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क्या जीवन का एक उद्देश्‍य है?

क्या जीवन का एक उद्देश्‍य है?

भाग १

क्या जीवन का एक उद्देश्‍य है?

१. अकसर जीवन के उद्देश्‍य के बारे में क्या पूछा जाता है, और एक व्यक्‍ति ने इस पर किस प्रकार टिप्पणी की?

कभी न कभी, लगभग सभी व्यक्‍ति सोचते हैं कि जीवन का उद्देश्‍य क्या है। क्या यह अपने जीने की परिस्थितियों को बेहतर बनाने के लिए कठिन परिश्रम करना, अपने परिवारों का भरण-पोषण करना, शायद ७० या ८० साल के बाद मर जाना, और फिर हमेशा के लिए असत्‌ हो जाना है? ऐसा महसूस करनेवाले एक युवा व्यक्‍ति ने कहा कि “जीवित रहने, बच्चे पैदा करने, ख़ुश रहने, और फिर मर जाने” के अलावा जीवन में और कोई उद्देश्‍य नहीं है। लेकिन क्या यह सच है? और क्या मृत्यु सचमुच सभी क्रियाओं का अन्त है?

२, ३. भौतिक धन प्राप्त करना क्यों जीवन के उद्देश्‍य के लिए काफ़ी नहीं है?

पूर्वी और पश्‍चिमी दोनों देशों में अनेक व्यक्‍ति महसूस करते हैं कि जीने का मुख्य उद्देश्‍य है भौतिक धन प्राप्त करना। वे विश्‍वास करते हैं कि इससे सुखी, अर्थपूर्ण जीवन मिल सकता है। लेकिन उन लोगों के बारे में क्या जिनके पास पहले से ही भौतिक धन है? कनाडा के लेखक हैरी ब्रूस ने कहा: “अमीर लोगों की एक बड़ी संख्या ज़ोर देती है कि वे सुखी नहीं हैं।” उसने आगे कहा: “मतदानों से पता चलता है कि उत्तरी अमरीका एक भयानक निराशावाद से संदूषित है . . . क्या इस संसार में कोई भी व्यक्‍ति सुखी है? यदि हाँ, तो इसकी कुँजी क्या है?”

अमरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने कहा: “हमने पाया है कि वस्तुओं का मालिक होना और वस्तुओं का उपभोग करना अर्थ के लिए हमारी लालसा को संतुष्ट नहीं करता। . . . भौतिक वस्तुओं का ढेर लगाना उन लोगों के जीवन के खालीपन को नहीं भर सकता जिनके जीवन में कोई विश्‍वास और उद्देश्‍य ही नहीं है।” और एक अन्य राजनीतिक नेता ने कहा: “मैं अब कई सालों से अपने और अपने जीवन के बारे में सच्चाइयों की गहन खोज में लगा हुआ हूँ; मेरे परिचित अनेक अन्य लोग भी ऐसा ही कर रहे हैं। पहले से कहीं ज़्यादा लोग आज पूछ रहे हैं, ‘हम कौन हैं? हमारा उद्देश्‍य क्या है?’”

परिस्थितियाँ ज़्यादा कठिन

४. कुछ लोग क्यों इस बात पर संदेह करते हैं कि जीवन का कोई उद्देश्‍य है?

जब लोग देखते हैं कि जीने की परिस्थितियाँ ज़्यादा कठिन हो गई हैं तो अनेक व्यक्‍ति इस बात पर संदेह करते हैं कि जीवन का एक उद्देश्‍य है। संसार भर में एक अरब से ज़्यादा लोग गंभीर रूप से बीमार या कुपोषित हैं, जिसके कारण मात्र अफ्रीका में ही हर साल कुछ १ करोड़ बच्चे मर जाते हैं। पृथ्वी की जनसंख्या, जो ६ अरब के क़रीब पहुँच रही है, हर साल ९ करोड़ से भी ज़्यादा बढ़ती ही जा रही है, इस वृद्धि का ९० प्रतिशत से भी ज़्यादा भाग विकासशील देशों में हो रहा है। यह निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या भोजन, घर, और उद्योग की ज़रूरत को बढ़ाती है, जो कि औद्योगिक और अन्य प्रदूषित करनेवाली वस्तुओं के द्वारा भूमि, जल, और वायु को अतिरिक्‍त क्षति पहुँचाती है।

५. पृथ्वी पर वनस्पति को क्या हो रहा है?

प्रकाशन विश्‍व सैन्य और सामाजिक व्यय १९९१ (World Mili-tary and Social Expen-ditures 1991) रिपोर्ट करता है: “हर साल [ग्रेट ब्रिटेन] के पूरे क्षेत्र के बराबर का जंगल क्षेत्र नाश किया जाता है। (पेड़ों की कटाई के) वर्तमान दर पर, साल २००० तक, हम आर्द्र उष्णकटिबन्धी क्षेत्रों में ६५ प्रतिशत जंगल काट चुके होंगे।” उन क्षेत्रों में, एक यू.एन. अभिकरण के अनुसार, प्रति १ पेड़ लगाने पर १० पेड़ काटे जाते हैं; अफ्रीका में यह १ और २० के अनुपात से भी ज़्यादा है। अतः रेगिस्तानी क्षेत्र बढ़ते हैं, और हर साल बेल्जियम के विस्तार के बराबर का क्षेत्र कृषि प्रयोग के लिए नाश होता है।

६, ७. कुछ समस्याएँ क्या हैं जिन्हें सुलझाने में मानव नेता असमर्थ हैं, इसलिए किन प्रश्‍नों के उत्तर की ज़रूरत है?

साथ ही, इस २०वीं शताब्दी में युद्धों से हुई मृत्यु कुल मिलाकर पिछली चार शताब्दियों में युद्धों से हुई मृत्यु से चारगुना है। हर जगह, अपराध में, ख़ासकर हिंसात्मक अपराध में वृद्धि है। परिवार विभाजन, नशीले पदार्थों का दुष्प्रयोग, एडस्‌, लैंगिक रूप से फैलनेवाली बीमारियाँ, और अन्य नकारात्मक तत्त्व भी जीवन को ज़्यादा कठिन बना रहे हैं। और मानव परिवार पर विपत्ति बनी अनेक समस्याओं का समाधान प्रदान करने में विश्‍व नेता समर्थ नहीं हुए हैं। अतः, लोगों का यह पूछना स्वाभाविक है कि, जीवन का उद्देश्‍य क्या है?

यह प्रश्‍न विद्वानों और धार्मिक नेताओं द्वारा कैसे सम्बोधित किया गया है? इन अनेक शताब्दियों के बाद, क्या उन्होंने एक संतोषजनक उत्तर प्रदान किया है?

वे क्या कहते हैं

८, ९. (क) जीवन के उद्देश्‍य के बारे में एक चीनी विद्वान ने क्या कहा? (ख) नात्सी मृत्यु-शिविर के एक उत्तरजीवी ने क्या कहा?

कन्फ्यूशियन विद्वान डू वे-मिङ्‌ग ने कहा: “जीवन का मूल अर्थ हमारे सामान्य, मानव जीवन में पाया जाता है।” इस दृष्टिकोण के अनुसार, मनुष्य पैदा होते, जीने के लिए संघर्ष करते, और मरते जाएँगे। ऐसे दृष्टिकोण में कोई आशा नहीं। और क्या यह सच है भी?

द्वितीय विश्‍व युद्ध में नात्सी मृत्यु शिविर के उत्तरजीवी, एली वीज़ल ने कहा: “‘हम यहाँ क्यों हैं?’ सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्‍न है जिसका सामना एक मनुष्य को करना पड़ता है। . . . अर्थहीन मृत्यु देखने के बावजूद भी मैं विश्‍वास करता हूँ कि जीवन का अर्थ है।” लेकिन वह यह नहीं बता सका कि जीवन का अर्थ है क्या।

१०, ११. (क) एक सम्पादक ने किस प्रकार दिखाया कि मनुष्य के पास उत्तर नहीं हैं? (ख) एक विकासवादी वैज्ञानिक का दृष्टिकोण क्यों संतोषजनक नहीं है?

१० सम्पादक वरमॉन्ट रॉइस्टर ने कहा: “स्वयं मनुष्य पर, . . . विश्‍व में उसके स्थान पर विचार करने से, हम बहुत थोड़ा ही जान पाए हैं। हमारे अभी भी ये प्रश्‍न हैं कि हम कौन हैं और हम क्यों हैं और हम कहाँ जा रहे हैं।”

११ विकासवादी वैज्ञानिक स्टीवन जे गूल्ड ने टिप्पणी की: “हम शायद एक ‘उच्चतर’ उत्तर के लिए तरसें—लेकिन ऐसा उत्तर है नहीं।” ऐसे विकासवादियों के लिए, जीवन योग्यतम की उत्तरजीविता के लिए संघर्ष है, मृत्यु इन सब का अन्त कर देती है। इस दृष्टिकोण में भी कोई आशा नहीं। और फिर, क्या यह सच है?

१२, १३. गिरजा नेताओं के क्या दृष्टिकोण हैं, और क्या वे सांसारिक प्रेक्षकों के दृष्टिकोणों से ज़्यादा संतोषजनक हैं?

१२ अनेक धार्मिक नेता कहते हैं कि जीवन का उद्देश्‍य अच्छा जीवन व्यतीत करना है, ताकि मृत्यु होने पर एक व्यक्‍ति की आत्मा स्वर्ग जा सके और वहाँ सर्वदा जी सके। बुरे लोगों के लिए प्रस्तुत किया गया विकल्प है, नरकाग्नि में अनन्त यातना। फिर भी, इस विश्‍वास के अनुसार, जैसा पूरे इतिहास में होता आया है, पृथ्वी पर वैसा ही असंतोषजनक जीवन अधिकाधिक चलता रहेगा। लेकिन यदि परमेश्‍वर का उद्देश्‍य था कि लोग स्वर्ग में स्वर्गदूतों की तरह रहें, तो उसने शुरू में ही उन्हें वैसा क्यों नहीं बनाया, जैसा उसने स्वर्गदूतों को बनाया था?

१३ पादरियों को भी ऐसे दृष्टिकोणों के साथ कठिनाई होती है। सेन्ट पॉलस्‌ कथीड्रल के भूतपूर्व डीन, डॉ. डब्ल्यू. आर. इन्ज, ने एक बार कहा: “जीवन भर मैं ने जीने का उद्देश्‍य ढूँढने का संघर्ष किया है। मैं ने तीन समस्याओं का उत्तर देने की कोशिश की है जो मुझे हमेशा मूलभूत प्रतीत हुई हैं: अनन्तता की समस्या; मानव व्यक्‍तित्व की समस्या; दुष्टता की समस्या। मैं हार गया। मैं इनमें से एक को भी नहीं सुलझा पाया।”

परिणाम

१४, १५. अनेक लोगों पर विरोधात्मक दृष्टिकोणों का क्या प्रभाव पड़ता है?

१४ जीवन के उद्देश्‍य के प्रश्‍न पर विद्वानों और धार्मिक नेताओं के इतने ज़्यादा भिन्‍न विचारों का परिणाम क्या है? अनेक व्यक्‍ति उस वृद्ध पुरुष के समान प्रतिक्रिया दिखाते हैं जिसने कहा: “मैं अपने अधिकांश जीवन यह पूछता आया हूँ कि मैं यहाँ क्यों हूँ। यदि एक उद्देश्‍य है भी, तो अब मुझे कोई परवाह नहीं।”

१५ संसार के धर्मों के मध्य अत्यधिक दृष्टिकोण देखकर काफ़ी संख्या में लोग यह निष्कर्ष निकालते हैं कि सचमुच इससे कोई फ़रक नहीं पड़ता कि एक व्यक्‍ति क्या विश्‍वास करता है। उन्हें लगता है कि धर्म मात्र मन बहलाव के लिए है, मन को थोड़ी शान्ति और सांत्वना देने की कोई चीज़ है ताकि व्यक्‍ति जीवन की समस्याओं का सामना कर सके। दूसरों को लगता है कि धर्म अन्धविश्‍वास से ज़्यादा और कुछ नहीं। उन्हें लगता है कि शताब्दियों के धार्मिक अनुमान ने जीवन के उद्देश्‍य के बारे में प्रश्‍न का उत्तर नहीं दिया है, न ही इसने आम जनता के जीवन को बेहतर बनाया है। वास्तव में, इतिहास दिखाता है कि इस संसार के धर्मों ने अकसर मानवजाति की प्रगति में बाधा डाली है और घृणा तथा युद्धों का कारण बने हैं।

१६. जीवन का उद्देश्‍य ढूँढ़ना कितना महत्त्वपूर्ण हो सकता है?

१६ फिर भी, क्या जीवन के उद्देश्‍य के बारे में सत्य ढूँढ़ना महत्त्वपूर्ण है भी? मानसिक-स्वास्थ्य पेशेवर विक्टॉर फ्राङ्‌गकल ने उत्तर दिया: “अपने जीवन में एक अर्थ ढूँढ़ने का प्रयत्न करना मनुष्य में मुख्य अभिप्रेरक बल है। . . . मैं यह कहने का साहस करता हूँ कि, संसार में ऐसा कुछ नहीं जो एक व्यक्‍ति को इतने प्रभावकारी रूप से बदतरीन परिस्थितियों से भी बच निकलने में मदद कर सकता है, जितना कि यह ज्ञान कि व्यक्‍ति के जीवन में एक अर्थ है।”

१७. अब हमें किन प्रश्‍नों को पूछने की ज़रूरत है?

१७ क्योंकि मानव तत्त्वज्ञान और धर्मों ने संतोषजनक रूप से नहीं समझाया कि जीवन का उद्देश्‍य क्या है, यह ढूँढने के लिए कि यह क्या है हम कहाँ जा सकते हैं? क्या श्रेष्ठ बुद्धि का एक स्रोत है जो हमें इस विषय के बारे में सत्य बता सके?

यदि अन्य प्रकार से सूचित न हो, तो उपयोग किया गया बाइबल अनुवाद द होली बाइबल हिन्दीओ. वी. है। यदि उद्धरण के बाद NW या NHT आता है तो वह शास्त्रवचन क्रमशः अंग्रेज़ी न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ़ द होली स्क्रिप्चर्स्‌विद रॆफ्रॆंसॆज़ से अनुवादित या द होली बाइबलए न्यू हिन्दी ट्रांस्लेशन से उद्धृत है।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज ४ पर तसवीर]

“हर साल [ग्रेट ब्रिटेन] के पूरे क्षेत्र के बराबर का जंगल क्षेत्र नाश किया जाता है”

[पेज ५ पर तसवीर]

“मैं अपने अधिकांश जीवन यह पूछता आया हूँ कि मैं यहाँ क्यों हूँ”