मंडल साथ ही हमारी पृथ्वी की सृष्टि करने में उसका अवश्‍य कोई उद्देश्‍य होगा। जैसे-जैसे हम उसके महान उद्देश्‍यों के बारे में और सीखते हैं, हम यह पाने की आशा कर सकते हैं कि ज़िन्दगी में इससे ज़्यादा और भी कुछ है!

किस तरह पृथ्वी पर जीवन आरम्भ हुआ

१३. क्यों परमेश्‍वर की सृष्टि में पृथ्वी अद्‌भुत है? (भजन संहिता १०४:२४)

१३ आइये हम विश्‍व-मंडल के विस्तार में इस छोटे कण पर अब अपना ध्यान दें—स्वयं पृथ्वी पर। इस पृथ्वी की एक ख़ास सुन्दरता है। यह रंगों से भरी हुई है, और जीवित वस्तुओं की विभिन्‍नताओं से परिपूर्ण है। इसके ऊपर जीवन  है। अन्तरिक्ष यात्रियों में से एक ने जिस ने चन्द्रमा की यात्रा की इसका इन शब्दों में वर्णन किया:

“सारे विश्‍व-मंडल में, जहाँ कहीं भी हमने देखा, रंग का थोड़ा अंश केवल पृथ्वी पर ही था। वहाँ पर हम सागरों के चमकदार गहरे नीले रंग, ज़मीन की पीली ख़ाकी और भूरे रंग, और बादलों के सफ़ेद रंगों को देख सकते हैं। . . . यह पूरे आकाश में देखने की सबसे बेहतरीन चीज़ थी। नीचे यहाँ के लोग यह नहीं जानते कि उनके पास क्या है।”⁠

इसमें कोई शक नहीं कि यह पृथ्वी इस विस्तृत विश्‍व-मंडल में एक मणि के जैसे अलग नज़र आती है। यह वास्तव में जीवन से भरी हुई है। और निश्‍चय ही इन सभी जीवनों का एक उद्देश्‍य होना चाहिए! आइये हम देखें कि क्या हम पता लगा सकते हैं कि यह उद्देश्‍य क्या है।

१४. जीवन कहाँ से आया, और कैसे? (भजन संहिता १०४:३०, ३१)

१४ यह पता लगाना बहुत मुश्‍किल नहीं है कि जीवन कहाँ से आया। बाइबल के एक लेखक ने ३,००० वर्ष पहले उस स्रोत की तरफ़ ध्यान आकर्षित कराया जब उसने कहा:

“हे परमेश्‍वर तेरी करुणा कैसी अनमोल है! . . . क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास है; तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएंगे।”—भजन संहिता ३६:७, ९.

बाइबल के कुछ ढीठ आलोचकों को कबूल करना पड़ा कि परमेश्‍वर जीवन का स्रोत है। विकासवाद के माननेवाले डार्विन ने भी स्वीकार किया कि आरम्भ में जीवन “सृष्टिकर्ता के द्वारा कुछ रूपों में या एक रूप में निश्‍वासित किया गया होगा।”⁠ परन्तु यदि परमेश्‍वर “कुछ रूपों में” जीवन निश्‍वासित कर सकता था, क्यों नहीं वह ठीक उसी रीति से, पारी-पारी से सैकड़ों “जातियों” में इसे निश्‍वासित कर सकता है? बाइबल कहती है कि उसने ठीक वैसा ही किया! उसने प्रत्येक जीवित वस्तुओं की “जातिजाति के अनुसार” सृष्ट की। (उत्पत्ति १:१२, २१, २४, २५) परमेश्‍वर द्वारा पहले मनुष्य की सृष्टि का इन शब्दों में वर्णन किया गया है:

“और यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्‍वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया।”—उत्पत्ति २:७.

बाइबल के अनुसार, इसी रीति से मानव जीवन यहाँ आया, केवल ६,००० वर्षों पहले—परमेश्‍वर द्वारा प्रत्यक्षतः सृष्टि से। उस तथ्य को जानना हमारे लिये परमावश्‍यक है ताकि हम मूल्यांकन करें कि ज़िन्दगी में इससे ज़्यादा और भी कुछ है।

१५. क्या जीवन अचानक आया होगा? (भजन संहिता १००:३)

१५ बाइबल के सीधे रूप की सृष्टि के लेख के विरोध में, विकासवादियों के कुछ वर्णन कल्पना मात्र हैं। उदाहरण के लिये, एक विकासवादी वैज्ञानिक इस प्रकार लिखता है:

“किसी समय में,  बहुत दिनों पहले, शायद  ढाई अरब वर्ष पहले, मृत्युकारक सूर्य के नीचे, अमोनिया संयुक्‍त पदार्थ के एक सागर में जो ज़हरीले वातावरण से भरा था, जीवित पदार्थों के रसायन के परमाणुओं के तरल पदार्थ के बीच में, एक नाभिक अम्ल का अणु अचानक  आ गया जो किसी तरह  से अपने समान जीवन को अस्तित्व में ला सकता था—और उसके बाद और सभों को आना था।” (तिरछे अक्षर भरे गये हैं)

क्या वह आपको निश्‍चयता देती है? विकासवादी लकॉम्ट हू नुए ने उचित परिस्थितियों में पृथ्वी जितने बड़े रसायनों के एक सागर में एक प्रोटीन अणु के अपने आपको स्वयं उत्पन्‍न करने की सम्भावना की गणना की। उसने कहा कि यह १०२४३ (अर्थात्‌ उस अंक के पीछे २४३ शून्य होंगे) अरबों वर्ष में एक बार  हो सकता है।⁠ किन्तु, एक जीवित कोशिका, एक नहीं, परन्तु सैकड़ों प्रोटीन अणुओं से, साथ ही साथ बहुत से अन्य मिश्रित द्रव्यों से बनी है! निश्‍चय ही जीवन अचानक नहीं आ गया!

१६. क्यों विकासवाद को “कल्पित कथा” कहा जा सकता है? (१ तीमुथियुस १:३, ४)

१६ विकासवाद के सिद्धान्त में बहुत सी बातें हैं जो तथ्य के विरोध में हैं! उदाहरण के लिये, सभी जीवित वस्तुओं, पौधों, पशुओं, मानव के लिये एक न बदलने वाला आनुवंशिक क़ानून है, कि प्रत्येक केवल अपनी जाति के अनुसार सन्तान उत्पन्‍न कर सकता है। उस जाति के मध्य  बदलाहट होती है, जैसा कि बहुत प्रकार के कुत्तों में देखा जा सकता है। परन्तु कुत्ता जाति  केवल कुत्तों को पैदा करता है। यह बिल्ली या अन्य जातियों के साथ मिल कर नयी जाति उत्पन्‍न नहीं कर सकता है। विकासवादियों की और भी निराशा के लिये, चट्टानों पर गड़े हुए जीवाश्‍म जो बचे हैं भविष्यवाणी की गयी जातियों के बीच “खोयी हुई कड़ी” को प्रकट करने में असफल हो गये हैं। साथ ही साथ, “परिवर्तनकरण” या कोशिका में बदलाहट, लगभग हमेशा नुक़सानदेह रहा है—जो विकासवाद दावा करता है उसके ठीक विपरीत—मानवजाति में केवल मानसिक कमी को या अन्य अपूर्ण मानवों को पैदा करता है। यह कोई आश्‍चर्य करने की बात नहीं कि कुछ नामी वैज्ञानिक अब विकासवाद को “कल्पित कथा”⁠ “कुशलता से अनुमान”⁠ और “विज्ञान के नाम पर स्वाँग रचाने वाली सबसे बड़ी परी कहानी,”⁠ जैसे शब्दों में वर्णन करते हैं।

१७. किन बातों में मनुष्य पशुओं से भी अद्‌भुत रीति से बनाया गया है? (उत्पत्ति १:२७, २८)

१७ परन्तु स्वयं मनुष्य कोई “कल्पित कथा” नहीं है। वह जीवित है। उसका “परमेश्‍वर . . . के . . . स्वरूप” में एक बुद्धिमान, नैतिक जीवधारी हो के अस्तित्व में होना और विवेक द्वारा नियंत्रण किया जाना, हर निम्न रूपों के प्राणियों से उसे पूर्ण रूप से अलग करता है। सो केवल जानवरों के समान जीने के अलावा ज़िन्दगी में इससे ज़्यादा और भी कुछ होना चाहिए। एक बहुत बड़ी खाड़ी मनुष्यों को जानवरों से अलग करती है। कौन सा ऐसा जानवर है जो अपने हर एक बच्चे को बीस वर्ष तक देखभाल करने और प्रशिक्षण देने की चिन्ता करता है? यह केवल मनुष्य है जो प्रेम, दया, पूर्वदृष्टि, आविष्कार करने की शक्‍ति और सुन्दरता, कला और संगीत के प्रति मूल्यांकन जैसे अद्‌भुत गुणों का व्यवहार कर सकता है। इतनी अत्यधिक कृतज्ञता में वरदान प्राप्त करने के कारण क्या सभी मानवों को जो जीवन से प्रेम करते हैं प्राचीन राजा दाऊद की अभिव्यक्‍ति में मिलकर यह नहीं कहना चाहिए: “हे यहोवा, . . . मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्‌भुत रीति से रचा गया हूं”?—भजन संहिता १३९:४, १४.

“विकासवाद” ने ज़िन्दगियों का क्या किया है

१८, १९. किस रीति से विकासवाद ने (अ) नैतिक आचरण (भजन संहिता १०:३, ४) (ब) शासकों की मनोवृत्ति को (१ यूहन्‍ना ३:१५), प्रभावित किया?

१८ क्यों विकासवाद आज बहुत से लोगों द्वारा तुरन्त स्वीकार किया जाता है? एक कारण है कि एक व्यक्‍ति के लिये यह लोकप्रिय और शौक हो गया है कि इसके साथ चलें। साथ ही साथ, इसने स्वतंत्र या अनैतिक व्यक्‍तियों के लिये एक बच निकलने का रास्ता दिया है जो सृष्टिकर्ता या उसके नैतिक क़ानूनों के प्रति कोई उत्तरदायित्व न महसूस करते हुए ‘जैसा वे चाहते हैं वैसा करने’ की इच्छा रखते हैं। आउटलाइन ऑफ हिस्ट्री  में एच. जी. वेल्स वर्णन करते हैं कि किस रीति से विकासवाद के सिद्धान्त का विस्तार हुआ, और कहते हैं: “यह कोई रचनात्मक कार्य नहीं करता है . . . ताकि पुराने नैतिक स्तरों को हटा सके। एक वास्तविक नैतिक पतन घटित हुआ है।”⁠१० यह जीवन को जीने योग्य बनाने में कुछ भी योगदान नहीं कर रहा था।

१९ इतिहासकार वेल्स विकासवाद की शिक्षा के एक और नतीजे के बारे में निम्न रूप से कहता है: “प्रचलित लोग . . . विश्‍वास करते थे कि वे जीवन-संघर्ष के कारण प्रबल हुए, जिसमें मज़बूत और चालाक लोग कमज़ोर और सहज विश्‍वास करने वाले लोगों पर विजय प्राप्त कर लेते थे। . . . अतः यह उन्हें सही नज़र आया कि मानवझुण्ड के बड़े कुत्तों को चाहिए कि वे दूसरों को दबायें और वश में करें।”⁠११ इस रीति से विकासवाद ने “मसीही जगत” को क्रूर युद्धों को लड़ने के लिये आत्म निर्दोषकरण दिया। पुस्तक इवोल्यूशन एण्ड क्रिस्ट्यन्स  ने बताया कि १९१४ के प्रथम विश्‍व-युद्ध की दुर्घटना और बाद में नाजीवाद की बुराई की अधिकता डार्विन की शिक्षा के कारण से हुई।⁠१२ इसी रीति से विकासवाद को साम्यवाद के उत्पन्‍न होने के अपने उत्तरदायित्व के भाग को स्वीकार करना होगा। कहा जाता है कि कार्ल मार्क्स ने जब डार्विन का ऑरिजन ऑफ स्पीशीज  पढ़ा तो बहुत ख़ुश हुआ, जिसे उसने परमेश्‍वर को “एक मृत्युकारक चोट” कर के वर्णन किया।⁠१३ उसने साथ ही साथ कहा:

“डार्विन की पुस्तक बहुत महत्त्वपूर्ण है और मेरे लिये इतिहास में जाति संघर्ष के लिए एक आधार के काम आती है।”⁠१४

आज के दिन तक, साम्यवादी राष्ट्र विश्‍व शासन के अपने उद्देश्‍य का पीछा क्रान्तिकारी शिक्षा के “योग्यतम का अतिजीवन” के आधार पर करते हैं। अन्य राष्ट्र अतिजीवन के लिये युद्ध में भाग लेते हैं और इसका नतीजा है इस न्यूक्लियर युग में अत्यधिक मात्रा में युद्ध-शस्त्रों में वृद्धि। सारी मानवजाति का जीवन संकट में है।

२०. किस रीति से विकासवाद पर विश्‍वास आपके अपने जीवन को प्रभावित कर सकता है? (कुलुस्सियों २:८)

२० यह किस रीति से आपके जीवन को प्रभावित करती है? यह व्यक्‍तिगत रीति से आपके लिये बहुत नुक़सानदेह हो सकती है यदि आप विकासवाद के सिद्धान्त के वश में हो जाएँ। यदि विकासवाद सत्य होता, तो जीवन उद्देश्‍यहीन और अर्थहीन बन जाता। यह अतिजीवित के लिए संघर्ष करने का केवल “दूसरों को नुक़सान पहुँचाते हुए आगे बढ़ने” का कारण होता, और केवल मृत्यु उसका अन्तिम परिणाम होती। “योग्यतम का अतिजीवन” पर विश्‍वास करने के कारण, विकासवाद के माननेवालों में अपने संगी मनुष्य को प्रेम करने, एक अच्छा नैतिक जीवन बिताने या क्रूर पशुओं के बजाय अलग ढंग से व्यवहार करने की कोई उत्प्रेरणा नहीं होती है। मानवजाति पर अपने प्रभाव में विकासवाद पूर्ण रूप से विपरीत है। यह जीवन के बारे में किसी भी प्रश्‍न का संतोषजनक उत्तर नहीं दे सकता। परन्तु बाइबल दे सकती है।

क्यों जीवन इतनी समस्याओं से भरा हुआ है?

२१, २२. (अ) मनुष्य की वर्तमान स्थिति की किससे तुलना की जा सकती है? (ब) कौन से “संकेत” को पालन करने में आदम असफल हो गया, और किस नतीजे के साथ? (उत्पत्ति २:१५-१७; ३:१७-१९)

२१ इस स्थिति का एक परिवार के साथ तुलना की जा सकती है जो एक सुन्दर राजमार्ग में यात्रा कर रहा है। यह एक महिमायुक्‍त परादीस से होकर जाता है। एक सुखद यात्रा के लिये सभी चीज़े ठीक हैं। किन्तु, वे एक चौड़ी सड़क देखते हैं जिसमें एक संकेत है: “ख़तरा—प्रवेश न करें।” उत्सुकता और स्वतंत्र भावना उन पर हावी हो जाती है। वे उस रास्ते में प्रवेश करते हैं और मुख्य मार्ग से दूर और दूर यात्रा करते जाते हैं। अन्त में, एक गहरा ढलांव है। वे नियंत्रण के बाहर यात्रा कर रहे हैं। यह उनके लिये असम्भव है कि मुख्य मार्ग पर फिर वापस लौट जाएँ। ब्रेक फेल हो गया। कहीं से भी रोका नहीं जा सकता है। वे ढलांव में तेज़ी और तेज़ी से फँसते जाते हैं। और अन्त में वे एक खड़ी चट्टान में गिर कर नाश हो जाते हैं।

२२ बाइबल कहती है कि मानवजाति के साथ यह ठीक ऐसा ही है। परमेश्‍वर ने प्रथम पुरुष के लिये अदन की बाटिका में एक “मार्ग संकेत” लगा दिया था: ‘यह एक फल तू न खाना।’ उस साधारण आज्ञा को मानने के द्वारा पुरुष और उसकी पत्नी को परमेश्‍वर के प्रति प्रेम प्रकट करना था। परन्तु वे वैसा करने से चूक गये। वे जानबूझ कर मुख्य मार्ग से निकल गये और उन्होंने पाप के रास्ते में प्रवेश किया जो परमेश्‍वर के न्याय-निर्णय के अधीन मृत्यु और विनाश की तरफ़ ले जाता है। रोमियों ५:१२ में हम पढ़ते हैं: “एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।” इस रीति से, हम अनाज्ञाकारी आदम की सन्तान होने के नाते, सभों को इस न चाहनेवाली सड़क पर यात्रा करना पड़ा है, जो उस सिद्धता से बहुत दूर है जिसका मानव परिवार परादीस में आनन्द उठाता। वह रास्ता हाल ही के वर्षों में कितना उबड़-खाबड़ और अप्रिय हो गया है! यह एक चौड़ा एक-तरफ़ा रास्ता है, और संसार के राजनीतिज्ञ या बुद्धिमान मनुष्यों में से किसी ने भी मानव परिवार को वापस लौटने का रास्ता नहीं बताया है। इस पर रहनेवाले प्रत्येक व्यक्‍ति के लिये, उस सड़क का अन्त मृत्यु है। और संसार की पूरी मानवजाति का विनाश एक निश्‍चित घटना हो गयी है।

२३, २४. (अ) यूहन्‍ना १४:६ का क्या अर्थ है, और यीशु के लिये यह क्यों सत्य है? (ब) उस मुख्य मार्ग में लौट जाने पर, आपको क्या लाभ होगा? (यूहन्‍ना ३:१६)

२३ परन्तु देखो! बगल वाली सड़क में एक प्रकाश की किरण चमकती है, एक सकरा रास्ता जो चौड़े सड़क से वापस मुख्य मार्ग की ओर ले जाता है। पहली नज़र में यह बहुत ज़्यादा सकरा नज़र आता है। इसमें मुड़ना कठिन होगा। लोगों का एक बड़ा परिवार जो चौड़े सड़क में बिना सोचे समझे यात्रा कर रहा है सकरे रास्ते की अवहेलना करने का चुनाव करता है। वे इसके बजाय भीड़ के साथ जाना पसन्द करते हैं। लोगों की बहुत ज़्यादा संख्या चौड़े रास्ते में मिलने वाली सुविधा और कुछ ही समय के रोमांच के लिये रहती है। वे आगे ख़तरे की चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। परन्तु कुछ जागरुक लोग इस सकरे रास्ते में मुड़ते हैं। यह उन्हें उनके सामने कुछ तकलीफ़े लाता है, और उन्हें हमेशा जागरुक रहना होता है, परन्तु, समय पर, यह यात्रा करने के लिये आनन्ददायक हो जाता है। और अन्त में यह फिर से स्थापित अधिकता की एक पूर्व अवस्था में लाये हुए परादीस में ले जाती है। यह उनके लिये कितना आनन्ददायक है कि उनकी आँखें उस आनन्ददायक, शान्तिपूर्ण परादीस का आनंद उठाएँ!

२४ फिर, जैसा कि बाइबल प्रकट करती है, ठीक ऐसा ही मानव परिवार के साथ भी है। जबकि अधिकतर लोग अपनी स्वतंत्रता पर ज़ोर देते हैं, और भीड़ के साथ चौड़े सड़क में विनाश की तरफ़ यात्रा करते हैं, वापस लौटने का एक रास्ता खुला हुआ है। जब वह यहाँ इस पृथ्वी पर था, परमेश्‍वर के पुत्र यीशु ने, इस पर ध्यान आकर्षित कराया, यह कहते हुए: “मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं।” (यूहन्‍ना १४:६) क्योंकि यीशु ने वफ़ादारी से परमेश्‍वर की इच्छा इस पृथ्वी पर पूरी की, इतना कि मानव परिवार के लिये अपना जीवन भी बलिदान कर दिया, परमेश्‍वर ने उसे “जीवन का प्रधान कार्यकर्त्ता” नियुक्‍त किया। वह साथ ही साथ जगत में “सत्य पर गवाही” देने और परमेश्‍वर के उद्देश्‍यों को बताने आया। (प्रेरितों के काम ३:१५, NW; यूहन्‍ना १८:३७) वह ही केवल है जो मानव परिवार के सदस्यों को उस सुन्दर राजमार्ग में वापस जाने का रास्ता बता सकता है जो परमेश्‍वर के एक पार्थिव परादीस में एक सुखद जीवन का पूरी तरह आनंद उठाने की ओर अगुवाई करता है।

२५. क्यों परादीसिय पृथ्वी पर जीवन सबसे ज़्यादा चाहने योग्य है? (प्रकाशितवाक्य २१:३, ४)

२५ क्या आप महिमायुक्‍त बनायी गयी इस पृथ्वी पर, और सिद्ध स्वास्थ्य और आनन्द के साथ अनन्त जीवन की प्रत्याशा के साथ इस प्रकार के एक मुख्य मार्ग में यात्रा करना नहीं चाहेंगे? वास्तव में, उस प्रकार के जीवन में और भी बहुत कुछ है!

२६. यह कितना महत्त्वपूर्ण है कि आप वास्तव में सच्चाई सीखें? (यूहन्‍ना ८:३१, ३२)

२६ परमेश्‍वर के जीवन के प्रधान कार्यकर्त्ता पर विश्‍वास करने के द्वारा हम उस जीवन का “मार्ग” प्राप्त कर सकते हैं। जीवन बहुत ही फ़र्क होता है जब इसमें उद्देश्‍य होता है, और जब एक संतोषजनक, पारितोषिक जीवन की आशा होती है जो भविष्य में बहुत दूर तक आगे जाती है। और किस रीति से हम उस आशा की समझ प्राप्त कर सकते हैं? यीशु स्वयं इसका उत्तर देता है, अपने पिता को प्रार्थना करने में: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्‍ना १७:३) शास्त्र का यत्न से खोजबीन करने के द्वारा हम सच्चाई सीख सकते हैं; और प्रतिदिन इसे लागू करने के द्वारा, हम अभी से वास्तव  में जीवन बिताना आरम्भ कर सकते हैं!

संसार की अवस्थाएँ जो आपके जीवन को प्रभावित करती हैं

२७. किस स्थिति में हम अभी अपने को पाते हैं? (२ तीमुथियुस ३:१)

२७ यह स्पष्ट है, कि संसार की परिस्थितियाँ और भी खराब हो रही हैं। बड़े नगरों में, ग़रीबी और अपराध बढ़ते चले जा रहे हैं। जहाँ कहीं भी आप रहते हों, आप अपनी रोटी के लिये और ज़्यादा दाम दे रहे हैं, मांस का और ज़्यादा दे रहे हैं, और केवल जीने भर का दाम बढ़ता ही चला जा रहा है। बहुत सी जगहों में, आचार भ्रष्टता रास्तों ही में हो रही है। और बड़ी हिंसा और युद्ध भी लगता है कि किसी भी समय फूट पड़ेंगे। यह ऐसा है जैसे कि मानवजाति विनाश की सड़क पर तेज़ी से अपने आप को अन्तिम गिरावट के ओर ले जा रही है।

२८. इन सभी समस्याओं के पीछे कौन है, और उसका लक्ष्य क्या है? (२ कुरिन्थियों ४:४)

२८ इन सभों के पीछे कौन सा बल है? यह एक दुष्ट आत्मिक व्यक्‍ति है, “वह बड़ा अजगर अर्थात्‌ वही पुराना सांप, जो इब्‌लीस और शैतान कहलाता है, और सारे संसार का भरमानेवाला है।” वह राष्ट्रों के कूटनीति का प्रधान उत्तेजक है। किन्तु परमेश्‍वर का समय अब नज़दीक आ गया है कि शैतान के अधिकार को मसीह के स्वर्गीय शासन द्वारा मानवजाति पर एक अनुरूप, प्रेमपूर्ण शासन के द्वारा हटा दे। अब यही उसका समय है कि उन्हें उस राजमार्ग में वापस लाये जो जीवन से प्रेम करते हैं ताकि अनन्त जीवन और आनन्द का उपभोग कर सकें। किन्तु शैतान ख़ाली करने से इन्कार करता है। इसलिये, आज इस “पृथ्वी . . . पर हाय! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” (प्रकाशितवाक्य १२:९, १२) उसका लक्ष्य है कि मानवजाति को तेज़ी से विनाश में गिरा दे।

२९. इस समय के लिये परमेश्‍वर का उद्देश्‍य क्या है? (भजन संहिता ३७:९-११)

२९ इसके बारे में और कोई सवाल ही नहीं उठता! आज कहीं पर भी पृथ्वी पर देखिए, प्रमाण है कि “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है,” वह है शैतान। (१ यूहन्‍ना ५:१९) परन्तु परमेश्‍वर शैतान को उसकी बुरी इच्छाओं में सफल होने की अनुमति नहीं देगा! सत्य है, कि इस संसार के समाज का विनाश निश्‍चित है। परन्तु परमेश्‍वर का उद्देश्‍य है कि जीवनों को बचाये। बाइबल में लिखी गयी भविष्यद्वाणियों में, वह बताता है कि किस रीति से वह इसे करेगा।

किस रीति से बाइबल की भविष्यद्वाणी जीवनों को बचाने में मदद करती है

३०. क्यों आप निश्‍चित हो सकते हैं कि बाइबल की भविष्यद्वाणियाँ हमारे दिनों में पूरी होंगी? (२ पतरस १:१९-२१; दानिय्येल ९:२४-२७)

३० बहुत सी बाइबल की भविष्यद्वाणियों की अद्‌भुत पूर्ति हुई है। उदाहरण के लिये, सैकड़ों वर्ष पहले यीशु पृथ्वी पर आया, इन भविष्यद्वाणियों ने उसके प्रचार करने की सही तारीख़ बतायी थी—२९ से ३३ C.E.—साथ ही साथ उसके जीवन और मृत्यु के बारे में बहुत से विस्तार। ये सब चीज़ें पूरी हुईं। साथ ही साथ, ख़ुद यीशु ने कुछ अद्‌भुत भविष्यद्वाणियाँ कीं। उनमें से एक “रीति-रिवाज के अन्त” के बारे में थी। इसका यहूदी रीति पर पहली शताब्दी में एक स्मरणीय पूर्णता हुई।

३१, ३२. किस रीति से भविष्यद्वाणी ने ७० C.E. में जीवनों को बचाने में मदद की? (लूका २१:२०-२४)

३१मत्ती २४:३, १५-२२, NW के अनुसार यीशु ने भविष्य के बारे में कहा कि यरूशलेम “घृणित वस्तु” से घेरा जायेगा जो साम्राज्य रोम की सेना होगी। इस भविष्यद्वाणी में उसने कहा कि जब मसीही लोग इसे देखें तो उन्हें “पहाड़ों पर भाग” जाना चाहिए। चौंतीस वर्ष बाद, जब वे सेनाएँ वास्तव में आयीं, उन्होंने यीशु की भविष्यद्वाणी के बहुत से लक्षणों को पूरा किया, जैसा कि “मोर्चा बान्धकर . . . घेर लेंगे” और प्रवेश कर रहे थे कि “पवित्र स्थान” में भी खड़े हों, इतना दूर कि यरूशलेम के मन्दिर की पश्‍चिमी दीवार तक। (लूका १९:४३; मत्ती २४:१५) लेकिन किस रीति से मसीही लोग इस असम्भव लगने वाली स्थिति में शहर छोड़ सके?

३२ अचानक, और बिना किसी प्रकट कारण के, रोमी सेनाएँ लौट गयीं! यीशु की आज्ञा का पालन करते हुए, मसीही लोग अब अपने जीवन को बचाने के लिये यरदन नदी के पार पहाड़ों पर भाग सकते थे। बाद में, रोमी सेनाएँ जनरल टाईटस के नेतृत्व में लौटी, और ७० C.E. में यरूशलेम और इसके मन्दिर को मिट्टी में मिला दिया। इतिहासकार जोसीफस के अनुसार घेराबंदी, अकाल और तलवार ने ११,००,००० राष्ट्रवादी यहूदियों की जाने लीं, और ९७,००० लोगों को गुलामी में ले जाया गया। परन्तु बाइबल की भविष्यद्वाणी का पालन करने के द्वारा जो वास्तव में जीवन से प्रेम करते थे अपने जीवन को बचा सके!

३३. कौन सी स्थिति आज यहूदी रीति के अन्तिम दिनों के समानान्तर है? (लूका २१:२५, २६)

३३ यीशु पहली शताब्दी की पूर्ववाणी की गयी इन घटनाओं को संसार को हिला देने वाली घटनाओं के नमूना के तौर पर प्रयोग कर रहा था जो १९१४ C.E. के बाद की पीढ़ी पर घटित होना बाक़ी थीं। आज भी जीवनों को बचाया जाना ज़रूरी है! क्योंकि अभी हम शैतान के नियंत्रण के पूर्ण संसार की रीति के “रीति-रिवाज के अन्त” में पहुँच गये हैं। १९१४ से लेकर घटनाएँ कितने स्पष्ट रूप से वैसा होना प्रमाणित करते हैं! यीशु की भविष्यद्वाणी की अन्तिम पूर्णता में, उस वर्ष ने घमासान प्रथम विश्‍वयुद्ध में ‘जाति पर जाति ने चढ़ाई किया’ जिसने “पीड़ाओं का आरम्भ” देखा। जैसे भविष्यद्वाणी की गयी थी इसके बाद “बड़े बड़े भूईंडोल . . . अकाल और मरियां” हुईं। द्वितीय विश्‍व-युद्ध जो पहले से बहुत ज़्यादा भयँकर था, इसके बाद हुआ, और अभी “आचार भ्रष्टता का” (NW) बढ़ना पृथ्वी पर महामारी ला रहा है। (मत्ती २४:७-१३; लूका २१:१०, ११) राष्ट्र व्याकुल हैं। उनमें से किसी को इससे बाहर निकलने का रास्ता नहीं मालूम है।

३४. किस रीति से परमेश्‍वर जीवनों को बचाने के लिये कार्य करता है? (दानिय्येल २:४४)

३४ परन्तु परमेश्‍वर जानता है! पृथ्वी के स्वार्थ राज्यों या राष्ट्रों का न्याय करने के बारे में कहते हुए, परमेश्‍वर घोषणा करता है कि वह “एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा,” और वह “उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा।” (दानिय्येल २:४४) यह तब शान्तिमय अवस्था में जीवन दान करेगा उन पर जिन्होंने यीशु के राज्य शासन को स्वीकार किया है। उन सभी जीवन को चाहने वाले व्यक्‍तियों की सहायता करने के लिये, सच्चे मसीही आज यीशु की महान भविष्यद्वाणी के अन्य भाग की पूर्णता में एक जीवन बचाने के कार्य में भाग लेते हैं “और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।”—मत्ती २४:१४.

३५. (अ) कब और कैसे अन्त आयेगा? (ब) कैसे भविष्यद्वाणी का पालन करना आपको लाभ पहुँचाता है? (लूका २१:३४-३६)

३५ अवश्‍य, हम इस बात को जानने के लिये दिलचस्प हैं कि कब “अन्त आ जाएगा।” क्योंकि सचमुच में हमारा जीवन शामिल है! अय्यूब २४:१ में हम पढ़ते हैं: “लेखा लेने का दिन सर्वशक्‍तिमान के लिये गुप्त नहीं है, तो भी जो लोग उन को जानते हैं उन्हें उस तिथि का कोई संकेत नहीं है।” (दि न्यू इङ्‌गलिश बाइबल) परन्तु इसे बहुत नज़दीक होना चाहिए! क्योंकि यीशु उन व्यक्‍तियों के बारे में कहता है जिन्होंने “पीड़ाओं” को १९१४ C.E. में शुरू होते देखा था: “जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी।” (मत्ती २४:३४) इन “सब बातें” में आज के इस भ्रष्ट समाज का विनाश भी शामिल है, जैसा कि यीशु ने इसका वर्णन किया था: “उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा। और यदि वे दिन घटाए न जाते, तो कोई प्राणी न बचता; परन्तु चुने हुओं के कारण वे दिन घटाए जाएंगे।” (मत्ती २४:२१, २२) यदि “भारी क्लेश” के दिन घटाये न जाते, तो मानवजाति स्वयं पृथ्वी पर से नाश हो जाती! परन्तु, ख़ुशी की बात है, सभी लोग जो परमेश्‍वर से प्रेम करते हैं अपना जीवन बचा सकते हैं। “यहोवा अपने सब प्रेमियों की तो रक्षा करता, परन्तु सब दुष्टों को सत्यानाश करता है।” (भजन संहिता १४५:२०) यदि आप बाइबल की भविष्यद्वाणी का पालन करते हैं तो, आप, भी, बच सकते हैं और हमेशा जीवित रह सकते हैं।

अनन्त जीवन के लिये बचने का रास्ता

३६. किस रीति से १ यूहन्‍ना २:१५-१७ को आप अपने प्रतिदिन के जीवन में लागू करेंगे? (मरकुस १२:२८-३१)

३६ क्या आप बचने वालों में से होंगे? वह इस पर निर्भर करता है कि आप चौड़े मार्ग से लौट जायें जो विनाश की ओर तेज़ी से जाता है। यह रास्ते में के हरेक संकेतों के पालन करने पर निर्भर करता है जो जीवन की ओर ले जाता है। यदि आप वास्तव में जीना चाहते हैं, तो यह बहुत ज़्यादा कठिन नहीं है। इसका मतलब है परमेश्‍वर और पड़ोसियों से प्रेम करना। जैसा १ यूहन्‍ना ५:३ कहता है: “परमेश्‍वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें।” कुछ चीज़ें जो वह हमेशा चाहता है यूहन्‍ना के इस पत्र के पहले भाग में बतायी गयी हैं (२:१५-१७):

“तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है। क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात्‌ शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। और संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।”

सर्वदा जीवित रहने के लिये, “भारी क्लेश” के दरमियान से होकर पूर्व अवस्था में लाये हुए परादीस तक परमेश्‍वर की सुरक्षा और स्वीकृति प्राप्त करने के लिये, हमें उन सब चीज़ों से फिरना होगा जिससे परमेश्‍वर घृणा करता है —अनैतिकता, लोभ, बेईमानी, झूठ बोलना, चोरी और संसार के विद्रोहों से। ऐसा करने से हम अपने जीवन को अभी जीने योग्य बना सकते हैं।

३७. (अ) किस रीति से हम इस “संसार के नहीं” हो सकते हैं? (यूहन्‍ना १५:१७-१९) (ब) आप किस रीति से परमेश्‍वर के राज्य के प्रति सहारा दिखा सकते हैं? (मत्ती ६:३३)

३७ यीशु ने ख़ुद अपने चेलों के बारे में कहा: “जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।” (यूहन्‍ना १७:१६) इसे हम किस रीति से अपने जीवनों में लागू कर सकते हैं? इसका मतलब है कि हम अपने आपको संसार के उद्देश्‍यों और कार्यक्रमों से अलग करें जो वास्तव में अपने ईश्‍वर और शासक, “दुष्ट” जन शैतान के अधीन विनाश की ओर जा रहा है। हमारे दैनिक जीवनों में, हमें सांसारिक कार्यों में भाग लेने वाला नहीं होना चाहिए जो परमेश्‍वर के शासन के विरोध में है। जैसा मत्ती २४:३ और २५:३१ प्रकट करता है, “रीति-रिवाज के अन्त” का चिन्ह साथ ही साथ यीशु का स्वर्ग में राज्य शक्‍ति में “उपस्थिति” होने का चिन्ह है। इसलिए, वर्ष १९१४ से, यह भविष्यद्वाणी भी पूर्ण हुई है कि “जगत का राज्य हमारे प्रभु [परमेश्‍वर] का, और उसके मसीह का हो गया।” (प्रकाशितवाक्य ११:१५) अभी वह समय है कि उस राज्य का साथ दें! हमारा भविष्य परमेश्‍वर के राज्य पर निर्भर करता है। क्या हम, तब शुद्ध अन्तःकरण से हमारे समय के युद्धों, क्रान्ति, राजनीतिक आन्दोलनों या सांसारिक योजनाओं का साथ दे सकते हैं? वे निश्‍चय ही अपने उद्देश्‍यों में असफल होंगे। क्योंकि वे उस चीज़ को करने का दावा करते हैं जो केवल  परमेश्‍वर का राज्य कर सकता है। सारी रीति विनाश होने वाली है। सो क्यों इसमें थोड़ा सुधार, करने में भाग लिया जाए? इसके बजाय, आइये निश्‍चित उपाय का पूरे हृदय से साथ दें—परमेश्‍वर के राज्य को!

३८. आज हमें शासकों के प्रति कौन सी मनोवृत्ति रखनी चाहिए? (लूका २०:२५)

३८ क्या इसका मतलब यह है कि हम अराजकता फैलाने वाले बनें? इससे बहुत दूर ही रहना है! क्योंकि “परमेश्‍वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का कर्त्ता है।” (१ कुरिन्थियों १४:३३) जितने दिन तक उपस्थित सरकारें चलती रहती हैं, परमेश्‍वर हमसे आशा करता है कि हम उसके क़ानूनों को पालन करें और उनके शासकों का आदर करें। रोमियों १३:१ कहता है: “हर एक व्यक्‍ति प्रधान अधिकारियों के अधीन रहे।” इसका मतलब है “कैसर” (सरकार) को उसका अधिकार देना, कर देने और हरेक क़ानूनों का पालन करने के द्वारा, इस शर्त पर कि वे परमेश्‍वर के क़ानूनों के विरोध में न हों।—मरकुस १२:१७.

३९. कैसे आप पड़ोसी के प्रति प्रेम प्रकट कर सकते हैं? (१ कुरिन्थियों १३:४-७)

३९ परमेश्‍वर के प्रति प्रेम के साथ ही साथ, हमें अपने पड़ोसियों के प्रति प्रेम दिखाना ज़रूरी है। इसे हम और अच्छा कहाँ कर सकते हैं कि अपने परिवारों ही से शुरू करें! परन्तु इसे हम कैसे कर सकते हैं? बाइबल सरल भाव में कुलुस्सियों ३:१८-२१ में उत्तर देती है:

“हे पत्नियो, जैसा प्रभु में उचित है, वैसा ही अपने अपने पति के आधीन रहो। हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, और उन से कठोरता न करो। हे बालको, सब बातों में अपने अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्‍न होता है। हे बच्चेवालो, अपने बालकों को तंग न करो, न हो कि उन का साहस टूट जाए।”

एक संयुक्‍त परिवार बनाने का वास्तव में एक उत्तम आधार है! और न केवल परिवार में, सभी अन्य लोगों के साथ अपने सम्बन्ध में हम “करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता” के गुणों को बढ़ा सकते हैं। और सबसे प्रधान चीज़ क्या है? “इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो।”—कुलुस्सियों ३:१२, १४.

४०. यहोवा के गवाह किस प्रकार के लोग हैं? (यूहन्‍ना १३:३४, ३५)

४० आप पूछ सकते हैं, क्या पृथ्वी पर आज लोगों का कोई समूह है जो वास्तव में अपने जीवनों में परमेश्‍वर और पड़ोसी के प्रति प्रेम का व्यवहार करते हैं? इस प्रकार का एक दल है। यदि आप के पड़ोस में कोई किंगडम्‌ हॉल है, आपको केवल उतनी ही दूर तक उन्हें पाने के लिये देखना है। वे एक अन्तर्राष्ट्रीय समूह हैं, जिनकी संख्या लाखों में है। अधिकतर, वे साधारण लोग हैं, अपने पड़ोसियों से पृष्ठभूमि में कोई फ़र्क नहीं, और अक्सर वे वही काम-धन्धा करते हैं जो उनके समुदाय के दूसरे लोग करते हैं। परन्तु उनका पहला प्रेम उनके परमेश्‍वर के प्रति है। वे उसकी इच्छा को पृथ्वी पर पूरी होने की आस देखते हैं, और वे अपना जीवन उसी के अनुसार जीते हैं। अतः, वे बाइबल का अध्ययन करने में, इसके सिद्धान्तों को अपने प्रतिदिन के जीवन में लागू करने के लिये और इसके संदेश को अपने पड़ोसियों को कहने में उत्साही हैं। वे यहोवा के मसीही गवाह हैं। क्यों नहीं आप अपने समुदाय में उनके किंगडम्‌ हॉल में उनसे मिलें? आप पायेंगे कि न कोई संस्कार है, न चंदा लिया जाता है, न कोई कड़ी नियम-निष्ठता है। इसके बजाय, आप एक अति स्नेह दिखाने वाले लोगों को पायेंगे जो अभी जीवन से बहुत ज़्यादा शान्ति प्राप्त कर रहे हैं, और जो सिद्धता में एक परादीसीय पृथ्वी पर अनन्त जीवन की आस देख रहे हैं।

४१. किस रीति से गवाहों ने बड़ी समस्याओं का हल किया है? (प्रेरितों के काम १०:३४, ३५)

४१ क्या आप उन लोगों के साथ संगति करना नहीं चाहते हैं जिनके पास यह आशा है और इस आशा के अनुसार जीवन बिताते हैं? उनमें एक संसार व्याप्त एकता है जो कि बाइबल के सिद्धान्तों के अनुसार जीने के द्वारा लायी गयी है। अपनी मर्यादा में उन्होंने उन समस्याओं का हल किया है जो राष्ट्रों ने सदियों तक असफलतापूर्वक प्रयत्न किया जैसा कि युद्ध, जातियता, और राष्ट्रीयता। क्योंकि वे बाइबल के अनुसार जीते हैं, वे मौलिक रूप से हिंसा, अपराध, बेईमानी और अनैतिकता से सम्बन्धित समस्याओं से अपने मध्य स्वतंत्र हैं। वे समाज की बुराइयों से पीड़ित नहीं होते। चाहे उनमें से एक गम्भीर रूप से ग़लती करे, हालाँकि यह शायद कभी होता है, उसे प्रेमपूर्ण रीति से पूर्व अवस्था में लाया जाता है जब वह पश्‍चाताप करता है। यह जानते हुए कि परमेश्‍वर ने “एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियां सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं,” वे लोग प्रत्येक मानव व्यक्‍ति के प्रति अपने दृष्टिकोण को उसकी सामाजिक स्थिति, उसकी शिक्षा या उससे रहित होने, उसकी राष्ट्रीयता या चमड़े के रंग से प्रभावित नहीं होने देते हैं।—प्रेरितों के काम १७:२६.

क्यों ज़िन्दगी में इससे ज़्यादा और भी कुछ है!

४२. वे जो जीवन से प्रेम करते हैं उनके लिये कौन सा भविष्य इन्तज़ार करता है? (भजन संहिता ७२:१-८)

४२ एक महिमायुक्‍त भविष्य उनका इन्तज़ार करता है जो जीवन से प्रेम करते हैं और अभी अपना जीवन बचाने के लिये काम करते हैं। वह भविष्य किस प्रकार का होगा? यह उस नीरस जीवन के समान बिल्कुल नहीं होगा जिसका आज मानवजाति में से बहुत से लोग अनुभव करते हैं। “पहिली बातें”—इस वर्तमान रीति के दुःख, मृत्यु और पीड़ा “जाती रहीं” होंगी। अतः इसके बाद क्या आयेगा? परमेश्‍वर स्वयं घोषणा करता है: “देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूं।” (प्रकाशितवाक्य २१:४, ५) नये रीति-रिवाज में, स्वर्गीय राजा, यीशु मसीह, प्रेमपूर्ण रीति से एक “अनन्तकाल का पिता” हो के मानवजाति के सारे परिवार पर शासन करेगा। “उसकी प्रभुता सर्वदा बढ़ती रहेगी, और उसकी शान्ति का अन्त न होगा।” न्याय और धार्मिकता उस राज्य का सोता होगा। (यशायाह ९:६, ७) उन अवस्थाओं के अधीन जीवन कितना संतोषजनक और आनन्ददायक होगा! इसका उद्देश्‍य होगा, पृथ्वी पर अपने संगी मनुष्य के प्रति परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने में। यीशु हमें आश्‍वासन देता है कि वे जो कब्रों में हैं “उसका शब्द सुनकर” निकलेंगे ताकि उस परादीसीय पृथ्वी का आनन्द उठा सकें।—यूहन्‍ना ५:२८, २९.

४३. किस रीति से आप अपना जीवन बचा सकते हैं? (सपन्याह २:२, ३)

४३ यह वर्तमान “दुष्ट रीति-रिवाज” उस चौड़ी सड़क पर विनाश की ओर तीव्र गति से लगभग पहुँचने ही वाली है। लेकिन आपको इसके साथ जाने की ज़रूरत नहीं है। परमेश्‍वर के अपने लोगों के साथ संगति में—वे जो जीवन से प्रेम करते हैं—आप अपना जीवन बचा सकते हैं जब परमेश्‍वर पृथ्वी के खून के दोषी राष्ट्रों को नाश करने के लिये आयेगा:

“हे मेरे लोगो, आओ, अपनी अपनी कोठरी में प्रवेश करके किवाड़ों को बन्द करो; थोड़ी देर तक जब तक क्रोध शान्त न हो तब तक अपने को छिपा रखो। क्योंकि देखो, यहोवा पृथ्वी के निवासियों को अधर्म का दण्ड देने के लिये अपने स्थान से चला आता है, और पृथ्वी अपना खून प्रगट करेगी और घात किए हुओं को और अधिक न छिपा रखेगी।”—यशायाह २६:२०, २१.

४४. आप के सामने कौन सा मौका रखा हुआ है? (व्यवस्थाविवरण ३०:१९-२०)

४४ अतः, अभी से बाइबल के स्तरों के अनुसार वास्तविक जीवन जीना आरम्भ करने के द्वारा, आप उत्साही, आगे-देखने वाले परमेश्‍वर के लोगों के साथ “भारी क्लेश” से होकर जीवित पार होने और पृथ्वी से कभी न मर-मिटने के भागीदार हो सकते हैं। वास्तव में, यह निश्‍चयता के साथ कहा जा सकता है कि एक “बड़ा झुण्ड” जो अभी जीवित है कभी भी मर नहीं सकता!

४५. (अ) कौन सी चीज़ है जो अभी कार्य करती है और भविष्य में भी? (१ तीमुथियुस ६:११, १२) (ब) कैसे आप प्रकट करेंगे कि आप मूल्यांकन करते हैं कि ज़िन्दगी में इससे ज़्यादा और भी कुछ है? (१ तीमुथियुस ६:१७-१९)

४५ सारी पृथ्वी पर उसके साक्षियों के जीवित समाज में, यहोवा ने उस चीज़ को उत्पन्‍न किया है जो ठीक अभी कार्य  करती है! यह आपके लिये भी कार्य  कर सकती है! और यह अद्‌भुत रीति से परादीसीय पृथ्वी पर कार्य करेगी, जहाँ अन्त में “जितने प्राणी हैं” सभी महान जीवन-दाता यहोवा परमेश्‍वर की प्रशंसा करेंगे। (भजन संहिता १५०:६) वास्तव में, ज़िन्दगी में इससे ज़्यादा और भी कुछ है!

REFERENCES

1. Intellectual Digest, December 1971, p. 59.

2. Charles Darwin: His Life, chapter 3, p. 66.

3. The Yomiuri, Tokyo, January 17, 1969.

4. Charles Darwin, Origin of Species, concluding sentence.

5. Isaac Asimov, The Wellsprings of Life, 1960, pp. 224, 225.

6. Lecomte du Noüy, Human Destiny, 1947, p. 34.

7. Prof. John N. Moore, Michigan State University, paper of December 27, 1971, p. 5.

8. Isaac Asimov, The Wellsprings of Life, 1960, p. 85.

9. M. S. Keringthan, The Globe and Mail, Toronto, November 26, 1970, p. 46.

10. H. G. Wells, The Outline of History, 3rd Edition, 1921, p. 956.

11. Ibid., p. 957.

12. Philip G. Fothergill, Evolution and Christians, 1961, p. 17.

13. Himmelfarb, Darwin and the Darwinian Revolution, p. 398.

14. J. D. Bernal, Marx and Science, 1952, p. 17.

[अध्ययन के लिए सवाल]

(ब) किस रीति से बाइबल ने बहुत से लोगों की सहायता की है? (भजन संहिता ११९:१०५, १६५)

[पेज 6 पर तसवीर]

कुशल वैज्ञानिकों ने हमारे सौर मंडल के नमूनों को बनाया। क्या इस विशाल विश्‍व-मंडल को बनाने के लिये और भी महान बुद्धि की आवश्‍यकता नहीं होगी?

[पेज 8 पर तसवीर]

एक आंतरिक्ष यात्री ने पृथ्वी को “सारे आकाश में देखने में सबसे सुन्दर वस्तु” होने का वर्णन किया। यह इसलिये है क्योंकि इसमें परमेश्‍वर के द्वारा सृजा हुआ जीवन है।

[पेज 10 पर तसवीर]

बहुत प्रकार के कुत्ते हैं जो एक दूसरे के साथ समागम द्वारा सन्तान पैदा कर सकते हैं। परन्तु वे दूसरी “जाति” के साथ समागम कर सन्तान पैदा नहीं कर सकते, जैसे एक बिल्ली के साथ।

[पेज 11 पर तसवीर]

The Seattle Times, November 21, 1971

The Washington Daily News, December 27, 1971

The Express, Easton, Pa., May 3, 1973

[पेज 12, 13 पर तसवीरें]

मनुष्य और जानवरों के बीच के बड़े खाई को जोड़ना असम्भव है। वे सृष्टि किये गये अलग “जाति” हैं।

[पेज 15 पर तसवीर]

मुनष्य को महिमायुक्‍त परादीस में रहने के लिये सृजा गया था। लेकिन इस में उसका लगातार आनन्द उठाना आज्ञाकारिता पर निर्भर था।

[पेज 20 पर तसवीर]

(रोम में) आर्क ऑफ टाइटस पर यह उमड़ी हुई नकाशी ७० C.E. में यरूशलेम के नाश के इतिहास को उल्लेख करता है

[पेज 21 पर तसवीर]

बाइबल की भविष्यद्वाणी पर ध्यान देने से पहली शताब्दी के मसीहियों ने अपना जीवन बचाया इसी रीति से आज यह आपका जीवन बचा सकता है

[पेज 23 पर तसवीर]

‘प्रथम विश्‍व युद्ध इस शताब्दी में पूर्ण युद्ध को ले आया। . . कभी भी इतने राष्ट्र अन्तर्ग्रस्त नहीं हुए। कभी भी इतने विस्तार पूर्वक और अव्यवस्थित रूप से हत्याएँ नहीं हुई।’—“वर्ल्ड वार I,” एच. डब्ल्यू. बॉल्डिवन द्वारा।

[पेज 23 पर तसवीर]

यह अनुमान लगाया गया है कि ४०,००,००,००० व्यक्‍ति गम्भीर रूप से अल्प पोषित हैं।

[पेज 29 पर तसवीर]

भक्‍त लोगों का नया समाज वास्तविक जीवन का आनन्द उठायेगा और अनन्त काल तक परमेश्‍वर की प्रशंसा करेगा।