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कौन हमें बता सकता है?

कौन हमें बता सकता है?

भाग २

कौन हमें बता सकता है?

१, २. किसी अभिकल्पित वस्तु का उद्देश्‍य जानने के लिए सर्वोत्तम तरीक़ा क्या है?

कौन हमें बता सकता है कि वास्तव में जीवन का उद्देश्‍य क्या है? ख़ैर, यदि आप एक मशीन अभिकल्पक से मिलते और उसे एक ऐसी जटिल मशीनरी पर काम करते देखते जिसे आप नहीं पहचानते, तो आप कैसे पता लगाते कि वह किस काम के लिए थी? आपके लिए सर्वोत्तम तरीक़ा होगा, अभिकल्पक से पूछना।

तो फिर, हमारे चारों ओर पृथ्वी पर दिखनेवाली उस भव्य अभिकल्पना के बारे में क्या, जो सभी जीवित वस्तुओं में, सबसे छोटी जीवित कोशिका में भी दिखाई देती है? यहाँ तक कि कोशिका के अन्दर अति छोटे अणु और परमाणु भी अद्‌भुत रीति से अभिकल्पित और सुव्यवस्थित हैं। साथ ही, आश्‍चर्यजनक रीति से अभिकल्पित मानव मन के बारे में क्या? और हमारे सौर मण्डल, और हमारी आकाशगंगा, और विश्‍व-मंडल के बारे में क्या? क्या इन सब विस्मयकारी अभिकल्पनाओं के लिए एक अभिकल्पक की ज़रूरत नहीं थी? निश्‍चय ही वह हमें बता सकता है कि उसने ऐसी वस्तुओं की अभिकल्पना क्यों की।

क्या जीवन का आरम्भ संयोग से हुआ?

३, ४. इसकी क्या सम्भावना है कि जीवन संयोग से उत्पन्‍न हुआ?

दी एन्साइक्लोपीडिया अमेरिकाना ने “जीवित प्राणियों में जटिलता और व्यवस्था की असाधारण हद” को देखकर कहा: “फूलों, कीड़ों, या स्तनधारियों की निकट जाँच, अंगों की लगभग अविश्‍वसनीय रूप से एक सुनिश्‍चित व्यवस्था दिखाती है।” जीवित प्राणियों के रासायनिक संघटन का उल्लेख करते हुए, ब्रिटिश खगोलज्ञ, सर बर्नार्ड लवॅल ने लिखा: “संयोग से हुई एक घटना के कारण एक सबसे छोटे प्रोटीन अणु के बनने . . . की संभावना अकल्पनीय रूप से कम है। . . . यह असल में शून्य ही है।”

इसी समान, खगोलज्ञ, फ्रेड होइल ने कहा: “रूढ़िग्रस्त जीवविज्ञान का पूरा ढाँचा अभी भी मानता है कि जीवन संयोग से उत्पन्‍न हुआ। लेकिन जैसे-जैसे जीव-रसायनज्ञ जीवन की जटिलता के बारे में और ज़्यादा पता लगा रहे हैं, यह स्पष्ट है कि संयोग से जीवन के आरम्भ होने की सम्भावनाएँ इतनी कम हैं कि उन्हें पूरी तरह से अस्वीकार किया जा सकता है। जीवन संयोग से उत्पन्‍न नहीं हो सकता था।”

५-७. किस प्रकार आणविक जीवविज्ञान प्रमाणित करता है कि जीवित वस्तुएँ संयोग से उत्पन्‍न नहीं हो सकतीं?

आणविक जीवविज्ञान, जो कि विज्ञान का हाल ही का एक कार्य-क्षेत्र है, जीन, अणु, और परमाणु के स्तर पर जीवित वस्तुओं का अध्ययन है। जो पता लगा है उस पर आणविक जीवविज्ञानी माइकल डॅनटन टिप्पणी करता है: “सबसे सरल क़िस्म की ज्ञात कोशिका की जटिलता इतनी विशाल है कि यह स्वीकार करना असंभव है कि ऐसी वस्तु किसी प्रकार की विचित्र, बहुत ही असंभाव्य घटना द्वारा अचानक ही बन गयी हो।” “लेकिन जीवित तंत्रों की मात्र जटिलता ही नहीं, बल्कि उनकी अभिकल्पना में अकसर प्रदर्शित होनेवाली अविश्‍वसनीय पटुता भी अत्यधिक चुनौती देनेवाली होती है।” “आणविक स्तर पर ही . . . जैविक अभिकल्पना की विशिष्टता और प्राप्त लक्ष्यों की परिपूर्णता सबसे अधिक स्पष्ट हैं।”

डॅनटन आगे कहता है: “हम जहाँ कहीं देखें, कितनी भी गहराई में देखें, एकदम श्रेष्ठ दर्जे का लालित्य और पटुता पाते हैं, जो संयोग के विचार को बिलकुल कमज़ोर बना देता है। क्या यह वास्तव में विश्‍वसनीय है कि संयोगिक प्रक्रियाओं ने एक वास्तविकता बनाई हो, जिसके सबसे छोटे तत्त्व—एक क्रियात्मक प्रोटीन या जीन—की जटिलता स्वयं हमारी सृजनात्मक क्षमताओं से परे है, एक ऐसी वास्तविकता जो संयोग का ठीक विपरीत है, और जो मनुष्य की बुद्धि द्वारा उत्पादित किसी भी वस्तु से हर अर्थ में श्रेष्ठ है?” वह यह भी कहता है: “एक जीवित कोशिका और अति व्यवस्थित अजैविक तंत्र, जैसे एक स्फ़टिक या एक हिमलव, के बीच इतना विशाल और निश्‍चित अन्तर है जितना कि कल्पना की जा सकती है। और भौतिकी का एक प्रोफ़ेसर, चेट रेमो, कहता है: “मैं अति प्रभावित हूँ . . . हर अणु अपने कार्य के लिए चमत्कारिक रूप से निर्मित प्रतीत होता है।”

आणविक जीवविज्ञानी डॅनटन निष्कर्ष निकालता है कि “जो अभी भी हठधर्मी से इस बात का समर्थन करते हैं कि यह सारी नई वास्तविकता मात्र संयोग का परिणाम है,” कल्प-कथा में विश्‍वास कर रहे हैं। असल में, संयोग द्वारा जीवित वस्तुओं के उत्पन्‍न होने के सम्बन्ध में डार्विनवादी विश्‍वास को वह “बीसवीं शताब्दी की महान विश्‍वोत्पत्ति कल्प-कथा” कहता है।

अभिकल्प के लिए अभिकल्पक की ज़रूरत होती है

८, ९. यह दिखाने के लिए उदाहरण दीजिए कि हर अभिकल्पित वस्तु के लिए एक अभिकल्पक की ज़रूरत है।

संयोग द्वारा, अर्थात्‌ किसी आकस्मिक घटना द्वारा निर्जीव वस्तु के जीवित हो जाने की संभावना इतनी अल्प है कि मानो असम्भव है। नहीं, पृथ्वी पर सभी श्रेष्ठ रीति से अभिकल्पित वस्तुएँ संयोग से नहीं आ सकती थीं, क्योंकि हर अभिकल्पित वस्तु का अभिकल्पक होना ज़रूरी है। क्या आप किसी अपवाद के बारे में जानते हैं? कोई है ही नहीं। और जितना ज़्यादा जटिल अभिकल्प होगा, उतना ही ज़्यादा योग्य अभिकल्पक होना होगा।

हम विषय को इस प्रकार भी समझा सकते हैं: जब हम एक चित्र देखते हैं, हम उसे एक चित्रकार के अस्तित्व के प्रमाण के रूप में स्वीकार करते हैं। जब हम एक पुस्तक पढ़ते हैं, हम एक लेखक के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। जब हम एक घर देखते हैं, हम एक निर्माता के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। जब हम एक यातायात बत्ती देखते हैं, हम जानते हैं कि एक विधायी निकाय अस्तित्व में है। उन सब वस्तुओं के बनानेवालों ने उन्हें एक उद्देश्‍य के साथ बनाया था। और जबकि हम शायद उन वस्तुओं के बनानेवालों के बारे में सब कुछ न समझें, हम इस बात पर संदेह नहीं करते कि वे लोग अस्तित्व में हैं।

१०. एक सर्वोच्च अभिकल्पक का क्या प्रमाण देखा जा सकता है?

१० इसी प्रकार, एक सर्वोच्च अभिकल्पक के अस्तित्व का प्रमाण पृथ्वी पर जीवित वस्तुओं के अभिकल्प, क्रम, और जटिलता से देखा जा सकता है। वे सभी दिखाते हैं कि एक सर्वोच्च बुद्धि है। यह विश्‍व-मंडल के अभिकल्प, क्रम, और जटिलता के विषय में भी सच है जिसमें अरबों गैलेक्सियाँ हैं, और हर गैलेक्सी में अरबों तारे हैं। और सारे आकाशीय पिण्ड सुनिश्‍चित नियमों द्वारा नियन्त्रित हैं, जैसे गति, ऊष्मा, प्रकाश, ध्वनि, विद्युत्‌ चुम्बकत्व, और गुरुत्व के लिए नियम। क्या एक विधिकर्त्ता के बिना विधियाँ हो सकती हैं? रॉकेट वैज्ञानिक डॉ. वर्नहर फ़ॉन ब्राउन ने कहा: “विश्‍व-मंडल के प्राकृतिक नियम इतने सुनिश्‍चित हैं कि हमें चन्द्रमा तक उड़ने के लिए अंतरिक्ष-यान बनाने में कोई कठिनाई नहीं होती और उड़ान को एक सेकन्ड के अंश तक की यथार्थता के साथ नियंत्रित कर सकते हैं। इन नियमों को किसी व्यक्‍ति ने ज़रूर निर्धारित किया होगा।”

११. मात्र इसलिए कि हम उसे देख नहीं सकते, हमें एक सर्वोच्च अभिकल्पक के अस्तित्व से क्यों इनकार नहीं करना चाहिए?

११ यह सच है कि हम सर्वोच्च अभिकल्पक और विधि-निर्माता को अपनी शारीरिक आँखों से नहीं देख सकते। लेकिन क्या हम गुरुत्व, चुम्बकत्व, विद्युत्‌, या रेडियो तरंगों जैसी वस्तुओं के अस्तित्व से इनकार करते हैं, मात्र इसलिए कि हम उन्हें देख नहीं सकते? नहीं, हम इनकार नहीं करते, क्योंकि हम उनके प्रभाव देख सकते हैं। तब हमें एक सर्वोच्च अभिकल्पक और विधि-निर्माता के अस्तित्व से क्यों इनकार करना चाहिए मात्र इसलिए कि हम उसे देख नहीं सकते, जबकि हम उसकी आश्‍चर्यजनक हस्तकृति के परिणाम देख सकते हैं?

१२, १३. सृष्टिकर्ता के अस्तित्व के बारे में प्रमाण क्या कहता है?

१२ भौतिकी का एक प्रोफ़ेसर, पॉल डेवीज़, निष्कर्ष निकालता है कि मनुष्य का अस्तित्व मात्र नियति की एक विचित्र घटना नहीं है। वह कहता है: “हम सचमुच यहीं रहने के लिए बने हैं।” और विश्‍व-मंडल के सम्बन्ध में वह कहता है: “अपने वैज्ञानिक कार्य के द्वारा, मुझे इस बात पर और ज़्यादा पक्का विश्‍वास हो गया है कि भौतिक विश्‍व-मंडल इतनी विस्मयकारी पटुता से बनाया गया है कि मैं इसे मात्र एक तर्कहीन तथ्य के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता। मुझे प्रतीत होता है कि एक ज़्यादा गहरे स्तर का स्पष्टीकरण ज़रूर होगा।”

१३ अतः, प्रमाण हमें बताता है कि विश्‍व-मंडल, पृथ्वी, और पृथ्वी पर जीवित वस्तुएँ मात्र संयोग से नहीं आ सकती थीं। ये सब एक अत्यधिक बुद्धिमान, शक्‍तिशाली सृष्टिकर्ता का मूक प्रमाण देती हैं।

बाइबल क्या कहती है

१४. बाइबल सृष्टिकर्ता के बारे में क्या निष्कर्ष निकालती है?

१४ मानवजाति की सबसे पुरानी पुस्तक, बाइबल, यही निष्कर्ष निकालती है। उदाहरण के लिए, प्रेरित पौलुस द्वारा लिखित, बाइबल की इब्रानियों नामक पुस्तक में हमें कहा गया है: “क्योंकि हर घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, पर जिस ने सब कुछ बनाया वह परमेश्‍वर है।” (इब्रानियों ३:४) प्रेरित यूहन्‍ना द्वारा लिखित, बाइबल की अन्तिम पुस्तक भी कहती है: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्‍वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।”—प्रकाशितवाक्य ४:११.

१५. हम परमेश्‍वर के कुछ गुणों को कैसे अनुभव कर सकते हैं?

१५ बाइबल दिखाती है कि जबकि परमेश्‍वर को देखा नहीं जा सकता, जो उसने बनाया है उससे अनुभव किया जा सकता है कि वह किस क़िस्म का परमेश्‍वर है। यह कहती है: “[सृष्टिकर्ता के] अनदेखे गुण, अर्थात्‌ उस की सनातन सामर्थ, और ईश्‍वरत्व जगत के आरम्भ के समय से, उसके कामों में, तर्क की आँख से देखने में आते हैं।”—रोमियों १:२०, द न्यू इंग्लिश बाइबल.

१६. हमें क्यों ख़ुश होना चाहिए कि मनुष्य परमेश्‍वर को नहीं देख सकते?

१६ अतः बाइबल हमें परिणाम से कारण तक ले जाती है। परिणाम—बनाई गई विस्मयकारी वस्तुएँ—बुद्धिमान, शक्‍तिशाली कारण, परमेश्‍वर का प्रमाण है। साथ ही, हम आभारी हो सकते हैं कि वह अदृश्‍य है, क्योंकि सारे विश्‍व-मंडल का सृष्टिकर्ता होने के नाते, उसके पास निःसन्देह इतनी अधिक शक्‍ति है कि मांस और लहू के मनुष्य उसे देखकर जीवित बचने की अपेक्षा नहीं कर सकते। और बाइबल ठीक वही कहती है: “मनुष्य [परमेश्‍वर के] मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता।”—निर्गमन ३३:२०.

१७, १८. एक सृष्टिकर्ता की धारणा हमारे लिए क्यों महत्त्वपूर्ण होनी चाहिए?

१७ एक महान अभिकल्पक, एक सर्वोच्च व्यक्‍ति—परमेश्‍वर—की धारणा हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होनी चाहिए। यदि हमें एक सृष्टिकर्ता ने बनाया है, तो निश्‍चित ही हमारी सृष्टि करने में उसका एक कारण, एक उद्देश्‍य रहा होगा। यदि हमें जीवन में एक उद्देश्‍य रखने के लिए सृजा गया था, तो यह आशा करने का कारण है कि भविष्य में हमारे लिए परिस्थितियाँ बेहतर हो जाएँगी। अन्यथा, हम बिना आशा जीएँगे और मरेंगे। सो यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि हम हमारे लिए परमेश्‍वर के उद्देश्‍य का पता लगाएँ। तब हम चुन सकते हैं कि हम इसके सामन्जस्य में जीना चाहते हैं या नहीं।

१८ साथ ही, बाइबल कहती है कि सृष्टिकर्ता एक प्रेममय परमेश्‍वर है जो हमारे बारे में बहुत ज़्यादा परवाह करता है। प्रेरित पतरस ने कहा: “उसको तुम्हारा ध्यान है।” (१ पतरस ५:७; साथ ही यूहन्‍ना ३:१६ और १ यूहन्‍ना ४:८, १६ भी देखिए.) मानसिक और शारीरिक रूप से, जिस अद्‌भुत रीति से उसने हमें बनाया है, उस पर विचार करना एक तरीक़ा है जिससे हम देख सकते हैं कि परमेश्‍वर कितनी परवाह करता है।

“अद्‌भुत रीति से रचा गया”

१९. भजनहार दाऊद किस सत्य की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है?

१९ बाइबल में भजनहार दाऊद ने स्वीकार किया: “मैं भयानक और अद्‌भुत रीति से रचा गया हूं।” (भजन १३९:१४) निश्‍चय ही यह सच है, क्योंकि मानव मस्तिष्क और शरीर की अभिकल्पना सर्वोच्च अभिकल्पक द्वारा चमत्कारिक रूप से की गई थी।

२०. एक विश्‍वकोश किस प्रकार मानव मस्तिष्क का वर्णन करता है?

२० उदाहरण के लिए, आपका मस्तिष्क किसी भी कम्‌प्यूटर से कहीं ज़्यादा जटिल है। विश्‍वकोश, द न्यू एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका कहती है: “तंत्रिका तंत्र के अन्दर जानकारी का संचारण सबसे बड़े मिलान-केंद्रों से भी ज़्यादा जटिल है; एक मानव मस्तिष्क द्वारा समस्याओं को सुलझाना, सबसे सक्षम कम्‌प्यूटरों की क्षमता से कहीं ज़्यादा है।”

२१. जब हम मस्तिष्क के कार्यों को देखते हैं, तो हमें क्या निष्कर्ष निकालना चाहिए?

२१ करोड़ों तथ्य और मानसिक-चित्र आपके मस्तिष्क में जमा होते हैं, लेकिन यह तथ्यों का मात्र भंडार ही नहीं है। मस्तिष्क के कारण आप सीटी बजाना, रोटी पकाना, विदेशी भाषा बोलना, एक कम्‌प्यूटर प्रयोग करना, या एक हवाई जहाज़ उड़ाना सीख सकते हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि छुट्टियाँ कैसी होंगी या एक फल कितना स्वादिष्ट होगा। आप विश्‍लेषण करके वस्तुएँ बना सकते हैं। आप योजना, मूल्यांकन, प्रेम भी कर सकते हैं और अपने विचारों को अतीत, वर्तमान, और भविष्य के साथ जोड़ सकते हैं। क्योंकि हम मनुष्य, विस्मयकारी मानव मस्तिष्क जैसी वस्तु की अभिकल्पना नहीं कर सकते, तो निश्‍चित ही उसकी अभिकल्पना करनेवाले के पास किसी भी मनुष्य से कहीं ज़्यादा बुद्धि और क्षमता है।

२२. मानव मस्तिष्क के बारे में वैज्ञानिक क्या स्वीकार करते हैं?

२२ मस्तिष्क के सम्बन्ध में, वैज्ञानिक स्वीकार करते हैं: “यह काफ़ी दुर्बोध है कि इस शानदार रीति से अभिकल्पित, व्यवस्थित और अनोखे रूप से जटिल मशीनरी द्वारा ये क्रियाएँ कैसे की जाती हैं। . . . शायद मस्तिष्क द्वारा प्रस्तुत अलग-अलग विशिष्ट पहेलियों को मनुष्य कभी न सुलझा पाएँ।” (साइन्टिफ़िक अमेरिकन) और भौतिकी का प्रोफ़ेसर रेमो कहता है: “सच कहा जाए तो, हम अभी तक इस बारे में ज़्यादा नहीं जानते कि मानव मस्तिष्क जानकारी कैसे जमा करता है, और कैसे यह इच्छानुसार यादें वापस लाने में समर्थ है। . . . मानव मस्तिष्क में लगभग एक खरब तंत्रिका कोशिकाएँ होती हैं। हर कोशिका गुणसूत्री संयोजनों के पेड़समान क्रम के द्वारा हज़ारों अन्य कोशिकाओं के साथ संचार में रहती है। अंतःसंबंध की सम्भावनाएँ अत्यधिक जटिल हैं।”

२३, २४. अद्‌भुत रीति से अभिकल्पित शरीर के कुछ अंगों के नाम बताइए, और एक इंजीनियर ने क्या टिप्पणी की?

२३ आपकी आँखें किसी भी कैमरे से ज़्यादा यथार्थ और अनुकूलनशील हैं; असल में, वे पूरी तरह स्वचालित, स्वयं फ़ोकस करनेवाले, रंगीन चलचित्र कैमरे हैं। आपके कान विविध प्रकार की ध्वनियों का पता लगा सकते हैं और आपको दिशा और संतुलन का बोध करा सकते हैं। आपका हृदय एक ऐसी क्षमताओं वाला पम्प है जिसे सर्वोत्तम इंजीनियर भी दोहराने में समर्थ नहीं हुए हैं। शरीर के अन्य भाग भी शानदार हैं: इनमें से कुछ हैं आपकी नाक, जीभ, और हाथ, साथ ही आपके रक्‍तवह और पाचक तंत्र।

२४ अतः, एक बड़े कम्‌प्यूटर की अभिकल्पना करने और बनाने के लिए नौकरी पर लगाए गए एक इंजीनियर ने तर्क किया: “यदि मेरे कम्‌प्यूटर को एक अभिकल्पक की ज़रूरत थी, तो उस जटिल भौतिक-रासायनिक-जैविक मशीन, अर्थात्‌, मेरे मानव शरीर को एक अभिकल्पक की कितनी ज़्यादा ज़रूरत थी—जो क्रमशः लगभग असीम विश्‍व-मंडल का केवल एक अत्यधिक छोटा भाग है?”

२५, २६. महान अभिकल्पक हमें क्या बताने में समर्थ होना चाहिए?

२५ जिस प्रकार लोगों के मन में एक उद्देश्‍य होता है जब वे हवाई जहाज़, कम्‌प्यूटर, साइकिल, और अन्य यंत्र बनाते हैं, उसी प्रकार हमारी अभिकल्पना करने में मनुष्यों के मस्तिष्क और शरीर के अभिकल्पक का भी एक उद्देश्‍य ज़रूर रहा होगा। और इस अभिकल्पक के पास मनुष्यों से उत्तम बुद्धि ज़रूर होगी, क्योंकि हम में से कोई भी उसकी अभिकल्पना को नहीं दोहरा सकता। तब, यह तर्कसंगत है कि वही हमें बता सकता है कि उसने हमारी अभिकल्पना क्यों की, उसने हमें पृथ्वी पर क्यों रखा, और हम कहाँ जा रहे हैं।

२६ जब हम इन बातों को सीखते हैं, तब जो अद्‌भुत मस्तिष्क और शरीर परमेश्‍वर ने हमें दिया है, उनका प्रयोग हमारे जीवन के उद्देश्‍य को पूरा करने के लिए किया जा सकता है। लेकिन हम उसके उद्देश्‍यों के बारे में कहाँ सीख सकते हैं? यह जानकारी वह हमें कहाँ देता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज ७ पर तसवीर]

किसी वस्तु की अभिकल्पना क्यों की गई थी, यह जानने का सर्वोत्तम तरीक़ा है अभिकल्पक से पूछना

[पेज ८ पर तसवीर]

जीवित वस्तुओं की जटिलता और अभिकल्प को डी.एन.ए. अणु में देखा जा सकता है

[पेज ९ पर तसवीर]

“एक मानव मस्तिष्क द्वारा समस्याओं को सुलझाना, सबसे सक्षम कम्‌प्यूटरों की क्षमता से कहीं ज़्यादा है”